25 Apr 2016

ग्रह शान्ति उपाय.

आसान उपायों द्वारा ग्रहों की नाराजगी दूर करें -

1)सूर्य- भूल कर भी झूठ न बोलें,सूर्य का गुस्सा कम हो जाएगा । झूठ क्या है झूठ वो है जो अस्तित्व में नहीं है और यदि हम झूठ बोलेंगे तो सूर्य को उसका अस्तित्व पैदा करना पडेगा आश्चर्य की कोई बात नहीं है । ये नौ ग्रह हमारे जीवन के लिए ही अस्तित्व में आये हैं सूर्य का काम बढ़ जाएगा और मुश्किल भी हो जाएगा ।

2)चंद्रमा - जितना ज्यादा हो सके सफाई पसंद हो जाईये ,और साफ़ रहिये भी -चंद्रमा का गुस्सा कम हो जाएगा । चंद्रमा को सबसे ज्यादा डर राहू से लगता है । राहू अदृश्य ग्रह है ,राहू क्रूर है,हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में राहू गंदगी है । हम हमारे घर को, आसपास के वातावरण को कितना भी साफ़ करें -उसमें ढूँढने जायेंगे तो गंदगी मिल ही जायेगी ,या हम हमारे घर और आस पास के वातावरण को कितना भी साफ़ रखें वो गंदा हो ही जाएगा और हम सब जानते हैं कि गंदगी कितनी खतरनाक हो सकती है और होती है । ज़िंदगी के लिए ,न जाने कितने बेक्टीरिया , वायरस ,जो अदृश्य होते हुए भी हमारी ज़िंदगी को भयभीत कर देते हैं ,बीमार करके ,ज़िंदगी को खत्म तक कर देते हैं , चंद्रमा (जो सबके मन को आकर्षित करता है स्वय राहू के मन को भी) राहू से डरता है । अतः यदि आप साफ़ रहेंगे तो चंद्रमा को अच्छा लगेगा और उसका क्रोध शांत रहेगा , चंद्रमा का गुस्सा उतना ही कम हो जाएगा ।

3)मंगल- यह ग्रह सूर्य का सेनापती ग्रह है भोजन में गुड है । सूर्य गेंहू है रविवार को गेहूं के आटे का चूरमा गुड डालकर बनाकर खाएं खिलाये ,मंगल को बहुत अच्छा लगेगा । सूर्य गेहूं है -मंगल गुड है और घी चंद्रमा है ,अब तीनो प्रिय मित्र हैं तो तीन मित्र मिलकर जब खुश होंगे तो गुस्सा किसे याद रहेगा ।

4)बुध - बुध ग्रह यदि आपकी जन्म पत्रिका में क्रोधित है तो बस तुरंत मना लीजिये । गाय को हरी घास खिलाकर उसको प्रसन्न करना हैं धरती और गाय दोनों शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है । हरी घास जो बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है -बुध ग्रह का रंग हरा है ,वो बच्चा है नौ ग्रहों में शारीरिक रूप से सबसे कमजोर और बौद्धिक रूप में सबसे आगे आगे । बुध घास है जो पृथ्वी के अन्य पेड़ पौधों के मुकाबले कमजोर है बिलकुल बुध ग्रह की तरह , घास भी शारीरिक रूप से बलवान नहीं होती है मगर ताकत देने में कम नहीं अतः बुध स्वरूप ही है । हरी हरी घास से सजी धरती कितनी सुंदर और खुश दिखती है । घास =बुध और धरती = शुक्र इसी तरह गाय हरी -हरी घास खा कर कितनी खुश होती है इसलिए - हरी- हरी घास =बुध ग्रह और गाय और धरती शुक्र इसलिए गाय को हरी हरी घास खिलाएंगे तो दो बहुत अच्छे दोस्तों को मिला रहे होंगे, ऐसी हंसी खुशी के वातावरण में हर कोई गुस्सा थूक देता है और बुध ग्रह भी अपना क्रोध शांत कर लेंगे ।

5)बृहस्पति -चने की दाल parrots को खिलादे , बृहस्पति कभी गुस्सा नहीं करेंगे । चने की दाल पीले रंग की होती है और बृहस्पति भी पीले रंग के हैं ।
बृहस्पति का भी घनत्व सौरमंडल में ज्यादा है और चने की दाल भी हलकी फुल्की नहीं होती पचाने में हमारी आँतों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है ।
तोता हरे रंग का होता है , बुध ग्रह भी हरे रंग का होता है । तोता भी दिन भर बोलता रहता है और बुध ग्रह भी बच्चा होना के कारण बोलना पसंद करता है । अतः तोता =बुध ग्रह और चने की दाल = बृहस्पति ग्रह
बुध ग्रह बृहस्पति के जायज पुत्र और चंद्रमा के नाजायज पुत्र है। बुध के पिता बृहस्पति हैं और बृहस्पति के चंद्रमा अच्छे मित्र हैं और बृहस्पति की पत्नी तारा ने चंद्रमा से नाजायज शारीरिक सम्बन्ध बनाकर बुध ग्रह को जन्म दिया था इस बात से बृहस्पति अपनी पत्नी तारा से नाराज़ रहते है और बुध की माँ से नाराज़ रहने के कारण अपने जायज पिता बृहस्पति से बुध ग्रह नाराज़ रहता है । इस बात से बृहस्पति दुखी रहता है अतः जब तोता जो बुध स्वरूप है जब चने की दाल खाकर पेट भरेगा और खुश होगा तो बृहस्पति को खुशी मिलेगी और गुस्सा तो अपने आप कम हो जाएगा ।

