27 Mar 2017

कुंडलिनी तंत्र ज्योतिष


ग्रह दोष लक्षण:-

१. सूर्य दोष के लक्षण:- असाध्य रोगों के कारण परेशानी, सिरदर्द, बुखार, नेत्र संबंधी कष्ट, सरकार के कर विभाग से परेशानी, नौकरी में बाधा ।
२. चंद्रमा दोष के लक्षण:- जुखाम, पेट की बीमारियों से परेशानी, घर में असमय पशुओं की मत्यु की आशंका, अकारण शत्रुओं का बढ़ना, धन का हानि ।
३. मंगल दोष के लक्षण:- घर में चोरी होने का डर, घर-परिवार में लड़ाई-झगड़े की आशंका, भाई के साथ संबंधों में अनबन, दांपत्य जीवन में तनाव, अकाल मृत्यु की आशंका ।
४. बुध दोष के लक्षण: स्वभाव में चिड़चिड़ापन, जुए-सट्टे के कारण धन की बड़ी हानि, दांत से जुड़े रोगों के कारण परेशानी सिर दर्द. अधिक तनाव की स्थिति ।
५. गुरू दोष के लक्षण:- सोने की हानि, चोरी की आशंका उच्च शिक्षा की राह में बाधाएं झूठे आरोप के कारण मान-सम्मान में कमी पिता को हानि होने की आशंका ।
6. शुक्र दोष के लक्षण:- बिना किसी बीमारी के अंगूठे, त्वचा संबंधी रोगों से परेशानी, राजनीति के क्षेत्र में हानि, प्रेम व दापंत्य संबंधों में अलगाव जीवनसाथी के स्वास्थ्य को लेकर तनाव,प्रेम में असफलता ।
७. शनि दोष के लक्षण: पैतृक संपत्ति की हानि, हमेशा बीमारी से परेशानी मुकदमे के कारण परेशानी बनते हुए काम का बिगड़ जाना ।
८. राहु दोष के लक्षण: मोटापेके कारण परेशानी अचानक दुर्घटना, लड़ाई-झगड़े की आशंका हर तरह के व्यापार में घाटा ।
९. केतु दोष के लक्षण: बुरी संगत के कारण धन का हानि जोड़ों के दर्द से परेशानी संतान का भाग्योदय न होना, स्वास्थ्य के कारण तनाव ।


ग्रहों से उत्पन्न बीमारी :-

१. सूर्य : मुँह में बार-बार थूक इकट्ठा होना, झाग निकलना, धड़कन का अनियंत्रित होना, शारीरिक कमजोरी और रक्त चाप।
२. चंद्र : दिल और आँख की कमजोरी।
३. मंगल : रक्त और पेट संबंधी बीमारी, नासूर, जिगर, पित्त आमाशय, भगंदर और फोड़े होना।
४. बुध : चेचक, नाड़ियों की कमजोरी, जीभ और दाँत का रोग।
५. बृहस्पति : पेट की गैस और फेफड़े की बीमारियाँ।
६. शुक्र : त्वचा, दाद, खुजली का रोग।
७. शनि : नेत्र रोग और खाँसी की बीमारी।
८. राहु : बुखार, दिमागी की खराबियाँ, अचानक चोट, दुर्घटना आदि।
९. केतु : रीढ़, जोड़ों का दर्द, शुगर, कान, स्वप्न दोष, हार्निया, गुप्तांग संबंधी रोग आदि।


