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26 Dec 2015

तांत्रोत्क वनस्पति टोटके.

छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं, पर उनकी विधिवत् जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं।हमारे आसपास पाए जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधों के पत्तों, फलों आदि का टोटकों के रूप में उपयोग भी हमारी सुख-समृद्धि की वृद्धि में सहायक हो सकता है। यहां कुछ ऐसे ही सहज और सरल उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है, जिन्हें अपना कर पाठकगण लाभ उठा सकते हैं।

बिल्व पत्र : अश्विनी नक्षत्र वाले दिन एक रंग वाली गाय के दूध में बेल के पत्ते डालकर वह दूघ निःसंतान स्त्री को पिलाने से उसे संतान की प्राप्ति होती है।

अपामार्ग की जड़ : अश्विनी नक्षत्र में अपामार्ग की जड़ लाकर इसे तावीज में रखकर किसी सभा में जाएं, सभा के लोग वशीभूत होंगे।

नागर बेल का पत्ता : यदि घर में किसी वस्तु की चोरी हो गई हो, तो भरणी नक्षत्र में नागर बेल का पत्ता लाकर उस पर कत्था लगाकर व सुपारी डालकर चोरी वाले स्थान पर रखें, चोरी की गई वस्तु का पला चला जाएगा।

संखाहुली की जड़ : भरणी नक्षत्र में संखाहुली की जड़ लाकर तावीज में पहनें तो विपरीत लिंग वाले प्राणी आपसे प्रभावित होंगे।

आक की जड़ : कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय हेतु आर्द्रा नक्षत्र में आक की जड़ लाकर तावीज की तरह गले में बांधें।

दूधी की जड़ : सुख की प्राप्ति के लिए पुनर्वसु नक्षत्र में दूधी की जड़ लाकर शरीर में लगाएं।

शंख पुष्पी : पुष्य नक्षत्र में शंखपुष्पी लाकर चांदी की डिविया में रखकर तिजोरी में रखें, धन की वृद्धि होगी।

बरगद का पत्ता : अश्लेषा नक्षत्र में बरगद का पत्ता लाकर अन्न भंडार में रखें, भंडार भरा रहेगा।

धतूरे की जड़ : अश्लेषा नक्षत्र में धतूरे की जड़ लाकर घर में रखें, घर में सर्प नहीं आएगा और आएगा भी तो कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

बेहड़े का पत्ता : पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बेहड़े का पत्ता लाकर घर में रखें, घर ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्त रहेगा।

नीबू की जड़ : उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीबू की जड़ लाकर उसे गाय के दूध में मिलाकर निःसंतान स्त्री को पिलाएं, उसे पुत्र की प्राप्ति होगी।

चंपा की जड़ : हस्त नक्षत्र में चंपा की जड़ लाकर बच्चे के गले में बांधें, बच्चे की प्रेत बाधा तथा नजर दोष से रक्षा होगी।

चमेली की जड़ : अनुराधा नक्षत्र में चमेली की जड़ गले में बांधें, शत्रु भी मित्र हो जाएंगे।

काले एरंड की जड़ : श्रवण नक्षत्र में एरंड की जड़ लाकर निःसंतान स्त्री के गले में बांधें, उसे संतान की प्राप्ति होगी।

तुलसी की जड़ : पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में तुलसी की जड़ लाकर मस्तिष्क पर रखें, अग्निभय से मुक्ति मिलेगी।

अपामार्ग या चिरचिंटा लटजीरा तंत्र:

इस वनस्पति को रवि-पुष्य नक्षत्र मे लाकर निम्न प्रयोग कर सकते हैं।

1. इसकी जड़ को जलाकर भस्म बना लें। फिर इस भस्म का नित्य गाय के दूध के साथ सेवन करें, संतान सुख प्राप्त होगा।

2. लटजीरे की जड़ अपने पास रखने से धन लाभ, समृद्धि और कल्याण की प्राप्ति होती है।

3. इसकी ढाई पत्तियों को गुड़ में मिलाकर दो दिन तक सेवन करने से पुराना ज्वर उतर जाता है।

4. इसकी जड़ को दीपक की भांति जला कर उसकी लौ पर किसी छोटे बच्चे का ध्यान केन्द्रित कराएं तो उस बच्चे को बत्ती की लौ में वांछित दृश्य दिखाई पड़ेंगे।

