28 Dec 2017

गुप्तकाली साधना




महाकाली को ही महाकाल पुरुष की शक्ति के रूप में माना जाता है । महाकाल का कोई लक्षण नहीं, वह अज्ञात है, तर्क से परे है । उसी की शक्ति का नाम है महाकाली । सृष्टि के आरंभ में यही महाविद्या चतुर्दिक विकीर्ण थी । महाकाली शक्ति का आरंभ में यही महाविद्या चतुर्दिक विकीर्ण थी । महाकाली शक्ति का आरंभिक अवतरण था । यही कारण है कि आगमशास्त्र में इसे प्रथमा व आद्या आदि नामों से भी संबोधित किया गया है ।

आगमशास्त्र में रात्रि को महाप्रल्य का प्रतीक माना गया है । रात के १२ बजे का समय अत्यंत अंधकारमय होता है । यही कालखंड महाकाली है । रात के १२ बजे से लेकर सूर्योदय होने से पहले तक संपूर्ण कालखंड महाकाली है । रात के १२ बजे से लेकर सूर्योदय होने से पहले तक संपूर्ण कालखंड महाकाली है । सूर्योदय होते ही अंधकार क्रमश: घटता जाता है । अंधकार के उतार-चढाव को देखते हुए इस कालखंड को ऋषि-मुनियों ने कुल ६२ विभागों में विभाजित किया है । इसी प्रकार महाकाली के भी अलग-अलग रूपों के ६२ विभाग हैं । शक्ति के अलग-अलग रूपों की व्याख्या करने के उद्देश्य से ऋषि-मुनियों ने निदान विद्या के आधार पर उनकी मूर्तियां बनाईं ।


समस्त शक्तियों को अचिंत्या कहा गया है । वे अदृश्य और निर्गुण हैं । शक्तियों की मूर्तियों को उनकी काया का स्वरूप मानना चाहिए ।

अचिंत्यस्थाप्रामैयस्य निर्गुणस्य गुणात्मनः ।
उपासकानां सिद्धयर्थ ब्रह्मणों रूपकल्पना ॥

अर्थात:शक्तियों के रूप की कल्पना करते हुए काल्पनिक मूर्तियों का इसलिए निर्माण किया गया, ताकि उनकी उपासना की जा सके तथा उनके रूप के दर्शन किए जा सकें ।


यह साधना महाकाली जी के गोपनीय रूप का साधना है जिसे गुप्तकाली कहा जाता है,गुप्तकाली मंत्र साधना से गोपनीय ज्ञान के साथ साथ गुप्त शक्तियाँ और सिद्धिया साधक प्राप्त कर सकता है । जिसने यह साधना किसी भी ग्रहण काल (101 माला जाप ) में कर ली तो समझ जाएंगे कि इसी साधना के माध्यम से उसने कई सिद्धियों को प्राप्त करने हेतु अपना जीवन तंत्र शास्त्र हेतु समर्पित कर दिया है । इस साधना में मंत्र जाप हेतु मुख दक्षिण दिशा में और काले रंग के वस्त्रों का उपयोग होगा । साधना रात को करना है,किसी भी समय 9 बजे के बाद और साधना किसी भी अमावस्या से प्रारंभ करे । काली हकीक माला और काली विग्रह आप मार्केट से खरीद ले और दोनों का प्राण-प्रतिष्ठा विधि इस ब्लॉग पर 2013 के आर्टिकल्स में मिल जाएगा ।



दाहिने हाथ मे जल लेकर विनियोग मंत्र बोलकर जल को जमीन पर छोड़ दे ।

विनियोग-
।। अस्य श्री गुप्तकाली मंत्रस्य भैरव ऋषिः उष्णिक् छन्दः, गुप्त कालिके देवता, क्रीं बीजम्, हूं शक्तिः, क्रीं कीलकम्, ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोगः ।।


ऋष्यादिन्यास:-
ॐ भैरव ऋषये नमः (शिरसि) ।
उष्णिक्छन्दसे नमः (मुखे) ।
गुप्तकालिका देवतायै नमः (ह्रदि) ।
क्रीं बीजाय नमः (गुहये) ।
हूं शक्तये नमः (पादयो:) ।
क्रीं कीलकाय नमः (नाभौ) ।
विनियोगाय नमः (सर्वाङ्गे) ।


करन्यास:-
ॐ क्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ क्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ क्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ क्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ क्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ क्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।


हृदयादि न्यास:-
ॐ क्रां ह्रदयास नमः ।
ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ क्रूं शिखायै वषट् ।
ॐ क्रैं कवचाय हुम् ।
ॐ क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ क्रः अस्त्राय फट् ।


अक्षर न्यासः-
ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लृं लृं नमो (हृदि)
ॐ एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं नमो (दक्ष भुजे)
ॐ ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं नमो वाम (भुजे)
ॐ णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं नमो दक्ष (पादे)
ॐ मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं नमो वाम (पादे) (इत विन्यासः)


सर्वांग न्यास :-
ॐ क्रीं नमः (ब्रह्मरन्ध्रे) ।
ॐ क्रीं नमः (भ्रू मध्ये) ।
ॐ क्रीं नमः (ललाटे) ।
ॐ ह्नीं नमः (नाभौ) ।
ॐ ह्नीं नमः (गुह्ये) ।
ॐ ह्नूं नमः (वक्त्रे) ।
ॐ ह्नूं नमः (गुर्वङ्गे) ।


ध्यान:-
ॐ शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम् ।
चतुर्भुजां खङ्गमुण्डवराभय करां शिवाम् ॥
मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम् ।
एवं सञ्चिन्तयेत्कालीं श्मशानालय वासिनीम् ॥
(कालीतंत्रानुसार)


पुष्पों का आसन बनाए और मंत्र बोलकर काली विग्रह को आसन पर स्थापित करे-
ॐ सदाशिव महाप्रेताय गुप्तकाल्यासनाय नमः ।


पीठशक्ति पूजा (काली जी के विग्रह पर कुंकुम से रंगे हुए चावल एक-एक मंत्र बोलकर चढ़ाये )-
ॐ जयायै नमः । ॐ विजयायै नमः । ॐ अजितायै नमः । ॐ अपराजितायै नमः । ॐ नित्यायै नमः । ॐ विलासिन्यै नमः । ॐ दोग्ध्रूयै नमः । ॐ अघोरायै नमः । ॐ मङ्गलायै नमः ।


इसके पश्चात गुप्त काली के यंत्र अथवा काली जी के मूर्ति को तांबे के पात्र में रखकर, उसे घृत द्वारा अभ्यंग-स्नान कराएं । फिर उसके ऊपर दुग्ध-धारा तथा जल-धारा छोडकर स्वच्छ वस्त्र में लपेटे और "ॐ ह्नीं कालिका योग पीठात्मने नमः" मंत्र द्वारा पुनः पुष्पादि असान देकर, पीठ के मध्यभाग में स्थापित करे ।


गुप्त काली अठारह वर्णीय मंत्र-

।। क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं गुप्तकालीके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।।

Kreem kreem hoom hoom hreem hreem guptakalike kreem kreem hoom hoom hreem hreem swaahaa



उक्त मंत्र मनोकामनापूरक है साधक के सभी कष्टो का हरण करने में सहाय्यक है,निर्भयता पूर्वक मंत्र का जाप नित्य 11 माला 21 दिनों तक करे तो संभव है के माँ भगवती गुप्तकाली जी के दर्शन हो सकते है । यह साधना प्रत्येक साधक को करना चाहिए ताकी उसे सभी प्रकार के साधना में सिद्धि प्राप्त हो । इस साधना के उपरांत साधक अन्य साधनाओ में सिद्धी प्राप्त करने में एक सफल साधक बन जाता है ।


बलिदान मंत्र :-
(बलिदान मंत्र साधना समाप्ति के आखरी दिन बोलकर एक अनार का बलि दे)
ऐह्येहि गुप्तकालिके मम बलि गृहण गृहण मम शत्रून् नाशय नाशय खादय खादय स्फुट स्फुट स्फुट छिन्धि सिद्धि देहि हूं फट् स्वाहा ।

कई स्थानों पर बलि के नाम पर पशुओं का बलि दिया जाता है जो बहोत दुखद है,हमेशा तंत्र शास्त्र में अनार का बलि देना सिद्धप्रद माना जाता है ।


जप समर्पण - मन्त्र जप पूरा करके उसे भगवती को समर्पण करते हुए कहें -
गुह्यति गुह्य गोप्त्री त्वं, गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥

इस प्रकार देवी के बाएँ हाथ में पुष्प के रूप में मतलब एक पुष्प चढ़ाकर जप समर्पण करे ।

नोट-जिन्हें न्यास करने में कठिनाई आती हो वह साधक विनियोग-ध्यान मंत्र बोलकर मुख्य मंत्र जाप कर सकते है ।

इस प्रकार से यह गोपनीय गुप्त काली साधना सम्पन्न किया जाता है और इस साधना से समस्त प्रकार की इच्छाओं को भी पूर्ण किया जा सकता है । साधना की सफलता साधक के विश्वास, श्रद्धा और मेहनत पर आधारित होती है,इसलिए मन के मैल को हटाकर बिना किसी किन्तु परंतु के साधना संपन्न करे ।




अपनो से अपनी बात-
हमारे देश में किसानों की आत्महत्या को एक लो-प्रोफाइल केस माना जाता है। ना तो कोई मदद करने वाला आता है ना ही मीडिया किसी कवरेज को प्राथमिकता देता है। बाकि सरकारों के पास अपना दुखड़ा रोने के लाखों बहाने होते है। सहायता के नाम पर घोषणाएं तो बहुत होती है पर इनमें से कितनी पूरी होती है ये तो हम सबको पता है। ऐसे में अग घोषणाओं के इस दौर में कोई वाकई मदद को आगे आता है वो वाकई किसी दूत से कम नहीं होता।
नाना पाटेकर साहब किसानों की आत्महत्या रोकने तथा उनकी समस्याएं दूर करने के लिए कई प्रकार की पहलें कर रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के किसानों को आर्थिक सहायता भी दी है। ऐसे महान व्यक्तित्व को मैं प्रणाम करता हूँ और आज उनका जन्मदिन भी है तो इस अवसर पर उनको जन्मदिन की बहोत बहोत शुभकामनाएं......


बड़े पर्दे पर अपनी ऐक्टिंग से लोगों का दिल जीतने वाले मशहूर थिअटर और फिल्म ऐक्टर नाना पाटेकर अब रियल लाइफ हीरो भी साबित हो गए हैं। अपने साथी और मराठी ऐक्टर मकरंद अनासपुरे के साथ मिलकर नाना ने 'नाम फाउंडेशन' की स्थापना की है।
'नाम फाउंडेशन' की स्थापना का उद्देश्य उस किसान समुदाय की मदद करना है,जिनकी परिस्थितियां काफी दुखद हैं। इसके तहत जो भी चीजें संभव हो सकेंगी, वह किसानों को मुहैया कराई जाएंगी। इसके जरिए कोशिश की जाएगी कि देश में किसानों की आत्महत्या में कमी हो।


हमने कई बार फिल्म स्टार्स की ऐसी कहानियां सुनी होंगी जो जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं लेकिन नाना ने अपनी कमाई का 90 फीसदी पैसा इस फाउंडेशन को डोनेट किया है और इस तरह नाना ऐसे पहले ऐक्टर हैं।
नाना को हमेशा लगता है कि राज्य में किसानों की स्थिति बेहतर होनी चाहिए और इसीलिए उन्होंने इस फाउंडेशन की शुरुआत की है। बता दें, 'नाम फाउंडेशन' एक गैर सरकारी फाउंडेशन है जो महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे सूखा प्रभावित इलाकों में किसानों की बेहतरी के लिए काम करता है ।


महाराष्ट्र में मराठवाड़ा और विदर्भ के किसानों को खुदकुशी करता देख नाना ने उन्होंने अलग अलग इलाकों में जाकर किसानों की करीब 300 विधवाओं को 15,000-15000 रुपये की आर्थिक मदद दी। नाना पाटेकर से प्रभावित होकर बॉलीवुड के सुपरस्टार अक्षय कुमार भी आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवारों की मदद के लिए आगे आए। अक्षय ने 180 परिवारों को 50-50 हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी। अभी हाल ही में क्रिकेटर अजिक्य रहाणे ने किसानों के लिए आगे बढ़कर कदम बढ़ाते हुए सीएम देवेन्द्र फणनवीस को किसानों की मदद के लिए 5 लाख रूपये डोनेट किये।
हो सके तो आप सभी सज्जन नाना पाटेकर साहब के "नाम फाउंडेशन" में अपने योग्यता नुसार कुछ धनराशि अवश्य ही दान करे और सही मायनों में पूण्य के भागीदार बने । मैने भी किसानों के मदत हेतु एक अच्छा प्रयास किया था परंतु मैं उसमें असफल राहा, इस वर्ष मेरा एक ही संकल्प है के ज्यादा से ज्यादा सज्जन लोग "नाम फाउंडेशन" जुड़कर अपना योगदान दे ।

मातारानी आप सभी पर कृपा करें,यही नववर्ष पर कामना करता हूँ ......



आदेश......