लग्न स्थान से उत्पन्न रोग :-

* मेष लग्न के लिए एलर्जी, त्वचा रोग, सफेद दाग, स्पीच डिसऑर्डर, नर्वस सिस्टम की तकलीफ आदि रोग संभावित हो सकते हैं।
* वृषभ लग्न के लिए हार्मोनल प्रॉब्लम, मूत्र विकार, कफ की अधिकता, पेट व लीवर की तकलीफ और कानों की तकलीफ सामान्य रोग है।
* मिथुन लग्न के लिए रक्तचाप (लो या हाई), चोट-चपेट का भय, फोड़े-फुँसी, ह्रदय की तकलीफ संभावित होती है।
* कर्क लग्न के लिए पेट के रोग, लीवर की खराबी, मति भ्रष्ट होना, कफजन्य रोग होने की संभावना होती है।
* सिंह लग्न के लिए मानसिक तनाव से उत्पन्न परेशानियाँ, चोट-चपेट का भय, ब्रेन में तकलीफ, एलर्जी, वाणी के दोष आदि परेशानी देते हैं।
* कन्या लग्न के लिए सिरदर्द, कफ की तकलीफ, ज्वर, इन्फेक्शन, शरीर के दर्द और वजन बढ़ाने की समस्या रहती है।
* तुला लग्न के लिए कान की तकलीफ, कफजन्य रोग, सिर दर्द, पेट की तकलीफ, पैरों में दर्द आदि बने रहते हैं।
* वृश्चिक लग्न के लिए रक्तचाप, थॉयराइड, एलर्जी, फोड़े-फुँसी, सिर दर्द आदि की समस्या हो सकती हैं।
* धनु लग्न के लिए मूत्र विकार, हार्मोनल प्रॉब्लम, मधुमेह, कफजन्य रोग व एलर्जी की संभावना होती है।
* मकर लग्न के लिए पेट की तकलीफ, वोकल-कॉड की तकलीफ, दुर्घटना भय, पैरों में तकलीफ, रक्तचाप, नर्वस सिस्टम से संबंधित परेशानियाँ हो सकती हैं।
* कुंभ लग्न के लिए कफजन्य रोग, दाँत और कानों की समस्या, पेट के विकार, वजन बढ़ना, ज्वर आदि की संभावना हो सकती है।
* मीन लग्न के लिए आँखों की समस्या, सिर दर्द, मानसिक समस्या, कमर दर्द, आलस्य आदि की समस्या बनी रह सकती है।


नवग्रहों को एक साथ प्रसन्न करना थोड़ा मुश्किल है। आप अपनी कुंडली के कमजोर ग्रहों को पहले प्रसन्न कीजिए । कुंडली में नवग्रहों से सम्बंधित उपाय करते रहने से तुम्हारी जिंदगी उपाय करने में निकल जाएगी । इससे अच्छा तो हमें वह मंत्र पता होना चाहिए जो हमारे जीवन के सभी सुखों को प्रदान करे और इसके लिए हमें पता होना चाहिये के "कौनसा ऐसा ग्रह है जो जीवन में हमें पूर्ण रूप से साहय्यक हो" । मेरा एक ही मानना है ,लग्न स्थान को मजबूत करो ताकी तुम्हे जीवन में कोई भी ग्रह परेशान ना कर सके । ज्योतिष शास्त्र में अगर तंत्र को जोड़ दिया जाये तो सही परिणाम प्राप्त हो सकते है और सिर्फ ग्रहों से संबंधित जाप करने से ही अगर ग्रहों का प्रसन्न होकर फल देना संभव होता तो आज भारत में सभी ज्योतिषी उच्च पद पर होते । मेरे 12 वर्ष की आयु में  कुंडली को देखकर एक ज्योतिषी महाराज ने कुछ ऐसा फलकथन कर दिया था जिसे सुनकर मेरा जीने का उद्देश्य ही ख़त्म हो गया था और उनकी तो ज्यादातर बाते मेरे 19 साल के उम्र तक 80-90% सही थी । परंतु एक समय येसा भी आया जब जीवन में गुरु मिले,उनसे ज्ञान मिला और तबसे अब तक का जीवन सफलता पूर्वक व्यतीत हो रहा है । मुझे जो कुछ चाहिए वह मैं ग्रह देवता से मांगता हूं क्योंके अन्य देवी /देवताओ को देने में समय ज्यादा लगता है परंतु ग्रहदेवताओ का कार्य "तुरंत दान,तुरंत फल" जैसा है । पुराणों के नुसार तो देवी/देवताओ के भी ग्रह है और ग्रहों ने उन्हें भी पीड़ित किया है,तो हमारे जैसे साधारण मनुष्यो की तो खैर नहीं है ।
रत्न विज्ञान को मैं सही मानता हूं परंतु आज के समय में उचित रत्न बड़े महेंगे है,हर कोई व्यक्ति महेंगे रत्न धारण नहीं कर सकता है । "यथा पिंडे,तथा ब्रम्हांडे" यह शास्त्रोक्त कथन है और इसका अर्थ है जो हमारे शरीर में है वही ब्रम्हांड में है । अगर शरीर में किसी भी प्रकार की ऊर्जा कम हो जाए तो विपरीत परिस्थिति का जीवन में सामना करना पड़ता है । हमें कई प्रकार की ऊर्जा ब्रम्हांड से प्राप्त होती है और यह ऊर्जा पूर्ण रूप से प्राप्त ना होती हो तो हमारे ऋषिओ ने इसके लिए कुछ मंन्त्रो ज्ञान प्रदान किया है । यह वह बिजोक्त मंत्र है जो कुंडलिनी शक्ति से सबंधीत है और इन मंत्रों का संपुट किसी शक्ति मंत्र में किया जाए तो वह बिज मंत्र अत्यंत शक्तिशाली हो जाते है । इस प्रकार के मंत्र जाप से नवग्रह अपना फल अच्छा ही देते है इसमें कोई संशय नहीं है,सिर्फ हमें पता होना जरुरी है के हमें किस ग्रह का जाप करने से जीवन में अनुकूल परिणाम प्राप्त हो सकते है । रत्न रुद्राक्ष और उपायो से बहोत समय लग जाता है परंतु मंत्र के माध्यम से शीघ्र अनुकूल परिणाम प्राप्त किये जा सकते है ।