5. इसकी जड़ का तिलक माथे पर लगाने से सम्मोहन प्रभाव उत्पन्न हो जाता है।

6. इसकी डंडी की दातून 6 माह तक करने से वाक्य सिद्धि होती है।

7. इसके बीजों को साफ करके चावल निकाल लें और दूध में इसकी खीर बना कर खाएं, भूख का अनुभव नहीं होगा।

ग्रह पीड़ा निवारक मूल-तंत्र:

सूर्य: यदि कुंडली में सूर्य नीच का हो या खराब प्रभाव दे रहा हो तो बेल की जड़ रविवार की प्रातः लाकर उसे गंगाजल से धोकर लाल कपड़े या ताबीज में धारण करने से सूर्य की पीड़ा समाप्त हो जाती है। ध्यान रहे, बेल के पेड़ का शनिवार को विधिवत पूजन अवश्य करें।

चंद्र: यदि चंद्र अनिष्ट फल दे रहा हो तो सोमवार को खिरनी की जड़ सफेद डोरे में बांध कर धारण करें। रविवार को इस वृक्ष का विधिवत पूजन करें।

मंगल: यदि मंगल अनिष्ट फल दे रहा हो तो अनंत मूल या नागफनी की जड़ लाकर मंगलवार को धारण करें।

बुध: यदि बुध अनिष्ट फल दे रहा हो तो विधारा की जड़ बुधवार को हरे डोरे में धारण करें।

गुरु: यदि गुरु अनिष्ट फल दे रहा हो तो हल्दी या मारग्रीव केले (बीजों वाला केला) की जड़ बृहस्पतिवार को धारण करें।

शुक्र: यदि शुक्र अनिष्ट फल दे रहा हो तो अरंड की जड़ या सरफोके की जड़ शुक्रवार को सफेद डोरे में धारण करें।

शनि: यदि शनि अनिष्ट फल दे रहा हो तो बिच्छू (यह पौधा पहाड़ों पर बहुतायत में पाया जाता है) की जड़ काले डोरे में शनिवार को धारण करें।

राहु: यदि राहु अनिष्ट फल दे रहा हो तो सफेद चंदन की जड़ बुधवार को धारण करें।

केतु: यदि केतु अनिष्ट फल दे रहा हो तो असगंध की जड़ सोमवार को धारण करें।

मदार तंत्र:

श्वेत मदार की जड़ रवि पुष्य नक्षत्र में लाकर गणेश जी की प्रतिमा बनाएं और उसकी पूजा करें, धन-धान्य एवं सौभाग्य में वृद्धि होगा। यदि इसकी जड़ को ताबीज में भरकर पहनें तो दैनिक कार्यों में विघ्न बहुत कम आएंगे और श्री सौभाग्य में वृद्धि होगी।

गोरखमुंडी तंत्र:

मुंडी एक सुलभ वनस्पति है । इसम अलौ किक औ षधीय एवं तांत्रिक गुणों का समावेश है। इसे रवि पुष्य नक्षत्र में पहले निमंत्रण दे कर ले आएं। पूरे पौधे का चूर्ण बनाकर जौ के आटे में मिलाएं। फिर उसे मट्ठे म सान कर रोटी बनाएं और गाय के घी के साथ इसका सेवन करें, शरीर के अनेक दोष जिनमें बुढ़ापा भी शामिल है, दूर हो काया कल्प हो जाएगा और शरीर स्वस्थ, सबल और कांतिपूर्ण  रहेगा। हरे पौधे के रस की मालिश करने से शरीर की पीड़ा मिट जाती है। इसके चूर्ण का सेवन दूध के साथ करने से शरीर स्वस्थ एवं बलवान हो जाता है। इसके चूर्ण को रातभर जल के साथ भिगो कर प्रातः उससे सिर धोने से केशकल्प हो जाता है। इसके चूर्ण का नित्य सेवन करने से स्मरण, धारण, चिंतन और वक्तृत्व शक्ति की वृद्धि होती है।

श्यामा हरिद्रा:

काली हल्दी को ही श्यामा हरिद्रा कहते हैं। इसे तंत्र शास्त्र में गणेश-लक्ष्मी का प्रतिरूप माना गया है। श्यामा हरिद्रा को रवि पुष्य या गुरु पुष्य नक्षत्र में लेकर एक लाल कपड़े में रखकर षोडशोपचार विधि से पूजन करने का विधान है। इसके साथ पांच साबुत सुपारियां, अक्षत एवं दूब भी रखने चाहिए। फिर इस सामग्री को पूजन स्थल पर रखकर प्रतिदिन धूप दें। यह पारिवारिक सुख में वृद्धि के साथ ही आर्थिक दृष्टि से भी लाभ देता है।

