13 Nov 2021

पहाड़िया मामा प्रत्यक्षीकरण साधना सिद्धी.


आज आप सभी के ज्ञान हेतु "पहाड़िया-मामा" की सिद्धि के विषय में बताने जा रहा हूँ। यह मूलतः हिमाचली देव माना जाता है, यहा जहा पर पहाड़ी-क्षेत्र होता है वहां इनका निवास होता है।

जैसा कि मैंने अपनी पिछली कई पोस्ट्स में कहा है कि साधना अपितु शक्ति कोई बुरी नहीं होती बस उसका उपयोग सही या गलत होता है, हाँ यह अवश्य है कि जिस गुण की वह शक्ति है वह आपको उसी गुण-स्वभाव का बनाने का प्रयत्न करती है, तामसिक या सात्विक यदि आपके इष्ट या गुरु की शक्ति आपके साथ है तो ये अधिक प्रभाव नहीं डाल सकती ।

पहाड़िया-मामा कहि से भी सबकुछ ला सकता है या आस-पड़ोस में कलह करवा सकता है, जो चाहो वह यह कर सकता है किंतु हिमाचल में इसे देव कहा जाता है न कि भूत-प्रेत, जिस प्रकार बुलाकी आदि देव होते हैं उसी प्रकार यह हिमाचल में प्रसिद्ध है।

यह मूलतः 21 दिन की साधना होती है, जिसमें प्रत्येक दिन साधना में आपको इसके भोग के लिए शराब और मांस रखना होता है,ज़्यादा मात्रा में न रखें थोड़ा-बहुत चलेगा और नित्य मंत्र जप के पश्च्यात उस शराब को आप किसी शराबी को पीने के लिए दे देवें या निर्जन स्थान पर रख दें और वह मांस कुत्तों को डाल दिया करें।

21वें दिन मामा सफेद वस्त्रों में हंसते हुए प्रकट होंगे और सिर पर टोपी भी होगी वे बिल्कुल आदमी की तरह आपसे बात करेंगे और आपसे कहेंगे कि मुझे दारू और मांस खिला जोकि उनका भोग है। आप वह मांस, शराब और एक गिलास पानी भरकर उनके सामने रख दें। अब यह उनकी इच्छा है कि दारू नीट पियें या पानी मिलाकर पिएं फिर वे आपके साथ बैठकर ही वह दारू-मांस खाएंगे तत्पश्चात आपसे पूछेंगे कि 'बताओ मेरे लिए क्या काम है?'

फिर आपकी जो भी इच्छा या मनोरथ हो वह कह दें जो भी आपको चाहिए, किन्तु इच्छा भी वही प्रकट करें जो सम्भव हो अन्यथा आप कहें कि मुझे हवाई-जहाज चाहिए तो थोड़े ही मिलेगा।


पहाड़ी मामा का मन्त्र -

।। पहाड़िया आवे आवे तुझे मनावे, तुझे भोग में दारू मास खिलावे, मेरा काम कर नहीं आवे, तुझे गौरा माता की दुहाई जय पहाड़िया मामा तेरी सेवा करूँ दिन रात ।।


जपसंख्या - नित्य 11 माला जाप.
साधना सामग्री-रुद्राक्ष माला,रक्षा कवच,पहाड़िया मामा प्रत्यक्षीकरण यंत्र.
साधना समय-रात्रिकालीन.
अन्य सामग्री-सफेद आसन, सफेद वस्त्र,धूप,दीप और सफेद पुष्प.

यह साधना कम समय मे सिद्धिदायक है,ऐसी प्रामाणिक साधना प्राप्त होना नसीब की बाते है,जिन्हें मिल जाती है उनका जीवन बदल जाता है ।

साधना सामग्री न्यौच्छावर राशी 3500/-रुपये है,साधना की गोपनीय क्रियाये सिर्फ फोन पर बतायी जाएगी,क्योंकि कुछ क्रिया को हमे गोपनीय रखना पड़ता है ।

साधना सामग्री प्राप्त करने हेतु संपर्क करे-
📞 8421522368


आदेश.....

26 Oct 2021

दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन एवं मंत्र विधान.

दीपावली की आप सभी को बहोत बहोत शुभकामनाएं
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माँ भगवती आप सभी पर कृपा करें इसी कामना के साथ दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन दिया जा रहा है-

भगवती श्री-लक्ष्मी का विधिवत पूजन जिसमे ऋद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ का पूजन समाहित है | 

श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यां बहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि 
रूप मश्विनो! इष्णन्निषाणां मुम्म ईषाणा सर्वलोकम्म ईषाणा | 

हे जगदीश्वर! ये समस्त ऐश्वर्य और समग्र शोभा अर्थात 'लक्ष्मी' और 'श्री' दोनों ही आपकी पत्नी तुल्य हैं, दिन और रात आपकी सृष्टि में विचरण करते रहते हैं, सूर्य चंद्र आपके मुख हैं | नक्षत्र आपके रूप है, मैं आपसे समस्त सुखों की कामना करता हूं |

यही प्रश्न हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषि-मुनियों के मन में भी अवश्य आया होगा, तभी उन्होनें लक्ष्मी की पूर्ण व्याख्या की | प्रारम्भ के श्लोक में यही विवरण आया है कि लक्ष्मी, जो 'श्री' से भिन्न होते हुए भी "श्री" का ही स्वरुप हैं, जो पालनकर्ता विष्णु के साथ रहती हैं, जिनके चारों ओर सारे नक्षत्र, तारे, विचरण करते हैं, जो सारे लोकों में विद्यमान हैं, उस 'श्री'का मैं वन्दन करता हूं |

अर्थात 'श्री' ही मूल रूप से लक्ष्मी हैं और इसीलिए हमारी संस्कृति में  'मिस्टर' की जगह 'श्री' लिखा जाता है|  अर्थात वह व्यक्ति, जो श्री से युक्त है, उसी के नाम के आगे 'श्री' लगाकर सम्बोधित किया जाता है|

'श्री सूक्त' जिसे 'लक्ष्मी सूक्त' भी कहा जाता है, उसमें लक्ष्मी का श्री रूप से ही प्रार्थना की गई है, जो वात्सल्यमयी हैं,धन-धान्य, संतान देने वाली हैं, जो मन और वाणी को दीप्त करती हैं, जिनके आने से दानशीलता प्राप्त होती है, जो वनस्पति और वृक्षों में स्थित हैं, जो कुबेर और अग्नि अर्थात तेजस्विता प्रदान करने वाली हैं, जो जीवन में परिश्रम का ज्ञान कराती हैं, जिसकी कृपा से मन में शुद्ध संकल्प और वाणी में सत्यता आती है,जो शरीर में तरलता और पुष्टि प्रदान करने वाली हैं, उस श्री के सांसारिक जीवन में स्थायी स्थान के लिए बार-बार प्रार्थना और नमन किया गया है |

श्री सूक्त में एक विशेष बात यह कही गई है कि लक्ष्मी की जेष्ट भगिनी अर्थात अलक्ष्मी अर्थात अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता है जो भूख और प्यास के साथ दुर्गन्धयुक्त है, अर्थात यदि जीवन में धन तो है लेकिन तृष्णाएं यथावत हैं, मानसिक रूप से विकारों में मलिनता है तो वह लक्ष्मी 'श्री' रुपी लक्ष्मी नहीं है और वह लक्ष्मी स्थायी रह भी नहीं सकती है |

जो 'श्री' रुपी लक्ष्मी है, वही जीवन में स्थायी रह सकती है, और इस श्री रुपी लक्ष्मी की नौ कलाओं का जब जीवन में पदार्पण होता है तभी जीवन में पूर्णता आ पाती है |


लक्ष्मी की नौ कलाएं -

जिस व्यक्ति में लक्ष्मी की इन नौ कलाओं का विकास होता है, वहीं लक्ष्मी चिरकाल के लिए विराजमान होती है|

१. विभूति  - सांसारिक कर्तव्य करते हुए दान रुपी कर्तव्य जहां विद्यमान होता है, अर्थात शिक्षा दान, रोगी सेवा, जल दान इत्यादि कर्तव्य हैं, वहां लक्ष्मी की 'विभूति' नामक पीठिका है, यह लक्ष्मी की पहली शक्ति है |

२. नम्रता  - दूसरी शक्ति है नम्रता | व्यक्ति जितना नम्र होता है, लक्ष्मी उसे उतना ही ऊंचा उठाती है |

३. कान्ति - जब विभूति और कान्ति दोनों कलाएं आ जाती हैं, तो वह लक्ष्मी की तीसरी कला 'कान्ति' का पात्र हो जाता है, चेहरे पर एक तेज आता है |

४. तुष्टि  - इन तीनों कलाओं की प्राप्ति होने पर 'तुष्टि' नामक चतुर्थ कला का आगमन होता है, वाणी सिद्धि, व्यवहार, गति, नए-नए कार्य, पुत्र-प्राप्ति, दिव्यता-सभी उसमें एक रास होती हैं|

५. कीर्ति - यह लक्ष्मी की पांचवी कला है, इसकी उपासना करने से साधक अपने जीवन में धन्य हो जाता है, संसार के आधार का अधिकारी हो जाता है |

६. सन्नति - कीर्ति-साधना से लक्ष्मी की छटी कला सन्नति मुग्ध होकर विराजमान होती है|

७. पुष्टि - इस कला द्वारा साधक अपने जीवन में जो सन्तुष्टि अनुभव करता है| उसे अपने जीवन का सार मालूम पड़ता है |

८. उत्कृष्टि - इस कला से जीवन में क्षय-दोष होता है वह समाप्त हो जाता है | केवल वृद्धि ही वृद्धि होती है |