जो व्यक्ति अपनी कुंडली दिखवाना चाहता है उन्हें अवश्य ही विधि-विधान के साथ "कुंडलिनी शक्ति बिज मंत्र से संपुटित देवी जगदम्बा जी" का मंत्र दिया जाएगा । यह गोपनीय मंत्र है जो अवश्य ही जीवन में सहायता करता है ,विशेष ग्रह संबंधित मंत्रो के माध्यम से हमें अनुकूल परिणाम प्राप्त होते है । आपके कुंडली का अध्ययन करने बाद ही आपको विशेष ग्रह का मंत्र विधान दिया जाएगा,निशुल्क में कुंडली देखी नहीं जायेगी,इसके लिए 1150/-रुपये का न्यौछावर राशि लिया जाएगा । निशुल्क में आज से 2 वर्ष पहिले मै कुंडली देखता था परंतु अब यह संभव नहीं है क्योके निशुल्क में चाहे मै कितना भी अध्ययन करके मंत्र विधान दे दू तो लोगो को उसकी कोई कीमत नहीं है इसलिए आगे भी कोई व्यक्ति मुझे अपनी कुंडली निशुल्क में देखने हेतु विनती ना करे । आपसे प्राप्त धनराशि को मातारानी के मंदिर में गुप्तदान स्वरूप में समर्पित किया जायेगा ताकी आपका भविष्य उज्वल हो और आप को कितना भी कहा जाए "मंदिर में गुप्तदान किया करो,तो आप करोगे नहीं",इसलिए मेरे हिसाब से यह तरिका सही है ।


कुंडली में विशेष ग्रह से संबंधित मंत्र विधान प्राप्त करने हेतु मेरे ई-मेल पर संपर्क करे -amannikhil011@gmail.com ।
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Paytm से न्यौछावर राशि भेजने के बाद तुरंत ई-मेल से संपर्क करे और साथ में अपना जन्म विवरण भी भेजे । जिन्हें अपना जन्म विवरण पता ना हो वह व्यक्ति अपने दाहिने हाथ का फोटो निकालकर भेजे ।


आदेश..........