हत्था जोड़ी:

यह एक वनस्पति है। इसके पौधे मध्य प्रदेश में बहुतायत में पाए जाते हैं। इस पौधे की जड़ में मानव भुजाएं जैसी ही शाखाएं होती हैं। इसे साक्षात् चामुंडा देवी का प्रतिरूप माना गया है। इसका प्रयोग सम्मोहन, वशीकरण, अनुकूलन, सुरक्षा एवं संपत्ति वृद्धि आदि में होता है।

इन्द्रजाल तंत्र

1. इन्द्रजाल को ताबीज़ में यत्न से भरकर बच्चों के गले में धारण करवा दें, बुरी नज़र से बच्चे की सदैव रक्षा होगी।

2. पढ़ाई करने वाले बच्चे बुकमार्क की तरह इसका उपयोग अपनी पुस्तकों में करें, उनकी पढ़ाई के
प्रति रूचि बढ़ने लगें।

3. गर्भवती महिला को यदि एक काले कपड़े में बन्द करके इन्द्रजाल धारण करवा दिया जाए तो यह सुरक्षित गर्भ के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।

4. मंगलवार के दिन माँ दूर्गा का ध्यान करके इन्द्रजाल को पीसकर पाउडर बना लें। यदि शत्रु के ऊपर किसी तरह अथवा उसके भवन में यह पाउडर छिड़क दिया जाएगा तो उसके शत्रुवत व्यवहार में आशातीत परिवर्तन होने लगेगा।

5. संतान सुख की इच्छा रखने वाले पती-पत्नी इन्द्रजाल को ताबीज़ की तरह धारण करके नित्य कम से कम तीन माला मंत्र, "ॐकृष्णाय दामोदराय धीमहि तन्नो विष्णु प्रयोदयात्" की जप किया करें।

6. भवन के वास्तु जनित कैसे भी दोष के लिए, बद्नज़र तथा दुष्टआत्माओं से रक्षा के लिए इन्द्रजाल को स्थापित कर लें।

7. शुक्रवार के दिन शुभ मुहूर्त में एक इन्द्रजाल भवन में किसी ऐसे स्थान पर स्थापित कर लें जहाँ से आते-जाते वह दिखाई दिया करे। शुक्रवार को अपनी नित्य की पूजा में मंत्र "ॐ दुं दुर्गायै नमः" जप कर लिया करें, आपदा-विपदा से घर की सदैव रक्षा होगी।

इन्द्रजाल नाम से अधिकांशतः भ्रम होता है एक वृहत्त ग्रंथ का जो अनेकों प्रकाशकों द्वारा भिन्न-भिन्न रंग-रूप में प्रकाशित होता आ रहा है। यह ग्रंथ और कुछ नहीं मंत्र, यंत्र तथा तंत्राहि, टोने-टोटके, शाबर मंत्र, स्वरशास्त्र आदि गुह्य विषयों का खिचड़ी रूपी संग्रह है। परन्तु इन्द्रजाल वस्तुतः एक वनस्पति है। यह कुछ-कुछ मोर पंख झाड़ी के पत्ते से मिलती-जुलती है। यह परस्पर उलझी हुई एक जाली सी प्रतीत होती है। भूत-प्रेत, जादू-टोने,दुषआत्माओं के दुष्प्रभाव को दूर करने आदि में इसका व्यापक प्रयोग किया जाता है। यदि इसको सिद्ध कर लिया जाए तो वाणी के प्रभाव से अनेक कार्यों में सफलता प्राप्त करने तथा भविष्य की घटनाओं की भविष्य वाणी करने की दिव्य शक्ति तक इसके प्रयोग से प्राप्त की जा सकती है। इन्द्रजाल की एक पूरी टहनी अपने कार्य अथवा निवास स्थल पर लगा लेने से वहाँ कोई भी अदृष्ट दुष्प्रभाव हानि नहीं पहुँचा पाता।

एक प्रकार से इन्द्रजाल एक सुरक्षा कवच का कार्य करता है। इसको अच्छा प्रभाव प्राप्त करने के साथ-साथ यदि सुन्दरता से अलंकरण कर लिया जाए तो सजावट के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। इसकी स्थापना के लिए शुभ दिन मंगल और शनिवार है। यदि यह मंगल और शनि की होरा में उपयोग की जाए तो और भी शुभत्व का प्रतीक सिद्ध हो सकती है।

आगे जिवन मे और कुछ वनस्पतियो पर लिखा जायेगा। साथ मे सभी पर मंत्र भी दिये जायेंगे ।

आदेश......

