माँ कालिका का स्वरूप जितना भयावह है उससे कही ज्यादा मनोरम और भक्तों के लिए आनंददायी है। काली माता को शक्ति और बल की देवी माना जाता है। अपने जीवन से भय, संकट, इच्छा अनुसार फल पाने के लिए काली माता को प्रसन्न करना चाहिए। आमतौर पर मां काली की पूजा सन्यासी तथा तांत्रिक किया करते हैं। माना जाता है कि मां काली काल का अतिक्रमण कर मोक्ष देती है। आद्यशक्ति होने के नाते वह अपने भक्त की हर इच्छा पूर्ण करती है। तांत्रिक तथा ज्योतिषियों के अनुसार मां काली के कुछ मंत्र ऐसे हैं जिन्हें एक आम व्यक्ति अपने रोजमर्रा के जीवन में अपने संकट दूर करने के लिए प्रयोग कर सकता है।
यही एक मंत्र येसा है जिससे कोइ भी कार्य सम्भव है। मैने इस मंत्र के बहोत सारे अनुभव देखे है और गारंटी के साथ बोल सकता हू "इस मंत्र से अनुभव होता है"।
इस मंत्र के कई प्रयोग है जिन्हे लिखना सम्भव तो नही है परंतु कुछ प्रयोग बता देता हूं।
प्रयोग 1-जब स्वास्थ खराब हो तब मंत्र का 108 बार पाठ करके शुद्ध जल पर तिन बार फुंक मारकर जल को रोगी को पिला दे तो कुछ देर मे रिसल्ट देखने मिलेगा।
प्रयोग 2-कोई इच्छा हो मन मे जो पुर्ण नही हो रही हो तो शनिवार के रात्री मे महाकाली जी के चित्र के सामने चमेली के तेल का दिपक लगाये और मंत्र का 3 माला जाप कालि हकिक माला से 7 दिनो तक करे तो अवश्य इच्छा पुर्ण होगी।
प्रयोग 3-हर समय हमे रक्षा कवच का आवश्यकता होता है,जिससे हम बुरे शक्तियों से बच सके तो इसके लिये "ताम्बे के पेटी (ताबीज) मे 7 काले तिल के साथ दो पपिते के बीज भरकर,ताबीज को देखते हुए मंत्र का 108 बार जाप करके धारण करले तो सभी बुरे शक्तियों से रक्षा होता है "।
प्रयोग 4-अगर आप किसीसे सच्छा शुद्ध प्रेम करते हो और उसको वश मे करना चाहते हो तो "जिसे वश मे करना हो उसके फोटो को देखते हुए मंत्र का रोज शुक्रवार को रात्री मे 3 माला जाप स्फटिक माला से 11 दिनो तक करे और बारहवें दिन काले किशमिश का 11 माला आहुति हवन मे दिजिये तो 7 दिनो मे इच्छित व्यक्ति वश होता है "।
मंत्र-
।। ॐ जयन्ति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।
मंत्र का महत्व और अर्थ:
1)ॐ जयन्ती — जयति सर्वोत्कर्षेण वर्तते इति ‘जयन्ती‘—सबसे उत्कृष्ट एवं विजयशालिनी ।।
2) ॐ मङ्गला –मङ्गं जननमरणादिरूपं समर्पणं
भक्तानां लाति गृह्णाति नाशयति या सा मङ्गला मोक्षप्रदा —जो अपने भक्तों के जन्म -मरण आदि संसार बन्धनको दूर करती है उन मोक्ष दायिनी मंगलमयी देवीका नाम ‘मङ्गला’ है ।।
3) ॐ काली — कलयति भक्षयति प्रलयकाले सर्वम् इति ‘काली’ — जो प्रलयकालमे सम्पूर्ण सृष्टि को अपना ग्रास बना लेती है ; वह ‘काली ‘ है ।।
4) ॐ भद्रकाली — भद्रं मङ्गलं सुखं वा कलयति स्वीकरोति भक्तेभ्यो दातुम् इति भद्रकाली सुखप्रदा -जो अपने भक्तों को देनेके लिए ही भद् , सुख किंवा मंगल स्वीकार करती है , वह ‘भद्रकाली’ है ।।
5) ॐ कपालिनी –धारयति हस्ते कपाल मुण्डभूषिता च
या सा कपालिनी — हातमे कपाल तथा गलेमे मुण्डमाला धारण करने वाली ।।
6) ॐ दुर्गा –दुःखेन अष्टाङ्गयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेन गम्यते प्राप्यते या सा ‘दुर्गा’ –जो अष्टांगयोग, कर्म एवं उपासनारूप दुःसाध्य साधन से प्राप्त होती है , वे जगदम्बिका ‘दुर्गा’ कहलाती है ।।
7) ॐ क्षमा –क्षमते सहते भक्तानाम् अन्येषां वा सर्वानपराधान् जननीत्वेनातिशयकरूणामयस्वभावादिति ‘क्षमा’ — सम्पूर्ण जगत् की जननी होनेसे अत्यन करूणामय स्वभाव होनेके कारण जो भक्तों अथवा दूसरों के भी सारे अपराध क्षमा करती है , उनका नाम ‘क्षमा’ है ।।
ॐ शिवा — सबका कल्याण अर्थात शिव
करनेवाली जगदम्बाको ‘शिवा ‘ कहते है ।।
9) ॐ धात्री –सम्पूर्ण प्रपंचको धारण करनेके कारण भगवती का नाम ‘धात्री’ है ।।
10) ॐ स्वाहा –स्वाहारूपसे यज्ञभाग ग्रहण करके देवताओं का पोषण करनेवाली भगवती को ‘स्वाहा ‘ कहते है ।।
11) ॐस्वधा — स्वधारूपसे श्राद्ध और तर्पणको स्वीकार करके पितरोंका पोषण करनेवाली भगवती को ‘स्वधा ‘ कहते है ।।
इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके ! तुम्हे मेरा नमस्कार हो । देवि चामुण्डे ! तुम्हारी जय हो ।सम्पूर्ण
प्राणियोंकी पीडा हरनेवाली देवि ! तुम्हारी जय हो ।सबमे व्याप्त रहने वाली देवि ! तुम्हारी जय हो ।कालरात्रि ! तुम्हें नमस्कार हो ।।
मंत्र जाप के बाद काली सहस्त्राक्षरी का कम से कम एक पाठ करने से मंत्र से अनुकूल रिसल्ट अवश्य ही शिघ्र प्राप्त होंगे।
।। श्री काली सहस्त्राक्षरी ।।
ॐ क्रीं क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं स्वाहा शुचिजाया महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीँ कामेश्वरी वीँ हं वाराहिके ह्रीँ महामाये खं खः क्रोघाघिपे श्रीमहालक्ष्यै सर्वहृदय रञ्जनी वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिँ हसकहलह्रीँ हस्त्रैँ ॐ ह्रीँ क्लीँ मे स्वाहा ॐ ॐ ह्रीँ ईं स्वाहा दक्षिण कालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा खड्गमुण्डधरे कुरुकुल्ले तारे ॐ. ह्रीँ नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रेँ विमोहिनी सर्वदुष्टान् मोहय मोहय हयग्रीवे सिँहवाहिनी सिँहस्थे अश्वारुढे अश्वमुरिप विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून मां हिँसितुमुघतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले वलाकिनी नीलपताके क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके सर्वजगव्दशमानय वशमानय मातग्ङिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातग्ङिनी सर्वशंकरी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे घोरनादिनी भूर शत्रून् विनाशिनी उन्मादिनी रोँ रोँ रोँ रीँ ह्रीँ श्रीँ हसौः सौँ वद वद क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ क्रीँ क्रीँ कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके शम्वरघातिनी कामेश्वरी कामिके ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा हृदयाहये ॐ ह्रीँ क्रीँ मे स्वाहा ठः ठः ठः क्रीँ ह्रं ह्रीँ चामुण्डे हृदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान् अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नस्तने विष्टंभकारिणि विघाधिके श्मशानवासिनी कलय कलय विकलय विकलय कालग्राहिके सिँहे दक्षिणकालिके अनिरुद्दये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे चमत्कारिणी हं कालिके करालिके घोरे कह कह तडागे तोये गहने कानने शत्रुपक्षे शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि अम्बिके तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथनायै योगमार्ग गच्छ गच्छ निदर्शिके देहिनि दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपुन्दर्शने दर्शय दर्शय सिँहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीँ क्रीँ क्रीँ हूं हूं ह्रीँ ह्रीँ फट् स्वाहा शक्तिरुपायै रोँ वा गणपायै रोँ रोँ रोँ व्यामोहिनि यन्त्रनिकेमहाकायायै प्रकटवदनायै लोलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी तन्त्रनिके मेधप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनि कुल्ले कुरुकुल्ले चैतन्यप्रभेप्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ ह्रीँ रक्ष रक्ष ज्वाला प्रचण्ड चण्डिकेयं शक्तिमार्तण्डभैरवि विप्रचित्तिके विरोधिनि आकर्णय आकर्णय पिशिते पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै नमो नमः ब्राम्हयै नमो नमः माहेश्वर्यै नमो नमः कौमार्यै नमो नमः वैष्णव्यै नमो नमः वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमो नमः अपराजितायै नमो नमः नारसिँहिकायै नमो नमः कालि महाकालिके अनिरुध्दके सरस्वति फट् स्वाहा पाहि पाहि ललाटं भल्लाटनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष परविधा क्षोभय क्षोभय आकृष्य आकृष्य कट कट महामोहिनिके चीरसिध्दके कृष्णरुपिणी अंजनसिद्धके स्तम्भिनि मोहिनि मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।।
इस काली सहस्त्राक्षरी का नित्य पाठ करने से ऐश्वर्य,मोक्ष,सुख,समृद्धि,एवं शत्रुविजय प्राप्त होता है,इसमे कोई संदेह नही है।
आदेश.....