11 Dec 2017

शाबर शक्ति मंत्र साधना



परेशान ना हुआ करो,किसीके बातो से........
कुछ लोग पैदा ही बकवास करने के लिए होते है ।

यह वाक्या बहोत अच्छा है जीवन मे तनावग्रस्त ना रहने के लिए । आजकल बड़ा गंदा माहौल बना हुआ है,जहां देखो वहां सिर्फ चर्चाएं चल रही है । कोई राजनीति पर,कोई फिल्मों पर तो कोई आस-पास के रहेनेवालो पर चर्चाओं से व्यस्ततम है । स्वयं के लिए भी कुछ समय निकालो और अपने आप से अपने लिये चर्चा करो,गारंटी के साथ बोल रहा हु "बहोत ज्यादा हद तक तनाव कम हो जायेगा और जीवन में कुछ करने की चाहत बढ़ेगी" । हमेशा याद रखो के मूर्खो से जितने वालो को महामूर्ख कहा जाता है,इसलिये व्यर्थ की बाते और व्यर्थ की लड़ाईया बुरे ही परिणाम देती है । पाणी बचाओ तो सभी कहेते है परंतु आनेवाले नए वर्ष में समय बचाओ का संकल्प अवश्य ही लीजिए ।


आज लिखने का विषय यही है,आप कुछ समय मंत्र जाप के लिए भी निकाल ही लो । इसमें आपको कोई नुकसान नही होगा और मातारानी ने चाहा तो फायदा ही होगा । आज एक आवश्यक साधना दे रहा हु जो किसी भी किताब में छपी नही है और मैं इस मंत्र का जाप शुभ समयो पर 14 साल से करता आरहा हु । मुझे और मेरे सभी पहेचान वालो को फायदा हुआ है,किसी को जल्द फायदा हुआ है तो किसीको देर से फायदा हुआ है परंतु फायदा सभी को हुआ है और आपको भी हो सकता है । इस साधना में साधना सामग्री बहोत सस्ती है जैसे कपूर,धूपबत्ती और माचीस । मंत्र जाप के समय कपूर बुझना नही चाहिए और सुगंधित धूपबत्ती से आपको आध्यात्मिक वातावरण बनाके रखना है । आसान कोई भी चलेगा, किसी भी रंग का चलेगा । दिशा का कोई बंधन नही,जहां चाहो वहां मुख करके बैठ सकते हो परंतु पूर्व/उत्तर दिशा मंत्र जाप हेतु अच्छा माना जाता है । साधना जाप के लिये समय का कोई पाबंदी नही है,चाहो उतना जाप करो और जब भी साधना हेतु समय दे सकते हो उसी समय जाप कर लिया करो । संसार के किसी भी शुद्ध या पवित्र स्थान पर सुखासन में बैठकर कर जाप कर सकते हो,जरूरी नही के मंत्र जाप पूजाघर में ही करना है । साधना किसी भी दिन से शुरू कर सकते हो और जब तक साधना करने की क्षमता हो तब तक तो अवश्य ही किया करे । साधारणत: मंत्र सिद्धि हेतु साधना 21 दिनों तक करे और हो सके तो निच्छित समय पर बैठकर कर उचित संख्या में जाप करे । उचित संख्या में जाप करने का अर्थ है जैसे 108 बार या 1008 बार मंत्र जाप करना ।

जिस तरह मेरे गुरुजी ने मुझे समझाया था,वैसे ही समझाने की कोशिश मैने की है और आपको इस साधना के माध्यम से श्रेष्ठ प्रकार के लाभ मिले यहां गुरुचरणों में प्रार्थना है । इस एक शक्ति साधना है,यहां शक्ति साधना का अर्थ है देवी साधना । यह मंत्र देवों के लिये नही है सिर्फ देवी से संबंधित है,इस प्रकार के अन्य भी शाबर मंत्र है जो शक्तिपूर्ण है । इस शाबर शक्ति मंत्र से आप किसी भी देवी की कृपा और सिद्धि प्राप्त कर सकते है, यह एक ग्रामीण भाषा से निर्मित मराठी मंत्र है । महाराष्ट्र में नाथ सम्प्रदाय के जनक नवनाथों में से गुरु मच्छीन्द्रनाथ, गहिनीनाथ, जालिंदारनाथ, कानिफनाथ, सिद्ध रेवणनाथ,वट सिध्द नागनाथ , भर्तुहरिनाथ भगवान की समाधिया है । गुरु गोरखनाथ और गुरु चरपटनाथ आज भी चेतना के अवस्था मे जीवित जाग्रत है,इन्होने अपना देह त्याग नही किया । इसलिए महाराष्ट्र में ग्रामीण भाषा में बोली जानेवाले भाषा के प्रकार के लाखों शाबर मंत्र है जो किताबो नही अपितु यहां रहने वाले बुजुर्गों के पास सुरक्षित है ।


मंत्र-

।। आकाश पिता,धरतरी माता,जय महाकालि माता प्रसन्न होय आता,दुहाई गुरु गोरखनाथ की ।।


इस मंत्र से महाकालि जी को प्रसन्न किया जा सकता है,ठीक इसी तरह अगर आप किसी अन्य देवी को प्रसन्न करना चाहते हो तो महाकालि जी के जगह उस देवी का नाम बोलना होगा । एक बार उदाहरण के मंत्र लिख रहा हु "आकाश पिता,धरतरी माता,जय सरस्वती माता प्रसन्न होय आता,दूहाई गुरु गोरखनाथ की",  तो इस तरह से आप अपनी इष्ट देवी को प्रसन्न कर उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हो । इसी मंत्र साधना पर एक बार ओर मैं लिखूंगा आनेवाले चंद्रग्रहण के बाद और उसमें इसी मंत्र से किस प्रकार से हमे देवी के दर्शन प्राप्त हो सकते है,यह महत्वपूर्ण साधना लिखनेवाला हू ।

आनेवाले चंद्रग्रहण तक अवश्य ही आप ज्यादा से ज्यादा इस मंत्र साधना को सम्पन्न करे,इसमे आपको मातारानी के कृपा से जीवन मे अनेको समस्याओं से राहत मिल सकती है । मैने जब यह साधारण मंत्र समझकर अपने गुरु से ग्रहण किया था,तब सोचा नही था के यह मंत्र दिव्यता से पूर्ण है । आप स्वयं साधना करे और अपने अनुभव मुझे ईमेल से भेजिए ताकि मैं आपको आगे के साधना में मार्गदर्शन कर सकू और वह मार्गदर्शन इसी मंत्र साधना से संबंधित होगा ।

ईमेल-snpts1984@gmail.com



अब तो मैने अपना E-mail I.D. बदल दिया है क्युके निखिल शिष्यो को मेरे ईमेल में निखिल नाम होने से समस्या थी,जिस कारण मुझे यह करना पड़ा क्युके मैं किसीका दिल नही दुखाना चाहता हूँ । अगर मेरे पुराने ईमेल आई. डी. में निखिल नाम होने से आपके कोमल हृदय को ठेस पहोचता था तो शायद आपको यह बात मुझे ईमेल के माध्यम से बता देना चाहिए था । मैं अपने जीवन मे किसी भी गुरु के नाम से अपना ब्लॉग चलाना उचित नही समझता हूं,किसी भी संत,महात्मा या गुरु के नाम से ओ भी बिना उनके आज्ञा के यह कार्य करना इसे मैं स्वयं अपराध मान सकता हूँ । तो साधक मित्रो यह बात आप भी स्वीकार करे के किसी भी गुरु का फोटो लगाकर या फिर उनके नाम का इस्तेमाल करके यह ब्लॉग नही चलाया जा रहा है । 20 ऑक्टोम्बर के बाद आज पोस्ट लिख रहा हु क्युके मेरे जीवन मे भी व्यस्तता है और मेरे पास इतना समय नही रहेता है के मैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जाकर देखता रहू के मेरे बारे में कौन व्यक्ति बुरा या भला बोल रहा है । अब जितना भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कोई भी सज्जन मेरे बारे में अच्छा लिखे या फिर बुरा लिखे,लोग उनके लिखने के बाद वह पढ़कर ब्लॉग पढ़ते है और सभी पढ़ने वाले तारीफ ही करते है । इसी वजेसे से रोजाना ब्लॉग पढ़ने वालों की संख्या भी बढ़ रही है,यह तो आनंद की बात है । मैं बहोत दिनों से सोच रहा था के रोजाना ब्लॉग पढ़ने वालों की संख्या कैसे बढ रही है क्युके मैं नाही फ़ेसबुक पर हु और नाही मेरा कोई भी यूट्यूब चैंनल है,नाही मेरा कोई व्हाट्सएप ग्रुप है,मेरा तो इस पूरे संसार मे कोई शिष्य भी नही है जो मेरा या इस ब्लॉग का प्रचिती करे मतलब एडवरटाइजिंग करे । मेरे पास ना ब्लॉग लिखने का समय होता है ओर ना फोन उठाकर बात करणे के लिए ज्यादा समय होता है,इसलीये यह ब्लॉग कोई पैसा कमाने के लिए नही बनाया है । अगर इस ब्लॉग से पैसा कमाना होता तो एक महिने मे कम से कम मै 10-12 आर्टिकल लिखता और साथ मे इस ब्लॉग पर Google Adsense भी लगा देता जैसे बाकी वेबसाइट्स या ब्लॉग पर लगाया हुआ है । Google Adsense लगाकर पैसा कमाना तो बहोत आसान कार्य है और साथ मे अपना YouTube channel भी बनाकर पैसा कमा सकता था परंतु मैं अपने जीवन मे अपनी आमदनी से खुश हूं ।

अब मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया है,मेरे कई पुराने शत्रु है जब मैं फ़ेसबुक पर था और आज वही लोग फ़ेसबुक पर मेरे नाम को बदनाम करते रहते है,कोई इल्जाम करता है तो कोई चुगलीया करते रहता है जिस वजेसे मेरा बिना फ़ेसबुक पर रहने के बाद भी अच्छा खासा पब्लिसिटी हो रहा है । यह तो मातारानी की कृपा है के निःशुल्क में ही लोग मन मे गंदगी रखकर मुझे प्रसिद्ध कर रहे है,इस महान कार्य हेतु मेरे शत्रुओं को धन्यवाद ।

*एक बार फिर से लिख रहा हु,मेरा YouTube पर कोई भी channel नही है,facebook पर भी कोई account नही है और कोई भी whatsapp group नही है,यहां किसी भी प्रकार का कोई भी दीक्षा नही दिया जाता है । जिसे इस बात का परीक्षा लेना हो वह सज्जन व्यक्ति अपना कीमती समय निकालकर खोज कर सकता है । ब्लॉग पर अगले वर्ष से कार्य प्रारंभ होगा और मार्गदर्शन हेतु दिए जानेवाले पुराने ईमेल आई.डी. को हटाकर नया ईमेल आई.डी. snpts1984@gmail.com डाल दिया जायेगा । इस कार्य से निखिल शिष्यो को बेहद खुशी मिलेगा,यही आशा करता हू । मातारानी आप सभी पर कृपा बनाये रखे,यही मातारानी के चरणों मे प्रार्थना है ।



आदेश.........

30 Oct 2017

दिव्य पारद शिवलिंग



पारद शिवलिंग को लेकर हमारे शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है–

केदारदोनि लिंगानि, पृथिव्यां यानि कानिचित्।
तानि दृष्ट्ंवासु यत्पुण्यतत्पुण्यं रसदर्शनात्॥

अर्थात्:-केदार आदि पवित्र तीर्थस्थलों से लेकर पृथ्वी तल पर जितने भी शिवलिंग हैं उनके दर्शन से जो पुण्य मिलता है वही पुण्य पारद निर्मित शिवलिंग से सहज में ही प्राप्त हो जाता है और भी कहा है –

स्वयंभूलिंग साहस्त्रैः, यत्फलं सम्यगार्यनात्।
तत्फलं कोटि गुणितं, रसलिंगाच्र्चनाद् भवेत्॥

अर्थात्:-जो पुण्य हजार स्वनिर्मित पार्थिव शिवलिंग के पूजन से होता है, उससे करोड़ गुना फल पारद शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। पारद के शिवलिंग को शिव का स्वयं भू प्रतीक भी माना गया है,ऐसी अद्भुत महिमा है पारद के शिवलिंग की। आप भी इसे अपने घर में स्थापित कर घर के समस्त दोषों से मुक्त हो सकते हैं।



पारद शिवलिंग का विशेष महत्व–

पारद को भगवान् शिव का स्वरूप माना गया है और ब्रह्माण्ड को जन्म देने वाले उनके वीर्य का प्रतीक भी इसे माना जाता है। धातुओं में अगर पारद को शिव का स्वरूप माना गया है तो ताम्र को मां पार्वती का स्वरूप। इन दोनों के समन्वय से शिव और शक्ति का सशक्त रूप उभरकर सामने आ जाता है। ठोस पारद के साथ ताम्र को जब उच्च तापमान पर गर्म करते हैं तो ताम्र का रंग स्वर्णमय हो जाता है। इसीलिए ऐसे शिवलिंग को सुवर्ण रसलिंग भी कहते हैं।

पारद के इस लिंग की महिमा का वर्णन कई प्राचीन ग्रंथों में जैसे कि रूद्र संहिता, पारद संहिता, रस मार्तण्ड, ब्रह्म पुराण, शिव पुराण आदि में पाया जाता है। योग शिखोपनिषद ग्रन्थ में पारद के शिवलिंग को स्वयंभू भोलेनाथ का प्रतिनिधि माना गया है। इस ग्रन्थ में इसे महालिंग की उपाधि मिली है और इसमें शिव की समस्त शक्तियों का वास मानते हुए पारद से बने शिवलिंग को सम्पूर्ण शिवालय की भी मान्यता मिली है ।

इसका पूजन करने से संसार के समस्त दोषों से मुक्ति मिल जाती है। कई जन्मों के पापों का उद्धार हो जाता है। इसके दर्शन मात्र से समस्त परेशानियों का अंत हो जाता है। ऐसे शिवलिंग को समस्त शिवलिंगों में सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है और इसका यथाविधि पूजन करने से मानसिक, शारीरिक, तामसिक या अन्य कई विकृतियां स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं। घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है।

पौराणिक ग्रंथों में जैसे कि ‘ रस रत्न समुच्चय ’ में ऐसा माना गया है कि 100 अश्वमेघ यज्ञ, चारों धामों में स्नान, कई किलो स्वर्ण दान और एक लाख गौ दान से जो पुण्य मिलता है वो बस पारे के बने इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही उपासक को मिल जाता है।
अगर आप अध्यात्म पथ पर आगे बढ़ना चाहते हों, योग और ध्यान में आप मन एकाग्र करना चाहते है और मुक्ति भाव की इच्छा हो तो आपको पारे से बने शिवलिंग की उपासना करनी चाहिए।
पारद एक ऐसा शुद्ध पदार्थ माना गया है जो भगवान भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है। इसकी महिमा केवल शिवलिंग से ही नहीं बल्कि पारद के कई और अचूक प्रयोगों के द्वारा भी मानी गयी है।
धातुओं में सर्वोत्तम पारा अपनी चमत्कारिक और हीलिंग प्रॉपर्टीज के लिए वैज्ञानिक तौर पर भी मशहूर है। पारद के शिवलिंग को शिव का स्वयं भू प्रतीक भी माना गया है। रूद्र संहिता में रावण की शिव स्तुति के बारे में जब चर्चा होती है तो पारद के शिवलिंग का विशेष वर्णन मिलता है। रावण को रस सिद्ध योगी भी माना गया है और इसी शिवलिंग का पूजन कर उसने अपनी लंका को स्वर्ण की लंका में तब्दील कर दिया था।