विषेश टोटके,-भाग-2.

* सदा रसोई घर में बैठकर भी भोजन करने से मन प्रसन्न रहता है तथा मां अन्नपूर्णा का आशीर्वाद मिलता रहता है।

* अपने घर के मुख्य दरवाजे के ऊपर चांदी का स्वास्तिक लगाने से बुरी बलाओं से रक्षा होती है।
* पक्षियों- चीटियों को प्रतिदिन दाना खिलाने से घर में बरकत रहती है।

विद्यार्थी की स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए –

शनिवार से शनिवार तक नित्य रात को 12 बजे बच्चे की शिखा से 2-4 बाल काटकर इन्हें एकत्रित करके दरवाजे की चैखट पर जलाकर पैर से मसल देने से बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ जाती है।

स्मृति बढ़ाने का मंत्र-
"ॐ ऐं स्मृत्ये नमः" प्रातः सायं 1-1 माला का जाप।

* धन के लिए टोटका- शनिवार को सायं उड़द के दो दाने साबुत लेकर उनको पीपल के पत्ते पर रखकर दही व सिंदूर डालकर पीपल वृक्ष की जड़ में रख दें। यह मंत्र बोलकर-

।।ॐ ह्रीं मम कार्य सिद्धि कुरू-कुरू स्वाहा।।

यह क्रिया 21 दिन तक प्रतिदिन करते रहें। लौटते समय पीछे मुड़ कर नहीं देखें। धन लाभ अवश्य होगा।

- किसी को समारोह के लिए भोजन बनाना है तो भोजन से पहले एक बिछाकर ढंक दें तथा एक लकड़ी का कोयला बीच में छिपाकर रख दें। वहां घी का दीपक हर समय जलाते रहें तो सामान की कमी नहीं आयेगी।

* यदि घर में या दुकान में ब्रह्म मुहूर्त में झाडू दी जाय तो लक्ष्मी जी की सदा कृपा रहेगी व घर में सुख शांति।

कुत्ता काटने पर उपाय:

गुड़, सरसों का तेल, आक का दूध-इन सबको मिश्रित कर प्रभावित अंग पर लेप करने से विष समाप्त हो जाता है।

पागल कुत्ते का विष मिटाने का उपाय
-एक घृत कुमारी का पत्ता- सेंधा नमक पीसकर आग पर गर्म करके तीन दिन तक बांधने पर कुत्ते का विष नष्ट हो जाता है।

सभी प्रकार के विष का प्रभाव दूर करने का उपाय।

- हल्दी - दारूहल्दी, मंजिष्ठा तथा नागकेसर को पीसकर लेप लगा देने से कुत्ता का विष चला जाता है।

- करंजबीज व सरसों को तिल के साथ पीसकर प्रभावित अंग पर लेप करने से किसी भी विषैले कीट के विष का असर समाप्त हो जाता है।

- एरंड के तेल का लेप करने से भी सभी तरह के विष का असर दूर होता है।


दुर्भाग्य से छुटकारा पाना:

शनिवार को सरसों के तेल में बने, गेहूं के आटे के गुड़ के सात पूए व आक के फूल तथा सिंदूर एवं आटे से तैयार किया गया दीपक जलाकर अरन्डी के पत्ते पर रखकर रात्रि में किसी चैराहे पर रख दें तथा यह कहें कि हे ! मेरे दुर्भाग्य मैं तुम्हें यहीं पर छोड़कर जा रहा हूं। अब मेरे पास मत रहना, न मुझे कष्ट पहुंचाना। पीछे को मुड़ कर मत देखें।

जिस स्थान पर कीड़े, मकोड़े अधिक मात्रा में निकलते हों उस स्थान पर अपने बाएं पैर का जूता उल्टा करके रख दें। इस क्रिया से जो कीड़े मकोड़े हैं वह पुनः बिल में घुस जायेंगे।

किसान अश्लेषा नक्षत्र में कहीं से बरगद का पत्ता लाकर अपने अनाज के भंडार में रख दे तो अनाज का भंडार सदा भरा रहेगा व वृद्धि होगी।

