25 Jan 2016

श्रीविद्या (shri vidya)

तंत्र के क्षेत्र में श्रीविद्या को निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ तथा सबसे गोपनीय माना जाता है. श्रीविद्या की साधना का सबसे प्रमुख साधन है श्रीयंत्र...

इसकी विशिष्टता का अनुमान इसी बात से लगाया जाता है कि सनातन धर्म के पुनरूद्धारक, भगवान शिव का
अवतार माने जाने वाले, जगद्गुरू आदि शंकराचार्य
ने जिन चार पीठों की स्थापना की, उनमें उन्होने
पूरी प्रामाणिकता के साथ श्रीयंत्र की स्थापना की. जिसके परिणाम के रूप में आज भी चारों पीठ हर दृष्टि से, फिर वह चाहे साधनात्मक हो या फिर आर्थिक, पूर्णता से युक्त हैं.

श्रीयंत्र प्रमुख रूप से ऐश्वर्य तथा समृद्धि प्रदान करने वाली महाविद्या त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी का सिद्ध यंत्र है. यह यंत्र सही अर्थों में यंत्रराज है. इस यंत्र को स्थापित करने का तात्पर्य श्री को अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ
आमंत्रित करना होता है.

जो साधक श्रीयंत्र के माध्यम से त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी की साधना के लिए प्रयासरत होता है, उसके एक हाथ में सभी प्रकार के भोग होते हैं, तथा दूसरे हाथ में पूर्ण मोक्ष होता है. आशय यह कि श्रीयंत्र का साधक समस्त प्रकार के भोगों का उपभोग करता हुआ अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है. इस प्रकार यह एकमात्र ऐसी साधना है जो एक साथ भोग तथा मोक्ष दोनों ही प्रदान करती है, इसलिए प्रत्येक साधक इस साधना को प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है.

इस अद्भुत यंत्र से अनेक लाभ हैं, इनमें प्रमुख हैं :-

· श्रीयंत्र के स्थापन मात्र से भगवती लक्ष्मी
की कृपा प्राप्त होती है.

· कार्यस्थल पर इसका नित्य पूजन व्यापार में
विकास देता है.

· घर पर इसका नित्य पूजन करने से संपूर्ण दांपत्य सुख प्राप्त होता है.

· पूरे विधि विधान से इसका पूजन यदि प्रत्येक
दीपावली की रात्रि को संपन्न कर लिया जाय
तो उस घर में साल भर किसी प्रकार की कमी नही होती है.

· श्रीयंत्र पर ध्यान लगाने से मानसिक क्षमता
में वृद्धि होती है. उच्च यौगिक दशा में यह सहस्रार चक्र के भेदन में सहायक माना गया है.

· यह विविध वास्तु दोषों के निराकरण के लिए
श्रेष्ठतम उपाय है.

विविध पदार्थों से निर्मित श्री यंत्र

श्रीयंत्र का निर्माण विविध पदार्थों से किया
जा सकता है. इनमें श्रेष्ठता के क्रम में प्रमुख हैं -

1 पारद श्रीयत्रं पारद को शिववीर्य कहा जाता है. पारद से निर्मित यह यंत्र सबसे दुर्लभ तथा प्रभावशाली होता है. यदि सौभाग्य से ऐसा पारद श्री यंत्र प्राप्त हो जाए तो रंक को भी वह राजा बनाने में सक्षम होता है.

स्फटिक श्रीयंत्र स्फटिक का बना हुआ श्री यंत्र अतिशीघ्र सफलता प्रदान करता है. इस यंत्र की निर्मलता के समान ही साधक का जीवन भी सभी प्रकार की मलिनताओं से परे हो जाता है.

स्वर्ण श्रीयंत्र स्वर्ण से निर्मित यंत्र संपूर्ण ऐश्वर्य को प्रदान करने में सक्षम माना गया है. इस यंत्र को तिजोरी में रखना चाहिए तथा ऐसी व्यवस्था रखनी चाहिये कि उसे कोई अन्य व्यक्ति स्पर्श न कर सके.

मणि श्रीयंत्र ये यंत्र कामना के अनुसार बनाये जाते हैं तथा दुर्लभ होते हैं

रजत श्रीयंत्र ये यंत्र व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की उत्तरी
दीवाल पर लगाए जाने चाहिये. इनको इस प्रकार
से फ्रेम में मढवाकर लगवाना चाहिए जिससे इसको कोई सीधे स्पर्श न कर सके.

