12 Jul 2019

मधुमेह का आयुर्वेदिक इलाज .(Ayurvedic treatment of diabetes.)



मधुमेह आज सिर्फ भारत ही नहीं, पूरे विश्व में अपने पैर पसारने लगा है। भारत को तो विश्व की डायबिटीक कैपिटल कहकर पुकारा जाता है। इस प्रकार भारत में मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या काफी अधिक है। 

आजकल के इस भागदौड़ भरे युग में अनियमित जीवनशैली के चलते जो बीमारी सर्वाधिक लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है वह है मधुमेह। मधुमेह को धीमी मौत भी कहा जाता है। यह ऐसी बीमारी है जो एक बार किसी के शरीर को पकड़ ले तो उसे फिर जीवन भर छोड़ती नहीं। इस बीमारी का जो सबसे बुरा पक्ष है वह यह है कि यह शरीर में अन्य कई बीमारियों को भी निमंत्रण देती है। मधुमेह रोगियों को आंखों में दिक्कत, किडनी और लीवर की बीमारी और पैरों में दिक्कत होना आम है। पहले यह बीमारी चालीस की उम्र के बाद ही होती थी लेकिन आजकल बच्चों में भी इसका मिलना चिंता का एक बड़ा कारण हो गया है। 

जब हमारे शरीर के पैंक्रियाज में इंसुलिन का पहुंचना कम हो जाता है तो खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। इस स्थिति को डायबिटीज कहा जाता है। इंसुलिन एक हार्मोन है जोकि पाचक ग्रंथि द्वारा बनता है। इसका कार्य शरीर के अंदर भोजन को एनर्जी में बदलने का होता है। यही वह हार्मोन होता है जो हमारे शरीर में शुगर की मात्रा को कंट्रोल करता है। मधुमेह हो जाने पर शरीर को भोजन से एनर्जी बनाने में कठिनाई होती है। इस स्थिति में ग्लूकोज का बढ़ा हुआ स्तर शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।

डायबिटीज के मरीजों में सबसे ज्यादा मौत हार्ट अटैक या स्ट्रोक से होती है। जो व्यक्ति डायबिटीज से ग्रस्त होते हैं उनमें हार्ट अटैक का खतरा आम व्यक्ति से पचास गुना ज्यादा बढ़ जाता है। शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने से हार्मोनल बदलाव होता है और कोशिशएं क्षतिग्रस्त होती हैं जिससे खून की नलिकाएं और नसें दोनों प्रभावित होती हैं। इससे धमनी में रुकावट आ सकती है या हार्ट अटैक हो सकता है। स्ट्रोक का खतरा भी मधुमेह रोगी को बढ़ जाता है। डायबिटीज का लंबे समय तक इलाज न करने पर यह आंखों की रेटिना को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे व्यक्ति हमेशा के लिए अंधा भी हो सकता है।

आयुर्वेद में मधुमेह जैसे बीमारी का सटीक इलाज दिया हुआ है,कुछ ऐसी जड़ीबूटीया है जिसके सेवन से मधुमेह को हमेशा के लिये ठीक किया जा सकता है । 32 प्रकार की जड़ीबूटियों के मिश्रण से मधुमेह की एक शक्तिशाली दवा बनायी जाती है जिसका असर 7-8 दिनों में देखने मिलता है,आजतक मैंने जिन मरीजो को भी दवाई दी है उनसे एक बात तो हमेशा बोलता हू "अगर 15 दिनों में आपको दवा से फर्क महसूस नहीं हुआ तो मुझे मेरी दवाई वापिस भेज दो और आपका दवा के लिए किया पुरा धनराशि मुझसे वापिस लीजिए" ।

यह दवा अगर तीन महीने तक सेवन की जाए तो मधुमेह नामक बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है । चाहे आपका मधुमेह कितना ही क्यो ना तकलीफ देता हो,इस दवा से मधुमेह कंट्रोल में आजाता है,मैं यह दवा 100% गारंटी के साथ देता हू और 15 दिनों में आपको असर ना दिखे तो 100% पुरा दवाई का खर्च वापिस दिया जाएगा । दवाई का असर तो पहिले ही दिन से शुरू हो जाता है और 7-8 दिनों में आपको फायदे दिखाई देते है,15 दिनों तक आप रोजाना दवा लेने के बाद स्वयं ही दवा की प्रशंसा करने लगेंगे । यह दवा 30 दिनों के लिए दी जाती है क्योके कुछ लोगो का मधुमेह 30 दिनों में ही ठीक हो गया और कुछ लोगो को ज्यादा से ज्यादा 90 दिनों तक का समय लगा,कम से कम 30 दिन और ज्यादा से ज्यादा 90 दिनों तक दवाई लेने से मधुमेह पूर्णता ठीक हो जाता है,ऐसा आजतक का हमारा अनुभव रहा है ।