सुदर्शन की जड़ और अपामार्ग की जड़ या फिर सफेद घुघनी की जड़ को यदि कोई ताबीज में रख कर अपनी पूजा स्थल में बांधकर रखता है तो उसकी शस्त्राघात से सदैव रक्षा रहेगी।


किसानों के लिए टोटका:

सफेद सरसों और बालू एक साथ मिलाकर खेत के चारों ओर डालने भरणी नक्षत्र में देशी पान का पत्ता लाकर उसे सुपारी व कत्थे से बीड़ा बनाकर जहां से वस्तु चोरी हुई है वहां पर रखने से चोरी का रहस्य खुल जाता है। सात दिन तक प्रतीक्षा करें।

1- जिसके शरीर में किसी भूत-प्रेत की आत्मा का वास है, यदि लहसुन के रस में हींग को घोलकर उसकी आंख में काजल की मोती लगा दी जाय अथवा नाक में उसे सूंघा दिया जाय तो ऊपरी बाधा तुरंत शरीर से निकल जाती है।

2- पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बहेड़े का पचा लकर उसे घर में पूजा के स्थान पर रखने से उसके ऊपर घातक त्रांत्रिक क्रियायें नहीं चलती हैं अथवा मूठ आदि अथवा जो भूत पिशाचनी आदि को छेड़ते हैं वह देखते ही भाग जाती है।

3- पुनर्वसु नक्षत्र में मेहंदी की जड़ को लाकर उसको धूप दीप से पूजन कर अपने पास में रखने से आकर्षण होता है एवं शरीर स्वस्थ रहता है।

4- मघा नक्षत्र में पीपल की जड़ को लाकर उसको पवित्र कर धूप दीप देकर यह मंत्र बोलें "।। दुर्गे दुर्गे राक्षिणी स्वाहा।।" रात्रि में कोई बुरा स्वप्न व भयानक स्वप्न कभी नहीं दिखाई देगा।





आदेश.....

विषेश टोटके,भाग-1.

1. मोहन तंत्र प्रयोग:

जिस कर्म के द्वारा किसी स्त्री या पुरुष को अपने प्रति मुग्ध करने का भाव निहित हो, वो ‘मोहनकर्म’ कहलाता है। मोहन अथवा सम्मोहन यह दोनों प्रायः एक ही भाव को प्रदर्शित करते हैं। मोह को ममत्व, प्रेम, अनुराग, स्नेह, माया और सामीप्य प्राप्त करने की लालसा का कृत्य माना गया है। मोहन कर्म की यही सब प्रतिक्रियाएं होती हैं। निष्ठुर, विरोधी, विरक्त, प्रतिद्वंदी अथवा अन्य किसी को भी अपने अनुकूल, प्रणयी और स्नेही बनाने के लिए मोहन कर्म का प्रयोग किया जाता है। मोहन कर्म के प्रयोगों को सिद्ध करने के लिए पहले निम्नलिखित मंत्र का दस हजार जप करना चाहिए।

।।ॐ  नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यश्च मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा ।।

प्रयोग से पूर्व प्रत्येक तंत्र को पहले उपर्युक्त मंत्र से अभिमंत्रित कर लेना चाहिए। मोहन कर्म के प्रयोग निम्नलिखित है:-

1. तुलसी के सूखे हुए बीज के चूर्ण को सहदेवी के रस में पीसकर ललाट पर तिलक के रूप में लगाएं।

2. असगंध और हरताल को केले के विविध तंत्र प्रयोग रस में अच्छी तरह से पीसकर उसमें गोरोचन मिलाएं तथा मस्तक पर तिलक लगाएं तो देखने वाले मोहित हो जायेंगे।

3. वच, कूट, चंदन और काकड़ सिंगी का चूर्ण बनाकर अपने शरीर तथा वस्त्रों पर धूप देने अथवा इसी चूर्ण का मस्तक पर तिलक लगाने से मनुष्य, पशु, पक्षी जो भी देखेगा मोहित हो जाएगा। इसी प्रकार पान की मूल को घिसकर मस्तक पर उसका तिलक करने से भी देखने वाले मोहित होते हैं।

4. केसर, सिंदूर और गोरोचन इन तीनों को आंवले के रस में पीसकर तिलक करने से लोग मोहित होते हैं।
5. श्वेत वच और सिंदूर पान के रस में पीसकर एवं तिलक लगाकर जिसके भी सामने जाएंगे वो मोहित हो जाएगा।