कुछ ऐसा ही वर्णन बाणासुर राक्षस के लिए भी माना जाता है। उसे भी पारे के शिवलिंग की उपासना के तहत अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने का वर प्राप्त हुआ था। ऐसी अद्भुत महिमा है पारद के शिवलिंग की। आप भी इसे अपने घर में स्थापित कर घर के समस्त दोषों से मुक्त हो सकते हैं। लेकिन ध्यान अवश्य रहे कि साथ में शिव परिवार को भी रख कर पूजन करें। पारद के शिवलिंग के पूजन की महिमा तो ऐसी है कि उसे बाणलिंग से भी उत्तम माना गया है। जीवन की समस्त समस्याओं के निदान के लिए पारद के उपयोग एवं इससे सम्बंधित उपाय अत्यंत प्रभावशाली हैं। यदि इनका आप यथाविधि अभिषेक कर, पूर्ण श्रद्धा से पूजन करेंगे तो जीवन में सुख और शान्ति अवश्य पाएंगे।
पारद शिवलिंग की भक्तिभाव से पूजा-अर्चना करने से संतानहीन दंपति को भी संतानरत्न की प्राप्ति हो जाती है। 12 ज्योतिर्लिंग के पूजन से जितना पुण्यकाल प्राप्त होता है उतना पुण्य पारद शिवलिंग के दर्शन मात्र से मिल जाता है।



पारद के कुछ अचूक उपायों का विवरण निम्नलिखित है, जिन्हें आप स्वयं प्रयोग कर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति कर सकते हैं:-

1. अगर आप अध्यात्म पथ पर आगे बढ़ना चाहते हों, योग और ध्यान में आपका मन लगता हो और मोक्ष के प्राप्ति की इच्छा हो तो आपको पारे से बने शिवलिंग की उपासना करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है।

2. अगर आपको जीवन में कष्टों से मुक्ति नहीं मिल रही हो, बीमारियों से आप ग्रस्त रहते हों, लोग आपसे विश्वासघात कर देते हों, बड़ी-बड़ी बीमारियों से ग्रस्त हों तो पारद के शिवलिंग को यथाविधि शिव परिवार के साथ पूजन करें। ऐसा करने से आपकी समस्त परेशानियां ख़त्म हो जाएंगी और बड़ी से बड़ी बीमारियों से भी मुक्ति मिल जाएगी।

3. अगर आपको धन सम्पदा की कमी बनी रहती है तो आपको पारे से बने हुए लक्ष्मी और गणपति को पूजा स्थान में स्थापित करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जहां पारे का वास होता है वहां माँ लक्ष्मी का भी वास हमेशा रहता है। उनकी उपस्थिति मात्र से ही घर में धन लक्ष्मी का हमेशा वास रहता है।

4. अगर आपके घर में हमेशा अशांति, क्लेश आदि बना रहता हो, अगर आप को नींद ठीक से नहीं आती हो, घर के सदस्यों में अहंकार का टकराव और वैचारिक मतभेद बना रहता हो तो आपको पारद निर्मित एक कटोरी में जल डाल कर घर के मध्य भाग में रखना चाहिए। उस जल को रोज़ बाहर किसी गमले में डाल दें। ऐसा करने से धीरे-धीरे घर में सदस्यों के बीच में प्रेम बढ़ना शुरू हो जाएगा और मानसिक शान्ति की अनुभूति भी होगी। पारद को पाश्चात्य पद्धति में उसके गुणों की वजह से Philospher's stone भी बोला जाता है। आयुर्वेद में भी इसके कई उपयोग हैं।

5. अगर आप उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं, हृदय रोग से परेशान हैं, या फिर अस्थमा, डायबिटीज जैसी जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हैं तो आपको पारद से बना मणिबंध जिसे कि ब्रेसलेट भी कहते हैं, अच्छे शुभ मुहूर्त में पहननी चाहिए। ऐसा करने से आपकी बीमारियों में सुधार तो होगा ही आप शान्ति भी महसूस करेंगे और रोगमुक्त भी हो जाएंगे।



यह तो पारद का गुणगान हो गया परंतु इसके विशेष मंत्रो का ज्ञान बहोत कम लोगो के पास है,जैसे "क्लीं" बीजाक्षर पारद शिवलिंग को अपने उन शक्तियों को जाग्रत करता है जिससे आनंद ही आनंद निर्मित होता है । "ह्रीं" बीजाक्षर शक्ति तत्व को जाग्रत करके साधक को शक्तिमय बना देता है,"ऐं" बीजाक्षर तो स्वयं रासेश्वरी की शक्ति साधक के शरीर में अमृत के समान रक्त के माध्यम से बहने लगती है । "श्रीं " बीजाक्षर जाप से साधक संसार के समस्त प्रकार के साधना में किये जाने वाली उप्तत्ति के आधार से जुड़कर अपने कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करने में सक्षम हो सकता है । "ह्रौं" यह एकमात्र ऐसा बीजाक्षर है जो मृत्यु को हरा सकता है,पारद शिवलिंग के सामने इस बीजाक्षर जाप के माध्यम से कम्पन निर्मित होते ही है,सिर्फ जाप करने का सही ज्ञान होना आवश्यक तथ्य है ।

मै शिवभक्तों को पारद शिवलिंग देना चाहता हु परंतु उनमे कुछ पात्रता होना जरुरी है,जैसे वह शक्ति साधक होना चाहिए,उसको शिव जी के प्रति दृढ़ निष्ठा होना चाहिए,वह एक ऐसा साधक होना चाहिए जो प्रदोष काल में व्रत कर सके और हर महीने यह व्रत 2 बार आता है,साधक ऐसा हो जो अमावस्या के दिन किसी भी हालात में झूठ ना बोले,उसे नित्य शिवलिंग दर्शन करना चाहिए अगर वह घर से कही दूर जाए तो उसे मन ही मन पारद शिवलिंग को दिन में एक बार याद करके ध्यान करना चाहिये । यह सब गुण तो पारद शिवलिंग के उपासको के लिए अत्यंत आवश्यक है ।
आज आपको एक गोपनीय रहस्य बता रहा हु जो मार्केट में पारद शिवलिंग बेचने वाले नहीं जानते है,"ऋग्वेद-५, सूक्त-४२, ऋचा-११" ऐसा मंत्र है जिसके तीन बार पाठ करने से एक रुद्रपाठ का फल मिलता है,यह मैं नहीं कह रहा हु,यह तो स्वयं ऋग्वेद में लिखा हुआ है और यही मंत्र अगर पारद शिवलिंग पर बोलते हुए पंचामृत अभिषेक किया जाए तो त्वरित फल की प्राप्ति होती है । यहाँ आज मैंने ऐसा रहस्य बता दिया जो सिर्फ एक शिव-शक्ति उपासक ही बता सकता है,अन्य लोगो को सिर्फ धन कमाना है,उनको उपासना से कोई मतलब नहीं है ।

मै जब शिवलिंग बनाता हूँ तब उसमें सर्वप्रथम जिसके लिए बनाना है,उस व्यक्ति के नाम से संकल्प लेकर पारद शिवलिंग कार्य निर्माण शुरू करता हु और पूर्ण क्रिया होने के बाद जब तक उसमे मतलब पारद शिवलिंग के चमक में अपना चेहरा ना देखलू तब तक वह शिवलिंग मैं साधक को नहीं देता हूँ । हां,यह सच है के पारद शिवलिंग मे हम हमारा चेहरा देख सकते है क्युके असली पारे से बने हुए शिवलिंग में वह चमक होती ही है । पारद तो एक प्रकार के आईने के समान चमकदार होता है,आप जो काले हरे नीले रंग के चश्मे पहनते हो उस पर भी पारे का इस्तेमाल होता है,इसलिए आप अपने चश्मे में अपना चेहरा देख सकते हो । चमक यह तो पारद का एक सामान्य गुणधर्म है और अगर आपके घर में पारद शिवलिंग है और उसमें चमक नहीं है तो आप समझ सकते हो की वह किस प्रकार का पारद शिवलिंग है ।

पारद शिवलिंग का साधना बीज मंत्र और शाबर मंत्रो से करना शीघ्र फलदायी माना जाता है,आप जिससे भी पारद शिवलिंग प्राप्त करेंगे उसको आप बिना भूले ऐसे मंत्र प्राप्त करे जो बीजाक्षर युक्त हो या फिर वह कोई शाबर मंत्र हो । मैं जब किसीके लिये पारद शिवलिंग बनाता हूँ और अगर वह शिवलिंग मेरे हिसाब से अच्छा नहीं बनता है तो मैं उस व्यक्ति को उसके पैसे वापिस कर देता हूं,क्युके प्रत्येक व्यक्ति को मैं एक ऐसा शिवलिंग देना चाहता हु जो उसको शिवकृपा हेतु आवश्यक हो । आप चाहो तो मैं पारद शिवलिंग के साथ उसके प्राणिकता का सर्टिफिकेट भी भेज दू,जो सरकार मान्य किसी लैबोरेट्री में टेस्टिंग किया हुआ हो,ताकि आपके मन मे किसी भी प्रकार का भ्रम जन्म ना ले सके और आप पारद शिवलिंग साधना में जीवन को समर्पित कर सके ।
मेरे पास जो पारद शिवलिंग बनते है उसका मूल्य 65 रुपये पर ग्राम है,अगर आप 100 ग्राम का शिवलिंग ले सकते हो तो उसका मूल्य 6500 रुपये होगा । दीव-दमन के खाड़ी से प्राप्त किया गया पारा महेंगा होता है और वहा का पारा शिवलिंग बनाने हेतु अच्छा है,जर्मन पारा सस्ता होता है परंतु मेरे हिसाब से वह शिवलिंग बनाने हेतु योग्य नहीं है । मार्केट में जो पारद शिवलिंग मिलते है वह ज्यादातर जर्मन पारा से बनाते है,ऐसा शिवलिंग आरोग्य लाभ हेतु ठीक नहीं है ।

शिवलिंग तो 41,110 ग्राम से लेकर जितना चाहे उतने ग्राम तक बना सकते है परंतु गृहस्थ साधक को 11 तोले का शिवलिंग मतलब 110 ग्राम का शिवलिंग उपयुक्त है और इससे आगे 51 तोले का शिवलिंग सिद्धिप्रदाय माना जाता है और 125 तोले का शिवलिंग मोक्षप्रदाय माना जाता है । पारद शिवलिंग प्राप्त करने हेतू आप ईमेल के माध्यम से संपर्क कर सकते है- snpts1984@gmail.com और जिनके पास मेरा मोबाइल नंबर है वह साधके फोन करे ।



आदेश........

25 Oct 2017

गोपनीय दुर्लभ मंत्र ।



आप ईश्वर की अनमोल कृति हैं इसलिए अच्छा ही होगा – अच्छा ही होगा,विचार मंथन और क्रिया सामान्यतः प्रत्येक मनुष्य अपनी समस्याओं के बारे में विचार करता रहता है और स्वयं को परेशान करता रहता है। चिन्ताओं को अपने पास आने का निमंत्रण देता रहता है। क्या आपको मालूम है आप में क्या शक्ति है और इस शक्ति का विकास कैसे संभव है? क्या आप इस प्रश्न पर विचार करते हैं?

उस सर्व शक्तिमान ईश्वर ने एक निश्चित उद्देश्य के लिये आपको यह सुन्दर जीवन दिया है और उस निश्चित लक्ष्य, उद्देश्य को आप ही पूरा करेंगे यह विश्वास सदैव बनाए रखें।

यह मनुष्य व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि उसके पास शक्ति तो सीमित होती है लेकिन उसकी कामनाओं की उड़ान असीमित होती है। प्रत्येक मनुष्य को प्रतिपल कुछ न कुछ क्रिया अवश्य ही करनी पड़ती है। बिना क्रिया के वह एक क्षण भी नहीं रह सकता है। साथ ही यह भी समझें कि रोज-रोज की चिन्ताओं में, परेशानियों में, तनाव में काम करते हुए वह अपने स्वयं के बारे में सबसे कम विचार कर पाता है। इस कारण वह अपनी भागती-दौड़ती जिन्दगी में एक मशीन की भांति ही काम करता रहता है। विपरीत स्थिति में, स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देता है। इस प्रकार वह यंत्रवत् जीवन जीता है। प्रतिदिन अपने बारे में कम और ज्यादा से ज्यादा दूसरों के बारे में ही चिन्तन करता है, दूसरों की तुलना में अपने-आपको श्रेष्ठ साबित करने के लिये प्रयत्नशील रहता है।

अब इसमें गलती किसकी है, सोचो? हर समय दूसरों के बारे में चिन्तन करना है या अपने बारे में भी चिन्तन करना है, विचार करें – मनुष्य का स्वभाव बड़ा ही सरल है। उसके अन्दर एक जिद्द, होड़ है। वह हर खूबसूरत, अनमोल वस्तु पर, व्यक्ति पर, स्थान पर अपना एकाधिकार बनाना चाहता है। इसके साथ ही उसके सारे प्रयास, सारे विचार इसी दिशा में होते हैं कि मैं ध्यान, सौन्दर्य, धन-बल, शरीर-बल, ऐश्वर्य सभी में प्रभावशाली बनूं। अब उसका चिन्तन दो तरफा है, एक ओर तो वह हर वस्तु पर अपना अधिकार जमाना चाहता है और दूसरा वह हर दृष्टि से प्रभावशाली बनना चाहता है। उसका चिन्तन इसी बात में उलझा रहता है कि किस प्रकार और कैसे हर समय वह स्वयं को श्रेष्ठ साबित कर सके?