6)शुक्र - यदि नाराज़ हो तो गाय को रोटी खिलाओ .
सूर्य गेहूं है और शुक्र गाय । किस बलवान व्यक्ति को उसके खुद के अलावा कोई और राजा हो तो अच्छा लगता है । शुक्र को भी सूर्य के अधीन रहना पसंद नहीं है अतः जब आप उसके शत्रु सूर्य जो गेहूं को गाय जो शुक्र है को खिलाएंगे तो वो अपने आप ही गुस्सा भूल जाएगा ।

7)शनि- जिस किसी से भी नाराज़ हो तो उसकी पीड़ा तो बस वो खुद ही जानता है । शनि समानतावादी है ,
ये बड़ा है और ये छोटा है ऐसी बातें शनि को क्रोधित कर देती है, क्योंकि शनि सूर्य (राजा ) का पुत्र है और उसके पिता सूर्य ने उसकी माँ का सम्मान नहीं किया इसलिए शनि को अपनी माँ छाया से प्यार होने के कारण सूर्य पर बहुत गुस्सा आता है । किसी का बड़े होने का अहं उनको पसंद नही है। अहंकार छोड़ देने से शनि भगवान का कृपा प्राप्त होता है।




आदेश.....

18 Apr 2016

काली सहस्त्राक्षरी

माँ कालिका का स्वरूप जितना भयावह है उससे कही ज्यादा मनोरम और भक्तों के लिए आनंददायी है। काली माता को शक्ति और बल की देवी माना जाता है। अपने जीवन से भय, संकट, इच्छा अनुसार फल पाने के लिए काली माता को प्रसन्न करना चाहिए। आमतौर पर मां काली की पूजा सन्यासी तथा तांत्रिक किया करते हैं। माना जाता है कि मां काली काल का अतिक्रमण कर मोक्ष देती है। आद्यशक्ति होने के नाते वह अपने भक्त की हर इच्छा पूर्ण करती है। तांत्रिक तथा ज्योतिषियों के अनुसार मां काली के कुछ मंत्र ऐसे हैं जिन्हें एक आम व्यक्ति अपने रोजमर्रा के जीवन में अपने संकट दूर करने के लिए प्रयोग कर सकता है।

यही एक मंत्र येसा है जिससे कोइ भी कार्य सम्भव है। मैने इस मंत्र के बहोत सारे अनुभव देखे है और गारंटी के साथ बोल सकता हू "इस मंत्र से अनुभव होता है"।
इस मंत्र के कई प्रयोग है जिन्हे लिखना सम्भव तो नही है परंतु कुछ प्रयोग बता देता हूं।

प्रयोग 1-जब स्वास्थ खराब हो तब मंत्र का 108 बार पाठ करके शुद्ध जल पर तिन बार फुंक मारकर जल को रोगी को पिला दे तो कुछ देर मे रिसल्ट देखने मिलेगा।

प्रयोग 2-कोई इच्छा हो मन मे जो पुर्ण नही हो रही हो तो शनिवार के रात्री मे महाकाली जी के चित्र के सामने चमेली के तेल का दिपक लगाये और मंत्र का 3 माला जाप कालि हकिक माला से 7 दिनो तक करे तो अवश्य इच्छा पुर्ण होगी।

प्रयोग 3-हर समय हमे रक्षा कवच का आवश्यकता होता है,जिससे हम बुरे शक्तियों से बच सके तो इसके लिये "ताम्बे के पेटी (ताबीज) मे 7 काले तिल के साथ दो पपिते के बीज भरकर,ताबीज को देखते हुए मंत्र का 108 बार जाप करके धारण करले तो सभी बुरे शक्तियों से रक्षा होता है "।

प्रयोग 4-अगर आप किसीसे सच्छा शुद्ध प्रेम करते हो और उसको वश मे करना चाहते हो तो "जिसे वश मे करना हो उसके फोटो को देखते हुए मंत्र का रोज शुक्रवार को रात्री मे 3 माला जाप स्फटिक माला से 11 दिनो तक करे और बारहवें दिन काले किशमिश का 11 माला आहुति हवन मे दिजिये तो 7 दिनो मे इच्छित व्यक्ति वश होता है "।


मंत्र-

।। ॐ जयन्ति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।


मंत्र का महत्व और अर्थ:

1)ॐ जयन्ती — जयति सर्वोत्कर्षेण वर्तते इति ‘जयन्ती‘—सबसे उत्कृष्ट एवं विजयशालिनी ।।

2) ॐ मङ्गला –मङ्गं जननमरणादिरूपं समर्पणं
भक्तानां लाति गृह्णाति नाशयति या सा मङ्गला मोक्षप्रदा —जो अपने भक्तों के जन्म -मरण आदि संसार बन्धनको दूर करती है उन मोक्ष दायिनी मंगलमयी देवीका नाम ‘मङ्गला’ है ।।

3) ॐ काली — कलयति भक्षयति प्रलयकाले सर्वम् इति ‘काली’ — जो प्रलयकालमे सम्पूर्ण सृष्टि को अपना ग्रास बना लेती है ; वह ‘काली ‘ है ।।