24 Mar 2017

विर-वेताल प्रत्यक्षिकरण साधना


शाबर मंत्रो की विशेष रचना है,जो सिद्ध नवनाथों द्वारा है । ये मंत्र पढ़ने में ज्यादा कठिनाई नहीं होती है एवं एक सामान्य साधक भी इन मंत्रों से लाभ उठा सकता है । आज पापमोचनी एकादशी के शुभ मुहूर्त पर मैं यह मंत्र और इससे संबंधित जानकारी आपको देना चाहता हूँ । 100 करोड़ शाबर मंत्रो की रचना सिद्ध नवनाथ भगवान ने किया हुआ है परंतु आज हमें बड़े मुश्किल से 10 हजार मंत्र भी देखने नहीं मिलते है । इस दुर्भाग्य को मिटाना अब तो असंभव है,फिर भी हमें प्रयास करना चाहिए ताकि कुछ मंत्रो को प्राप्त करके हमें इस कलयुग में प्रत्यक्ष लाभ हो । वैदिक और तांत्रोत्क मंत्रों के जाप से सब कुछ संभव तो है फिर उन्हें सिद्ध करने में वर्षो लग जाता है,इसलिए शाबर मंत्र का जाप करके लाभ उठाना उचित है ।
आज का यह साधना विर-वैताल के प्रत्यक्षिकरण से है,वेताल को प्रत्यक्ष करके उनसे कई प्रकार के कार्य पूर्ण करवाये जा सकते है । वेताल एक प्रकार से भूतो का राजा माना जाता है,हमारे देश में कई ऐसे साधक है जो वेताल को सिद्ध किये हुए है परंतु वह लोग दुनिया के सामने आकर लोककल्याण करना उचित नहीं समजते है । मुझे बहोत ख़ुशी है इस बात की,के आनेवाले समय में इस ब्लॉग के पाठकों में से किसी ना किसी पाठक के पास या कह सकते है किसी साधक के पास अवश्य ही वेताल सिद्धि संभव हो सकती है ।

वेताल एक प्रचंड शक्ति है जो संसार के समस्त प्रकार के भय का नाश करने हेतु एक महान सिद्धि है । इसके माध्यम से षटकर्म भी संभव है,समस्त प्रकार के रोगों का निवारण वेताल से संभव है । यह मंत्र विधान संसार के किसी भी किताब में आपको देखने नहीं मिलेगा,यह मंत्र विधान गोपनीय है और आज भी गाँव के लोगो के पास सुरक्षित है । मेरा ध्येय है के इस मंत्र विधान से आपको भी परिचित होना चाहिए और हो सके तो जनकल्याण हेतु आगे आना चाहिये ।

आज के समय में कई तांत्रिको ने मंत्र बेचकर विद्या का नाश किया है,जिससे कई प्रकार के मंत्र आज शक्तिहीन होते जा रहे है । मंत्रो को जाग्रत रखना आज के समय का आवश्यक कर्म है,आज अगर हम मंत्र विद्या को संभालकर रखे तो भविष्य में यह विद्या कई पीढ़ियों के काम आयेगी । एक डर है आजके साधक वर्ग में जिसे निकालना जरुरी है,सभी साधक मित्रो को लगता है के मैं आज से मंत्र जाप प्रारंभ करु और 11 दिन के साधना में 11 वे दिन ही शक्ति सामने प्रगट हो और जब वह शक्ति साधक के सामने प्रत्यक्ष नहीं होती है तो साधक वह साधना छोड़ देता है । उसे लगता है अगर मैं फिर से साधना करु और मुझे साधना में सफलता नहीं मिले तो मैं क्या करूँ,यही तो एक प्रकार का डर है जो एक साधक को साधना में सफल नहीं होने देता है । जैसे मैंने कहा है के बिर-कंगन 21 दिनों में जाग्रत होता है परंतु ना हो तो क्या करे? क्या साधना करना छोड़ दिया जाये । यह मूर्खता है,जब हम किसी साधना को प्रारम्भ करके कुछ दिनों बाद असफलता के कारण छोड़ देते है । बहोत से साधक को 21 दिनों में सफलता मिला है,हो सकता है किसिको कुछ समय ज्यादा साधना करनी पड़े तो हमेशा मेहनत करने का तय्यारी करना जरुरी है ।
।। बिस्मिल्लाह रहेमाने राहीम अहमद जागे महम्मद जागे,पीर सुल्तान जागे दिल्ली का बादशाह जागे,उलटा बिर हनुमान जागे,×××××××जिंन-जिन्नातो को जगाने के लिए जागे,×××××××××××× देश ××××× का इल्म सच्चा,मेरी भक्ति गुरु की शक्ति,चलो मंत्र ईश्वरी वाचा ।।
जैसे यह एक मंत्र है जिससे जिन सिद्ध होता है,यह मंत्र 41 दिनों तक जाप करने से संभव है,परंतु इतना तिष्ण मंत्र जाप करने के बाद भी जिन 41 दिनों में ना आये तो क्या किया जाए? इसमे कोई भी दूसरा विकल्प नहीं है,सिर्फ एक ही रास्ता है "साधना पुनः करना है और मेहनत करना जरुरी है,अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होना संभव है"। साधना सिद्धि हेतु दीवानगी जरुरी है,वो मोहब्बत होनी ही चाहिये कुछ पाने की के हम सब कुछ प्राप्त कर सके ।