जो मधुमेह के मरीज यह 32 प्रकार की जड़ीबूटियों से निर्मित दवाई का सेवन करके स्वास्थ्य होना चाहते है,उन्हें मुझे व्हाट्सएप नंबर पर आपकी मेडिकल रिपोर्ट भेजनी है,जिसमे यह पता चले कि अभी आपका मधुमेह कितना है,आपकी रिपोर्ट देखकर ही सही मात्रा में जड़ीबूटियों का मिश्रण करके दवाई बनाई जाएगी क्योके इन जड़ीबूटियों में मात्राओं को कम ज्यादा करना पड़ता है । इस दवाई के 30 दिन का खर्च 1800/-रुपये है और कूरियर चार्जेस 80- 120/-रुपये तक है,एक दिन के दवा का खर्च ही 60 रुपया आता है और 30 दिनों तक दवाई को लेने के बाद मैं गारण्टी के साथ बोलता हू आप स्वयं पूर्ण स्वास्थ लाभ प्राप्त होने तक अवश्य ही दवाई का सेवन करेंगे । आपको 15 दिनों के बाद फिर से एक बार अपना रिपोर्ट भेजना है और उसमें आपको लाभ ना दिखाई दे तो आपको आपकी धनराशि वापिस कर देंगे,यह मैं आपको वचन देता हू ।

इस दवाई को सेवन करने से लाभ 100% होगा और साथ मे मैं आपको कुछ आवश्यक बाते भी बता दूँगा जिससे आपको अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे । दवाई के सेवन काल मे कोई भी तकलीफ हो तो तुरंत फोन करे,इस लिए इस दवाई के सेवन हेतु आपको डरने की आवश्यकता नही है,इसमे मेरा अनुभव भी 10 वर्ष से ज्यादा का रहा है । आयुर्वेद में रोग को ठीक करने के साथ ही उसे शरीर से खत्म करने पर ध्यान दिया जाता है। 


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आदेश......


7 Jul 2019

कुण्डली में अशुभ योग और उनका निवारण.


1).चांडाल योग-

गुरु के साथ राहु या केतु हो तो जातक बुजुर्गों का
एवम् गुरुजनों का निरादर करता है ,मोफट होता है,तथा अभद्र भाषाका प्रयोग करता है । यह जातक पेट और श्वास के रोगों से पीड़ित हो सकता है और इनका जीवन कष्टदायक होता है। वह निराश व हताश रहता है उसकी प्रकृति आत्मघाती होती है ।


2).सूर्य ग्रहण योग-

सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो जातक कोहड्डियों की कमजोरी, नेत्र रोग, ह्रदय रोग होने की संभावना होती है ,एवम् पिताका सुख कम होता है,आत्मविश्वास की कमी होती है इसके वजेसे सफलताये नही मिलती है । ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है खा जाना तथा इसी प्रकार यह माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा का कुंडली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


3).चंद्र ग्रहण योग-

चंद्र के साथ राहु या केतु हो तो जातक को मानसिक पीड़ा एवं माता को हानई पोहोंचती है,जीवन मे सुख को कमी और दुःख ज्यादा होते है । चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु की स्थिति अथवा दृष्टि से प्रभाव पड़ता है तो कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण हो जाता है जो जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसे भिन्न भिन्न प्रकार के कष्ट दे सकता है।


4).श्रापित योग-

शनि के साथ राहु हो तो यह योग होता है,इस योग से जीवन मे नर्क यातनाएं भुगतनी पड़ती है,ऐसा जातक आत्महत्या के विचार ज्यादा करता है । शाप का सामान्य अर्थ शुभ फलों का नष्ट होना माना जाता है । जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है उसे इसी प्रकार का फल मिलता है यानी उनकी कुण्डली में जितने भी शुभ योग होते हैं वे प्रभावहीन हो जाते हैं । इस स्थिति में व्यक्ति को कठिन चुनौतियों एवं मुश्किल हालातों का सामना करना होता है ।