परन्तु हकीकत में होता क्या है? वह इसी फेर में निरन्तर उलझा रहता है। समय का चक्र भी बड़ा बलवान है। धीरे-धीरे जीवन शक्ति क्षीण होती है लेकिन कामना शक्ति, इच्छाएं बढ़ती ही जाती हैं। इस कारण मन-मस्तिष्क की शक्तियां कमजोर होती चली जाती हैं। सभी के जीवन में यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इसलिये ज्यादातर लोग आपको परेशान, चिन्तित दिखाई देंगे। यह उलझन तो उन्होंने स्वयं अपने जीवन में डाली है। सबसे बड़ा आश्चर्य इस बात का है कि मनुष्य जीवन में 90% भाग पर प्रकृति अर्थात् परमसत्ता का प्रभाव है। केवल और केवल 10% प्रतिशत भाग पर मनुष्य के स्वयं के कर्म और चिन्तन का प्रभाव रहता है लेकिन मनुष्य करता क्या है? जिस बात पर उसका अधिकार ही नहीं है, परम शक्ति का प्रभाव है उसके ऊपर चिन्ता करता रहता है। कर्म और विचार उसके अधिकार में है केवल और केवल इस पक्ष को सकारात्मक बनाए। इस 10% भाग अर्थात् ‘कर्म और विचार’ को यदि आपने सकारात्मक बना लिया तो पूरा जीवन व्यवस्थित हो जाएगा।

विचार करें कि आपके हाथ में कौन-कौन सी स्थितियां हैं और कौन-कौन सी स्थितियां आपके हाथ में नहीं हैं।

कामनाएं कमजोर बनाती हैं,मनुष्य की यह बड़ी कमजोरी है कि वह सबसे ज्यादा चिन्तन अपनी कामनाओं का, अपने प्रियजनों का, अपने समाज का करता रहता है। वह अपने जीवन में उन चिन्ताओं से परेशान- दुःखी, उदास, हताश, निराश होता है जो कि उसके वश में ही नहीं हैं। भविष्य की हर सोच में वह स्वयं को डरा हुआ पाता है। भविष्य की हर चिन्ता में अपना वर्तमान खराब कर देता है। इसी से तो उसकी सकारात्मक सोच, नकारात्मक बन जाती है और फिर वह एक साधारण जीवन जीने लगता है। जबकि विचार करें कि आपका मनुष्य योनि में जन्म तो आने वाले कल में स्वयं को अति सफलतम सिद्ध करने के लिये ही हुआ था। मूल आवश्यकता इस बात की है कि जिन विषय वस्तुओं पर हमारा अधिकार नहीं है, जिन विषय वस्तुओं के बारे में हमें जानकारी नहीं है या जिन विषय वस्तुओं को हम पहले से जान नहीं सकते हैं उन सब के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाएं और अपने आपको बार-बार आश्वस्त करते रहें कि आगे सब अच्छा ही होगा, तो यहीं से आपके लिए आनन्द का नया द्वार खुल जाएगा।


हमारा भारतीय दर्शन इस विषय में क्या कहता है?
भारतीय दर्शन में एक सिद्धान्त है कि मनुष्य में अलौकिक, असीम और अनन्त शक्ति का स्रोत छिपा हुआ है और इस शक्ति पर चार प्रकार के प्रमुख आवरण हैं, जिनके कारण अनेक कमियां उसके व्यक्तित्व में आ जाती हैं।

ये चार आवरण हैं – 1. काम (sex), 2. क्रोध (anger), 3. लोभ (greed) और 4. अतिमोह (delusion)

इन आवरणों के कारण ही मनुष्य अपने सुख-दुःख का जाल बुनता रहता है और उसमें फंसता रहता है, छटपटाता रहता है। जबकि वास्तविक बात यह है कि ये चारों आवरण मनुष्य ने स्वयं बनाए हैं।

*काम – जीवन में निरन्तर काम का भाव, मन को अशांत और उद्वेगी बना देता है। जीतने की प्रवृत्ति के कारण बार-बार बाजी लगाता है।

*क्रोध – क्रोध व्यक्ति में उसकी खुद की गलतियों को बल पूर्वक दूसरे से मनवाने का उपक्रम करता है। अपनी गलतियों को छुपाने के लिये ही व्यक्ति क्रोध करता है।

*लोभ – निरन्तर लोभ का भाव, हर अच्छी चीज को प्राप्त करने का, हड़पने का भाव देता है।

*अतिमोह – अतिमोह ऐसा जाल है कि वह मनुष्य में यह भावना पैदा करता रहता है कि ‘ मैं ही सबको पालने वाला और आश्रय देने वाला हूं, सबकी व्यवस्था करने से पहले मैं हार नहीं जाऊं, समाप्त नहीं हो जाऊं। ’



इन चारों कारणों से मनुष्य अपनी वास्तविक शक्ति का परिचय नहीं दे पाता है, अपनी वास्तविक शक्ति को नहीं पहचान सकता है। मनुष्य जीवन के लिए ऊपर वाले चारों उपक्रम आवश्यक हैं लेकिन ये चारों आवरण एक सीमा तक ही होने चाहिए। इतने कठोर नहीं होने चाहिए कि आप उन्हें तोड़ नहीं सकें। इनमें से किसी की भी अधिकता नहीं होनी चाहिए। ये सारी क्रियाएं करें लेकिन इनमें पूरी तरह से लिप्त न हों।
यह सिद्ध है कि मनुष्य में अनन्त शक्तियां हैं लेकिन स्वयं की शक्ति के आंकलन की कमी और विचारों में अस्थिरता के कारण वह इसे पहचान नहीं पाता है। मनुष्य के हाथ में है कि वह अपनी वैचारिक शक्ति के द्वारा हर प्रकार की उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। कोई व्यक्ति जन्म से महापुरुष नहीं होता, महापुरुष वही बनता है जिन्होंने अपने आप पर नियन्त्रण किया और अपनी आन्तरिक शक्तियों को जाग्रत किया। ईश्वर ने सबको समान शक्ति प्रदान की है, बस इस शक्ति को संरक्षित करना आना चाहिए तो इसके लिये एक ही उपाय है कि आप अपनी स्वयं की शक्तियों को अपने चिन्तन का आधार प्रदान करें और यह संकल्प लें कि प्रत्येक वह आवरण जो काम-क्रोध-लोभ-मोह कहलाता है उसकी सीमा कितनी हो? उसकी सीमा निर्धारित करें और स्वयं को एकाग्र कर, स्वयं को जाग्रत करने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दें।


अपने जीवन के इस शक्ति संकलन में ये संकल्प बार-बार दोहराते रहें –

1. अपने आपको छोटा और बेचारा नहीं मानें। आप ईश्वर की अनमोल कृति हैं और उस सर्व शक्तिमान ईश्वर ने एक निश्चित उद्देश्य के लिये आपको यह सुन्दर जीवन दिया है और उस निश्चित लक्ष्य, उद्देश्य को आप ही पूरा करेंगे यह विश्वास सदैव बनाए रखें।

2. दूसरों की आलोचना से आपकी स्वयं की शक्ति का ह्रास होता है, दूसरों की कमियों की व्याख्या में अपना समय व्यर्थ न गंवाएं अन्यथा आप स्वयं नकारात्मक भाव पकड़ने लग जाएंगे।

3. जीवन में जिन कार्यों और परिस्थितियों पर आपका वश नहीं है, उनके प्रति स्वयं को सकारात्मक रखें। अच्छा ही होगा – अच्छा ही होगा – अच्छा ही होगा, ऐसा विचार करने से नये-नये मार्ग अवश्य दृष्टिगत होंगे।

4. अपनी शक्ति के चिन्तन में स्वयं को लगाएं, ध्यान के साधन द्वारा जैसा आप स्वयं चाहते हैं वैसा शक्ति सम्पन्न बनने का मानसिक संकल्प दोहराते रहें।

5. अतीत की सोच और भविष्य की सोच दोनों से दूरी बना लें, क्योंकि आपको वर्तमान में कर्म करना है। ‘ वर्तमान के ही कर्म का चिन्तन करें’।

6. अतीत के दुःख और भविष्य के भय को सकारात्मक सोच दें। उन्हें कष्ट का कारण न मानें क्योंकि अतीत और भविष्य दोनों ही प्रश्नवाचक हैं। क्या हो गया, कैसे हो गया, अब क्या होगा, अब कैसे होगा? ये सारे प्रश्न प्रश्नवाचक हैं जबकि आपका वर्तमान क्रियावाचक है – ‘ मैं यह कर रहा हूं ’ यही मुख्य बात है।

7. स्वयं को समयबद्ध तरीके से कार्य में लगाएं, समय-समय पर अपना स्वयं का आंकलन करते रहें और उसी के अनुसार अपनी कार्यशैली, कृतित्व (creation ) आदि में परिवर्तन करते हैं। यदि कोई नया आदर्श स्थापित करना है तो उसे भी स्थापित करते रहें।

8. मनुष्य के पास समय कम है और कामनाएं अनन्त हैं। ऐसे में अपने मन और मस्तिष्क पर पूर्ण नियन्त्रण करते हुए उसे अपने संकल्प की ओर ही दिशा देते रहें और अपने संकल्प का आंकलन करते रहें।

9. हर सुन्दर और मूल्यवान वस्तु हमारी हो, हर ज्ञान, सुन्दरता, बल, तप, यश में हम ही श्रेष्ठ हों। यह दौड़ छोड़ दें। बल्कि यह आंकलन करें कि हमारे अन्दर भी अनन्त गुण हैं और इन गुणों के द्वारा ही हम सर्वश्रेष्ठ होंगे।
अपने लक्ष्यों को बिल्कुल साफ और स्पष्ट रखें। जैसे ही आप अपने लक्ष्य से हटे तो आपका जीवन स्वयं हार मान लेगा। इस कारण अपने लक्ष्य निश्चित, स्पष्ट रखें।

10. आपका सत् संकल्प, आपके भीतर का नम्रता का भाव ही आपकी शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है और इसी का विकास करना है और यहीं से आपके शक्ति सम्पन्न होने का अध्याय शुरू हो सकता है।



कुछ ऐसा करके तो देखो के जीवन के सभी दुख,पीडा,कष्ट और दुर्भाग्य आपके सामने हाथ जोड़कर क्षमा की भीख मांगे । यह एक युद्ध है,जिस पर आपको स्वयं विजय प्राप्त करना है,रो-रोकर जिंदगी खराब मत करो,अब उठ भी जाओ और सामना करो जीवन के कठिन परिस्थितियों को संभालने के लिए । अपने आपको पहेचानो,आप सभी  लोग एक दिव्य शक्ति से संग्रहित हो,चाहे वह किसी भी धर्म का हो या फिर किसी भी जाती का हो । अपने अंदरूनी शक्ति के जागरण हेतु नित्य 30-40 मिनटो तक

"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम आत्मशक्ति चैतन्य शीघ्र जाग्रय जाग्रय क्लीं ह्रीं ऐं ॐ नम:"

मंत्र का जाप किया करे । इस मंत्र के बीज अक्षर का ध्वनि "ग" होना चाहिए जैसे ह्रीं-Hreeng,यह मंत्र साधना में त्वरित सिद्धि देता है और कुंडलिनी शक्ति को जगाने में सहायक है,चाहे तो 15-20 दिनों तक जाप करके आजमाके देख लो । मंत्र जाप के समय ध्यानस्थ होना जरूरी है और शुद्धता का भी आचरण करे , मंत्र जाप एकांत में करो । आसन माला दिशा वस्त्र का कोई नियम नही है क्योंकि आप स्वयं ही इस साधना में सब कुछ हो । दिया लगाना है या धूप जलानी है तो जलाओ और नाही कर सको तो भी कोई नुकसान नही होगा । कुछ दिन मंत्र जाप करने से समझ जाओगे के शरीर किस तरह से अपने आप मे शक्तियुक्त बन रहा है,हिमालय के बर्फीले स्थान पर भी 2-3 घंटे तक इस मंत्र का प्रामाणिकता से जाप करोगे तो पसीना निकलने लगेगा । यह साधना विश्वास के साथ करो और अपने जीवन को स्वयं बदल डालो, यही है "स्वयं की शक्ति" जिसके माध्यम से आप जो चाहो वह प्राप्त कर सकते हो । इसमें कोई भी बात या शब्द आपको नही समझ मे आया हो तो अवश्य ही मुझे ईमेल के माध्यम से आप संपर्क करें, मेरा ईमेल i.d. है -snpts1984@gmail.com |





आदेश.......

30 Sept 2017

दिपावाली तांत्रोक्त मंत्र साधना


पंचदशी यंत्र



दिवाली नजदीक आरही है और सभी को दिवाली का इंतजार होता है,इंतेजार सिर्फ यही ज्यादा से ज्यादा होता है के इस पावन अवसर पर कुछ ऐसा किया जाए "जिससे एक वर्ष तक धन-धान्य की कोई कमी ना पड़े और यह आनेवाला वर्ष सुख-समृद्धि से भरपूर रहे" । शायद आज तक तो ऐसा हुआ नही होगा परंतु अब इस दिवाली में साधना करो तो ऐसा ही कुछ होगा जो आप लोगो ने सोचा है ।


आनेवाले दिवाली के अवसर पर आप पंन्ध्रिया यंत्र साधना अवश्य कर लो तो आपके जीवन के समस्त आर्थिक परेशानी से आपको राहत मिल सकती है । पिछले वर्ष 19 ऑक्टोम्बर को करवा चौथ था,उस समय महिलाओं ने अपने पति के उत्तम जीवन हेतु व्रत रखा था और इस वर्ष 19 ऑक्टोम्बर को दिवाली है,जिसमे सभी लोग आनंद लेंगे । मुझे पिछले वर्ष का बात इसलिये स्मरण रहा क्योंकि 19 ऑक्टोम्बर मेरा जन्मदिवस है और मैं चाहता हूँ के "मुझे किसीसे गिफ्ट नही लेना चाहिए परंतु सभी को ऐसा गिफ्ट देना जरूरी है,जिससे सभी का आर्थिक समस्याओं से जुड़ा जीवन अच्छा हो" । मुझे यह क्रिया नही आता है के मै आप सभी का रोग,दरिद्रता, बाधा,समस्याये अपने ऊपर ले सकू,मातारानी की कसम बोल रहा हूँ अगर मुझे यह क्रिया आता तो मैं अब तक सभी का दुख अपने ऊपर ले लेता और आपको जीवन मे कोई भी किसी भी प्रकार का दुख ना हो यही कार्य करता । इसलिए एक ऐसा साधना दे रहा हूँ,जिससे आपके जीवन मे सुधार आयेगा । यह एक प्रामाणिक साधना है जिसका लाभ मैंने स्वयं उठाया है,मुझे पूर्ण विश्वास है के दिवाली के दिन आप यह साधना करो और आपको सफलता ना मिले यह संभव नही है । आज तक सभी लोगो को सिर्फ पंन्ध्रिया यंत्र के बारे में पता था परंतु बहोत कम लोग ही इस साधना के विषय मे जानते है । जैसे पंन्ध्रिया यंत्र का विनियोग,ध्यान और मंत्र,यह तिनो गोपनीय है  इन्हें कोई भी व्यक्ति लिखना नही चाहता है,सभी का अपना-अपना एक स्वार्थ है । पंन्ध्रिया यंत्र को 9 प्रकार से लेकर 64 प्रकार तक हम बना सकते है,यहां आज एक ऐसा प्रकार लिख रहा हूँ जो 64 प्रकारों में श्रेष्ठ है ।