९. ऋद्धि - सबसे महत्वपूर्ण, सर्वोत्तम कला ऋद्धि पीठाधिष्ठात्री है, जो बाकी आठ कलाओं के होने पर स्वतः ही समाविष्ट हो जाती है |

दीपावली रात्रि को विधिवत पूजन से श्री-लक्ष्मी, नौ कलाओं सहित घर में स्थायी निवास करती है |

पूजन सामग्री

कुंकुम,मौली, अगरबत्ती, केशर, कपूर, सिन्दूर, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, फल, पुष्प माला, गंगाजल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी), यज्ञोपवीत, वस्त्र, मिठाई एवं पंचपात्र |

पवित्रीकरण 

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा | 
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः || 

संकल्प 
दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न मन्त्र को पढ़े -

ॐ विर्ष्णु विर्ष्णु विर्ष्णुः श्री मदभगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मनोहि द्वितीय परार्द्वे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे जम्बु द्वीपे भारतवर्षे अस्मिन पवित्र क्षेत्रे अमुक वासरे (दिन बोले) अमुक गोत्रोत्पन्नहं (अपना गोत्र बोले), अमुक शर्माहं (अपना नाम बोले) यथा मिलितोपचारैः श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थे तदंगत्वेन यथाशक्ति गणपति पूजनं च एवं मंत्र जाप करिष्ये | 

जल भूमि पर छोड़ दें |

गुरु पूजन 
दोनों हाथ जोड़ कर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर | 
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः || 
गुरुं आवाहयामि स्थापयामि नमः | 
पाद्यं स्नानं तिलकं पुष्पं धूपं 
दीपं नैवेद्यं च समर्पयामि नमः || 

ऐसा बोलकर पाद्य, जल स्नान, तिलक, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य आदि समर्पित करें, फिर दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें -

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया | 
चक्षुरन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः || 

गणपति-पूजन 
इसके बाद दोनों हाथ जोड़ कर भगवान् गणपति का ध्यान करें -

गजाननं भूत गणाधिसेवितं,
कपित्थ जम्बूफल चरुभक्षणं| 
उमासुतं शोक विनाश कारकं ;
नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम || 
ॐ गणेशाय नमः ध्यानं समर्पयामि || 

भगवान् गणपति को आसन के लिए पुष्प समर्पित करें |  इसके बाद सामने स्थापित 'महागणपति-महालक्ष्मी' यंत्र अथवा विग्रह को जल से स्नान करावें, फिर पंचामृत स्नान करावें, स्नान के समय निम्न मन्त्र बोलें -

पञ्च नद्यः सरस्वती मपियन्ति सस्त्रोतसः | 
सरस्वती तू पञ्चधा सोदेशेभवत सरित || 

इसके बाद चन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, नैवेद्य आदि समर्पित करें तथा धुप-दीप दिखाएं -

चन्दनं अक्षतान पुष्प मालां 
नैवेद्यं च समर्पयामि नमः | 
धूपं दीपं दर्शयामि नमः || 

इसके बाद तीन बार मुख शुद्धि के लिए आचमन करायें, इलायची और लौंग आदि से युक्त पान चढ़ायें|  फिर दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें  -

नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः | 
नमस्ते रुद्ररूपाय करिरूपाय ते नमः || 
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे | 
भक्तिप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक || 
ॐ गं गणपतये नमः | 
निर्विघ्नमस्तु|  निर्विघ्नमस्तु | निर्विघ्नमस्तु | 
अनेन कृतेन पूजनेन सिद्धि बुद्धि सहितः || 
श्री भगवान् गणाधिपतिः प्रीयन्ताम || 

इसके बाद दोनों हाथ जोड़ कर भगवती महालक्ष्मी का ध्यान करें -

ॐ अम्बेअम्बिके अम्बालिके न मा नयति कश्चन| 
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम || 
श्री महालक्ष्म्यै नमः आवाहनं समर्पयामि || 

महालक्ष्मी ध्यान 
दोनों हाथ जोड़कर मन ही मन स्मरण करें कि भगवती महालक्ष्मी आकर विराजमान हो, प्रार्थना करे  -

पदमासना पदमकरां पदममाला विभूषिताम | 
क्षीर सागर संभूतां हेमवर्ण समप्रभाम || 
क्षीर वर्ण समं वस्त्रं दधानं हरिवल्लभाम | 
भावये भक्तियोगेन भार्गवीं कमलां शुभां || 
श्री महालक्ष्म्यै नमः ध्यानं समर्पयामि || 

आसन 
आसन के लिए पुष्प अर्पित करें  -
श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि नमः || 

पाद्य 
पाद्य के लिए दो आचमनी जल चढ़ायें  -
श्री महालक्ष्म्यै नमः पाद्यं समर्पयामि | 
अर्घ्यं आचमनीयं स्नानं च समर्पयामि || 

पंचामृत स्नान 
पंचामृत से भगवती महालक्ष्मी को स्नान कराये -
मध्वाज्यशर्करायुक्तं दधिक्षीरसमन्वितम | 
पंचामृतं गृहाणेदं पंचास्यप्राणवल्लभे |
श्री महालक्ष्म्यै नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि || 

शुद्धोदक स्नान 
इसके बाद उन्हें शुद्ध जल से स्नान करायें -

परमानन्द बोधाब्धि निमग्न निजमूर्तये | 
शुद्धोदकैस्तु स्नानं कल्पयाम्यम्ब शंकरि || 
श्री महालक्ष्म्यै नमः  शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि || 

वस्त्र 
वस्त्र समर्पित करे  -
श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि || 

आभूषण 
श्री महालक्ष्म्यै नमः आभूषणं समर्पयामि || 

गन्ध 
इत्र चढ़ावें
श्री महालक्ष्म्यै नमः गन्धं समर्पयामि || 

अक्षत 
श्री महालक्ष्म्यै नमः अक्षतान समर्पयामि || 

पुष्प 
श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पाणि समर्पयामि || 

इसके बाद कुंकुम, चावल तथा पुष्प मिला कर निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते हुए विग्रह/यंत्र पर चढ़ायें -

ॐ चपलायै नमः पादौ पूजयामि || 
ॐ चञ्चलायै नमः कटिं पूजयामि || 
ॐ कमलायै नमः कटिं पूजयामि || 
ॐ कात्यायन्यै नमः नाभिं पूजयामि || 
ॐ जगन्मात्रे नमः जठरं पूजयामि || 
ॐ विश्ववल्लभायै नमः वक्षःस्थलं पूजयामि || 
ॐ कमलवासिन्यै नमः हस्तौ पूजयामि || 
ॐ पाद्याननायै नमः मुखं पूजयामि || 
ॐ कमलपत्राख्यै नमः नेत्रत्रयं पूजयामि || 
ॐ श्रियै नमः शिरः पूजयामि || 
ॐ महालक्ष्म्यै नमः सर्वाङ्गं पूजयामि || 


धूप 
श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं आघ्रापयामि ।।

दीप 
श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं दर्शचयामि ||


नैवेद्य 
नाना विधानी  भक्ष्याणी
व्यञ्जनानी       हरिप्रिये |
यथेष्टं   भूङक्ष्व    नैवेद्यं |
षडरसं   च    चतुर्विधम || 
श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि || 

नैवेद्य समर्पित कर तीन बार जल का आचमन कराएं |


ताम्बूल 
लौंग इलायची युक्त पान समर्पित करें -
श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि || 

दक्षिणा 
दक्षिणा द्रव्य समर्पित करें  -
श्री महालक्ष्म्यै नमः दक्षिणां समर्पयामि ||


इसके बाद 'कमलगट्टे की माला' से निम्न मन्त्र का १ माला मन्त्र जप करें -

|| ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ आगच्छ धनं देहि देहि ॐ || 


 इसके बाद घी की पांच बत्ती की आरती बना कर आरती करें ।

जल आरती 
तीन बार आचमनी से जल लेकर दीपक के चरों ओर घुमायें तथा निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -

ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष (गूं ) शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्ति 
रोषधयः शान्तिः |  वनस्पतयः शान्ति र्विश्वे देवाः शान्तिः ब्रह्म 
शान्तिः सर्व (गूं ) शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि || 


 पुष्पाञ्जलि 
दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें तथा यंत्र अथवा विग्रह पर चढ़ा दे -

नाना सुगंध पुष्पाणि यथा कालोदभवानि च |
पुष्पाञ्जलिर्मया दत्ता गृहाण जगदम्बिके || 
श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पांजलि समर्पयामि ||


समर्पण 
इसके बाद निम्न समर्पण मन्त्र का उच्चारण करते हुए पूजन व् जप भगवती लक्ष्मी को समर्पित करें, जिससे कि इसका फल आपको प्राप्त हो सके -

ॐ     तत्सत         ब्रह्मार्पणमस्तु,
अनेन कृतेन पूजाराधन कर्मणा | 
श्री  महालक्ष्मी  देवता  परासंवित 
स्वरूपिणी                प्रियनताम || 

एक आचमनी जल लेकर, पूजन की पूर्णता हेतु भूमि पर छोड़ दें | इसके बाद वहा उपस्थित परिवार के सभी सदस्यों एवं स्वजनों को प्रसाद वितरित करें|

इस प्रकार यह सम्पूर्ण पूजन व् साधना संपन्न होती है| साधना समाप्ति के पश्चात सवा माह तक नित्य कमलगट्टे की माला से - 
|| ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ आगच्छ धनं देहि देहि ॐ ||
मंत्र का १ माला जप करें | सवा माह पश्चात माला तथा यंत्र को जल में विसर्जित कर दें |


आदेश.....

16 Oct 2021

पापांकुशा साधना.