5).पितृदोष-

यदि जातक को 2,5,9 भाव में राहु केतु या शनि है तो जातक पितृदोष से पीड़ित है । इसके प्रभाव से किसी भी कार्य को पूर्ण करने की कोशिशें नाकाम हो जाती है । पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैं, जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना।


6).नागदोष-

यदि जातक के पाचवे भाव में राहु विराजमान है तो जातक पितृदोष के साथ-साथ नागदोष से भी पीड़ित होता है,ऐसा जातक जीवन मे हमेशा असंतुष्ट होता है और संतान प्राप्ति में इसे कष्ट उठाने पड़ते है । यह दोष होने पर जातक किसी पुराने या यौन संचारित रोग से ग्रस्‍त रहता है। कुंडली में नागदोष हो तो जातक को अपने प्रयासों में सफलता प्राप्‍त नहीं होती। नाग दोष का अत्‍यंत भयंकर प्रभाव है कि इसके कारण महिलाओं को संतान उत्‍पत्ति में अत्‍यधिक परेशानी आती है। कुंडली में नागदोष होने से व्‍यक्‍ति की गंभीर दुर्घटना होने की संभावना रहती है। इन्‍हें जल्‍दी-जल्‍दी अस्‍पताल के चक्‍कर लगाने पड़ते हैं एवं इनकी आकस्‍मिक मृत्‍यु भी संभव है । नागदोष से प्रभावित जातकों को उच्‍च रक्‍तचाप और त्‍वचा रोग की समस्‍या रहती है।


7).ज्वलन योग-

सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो जातक ज्वलन योग (अंगारक योग) से पीड़ित होता है,हमेशा किसी न किसी चीज की कमी और स्वास्थ्य में तकलीफे रहती है । जिस स्थान मे हो उसी स्थान के खराब फल देता है ।


8).अंगारक योग-

मंगल के साथ राहु या केतु वीराजमान हो तो जातक अंगारक योग से पीड़ित होता है,ऐसा जातक सारी जिंदगी अंगारों पर चलने वाली जैसी तकलीफ को सहता है । इसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध भी खराब हो जाते हैं।


9).प्रेत दोष-

शनि के साथ बुध होने से यह दोष उत्पन्न होता गई,प्रेत बाधा का अ‍र्थ मनुष्‍य के शरीर पर किसी भूत-प्रेत का साया पड़ जाना है। यह योग न केवल जातक को परेशान करता है अपितु उसके पूरे परिवार को भयभीत कर देता है। प्रेत बाधा में अदृश्‍य शक्‍तियां मनुष्‍य के शरीर पर कब्‍जा कर लेती हैं। ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार कुंडली में प्रेत बाधा योग बनने पर जातक को भूत-प्रेत से पीड़ा मिलती है।


10).पिशाच योग-

शनि के साथ केतु हो तो यह योग बनता है,इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है,इनकी मानसिक स्थिति कमज़ोर रहती है,ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं जिससे इनको धोका मिलता है ।इनके मन में निराशात्मक विचारों का आगमन होता रहता है,कभी कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं ।


11).केमद्रुम योग-

चंद्र के साथ कोई ग्रह ना हो एवम् आगेपीछे के भाव में भी कोई ग्रह न हो तथा किसी भी ग्रह की दृष्टि चंद्र
पर ना हो तब वह जातक केमद्रुम योग से पीड़ित होता है तथा जीवन में बोहोत ज्यादा परिश्रम अकेले
ही करना पड़ता है ।


12).दरिद्र योग-

यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बन जाता है। ऐसे में व्यक्ति के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है। दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है।


13).कुज योग-

यदि किसी कुंडली में मंगल  लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं। जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए।


14).षड़यंत्र योग-

यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है। जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है जैसे धोखे से धन-संपत्ति का छीना जाना, विपरीत लिंगी द्वारा मुसीबत पैदा करना आदि।


15).भाव नाश योग-

जब कुंडली में किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और उससे भाव नाश योग केजते है। उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।