6. अपामार्ग (जिसे औंगा, मांगरा या लाजा भी कहते हैं) धान की खील और सहदेवी - इन सबको पीसकर उसका तिलक करने से व्यक्ति किसी को भी मोहित कर सकता है।

7. श्वेत दूर्वा और हरताल को पीसकर तिलक करने से मनुष्य तीनों लोकों को मोहित कर लेता है।

8. कपूर और मैनसिल को केले के रस में पीसकर तिलक करने से अभीष्ट स्त्री-पुरुष को मोहित कर सकता है।

9. तंत्र साधक गूलर के पुष्प से कपास के साथ बत्ती बनाए और उसको नवनीत से जलाए। जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल पारे तथा उस काजल को रात्रिकाल में अपनी आंखों में आंज ले। इस काजल के प्रभाव से वो सारे जगत् को मोहित कर लेता है। ऐसा सिद्ध किया हुआ काजल कभी किसी को नहीं देना चाहिए।

10. श्वेत धुंधली के रस में ब्रह्मदंडी की मूल को पीसने के बाद शरीर पर लेप करने से सारा संसार मोहित हो जाता है।

11. बिल्व पत्रों को लाने के बाद उन्हें छाया में सुखा लें। फिर उन्हें पीसकर कपिला गाय के दूध में मिलाकर गोली बना लें। उस गोली को घिसकर तिलक करने से देखने वाला तन, मन और धन से मोहित हो जाएगा।

12. श्वेत मदार की मूल और श्वेत चंदन-इन दोनों को पीसकर उसका शरीर पर लेप करें। इस क्रिया से किसी को भी सहज ही मोहित किया जा सकता है।

13. श्वेत सरसों को विजय (भांग) की पत्ती के साथ पीसकर मस्तक पर लेप करें। अब जिसके सामने भी जाएंगे वो मोहित हो जाएगा।

14. तुलसी के पत्तों को लाकर उन्हें छाया में सुखा लें। फिर उनमें विजया यानी भांग के बीज तथा असगंध को मिलाकर कपिला गाय के दूध में पीस लें। तत्पश्चात उसकी चार-चार माशे की गोलियां बनाकर प्रातः उठकर खाएं। इससे सारा जगत मोहित हुआ प्रतीत होता है।

15. कड़वी तुंबी के बीजों के तेल में कपड़े की बत्ती बनाकर जलाएं और उससे काजल पार कर आंखों में अंजन की भांति लगाएं। अब जिसकी तरफ भी दृष्टि उठाकर देखेगें, वो मोहित हो जाएगा।

16. अनार के पंचांग को पीसकर उसमें श्वेत धुंधली मिलाकर मस्तक पर तिलक लगाएं। इस तिलक के प्रभाव से कोई भी मोहित हो सकता है।



2. स्तंभन तंत्र प्रयोग:

स्तंभन क्रिया का सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। बुद्धि को जड़, निष्क्रय एवं हत्प्रभ करके व्यक्ति को विवेक शून्य, वैचारिक रूप से पंगु बनाकर उसके क्रिया-कलाप को रोक देना स्तंभन कर्म की प्रमुख प्रतिक्रिया है। इसका प्रभाव मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर पर भी पड़ता है। स्तंभन के कुछ अन्य प्रयोग भी होते हैं। जैसे-जल स्तंभन, अग्नि स्तंभन, वायु स्तंभन, प्रहार स्तंभन, अस्त्र स्तंभन, गति स्तंभन, वाक् स्तंभन और क्रिया स्तंभन आदि। त्रेतायुग के महान् पराक्रमी और अजेय-योद्धा हनुमानजी इन सभी क्रियाओं के ज्ञाता थे। तंत्र शास्त्रियों का मत है कि स्तंभन क्रिया से वायु के प्रचंड वेग को भी स्थिर किया जा सकता है। शत्रु, अग्नि, आंधी व तूफान आदि को इससे निष्क्रिय बनाया जा सकता है। इस क्रिया का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए तथा समाज हितार्थ उपयोग में लेना चाहिए। अग्नि स्तंभन का मंत्र निम्न है।

।। ॐ नमो अग्निरुपाय मम् शरीरे स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा ।।

