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20 Feb 2016

BHOOT MANTRA SIDDHI SADHANA.

भूत -प्रेत और आत्माओं के विभिन्न 42 प्रकार-



1.भूत :- सामान्य भूत जिसके बारे में आप अक्सर सुनते है ।

2.प्रेत :- परिवार के सताए हुए बिना क्रियाकर्म के मरे हुए आदमी,जो पिडीत रहेते है।

3.हाडल :- बिना नुक्सान पहुचाये प्रेतबाधित करने वाली आत्माए ।

4.चेतकिन :- चुडेले जो लोगो को प्रेतबाधित कर दुर्घटनाए करवाती है ।

5.मुमिई :- मुंबई के कुछ घरो में प्रचलित प्रेत,जो कभी कभी दिखाई देते है।

6.विरिकस:- घने लाल कोहरे में छिपी और अजीबो-गरीब आवाजे निकलने वाला होता है।

7.मोहिनी या परेतिन : -प्यार में धोका खाने वाली आत्माए जिनसे मनुष्यों को मदत मिल सकती है।

8.शाकिनी:- शादी के कुछ दिनों बाद दुर्घटना से मरने वाली औरत की आत्मा जो कम खतरनाक होती है।

9.डाकिनी :- मोहिनी और शाकिनी का मिला जुला रूप किन्ही कारणों से हुई मौत से बनी आत्मा होती है।

10.कुट्टी चेतन :- बच्चे की आत्मा जिसपर तांत्रिको का नियंत्रण होता है ।

11.ब्रह्मोदोइत्यास :- बंगाल में प्रचलित,श्रापित ब्राह्मणों की आत्माए,जिन्होने धर्म का पालन ना किया हो ।

12.सकोंधोकतास :- बंगाल में प्रचलित रेल दुर्घटना में मरे लोगो की सर कटी आत्माए होती है।

13.निशि :- बंगाल में प्रचलित अँधेरे में रास्ता दिखाने वाली आत्माए ।

14.कोल्ली देवा :- कर्नाटक में प्रचलित जंगलो में हाथो में टोर्च लिए घुमती आत्माए ।

15.कल्लुर्टी :-कर्नाटक में प्रचलित आधुनिक रीती रिवाजो से मरे लोगो की आत्माए ।

16.किचचिन:- बिहार में प्रचलित हवस की भूखी आत्माए ।

17.पनडुब्बा:- बिहार में प्रचलित नदी में डूबकर मरे लोगो की आत्माए ।

18.चुड़ैल:- उत्तरी भारत में प्रचलित राहगीरों को मारकर बरगद के पेड़ पर लटकाने वाली आत्माए ।

19.बुरा डंगोरिया :- आसाम में प्रचलित सफ़ेद कपडे और पगड़ी पहने घोड़े पसर सवार होनेवाली आत्माए ।

20.बाक :- आसाम में प्रचलित झीलों के पास घुमती हुई आत्माए ।

21.खबीस:- पाकिस्तान ,गुल्फ देशो और यूरोप में प्रचलित जिन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाली आत्माए ।

22.घोडा पाक :- आसाम में प्रचलित घोड़े के खुर जैसे पैर बाकी मनुष्य जैसे दिखाई देने वाली आत्माए ।

23.बीरा :- आसाम में प्रचलित परिवार को खो देने वाली आत्माए ।

24.जोखिनी :-आसाम में प्रचलित पुरुषो को मारने वाली आत्माए ।

25.पुवाली भूत :-आसाम में प्रचलित छोटे घर के सामनो को चुराने वाली आत्माए ।

26.रक्सा :- छतीसगढ़ मे प्रचलित कुँवारे मरने वालो की खतरनाक आत्माए ।

27. मसान:- छतीसगढ़ की प्रचलित पाँच छै सौ साल पुरानी प्रेत आत्मा नरबलि लेते हैँ , जिस घर मेँ निवास करेँ पुरे परिवार को धीरे धीरे मार डालते हैँ ।

28.चटिया मटिया :- छतीसगढ़ मेँ प्रचलित बौने भुत जो बचपन मेँ खत्म हो जाते हैँ वो बनते हैँ बच्चो को नुकसान नहीँ पहुँचाते । आँखे बल्ब की तरह हाथ पैर उल्टे काले रंग के मक्खी के स्पीड मेँ भागने वाले चोरी करने वाली आत्माए ।

29. बैताल:- पीपल पेड़ मेँ निवास करते हैँ एकदम सफेद रंग वाले ,सबसे खतरनाक आत्माए ।

30. चकवा या भुलनभेर :- रास्ता भटकाने वाली आत्मा महाराष्ट्र ,एमपी आदि मेँ पाया जाता हैँ ।