4) ॐ भद्रकाली — भद्रं मङ्गलं सुखं वा कलयति स्वीकरोति भक्तेभ्यो दातुम् इति भद्रकाली सुखप्रदा -जो अपने भक्तों को देनेके लिए ही भद् , सुख किंवा मंगल स्वीकार करती है , वह ‘भद्रकाली’ है ।।

5) ॐ कपालिनी –धारयति हस्ते कपाल मुण्डभूषिता च
या सा कपालिनी — हातमे कपाल तथा गलेमे मुण्डमाला धारण करने वाली ।।

6) ॐ दुर्गा –दुःखेन अष्टाङ्गयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेन गम्यते प्राप्यते या सा ‘दुर्गा’ –जो अष्टांगयोग, कर्म एवं उपासनारूप दुःसाध्य साधन से प्राप्त होती है , वे जगदम्बिका ‘दुर्गा’ कहलाती है ।।

7) ॐ क्षमा –क्षमते सहते भक्तानाम् अन्येषां वा सर्वानपराधान् जननीत्वेनातिशयकरूणामयस्वभावादिति ‘क्षमा’ — सम्पूर्ण जगत् की जननी होनेसे अत्यन करूणामय स्वभाव होनेके कारण जो भक्तों अथवा दूसरों के भी सारे अपराध क्षमा करती है , उनका नाम ‘क्षमा’ है ।।

ॐ शिवा — सबका कल्याण अर्थात शिव
करनेवाली जगदम्बाको ‘शिवा ‘ कहते है ।।

9) ॐ धात्री –सम्पूर्ण प्रपंचको धारण करनेके कारण भगवती का नाम ‘धात्री’ है ।।

10) ॐ स्वाहा –स्वाहारूपसे यज्ञभाग ग्रहण करके देवताओं का पोषण करनेवाली भगवती को ‘स्वाहा ‘ कहते है ।।

11) ॐस्वधा — स्वधारूपसे श्राद्ध और तर्पणको स्वीकार करके पितरोंका पोषण करनेवाली भगवती को ‘स्वधा ‘ कहते है ।।

इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके ! तुम्हे मेरा नमस्कार हो । देवि चामुण्डे ! तुम्हारी जय हो ।सम्पूर्ण
प्राणियोंकी पीडा हरनेवाली देवि ! तुम्हारी जय हो ।सबमे व्याप्त रहने वाली देवि ! तुम्हारी जय हो ।कालरात्रि ! तुम्हें नमस्कार हो ।।

मंत्र जाप के बाद काली सहस्त्राक्षरी का कम से कम एक पाठ करने से मंत्र से अनुकूल रिसल्ट अवश्य ही शिघ्र प्राप्त होंगे।


।। श्री काली सहस्त्राक्षरी ।।

ॐ क्रीं क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं स्वाहा शुचिजाया महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीँ कामेश्वरी वीँ हं वाराहिके ह्रीँ महामाये खं खः क्रोघाघिपे श्रीमहालक्ष्यै सर्वहृदय रञ्जनी वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिँ हसकहलह्रीँ हस्त्रैँ ॐ ह्रीँ क्लीँ मे स्वाहा ॐ ॐ ह्रीँ ईं स्वाहा दक्षिण कालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा खड्गमुण्डधरे कुरुकुल्ले तारे ॐ. ह्रीँ नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रेँ विमोहिनी सर्वदुष्टान् मोहय मोहय हयग्रीवे सिँहवाहिनी सिँहस्थे अश्वारुढे अश्वमुरिप विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून मां हिँसितुमुघतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले वलाकिनी नीलपताके क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके सर्वजगव्दशमानय वशमानय मातग्ङिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातग्ङिनी सर्वशंकरी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे घोरनादिनी भूर शत्रून् विनाशिनी उन्मादिनी रोँ रोँ रोँ रीँ ह्रीँ श्रीँ हसौः सौँ वद वद क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ क्रीँ क्रीँ कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके शम्वरघातिनी कामेश्वरी कामिके ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा हृदयाहये ॐ ह्रीँ क्रीँ मे स्वाहा ठः ठः ठः क्रीँ ह्रं ह्रीँ चामुण्डे हृदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान् अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नस्तने विष्टंभकारिणि विघाधिके श्मशानवासिनी कलय कलय विकलय विकलय कालग्राहिके सिँहे दक्षिणकालिके अनिरुद्दये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे चमत्कारिणी हं कालिके करालिके घोरे कह कह तडागे तोये गहने कानने शत्रुपक्षे शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि अम्बिके तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथनायै योगमार्ग गच्छ गच्छ निदर्शिके देहिनि दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपुन्दर्शने दर्शय दर्शय सिँहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीँ क्रीँ क्रीँ हूं हूं ह्रीँ ह्रीँ फट् स्वाहा शक्तिरुपायै रोँ वा गणपायै रोँ रोँ रोँ व्यामोहिनि यन्त्रनिकेमहाकायायै प्रकटवदनायै लोलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी तन्त्रनिके मेधप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनि कुल्ले कुरुकुल्ले चैतन्यप्रभेप्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ ह्रीँ रक्ष रक्ष ज्वाला प्रचण्ड चण्डिकेयं शक्तिमार्तण्डभैरवि विप्रचित्तिके विरोधिनि आकर्णय आकर्णय पिशिते पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै नमो नमः ब्राम्हयै नमो नमः माहेश्वर्यै नमो नमः कौमार्यै नमो नमः वैष्णव्यै नमो नमः वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमो नमः अपराजितायै नमो नमः नारसिँहिकायै नमो नमः कालि महाकालिके अनिरुध्दके सरस्वति फट् स्वाहा पाहि पाहि ललाटं भल्लाटनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष परविधा क्षोभय क्षोभय आकृष्य आकृष्य कट कट महामोहिनिके चीरसिध्दके कृष्णरुपिणी अंजनसिद्धके स्तम्भिनि मोहिनि मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।।

इस काली सहस्त्राक्षरी का नित्य पाठ करने से ऐश्वर्य,मोक्ष,सुख,समृद्धि,एवं शत्रुविजय प्राप्त होता है,इसमे कोई संदेह नही है।




आदेश.....