इस मंत्र के दस हजार जप करने से सिद्धि होती है तथा एक सौ आठ जप करने से प्रयोग सिद्ध होता है। स्तंभन से संबंधित कुछ प्रयोग निम्नलिखित है:

1. घी व ग्वार के रस में आक के ताजा दूध को मिलाकर, शरीर पर उसका लेप करने से भी अग्नि स्तंभन होता है।

2. केले के रस में घृतकुमारी व ज्वारपाठा के रस को मिलाकर शरीर पर लेप करने से शरीर अग्नि में घिरा होने पर भी नहीं जलता है।

3. पीपल, मिर्च और सौंठ को कई बार चबाकर निगल लें। इसके पश्चात् मुंह में जलता हुआ अंगारा भी रखें, तब भी मुंह नहीं जलेगा।

4. चीनी के साथ गाय के घृत को पीकर अदरक के टुकड़े को मुंह में डालकर चबाएं फिर तपे हुए लोहे के टुकड़े को मुंह में रखे तो वह भी बर्फ की भांति ठंडा प्रतीत होगा।

5. ।। ॐ नमो दिगंबराय अमुकस्य स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा।।
अयुत जपात् मंत्रः सिद्धो भवति। अष्टोत्तर शत जपात् प्रयोगः सिद्धो भवति। उपर्युक्त मंत्र का दस हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है और आवश्यकता होने पर एक सौ आठ बार जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र - ‘अमुकस्य’ के स्थान पर जिसके आसन पर स्तंभन करना हो उसका नाम लेना चाहिए।

6. भांगरे के रस में सरसों (सफेद) को पीसकर, मस्तक पर उसका लेप करके जिसके सम्मुख भी जाएंगे उसकी बुद्धि का स्तंभन हो जाएगा।

7. अपामार्ग और सहदेई को लोहे के पात्र में डालकर पींसें और उसका तिलक मस्तक पर लगाएं। अब जो भी देखेगा उसका स्तंभन हो जाएगा।

8. भांगरा, चिरचिटा, सरसों, सहदेई, कंकोल, वचा और श्वेत आक इन सबको समान मात्रा में लेकर कूटें और सत्व निकाल लें। फिर किसी लोहे के पात्र में रखकर तीन दिनों तक घोटें। अब जब भी उसका तिलक कर शत्रु के सम्मुख जाएंगे, तो उसकी बुद्धि कुंठित हो जाएगी।

9. ।। ॐ नमो भगवते महाकाल पराक्रमाय शत्रूणां शस्त्र स्तंभन कुरु-कुरु स्वाहा।
प्रयोग विधि मंत्र: एक लक्ष जपामंत्रः सिद्धो भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशत जपात् प्रयोगः सिद्धयति ध्रुवम्।। उपरोक्त मंत्र का एक लाख जप करने से वह सिद्ध हो जाता है और जब इसका प्रयोग करना हो, एक सौ आठ बार पुनः जप कर प्रयोग करें तो यह प्रयोग सफल होता है।

10. पुष्य नक्षत्र वाले रविवार के दिन अपराजिता की मूल को उखाड़कर मुंह में रखने अथवा सिर पर धारण करने से शस्त्र स्तंभन हो जाता है।

11. रवि पुष्य के दिन श्वेत गुंजा की मूल को लाकर धारण करें तो युद्ध में शत्रु के शस्त्र का भय नहीं रहता अथवा उसके शस्त्र का स्तंभन हो जाता है।

12. खजूर की मूल को पैर और हाथ में धारण करने से खंजर-शस्त्र का स्तंभन हो जाता है।

13. जामुन की मूल को हाथ पर और केबड़े की मूल को मस्तिष्क पर तथा ताड़ की मूल को मुंह में रखने से शस्त्र चाहे जिस प्रकार हो, उसका स्तंभन हो जाता है। इन तीनों जड़ों का चूर्ण बनाकर घृत के साथ सेवन करने से आक्रमणकारी के शस्त्र का स्तंभन हो जाता है।

14. चमेली की मूल को मुख में रखने से किसी भी शस्त्र का भय नहीं रहता। रविवार को पुष्य नक्षत्र आने पर अपामार्ग की मूल लाकर उसे पीस लें और शरीर पर उसका लेप करें तो सभी प्रकार के शस्त्र से स्तंभन हो जाता है।