31. उदु:- तलाब या नहर मेँ पाये जाने वाली आत्मा जो आदमियोँ को पुरा खा जाऐँ , छतीसगढ़ मेँ प्रचलित आत्माए ।

32. गल्लारा :- अकाल मरे लोगो की आत्मा धमाचौकडी मचाने वाली आत्मा छतीसगढ़ मेँ प्रचलित है ।

34. भंवेरी :- नदी मेँ पायी जाने वाली आत्मा,जो पानी मेँ डुब कर मरते हैँ पानी मेँ भंवर उठाकर नाव या आदमी को डूबा देने वाली आत्मा छतीसगढ़ मेँ प्रचलित है।

35. गरूवा परेत:- बिमारी या ट्रेन से कटकर मरने वाले गांयो और बैलो की आत्मा जो कुछ समय के लिए सिर कटे रूप मेँ घुमते दिखतेँ हैँ नुकसान नही पहुचातेँ छतीसगढ मेँ प्रचलित है।

36. हंडा :- धरती मेँ गडे खजानोँ मेँ जब जीव पड़ जाता हैँ याने प्रेत का कब्जा तो उसे हंडा परेत कहते हैँ , ये जिनके घर मेँ रहते हैँ वे हमेशा अमीर रहते हैँ , हंडा का अर्थ हैँ कुंभ , जिसके अंदर हीरे सोने आदि भरे रहते हैँ,जो लालच वश हंडा को चुराने का प्रयास करेँ उसे ये खा जाते हैँ , ये चलते भी हैँ,छतीसगढ़ मेँ प्रचलित है।

37. सरकट्टा:-छत्तीसगढ़ में प्रचलित एक प्रेत जिसका सिर कटा होता है,बहुत ही खतरनाक होता है।

38.ब्रह्म :-ब्राह्मणों की आत्मा जो सात्विक और धार्मिक रहे हों अथवा जो साधक और पुजारी रहे हों किन्तु दुर्घनावश अथवा स्वयं जीवन समाप्त कर चुके हों,बेहद शक्तिशाली ,तांत्रिक नियंत्रित नहीं कर सकते,केवल मना कर या प्रार्थना कर ही शांत किया जा सकता है । जिस परिवार के पीछे पड़ जाएँ खानदान साफ़ हो जाता है ,कोई रोक नहीं सकता । पूजा देने पर ही शांत हो सकते हैं ।

39.जिन्न :-अग्नि तत्वीय मुस्लिम धर्म से सम्बंधित आत्मा,बेहद शक्तिशाली,नियंत्रण मुश्किल परंतु मनाया जा सकता है ।

40.शहीद :-युद्ध अथवा दुर्घटना में मृत मुस्लिम बीर|अक्सर मजारें बनी मिलती हैं,शक्तिशाली आत्माएं जो पूजा पाकर और शक्तिशाली हो उठती हैं ।

41.बीर:- लड़ाकू अथवा उग्र ,साहसी व्यक्ति जिसकी दुर्घटना अथवा हत्या से मृत्यु हुई हो ।

42.सटवी:-इसका हवा मे स्थायित्व होता है और ये हर जगह होती है,यह स्त्री की आत्मा होती है। किसी भी शरीर मे प्रवेश करके उसको उदास कर देती है।



आजकल ऐसे सैकड़ों आश्चर्यजनक करिश्में गावों और शहरों में सुनने या देखने को मिल जाएंगे, जो भूत-प्रेतों और आत्माओं से संबंधित होते हैं। यदि किसी मंत्र साधना द्वारा आत्माओं से संपर्क स्थापित कर लिया जाये तो निश्चय ही आश्चर्यजनक तथ्य हाथ लगते हैं।

किसी भी आत्मा से संपर्क स्थापित कर उसके जीवन के उन रहस्यों को जाना जा सकता है। जो किसी कारण वश वह व्यक्ति किसी से बता नहीं पाया हो। इसी तरह अपने मृत पूर्वजों माता-पिता भाई बहन प्रेमी-प्रेमिका से संपर्क स्थापित कर उन रहस्यों का पता लगाया जा सकता है। जो कि वे अपने परिवारजनों से बता नहीं पाये हों या उनकी अचानक किसी एक्सीडेंट या दुर्घटना से मृत्यु हो गई हो। साथ ही साथ किसी भी प्रकार के सवालों का जवाब प्राप्त किया जा सकता है। जैसे घर से भागा हुआ व्यक्ति कहाँ है ? वह जीवित है भी या नही? मेरी शादी कब होगी ? अमुक लड़की मुझसे प्रेम करती है या नही ? नौकरी कब मिलेगी ? मुझे किस क्षेत्र में सफलता मिलेगी? परीक्षा में पास होऊँगा या फेल ? लाॅटरी या सट्टे में कल कौन सा नम्बर फसेगा ? ऐसे सैकड़ों प्रकार के सवालों का जवाब आत्मा से प्राप्त किया जा सकता है।