यावत् जीवेत सुखं जीवेत ।
सर्वं पापं विनश्यति ।।

प्रत्येक जीव विभिन्न योनियों से होता हुआ निरन्तर गतिशील रहता है| हलाकि उसका बाहरी चोला बार-बार बदलता रहता है, परन्तु उसके अन्दर निवास करने वाली आत्मा शाश्वत है, वह मारती नहीं हैं, अपितु भिन्न-भिन्न शरीरों को धारण कर आगे के जीवन क्रम की ओर गतिशील रहती है ।

जो कार्य जीव द्वारा अपनी देह में होता है, उसे कर्म कहते हैं और उसके सामान्यतः दो भेद हैं - शुभ कर्म यानी कि पुण्य तथा अशुभ कर्म अर्थात पाप| शुभ कर्म या पुण्य वह होता है, जिसमे हम किसी को सुख देते हैं, किसी की भलाई करते हैं और अशुभ कर्म वह होता है, जिसमें हमारे द्वारा किसी को दुःख प्राप्त होता है, जिसमें हमारे द्वारा किसी को संताप पहुंचता हैं ।

मानव योनी ही एक ऐसे योनि है, जिसमें वह अन्य कर्मों को संचित करता रहता है| पशु आदि तो बस पूर्व कर्मों के अनुसार जन्म ले कर ही चलते रहते हैं, वे यह नहीं सोचते, कि यह कार्य में कर रहा हूं या मैं इसको मार रहा हूं । अतः उनके पूर्व कर्म तो क्षय होते रहते हैं, परन्तु नवीन कर्मों का निर्माण नहीं होता; जबकि मनुष्य हर बात में 'मैं' को ही सर्वोच्चता प्रदान करता हैं... और चूंकि वह प्रत्येक कार्य का श्रेय खुद लेना चाहता है, अतः उसका परिणाम भी उसे ही भुगतना पड़ता है। 

मनुष्य जीवन और कर्म-
मनुष्य जीवन में कर्म को शास्त्रीय पद्धति में तीन भागों में बांटा गया है -
१. संचित
२. प्रारब्ध
३. आगामी (क्रियमाण)

'संचित कर्म' वे होते हैं, जो जीव ने अपने समस्त दैहिक आयु के द्वारा अर्जित किये हैं और जो वह अभी भी करता जा रहा है। 
'प्रारब्ध' का अर्थ है, जिन कर्मों का फल अभी गतिशील हैं, उसे वर्त्तमान में भोगा जा रहा हैं ।
'आगामी' का अर्थ है, वे कर्म, जिनका फल अभी आना शेष है ।

इन तीनो कर्मों के अधीन मनुष्य अपना जीवन जीता रहता है| प्रकृति के द्वारा ऐसी व्यवस्था तो रहती है, कि उसके पूर्व कर्म संचित रहें, परन्तु दुर्भाग्य यह है, कि मनुष्य को उसके नवीन कर्म भी भोगने पड़ते हैं, फलस्वरूप उसे अनंत जन्म लेने पड़ते हैं| परन्तु यह तो एक बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है, और इसमें तो अनेक जन्मों तक भटकते रहना पड़ता है ।

परन्तु एक तरीका है जिससे व्यक्ति अपने छल, दोष, पाप को समूल नष्ट कर सकता है, नष्ट ही नहीं कर सकता अपितु भविष्य के लिए अपने अन्दर अंकुश भी लगा सकता है, जिससे वह आगे के जीवन को पूर्ण पवित्रता युक्त जी सके, पूर्ण दिव्यता युक्त जी सके और जिससे उसे फिर से कर्मों के पाश में बंधने की आवश्यकता नहीं पड़े ।

साधना : एकमात्र मार्ग 
...और यह तरीका, यह मार्ग है साधना का, क्योंकि साधना का अर्थ ही है, कि अनिच्छित स्थितियों पर पूर्णतः विजय प्राप्त कर अपने जीवन को पूरी तरह साध लेना, इस पर पूरी तरह से अपना नियंत्रण कायम कर लेना ।

यदि यह साधना तंत्र मार्ग के अनुसार हो, तो इससे श्रेष्ठ कुछ हो ही नहीं सकता, इससे उपयुक्त स्थिति तो और कोई हो ही नहीं सकती, क्योंकि स्वयं शिव ने 'महानिर्वाण तंत्र' में पार्वती को तंत्र की विशेषता के बारे में समझाते हुए बताया है -

श्लोक:-

कल्किल्मष दीनानां द्विजातीनां सुरेश्वरी |
मध्या मध्य विचाराणां न शुद्धिः श्रौत्कर्मणा ||
न संहिताध्यैः स्र्मुतीभिरष्टसिद्धिर्नुणां भवेत् |
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्य सत्यं मयोच्यते ||
विनाह्यागम मार्गेण कलौ नास्ति गतिः प्रिये |
श्रुतिस्मृतिपुराणादी मयैवोक्तं  पूरा  शिवे ||
आगमोक्त विधानेन कलौ देवान्यजेत्सुधिः ||   


अर्थ:-

- ही देवी! कलि दोष के कारण ब्राह्मण या दुसरे लोग, जो पाप-पुण्य का विचार करते हैं, वे वैदिक पूजन की विधियों से पापहीन नहीं हो सकते । मैं बार बार सत्य कहता हूं, कि संहिता और स्मृतियों से उनकी आकांक्षा पूर्ण नहीं हो सकती। कलियुग में तंत्र मार्ग ही एकमात्र विकल्प है । यह सही है, कि वेद, पुराण, स्मृति आदि भी विश्व को किसी समय मैंने ही प्रदान किया था, परन्तु कलियुग में बुद्धिमान व्यक्ति तंत्र द्वारा ही साधना कर इच्छित लाभ पाएगा। 



इससे स्पष्ट होता है, कि तंत्र साधना द्वारा व्यक्ति अपने पाप पूर्ण कर्मों को नष्ट कर, भविष्य के लिए उनसे बन्धन रहित हो सकते हैं । वैसे भी व्यक्ति यदि जीवन में पूर्ण दरिद्रता युक्त जीवन जी रहा है या यदि वह किसी घातक बीमारी के चपेट में है, जो कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही हो, तो यह समझ लेना चाहिए, कि उसके पाप आगे आ रहे है ...

नीचे कुछ स्थितियां स्पष्ट कर रहा हूं, जो कि व्यक्ति के पूर्व पापों के कारण जीवन में प्रवेश करती हैं -

१. घर में बार-बार कोई दुर्घटना होना, आग लगना, चोरी होना आदि ।
२. पुत्र या संतान का न होना, या होने पर तुरंत मर जाना ।
३. घर के सदस्यों की अकाल मृत्यु होना ।
४. जो भी योजना बनायें, उसमें हमेशा नुकसान होना ।
५. हमेशा शत्रुओं का भय होना ।
६. विवाह में अत्यंत विलम्ब होना या घर में कलह पूर्ण वातावरण, तनाव आदि ।
७. हमेशा पैसे की तंगी होना, दरिद्रतापूर्ण जीवन, बीमारी और अदालती मुकदमों में पैसा पानी की तरह बहना ।

ये कुछ स्थितियां हैं, जिनमें व्यक्ति जी-जान से कोशिश करने के उपरांत भी यदि उन पर नियंत्रण नहीं प्राप्त कर पाता, तो समझ लेना चाहिए, कि यह पूर्व जन्म कर्मों के दोष के कारण ही घटित हो रहा है । इसके लिये फिर उन्हें साधना का मार्ग अपनाना चाहिए, जिसके द्वारा उसके समस्त दोष नष्ट हो सकें और वह जीवन में सभी प्रकार से वैभव, शान्ति और श्रेष्ठता प्राप्त कर सके ।

ऐसी ही एक साधना है पापांकुशा साधना, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दोषों को - चाहे वह दरिद्रता हो, अकाल मृत्यु हो, बीमारी हो या चाहे और कुछ हो, उसे पूर्णतः समाप्त कर सकता है और अब तक के संचित पाप कर्मों को पूर्णतः नष्ट करता हुआ भविष्य के लिए भी उनके पाश से मुक्त हो जाता है, उन पर अंकुश लगा पाता है ।

इस साधना को संपन्न करने से व्यक्ति के जीवन में यदि ऊपर बताई गई स्थितियां होती है, तो वे स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं । वह फिर दिनों-दिन उन्नति की ओर अग्रसर होने लग जाता है, इच्छित क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है और फिर कभी भी, किसी  भी प्रकार की बाधा का सामना उसे अपने जीवन में नहीं करना पड़ता। 

यह साधना अत्याधिक उच्चकोटि की है और बहुत ही तीक्ष्ण है । चूंकि यह तंत्र साधना है, अतः इसका प्रभाव शीघ्र देखने को मिलता है| यह साधना स्वयं ब्रह्म ह्त्या के दोष से मुक्त होने के लिए एवं जनमानस में आदर्श स्थापित करने के लिए कालभैरव  ने भी संपन्न की थी ... इसी से साधना की दिव्यता और तेजस्विता का अनुमान हो जाता है ....