बहोत सारे लोग अपने इस अमूल्य जीवन मे निंदा करने में समय खराब कर देते है,तो कोई किसीको बदनाम करने में अपना 100% देता है । ऐसा कर्म करने से शायद खुशी मिलता होगा परंतु यह दोनों कर्म मनुष्य को शत्रुत्व औऱ संकट को बुलाने हेतु किया गया हुआ आवाहन होता है । आज थोड़ा बहोत कुछ ऐसा लिख रहा हूं जिससे आपको अच्छा लग सकता है या फिर तकलीफ भी हो सकती है । यही बस एक कहानी है और कुछ भी नही और इस कहानी का अध्यात्म से कोई लेना देना नही है-


         एक बार राजा के दरबार मै एक फ़कीर गाना गाने जाता है,
          फ़कीर बहुत अच्छा गाना गाता है।
          राजा कहते हैं इसे खूब सारा सोना दे दो।
          फ़कीर और अच्छा गाता है।
          राजा कहते हैं इसे हीरे जवाहरात भी दे दो।
          फकीर और अच्छा गाता है।
          राजा कहते हैं इसे असरफियाँ भी दे दो।
           फ़कीर और अच्छा गाता है।
           राजा कहते हैं इसे खूब सारी ज़मीन भी दे दो।
           फ़कीर गाना गा कर घर चला जाता है।
           और
           अपने बीबी बच्चों से कहता है,, 
           आज  हमारे राजा जी ने गाने का खूब सारा इनाम दिया।
           हीरे,जवाहरात,सोना,ज़मीन, असरफियाँ बहुत कुछ दिया।

          सब बहुत खुश होते हैं
          कुछ दिन बीते

          फ़कीर को अभी तक मिलने वाला इनाम नही पहुँचा था...
          फ़कीरे दरवार में फिर पहुँचा...
कहने लगा....
        ​"राजा जी आप के द्वारा दिया गया इनाम मुझे अभी तक नहीं मिला।"​?

        राजा कहते हैं ..,,,
           अरे फ़कीर ये लेन देन की बात क्या करता है।
          ​"तू मेरे कानो को खुश करता रहा"...​

           और

           मैं तेरे कानों को खुश करता रहा।




यह एक कहानी है,जिसे हमारे राजनेता हमे सुनाते है और हम फकीर के तरहा सुनकर खुश हो जाते है । अगले चुनाव में फिर कोई नई कहानी सुनाई जाती है,परंतु इस 5 वर्ष में हमे हमारे जिम्मेदारी को पूर्ण करना होता । यह काम सिर्फ हमे करना होता है,कोई राजनेता आकर हमारे जिम्मेदारी को पूर्ण नही कर सकता है,इसलिए आपको यह आर्टिकल पढ़ते समय यह संकल्प लेना के इस वर्ष दिवाली पर यह साधना करुगा और समस्त जिम्मेदारी को पूर्ण तरहा से नीभाऊंगा ।


हो सके तो दिवाली से पूर्व ही इस साधना का प्रिंट आउट निकालकर कुछ पहचान वाले या फिर अनजान लोगों को एखाद प्रिंट आउट दे देना क्युके ज्ञान दान से बड़ा कोई भी दान नही है और जिसे यह साधना दे रहे हो,शायद वह साधना सम्पन्न कर लेगा जिससे उसका आर्थिक परेशानी कम हो सकता है ।
इस साधना से जीवन में निरंतर उन्नति होती है और जीवन के समस्त लक्ष्य कुछ ही समय/माह/वर्षो में पूर्ण होते है । यहा समय मतलब छोटी इच्छा, माह मतलब जिसे पूर्ण होने में लगने वाला समय और वर्ष का अर्थ है के तुमने साधना करके वह मांग लिया जिसे तुम एक अपना स्वप्न समझते हो ।


आज के समय मे मेरा बहोत लोग विरोध कर रहे है क्युके मैं लोगो को ज्यादा समय नही दे सकता हूं परंतु एक दिन में 20-25 फोन रोज उठाता हूँ और यह कार्य मैं पिछले 10 वर्षों से कर रहा हूँ । मेरे तरफ से सभी क्रियाये निःशुल्क होती है सिर्फ साधना सामग्री का न्यौछावर राशि ही लेता हूँ क्युके मुझे सामग्री का खर्च भी व्यय करना होता है ताकि आपको साधना में सफलता मिल सके ।


आज तक जिन्होंने भी भी मुझसे सामग्री प्राप्त की है उनमें से 80-90 प्रतिशत लोगो को सफलता प्राप्त हुआ है । यह सब तो मातारानी जो का कृपा से हुआ है,अतः आखिर इस जीवन मे उन्होंने जो दिया वही सही है ।

यह पंन्ध्रिया यंत्र साधना जो पंचदशी यंत्र नाम से तंत्र के जगत में सर्वोत्तम मानी जाती है वही आपको दे रहा हूँ,आप चाहो तो कॉपी-पेस्ट करके जहा चाहो वहां पोस्ट कर सकते हो परंतु इसको ज्यादा-से-ज्यादा लोगो तक पहोचा दो ।





साधना सामग्री-स्फटिक माला,भोजपत्र,अनार की कलम,एक ताबीज,लाल रंग का मजबूत धागा,माँ लक्ष्मी जी का चित्र और प्रसाद जो भी आप चढ़ा सकते हो । 


(सामग्रि आपको किसी भी पंसारी के दुकान में मिल जाएगा,इसमे चिंता का कोई बात नही है । अगर आपको भोजपत्र ना मिले तो सफेद रंग का कागज आप इस्तेमाल कर सकते है और अनार का कलम ना मिले तो लाल रंग के स्याही वाले बॉलपेन से भी यँत्र बना सकते है)

साधना का समय-यह साधना आपको दिवाली के रात्रि में सिंह लग्न में करना है या फिर महानिशिता काल मे साधना संपन्न करे, इस वर्ष महानिशिता का 23.33 से 24.23 बजे का है । यह 50 मिनटों का समय आपके जीवन को बदल देगा ।


साधना के नियम-मन को शांत रखे,अपने अनुभव शेयर ना करे,साधना को करते समय बुरे विचारों को दूर रखें, जो भी मनोकामना हो उस पर ध्यान केंद्रित रहे,साधना में पवित्रता ओर शुद्धता आवश्यक है,पिले रंग का आसन ओर वस्त्र भी हों,इस दिन प्याज और लहसुन का हो सके तो सिर्फ एक दिन के लिये त्याग करें ।




साधना विधि-


अनार के कलम से और अष्टगंध के स्याही से आपको भोजपत्र पर पंचदशी यंत्र बनाना है,यहां आज यंत्र बनाने की विधि बता रहा हूँ - यंत्र लिखते समय सबसे छोटा अंक पहिले लिखे जैसे पंचदशी यंत्र में सबसे छोटा अंक 1 है तो एक लिखने के बाद यँत्र में दिए हुए स्थान के हिसाब से फिर दो लिखना है,इस तरह से पंचदशी यँत्र में 1 से लेकर 9 तक अंक लिखने है । मैं यहां पंचदशी यँत्र का फोटो भी दे रहा हूं ।
यंत्र को निर्माण करने के बाद प्राण-प्रतिष्ठा मंत्र बोलकर यँत्र पर कुंकुम से रंगे हुए चावल चढ़ाये ।



प्राण प्रतिष्ठा मंत्र-


ॐ आं ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहम् पंचदशी यंत्रस्य प्राणा इह प्राणाः।

ॐ आं ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वं शं षं सं हं सः पंचदशी यंत्रस्य जीव इह जीव स्थितः।

ॐ आं ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वं शं षं सं हं सः पंचदशी यंत्रस्य सर्वेंद्रियाणि इह सर्वेंद्रियाणि।
वाङ्मनस्त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण वाक्प्राण पाद्पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठंतु स्वाहा।



सिर्फ इतना ही मंत्र बोलना काफी है और अगर साधक चाहे तो यह मंत्र 15 बार बोलकर यँत्र पर चावल चढ़ा सकता है ।





दाहिने हाथ मे जल लेकर विनियोग मंत्र बोलकर जल को जमीन पर छोड़ दे ।

 विनियोग:-

अस्य श्री पंचदशी मंत्रस्य दक्षिणा मूर्ति ऋषि: पंक्ति: छन्दा: त्रिपुरा देवतामम्हं जन्मानि कामना सिद्धये एतावत्संख्याकयंत्र पूजनपूर्वक जपे विनियोग : ।।


अब दोनो हाथ जोडकर ध्यान मंत्र बोलना है ओर एक पुष्प यंत्र पर रख दे।

 ध्यान मंत्र:-

बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों।
नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम्।।
हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती।
श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत्।।




यह पंचदशी मंत्र है,इसका कम से कम 11 माला जाप करे ।

पंचदशी मंत्र

।। ॐ श्रीं ऐं ह्रीं पंचदश्यै स्वाहा ।।

Om shreem aim hreem panchdashyai swaha 



दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद यँत्र को ताबीज में डालकर पहन लीजिए और हो सके तो यँत्र धारण करने के बाद भी मंत्र का एक माला जाप कार्तिक पौर्णिमा तक अवश्य करे । माला को संभाल कर रखे ताकि अन्य साधनाओ में उसका इस्तेमाल हो सके ।


आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं.....



आदेश.......


11 Sept 2017

शाबर दुर्गा मंत्र साधना ।



बहोत सारे ज्ञानी-महाज्ञानी कहेते है सकारात्मक सोचो,मुझे एक बात कहनी है के सकारात्मक सोच तो ठीक है परंतु क्या सिर्फ सकारात्मक सोच रखने से ही जीवन बदल जायेगा ? मैं इतना ही कहूंगा के स्वयं पर विश्वास रखो और फिर सकारात्मक सोचो तो जो कार्य अब तक आप जीवन मे नही कर सके हो वह 100% कर सकते हो । अब नवरात्रि आरही है और सभी मातारानी के भक्त उनके सेवा में समर्पित हो रहे है,यहां बुरा मत मानना क्योंकी एक सवाल पूछना है आप लोगो से "क्या आप मातारानी को जानते हो या फिर मातारानी आपको जानती है?",एक बात तो मैं मानता हूँ के "जिस माँ ने आपको जन्म दिया है वो आपको अच्छेसे जानती है फिर चाहे आप शायद उन्हें अच्छेसे जानते हो या नही ये मुझे नही पता" ।
नवरात्रि में तो मातारानी के प्रति जो भक्ति दिखाते हो कृपया वैसे ही कुछ भक्ति जन्म देने वाली माँ के प्रति भी रखो ताकि जीवन मे मातारानी का आशीर्वाद आपको मिल सके ।

माँ के बिना तो स्वयं तीनो लोको के स्वामी भी किसी काम के नही और वह स्वयं कहेते है अगर माँ आदिमाया की शक्ति की कृपा हमे प्राप्त ना होती तो हम भी सामान्य होते । इसलिए आप सभी महान अद्वितीय साधक मित्रो से मेरा निवेदन है "जिस माँ ने जन्म दिया है उनकी ही ज्यादा सेवा करो",स्वयं माँ जगदंबा बिना आवाहन किये आपके सामने प्रत्यक्ष हो जाएगी । ये मेरा वहम नही है मित्रो,यह मुझे पूर्ण विश्वास है और कृपया जिन व्यक्तियों ने अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया है उन सभीके मैं पैर पकडर उनसे विनती करता हूँ के "उन्हें अपने घर पर वापिस लाओ और उनकी सेवा करो" । माता-पिता जब वृध्द हो जाते है तो वह बोझ नही बनते है,वह तो हमे स्ययं की सेवा के माध्यम से ऋण उतारने का मौका देते है और उनका ऋण इस जन्म में हम नही उतार पाते है ।

माँ शब्द ही अपने आप मे सभी पापो से पीड़ाओं से मुक्ति दिला सकता है,इस संसार के सभी ऋषि-मुनियों से मैं इस बात पर द्वंद भी करना चाहूंगा के "माँ" इस पवित्र शब्द से बड़ा ना कोई मंत्र है और ना कोई सिद्धि है । सिर्फ माँ कहेने से नही होगा,हमे उस माता को भी समझना पड़ेगा जिसे हम माँ कहेते है,यार नवरात्रिया तो आते-जाते रहेगी परंतु जिन्होंने जन्म दिया है वो तो बस इस जन्म में एक ही बार अपने स्वयं के आखरी साँस तक साथ रहेगी । माँ की सेवा करो तो मातारानी बिना किसी भी प्रकार के सेवा से प्रसन्न हो जाएगी । आप नवरात्रि में वैसे भी मातारानी से क्या मांगेंगे धन-धान्य-ऐश्वर्य-पत्नी-प्रियसी-रोगमुक्ति या ओर भी कुछ जो सिर्फ आपका स्वार्थ ही होगा परंतू इस बार कुछ विशेष मांगो "है माँ भगवती मेरे प्रिय माता-पिता को स्वस्थ जीवन,चिन्तामुक्ति,सुख और मेरे हाथो उनकी सेवा प्रदान करो,मैं सदैव आपका ऋणी बनकर रहुगा" ।