साधना विधान:-

यह अत्यंत उग्र शाबर मंत्र है,जिसका जाप करने से पुर्व  रक्षा विधान अत्यंत आवश्यक है अन्यथा हानी होना सम्भव है। साधक के पास काले वस्त्र काला आसन,सिद्ध काली हकिक माला,भूत सिद्धि यंत्र और तिव्र सुगंधित धूप/अगरबत्ती होना जरुरी है। इस साधना मे अबिर,पताशा,हिना का इत्र,मुरमुरा,पलाश के पत्ते,स्मशान का कोयल (मनोवांछित आत्मा को बुलाने हेतु और अन्य आत्मा के लिए जरुरी नही है),सव्वा मिटर सफेद वस्त्र,बास का एक फिट साईज का चार लकड़ी (इससे भुतो का बंगला बनाना पडता है),एक लोटा शुद्ध जल जो एक हाथ से निकालना पड़ता है (नदि,सरोवर का भी जल ले सकते है)।

साधना अमावस्या से पुर्व आठवें दिन शुरु किया जाता है। साधना बंद कमरे मे,स्मशान मे या सुनसान जगह पर किया जा सकता है। साधना शुरुवात होने के बाद दुसरे तिसरे दिन से आवाजे या गंदि बदबु आना शुरु होता है। जब आत्माए आती है तब वो साधक को गंदि से गंदि गालिया देता है परंतु साधक को अपने आप पर नियंत्रण रखना जरुरी है और आत्मा को साधका गालिया ना दे तो बेहतर है। आत्माएं साधना पुर्ण होने के बाद सुंदर रूप मे प्रत्यक्ष होती है परंतु उससे पहिले उनका स्वरूप देखकर साधक को उल्टिया भी हो सकता है क्युके उनका रूप बहोत ज्यादा डरावना और गंदा होता है। भूत सिद्धि यंत्र साधक के पास हो तो उसे डरने की कोइ आवश्यकता नही है,यंत्र के वजेसे आत्माए भयंकर और गंदे रूप मे साधक के सामने आकर उसको परेशान नही करती है।





शाबर भूत सिद्धि मंत्र:-


।। नदितुन ये-नदिच्या पान्यातुन ये,महलातुन ये-महलाच्या अंधारातुन ये,मसानातुन ये-मसानाच्या वाड्यातुन ये,शिवारातुन ये-शिवाराच्या हदितुन ये,वेताल राजा ले सांगुन ये,नाही येशिल तर............गुरु का मंत्र सच्चा,छु वाचापुरी ।।





ये मराठी मंत्र है जो यहा पर मैने अधुरा दिया है ताकि मुर्ख लोग इसको कॉपी-पेस्ट करके कही छाप ना दे ।येसे उग्र मंत्रो मे मार्गदर्शक का आवश्यकता होता है,मै इस साधना मे साधक का मार्गदर्शन करुँगा।इसमे साधना विधी समजाया जायेगा और साधना सामग्री का कैसे इस्तेमाल करना है वह भी बताया जायेगा।
किसी भी प्रश्न हेतु सम्पर्क करे-
amannikhil011@gmail.com पर ।





(नोट:कुछ दिनो से सुशील भाई व्यस्त होने के कारण शायद और कुछ दिनो तक फोन पर बात नही कर पायेंगे,परंतु ई-मेल से आपका और हमारा संम्पर्क बना रहेगा।

-प्रकाश)




आदेश.......

27 Sept 2015

पूर्ण अष्ट यक्षिणी साधना विधान.

