25 Oct 2017

गोपनीय दुर्लभ मंत्र ।



आप ईश्वर की अनमोल कृति हैं इसलिए अच्छा ही होगा – अच्छा ही होगा,विचार मंथन और क्रिया सामान्यतः प्रत्येक मनुष्य अपनी समस्याओं के बारे में विचार करता रहता है और स्वयं को परेशान करता रहता है। चिन्ताओं को अपने पास आने का निमंत्रण देता रहता है। क्या आपको मालूम है आप में क्या शक्ति है और इस शक्ति का विकास कैसे संभव है? क्या आप इस प्रश्न पर विचार करते हैं?

उस सर्व शक्तिमान ईश्वर ने एक निश्चित उद्देश्य के लिये आपको यह सुन्दर जीवन दिया है और उस निश्चित लक्ष्य, उद्देश्य को आप ही पूरा करेंगे यह विश्वास सदैव बनाए रखें।

यह मनुष्य व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि उसके पास शक्ति तो सीमित होती है लेकिन उसकी कामनाओं की उड़ान असीमित होती है। प्रत्येक मनुष्य को प्रतिपल कुछ न कुछ क्रिया अवश्य ही करनी पड़ती है। बिना क्रिया के वह एक क्षण भी नहीं रह सकता है। साथ ही यह भी समझें कि रोज-रोज की चिन्ताओं में, परेशानियों में, तनाव में काम करते हुए वह अपने स्वयं के बारे में सबसे कम विचार कर पाता है। इस कारण वह अपनी भागती-दौड़ती जिन्दगी में एक मशीन की भांति ही काम करता रहता है। विपरीत स्थिति में, स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देता है। इस प्रकार वह यंत्रवत् जीवन जीता है। प्रतिदिन अपने बारे में कम और ज्यादा से ज्यादा दूसरों के बारे में ही चिन्तन करता है, दूसरों की तुलना में अपने-आपको श्रेष्ठ साबित करने के लिये प्रयत्नशील रहता है।

अब इसमें गलती किसकी है, सोचो? हर समय दूसरों के बारे में चिन्तन करना है या अपने बारे में भी चिन्तन करना है, विचार करें – मनुष्य का स्वभाव बड़ा ही सरल है। उसके अन्दर एक जिद्द, होड़ है। वह हर खूबसूरत, अनमोल वस्तु पर, व्यक्ति पर, स्थान पर अपना एकाधिकार बनाना चाहता है। इसके साथ ही उसके सारे प्रयास, सारे विचार इसी दिशा में होते हैं कि मैं ध्यान, सौन्दर्य, धन-बल, शरीर-बल, ऐश्वर्य सभी में प्रभावशाली बनूं। अब उसका चिन्तन दो तरफा है, एक ओर तो वह हर वस्तु पर अपना अधिकार जमाना चाहता है और दूसरा वह हर दृष्टि से प्रभावशाली बनना चाहता है। उसका चिन्तन इसी बात में उलझा रहता है कि किस प्रकार और कैसे हर समय वह स्वयं को श्रेष्ठ साबित कर सके?

परन्तु हकीकत में होता क्या है? वह इसी फेर में निरन्तर उलझा रहता है। समय का चक्र भी बड़ा बलवान है। धीरे-धीरे जीवन शक्ति क्षीण होती है लेकिन कामना शक्ति, इच्छाएं बढ़ती ही जाती हैं। इस कारण मन-मस्तिष्क की शक्तियां कमजोर होती चली जाती हैं। सभी के जीवन में यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इसलिये ज्यादातर लोग आपको परेशान, चिन्तित दिखाई देंगे। यह उलझन तो उन्होंने स्वयं अपने जीवन में डाली है। सबसे बड़ा आश्चर्य इस बात का है कि मनुष्य जीवन में 90% भाग पर प्रकृति अर्थात् परमसत्ता का प्रभाव है। केवल और केवल 10% प्रतिशत भाग पर मनुष्य के स्वयं के कर्म और चिन्तन का प्रभाव रहता है लेकिन मनुष्य करता क्या है? जिस बात पर उसका अधिकार ही नहीं है, परम शक्ति का प्रभाव है उसके ऊपर चिन्ता करता रहता है। कर्म और विचार उसके अधिकार में है केवल और केवल इस पक्ष को सकारात्मक बनाए। इस 10% भाग अर्थात् ‘कर्म और विचार’ को यदि आपने सकारात्मक बना लिया तो पूरा जीवन व्यवस्थित हो जाएगा।