यह मातारानी से की जाने वाली प्रार्थना ही आपके जीवन को बदल सकती है,येसा ही मुझे पूर्ण विश्वास है । इसी प्रार्थना के साथ आज आपको एक विशेष मंत्र भी दे रहा हूँ जो अत्यंत गोपनीय है परंतु आज इस मंत्र के गोपनीय रखना मुझे उचित नही लग रहा है । मेरे तो कई सारे शत्रु है जो सिर्फ मेरे पिट-पीछे बात करते है,उनमे शायद इतनी हिम्मत नही है के वह मेरे सामने आकर मुझसे बात करे । आजकल मेरे प्रिय शत्रुओ ने कई सारे ग्रुप बनाए हुये है जहां मेरी स्तुति चलती रहती है और स्तुति में बुराई ही होती है ओर तो नया कुछ होता नही है ।

मैने अपने प्राण-प्रिय मूर्ख शत्रुओ का ज़िक्र आज इसलिये किया क्युके उन्हें लगता है के मैं स्वयं मंत्र बनाता हूँ और अपने ब्लॉग पर पोस्ट करता हूँ । मेरे आठ गुरु है,जिसमे सात गुरु नाथ साम्प्रदायिक है और उन्हें शाबर मंत्रों के उच्चकोटि के ज्ञान से सिद्धिया प्राप्त है । उनके पास जो भी कुछ मंत्रविद्या है वह तो गोपनीय ही है,उनसे प्राप्त मंत्र दुनिया के किसी भी किताब में देखने मिलते नही है । उन्होने ने कठिन तपस्या के माध्यम से मंत्रो को शक्तिशाली बनाए रखा है और मेरे जैसे कई शिष्यों को थोड़े बहोत संख्या में जाप करने के माध्यम से सफलता दिलवायी है । अब मेरे शत्रुओं को यही समस्या है के जो शाबर मंत्र मैं देता हूँ वह किताबो में क्यों नही मिलते है?,मेरे विद्वान शत्रुओ तुम लोग कब तक किताबी कीड़े बनकर इस धरा पर रेंगते रहोगे,मैं तो चाहता हूँ के इस नवरात्रि के पावन अवसर पर संकल्प लो के "हमे मंत्रविद्या का उच्चकोटि का ज्ञान मिले और हम जीवन मे कुछ प्रैक्टिकल भी कर सके",यार तुम लोग कब तक किताबें पढ़ते रहोगे? । कुछ तो प्रैक्टिकल करना भी सिख लो और मातारानी से प्रार्थना करो के तुम्हारे अंदर का अज्ञान समाप्त हो जाये ।






मंत्र-


ॐ नमो आदेश गुरु को,दुर्गा माई सत्य की सवाई,आगे चले हनुमंत बीर पीछे चले भैरुनाथ,अष्टभुजी अम्बारानी शत्रु आवे त्रिशूल चलाये,रोग आये सुदर्शन चलाये,बाधा आये तलवार चलाये,जादू आये बाण चलाये,बालक पर कृपा बनाये,इतना मंत्र चौरासी लाख सिद्धो को गोरख ने सुनाया,मेरी भक्ति गुरु की शक्ति,फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा ।।






(नवरात्रि से पूर्व इस मंत्र का साधना विधान पोस्ट कर दिया जायेगा,तब तक आप यह अद्वितीय शाबर मंत्र याद करके रखे क्युके प्रत्येक शाबर मंत्र बिना कंठस्थ किये सफलता नही दे सकता है)


आदेश..........

27 Aug 2017

आसुरी दुर्गा मंत्र साधना (नवरात्रि विशेष)



पुरातन काल में दुर्गम नामक दैत्य हुआ। उसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर सभी वेदों को अपने वश में कर लिया जिससे देवताओं का बल क्षीण हो गया। तब दुर्गम ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। तब देवताओं को देवी भगवती का स्मरण हुआ। देवताओं ने शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ तथा चण्ड-मुण्ड का वध करने वाली शक्ति का आह्वान किया।
देवताओं के आह्वान पर देवी प्रकट हुईं। उन्होंने देवताओं से उन्हें बुलाने का कारण पूछा। सभी देवताओं ने एक स्वर में बताया कि दुर्गम नामक दैत्य ने सभी वेद तथा स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया है तथा हमें अनेक यातनाएं दी हैं। आप उसका वध कर दीजिए। देवताओं की बात सुनकर देवी ने उन्हें दुर्गम का वध करने का आश्वासन दिया।

यह बात जब दैत्यों का राजा दुर्गम को पता चली तो उसने देवताओं पर पुन: आक्रमण कर दिया। तब माता भगवती ने देवताओं की रक्षा की तथा दुर्गम की सेना का संहार कर दिया। सेना का संहार होते देख दुर्गम स्वयं युद्ध करने आया। तब माता भगवती ने काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला आदि कई सहायक शक्तियों का आह्वान कर उन्हें भी युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। भयंकर युद्ध में भगवती ने दुर्गम का वध कर दिया। दुर्गम नामक दैत्य का वध करने के कारण भी भगवती का नाम दुर्गा के नाम से भी विख्यात हुआ।

असुर देवताओं पर अपने तपस्या के माध्यम से विजयी रहे है,जैसे तारकासुर को हराना इतना आसान नही था । स्वयं त्रिदेव और त्रिदेवी भी उसको हराने में सक्षम नही थे क्युके उसने ऐसा वरदान प्राप्त किया था जो किसी भी असुर को प्राप्त नही हो सका । हम सब के अंदर एक असुर विद्यमान है जिसका हम जिक्र नही कर सकते है । किसीको मोह है तो कोई माया के पीछे पागल है,कुछ तो देवताओं को भी नही मानते है और कुछ लोग स्वयं को भगवान मान बैठे हुए है,बहोत सारे लोगो मे अहंकार भी है और साथ मे उन्होंने यह मान लिया है के उनके जैसा श्रेष्ठ इस दुनिया मे पैदा नही हुआ ।

अब बस भी करो,बहोत हो गया । अब आनेवाली नवरात्रि में हमे माँ दुर्गा के स्वरूप "आसुरी दुर्गा" जी के साधना को संपन्न करना ही है,अब इस बार इस जीवन को श्रेष्ठ जीवन बनाना ही है । इस बार भागो मत, साधना क्षेत्र में आप सभी का स्वागत है । आप इस साधना को स्वयं करो और अपने जीवन को खुशहाल बनाओ,आपका सभी कामना इसी साधना से पूर्ण होगा "यह मुझे विश्वास है" ।

मेरे प्यारे साधक मित्रो,मैं कोई आपका गुरु नही हु और नाही कोई आपका सगा संबंधि हु परंतु आप के समस्याओ को सुनकर मुझे भी दुख होता है और अब आपको यह साधना सम्पन्न करके सभी समस्याओं से मुक्त होना ही है । इस नवरात्रि पर मैं आप सभी को वचन देता हूं के आपके समस्या निवारण हेतु यह साधना मैं भी करूँगा सिर्फ फर्क इतना ही है के आपको नित्य इस साधना में स्वयं के कल्याण हेतु 11 माला जाप करना है और मैं 21 माला रात्री में मंत्र जाप करूँगा । साथ मे ये भी संकल्प लेने वाला हु "हे माँ जगतजननी जो भी व्यक्ति यह साधना कर रहा हो,उसका अवश्य ही आपकी कृपा से मनोकामना पूर्ती हो" ।

जो लोग मुझे गलत समझते हो वो समझते रहे क्युके वही उनके लिए एक बचा हुआ कार्य है और शायद उनका लगता होगा के उन्हें मेरा विरोध करने से कुछ प्राप्त हो जाये । आसुरी दुर्गा तो प्रत्यांगिरा पर भी भारी है,मैने महसुस किया है "माँ आसुरी दुर्गा तो इस संसार के समस्त कामनाओ को पूर्ण कर सकती है,सिर्फ कामना अच्छा होना जरूरी है" । इस नवरात्रि के पावन अवसर पर असुरी शक्तियो का आपके जीवन मे नाश हो क्योंकि यह असुरी शक्तियां सभी के जीवन मे बाधाये बनकर व्यक्ति के जीवन का नाश करती है । दुर्भाग्य को समाप्त करने का यह अवसर आप ना गवाये,सिर्फ मंत्र साधना करे तो अवश्य ही आपको पाखंडी बाबाओं के जाल में फसने कि आवश्यकता नही पड़ेगी ।

अब अर्थववेदोक्त आसुरी विद्या के प्रयोगों की श्रेष्ठतम विधि लिख रहा हूँ,जिसे आप मंत्रमहोदधी में पढ़ सकते है ।






साधना विधान:-

सर्वप्रथम माँ भगवती दुर्गा जी का चित्र या विग्रह लाल रंग के कपड़े को किसी भी प्रकार के बाजोट पर बिछाकर स्थापित करे,साधना काल मे घी का दीपक जलाएं और सुगंधित धूपबत्ती का प्रयोग करे । मातारानी को हो सके तो गुडहल के पुष्प या जो भी आप चढ़ाने में सक्षम हो वह पुष्प चढ़ाये । साधक को लाल रंग की धोती और लाल रंग के आसन का ही प्रयोग करना है,साधिकाएं लाल रंग का सलवार/साडी पहन सकती है । मंत्र जाप के समय साधक का मुख उत्तर दिशा में होना जरूरी है और इस साधना में मंत्र जाप हेतु लाल मूंगा/लाल हकीक/लाल चंदन माला का प्रयोग करना है । साधना समाप्ति के बाद माला को याद से जल में प्रवाहित कर दिया जाना चाहिए । साधना रात्रि में सूर्यास्त के एक घंटे के बाद शुरू करे और हो सके तो नवरात्रि के 9 दिनों तक 11 माला मंत्र जाप करे ।


अब एक चम्मच जल दाहिने हाथ मे लेकर मंत्र बोलिये और जल को जमीन पर छोड़ दे-

विनियोग विधि -

।। ॐ अस्य आसुरीमन्त्रस्य अंगिरा ऋषिर्विराट् छन्दः आसुरीदुर्गादेवता ॐ बीजं स्वाहा शक्तिरात्मनोऽभीष्टसिद्ध्यर्थ जपे विनियोगः ।।



अब बायें हाथ मे जल लेकर अपने दाहिने हाथ की पाँचो उंगलियों को जल में डुबोकर बताए गए शरीर के स्थान पर स्पर्श करें-


ऋष्यादिन्यास -

ॐ अङ्गिरसे ऋषये नमः, शिरसि,
ॐ विराट् छन्दसे नमः मुखे,
ॐ आसुरीदुर्गादेवतायै नमः हृदि,
ॐ ॐ बीजाय नमः गुह्ये
ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः ।।



अब दाहिने हाथ से मंत्रो में कहे गए संबंधित शरीर के स्थान पर स्पर्श करें -

षड्ङन्यास -

ॐ कटुके कटुकपत्रे हुं फट् स्वाहा हृदाय नमः,
सुभगे आसुरि हुं फट् स्वाहा शिरसे स्वाहा,
रक्तेरक्तवाससे हुं फट् स्वाहा शिखायै वषट्,
अथर्वणस्य दुहिते हुं फट् स्वाहा कवचाय हुम्,
अघोरे अघोरकर्मकारिके हुं फट् स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट्,
अमुकस्यं गति यावन्मेवशमायाति हुँ फट् स्वाहा, अस्त्राय फट् ॥



अब दोनो हाथ जोडकर अथर्वापुत्री भगवती आसुरी दुर्गा का ध्यान करे-

।। " जिनके शरीर की आभा शरत्कालीन चन्द्रमा के समान शुभ है, अपने कमल सदृश हाथों में जिन्होंने क्रमशः वर, अभय, शूल एवं अंकुश धारण किया है ।
ऐसी कमलासन पर विराजमान, आभूषणों एवं वस्त्रों से अलंकृत, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करने वाली अथर्वा की पुत्री भगवती आसुरी दुर्गा मुझे प्रसन्न रखें" ।।




आसुरी दुर्गा मंत्र:-

।। ॐ कटुके कटुकपत्रे सुभगे आसुरिरक्ते रक्तवाससे अथर्वणस्य दुहिते अघौरे अघोरकर्मकारिके अमुकस्य गतिं दह दह उपविष्टस्य गुदं दह दह सुप्तस्य मनो दह दह प्रबुद्धस्य हृदयं दह दह हन हन पच पच तावद्दह तावत्पच यावन् मे वशमायाति हुं फट् स्वाहा  ।।




जिन साधक मित्रो को संस्कृत पढने में कठिनाई हो वह साधक विनियोग करे फिर ध्यान करे और मंत्र जाप शुरू करे,न्यास जिनसे करना संभव हो वही करे । मंत्रमहोदधी में जिस प्रकार से आसुरी दुर्गा मंत्र के काम्य प्रयोग दिए हुए है वह यहां प्रस्तुत किये जा रहे है-


इस मन्त्र का दश हजार जप करना चाहिए । तदनन्तर घी मिश्रित राई से दशांश होम करने पर यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है । (जयादि शक्ति युक्त पीठ पर दुर्गा की एवं दिशाओं में सायुध शशक्तिक इन्द्रादि की पूजा करनी चाहिए) ॥१३३॥

अब काम्य प्रयोग का विधान कहते हैं - राई के पञ्चाङ्गो (जड शाखा पत्र पुष्प एवं फलों) को लेकर साधक मूलमन्त्र से उसे १०० बार अभिमन्त्रित करे, तदनन्तर उससे स्वयं को धूपित करे तो जो व्यक्ति उसे सूँघता है वही वश में हो जाता है । मधु युक्त राई की उक्त मन्त्र से एक हजार आहुति देकर साधक जगत् को अपने वश में कर सकता है ॥१३४-१३५॥

अब वशीकरण आदि अन्य प्रयोग कहते हैं -
स्त्री या पुरुष जिसे वश में करना हो उसकी राई की प्रतिमा बना कर पुरुष के दाहिने पैर के मस्तक तक, स्त्री के बायें पैर से मष्टक तक, तलवार से १०८ टुकडे कर, प्रतिदिन विधिवत् राई की लकडी से प्रज्वलित अग्नि में निरन्तर एक सप्ताह पर्यन्त इस मन्त्र से हवन करे, तो शत्रु भी जीवन भर स्वयं साधक का दास बन जाता है । स्त्री को वश में करने के लिए साध्य में (देवदत्तस्य उपविष्टस्य के स्थान पर देवदत्तायाः उपविष्टायाः इसी प्रकार देवदत्तायाः सुदामा आदि) शब्दों को ऊह कर उच्चारण करना चाहिए ॥१३६-१३८॥