यक्षिणी को शिव जी की दासिया भी कहा जाता है,इसलिये आर्टिकल पुरा पढे तो आपको साधना के कुछ गोपनिय पहेलुओ का ग्यान प्राप्त होगा.
यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है 'जादू की
शक्ति'.आदिकाल में प्रमुख रूप से ये रहस्यमय जातियां थीं:- देव,दैत्य,दानव, राक्षस,यक्ष,गंधर्व,अप्सराएं, पिशाच,किन्नर, वानर, रीझ,भल्ल, किरात, नाग आदि.....ये सभी मानवों से कुछ अलग थे.इन सभी के पास रहस्यमय ताकत होती थी और ये सभी मानवों की किसी न किसी रूप में मदद करते थे.देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नंबर आता है.कहते हैं कि यक्षिणियां सकारात्मक शक्तियां हैं तो पिशाचिनियां नकारात्मक.बहुत से लोग यक्षिणियों को भी किसी भूत-प्रेतनी की तरह मानते हैं, लेकिन यह सच नहीं है.रावण के सौतेला
भाई कुबेर एक यक्ष थे, जबकि रावण एक राक्षस. महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की दो पत्नियां थीं इलविला और कैकसी. इलविला से कुबेर और कैकसी से रावण, विभीषण, कुंभकर्ण का जन्म हुआ.
इलविला यक्ष जाति से थीं तो कैकसी राक्षस.जिस तरह प्रमुख 33 देवता होते हैं, उसी तरह प्रमुख 64 यक्ष और यक्षिणियां भी होते हैं,गंधर्व और यक्ष जातियां देवताओं की ओर थीं तो राक्षस, दानव
आदि जातियां दैत्यों की ओर यदि आप देवताओं की साधना करने की तरह किसी यक्ष या यक्षिणियों की साधना करते हैं तो यह भी देवताओं की तरह प्रसन्न होकर आपको उचित मार्गदर्शन या फल देते हैं, उत्लेखनीय है कि जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब
एक यक्ष से उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से विख्यात 'यक्ष प्रश्न' किए थे. उपनिषद की एक कथा अनुसार एक यक्ष ने ही अग्नि, इंद्र, वरुण और वायु का घमंड चूर-चूर कर दिया था.यक्षिणी साधक के समक्ष एक बहुत ही सौम्य और सुन्दर स्त्री
के रूप में प्रस्तुत होती है.किसी योग्य जानकार से पूछकर ही यक्षिणी साधना करनी चाहिए. साधक अपने विवेक से काम लें.
शास्त्रों में 'अष्ट यक्षिणी साधना' के नाम से वर्णित यह साधना प्रमुख रूप से यक्ष की श्रेष्ठ रमणियों की है.

ये प्रमुख यक्षिणियां है -
1. सुर सुन्दरी यक्षिणी,
2. मनोहारिणी यक्षिणी,
3. कनकावती यक्षिणी,
4. कामेश्वरी यक्षिणी,
5. रतिप्रिया यक्षिणी,
6. पद्मिनी यक्षिणी,
7. नटी यक्षिणी,
8.अनुरागिणी यक्षिणी सिद्ध

संशिप्त जानकारी दे रहा हू-

1-सुर सुन्दरी यक्षिणी.

यह सुडौल देहयष्टि, आकर्षक चेहरा, दिव्य आभा लिये हुए, नाजुकता से भरी हुई है. देव योनी के समान सुन्दर होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है. सुर सुन्दरी कि विशेषता है, कि साधक उसे
जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होता ही है चाहे वह माँ का स्वरूप हो, चाहे वह बहन का या पत्नी का, या प्रेमिका का.यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है.

2-मनोहारिणी यक्षिणी.

अण्डाकार चेहरा, हरिण के समान नेत्र, गौर वर्णीय,चंदन कि सुगंध से आपूरित मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहन बना देती है, कि वह कोई भी,चाहे वह पुरूष
हो या स्त्री, उसके सम्मोहन पाश में बंध ही जाता है,वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट कराती है.

3-कनकावती यक्षिणी.

रक्त वस्त्र धारण कि हुई, मुग्ध करने वाली और अनिन्द्य सौन्दर्य कि स्वामिनी, षोडश वर्षीया, बाला स्वरूपा कनकावती यक्षिणी है.कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधक में तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने कि क्षमता प्राप्त कर लेता है.यह साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है.

4-कामेश्वरी यक्षिणी.

सदैव चंचल रहने वाली, उद्दाम यौवन युक्त, जिससे मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है.साधक का हर क्षण मनोरंजन करती है कामेश्वरी यक्षिणी.यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख कि
कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में साधक कि कामना करती है.साधक को जब भी द्रव्य कि आवश्यकता होती है,वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है

5-रति प्रिया यक्षिणी.

स्वर्ण के समान देह से युक्त, सभी मंगल आभूषणों से सुसज्जित, प्रफुल्लता प्रदान करने वाली है रतिप्रिया यक्षिणी.रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है.साधक और साधिका यदि संयमित
होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य कि उपलब्धि होती है

6-पदमिनी यक्षिणी.