एक किसान गेहू का बीज जमींन में डालता है और आनेवाले चार महीनो तक खेत में मेहनत करता है तब जाकर कहा उसको अपने खेत में फसल देखने मिलती है,अच्छी फसल देखने के लिए उसको रोज खेत में जाकर 6-7 घंटे तक मेहनत करना पड़ता है । कभी कभी नैसर्गिक कारणों के वजेसे उसकी फसल भी बेकार हो जाती है परंतु वह हारता नहीं है ।अगर इस वर्ष अच्छी फसल नहीं हुयी तो अगले वर्ष अच्छी फसल प्राप्त करने की उम्मीद में वह फिर से अच्छेसे मेहनत करता ही है । परंतु हमारे साधक मित्र 11 दिनों में कुछ मुश्किल से 1-2 घंटे तक जाप करते है और जब सफलता ना मिले तो साधना,मंत्र,तंत्र,यन्त्र ओर गुरु के प्रती भी अविश्वास रखते हुए मन में दिल से गालिया देते है या फिर सब क्रिया को पाखंड मानते है ।

सबसे से पहिला बात ये दिमाग में डाल दो,खुद को साधक या तांत्रिक समझकर साधना करने से अच्छा तो खुद को किसान समझकर मंत्र साधना विधान किया करो । मेहनत और लगन से किया जाने वाला कोई भी कर्म निष्फल नहीं होता है,1-2 घंटे मंत्र जाप करने से अच्छा 3-4 घंटे जाप करने का कोशिश किया जाए तो बेहतर है । किसान की एक वर्ष की फसल तो उसको कुछ पैसा देती है,जिससे उसका 1-2 वर्ष तक घर चल जाता होगा परंतु आप अगर किसी भी एक साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त करलो तो आपका पूर्ण जीवन अच्छा हो जायेगा । फेसबुक-यू-ट्यूब-व्हॉट्स अप के अघोरी तांत्रिक बाबा लोगो के नखरे झेलने से अच्छा तो स्वयं मेहनत करो और जीवन को सुखमयी बनाते हुए समाजकल्याण के ओर एक कदम आगे बढ़ाओ । मैंने भी आज लिखने में मेहनत किया है और मुझे लग रहा है के आप यह आर्टिकल पढ़ने के बाद मेरा ये छोटासा मेहनत बेकार नहीं जायेगा ।



साधना विधान:-

यह साधना किसी भी सोमवार से प्रारंभ कर सकते है और यह साधना सिर्फ रात्री में ही किया जाता है । साधना में एकांत का आवश्यकता है,रुद्राक्ष माला से जाप करना है ।आसन और वस्त्र लाल रंग के हो या काले रंग के हो,साधना से पूर्व शिव जी का पूजन अवश्य करे,तेल का दिया ही लगाए, तेल कोई भी चलेगा,उग्र सुगंध से युक्त अगरबत्ती का इस्तेमाल करे,रोज रात्री में 11 माला जाप 21 दिनों तक करने का विधान है,यह दक्षिणमुखी साधना है इसलिए दक्षिण दिशा में मुख करके जाप करे,साधना काल में वेताल के दर्शन हेतु रोज एक गुलाब का फूल अपने पास रखे और जब वेताल का दर्शन हो तो वह फूल उसे भेट करे ।