16).अल्पायु योग-

जब कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। जिस कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है और उसकी आयु कम होती है।


17).कालसर्प दोष के प्रकार-


अनंत कालसर्प योग
अगर राहु  लग्न में बैठा है और केतु सप्तम में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तो कुंडली में अनंत कालसर्प दोष का निर्माण हो जाता है। अनंत कालसर्प योग के कारण जातक को जीवन भर मानसिक शांति नहीं मिलती। इस प्रकार के जातक का वैवाहिक जीवन भी परेशानियों से भरा रहता है।

कुलिक कालसर्प योग
अगर राहु कुंडली के दुसरे घर में, केतु अष्ठम में विराजमान है और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में है तब कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति के जीवन में धन और स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ उत्पन्न होती रहती हैं।

वासुकि कालसर्प योग
जन्मकुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु विराजमान हो तथा बाकि ग्रह बीच में तो वासुकि कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस प्रकार की कुंडली में बल और पराक्रम को लेकर समस्या उत्पन्न होती हैं।

शंखपाल कालसर्प योग
अगर राहु  चौथे घर में और केतु दसवें घर में हो साथ ही साथ बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे व्यक्ति के पास प्रॉपर्टी, धन और मान-सम्मान संबंधित परेशानियाँ बनी रहती हैं।

पद्म कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के पांचवें भाव में राहु, ग्याहरहवें भाव में केतु और बीच में अन्य ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे इंसान को शादी और धन संबंधित दिक्कतें परेशान करती हैं।

महा पद्म कालसर्प योग
अगर राहु किसी के छठे घर में और केतु बारहवें घर में विराजमान हो तथा बाकी ग्रह मध्य में तो तब महा पद्म कालसर्प योग का जन्म होता है। इस प्रकार के जातक के पास विदेश यात्रा और धन संबंधित सुख नहीं प्राप्त हो पाता है।

तक्षक कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के सातवें भाव में राहु और केतु लग्न में हो तो इनसे तक्षक कालसर्प योग बनता है। यह योग शादी में विलंब व वैवाहिक सुख में बाधा उत्पन्न करता है।

कर्कोटक कालसर्प योग
अगर राहु आठवें घर में और केतु दुसरे घर आ जाता है और बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो कर्कोटक कालसर्प योग कुंडली में बन जाता है। ऐसी कुंडली वाले इंसान का धन स्थिर नहीं रहता है और गलत कार्यों में धन खर्च होता है।

शंखनाद कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य हों तो इनसे बनने वाले योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते है। यह दोष भाग्य में रूकावट, पराक्रम में रूकावट और बल को कम कर देता है।

पातक कालसर्प योग
इस स्थिति के लिए राहु दसंम में हो, केतु चौथे घर में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तब पातक कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  काम में बाधा व सुख में भी कमी करने वाला बन जाता है।

विषाक्तर कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के ग्याहरहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को विषाक्तर कालसर्प योग कहते है। इस प्रकार की कुंडली में शादी, विद्या और वैवाहिक जीवन में परेशानियां बन जाती हैं।

शेषनाग कालसर्प योग
अगर राहु बारहवें घर में, केतु छठे में और बाकी ग्रह इनके बीच में हो तो शेषनाग कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  स्वास्थ्य संबंधित दिक्कतें, और कोर्ट कचहरी जैसी समस्याएं उत्पन्न करता है।
इन सारे दोष और योगों में से किसी भी दोष/योग का  शांति करेंगे तो बहोत ज्यादा खर्च होगा,इसलिए मैंने इनके निवारण हेतु एक अच्छा उपाय ढूंढा है,वह है तंत्र और तांत्रिक जड़ी बूटियों के माध्यम से बना हुआ कवच,जो इन दोष/योग से मुक्ति दे सकता है,इस कवच का निर्माण कुंडली के अध्ययन के बाद किया जाएगा और किसी शुभ मुहूर्त में कवच को बनाया जाएगा । इससे आपको कुछ ही दिनों में अच्छे परिणाम देखने मिलेंगे,इस कवच के निर्माण हेतु 1250/-रुपये धनराशि का खर्च आपको उठाना है ।कवच प्राप्त करने हेतु +918421522368 पर whatsapp से संपर्क करे ।


आदेश......