कमल के समान कोमल, श्यामवर्णा, उन्नत स्तन, अधरों पर सदैव मुस्कान खेलती रहती है, तथा इसके नेत्र अत्यधिक सुन्दर है.पद्मिनी यक्षिणी साधना साधक को अपना सान्निध्य नित्य प्रदान करती है.
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि यह अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान कराती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति कि और अग्रसर करती है.

7-नटी यक्षिणी.

नटी यक्षिणी को 'विश्वामित्र' ने भी सिद्ध
किया था.यह अपने साधक कि पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार कि विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है.

8-अनुरागिणी यक्षिणी.

अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है। साधक पर प्रसन्न होने पर उसे नित्य धन, मान, यश आदि प्रदान करती है तथा साधक की इच्छा होने पर उसके साथ उल्लास करती है.

अष्ट यक्षिणी साधना को संपन्न करने वाले साधक को यह साधना अत्यन्त संयमित होकर करनी चाहिए.समूर्ण साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन
अनिवार्य है. साधक यह साधना करने से पूर्व यदि.
साधना काल में मांस, मदिरा का सेवन न करें .यह.साधना रात्रिकाल में ही संपन्न करें.साधनात्मक.अनुभवों की चर्चा किसी से भी नहीं करें, न ही.किसी अन्य को साधना विषय में बतायें.निश्चय ही यह साधना साधक के जीवन में भौतिक पक्ष को पूर्ण करने मे अत्यन्त सहायक होगी, क्योंकि अष्ट यक्षिणी सिद्ध साधक को जीवन में कभी भी निराशा या हार का सामना नहीं करना पड़ता है.
वह अपने क्षेत्र में अद्वितीयता प्राप्त करता ही है.

साधना विधान-
इस साधना में आवश्यक सामग्री है -
"पारद अष्टाक्ष गुटिका"तथा अष्ट यक्षिणी सिद्ध यंत्र एवं 'यक्षिणी माला'.साधक यह साधना किसी भी शुक्रवार को प्रारम्भ कर सकता है.यह ग्याराह दिन की साधना है.लकड़ी के बजोट पर सफेद वस्त्र बिछायें
तथा उस पर कुंकुम से यंत्र बनाएं.
फिर उपरोक्त प्रकार से रेखांकित यंत्र में जहां 'ह्रीं' बीज अंकित है वहां "पारद अष्टाक्ष गुटिका" स्थापित करें.फिर अष्ट यक्षिणी का ध्यान कर गुटिका का पूजन कुंकूम, पुष्प तथा अक्षत से करें,धुप तथा दीप लगाए और गुटिका को देखते हुए मंत्र का जाप 108 बार करे "ओम ह्रीं शिव प्रिये प्रत्यक्षं दर्शय सिद्धये ह्रीं फट".फिर यक्षिणी से निम्न मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमानुसार दिए गए हुए आठों यक्षिणियों के मंत्रों की एक-एक माला जप करें.प्रत्येक यक्षिणी मंत्र की एक माला
जप करने से पूर्व तथा बाद में मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें। उदाहरणार्थ पहले मूल मंत्र की एक माला जप करें, फिर सुर-सुन्दरी यक्षिणी मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर मूल मंत्र की एक माला मंत्र जप करें, फिर क्रमशः प्रत्येक यक्षिणी से सम्बन्धित मंत्र का जप करना है.ऐसा ग्याराह  दिन तक नित्य करें.

मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र-

॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि
नमः ॥

1-सुर सुन्दरी मंत्र-
॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥

2-मनोहारिणी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥

3-कनकावती मंत्र
॥ ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥

4-कामेश्वरी मंत्र
॥ ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥

5-रति प्रिया मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥

6-पद्मिनी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥

7-नटी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥

8-अनुरागिणी मंत्र
॥ ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥

मंत्र जप समाप्ति पर साधक साधना कक्ष में ही सोयें। अगले दिन पुनः इसी प्रकार से साधना संपन्न करें, ग्याराह दिनो साधना सामग्री को जिस वस्त्र पर यंत्र बनाया है,उसिमे मे बाँधकर सुरक्षित रखे.
जब भी यक्षिणी से काम करवाना हो तब सिर्फ यह पूर्ण विधान एक दिन करे,असंभव कार्य भी संभव होगा.
इस साधना मे "पारद अष्टाक्ष गुटिका"का महत्व बहोत ज्यादा है,बिना गुटिका के साधना मे सफलता प्राप्त करना कठिन है,माला यंत्र नही भी हो तो ज्यादा फर्क नही पडेगा.आप चाहे तो बिना गुटिका के साधना करके देखिये तो आपको प्रमाण मिल ही जायेगा.क्युके मैने प्रत्येक बार अपने अनुभव से गोपनियता का खुलासा किया है जो प्रत्येक जानकार नही करता.