यह साधना तीन दिवसीय है, इसे पापांकुशा एकादशी से या किसी भी एकादशी से प्रारम्भ करना चाहिए । इसके लिए 'समस्त पाप-दोष निवारण यंत्र' तथा 'हकीक माला' की आवश्यकता होती है ।

सर्वप्रथ साधक को ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान आदि से निवृत्त हो कर, सफेद धोती धारण कर, पूर्व दिशा की ओर मूंह कर बैठना चाहिए और अपने सामने नए श्वेत वस्त्र से ढके बाजोट पर 'समस्त पाप-दोष निवारण यंत्र' स्थापित कर उसका पंचोपचार पूजन संपन्न करना चाहिए। 'मैं अपने सभी पाप-दोष समर्पित करता हूं, कृपया मुझे मुक्ति दें और जीवन में सुख, लाभ, संतुष्टि प्रसन्नता आदि प्रदान करें' - ऐसा कहने के साथ यदि अन्य कोई इच्छा विशेष हो, तो उसका भी उच्चारण कर देना चाहिए । फिर 'हकीक' से निम्न मंत्र का २१ माला मंत्र जप करना चाहिए -

मंत्र:-

|| ॐ क्लीं ऐं पापानि शमय नाशय ॐ फट ||

यह मंत्र अत्याधिक चैत्यन्य है और साधना काल में ही साधक को अपने शरीर का ताप बदला मालूम होगा । परन्तु भयभीत न हों, क्योंकि यह तो शरीर में उत्पन्न दिव्याग्नी है, जिसके द्वारा पाप राशि भस्मीभूत हो रही है| साधना समाप्ति के पश्चात साधक को ऐसा प्रतीत होगा, कि उसका सारा शरीर किसी बहुत बोझ से मुक्त हो गया है, स्वयं को वह पूर्ण प्रसन्न एवं आनन्दित महसूस करेगा और उसका शरीर फूल की भांति हल्का महसूस होगा ।

जो साधक अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ना चाहते हैं, उन्हें तो यह साधना अवश्य ही संपन्न करने चाहिए, क्योंकि जब तक पाप कर्मों का क्षय नहीं हो जाता, व्यक्ति की कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो ही नहीं सकती और न ही वह समाधि अवस्था को प्राप्त कर सकता है ।

साधना के उपरांत यंत्र तथा माला को किसी जलाशय में अर्पित कर देना चाहिए। ऐसा करने से साधना फलीभूत होती है और व्यक्ति समस्त दोषों से मुक्त होता हुआ पूर्ण सफलता अर्जित कर, भौतिक एवं अध्यात्मिक, दोनों मार्गों में श्रेष्टता प्राप्त करता है ।



आदेश.....

23 Sept 2021

सिद्ध काला सिंदूर.(चौसठ योगिनी प्रदत्व)


जीवन की प्रत्येक क्रिया तन्त्रोक्त क्रिया है । किसी भी वनस्पति के साथ कोई तंत्र करने पर वनस्पति तंत्र कहा जाता है,वैसे ही  यह प्रकृति,यह तारा मण्डल,मनुष्य का संबंध,चरित्र,विचार,भावनाये सब कुछ तो तंत्र से ही चल रहा है,जिसे हम जीवन तंत्र कहेते है।

जीवन मे कोई घटना आपको सूचना देकर नहीं आति है,क्योकी  सामान्य व्यक्ति मे इतना अधिक सामर्थ्य नहीं होता है की वह काल की  गति को पहचान सके,भविष्य का उसको ज्ञान हो,समय चक्र उसके अधीन हो ये बाते संभव ही नहीं,इसलिये हमे तंत्र की शक्ति को समझना आवश्यक है और यह बात मैंने बहोत बार समझाया है ।


आज बात करेंगे के सिद्ध काला सिंदूर क्या है?


सिद्ध काला सिंदूर तंत्र जगत की बहुत ही दुर्लभतम वस्तु मानी जाती है । तांत्रिकों एवं काला जादू करने वालो के लिए ये उसी प्रकार है,जैसे अंधेरे में व्यक्ति को अचानक सूर्य प्रकाश मील जाय, काली और त्रिपुर सुंदरी एवं भैरव महाराज के मंत्रों के अनुष्ठान में काला सिंदूर तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है । 64 योगिनियो की सिद्धि या उनका यंत्र बनाने के लिए मुख्य रूप से चाहिए ।

सिद्ध काला सिंदूर अत्याधिक दुर्लभ होने के कारण यह आसानी से प्राप्त नही होता । गुरु कृपा ही केवलं यही पंक्ति यहां पर याद आती है,क्योंकि बिना गुरु कृपा ये प्राप्त नही हो सकता,रावण कृत उड्डीश तंत्र के अनुसार शुद्ध काला सिंदूर पूरी पृथ्वी पर केवल 16,000 किलो है । इसे प्राप्त करना अत्यंत दुर्लभ है , दस महाविद्या की किसी भी साधनाओ में अगर सिद्ध काले सिंदूर का उपयोग केवल तिलक के रूप में किया जाए तो यह ईष्ट को आकर्षण करने का कार्य करता है । मता महाकाली के एवं भैरव बाबा कि पूजन एवं सिद्धि में भी यह काला सिंदूर तिलक सहाय्यक है एवं सिद्धि की प्राप्ति में 100% सहायता हो सकती है।  इससे यह सिद्ध काला सिंदूर तंत्र विद्या और काला जादू के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सिद्ध काला सिंदूर की इतनी मान्यता है, कि अगर इसका तिलक करके कोई भी व्यक्ति अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए माँ भगवती काली को आवाहन करे तो व्यक्ति किसी भी कार्य से जाए उसमे सफलता प्राप्त होती है और यह बात बहोत से साधको ने अपने जीवन मे आजमायी हुई है । कोई अपना प्रिय बिछड़ गया हो, उसे वापस प्राप्त करना हो, उसके किसी भी कपड़े या उसके बाल युक्ति से प्राप्त कर उसपर सिद्ध कला सिंदूर लगाए एवं निम्न मंत्र का जाप करे आप का प्रिय आपको आपके घर पर आकर मिलेगा । ये सिंदूर इतना दुर्लभ है कि इसका मन्त्र भी हर किसी को नही दिया जा सकता ।

64 योगिनी मंदिर मुरैना के पास पाया गया है,ये पूरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है,इस क्षेत्र के आसपास क़ई शिलालेख एवं  कई तांत्रिक मंत्र पाए गए हैं,जिससे स्पष्ट है "जिसमे काला सिंदूर के विषय में इतना दुर्लभ शिला लेख है,कि इस काला सिंदूर को स्वर्ण में बदला जा सकता है"। 64 योगिनी मंदिर के आसपास इसका महत्वपूर्ण आधार है,ऐसा माना जाता है कि अधिकांश कौल तांत्रिक की उत्पत्ति यही हुई है । सामान्य धारणा यह है कि कोई भी व्यक्ति तब तक पूर्ण तांत्रिक नहीं बन सकता जब तक कि वह 64 योगिनी के सामने साधना करके माथा न टेके ।

अकसर यह सोचा जाता है कि तंत्र विद्या और काली शक्तियों का समय गुजर चुका है,लेकिन 64 योगिनी तंत्र आज भी यह जीवन शैली का हिस्सा है । शक्ति तांत्रिक ऐसे समय में एकांतवास से बाहर आते हैं और अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं । इस दौरान वे लोगों को वरदान अर्पित करने के साथ-साथ जरूरतमंदों की मदद भी करते हैं । वैसे तो 64 योगिनी मंदिर अत्यंत प्राचीन मंदिर में दिया जाने वाला प्रसाद भी दूसरें शक्तिपीठों से बिल्कुल ही अलग है। इस मंदिर में प्रसाद के रूप कभी कभार ये काला सिंदूर किसी सिद्ध तांत्रिक के द्वारा किसी बिरले को ही प्राप्त होता है और जो साधक 64 योगिनियों के मंत्र जानता हो वह इस सिंदूर को हक़ से मांगकर प्राप्त कर लेता है । कहा जाता है कि "जब योगिनियां ऋतुकाल में जाग्रत होती है,तो सफेद रंग का कपडा हर योगिनी के सामने बिछा दिया जाता है"। तब वह वस्त्र 3 दिन के बाद रज से काले रंग का होता है । इस कपड़ें को काला वस्त्र कहते है। इस वस्त्र से ये काला सिंदूर प्राप्त कर लिया जाता है । यह एक अत्यंत गोपनीय सिंदूर है,इसे ही विशेष भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है । सिद्ध काला सिन्दूर पाउडर के रूपमें जो की 64 योगिनियो के मंदिर से प्राप्त होता है । मुरैना के इस मंदिर में कुल 64 कमरे और 101 खंभे हैं, प्रत्येक कमरे में एक शिवलिंग के साथ योगिनी की मूर्ति है। इस मंदिर को इकंतेश्वर या इकोत्तरसो मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के बीच में भगवान शिव लिंग को स्थापित किया गया है।

स्थानीय लोगों के अनुसार पहले इस मंदिर में रात के समय तंत्र-मंत्र की शिक्षा दी जाती थी इस कारण से कोई इंसान आज भी रात में चौसठ योगिनी मंदिर में नहीं रहता है और इसी मंदिर से सिद्ध काला सिंदूर प्राप्त किया जा सकता है । पौराणिक कथा के अनुसार, देवी दुर्गा ने एक राक्षसो को मारने के लिए 64 देवताओं और देवी का रूप धारण कर लिया था, इसी कारण से इन चौसठ योगिनी मंदिरों, जिन्हें जोगिनियों के रूप में भी जाना जाता है इसलिए 64 मूर्ति के रूप में स्थापना की गई थी ।



* सिद्ध काला सिन्दूर से वशीकरण सम्भव है और मै यहा आज सिद्धो के आजमाये हुये प्रयोग को दे रहा हूँ ।

1-किसी भी अष्टमी के दिन शुभ समय पर सिद्ध काला सिन्दूर पर "ॐ ह्रीं त्रीं हूं सर्वजन वश्यय वश्यय फट" मंत्र का 50-60 मिनट तक जाप करे और सिन्दूर को संम्भाल कर रखें । जब भी किसी महत्वपूर्ण कार्य पर जाना हो तो स्वयं सिन्दूर का तिलक करके जाये तो सभी कार्यो मे सफलता प्राप्त किया जा सकता है । 