सरसों का तेल तथा निम्ब पत्र मिला कर राई से शत्रु का नाम लगा कर मूलमन्त्र से होम करने से शत्रु को बुखार आ जाता है ॥१३८-१३९॥

इसी प्रकार नमक मिला कर राई का होम करने से शत्रु का शरीर फटने लगता है । आक के दूध में राई को मिश्रित कर होम करने से शत्रु अन्धा हो जाता है ॥१३९-१४०॥

पलाश की लकडी से प्रज्वलित अग्नि में एक सप्ताह तक घी मिश्रित राई का १०८ बार होम करने से साधक ब्राह्मण को, गुडमिश्रित राई का होम करने से क्षत्रिय को, दधिमिश्रित राई के होम से वैश्य को तथा नमक मिली राई के होम से शूद्र को वश में कर लेता है । मधु सहित राई की समिधाओं का होम करने से व्यक्ति को जमीन में गडा हुआ खजाना प्राप्त होता है ॥१४०-१४२॥

जलपूर्ण कलश में राई के पत्ते डाल कर उस पर आसुरी देवी का आवाहन एवं पूजन कर साधक मूलमन्त्र से उसे १०० बार अभिमन्त्रित करे । फिर उस जल से साध्य व्यक्ति का अभिषेक करे तो साध्य की दरिद्रता, आपत्ति, रोग एवं उपद्रव उसे छोडकर दूर भाग जाते है ॥१४३-१४४॥

राई का फूल, प्रियंगु, नागकेशर, मैनसिल एवं तगार इन सबको पीसकर मूलमन्त्र से १०८ बार अभिमन्त्रित करे । फिर उस चन्दन को साध्य व्यक्ति के मस्तक पर लगा दे तो साधक उसे अपने वश में कर लेता है ॥१४५-१४६॥

नीम की लकडी ल्से प्रज्वलित अग्नि में एक सप्ताह तक दक्षिणाभिमुख सरसोम मिश्रित राई की प्रतिदिन १०० आहुतियाँ देकर साधक अपने शत्रुओं को यमलोक का अथिथि बना देता है ॥१४६-१४७॥

यदि इस आसुरी विद्या की विधिवत् उपासना कर ली जाय तो क्रुद्ध राजा समस्त शत्रु किम बहुना क्रुद्ध काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड सकता है ॥१४८॥




133 से 148 तक जो कुछ शब्द है उसका वर्णन हमारे प्राचीन ऋषियों ने किया हुआ है और उनको इस अद्वितीय ज्ञान को जानकारों ने मंत्रमहोदधी नामक किताब में आबद्ध किया हुआ है । विश्वास और धैर्य से साधना संपन्न कर तो निसंदेह आपको लाभ प्राप्त हो सकता है ।



आदेश.........

21 Aug 2017

वीर-वैताल शाबर मंत्र साधना



अदृश्य शक्ति का प्रवाह क्या आपने कभी विचार किया है कि ब्रह्माण्ड में कितनी अृदश्य शक्तियों का प्रवाह हो रहा है? कई शक्तियां आपको दिखाई नहीं देती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि शक्तियां होती ही नहीं है। वैताल शिव के प्रमुख गण है, जिन्होंने दक्ष राज के यज्ञ का विंध्वस कर शिव सत्ता स्थापित की हर व्यक्ति वैताल साधना सम्पन्न कर अपने चारों और एक सुरक्षा चक्र स्थापित कर सकता है। वैताल साधना ऐसी ही अद्वितीय तंत्र साधना है जिसके पूर्ण होने पर वैताल हर समय सुरक्षा प्रहरी के रुप में साधक के साथ रहता है।
वैताल भगवान शिव का ही अंश स्वरूप हैं, शिव के गणों में वैताल नाम प्रमुखता से लिया जाता है। अपनी दैवीय शक्तियों के कारण प्राचीन काल से ही भगवान शिव के विशिष्ट गण वैताल की साधना का प्रचलन रहा है।
इतिहास साक्षी है, कि सांदीपन आश्रम में भगवान श्री कृष्ण ने भी वैताल सिद्धि प्रयोग सम्पन्न किया था, जिसके फलस्वरूप वे महाभारत में अजेय बन सके, और जीवन में अद्वितीय सिद्ध हो सके, हजारों बाणों के बीच भी वे सुरक्षित रह सके। विक्रमादित्य ने भी वैताल सिद्धि प्रयोग कर अपने जीवन के कई प्रश्नों को सुलझा लिया था।

आगे चलकर गुरु गोरखनाथ और मछिन्दरनाथ तो वैताल साधना के सिद्धतम आचार्य बने और उन्होंने वैताल साधना द्वारा उन्होंने अपने जीवन में साधनात्मक उपलब्धियों को सहज ही प्राप्त कर लिया। महान् तंत्र वेत्ता और गोरख तंत्र के आदि गुरु गोरखनाथ प्रणीत वैताल साधना, इस साधना को आज भी गोरख पंथ प्रमुख रूप से सम्पादित करता है।



वैताल उत्पत्ति

एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उस आयोजन में भगवान शिव को उचित मान-सम्मान नहीं दिया गया, इस कारण उनकी पत्नी सती जो राजा दक्ष की पुत्री थीं, व्यथित हो गईं और यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये। इस कारण भगवान शिव अत्यन्त क्रोधित हुए, उनके क्रोध से तीनों लोक थर्राने लगे, पेड़ों से पत्ते झड़ गये, चारों तरफ बिजलियां कड़कने लगीं और समुद्र में तूफान सा आ गया।

उसी क्रोध के आवेश में भगवान शिव ने अपनी जटा की एक लट को तोड़कर दक्ष के यज्ञ में होम कर दी, फलस्वरूप एक अत्यन्त तेजस्वी पराक्रमी बलवान और साहसी वीर की उत्पत्ति हुई जिसे ‘वैताल’ शब्द से संबोधित किया गया।
यज्ञ में से वैताल को प्रकट होते देख सारे देवता और दानव थर थर कांपने लगे, उसकी ज्वालाओं के सामने सारे देवता लोग झुलसने लगे और ऐसा लगने लगा कि यह पराक्रमी यदि चाहे तो पूरे भूमण्डल को एक हाथ से उठा कर समुद्र में फेंक सकता है।

भगवान शिव की शक्ति से उत्पन्न वैताल को भगवान शिव ने स्वयं आज्ञा दी की – जो साधक तुम्हारी साधना कर तुम्हें प्रत्यक्ष प्रकट करें, उसके सामने शांत स्वरूप में उपस्थित होना और जीवन भर उसकी छाया की तरह रक्षा करना, …यही नहीं, अपितु वह जीवन में तुम्हें जो भी आज्ञा दे, जिस प्रकार की भी आज्ञा दे उस आज्ञा का पालन करना ही तुम्हारा कर्त्तव्य होगा।



गोरक्ष संहिता के अनुसार वैताल साधना के निम्न छह लाभ हैं –

1. वैताल साधना से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, यह अत्यन्त सौम्य और सरल साधना है। जब वैताल साधना सिद्धि होती है, तो मनुष्य रूप में सरल प्रकृति और शांत रूप में वैताल प्रकट होता है, और जीवन भर दास की तरह साधक के कार्य सम्पन्न करता है।

2. वैताल सिद्धि होने पर वह छाया की तरह अदृश्य रूप से साधक के साथ बना रहता है, और प्रतिपल प्रतिक्षण उसकी रक्षा करता है। प्रकृति, अस्त्र शस्त्र या मनुष्य उसका कुछ भी अहित नहीं कर सकते, किसी भी प्रकार से उसके जीवन में न तो दुर्घटना हो सकती है और न उसकी अकाल मृत्यु ही संभव है।

3. ऐसे साधक के जीवन में शत्रुओं का नामो निशान नहीं रहता, वह कुछ ही क्षणों में अपने शत्रुओं को परास्त करने का साहस रखता है, और उसका जीवन निष्कंटक और निर्भय होता है, लोहे की सीखंचें या कठिन दीवारें भी उसका कुछ भी अनिष्ट नहीं कर सकतीं।

4. वैताल भविष्य सिद्धि सम्पन्न होता है, अतः अपने जीवन या किसी के भी जीवन के भविष्य से सम्बन्धित जो भी प्रश्न पूछा जाता है, उसका तत्काल उत्तर प्रामाणिक रूप से मिल जाता है, ऐसा व्यक्ति सही अर्थों में भविष्य दृष्टा बन जाता है।

5. जो साधक वैताल को सिद्ध कर लेता है, वह वैताल के कन्धों पर बैठ कर अदृश्य हो सकता है, एक स्थान से दूसरे स्थान पर कुछ ही क्षणों में जा सकता है और वापिस आ सकता है, उसके लिए पहाड़, नदियां या समुद्र बाधक नहीं बनते।
ऐसा साधक कठिन से कठिन कार्य को वैताल के माध्यम से सम्पन्न करा लेता है, और चाहे कोई व्यक्ति कितनी ही दूरी पर हो, उसे पलंग सहित उठा कर अपने यहां बुलवा सकता है, और वापिस लौटा सकता है, उसके द्वारा गोपनीय से गोपनीय सामग्री प्राप्त कर सकता है।

6. वैताल सिद्धि प्रयोग सफल होने पर साधक अजेय, साहसी, कर्मठ और अकेला ही हजार पुरुषों के समान कार्य करने वाला व्यक्ति बन जाता है।



वास्तव में वैताल साधना अत्यन्त सौम्य और सरल साधना है, जो भगवान शिव की साधना करता है वह वैताल साधना भी सम्पन्न कर सकता है। जिस प्रकार से भगवान शिव का सौम्य स्वरूप है, उसी प्रकार से वैताल का भी आकर्षक और सौम्य स्वरूप है। इस साधना को पुरुष या स्त्री सभी सम्पन्न कर सकते हैं।
यद्यपि यह तांत्रिक साधना है, परन्तु इसमें किसी प्रकार का दोष या वर्जना नहीं है। गायत्री उपासक या देव उपासक, किसी भी वर्ण का कोई भी व्यक्ति इस साधना को सम्पन्न कर अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। सबसे बड़ी बात यह है, कि इस साधना में भयभीत होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है, घर में बैठकर के भी यह साधना सम्पन्न की जा सकती है। साधना सम्पन्न करने के बाद भी साधक के जीवन में किसी प्रकार अन्तर नहीं आता, अपितु उसमें साहस और चेहरे पर तेजस्विता आ जाती है, फलस्वरूप वह जीवन में स्वयं ही अपने अभावों, कष्टों और बाधाओं को दूर कर सकता है।

आज के युग में वैताल साधना अत्यन्त आवश्यक और महत्वपूर्ण हो गई है, दुर्भाग्य की बात यह है कि अभी तक इस साधना का प्रामाणिक ज्ञान बहुत ही कम लोगों को था, दूसरे साधक ‘वैताल’ शब्द से ही घबराते थे, परन्तु ऐसी कोई बात नहीं है। जिस प्रकार से साधक लक्ष्मी, विष्णु या शिव आदि की साधना सम्पन्न कर लेते हैं, ठीक उसी प्रकार के सहज भाव से वे वैताल साधना भी सम्पन्न कर सकते हैं।



साधना सामग्री

इस प्रयोग में न तो कोई पूजा और सिर्फ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है,नाथ संप्रदाय के अनुसार इस प्रयोग में केवल तीन उपकरणों की जरूरत होती है।


1. तांत्रोक्त वीर वैताल यंत्र (जिससे एक पत्ते वाले बेल वृक्ष की जड़ और एक पत्ते वाले पलाश के वृक्ष की जड़ होना ज़रूरी है,जो ताबीज में भरकर सिद्ध किया जाता है) 2. रुद्र मंत्र आवेशित तांत्रोक्त वैताल रुद्राक्ष माला और 3.रक्षा कवच (इस कवच में मसन्या उद का प्रयोग होना चाहिए ) ।



इसके अलावा साधक को अन्य किसी प्रकार की सामग्री जल पात्र या कुंकुम आदि की जरूरत नहीं होती, यह साधना रात्रि को सम्पन्न की जाती है, परन्तु जो साधक न भयभीत हों, और न विचलित हों, वे निश्चिन्त रूप से इस साधना को सम्पन्न कर सकते हैं।



साधना विधान:-

साधक रात्रि को दस बजे के बाद स्नान कर लें और स्नान करने के बाद अन्य किसी पात्र को छुए नहीं। पहले से ही धोकर सुखाई हुई काली धोती को पहन कर काले आसन पर दक्षिण की ओर मुंह कर घर के किसी कोने में या एकान्त स्थान में बैठ जाएं।

अपने सामने लकड़ी के एक बाजोट पर शिव परिवार चित्र/विग्रह/शिव यंत्र/शिवलिंग स्थापित कर लें और साथ ही अपने गुरु/गोरक्षनाथ का चित्र भी स्थापित कर दें। वैताल साधना में सफलता हेतु गुरु और शिव जी से आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करें। इस हेतु सर्वप्रथम गुरु और शिव जी का  ध्यान करें –

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥


अब भगवान शिव जी का मन ही मन नीचे लिखे मंत्र से ध्यान करें-

ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैव्र्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम॥



एक ताँबे के पात्र या स्टील की थाली में काजल से एक गोला बनाएं और उस गोले में वैताल यंत्र को स्थापित कर दें। यंत्र स्थापन के पश्चात् हाथ जोड़कर वैताल का ध्यान करें।



ध्यान

धूम्र-वर्ण महा-कालं जटा-भारान्वितं यजेत्
त्रि-नेत्र शिव-रूपं च शक्ति-युक्तं निरामपं॥
दिगम्बरं घोर-रूपं नीलांछन-चय-प्रभम्
निर्गुण च गुणाधरं काली-स्थानं पुनः पुनः॥



ध्यान के उपरान्त साधक वैताल सिद्धि माला से मंत्र की 3 माला मंत्र जप नित्य कम से कम 21 दिनों तक सम्पन्न करें। यह शाबर मंत्र छोटा होते हुए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है और शाबरी तंत्र में इस मंत्र की अत्यन्त प्रशंसा की हुई है।



शाबर वैताल मंत्र

॥ॐ नमो आदेश गुरुजी को,वैताल तेरी माया से जो चाहे वह होये,तालाब के वीर-वैताल यक्ष बनकर यक्षिणियों संग चले,शिव का भक्त माता का सेवक मेरा कह्यो कारज करे,इतना काम मेरा ना करो तो राजा युधिष्ठिर का गला सूखे,(यहां पर मैं आगे का मंत्र नही लिख रहा हु,क्योके मंत्र गोपनीय होने के कारण अधूरा रखना ही बेहतर है) ॥



मंत्र जप करते समय किसी प्रकार आलस्य नहीं लायें, शांत भाव से मंत्र जप करते रहें। यदि खिड़की, दरवाजे खड़खड़ाने लगे तो भी अपने स्थान से न उठें। मंत्र जप के पश्चात् बेसन के लड्डुओं का भोग यंत्र के सामने अर्पित कर दें।
वास्तव में ही यह अत्यन्त गोपनीय प्रयोग है, अतः यह प्रयोग सामान्य व्यक्ति को, निन्दा करने वाले को, तर्क करने वाले दुराचारी को नहीं देना चाहिए और न इसकी विधि समझानी चाहिए।

यह साधना संपन्न करने हेतु ईमेल के माध्यम से सम्पर्क करें- snpts1984@gmail.com और आपको साधना सामग्री हेतु भी जानकारी दिया जाएगा ।




आदेश............