"पारद अष्टाक्ष गुटिका" निर्माण-

इस गुटिका के निर्माण के लिए जिस अष्ट
संस्कारित पारद का प्रयोग किया जाता है
उसके सभी संस्कार रसांकुश यक्ष और  यक्षिणी के मन्त्रों से होता है परन्तु ये मंत्र जप दीपनी क्रम युक्त होना चाहिए,तभी इस पारद में वो प्रभाव आएगा जो इस गुटिका के निर्माण के लिए अपेक्षित है.तत्पश्चात इसे स्वर्ण ग्रास दिया जाये और इसे मुक्ता पिष्टी के साथ खरल किया जाये,जब पारद के साथ उस पिष्टी का पूर्ण योग हो जाये तब उसे,चन्द्रिका नागक जडि रस,विशुद्ध ताम्रभस्म,सफेदधतूरे,सिंहिका,श्वेतार्क रस और ताम्बूल के स्वरस के साथ आठ घंटों तक खरल किया जाये,और खरल करते समय-

ॐ नमो आदेश गुरूजी को,सारा पारा भेद उजारा,देत ज्ञान का उजारा,दूर कर अँधियारा,शिव की शक्ति इसी घडी इसी पल आये,भीतर समाये,करे दूर अँधियारा जो ना करे तो शंकर को त्रिशूल ताडे,शक्ति को खडग गिरे,छू वाचापुरी ll

उपरोक्त मंत्र का जप करते जाये,जब भी रस सूखने लगे तो नया रस डालते जाये ,जब समयावधि पूर्ण हो जाये तो उस पिष्टी को सुखाकर शराव सम्पुट कर 2 पुट दे दे और स्वांग शीतल होने के बाद उस पिष्टी के साथ पुनः मनमालिनी मंत्र का जप करते हुए उस पिष्टी का 10 वा भाग पारद डालकर खरल करे और मूष में रख कर गरम करे और धीरे धीरे विल्वरस का चोया देते जाये,लगभग 10 गुना रस धीरे धीरे
चोया देते हुए शुष्क कर ले.अब आप इसे
पिघलाकर गुटिका का आकार दे दे,इस क्रिया में पारद अग्निस्थायी हो जाता है और गुटिका हलके श्वेत वर्ण की बनती है जो पूर्ण दैदीप्य मान होती है.यदि पारद
अग्निसह्य नहीं हुआ तो क्रिया असफल
समझो.इस गुटिका को सामने रख पुनः 3 घंटों तक रसांकुश मन्त्रों का दीपनी क्रिया के साथ जप करो और गोरख मन मुद्रा का
प्रदर्शन करो.तथा इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा
मन्त्रों से इसे प्रतिष्ठित कर इसमें 64 यक्षिणी का स्थापन कर दो,फिर षोडशोपचार पूजन कर उस पर आप मनोवांछित यक्षिणीसिद्धी प्रयोग कर सकते हैं.इसे शिवचक्षु मंत्र से यदि 11 माला मंत्र कर सिद्ध कर लिया जाये और पूजन स्थल पर स्थापित कर दिया जाये तो ये गुटिका यक्षिणी को बाँध देती है जिससे व्यक्ति को पूर्ण सफलता की प्राप्ति होती ही है और यह आठो यक्षिणी मंत्र शिव जी ने किलित किये हुए है,जिनका किलन गुटिका के प्रभाव से समाप्त होता है और इसके लिये कोई विशेष किलन मुक्ती विधान करने की आवश्यकता नही है.

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amannikhil011@gmail.com
पर,आपको आपके नक्षत्र नुसार साधना संबंधित मार्गदर्शन भी प्राप्त होगा,ताकी शीघ्र सफलता प्राप्त हो.

आदेश.

2 Jul 2014

कर्ण पिशाचिनी साधना




यह अत्यंत उग्र साधना है और शीघ्र फलप्रद है,इस साधना से सिद्धि ना मिले यह तो सम्भव ही नहीं है इसलिये यह साधना संपन्न करना योग्य है.यह साधना ऐसे व्यक्तिओ को सिद्ध है जिनके पास कोई भी जाये तो वह साधक बहुत-भविष्य-वर्तमान काल सहज ही बता देते है.
यह साधना मै भी करना चाहता हु और यह साधना संपन्न करने का योग्य समय श्रावन माह है जो अभी आनेवाला है,यह माह हर तांत्रिक साधना के लिए उत्तम माना जाता है.श्रावन माह में सभी तांत्रिक शिव साधना और इतर योनि साधना ही करते है,महत्वपूर्ण बात यह है की इस साधना में किसी भी प्रकार का कोई खतरा नहीं है और साधना सिद्ध होने के बाद साधक के परिवार को भी डरने का जरुरत नहीं है क्युकी इस मन्त्र के प्रभाव से साधक का सदैव रक्षा होता है.