2-अगर किसी साधना मे सफलता ना मिल रहा हो तो सिद्ध काला सिन्दूर (स्याही) से भोजपत्र पर महुआ (पेड़) के कलम से अगर नही मिले तो अनार के पेड़ की लकड़ी से जिस मंत्र को सिद्ध करना हो वह लिखे । उसका साधारण पुजन करते हुए उसको देखते हुए मंत्र का जाप करे तो मंत्र जागृति होता हैं । इस तरह से किसी भी विशेष मंत्र को सिद्ध किया जा सकता है । 

3-मन मे कोइ मनोकामना हो जो पुर्ण नहीं हो रहा हो तो किसी नये लाल वस्त्र पर एक सुपारी रखे जो भैरव का रुप माना जायेगा और उसका किसी अमावस्या के रात्री मे पुजन करके "ॐ भं भैरवाय मम अमुक कामना शिघ्र सिद्धये ह्रीं फट" मंत्र का जाप 540 बार जाप करके सिद्ध काला सिन्दूर का सुपारी को तिलक लगायें । यह क्रिया होने के बाद सुपारी को उसी लाल कपड़े मे बांधकर उसी रात से सर के निचे रखकर सो जाये । जब तक आपका मनोकामना पुर्ण ना हो तब तक सुपारी को सर के निचे रखकर ही सोना है और मनोकामना पुर्ण होने के बाद सुपारी को लाल वस्त्र के साथ बहते हुए जल मे प्रवाहित कर देना है । इस प्रयोग से मनोवांछित सफलता पाया जा सकता है,फसा हुआ धन वापस मिल सकता है,शादी जुड़ सकता है.....इस प्रकार से बहोत सारा मनोकामना पुर्ण किया जा सकता हैं । 

4-जिवन मे धन का अभाव हो और अच्छा पैसा कमाने के बाद घर मे पैसा टिकता ना हो तो पिले रंग के वस्त्र मे सिद्ध काला सिंदूर के साथ बेलपत्र को बांधकर तिजोरी मे रखे तो इस प्रकार के समस्या का समाधान हो सकता है । 

5-अब महत्वपूर्ण प्रयोग जो शायद कुछ लोगो के लिये विशेष है । यह प्रयोग वशीकरण हेतु है,जब दो प्यार करने वालो के जिवन मे किसी कारण से मनमुटाव आजाये और दोनो का रिश्ता टुट जाये तो यह साधनात्मक प्रयोग जो खोये हुए प्यार को वापस जिवन मे प्राप्त किया जा सकता है । यह एक शाबर मंत्र प्रयोग होते हुए भी आसान सा प्रयोग है,इससे हम जिसे चाहते है उसको प्राप्त कर सकते है ।




शाबर वशीकरण मंत्र प्रयोग:-

सिद्ध काले सिन्दूर को गुलाब जल में  मीला कर स्याही बनाये शुक्ल पक्ष के शनिवार को अगर पुष्य नक्षत्र हो तो बहुत उपयोगी होगा किसी भी चौराहे से मिट्टी लेकर आये उस मिट्टी की पुतली बनाये उस पुतली पर काले सिंदूर से आँख नाक कान बनाये एवं साध्य स्त्री का नाम लिखे उसके बाद काले सिंदूर की स्याही से 1 घेरा बनाये उस घेरे में पुतली को रखे । उपरोक्त मन्त्र की 11 मालाये जपे प्रबल वशीकरण होगा । उत्तर दिशा मे मुख करके जाप करे,यह एक गोपनिय प्रयोग है-


मंत्र:-

।। ॐ नमो आदेश गुरु को,जंगल की योगिनी पाताल के नाग उठ गए,मेरे वीर अमुक को लाओ मेरे पास जहाँ जहाँ जाए मेरे सहाई तहां तहां आव कजभरी नजभरी अन्तासो अगरी तक नफे तक एक फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा मेरे गुरु का वचन साँचा जो न जाये वीर गुरु गोरखनाथ की दुहाई छू ।।


अब आप लोग समझ ही गये होगे की सिद्ध काला सिन्दूर को मोहिनी/वशीकरण का श्रेष्ठ माध्यम भी कहा जाता है । मैंने यहा मंत्र को आपके सामने रखा है ताकि आप सभीको लाभ हो । तांत्रिक ग्रंथो के अनुसार सिद्ध काले सिंदूर का 1 टीका किसी बच्चे को रोज लगा दिया जाए तो नजर दोष दूर हो जाता है,कोई मकान नया बना हो तो मकान पर कही भी सिद्ध काले सिंन्दूर का एक टीका नारियल के साथ किसी मटके में रख कर घर के मुख्य द्वार पर लटका दे,कभी भी घर बनाने में विलंब नही होगा । अगर केवल सिद्ध काले सिंदूर का एक टीका भी रोज लगा लिया जाए तो 9 ग्रहों के दुष्ट परिणामो से मुक्ति मिलती है,किंतु ये समझ लीजिए कि काला सिंदूर ओरिजनल होना चाहिए और शुद्ध एवं सिद्ध भी होना आवश्यक है ।

मुख्य रूप से काला सिंदूर एक अत्यंत दुर्लभ वस्तु है,जो सिद्ध होने के बाद आप को सफल व्यक्ति बना सकती है,इसके अलावा धरती में से स्वर्ण की खोज एवं अत्याधिक उच्च तांत्रिक क्रियाओं के लिए इस सिद्ध काले सिंदूर का प्रयोग किया जाता है ब्लॉग पर सब कुछ लिखना सम्भव नही है इसलिए यह आर्टिकल यही पर पूर्ण करता हु ।

सिद्ध काले सिंदूर को प्राप्त करने के लिए आपको 1850/-रुपये दक्षिणा राशि देनी होगी जो कि कामिया (कामाख्या)  सिन्दूर के मुकाबले बहोत कम है । जितना फायदा कामिया सिंदूर का है, उतना ही फायदा काले सिंदूर से होता है । यहां पर सिध्द काले सिंदूर का फोटो डालने की इच्छा थी परंतु इतने गोपनीय वस्तु को सब के सामने फ़ोटो के माध्यम से दिखना मुझे सही नही लग रहा है इसलिए सिध्द काले सिंदूर को प्राप्त करके अवश्य लाभ उठाएं ।

सिध्द काले सिंदूर को प्राप्त करने हेतु सम्पर्क करें-

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And paytm number
+91-8421522368 .


आदेश......

16 Sept 2021

अघोरी मनसाराम साधना एवं अघोर गुरुमंत्र.

अघोरी साधना का नाम सुनकर लोगों के मन में या तो भय व्याप्त होता है या उनके मन में एक नार्किक मलीन साधना के बारे में मानसिक दृष्य चलने लगता है।

ये बात प्रमाणित है कि मनुष्य की समाज में प्रतिष्ठा उसे व्यवहार या संस्कार से नही अपितु उसके धन वैभव से ही होती है सभके जीवन में ईश्वर एक न एक बार समृद्ध होने का अवसर देता है लेकिन कई बार आदमी खुद गलती करता है यो कई बार अपने स्नेही जनों के कारण किसी मुसीबत में पड़ता है और भी बहुत सारी धन वैभव प्राप्त करने की साधनायें है, जो शास्त्रों में विधिवत रूप से वर्णित है लेकिन ये समय बहुत तीव्रता से चलता है समय कम होने के कारण अक्सर सभी शास्त्रीक साधनायें मर्यादित और विधिवत न होने के कारण फलित नही होती ।

बहुत सारी मुस्लिम साधनायें भी होती है उनमें बहुत सख़्त नियम और बहुत गहन मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है और कई बार उन साधनाओं को कई कई बार दोहराना पड़ता है जिससे बिना मार्गदर्शन और धैर्य के मनुष्य का अमूल्य समय नष्ट होता है और साधना कभी फलित नही होती।
मेरे जीवन में ऐसे बहुत से साधकों से संपर्क हुआ जिनका जीवन धन के अभाव में या भूत प्रेत बाधा के कारण अंत होने के कगार पर था एक अघोरी साधना जिसका कोई भी साधक आज तक निराश नही हुआ हा कई बार आदमी के परिश्रम या भावना में ही कोई कमी रह जाती है।

वरना इस साधना से साधक का जीवन अवश्य परिवर्तित होता है और साधक समृद्धि की तरफ अग्रसर होता ही है।

अब कोई बोले कि मुझे रातों रात में करोड़पति बनना है तो वो कोरे झूठ के इलावा कुछ नही होगा । साधना करने के बाद आपको आभा मण्डल असमान्य रूप से विकसित हो चुका होता है,अगर आप साधनाकाल पूरा होने तक प्रतीक्षा नही कर सकते तो ये वही बात होगी कि बिल्ली दही ना जमने दे,उतनी प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ेगी ही पड़ेगी ।

एक मिनट में जिन्न दो मिनट में परी सिद्ध करने वाले के बारे में क्या बोला जाए। सुनकर ही हंसी आती है कि जो संभव नहीं है झूठ बोलने वाले किस तरह डींगें मारते हैं,लेकिन सच सामने आने में समय नही लगता ये बात बिल्कुल सही है ।

असल बात ये है कि अगर आप नए साधक हो तो पहली बार गलती करोगे ही करोगे । बस उसी चक्कर में बहुत सारे नए साधक उलझ जाते है और एक बार भ्रमित अवश्य होंगे और जब होश आएगा तब बहुत ज्यादा समय बर्बाद हो गया होगा।

अघोरी साधना एक बहुत ही आधिक प्रचंड शक्तिशाली उग्र तामसिक साधना है,अघोरी साधना इसको करने से कोई भी इच्छा पूरी ना हो ये हो नही सकता । अघोरी साधनाये कभी भी व्यर्थ नही जाती है परंतु बिना गुरु के मार्गदर्शन ऐसी साधनाये भी कभी कभी विफल हो जाती है । इस साधना को गृहस्थ और सन्यासी सभी कर सकते हैं। किसी तरह के खाने पीने का कोई परहेज़ नही है।