16 Apr 2016

Beer kangan (बिर कंगन).

अब तक बहोत सारे लोगो के अनुभव मुझे सुनने मे मिले और येसे साधको का अभिनन्दन जो उन्होंने "बिर कंगन" को विश्वास से मंत्र जाप के माध्यम से जागृत किया। उन्होंने बिर कंगन पर अपने जिवन के कुछ मुख्य कार्यो सिद्ध किया मतलब कुछ येसे कार्य उन्होंने किये जिन्हे वह नही कर सकते थे परंतु बिरो से उन्होंने कार्य करवाया,इस बात पर मुझे सभी साधको पर गर्व है।

मेरा तो इतना ही काम था "आप लोगो को बिर कंगन देना,साथ मे बिर कंगन के प्रामाणिक मंत्र देना और साधना मे आपका मार्गदर्शन करना"। आपको बिर कंगन जाग्रत करने मे सफलता मिला यह आपका मेहनत है,आपने जिस विश्वास के साथ साधना प्रारंभ करके उसमे सफलता प्राप्त की है इसके लिये मुझे आप सभी साधको से मिलने का अवसर प्राप्त हो "मै यही कामना माताराणी से करता हूं। कुछ साधक अभी भी साधना करने मे लगे हुए है,वह अभी तक डगमगाये नही है,उन पर भी मै गर्व महेसुस कर रहा हूं। जिन्हे अभी तक पुर्ण सफलता प्राप्त ना हुयी हो "उन्हे थोड़ा ओर साधना के लिये देना चाहिए और मुझे आप सभी साधको पर विश्वास है,आप सफलता प्राप्त किये बिना नही रहोगे"।

जब आपको यह लगेगा आपको सफलता तो मिला है परंतु और ज्यादा सफलता चाहिए तो उसके लिये भी मै आपको हमेशा मार्गदर्शन करुंगा । मै यही चाहता हू,आप सभी बिरो को जाग्रत करके उनसे अपने जिवन के मुख्य कार्य करवावो और कुछ कार्य जनकल्याण हेतु भी करो । एक साधक है "विरेन्द्र सिंग जी" जो दिल्ली से है,उनके घर मे 10 वर्षों से अभिचार कर्म (तंत्र बाधा/काला जादू) किया हुआ था और वह इस परेशानी मे से निकलने के लिये लाखो रुपया खर्च कर चुके थे,आज बिर कंगन साधना के वजेसे से उन्हे अभिचार कर्म से मुक्ति मिला और उनके माताजी का भी स्वास्थ खराब रहेता था परंतु आज के समय मे उनका स्वास्थ भी ठिक है। एक साधक नासिक से है "विजय जी" जिनका का 12 लाख रुपया फसा हुआ था जो अब निकल चुका है। एक साधक है उडिसा से जिन्होने "आनंद स्वामी जी",इनकी प्रेमिका इनको 3 वर्ष पुर्व छोड़के चली गयी थी परंतु इन्हे विश्वास था वो फिर से इनके जिवन मे वापस आयेगी । आज बिर कंगन के माध्यम से इनका विश्वास जीत गया,उन्होंने फिर से अपने सच्चे प्रेम को 3 वर्ष बाद प्राप्त किया । आनंद स्वामी जी को बहोत बहोत अभीनंदन,वैसे तो बहोत सारे साधक है जिनका अनुभव मै लिखना चाहता था परंतु मै चाहता हू बाकी नये-पुराने साधक स्वयं अनुभव प्राप्त करके दुनिया को सुनाये ।

आप सभी ब्लोग पढ़ने मे रुची रखते है,इसके लिये आप सभी को धन्यवाद । इस बार मै बिर कंगन के साथ बिर मुद्रिका भी निशुल्क देने का मन बना चुका हू ताकी आपको ओर साधना करने मिले,बहोत सारे अनुभव प्राप्त हो,तंत्र मे कुछ नया ग्यान प्राप्त हो । मेरा इच्छा पुर्ण होते जा रहा है,आपको सफलता मिले यही मेरा इच्छा था,आप मेहनत नही करते तो शायद मेरा इच्छा पुर्ण नही होते। आपने भरोसे के साथ मेहनत करके मेरा इच्छा पुर्ण किया इसलिए आपको दिल से धन्यवाद करता हू ।

जैसे के इससे पहले भी मै बता चुका हू "हम बिरो से कोइ भी काम करवा सकते है" और इसको सिद्ध करना बहोत आसान है।बिर कंगण शाबर मंत्रो के माध्यम से जागृत करके सिद्ध कर सकते है।जब बिर कंगण जागृत होता है तब हमे बिर वशीकरण ,सम्मोहन ,आकर्षण , मोहन ,उच्चाटन ,विद्वेषण ,शान्तिकर्म मे हमारे काम को कर देता है।आपको अगर किसी का भी कोइ काम करना हो तो आप बैठे जगह से दुरस्थ बैठे व्यक्ति का भी काम करवा सकते है।