विचार करें कि आपके हाथ में कौन-कौन सी स्थितियां हैं और कौन-कौन सी स्थितियां आपके हाथ में नहीं हैं।

कामनाएं कमजोर बनाती हैं,मनुष्य की यह बड़ी कमजोरी है कि वह सबसे ज्यादा चिन्तन अपनी कामनाओं का, अपने प्रियजनों का, अपने समाज का करता रहता है। वह अपने जीवन में उन चिन्ताओं से परेशान- दुःखी, उदास, हताश, निराश होता है जो कि उसके वश में ही नहीं हैं। भविष्य की हर सोच में वह स्वयं को डरा हुआ पाता है। भविष्य की हर चिन्ता में अपना वर्तमान खराब कर देता है। इसी से तो उसकी सकारात्मक सोच, नकारात्मक बन जाती है और फिर वह एक साधारण जीवन जीने लगता है। जबकि विचार करें कि आपका मनुष्य योनि में जन्म तो आने वाले कल में स्वयं को अति सफलतम सिद्ध करने के लिये ही हुआ था। मूल आवश्यकता इस बात की है कि जिन विषय वस्तुओं पर हमारा अधिकार नहीं है, जिन विषय वस्तुओं के बारे में हमें जानकारी नहीं है या जिन विषय वस्तुओं को हम पहले से जान नहीं सकते हैं उन सब के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाएं और अपने आपको बार-बार आश्वस्त करते रहें कि आगे सब अच्छा ही होगा, तो यहीं से आपके लिए आनन्द का नया द्वार खुल जाएगा।


हमारा भारतीय दर्शन इस विषय में क्या कहता है?
भारतीय दर्शन में एक सिद्धान्त है कि मनुष्य में अलौकिक, असीम और अनन्त शक्ति का स्रोत छिपा हुआ है और इस शक्ति पर चार प्रकार के प्रमुख आवरण हैं, जिनके कारण अनेक कमियां उसके व्यक्तित्व में आ जाती हैं।

ये चार आवरण हैं – 1. काम (sex), 2. क्रोध (anger), 3. लोभ (greed) और 4. अतिमोह (delusion)

इन आवरणों के कारण ही मनुष्य अपने सुख-दुःख का जाल बुनता रहता है और उसमें फंसता रहता है, छटपटाता रहता है। जबकि वास्तविक बात यह है कि ये चारों आवरण मनुष्य ने स्वयं बनाए हैं।

*काम – जीवन में निरन्तर काम का भाव, मन को अशांत और उद्वेगी बना देता है। जीतने की प्रवृत्ति के कारण बार-बार बाजी लगाता है।

*क्रोध – क्रोध व्यक्ति में उसकी खुद की गलतियों को बल पूर्वक दूसरे से मनवाने का उपक्रम करता है। अपनी गलतियों को छुपाने के लिये ही व्यक्ति क्रोध करता है।

*लोभ – निरन्तर लोभ का भाव, हर अच्छी चीज को प्राप्त करने का, हड़पने का भाव देता है।

*अतिमोह – अतिमोह ऐसा जाल है कि वह मनुष्य में यह भावना पैदा करता रहता है कि ‘ मैं ही सबको पालने वाला और आश्रय देने वाला हूं, सबकी व्यवस्था करने से पहले मैं हार नहीं जाऊं, समाप्त नहीं हो जाऊं। ’