ये साधना आपको तब करनी चाहिए जब आप के जीवन में रुकावटें खत्म होने का नाम नही लेती एक से एक समस्या आपके जीवन में आती ही रहती है और धंदे व्यापार में से कोई लाभ नही मिलता । अगर पूरी तरह कंगाली भी आ गयी हो खाने के लाले पड़ गए हों तो ये साधना आपके जीवन को सम्पन्नता को और अग्रसर करती है।


मैं यहाँ पर आपको मनसाराम अघोरी बाबा का एक मन्त्र उसके नियम और विधि देने जा रहा हूं जिसको करने से बहोत सारे साधकों का किसी ना किसी तरह से फायदा हुआ ही हुआ है।

ये जाने अगर आप बिलकुल नए साधक है तो कुछ चीजों का किसी विद्वान जानकार पता लगा लें कि आपके ग्राम देवी, ग्राम देवता,कुलदेवी,कुलदेवता,इष्ट और पित्र किसी तरह से नाराज तो नही हैं, क्या जीवन में कोई भूल या कोई गलती तो नही हुई या किसी का कोई भोग देना तो नही रहता है। या आपके घर में किसी अनजानी शक्ति जिस का आपको पता न हो वास तो नही। ये अनजान शक्तियां आपका फायदा और नुकसान दोनों तरह का काम कर सकती है।

ये साधना 41 दिनों की है। खाने पीने का कोई परहेज नहीं है,अपितु जो भी खाओ पीओ पहले अघोरी बाबा को भोग लगाओ ताकि जल्दी सफलता मिले । हां ब्रह्मचर्य व्रत का पालन सख्ती से करें , जिनको स्वप्नदोष की समस्या है उनको पहले शमसान की साधना करनी चाहिए, क्योंकि जलते हुए मसान के सामने खड़े होने से ये दोष धीरे धीरे समाप्त हो जाता है।

प्रथम दिन साधना को शुरू करने से पहले एक बार अपने इष्ट पित्र को भोग दे, फिर हाथ में जल लेकर मनोकामना स्मरण करें और संकल्प लें। सिर पर काला पटका बांधे और कपड़े काले पहनने है।
भोजन जितनी बार भी करो लेकिन पहला ग्रास अघोरी को समर्पित करना होगा।


जिस दिन जाप शुरू करना हो उस दिन शमशान मैं या चौराहे पर जाकर आपको एक बोतल शराब एक पताशा पांच लड्डू लौंग का जोड़ा एक इलायची ग्यारह सफेद गुलाब के फूल अघोरी मंसाराम के नाम से दें और वहाँ से थोड़ी सी मिट्टी किसी कागज में डालकर अपने साथ ले लें।


साधना स्थल का चुनाव करने के बाद आपको दक्षिण दिशा छोड़कर किसी भी दिशा में मुँह कर सकते हैं। भोग में देसी या अंग्रेजी शराब देना है। सफेद मिठाई, सफेद फूल,चंदन की अगरबत्तियां लगानी है और गुग्गल की धूनी देनी है । साधना काल में एक सरसों के टेलनक दीया जलता रहे। कंम्बल का आसन लगाएं। इस साधना को आप श्मशान चौराहे खाली मैदान या घर की खाली छत पर कर सकते है,लेकिन भोग आपको श्मशान घाट,किसी चौराहे,किसी पीपल या वट वृक्ष के नीचे ही देना है । जल पात्र अवश्य अपने पास में रखें जाप के बाद वो जल दूसरे दिन सुबह किसी पेड़ में डाल दें।
5 माला रोज़ जाप करें तो बहुत अद्धभुत होगा आपको ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते में परिणाम मिलने लगेंगे,किसी किसी साधक को ऐसा भी हो सकता है अघोरी वीर परीक्षा लें अक्सर ऐसा नहीं होता उस अवस्था में साधक को धैर्य से काम लेना चाहिए। इस साधना को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए।



मन्त्र:-

।।ॐ नमो आदेश गुरु को,मनसाराम मरघट बसे खप्पर में पिये मद कस प्याला फिर मेरा कारज सिद्ध करे तो पूजूँ औघड़वीर ना सिद्ध करो तो गौरा महादेव पार्वती की दुहाई,चले मन्त्र औघड़ी वाचा देखूं औघड़वीर मनसाराम तेरे शब्द का तमाशा मेरे लिये चल मेरा कारज करने चल ना चले तो कालभैरव की लाख लाख दुहाई फिरै छू ।।


ये प्रामाणिक मंत्र है अन्य किसी के भी आर्टिकल में देखने नही मिलेगा, कुछ लोगो ने इस विषय पर अधूरा लिखा है और गलत मंत्र दिया है परंतु आज आपको सही मंत्र दिया जा रहा है ।



अघोर गुरु मंत्र

।। घोर घोर अघोर का चेला मद मे मस्त रमता मुर्दे के भस्म को चलाता महाकाल को पुजे मसान को पुजे गुरु के चरणों को पूजे गुरुकृपा से सब कारज सिद्ध करे इतनी शक्ति औघड़ के शिष्य को वचन में मीले ना मिले तो ****** गुरुमुख औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र सच्चा चले छू ।।


संसार का कोई भी अघोरी साधना करो परन्तु उससे पहिले औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र जाप करो,इससे सभी साधनाओ में सफलता मिलता है । इस गुरुमंत्र को कान में 3 बार बोलकर फुंक लगाकर दिया जाता है और मंत्र देने से पहिले मशान में एक देसी मुर्गा,शराब की बड़ी बॉटल, पान के पत्ते पर कत्था चुना लौंग इलायची सुपारी काले वस्त्र पर रखकर देना पड़ता है । गुरुमंत्र को देने के लिए लगने वाला सामान का खर्चा 1800/-रुपये के आस पास आता है और 101 रुपये दक्षिणा को पकड़कर 1900/-रुपये लिया जाएगा,अब जिन्हें बिना औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र जाप किये साधना करनी है वो कर सकते है और जिन्हें औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र प्राप्त करके साधना करनी हो वो भी कर सकते है ।

यह साधना निशुल्क है परंतु जिन्हें औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र चाहिए उन्हें खर्चा करना पड़ेगा ।
आगे आपकी मर्जी.....भगवती सभी को सफलता प्रदान करे यही प्रार्थना है ।



आदेश......

1 Sept 2021

पितृदोष निवारण शाबर मंत्र (pitru dosh nivaran shabar mantra)



हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं,जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं । इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं । भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं।


भारतीय संस्कृति के अनुसार प्रेत योनि के समकक्ष एक और योनि है जो एक प्रकार से प्रेत योनि ही है, लेकिन प्रेत योनि से थोड़ा विशिष्ट होने के कारण उसे प्रेत न कहकर पितृ योनि कहते हैं । प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों की मृतात्माएं पितृ योनि की आत्माएं कहलाती है । इसीलिए प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों को पितृ लोक की संज्ञा दी गयी है।


भारतीय ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है । अतः जब जन्मकुंडली में सूर्य या मंगल, पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण होता है । पितृ दोष वाली कुंडली में समझा जाता है कि जातक अपने पूर्व जन्म में भी पितृदोष से युक्त था । प्रारब्धवश वर्तमान समय में भी जातक पितृदोष से युक्त है ।

जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है । यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैं, बहुत खराब हो सकते हैं, मिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है । सब कुछ होते भी व्यक्ति दुखी होता है ।

इसका क्या कारण हो सकता है? कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब वह ज्योतिषीय सलाह लेता है । तब उसे पता चलता है कि उसकी कुण्डली में पितृ-दोष बन रहा है और इसी कारण वह परेशान है ।

बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं । जिनमें पितृ दोष, मातृ दोष, भ्रातृ दोष, मातुल दोष, प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है । इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है, पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं । उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं :-


जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है. इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है ।

सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है.किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है । 


यदि समय रहते ही इस दोष के शाबर मंत्र का जाप कर लिया जाये तो पितृदोष से मुक्ति मिल सकती है। पितृदोष वाले जातक के जीवन में सामान्यतः निम्न प्रकार की घटनाएं या लक्षण दिखायी दे सकते हैं ।


1. यदि राजकीय/प्राइवेट सेवा में कार्यरत हैं तो उन्हें अपने अधिकारियों के कोप का सामना करना पड़ता है । व्यापार करते हैं, तो टैक्स आदि मुकदमे झेलने होंगे, सम्मान की बर्बादी होगी ।

2. मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है । पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता।

3. जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं।

4. जीवन के अंतिक समय में जातक का पिता बीमार रहता है या स्वयं को ऐसी बीमारी होती है जिसका पता नहीं चल पाता।

5. विवाह व शिक्षा में बाधाओं के साथ वैवाहिक जीवन अस्थिर सा बना रहता है।

6. वंश वृद्धि में अवरोध दिखायी पड़ते हैं। काफी प्रयास के बाद भी पुत्र/पुत्री का सुख नहीं होगा।

7. गर्भपात की स्थिति पैदा होती है।

8. अत्मबल में कमी रहती है। स्वयं निर्णय लेने में परेशानी होती है। वस्तुतः लोगों से अधिक सलाह लेनी पड़ती है।