बिर कोइ साधारण शक्ति नही है,देवताओ के स्मशानी ताकतो को ही बिर कहा जाता है । जैसे हनुमत बिर जो अत्याधिक शक्तिशाली माना जाता है क्युके हनुमानजी के स्मशानी ताकत को ही हनुमत बिर कहेते है। अब आप ही सोचिये येसा कोनसा कार्य है जो हनुमानजी नही कर सकते है । नाथ सम्प्रदाय मे हनुमानजी जी को सिद्ध जती नाम कि उपाधि प्राप्त है और ज्यादा से ज्यादा शाबर मंत्र उनसे ही सम्बन्धित है। हम बिर कंगन के माध्यम से सभी बिरो के अद्भुत शक्ति को जाग्रत करके सभी कार्य बिरो से करवा सकते है।







आदेश.....

9 Apr 2016

शव साधना.

तंत्र के नाथ शाखा मे कापालिक सम्प्रदाय के तांत्रिक शव-साधना मे पारंगत होते है,येसे ही एक तांत्रिक महाकाल भैरवानन्द सरस्वती जी है,उनकी उम्र ९० साल की है परंतु वो आज भी 30-40 वर्ष उम्र के दिखाई पडते है ,और उनका लंबाई 6 फुट,हमेशा काले रंग के वस्त्र धारण करते है,गले मे माँ कामाख्या देवी जी का छोटासा पारद विग्रह रखते है,१९६५ मे अघोर संन्यास लेकर उन्होने तंत्र साधनाये आरंभ की थी,वे ‘सरस्वती नामा’ और हमारे प्यारे सदगुरुजी से दीक्षीत है,उन्होने शव साधना कई बार की है और पूर्ण सफलता भी प्राप्त की है,एक बार मुझे उनके प्यारे शिष्य श्री रूद्रेश्वर भैरवानन्द सरस्वती जी के साथ शव-साधना के बारे मे चर्चा करनेका सौभाग्य मिला और उसी चर्चा मे उन्होने शव साधना का विधि भी बताया,अब गुरुजी के कृपा से सुशिल जी को 7 वर्ष पूर्व उनके आश्रम मे यह अद्वितीय साधना करने का अनुमति मिला था।

प्रक्टिकल साधना विधि जो श्री रूद्रेश्वर भैरवानन्द सरस्वती जी के मुख से सुशिल जी (श्री गोविंदनाथ) ने की है और उसको प्राप्त करके पाठको के लिये यहा दीया जा रहा है। यह साधना प्राप्त करके आज 7 वर्ष पुर्ण हुए है।



यह साधना रात्री काल कृष्ण पक्ष की अमावस्या मे,या कृष्णपक्ष या शुक्लपक्ष की चतुर्दशी और दिन मंगलवार हो तो शव साधना काफी महत्वपूर्ण हो जाती है,शव साधना के पूर्व ही ये जान लेना आवश्यक है के शव किस कोटी का है,क्योकों शव साधना के लिये किसी चांडाल या अकारण गए युवा व्यक्ति (२०-३५) अथवा दुर्घटना से मरे व्यक्ति का शव ज्यादा उपयुक्त मानते है,वृद्ध रोगी येसे लोगो के शव कोई काम मे नहीं आते है।


सर्वप्रथम पूर्व दिशा की ओर अभिमुख होकर ‘फट मंत्र’ पढ़ना है, इसके बाद चारो दिशाए कीलने के लिये पूर्व दिशा मे अपने गुरु, पश्चिम मे बटुक भैरव , उत्तर मे योगिनी और दक्षिण मे विघ्नविनाशक गणेश को विराजमान करने के लिये आराधना करनी है । शमशान की भूमि पर यह मंत्र अंकित करना है-


।। "हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदंस्ट्रे प्रचंडे चंडनायिकेदानवान द्वाराय हन हन शव शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हूं फट "।।


इसके बाद तीन बार वीरार्दन मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्पांजलि अर्पित करे (यहा पर वीरार्दान मंत्र नही दे रहा हू,उसे गोपनीय रख है )। इसके उपरांत बड़े विधि-विधान से पूर्वा दिशा मे श्मशानाधिपति, दक्षिण मे भैरव,पश्चिम मे काल भैरव तथा उत्तर दिशा मे महाकाल भैरव की पुजा सम्पन्न कर और काले मुर्गे का बलि प्रदान करे। इसके तुरंत बाद ‘ॐ सहस्त्रवरे हूं फट’ मंत्र से शिखाबंधन करना पड़ेगा । साधक यदि अपनी सुरक्षा करना नहीं जानता तो ‘शव-साधना’ पूरी नहीं हो सकती। इसीलिए आत्मरक्षा के लिये अमोघ मंत्र पढ़ना है-


"हूं ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर घोर घोतर तनुरुप चट चट पचट कह शकह वन वन बंध बंध घतपय घातय हूं फट अघोर मं"


फिर शव के सर के पास खड़े होकर सफ़ेद तिल का तर्पण करना है । परिक्रमा भी करनी है और ‘ॐ फट’ मंत्र से शव को अभिमंत्रित किया। फिर यह मंत्र पढ़ना है‘ॐ हूं मृतकाय नमः फट’और उसे स्पर्श करे , पुष्पांजलि देकर मंत्र पढे-