इन चारों कारणों से मनुष्य अपनी वास्तविक शक्ति का परिचय नहीं दे पाता है, अपनी वास्तविक शक्ति को नहीं पहचान सकता है। मनुष्य जीवन के लिए ऊपर वाले चारों उपक्रम आवश्यक हैं लेकिन ये चारों आवरण एक सीमा तक ही होने चाहिए। इतने कठोर नहीं होने चाहिए कि आप उन्हें तोड़ नहीं सकें। इनमें से किसी की भी अधिकता नहीं होनी चाहिए। ये सारी क्रियाएं करें लेकिन इनमें पूरी तरह से लिप्त न हों।
यह सिद्ध है कि मनुष्य में अनन्त शक्तियां हैं लेकिन स्वयं की शक्ति के आंकलन की कमी और विचारों में अस्थिरता के कारण वह इसे पहचान नहीं पाता है। मनुष्य के हाथ में है कि वह अपनी वैचारिक शक्ति के द्वारा हर प्रकार की उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। कोई व्यक्ति जन्म से महापुरुष नहीं होता, महापुरुष वही बनता है जिन्होंने अपने आप पर नियन्त्रण किया और अपनी आन्तरिक शक्तियों को जाग्रत किया। ईश्वर ने सबको समान शक्ति प्रदान की है, बस इस शक्ति को संरक्षित करना आना चाहिए तो इसके लिये एक ही उपाय है कि आप अपनी स्वयं की शक्तियों को अपने चिन्तन का आधार प्रदान करें और यह संकल्प लें कि प्रत्येक वह आवरण जो काम-क्रोध-लोभ-मोह कहलाता है उसकी सीमा कितनी हो? उसकी सीमा निर्धारित करें और स्वयं को एकाग्र कर, स्वयं को जाग्रत करने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दें।


अपने जीवन के इस शक्ति संकलन में ये संकल्प बार-बार दोहराते रहें –

1. अपने आपको छोटा और बेचारा नहीं मानें। आप ईश्वर की अनमोल कृति हैं और उस सर्व शक्तिमान ईश्वर ने एक निश्चित उद्देश्य के लिये आपको यह सुन्दर जीवन दिया है और उस निश्चित लक्ष्य, उद्देश्य को आप ही पूरा करेंगे यह विश्वास सदैव बनाए रखें।

2. दूसरों की आलोचना से आपकी स्वयं की शक्ति का ह्रास होता है, दूसरों की कमियों की व्याख्या में अपना समय व्यर्थ न गंवाएं अन्यथा आप स्वयं नकारात्मक भाव पकड़ने लग जाएंगे।

3. जीवन में जिन कार्यों और परिस्थितियों पर आपका वश नहीं है, उनके प्रति स्वयं को सकारात्मक रखें। अच्छा ही होगा – अच्छा ही होगा – अच्छा ही होगा, ऐसा विचार करने से नये-नये मार्ग अवश्य दृष्टिगत होंगे।

4. अपनी शक्ति के चिन्तन में स्वयं को लगाएं, ध्यान के साधन द्वारा जैसा आप स्वयं चाहते हैं वैसा शक्ति सम्पन्न बनने का मानसिक संकल्प दोहराते रहें।

5. अतीत की सोच और भविष्य की सोच दोनों से दूरी बना लें, क्योंकि आपको वर्तमान में कर्म करना है। ‘ वर्तमान के ही कर्म का चिन्तन करें’।

6. अतीत के दुःख और भविष्य के भय को सकारात्मक सोच दें। उन्हें कष्ट का कारण न मानें क्योंकि अतीत और भविष्य दोनों ही प्रश्नवाचक हैं। क्या हो गया, कैसे हो गया, अब क्या होगा, अब कैसे होगा? ये सारे प्रश्न प्रश्नवाचक हैं जबकि आपका वर्तमान क्रियावाचक है – ‘ मैं यह कर रहा हूं ’ यही मुख्य बात है।