15. ।।ॐ नमः काल रात्रि त्रिशूलधारिणी। मम शत्रुसैन्य स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा।।
एक लक्षजपाच्यापं मंत्रः सिद्धः प्रजायते। उपरोक्त शतजपात् प्रयोगे सिद्धिरूतमा।। से भी गर्भ स्तंभन होता है। रविवार के दिन जब पुष्य नक्षत्र हो, तब काले धतूरे की मूल लाकर गर्भिणी स्त्री की कमर में बांध दें। इससे गर्भ का स्तंभन होता है।

16. मिट्टी के एक पात्र में श्मशान की भस्म से शत्रु का नाम लिखें और उसे नीले सूत्र से बांधकर एक गहरे गड्ढे में गाड़ दें। तदनंतर उस पर एक पत्थर रखकर ढांप दें। ऐसा करने से शत्रु की पूरी सेना का ही स्तंभन हो जाता है।

17. ।।ॐ नमो भगवते महारौद्राय गर्भस्तंभनं कुरू कुरू स्वाहा।।
इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए 1 लाख जप करना जरूरी है। अन्यथा प्रयोग सफल नहीं होंगे। जब भी प्रयोग करना हो तो एक सौ आठ बार जप अवश्य करें।
प्रयोग:

18. केशर, शक्कर, ज्वारपाठा और कुंदपुष्प को समान मात्रा में शहद में मिलाकर खाने से गर्भपात से रक्षा होती है।

19. ऋतुस्नाता स्त्री यदि रेंडी के बीज को निगल ले तो उसका गर्भ कभी नहीं गिरता। कमर में धतूरे का बीज बांधन घर में हर समय कलह बनी रहेगी।

20. कुम्हार के हाथ से लगी हुई चाक की मिट्टी को शहद में मिलाकर बकरी के दूध के साथ सेवन करने से गर्भ का स्तंभन होता है।

3. विद्वेषण तंत्र प्रयोग:

‘ द्वेष’ का अर्थ है दूसरों के लाभ में अवरोध उत्पन्न करना है इसी द्वेष भावना का क्रियात्मक रूप ‘विद्वेषण’ कहलाता है। इसका मुख्य उद्देश्य होता है किन्हीं दो लोगों के बीच फूट, विद्रोह, उपद्रव, अविश्वास और शत्रुता के भाव उत्पन्न करके विघटन की उत्पत्ति करना।
ऊँ नमो नारदाय अमुकस्याकेन सहविद्वेषणम् कुरु-कुरु स्वाहा। इस मंत्र का एक लाख जप करने से यह सिद्ध हो जाता है और जब कोई तंत्र प्रयोग करना हो तो पहले मंत्र का एक सौ आठ बार जप करके सिद्धि प्राप्त कर लेनी चाहिए। मंत्र में अमुक के स्थान पर जिस पर प्रयोग करना हो उसके नाम का उच्चारण करें।

प्रयोग:

1. शेर और हाथी के दांतों को गाय के मक्खन के साथ पीसकर जिनके नामों से आग में हवन किया जाएगा, वे विद्वेषण के प्रभाव में आ जाएंगे।

2. कुत्ते के बाल तथा बिल्ली का नाखून मिलाकर जहां जलाया जाएगा वहां के लोगों में विद्वेषण उत्पन्न हो जाएगा।

3. साही का कांटा जिसके मकान के मुख्य द्वार पर गाड़ दिया जाएगा, उस उपर्युक्त मंत्र के एक लाख जप से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और प्रयोग के समय एक सौ आठ बार जप करके प्रयोग करने से सैन्य स्तंभन होता है।

4. जब कभी भी दो व्यक्तियों के बीच द्वेष उत्पन्न करना हो, तो उनके पैरों की मिट्टी को सान एवं गूंधकर उससे एक पुतली बनाएं और श्मशान में ले जाकर उसे भूमि में गाड़ दें। इस क्रिया को करने से उनके बीच द्वेष उत्पन्न हो जाएगा।

5. कोई भाषण या समारोह चल रहा हो, तो भैंसे और घोड़े के बालों को परस्पर मिलाकर जलाएं। इससे सभा या समारोह में भगदड़ मच जाएगी।

6. एक हाथ में कव्वे का पंख और दूसरे हाथ में उल्लू का पंख लेकर विद्वेषण के मंत्र से अभिमंत्रित करें और उन दोनों पंखों को फिर काले सूत से बांधकर जिस घर में गाड़ दिया जाएगा, उस घर में रहने वालों का आपस में झगड़ा हो जाएगा।




आदेश.....