"ॐ वीरेश प्रमानंद शिवनंद कुलेश्वर, आनंद भैरवाकर देवी पर्यकशंकर। वीरोहं त्वं पप्रधामि उच्चष्ठ चंडिकारतने"


और शव को प्रणाम किरे । ‘ॐ हूं मृतकाय नमः’ मंत्र से प्रक्षालन कर उसे सुगंधित जल से स्नान कराये , शव को वस्त्र से पोंछे,फिर उस पर रक्तचन्दन का लेप किरे’।

मै यहा बता दूँ की सभी क्रियाए शव की सहमति से ही संभव है। रक्तचन्दन के बाद कोई साधक डर भी सकता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। इस अवस्था मे शव रक्तवर्णी हो जाता है। यदि ऐसा हो रहा हो तो साधक को तत्काल अपनी सुरक्षा मुकम्मल कर लेनी चाहिए अन्यथा शव उसका भक्षण कर सकता है।


अतएव अपने झोले मे से सेव निकाल कर ‘रक्त क्रो यदि देवेशी भक्षयेत कुलसाधकम’ मंत्र पढ़ते हुए शव के मुख मे डाले । फिर ताम्बूल खिलाये । कलोक्त पीठ मंत्र व ‘ॐ ह्रीं फट’ का उच्चारण किरे , इसके बाद शव को कंबल से अच्छी तरह ढँक दे और शव को कमर से उठाये । इतने मे ही आसमान मे बिजली कड़क उठटी है या फिर उठ सकती है । अब यह मंत्र पढे -


‘गत्वा शतश्रु साविघ्यं धारयेत कटिदेशत। यद युपद्रावयेत दा, दयात्रीष्ट्ठीवनं शवे’


यह मंत्र से ही शव शांत हो जाता है । इसके बाद दशों
दिशाओ और दिक्पालों की पुजा करे । फिर अनार का बलि दे । इसके बाद मंत्र पढे ‘ह्रीं फट शवासनाय नमः’। कहकर शव की अर्चना करे । शव को कब्जे मे लेने के लिये उसकी घोड़े की तरह सवारी भी करनी पड़ती है। इसलिए उसकी सवारी भी की जानि चाहिये । सवारी के बाद शव के केशो की चुटिया बांन्धे । फिर अपने गुरु एवं गणपति का ध्यान करे , फिर शव को प्रणाम करे । फिर शव के सम्मुख खड़े होकर यह मंत्र पढे-


"अद्ययैत्यादी अमुक गोत्र श्री अमुक शर्मा देवताया: संदर्शनमक्राम: अमुक मन्त्रास्यामुक्त संख्यक जपमहं करिष्ये " और संकल्प साधे ।


इसके बाद ‘ह्रीं आधार शक्ति कमलासनाय नमः’। मंत्र से आसन की पुजा करे । महाशंख की माला (मनुष्य शरीर की अस्थियों से बनी माला) से जप करना है । फिर मुख मे सुगंधित द्रव्य डालकर देवी का तर्पण करे । तत्पश्चात शव के सामने खड़े होकर-


"ॐ वशे मेभव देवेश वीर सिद्धिम देही देही महाभग कृताश्रय"


परायण मंत्र का पाठ किरे । सूत के द्वारा शव को बांन्धे और मंत्र बोले-


"हुं हुं बंधय बंधय सिद्धिम कुरु कुरु फट"


फिर मूलमंत्र से शव को जकड़ ले-


ॐ मद्रशोभव देवेश तीर सिद्धि कृतास्पद। ॐ भीमभव भचाव भावमोरान भावुक। जहाही मां देव देवेश। शव्नामाधिपदीपः


तीन बार परिक्रमा कर सिर मे गुरुदेव, हृदय मे इष्ट देवी का चिंतन करते हुए महाशंख की माला पर मंत्र का जप करे । सिद्धि के बाद शव की चुटिया खोल दे । शव के पैर खोल दे एवं शरीर को बंधन मुक्त कर दे । शव को नदी मे प्रवाहित कर पुजा सामग्री को भी नदी मे प्रवाहित कर दे । याद रखे कापालिक हमेशा शव साधना मनुष्य की भलाई के लिये ही करता है।


कापालिक’ वही, जो इस दुनिया के दु:खो को अपने कपाल (सिर) पर लिये घूमता है।


यह विधि यहा पे दे रहा हु परंतु इसमे कुछ गोपनीय मंत्र एवं मुद्राये मैंने गुप्त रखी है ,फिर भी अगर कोई यह साधना करना चाहे तो मुजसे संपर्क करके प्राप्त कर सकता है,इस साधना से कई लाभ उटाये जा सकते है।

आजकल फेसबुक,सोशल नेटवर्किंग,व्हाटस् अप,ब्लोगर.....पर बहोत सारे कापालिक तंत्र दीक्षा देने वाले गुरु बन गये है। उनको शव साधना पुछो तो वह पुछनेवाले के मन मे डर पैदा कर देते है तो येसे मुर्खो से बचे। कोइ तारापिठ के नाम पर तो कोइ स्वयंभू कापालिक सम्प्रदाय का गुरु आपको मिल जायेगा जो सिर्फ छोटे-छोटे मंत्र देकर साधकों को मार्ग से भटकायेगा और अंततः वह साधक साधना करना ही छोड़ देगा। यही आजकल के मुर्ख गुरुओ का प्लान है,इससे ज्यादा कुछ लिखने से कोइ सुधारने वाला नही है। शव साधना से पुर्व "शव सिद्धि दीक्षा" प्राप्त करने से साधक बिना शव के भी साधना सम्पन्न कर सकता है क्युके दीक्षा के बाद साधना गिली मिट्टी का शव बनाकर भी कर सकते है। गिली मिट्टी से बने हुए शव के माध्यम से शव सिद्धि करनी हो तो इतना विधि-विधान करने का कोइ आवश्यकता नही है परंतु यह आसान विधान तो तब करना सम्भव है जब "शव सिद्धि दीक्षा" को प्राप्त किया जाये अन्यथा शव साधना शमशान मे शव पर बैठकर ही किया जा सकता हैं।






आदेश......