वेताल मंत्र:-

।। ॐ नमो आदेश गुरूजी को,मसान में रमता रात में जगता भूतो का राजा मेरे गुरु के विद्या से चलके आना,ना आये तो राजा तेरा हुकूम ना चले,दुहाई गुरु गोरखनाथ की,मेरी भक्ति गुरु ××××× की शक्ति,चलो मंत्र ईश्वरी वाचा ।।


मैंने इस मंत्र में एक शब्द गोपनीय रखा है और वह शब्द योग्य साधक को मै देने का वचन देता हूं परंतु किसी भी अयोग्य साधक को यह मंत्र नहीं दिया जाएगा । जब भी किसी योग्य साधक को मुझसे मंत्र प्राप्त करना हो तो मुझे ई-मेल करे amannikhil011@gmail.com पर,मैं साधक को एक छोटासा प्रश्न पुछूगा जिसका जवाब देते ही उसको गोपनीय शब्द बता दिया जायेगा । मैं इस गोपनीय शब्द को बताने के लिए आपसे कोई एक पैसा नहीं ले रहा हूँ । इसलिए चिंता ना करे और सवाल कोई ज्यादा कठिन नहीं है ।





आदेश............

21 Mar 2017

रोगमुक्ती साधना-माँ भद्रकाली


बहोत दिनोसे चाहता था,माँ भद्रकाली जी का मंत्र साधना विधान लिखा जाए । भद्रकाली जी प्रचंड शक्तियुक्त देवी मानी जाती है,उनका कोई भी साधना विधान कभी भी खाली नही जाता । अन्य साधनाओं में भले ही सफलता मिले या ना मिले परंतु काली जी के इस रूप के साधना में सफलता अवश्य ही मिलता है । जहां माँ भद्रकाली अपने बच्चो को ममतामयी नजरो से देखती है , ठीक उसी तरहां भक्तो के समस्त शत्रुओं को दंडित करती है ।

आज जो साधना दे रहा हू इससे समस्त प्रकार के रोगों से मुक्ती प्राप्त होता है । जब तक शरीर रोगों से मुक्त ना हो जाए तब तक जीवन में सब कुछ होकर भी कुछ नही रहेता है । यह साधना विधान आपके समस्त रोगों का स्तंभन करने हेतु आवश्यक है, पहला सुख निरोगी काया -अर्थात स्वस्थ्य शरीर ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है और उसी से आप अन्य सुखों का उपभोग कर सकते हैं तथा साधना में आसन की दृढ़ता को प्राप्त कर सकते हैं ।

यह साधना किसी भी शनिवार से शुरू करे,आसन और वस्त्र लाल रंग के हो,मंत्र जाप के समय उत्तर दिशा में हो,मंत्र जाप करने हेतु रुद्राक्ष का माला उत्तम है । साधना के समय गाय के घी का ही दीपक प्रज्वलित करे,धुपबत्ती कोई भी ले सकते है परंतु गुग्गल का धूपबत्ती जलाया जाये तो अतिउत्तम । यह साधना ग्यारह दिनों तक किया जाए तो आरोग्य प्राप्त होता रहेगा और रोगों से मुक्ति मिलता रहेगा । 11 माला जाप करने का विधान है परंतु आप आवश्यता नुसार 21,51,101 माला भी जाप कर सकते है । कोई रोगी व्यक्ति जाप ना कर सके तो किसी योग्य व्यक्ति से स्वयं के लिए जाप करवा सकते हैं ।


मंत्र-

।। ॐ क्रीं क्रीं क्रीं भद्रकाली सर्वरोगबाधा स्तंभय स्तंभय स्वाहा ।।
Om kreem kreem kreem bhadrakali sarvarogbaadhaa stambhay stambhay swaahaa


11,21.....दिनों का साधना पूर्ण होने के बाद संभव होतो काले तिल और शुध्द घी से हवन में आहूति देना उचित होगा । हवन करना जरुरी नहीं है फिर भी साधक पूर्ण सिद्धि हेतु चाहे तो हवन कर सकता है ।



आदेश ...........