9. परीक्षा एवं साक्षात्मार में असफलता मिलती है।



पितृदोष ऐसे भी पहचान सकते है:-

पेट के रोग, दिमागी रोग, पागलपन, खाजखुजली ,भूत -चुडैल का शरीर में प्रवेश, बिना बात के ही झूमना, नशे की आदत लगना, गलत स्त्रियों या पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनाकर विभिन्न प्रकार के रोग लगा लेना, शराब और शबाब के चक्कर में अपने को बरबाद कर लेना,लगातार टीवी और मनोरंजन के साधनों में अपना मन लगाकर बैठना, होरर शो देखने की आदत होना, भूत प्रेत और रूहानी ताकतों के लिये जादू या शमशानी काम करना, नेट पर बैठ कर बेकार की स्त्रियों और पुरुषों के साथ चैटिंग करना और दिमाग खराब करते रहना, कृत्रिम साधनो से अपने शरीर के सूर्य यानी वीर्य को झाडते रहना, शरीर के अन्दर अति कामुकता के चलते लगातार यौन सम्बन्धों को बनाते रहना और बाद में वीर्य के समाप्त होने पर या स्त्रियों में रज के खत्म होने पर टीबी तपेदिक फ़ेफ़डों की बीमारियां लगाकर जीवन को खत्म करने के उपाय करना, शरीर की नशें काटकर उनसे खून निकाल कर अपने खून रूपी मंगल को समाप्त कर जीवन को समाप्त करना, ड्र्ग लेने की आदत डाल लेना, नींद नही आना, शरीर में चींटियों के रेंगने का अहसास होना,गाली देने की आदत पड जाना,सडक पर गाडी आदि चलाते वक्त अपना पौरुष दिखाना या कलाबाजी दिखाने के चक्कर में शरीर को तोड लेना, जैसे गाडीबाजी,पहलवानी, शर्त लगाना ...आदि ।


पितृदोष निवारण शाबर मंत्र पितृदोष को समाप्त करने हेतु एक तीव्र प्रभावशाली मंत्र है,यह मंत्र गुरु गोरखनाथ जी का है और इस मंत्र को कई बार आजमाया गया है । इस मंत्र का असर शीघ्र देखने मिल जाता है,चाहे जीवन मे कितना भी भयंकर पितृदोष हो इस एक मंत्र से दोष समाप्त किया जा सकता है । इस मंत्र में साधक का पितृदोष स्वयं गुरु गोरखनाथ जी समाप्त करते है,अभी पितृपक्ष आनेवाला है और पितृपक्ष में जाप करे तो अच्छा फल मिलता है अन्यथा किसी भी अमावस्या से यह साधना की जा सकती है ।

यह साधना मात्र 3 दिनों की है, रोज इसमें 108 बार ही मंत्र जाप करना है,साधना का पूर्ण जानकारी व्हाट्सएप पर दिया जाएगा ।

पितृदोष निवारण शाबर मंत्र और पूर्ण विधि विधान सशुल्क है,इसमे 501 रुपये दक्षिणा ली जाएगी क्योके निशुल्क मंत्र और विधान का आज के समय मे किसीको भी महत्व नही रहा है ।


इसलिए जो साधक दक्षिणा देने में समर्थ हो वही साधक संपर्क करे,दक्षिणा की राशि हमारे प्यारे किसानो को लिये मदत हेतु इस्तेमाल होगी ।


मोबाइल नम्बर

व्हाट्सएप नम्बर

पेटीयम नम्बर

8421522368



आदेश......

8 Jun 2021

शोभना यक्षिणी शाबर मंत्र साधना.



कोरोना के वजह से मैंने ब्लॉग पर कोई आर्टिकल नही लिखा,आप सभी साधक साधिकाएं ठीक होंगे ऐसी आशा करता हु,माँ भगवती की कृपा से मैं भी ठीक हु। सम्पूर्ण जग में महामारी फैली हुई है और ऐसे समय मे ब्लॉग लिखना मुझे ठीक नही लगा परंतु अब यह महामारी कंट्रोल में है इसलिए आप सभी के लिए यह अदभुत साधना दे रहे है ।


यक्षिणी एक सौम्य और दैविक शक्ति होती है देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नम्बर आता है,हमारे भारतीय पौराणिक ग्रंथो में बहुत सारी प्रमुख रहस्यमयी जातियो का वर्णन मिलता है । जैसे कि देव गंधर्व ,यक्ष, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, ,भल्ल, किरात, नाग आदि यक्षिणी भी इन रहस्यमय शक्तियो के अंतर्गत आती है । देवताओं के कोषाध्यक्ष महर्षि पुलस्त्य पौत्र विश्रवा पुत्र कुबेर भी यक्ष जाती के हैं । जैसे कि देवताओं के राजा इंद्र है वैसे ही यक्ष यक्षिणी का राजा कुबेर है,कुबेर को यक्षराज बोला जाता है यक्ष यक्षिणीया कुबेर के आधीन होती है।


कुछ साधको के मन शंकाऐं होती है कि यह किस रूप मे सिद्ध होती है? कुछ लोगों की धारणा यह सिर्फ प्रेमिका रूप में सिद्ध की जा सकती है,जो कि बिलकुल गलत है,साधक इच्छा अनुसार किसी भी रूप सिद्ध कर सकता है । इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है, यक्षिणियों की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है ये उसी प्रकारका व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, माँ के रूप में साधने पर वह ममतामयी होकर साधक का सभी प्रकार से पुत्रवत पालन करती हैं तो बहन के रूप में साधने पर वह भावनामय होकर सहयोगात्मक होती हैं, ओर पत्नी या प्रेमिकाके रूप में साधने पर उस साधक को उनसे अनेक सुख तो प्राप्त हो सकते हैं किन्तु उसे अपनी पत्नी व संतान से दूर हो जाना पड़ता है । उड्डीश तंत्र में जिक्र मिलता है कि इस को किसी भी रूप मे सिद्ध किया जा सकता है ।


सर्वासां यक्षिणीना तु ध्यानं कुर्यात् समाहितः ।

भविनो मातृ पुत्री स्त्री रुपन्तुल्यं यथेप्सितम् ॥


तन्त्र साधक को अपनी इच्छा के अनुसार बहन , माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के समान मानकर यक्षिणियों के स्वरुप में साधना अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । कार्य में तनिक – सी भी असावधानी हो जाने से सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती ।


इस श्लोक से उपरोक्त बात स्पष्ट होती है कि आप इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है ।


हमारे प्राचीन भारतीय ग्रंथो में बहुत सारे लोको का वर्णन मिलता है इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी देवता हैं जो इन लोकों में रहते हैं । पृथ्वी से इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है नजदीकि लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण कि यक्ष, अप्सरा, किन्नरी आदि की साधना जल्दी पूरी होती है, क्योंकि इनके लोक पृथ्वी से पास हैं।


साधनात्मक नियम


भोज्यं निरामिष चान्नं वर्ज्य ताम्बूल भक्षणम् ॥

उपविश्य जपादौ च प्रातः स्नात्वा न संस्पृशेत् ॥


यक्षिणी साधन में निरामिष अर्थात् मांस तथा पान का भोजन सर्वथा निषेध है अर्थात् वर्जित है । अपने नित्य कर्म में , प्रातः काल स्नान आदि करके ऊनी आसन पर बैठकर फिर किसी को स्पर्श न करें । न ही जप और पूजन के बीच में किसी से बात करें ।


नित्यकृत्यं च कृत्वा तु स्थाने निर्जनिके जपेत् ।

यावत् प्रत्यक्षतां यान्ति यक्षिण्यो वाञ्छितप्रदाः ॥


अपना नित्यकर्म करने के पश्चात् निर्जन स्थान में इसका जप करना चाहिए । तब तक जप करें , जब तक मनवांछित फल देने वाली ( यक्षिणी ) प्रत्यक्ष न हो । क्रम टूटने पर सिद्धि में बाधा पड़ती है । अतः इसे पूर्ण सावधानी तथा बिना किसी को बताए करें ।


शोभना यक्षिणी साधना-

आप इस साधना को घर पर ही सिद्ध कर सकते हैं यह जितनी सरल साधना उतनी ही प्रभावकारी भी हैं । शोभना यक्षिणी का रूप शांतिमय तेजस्विता से पूरण अत्यंत ही ख़ूबसूरत और यौवन आकर्षण से परिपूर्ण होती है। अगर वृद्धि व्यक्ति इस साधना करें एक युवक की तरह यौवनवान हो जाएगा । साधक काल के दिनो में साधक के शरीर जोश और चेहरे के उपर लालीमा और तेज आ जाता है । दिव्य आकर्षण शक्ति प्राप्त होती शत्रु के मन में आप के प्रति आदर भाव पैदा होता है अगर शादी शुदा हो पती पत्नी के रिश्ते में मधुरता आ जाती है । संसार में मान सम्मान की प्राप्ती होती है । साधना के दिनो में आप यह बदलाव महसूस करोगे । हर वह साधक जो साधना क्षेत्र में आगे नया है लेकिन तंत्र मंत्र साधना में आगे बढ़ना चाहता वह साधक शोभना से शुरुआत करनी चाहिए वैसे यह साधना हरेक के लिए है । प्रत्येक मनुष्य इस साधना को कर सकता है स्त्री पुरूष कर सकता है । अगर स्त्री करे तो अपार सुंदरता की प्राप्ती होती है।


साधना विधी – साधना में लाल आसन और लाल माला रक्त चंदन की लकड़ी की होनी चाहिए,साधक खुद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए । साधना वाले कमरे को पहले अच्छे तरह से साफ करे दूध से धोकर इत्र का पोचा लगाए । लाला रंग के आसन पर गंगा जल छिटकाव करना चाहिए । फिर वातावरण को सुगंधित करने के लिए गूगल की धूप जलाए । यक्षिणी मंत्र का 1 माला जप करे 41 दिन तक करे । साधक को साधना के दिनो में यक्षिणी के दर्शन हो पास आकर बैठ जाए बोले नहीं देवी को दूर से प्रणाम करें बिना पने आसन से उठे जप करते रहें ।


मंत्र


।। ॐ नमो आदेश गुरु को जगमगाती नगरी अलकापुरी निवासिनी शोभना यक्षिणी आवो आवो जागृत होकर दर्शन दो मेरा इच्छीत कार्य सिध्द करो ना करो तो यक्षराज के सेज पर सजो ************ की दुहाई मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा छू ।।



शोभना यक्षिणी साधक इच्छा अनुसार भोग विलास भी करती है ।


साधक त्रिकाल प्रदान करती है भूत भविष्य वर्तमान की जानकारी भी प्रदान करती है ।


ईस साधना से साधक को यौवन शक्ति और सौदर्य की प्राप्ति होती है जिससे के साधक स्त्री और पुरुष सभी आकर्षित रहते ।


यक्षिणी साधक संसार शोभा और मान सम्मान दिलाती है इस लिए इस को शोभना यक्षिणी कहते है ।


पूर्ण मंत्र प्राप्त करने हेतू संपर्क करे,यहां दिया हुआ अधूरा मंत्र व्हाट्सएप पर पूरा दिया जाएगा,गोपनीय मंत्र है इसलिए ऐसे ही ब्लॉग पर देना संभव नही है । मंत्र निःशुल्क दिया जाएगा और मार्गदर्शन भी किया जायेगा ।

मोबाईल और व्हाट्सएप नम्बर-8421522368


आदेश.....