7 Apr 2016

त्रिपुर भैरवी साधना.

महाविद्याओ में छठवें स्थान पर विद्यमान त्रिपुर-भैरवी, संहार तथा विध्वंस की पूर्ण शक्ति है। त्रिपुर शब्द का अर्थ है, तीनो लोक "स्वर्ग, विश्व और पाताल" और भैरवी विनाश के एक सिद्धांत के रूप में अवस्थित हें, तात्पर्य है तीन लोको में सर्व नष्ट या विध्वंस कि जो शक्ति है, वह भैरवी है। देवी विनाश, विध्वंस से सम्बंधित है और भगवान शिव जिनका सम्बन्ध विध्वंस या हैं से है, उनकी शक्ति देवी त्रिपुर भैरवी हैं, भगवान शिव के विध्वंसक प्रवृति की प्रतिनिधित्व करती हैं। विनाशक प्रकृति के साथ, देवी सम्पूर्ण ज्ञानमयी हैं। देवी विध्वंस काल में, अपने भयंकर तथा उग्र स्वरूप में, शिव की उपस्थिति के साथ रहती है। देवी तामसी गुण सम्पन्न है तथा यह गुण मनुष्य के स्वाभाव पर भी प्रतिपादित होता है, जैसे क्रोध, ईर्ष्या, स्वार्थ, मदिरा सेवन, धूम्रपान इत्यादि जैसे विनाशकारी गुण, जो मनुष्य को विनाश की ओर ले जाते हैं। देवी का सम्बन्ध इन्हीं विध्वंसक तत्वों तथा प्रवृति से है, देवी काल-रात्रि या काली के समान गुण वाली है। देवी का सम्बन्ध विनाश से होते हुए भी वे सज्जन जातको के लिए नम्र तथा सौम्य है और दुष्ट प्रवृति, पापी लोगों के लिए उग्र तथा विनाशकारी है। दुर्जनो, पापीओ को देवी की शक्ति ही विनाश कि ओर अग्रसित करती हैं। इस ब्रह्मांड में प्रत्येक तत्व या वस्तु नश्वर है तथा विनाश के बिना उत्पत्ति, नव कृति संभव नहीं हैं। केवल मात्र विनाशकारी पहलू ही हानिकर नहीं है, रचना विनाश के बिना संभव नहीं है, तथापि विनाश सर्वदा नकारात्मक नहीं होती हैं, सृजन और विनाश, परिचालन लय के अधीन है जो ब्रह्मांड सञ्चालन के दो आवश्यक पहलू हैं। देवी कि शक्ति ही, जीवित प्राणी को, क्रमानुसार मृत्यु की ओर अग्रसित करती हैं जैसे बालक से यौवन, यौवन से वृद्धावस्था, जिस पड़ाव में जा कर मनुष्य के शारीर का क्षय हो जाता हैं तथा अंततः मृत, मृत शारीर को पञ्च तत्वों में विलीन करने हेतु। भैरवी शब्द तीन अक्षरो से मिल कर बना है, प्रथम 'भै या भरणा' जिसका तात्पर्य 'रक्षण' से है, द्वितीय 'र या रमणा' रचना तथा 'वी या वमना' मुक्ति से सम्बंधित हैं। प्राकृतिक रूप से देवी घोर विध्वंसक प्रवृति से सम्बंधित हैं।


देवी त्रिपुर भैरवी का घनिष्ठ सम्बन्ध 'काल भैरव' से है, जो जीवित तथा मृत मानवो को अपने दुष्कर्मो के अनुसार दंड देते है तथा अत्यंत भयानक स्वरूप वाले तथा उग्र स्वाभाव वाले हैं। काल भैरव, स्वयं भगवान शिव के ऐसे अवतार है, जिन का घनिष्ठ सम्बन्ध विनाश से है तथा ये याम राज के भी अत्यंत निकट हैं, जीवात्मा को अपने दुष्कर्मो का दंड इन्हीं के द्वारा दी जाती हैं। त्रिपुर भैरवी, काल भैरव तथा यम राज भयंकर स्वरूप वाले है, जिन्हें देख सभी भय से कातर हो जाते हैं। दुष्कर्म के परिणाम विनाश तथा दंड, इन भयंकर स्वरुप वाले देवताओं की ही संचालित शक्ति हैं। देवी, कालरात्रि, महा-काली , चामुंडा आदि विनाशकारी गुणों से सम्बंधित देविओ के समान मानी जाती है। समस्त विध्वंसक वस्तुओं या तत्वों से देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध है जैसे श्मशान भूमि, अस्त्र-शस्त्र, मृत शव, रक्त, मांस, कंकाल, खप्पर, मदिरा पान, धुम्रपान इत्यादि। देवी के संगी साथी भी इन्हीं के समान गुणों तथा स्वाभाव वाले ही है जैसे भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी, भैरव, कुत्ते इत्यादि। देवी के उग्र स्वरूप के विपरीत तथा भयंकर परिणाम उन्हीं को भोगना पड़ता है जो दुष्ट प्रवृति के है। विनाश के स्वरूप में देवी उन दुष्टो के सन्मुख प्रकट हो, उनका विनाश करती है और अंततः मृत्यु पश्चात् दंड भी देती हैं। वास्तव में देवी विनाश रूपी शक्ति है।