6 Mar 2017

महारुद्र शिव मंत्र साधना

महारुद्र शिव यह नाम ही काफी है समस्त बाधाओं को समाप्त करने के लिए । शिव जी को एक तरफ जहां उनके भोलेपन के कारण भोलेनाथ के नाम से जाना जाता हैं वहीं शिव जी का महारुद्र रूप सभी देवी देवताओं और राक्षसों के हृदय को कम्पित कर देता हैं। उनका रुद्र रूप महा प्रलय कारी होता हैं। ब्रह्मा जी को जन्म देने वाला, विष्णु जी को पालन करने वाला और महादेव को संहारक के रूप में जाना जाता हैं। शिव जी एक मात्र ऐसे देव हैं जिन्होने राक्षस एवं देव को उनकी दुष्टता के कारण नाश किया हैं।

1- प्रजापति दक्ष का नाश– शिव पुराण के अनुसार सती द्वारा यज्ञ में कूदकर अपने प्राणों की आहुती देने से क्रोधित महादेव के क्रोध से उत्पन्न हुआ वीरभद्र दक्ष के यज्ञ को नष्ट करता हुआ जब दक्ष के समक्ष खडा हुआ तो तीनों लोकों में किसी में भी इतना साहस न था की वे दक्ष की रक्षा कर सके। भगवान शिव जी के उस महारुद्र स्वरूप ने एक ही झटके में दक्ष का मस्तिष्क उसी के हवन कुंड में काट कर अर्पित कर दिया।

2- कामदेव का भस्म होना- माता सती के शरीर त्यागने के पश्चात महादेव कई वर्षो तक समाधी में लीन रहे। कुछ वर्षो के उपरांत तारकासुर नामका एक राक्षस उत्पन्न हुआ, वह अमर के समान था, उसे वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु शिव के पुत्र के हाथों ही होगी। तारकासुर जानता था की शिव जी को जगाने का दुस्साहस कोई नही कर सकता। उसने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, उसके आतंक से सम्पूर्ण जगत में त्राही-त्राही होने लगी। भगवान शिव जी की तपस्या भंग करने का कार्य देवताओं ने कामदेव को सौपा, कामदेव जानते थे की शिव जी की तपस्या भंग होने के उपरांत उनका नाश होना तय है, लेकिन जगत का कल्याण जानकर उन्होने शिव जी की तपस्या अपने पांच कामरूपी बाणों से भंग कर दी। भगवान शिव जी अपनी तपस्या भंग होने के कारण इतने क्रोधित हुये की उनके तीसरे नैत्र से निकली प्रचंड अग्नि कामदेव को तत्क्षण भस्म कर गई। बाद में शिव जी ने उनकी पत्नि को आश्वसान दिया की ये कृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेकर पुन: अपने शरीर को प्राप्त करेंगे।

3- भगवान गणेश का मस्तिष्क छेदन- पार्वती माता के मानसिक पुत्र ने जब अपनी माता के आदेश पर पहरा देकर किसी को भी अंदर न आने की अनुमति का पालन करते हुये जब शिव जी को रोका तो शिव जी अत्यधिक क्रोधी हुये तथा बालक को कई बार समझाने पर भी जब गणेश ने उन्हे अंदर प्रवेश नही करने दिया तब शिव जी को विवश होकर बालक से युद्ध करना पडा, इस युद्ध में भगवान शिव जी ने बालक का मस्तिष्क छिन्न कर दिया। बाद में पार्वती के अत्यधिक क्रोधित स्वरूप को शांत करने पर बालक को पुन: जीवीत किया गया।