मंत्र-

।। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नृम ठं ठं नमो देव पुत्री स्वर्ग निवासिनी,सर्व नर नारी मुख वार्ताली,वार्ता कथय,सप्त समुद्रान दर्शय दर्शय,ॐ  ह्रीं श्रीं क्लीं नृम ठं ठं फट स्वाहा ।।


साधना विधि-
एक वाराह (जंगली सूअर/शूकर दंत) दन्त अपने आसन के निचे रखे और साथ में सेई का काटा रखिये,आसन लाल रंग का हो माला रुद्राक्ष या लाल हकीक का हो,वस्त्र भी लाल रंग के हो,दिशा दक्षिण हो,सामने तेल का दिया सुगन्धित इत्र डालकर जलाये और धुप भी जलाये,साधना शुक्रवार से प्रारम्भ करे,नित्य २१ माला मन्त्र जाप करना आवश्यक है.वाराह दन्त वाराह के नैसर्गिक मृत्यु से प्राप्त हो यह इस साधना का गोपनीय सूत्र है.






 ।। इती श्री सदगुरु चरणार्पनमस्तु ।। 

 

 

 

 

 

वशीकरण साधना
मैंने एक विधान ढूंढा है जो शत प्रतिशत प्रभावशाली है,जिसका प्रभाव १००% होता ही है और नसीब से इसका सामग्री भी मिल गया है जो आज तक मेरे लिये असंभव था,इसलिये जो भी व्यक्ति यह विधान प्राप्त करना चाहते है वह संपर्क कीजिए.

amannikhil011@gmail.com 


2 Feb 2014

ITAR YONIYA-YAKSHINI & BOOT..........


औघड़ गोलक के साथ आपको होली का बभूत भेजा जा रहा है और गोलक को हमेशा बभूत मे ही रखना है अन्यथा आपको परेशानी हो सकता है क्यूके गोलक के साथ हमेशा शक्तिया घूमता-फिरता रहेता है जिन पर उनको बभूत मे रखने से काबू पाया जाता है,आपको इस के ऊपर किया जाने वाला हर साधना भेजा जाएगा अभी तो सिर्फ 2 साधना ये भेज रहा हु,आप जब भी साधना करे तो आपको औघड़ गोलक को जब भी साधना मे स्थापित करना हो तो आप चावल या कोई भी बभूत का ढेरी बनाये और उसिपे औघड़ गोलक को स्थापित कीजिये,साधना के समय गोलक का भी पूजन आवश्यक है,पूजन सामान्य पद्धती से करना है सिर्फ जल चढाना वर्जित है॰गोलक को सिर्फ साधना काल मे ही स्थापित रखिये बाकी समय बभूत के साथ डिब्बिया मे रखिये अगर आपको महसूस हो रहा हो के आपके उपर किसी प्रकार का तंत्र-मंत्र का बाधा है तो थोडासा बभूत डिब्बिया से निकाल कर अपने आपको या फिर पीड़ित को बभूत का तिलक महामृत्युंजय मंत्र बोलकर करे तुरंत असर होगा,तिलक शाम को गौधूलि वेला मे करना आवश्यक है बाकी समय मे करने से असर धीमा होता है कार्य पूर्ति के बाद किसी गरीब को कुछ दान कर दीजिये तो आपको भी अच्छा लगेगा और हा अगर घर के ऊपर तंत्र-मंत्र का बाधा हो तो बभूत को एक ग्लास पानी मे मिलाकर पूरे घर मे जल के छीटे लगा दीजिये समय गौधूलि वेला ही होगा.............विशेष कार्य को जाते समय अपना कामना गोलक को स्पर्श करते हुये बोलिये और कार्य को सम्पन्न कीजिये फायदा मिलेगा॰