त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं. इनकी उपासना भव-बन्ध-मोचन कही जाती है । इनकी उपासना से व्यक्ति को सफलता एवं सर्वसंपदा की प्राप्ति होती है । शक्ति-साधना तथा भक्ति-मार्ग में किसी भी रुप में त्रिपुर भैरवी की उपासना फलदायक ही है, साधना द्वारा अहंकार का नाश होता है तब साधक में पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है और माता, साधक के समक्ष प्रकट होती है । भक्ति-भाव से मन्त्र-जप, पूजा, होम करने से भगवती त्रिपुर भैरवी प्रसन्न होती हैं । उनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही संपूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति होती है ।


मत्स्यपुराण में इनके त्रिपुरभैरवी, रुद्रभैरवी, चैतन्यभैरवी तथा नित्या भैरवी आदि रूपों का वर्णन प्राप्त होता है। इंद्रियों पर विजय और सर्वत्र उत्कर्ष की प्राप्ति हेतु त्रिपुरभैरवी की उपासना का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। महाविद्याओं में इनका छठा स्थान है।

इनके ध्यान का उल्लेख दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्याय में महिषासुर वध के प्रसंग में हुआ है। इनका रंग लाल है। ये लाल वस्त्र पहनती हैं, गले में मुंडमाला धारण करती हैं और शरीर पर रक्त चंदन का लेप करती हैं। ये अपने हाथों में जपमाला, पुस्तक तथा वर और अभय मुद्रा धारण करती हैं। ये कमलासन पर विराजमान हैं। भगवती त्रिपुरभैरवी ने ही मधुपान करके महिषका हृदय विदीर्ण किया था। रुद्रयामल एवं भैरवी कुल सर्वस्व में इनकी उपासना करने का विधान है।

घोर कर्म के लिए काल की विशेष अवस्थाजनित विपत्तियों को शांत कर देने वाली शक्ति को ही त्रिपुरभैरवी कहा जाता है। इनका अरुणवर्ण विमर्श का प्रतीक है। इनके गले में सुशोभित मुंडमाला ही वर्णमाला है। देवी के रक्तचंदन लिप्त पयोधर रजोगुणसंपन्न सृष्टि प्रक्रिया के प्रतीक हैं। अक्षमाला वर्णमाला की प्रतीक है। पुस्तक ब्रह्मविद्या है, त्रिनेत्र वेदत्रयी हैं तथा स्मिति हास करुणा है।

आगम ग्रंथों के अनुसार त्रिपुरभैरवी एकाक्षररूप प्रणव हैं। इनसे संपूर्ण भुवन प्रकाशित हो रहे हैं तथा अंत में इन्हीं में लय हो जाएंगे। अ से लेकर विसर्गतक सोलह वर्ण भैरव कहलाते हैं। तथा क से क्ष तक के वर्ण योनि अथवा भैरवी कहे जाते हैं। स्वच्छन्दोद्योत के प्रथम पटल में इस पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। यहां पर त्रिपुरभैरवी को योगीश्वरी रूप में उमा बतलाया गया है।


इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करने का दृढ़ निर्णय लिया था। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी इनकी तपस्या को देखकर दंग रह गए। इससे सिद्ध होता है कि भगवान शंकर की उपासना में निरत उमा का दृ़ढ़निश्चयी स्वरूप ही त्रिपुरभैरवी का परिचालक है। त्रिपुरभैरवी की स्तुति में कहा गया है कि भैरवी सूक्ष्म वाक् तथा जगत में मूल कारण की अधिष्ठात्री हैं।





साधना विधान:-

लाल वस्त्र पर त्रिपुर भैरवी का चित्र स्थापित करके ही साधना प्रारंभ करे और गणेश,गुरु,शिव पुजन भी नित्य किया करें। यह साधना 9 दिन का है और मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से करें। यह साधना किसी भी नवरात्रि मे कर सकते है। आसन-वस्त्र लाल रंग के हो और उत्तर दिशा के तरफ मुख करके मंत्र जाप करें। मंत्र जाप से पुर्व अपनी कोई भी 3 इच्छाएं पुर्ण होने हेतु देवि से प्रार्थना करें। नित्य कम से कम 11 माला मंत्र जाप करें। साधक अपने गुरु से त्रिपुर भैरवी दीक्षा प्राप्त कर सकता है तो अवश्य ही येसा करने पर उसे पुर्ण सफलता प्राप्त हो सकती है।
इस साधना से सभी मनोकामनाए पुर्ण होती है।




मंत्र:-

।। ॐ हसैं वर वरदाय मनोवांछितं सिद्धये ॐ ।।

(om haseim var varadaay manovaancchitam siddhaye om)




9 दिन के बाद जब साधना पुर्ण हो जाये तब एक अनार का बलि देना जरुरी है।

आप सभीको सफलता मिले यही प्रार्थना करता हूं।




आदेश......