7. स्वयं को समयबद्ध तरीके से कार्य में लगाएं, समय-समय पर अपना स्वयं का आंकलन करते रहें और उसी के अनुसार अपनी कार्यशैली, कृतित्व (creation ) आदि में परिवर्तन करते हैं। यदि कोई नया आदर्श स्थापित करना है तो उसे भी स्थापित करते रहें।

8. मनुष्य के पास समय कम है और कामनाएं अनन्त हैं। ऐसे में अपने मन और मस्तिष्क पर पूर्ण नियन्त्रण करते हुए उसे अपने संकल्प की ओर ही दिशा देते रहें और अपने संकल्प का आंकलन करते रहें।

9. हर सुन्दर और मूल्यवान वस्तु हमारी हो, हर ज्ञान, सुन्दरता, बल, तप, यश में हम ही श्रेष्ठ हों। यह दौड़ छोड़ दें। बल्कि यह आंकलन करें कि हमारे अन्दर भी अनन्त गुण हैं और इन गुणों के द्वारा ही हम सर्वश्रेष्ठ होंगे।
अपने लक्ष्यों को बिल्कुल साफ और स्पष्ट रखें। जैसे ही आप अपने लक्ष्य से हटे तो आपका जीवन स्वयं हार मान लेगा। इस कारण अपने लक्ष्य निश्चित, स्पष्ट रखें।

10. आपका सत् संकल्प, आपके भीतर का नम्रता का भाव ही आपकी शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है और इसी का विकास करना है और यहीं से आपके शक्ति सम्पन्न होने का अध्याय शुरू हो सकता है।



कुछ ऐसा करके तो देखो के जीवन के सभी दुख,पीडा,कष्ट और दुर्भाग्य आपके सामने हाथ जोड़कर क्षमा की भीख मांगे । यह एक युद्ध है,जिस पर आपको स्वयं विजय प्राप्त करना है,रो-रोकर जिंदगी खराब मत करो,अब उठ भी जाओ और सामना करो जीवन के कठिन परिस्थितियों को संभालने के लिए । अपने आपको पहेचानो,आप सभी  लोग एक दिव्य शक्ति से संग्रहित हो,चाहे वह किसी भी धर्म का हो या फिर किसी भी जाती का हो । अपने अंदरूनी शक्ति के जागरण हेतु नित्य 30-40 मिनटो तक

"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम आत्मशक्ति चैतन्य शीघ्र जाग्रय जाग्रय क्लीं ह्रीं ऐं ॐ नम:"

मंत्र का जाप किया करे । इस मंत्र के बीज अक्षर का ध्वनि "ग" होना चाहिए जैसे ह्रीं-Hreeng,यह मंत्र साधना में त्वरित सिद्धि देता है और कुंडलिनी शक्ति को जगाने में सहायक है,चाहे तो 15-20 दिनों तक जाप करके आजमाके देख लो । मंत्र जाप के समय ध्यानस्थ होना जरूरी है और शुद्धता का भी आचरण करे , मंत्र जाप एकांत में करो । आसन माला दिशा वस्त्र का कोई नियम नही है क्योंकि आप स्वयं ही इस साधना में सब कुछ हो । दिया लगाना है या धूप जलानी है तो जलाओ और नाही कर सको तो भी कोई नुकसान नही होगा । कुछ दिन मंत्र जाप करने से समझ जाओगे के शरीर किस तरह से अपने आप मे शक्तियुक्त बन रहा है,हिमालय के बर्फीले स्थान पर भी 2-3 घंटे तक इस मंत्र का प्रामाणिकता से जाप करोगे तो पसीना निकलने लगेगा । यह साधना विश्वास के साथ करो और अपने जीवन को स्वयं बदल डालो, यही है "स्वयं की शक्ति" जिसके माध्यम से आप जो चाहो वह प्राप्त कर सकते हो । इसमें कोई भी बात या शब्द आपको नही समझ मे आया हो तो अवश्य ही मुझे ईमेल के माध्यम से आप संपर्क करें, मेरा ईमेल i.d. है -snpts1984@gmail.com |





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