17 Aug 2017

सूर्यग्रहण साधना



ग्रहण एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक घटना है जिसके दूरगामी दुष्प्रभाव होते हैं और अनिष्ट शक्तियां इनका लाभ उठातीं हैं ।
हम जहां रह रहे हैं यदि उस क्षेत्र में ग्रहण दिखार्इ दे रहा हो, तो सभी आध्यात्मिक सावधानियां रखना आवश्यक है । पूरे वर्ष नियमित साधना करने से ग्रहण के दुष्प्रभाव कम करने में सहायता प्राप्त होती है । साथ ही यदि कोई ग्रहण काल में तीव्र साधना करता है तो उसे इसका व्यक्तिगत सकारात्मक लाभ भी आध्यात्मिक दृष्टि से प्रगति के रूप में होता है ।
चंद्र की अपेक्षा सूर्य पृथ्वी पर जीवन के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण है । सूर्य को सूक्ष्म अथवा स्थूल स्तर पर अवरुद्ध करने से पृथ्वी सूक्ष्म एवं अमूर्त रूप से अधिक संवेदनशील हो जाती है जिसके कारण वातावरण अनिष्ट शक्तियों के (भूत, प्रेत, पिशाच इ.) लिए अधिक पोषक बन जाता है ।


ग्रहण काल में साधना करने से वातावरण के बढे हुए रज-तम एवं काली शक्ति के प्रभाव को निष्प्रभ किया जा सकता है । इसलिए यदि कोई व्यक्ति ग्रहण काल में तीव्र साधना करता है तो वह अवश्य ही काली शक्तियों के दुष्प्रभाव से बच सकता है । एक ग्रहण से होनेवाले दूसरे ग्रहण तक काली शक्तियों के दुष्प्रभाव से बचने हेतु नित्य साधना करना मूर्खता है,इसलिए ग्रहण काल मे दुष्प्रभाव से बचने हेतु साधना करे और पूर्ण लाभ उठाएं । आजकल कुछ लोगो ने दुष्प्रभाव को ग्रहो का खेल बना दिया है जिसके कारण बहोत सारे लोगो का पेट रत्न बेचने से भर रहा है परंतु हमे यहां कुछ तो समझना ही होगा के हम जीवन मे आध्यात्मिक/भौतिक प्रगति कैसे करेगे? क्युके आज के समय मे सामान्य जीवन जीना एक श्राप बन चुका है,जिसके पास धन ना हो वह हर जगह हार जाता है ।


आज मैं धन-धान्य से संबंधित साधना दे रहा हु,जिसे ग्रहण काल मे संपन्न करना प्रत्येक व्यक्ति के लिये आवश्यक है । जो लोग ग्रहण काल को मजाक में लेते है शायद वह दुख-संकट के समय मे भी हँसते हो परंतु जिन्हें दुख-दर्द-संकट का एहसास है वह लोग इस साधना से खुशिया प्राप्त कर सकते है ।
ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा अतः इसका धार्मिक दृष्टिकोण से शुभाशुभ प्रभाव भी मान्य नहीं होगा। परंतु ज्योतिषीय दृष्टिकोण से इसका प्रभाव संपूर्ण विश्व पर पड़ेगा । ग्रहण चाहे दुनिया के किसी भी क्षेत्र में हो परंतु उसका असर सभी प्राणियों पर होता है,यह ग्रहण भारत मे दृश्य नही है तो कोई बात नही पर साधना सिद्धियों हेतु पूर्णतः एक अपेक्षाकृत योग है और इस अवसर का लाभ उठाना प्रत्येक साधक का कार्य है ।



चाणक्य ने तो स्पष्ट कहा है कि-

त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं
पुत्राश्च दाराश्च सुहज्जनाश्च।
तमर्शवन्तं पुराश्रयन्ति अर्थो
हि लोके मनुषस्य बन्धुः॥

निर्धन हो जाने पर मनुष्य को पत्नी, पुत्र, मित्र, निकट सम्बन्धी, नौकर और हितैषी जन सभी छोड़कर चले जाते हैं और जब पुन: धन प्राप्त हो जाता है तो फिर से उसी के आश्रय में आ जाते हैं। शास्त्रों में भी ‘ धर्मार्थ काम मोक्षाणां पुरुषार्थ चतुष्टयम्’ कहकर मनुष्य की उन्नति के लिए चार प्रकार के पुरुषार्थ बतायें हैं, जिसमें सबसे पहला पुरुषार्थ धर्म, दूसरा अर्थ (लक्ष्मी प्राप्ति), तीसरा काम (सन्तान उत्पन्न करना) और चौथा मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना आदि सम्पन्न करना है ।

दरिद्रता एवं दुःख को यदि जड़ से उखाड़ फेंकना हो, तो सूर्य ग्रहण मे कमला तंत्र वर्णित लक्ष्मी के मूल स्वरूप की ‘कमला साधना’ अवश्य सम्पन्न करें। इस साधना को जो भी साधक श्रेष्ठ मुहूर्त (सूर्य ग्रहण) में पूर्ण विधि-विधान से करता है, उसके जीवन की दरिद्रता समाप्त हो जाती है और उसका दुर्भाग्य, सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है।




साधना विधि-विधान:-


कमला तंत्र के अनुसार सूर्य ग्रहण से पूर्व साधक स्नान, ध्यान कर पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं और अपने सामने एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर लक्ष्मी चित्र स्थापित कर दें। लक्ष्मी जी के चित्र के समीप ही गुरु चित्र स्थापित कर, गुरु चित्र का पंचोपचार पूजन कर लें (जिनके गुरु ना हो वह शिव पूजन करे) । इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर नवग्रहों की शांति हेतु प्रार्थना करें ।


नवग्रह प्रार्थना –

ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु॥

नवग्रह प्रार्थना के पश्चात् एक थाली में नया पीला वस्त्र बिछाकर उसे बाजोट पर रख दें, कपड़े के ऊपर सिन्दूर से सोलह बिन्दियां लगावें। सबसे ऊपर चार फिर उनके नीचे चार-चार बिन्दियां चार पक्तियों में, इस प्रकार कुल 16 बिन्दियां लगा कर प्रत्येक बिन्दी पर एक-एक लौंग तथा एक-एक इलायची रख कर फिर इनका अष्टगंध से पूजन करें और हाथ जोड़कर निम्न ध्यान मंत्र का उच्चारण करें –


उद्यन्मार्तण्ड-कान्ति-विगलित
कवरीं कृष्ण वस्त्रवृतांगाम्।
दण्डं लिंगं कराब्जैर्वरमथ
भुवनं सन्दधतीं त्रिनेत्राम्॥

नाना रत्नैर्विभातां स्मित-मुख
-कमलां सेवितां देव-देव-सर्वै
र्भार्यां रा ज्ञीं नमो भूत स-रवि-कल
-तनुमाश्रये ईश्वरीं त्वाम्॥


जो साधक संस्कृत पढ़े लिखे नहीं हैं, उनको चिंता नहीं करनी चाहिए और धीरे-धीरे शब्द उच्चारण करते हुए यह ध्यान मंत्र पढ़ सकते हैं।



इसके बाद दोनों हाथों में पुष्प तथा अक्षत लेकर निम्न मंत्र से अपने घर में भगवती कमला (लक्ष्मी जी का रूप) का आह्वान करते हुए चित्र  पर पुष्प, अक्षत समर्पित करें ,अब दाहिने हाथ मे थोड़ा जल लेकर विनियोग मंत्र बोले और जल को जमीन पर छोड़ दे-


विनियोग:-

ॐ ब्रह्मा ॠषये नमः शिरसि। गायत्रीश्छन्दसे नमः मुखे,श्री जगन्मातृ महालक्ष्म्यै देवतायै नमः हृदि,श्रीं बीजाय नमः गुह्ये,सर्वेष्ट सिद्धये मम धनाप्तये ममाभीष्टप्राप्तये जपे विनियोगाय नमः।


इसके बाद साधक सामने शुद्ध घृत का दीपक जलाएं, उसका पूजन करें तत्पश्चात् सुगन्धित अगरबत्ती प्रज्वलित करें, ऐसा करने के बाद साधक चित्र पर कुंकुम समर्पित करें, पुष्प तथा पुष्प माला पहनाएं, अक्षत चढ़ावें तथा नैवेद्य का भोग लगावें, सामने ताम्बूल, फल और दक्षिणा समर्पित करें।


भगवती कमला के आह्वान और पूजन के पश्चात् इस साधना में ‘कवच’ पाठ का विधान है। इस दुर्लभ कवच का पांच बार पाठ करें, जो महत्वपूर्ण है, कवच पाठ से चित्र का साधक के प्राणों से सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, और साधना सम्पन्न करने पर साधक को ओज, तेज, बल, बुद्धि तथा वैभव प्राप्त होने लग जाता है। इस कवच का उच्चारण सनत्कुमार ने भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया था। कमला उपनिषद् में इस लघु कवच का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रयोग है –



कमला कवच:-


ऐंकारी मस्तके पातु वाग्भवी सर्व सिद्धिदा।
ह्रीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षु युग्मे च शांकरी।

जिह्वायां मुख-वृत्ते च कर्णयोर्दन्तयोर्नसि।
ओष्ठाधरे दन्त पंक्तौ तालु मूले हनौ पुनः॥

पातु मां विष्णु वनिता लक्ष्मीः श्री विष्णु रूपिणी।
कर्ण-युग्मे भुज-द्वये-रतन-द्वन्द्वे च पार्वती॥

हृदये मणि-बन्धे च ग्रीवायां पार्श्वयोर्द्वयोः।
पृष्ठदेशे तथा गृह्ये वामे च दक्षिणे तथा॥

स्वधा तु-प्राण-शक्त्यां वा सीमन्ते मस्तके तथा।
सर्वांगे पातु कामेशी महादेवी समुन्नतिः॥

पुष्टिः पातु महा-माया उत्कृष्टिः सर्वदावतु।
ॠद्धिः पातु सदादेवी सर्वत्र शम्भु-वल्लभा॥

वाग्भवी सर्वदा पातु, पातु मां हर-गेहिनी।
रमा पातु महा-देवी, पातु माया स्वराट् स्वयं॥

सर्वांगे पातु मां लक्ष्मीर्विष्णु-माया सुरेश्वरी।
विजया पातु भवने जया पातु सदा मम॥

शिव-दूती सदा पातु सुन्दरी पातु सर्वदा।
भैरवी पातु सर्वत्र भैरुण्डा सर्वदावतु॥

पातु मां देव-देवी च लक्ष्मीः सर्व-समृद्धिदा।
इति ते कथितं दिव्यं कवचं सर्व-सिद्धये॥



वास्तव में ही यह कवच जो कि ऊपर स्पष्ट किया गया है अपने आप में महत्वपूर्ण है, यदि साधक नित्य इसके ग्यारह पाठ करता है, तो भी उसे जीवन में धन, वैभव, यश सम्मान प्राप्त होता रहता है। प्रयोग में इसके पांच पाठ करें। कमला कवच के पाठ के पश्चात् ‘ कमल गट्टा माला ’ या " स्फटिक माला " का कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से पूजन करें और पूजन के पश्चात् ‘ जप माला ’ से निम्न कमला मंत्र की 16 माला मंत्र जप करें।



कमला मंत्र

॥ ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं क्लीं ह्सौः जगत्प्रसूत्यै नमः॥

Om aing ing hreeng shreeng kleeng hasoum jagatprasutyai namah


जब सोलह माला मंत्र जप हो जाय तब भगवती लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ आरती सम्पन्न करें ।


ग्रहण के बाद भी साधक को 21 दिनों तक नित्य 1 माला जाप करते रहना चाहिए और साधना काल मे साधनात्मक नियमो का भी पालन करे । मैं कुछ  साधनात्मक नियम बता देता हूं जो जरूरी है,प्रथम नियम साधना नित्य एक ही समय पर करे,दूसरा नियम स्त्री को जब राजस्वाल हो तो उस समय उनके हाथों बना भोजन ना करे और उनका स्पर्श भी ना होने दे,तीसरा नियम साधना में ब्रम्हचैर्यत्व का पालन करे,आखरी नियम मास-मदिरा का त्याग कर । जिसने भी ये चार नियम समझलिये उसका जीवन साधना के क्षेत्र में अद्वितीय हो सकता है । इस साधना के बाद आपको जीवन मे किसी भी प्रकार की कोई भी कमी ना पड़े यही संकल्प मैं इस ग्रहण में करने वाला हूँ ताकि आपका जीवन अद्वितीय बन सके ।


ग्रहण का समय:-इस बार 21 अगस्त को सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। भारतीय समय के मुताबिक यह ग्रहण रात में 9.15 मिनट से शुरु होगा और रात में 2.34 मिनट पर खत्म होगा। भारत में इस दौरान रात रहेगी तो यहां पर कहीं भी सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा परंतु साधको के लिये यह एक साधना सिद्धि हेतु महत्वपूर्ण समय माना जायेगा ।







आदेश.........