4- ब्रह्मा जी का अहंकार और भैरव रूप में उनकी गर्दन का खंडन- पुराणों के अनुसार शिव जी के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। उन्होने शिव जी की निंदा करने वाले ब्रह्मा के पांचवें मुख को अपने नख से छेदन कर दिया था। कथा प्रसंग के अनुसार ब्रह्मा और नरायण में इस बात को लेकर विवाद चल रहा था की सर्वश्रेष्ट कौन है। वेदों ने जब शिव जी का नाम लेकर उन्हे सर्वश्रेष्ट माना तब ब्रह्मा ने अहंकार वश शिव जी का अपमान करना शुरु कर दिया। तब भैरव रूप में शिव जी ने ब्रह्मा को दंड दिया था।

शिव जी ने जो कूछ क्रियाए की है ,उनसे साफ पता चलता है के शिव भक्तों को उनके शरण में रहते हुऐ जीवन के समस्त कष्ट ,बाधा ,पीड़ाए ,दोष और दर्द से राहत मिल सकता है । सिर्फ आवश्यकता है महारुद्र शिव मंत्र की ,जिसके जाप करने से शिव साधक को शिव कृपा के साथ साथ अनेको परेशानियों से राहत मिले ।

इस साधना के प्रत्यक्ष लाभ-

1-किसी भी प्रकार की बाधा और कमजोरी दूर कर सकते है । कमजोरी का अर्थ धन, धान्य, शारीरिक, मानसिक से भी सम्बंधित है ।

2-सभी प्रकार के समस्या से मुक्ति हेतु आवश्यक तांत्रोक्त मंत्र है ।

3-समस्त प्रकार का शत्रु पीड़ा से राहत होगा । यहाँ शत्रु का अर्थ कोई व्यक्ति हो ऐसा नहीं,हमारे कई सारे शत्रु है,जैसे रोग , दुःख ,दारिद्रता ,असफलता ।

4-प्रत्येक मनोकामना पूर्ति हेत एवं प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हेतु भी यह मंत्र साधना आवश्यक है ।

5-काला जादू या दूसरी भाषा में तंत्र बाधा दोष निवारण हेतु यह साधना आवश्यक है ।

मैं चाहता था के इस वर्ष होली के पावन अवसर पर आप सभी को एक ऐसा साधना विधान दिया जाए ,जिससे आपको जीवन में सहायता मिले । आपका जीवन अद्वितीय हो यही मैं शिव जी से प्रार्थना करता हूँ । आपके प्रत्येक दुःख में मैं हमेशा आपके साथ हूं, मुझसे जितना हो सके उतना मार्गदर्शन मैं आपको करता रहुँगा । आप अवश्य ही होली के रात में 8 बजे के बाद से ही मंत्र का जाप प्रारम्भ करे , जितना ज्यादा मंत्र जाप करना चाहते हो ,कर ही लो । साधना में रुद्राक्ष माला का उपयोग करे,आसान और वस्त्र जो भी आपके पास हो ,उसीका उपयोग करे । साधना में दिशा का कोई भी बंधन नही है,किसी भी दिशा में मुख करके जाप कर सकते हो । जितना ज्यादा आपको परेशानी है उतना ही ज्यादा जाप करे । होली के बाद भी मंत्र का जाप करते रहना है, उठते-बैठते चलते -फिरते मन ही मन भी मंत्र का जाप चालु ही रखे ।

यह साधना कलयुग में एक प्रचंड प्रहार है हम सभी के समस्याओ पर,इससे हम सभी को नवचेतना प्राप्त होगी और जीवन आनंद पूर्वक सफल होगा ।

बिजोक्त महारुद्र शिव मंत्र-

।। ॐ ह्लौं ह्लीं भ्रं भ्रं ह्लीं ह्लौं फट् ।।

OM HLOUM HLEEM BHRAM BHRAM HLEEM HLOUM PHAT

मुझे विश्वास हैं, आप सभी इस साधना से प्रत्यक्ष लाभ उठाएंगे ।





आदेश.........