5 Feb 2021

भूत वार्तालाप यंत्र (Ghost conversation Yantra)



आज हम बात करेंगे एक विशेष विद्या के बारे में जिसे यंत्र विद्या कहा गया है,यंत्र विद्या तंत्र की एक सर्वश्रेष्ठ विद्या है । प्रत्येक तंत्र साधना में यंत्र का अत्याधिक महत्व है,बहुत से साधक पूछते हैं के भूत सिद्धि किस माध्यम से हो सकती है । भूत सिद्धि कोई साधारण सिद्धि नहीं है, जब हनुमान जी भगवान श्री राम जी का पता ढूंढ रहे थे तब वह श्री तुलसीदास जी से मिले और उनसे पूछा कि मुझे प्रभु श्री राम जी के दर्शन कैसे हो सकते हैं,तो श्री तुलसीदास जी महाराज ने कहा था यहां से भूत जाता है, वह जानता है के भगवान श्री राम कहा मिल सकते हैं और हनुमान जी ने भूत से पूछा फिर भूत के माध्यम से उन्हें भगवान श्री राम जी का पता लगाया । यह कहानी मैं बचपन से सुनते आरहा हु तबसे मुझे भूत साधना में अत्यधिक रुचि है । इसलिए आज हम ऐसे यंत्र के बारे में बात करेंगे जिस यंत्र के माध्यम से आप किसी भी आत्मा से मतलब एक ऐसी आत्मा से जो भूत योनि में हो उससे स्वप्न में किसी भी प्रकार का  प्रश्न पूछ सकते हैं । भूत के माध्यम से प्रश्न का जवाब प्राप्त कर सकते है, प्रश्न कुछ भी हो सकता है, कोई भी हो सकता है, क्योंकि इंसान के दिमाग में हजारों हजारों प्रश्न होते हैं और इन प्रश्नों का जवाब प्राप्त करना किसी भी इंसान के जीवन में महत्वपूर्ण विषय है ।

मैंने 7 वर्षो पहिले तांत्रिक अल्कानंदा जी से इस विषय पर गहन चर्चा की थी,तांत्रिक अल्कानंदा जी एक महिला है और उन्होंने तंत्र साधनाओ में बहोत सारे विषयों पर सटीक ज्ञान प्राप्त किया है । उन्होंने मुझे कुछ यंत्रो का ज्ञान प्रदान किया था जिसमे उन्होंने मुझे "भूत योनि वार्तालाप यंत्र" के बारे बताया था । इस यंत्र के निर्माण कार्य हेतु साधक का नाम और उनके जन्म तारीख का महत्व है । नाम और जन्म तारीख से अंक गणित करके हमे उस यंत्र का पता चलता है जिससे हम जिस भुत से वार्तालाप करना हो कर सकते है और हमारे प्रश्नों के जवाब उनसे प्राप्त कर सकते है ।

मैंने 2-3 बार सट्टे का नम्बर भुत से प्राप्त किया था और वही नम्बर सट्टे में आया था परंतु मैंने उस नम्बर पर पैसा नही लगाया क्योके मुझे ऐसे मार्ग से प्राप्त धन की आवश्यकता नही लगी । इस तरह से मैंने बहोत सारे भूतों से बहोत से सवाल पूछे है जिनका जवाब मुझे पूर्णतः सत्य मिला है । इस यंत्र विद्या के बारे में आज पहिली बार लिखने का मन किया और यह 2021 का मेरा आपके लिए पहिला आर्टिकल है,इस आर्टिकल को लिखने से पूर्व मैंने कल यंत्र का अनुभव प्राप्त किया जिसका परिणाम मुझे सटीक मिला,इसलिए आज यह आर्टिकल लिख रहा हु ।

बहोत आसान सा क्रिया है,इस यंत्र को बनाने के लिए आपका नाम आपके पिताजी का नाम और जन्म तारिख की आवश्यकता पड़ेगी,उसके बाद अंक गणित के माध्यम से आपको यंत्र बनाकर व्हाट्सएप पर यंत्र का फोटो भेज देंगे । जैसा यंत्र फ़ोटो में है वैसा ही आपको किसी भी रंग के पेन से सफेद कागज पर बनाना है । आपको इस मे एक दिन में यंत्र को 7 बार बनाना है और 6 दिनों तक रोज एक यंत्र को अग्नि में जलाना है । 7 वे दिन यंत्र के नीचे मृत व्यक्ति का नाम और अपना सवाल लिखना है,सवाल वही लिखे जिसका आपको भूत से जवाब चाहिए,फिर यंत्र को तकिए के नीचे एवं गद्दी के नीचे रखकर रात में सो जाना है । रात्रि में स्वप्न में जिस मृत व्यक्ति का नाम लिखा था उनके दर्शन होंगे और वह भूत आपको आपके सवाल का जवाब देंगा । इसमें किसी भी प्रकार से डरने की कोई आवश्यकता नही है,भूत आपको परेशान नही कारेंगा और इसमें सुरक्षा की कोई आवश्यकता भी नही है ।

इस यंत्र को प्राप्त करने के लिए व्हाट्सएप पर सम्पर्क कीजिए या फिर फोन कीजिए, यह यंत्र सशुल्क है,इसकी आपको 1100/-रुपये दक्षिणा देनी होंगी । आप चाहे तो बैंक एकाउंट में धनराशि जमा करवा सकते है या फिर paytm के माध्यम से भी धनराशि दे सकते है ।

इस यंत्र के माध्यम से आप कोई भी सवाल का जवाब मृत आत्मा मतलब भूतों से प्राप्त कर सकते है ।

साधना में अगर आप असफल होते है तो इसकी जिम्मेदारी हमारी नही है और इस पर किसी भी प्रकार का वाद विवाद स्वीकार नही है,क्योके प्रत्येक व्यक्ति सफल होगा ऐसा दावा करना गलत है । इसलिए अपनी समझदारी और ज्ञान को महत्व देते हुए दक्षिणा दे अन्यथा आप पाँच पीपल के पौधे लगाकर मुझे उनके फ़ोटो व्हाट्सएप पर भेजिए तो यंत्र आपको निःशुल्क में दिया जाएगा । आपके दक्षिणा से ज्यादा महत्व हमारे देश मे पौधे लगाना है ताकि हमारा देश हरा भरा रहे और ऑक्सिजन की देश मे कोई कमी ना हो । इस आर्टिकल को मैंने पैसे कमाने हेतु नही लिखा है,यह आर्टिकल आप सभी लोग पौधे लगाए इसलिए लिखा है और जो व्यक्ति पौधे लगाने की क्षमता ना रखते हो वही लोग मुझे दक्षिणा प्रदान कर सकते है ।मैं चाहता हु के हमारे देश मे ज्यादा से ज्यादा लोग पेड़-पौधे लगाए और इस देश को स्वर्ग से भी ज्यादा सुंदर बनाये । जिन्हें आस्था हो वही लोग मुझसे किंतु परंतु ना करते हुए यंत्र का चित्र प्राप्त करे और जिन्हें यह अंधश्रद्धा लगता हो वह व्यक्ति इस आर्टिकल को पढ़कर आकर्षित ना हो,अपने जीवन के मुख्य कामो पर ध्यान दे । आपके जीवन के मुख्य कार्यो पर आपके ध्यान देने का आपको ही फायदा होगा और मेरा भी समय बचेगा ताकि मैं भी अपने जीवन के मुख्य कार्यो पर ध्यान दे सकू । मंत्र तंत्र यंत्र में सफलता प्राप्त करना हर किसीके बस की बात नही है और जिन्हें सफलता प्राप्त होती है वह लोग जीवन मे अपने अनुभव बता भी सकते है साथ ही लिख भी सकते है । अपनी मूर्खता का प्रदर्शन ना करते हुए उचित समझ से इस प्रकार का यंत्र प्राप्त करे क्योके हिन्दू-मुस्लिम धर्म मे हजारों यंत्र दिए हुए है,जिनका लाभ कुछ ही लोग प्राप्त करने में सफल होते है । मैं आपको लालच दे रहा हु इस यंत्र के माध्यम से ताकि आप लोग अपने जीवन मे पीपल-बरगद-नीम.....या अन्य कोई भी पौधा लगा सके जो भविष्य में एक विशाल वृक्ष बनेगा । मेरा यह कार्य मानवजाति हेतु महत्वपूर्ण रहे ऐसा ही मैं माँ भगवती से प्रार्थना करता हु.....

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