ताम्र श्रीयंत्र ताम्र र्निमित यंत्र का प्रयोग विशेष पूजन
अनुष्ठान तथा हवनादि के निमित्त किया जाता
है. इस प्रकार के यंत्र को पर्स में रखने से अनावश्यक खर्च में कमी होती है तथा आय के नए माध्यमों का
आभास होता है.

भोजपत्र श्रीयंत्र आजकल इस प्रकार के यंत्र दुर्लभ होते जा रहे हैं. इन पर निर्मित यंत्रों का प्रयोग ताबीज के अंदर डालने के लिए किया जाता है. इस प्रकार के यंत्र सस्ते तथा प्रभावशाली होते हैं.

उपरोक्त पदार्थों का उपयोग यंत्र निर्माण के लिए करना श्रेष्ठ है. लकडी, कपडा या पत्थर आदि पर श्रीयंत्र का निर्माण न करना श्रेष्ठ रहता है.

श्रीविद्या साधना संसार की सर्वश्रेष्ठ साधनाओ मे से एक हैं.मेरे अनुभव के आधार पर मै कह सकता हूँ कि ध्यान के बिना केवल मन्त्र का जाप करना श्री विद्या साधना नही है.बिना ध्यान के केवल दस प्रतिशत का ही लाभ मिल सकता है. श्रीविद्या साधना में ध्यान का विशेष महत्व हैं. इसलिए पहले ध्यान का अभ्यास करे व साथ-साथ जप करे,अन्त मे केवल ध्यान करें.

श्री विद्या में ध्यान के लिए श्रीयन्त्र का महत्वपूर्ण योगदान है.श्री विद्या साधना श्रीयन्त्र के बिना सम्पन्न नही हो सकती. श्री विद्या साधना करने वाले साधको को चाहिए पहले श्रीयन्त्र लें. श्रीयन्त्र को ऊपर से व अन्दर की तरफ से अच्छी तरह मन व बुद्धि में बैठा ले. उस के अन्दर के आकार को अच्छी तरह ध्यान मे बैठा लें.श्रीयन्त्र को अन्दर से व ऊपरी भाग को ध्यान से देखें इस के अन्दर की तरफ आप को तीन रेखा दिखाई देंगीं.इन रेखाओ के ऊपर बिन्दु हैं.त्रिकोण के ऊपर बिन्दु हैं। इन दो चिन्हों का विशेष महत्व है.साधना आरम्भ करने से पहले आप धारणा करें कि हमारा शरीर व ब्रह्माण्ड दोनो ही श्रीयन्त्र के आकार के हैं.

यहा पर संक्षिप्त रूप मे विवरण दिया है,आशा है "आपके लिये महत्वपूर्ण साबित होगा.

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5 Silver Sriyantra these instruments of commercial establishments in North
Must be mounted on the wall. They thus
adjust should take it directly to the frame from which they could not touch.

6. Copper Copper Sriyantra use specially designed instrument of worship
And ritual is intended to Hvnadi
is. Thus placing the device in the purse reduction in unnecessary costs and income of the new media
Have visions.

7 Birch Sriyantra are becoming rare nowadays such equipment. Built on the use of these devices is to put inside amulets. Such instruments are cheap and effective.

Construction equipment is best to use these substances. Wood, cloth or stone etc. is best to not build Sriyantra.

Srividya practice in my experience, one of the world's best practice on that note, I can say without simply to chant the mantra of Sri Vidya practice meditation it. Without not only can get up to ten percent. Srividya practice of meditation has particular importance. Prior to the practice of meditation and chanting along to, at the end the only consideration.

Sri Vidya attention to the important contribution of Sriyantra Shri Vidya Sadhana can not be concluded without Sriyantra. Sri Vidya practice the devotees should first take Sriyantra. Sriyantra from above and from inside to sit well in mind and intellect. Sitting in meditation in the size of the well and the upper portion of the inside Lenksriyantra Observe the inward above the three point line Hanltrikon lines Denginkin appear to point up. Haksadna importance of these two signs before starting assumption that the size of our body and the universe are both Sriyantra.

Here is the brief description as a hope "will be important for you.





आदेश......