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यक्षिणी साधना

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इस साधना से 100% यक्षिणी प्रत्यक्ष होती है और आप का कामना पूर्ण करती है,यह साधना किसी भी शुक्रवार से आप कर सकते है,साधना पाच दिवसीय है इसमे आपको प्रथम और आखरी दिवस अनार का बली देना है और रोज लड्डू का भोग लगाना है,जब यक्षिणी प्रत्यक्ष हो तो उसके हाथ मे एक लड्डू देना है,साधना काल मे आपको कर्पूर का सुगंध आयेगा तो समज जाना चाहिये के आप साधना मे सफल हो रहे हो,यह साधना आपको आपको 1-2 बार करने से पूर्ण सिद्ध हो सकती है,मंत्र भी आसान है जो तांन्त्रोक्त बीजो से युक्त अघोर है जो इस दुनिया के किसी भी किताब से प्राप्त नहीं हो सकता है,गुर परंपरा से मंत्र अभी भी गोपनिय है जिसे औघड़ गोलक के साथ आपको भेज रहा हु आपका ई-मेल चेक कीजियेगा,इस साधना मे कोई भी गलती ना होने दीजिये रोज 21 माला जाप रात्रि मे 10:30 बजे से शुरुवात करना है,गोलक को चावल के ढेरी पर स्थापित करके उसको देखते हुये मंत्र जाप कीजिये,माला रुद्राक्ष का चाहिये,साधना काल मे सत्य बोले किसिका दिल ना दुखाये और यक्षिणी को प्रत्यक्ष करने मे आप अपना 100% दीजिये पूरे लगन से साधना कीजिये,परिणाम का चिंता ना कीजिये सिर्फ साधना के सफलता पर ध्यान दीजिये,यह एक जादुई मंत्र है जिसका असर बहोत गज़ब का है,इस साधना से जहा यक्षिणी प्रत्यक्ष होती है वही साधक का कुंडलीनि भी जाग्रत होता देखा गया है और असंभव से संभव मनोकामना भी पूर्ण होता है,चाहे मनोकामना प्रेम के प्रति हो या रोजगार के प्रति हो पूर्ण तो होता ही है॰कोई भी साधना के प्रति परेशानी हो तो कॉल कीजियेगा.............


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भूत सिद्धि साधना

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यह बहोत आसान सा साधना है जिसे 11 दिन तक करना है और सिर्फ 21 माला मंत्र जाप करना है इसमे भी लड्डू को भोग लगाना है और जब भूत प्रत्यक्ष हो तो उससे वचन मांगे जो भी आप चाहते है,इस साधना से अन्य देवी-देवता के दर्शन प्राप्त करने मे बहोत मदत मिलता है यह एक कटु सत्य है उन लोगो के लिए जो भूत साधना को खराब मानते है,जहा देवी-देवता के दर्शन के लिए साधक व्यर्थ ही कई वर्ष लगा देते जहा की भूत के माध्यम से यह कार्य कुछ ही महीनो मे हो जाता है,दिशा-दक्षिण आसन-वस्त्र काले रंग के हो समय रात्रि मे 10 बजे के बाद,साधना के लिए आवश्यक सामग्री एक मट्टी का दिया,सरसो का तेल,काजल और चावल,औघड़ गोलक॰साफेद वस्त्र पर काले रंग के काजल से पुरुष आकृति बनाना है,इस वस्त्र को चावल के ऊपर स्थापितकरना है,आकृति मे पुरुष के हृदय पर औघड़ गोलक स्थापित कीजिये और गोलक को देखते हुये मंत्र जाप करना है,साधना समाप्ती के बाद लड्डु गरीबोमे बाट दे और सफ़ेद वस्त्र को जल मे प्रवाहित कर दे॰ यह मंत्र भी किसी भी किताब से प्राप्त नहीं हो सकता है और साधना अच्छे कार्यो को सम्पन्न करवाने के लिए कीजिये अन्यथा आपके हानी का जिम्मेदार मै नहीं हु बाकी साधना हेतु मै गारंटी लेता हु॰साधना से पूर्व एक बार मुजसे संपर्क कीजियेगा,बाकी सूत्र भी बता दुगा..............




श्री-सदगुरुजीचरनार्पणमस्तू.............. 

10 Nov 2013

BHOOT SIDDHI SADHNA


तंत्र का एक अलग ही गति होता है,वह गति जिसे मापना संभव ही नहीं बल्कि नामुमकिन है,और इसी तंत्र के क्षेत्र मे इतर योनियो से संपर्क करने का यह सर्वश्रेष्ठ दिवस माना जाता है “भूत तंत्र सिद्धि दिवस जो १५ दिसंबर २०१३ के अवसर पर है,इस दिन का रात्री का पर्व स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना जाता है,परंतु विवशता के कारण आज तक यह साधना देने मे बहोत ज्यादा समय लग गया फिर भी साधक वर्ग का चाहत इस साधना हेतु बहोत ज्यादा है,यह साधना है अपितु एक क्रिया भी है॰यह साधना कमजोर हृदय के व्यक्ति ना करे अन्यथा परिणाम आपको ही भुगतने पड़ेगे,१५ तारीख से पूर्व आप कोई भी सुरक्षा कवच या मंत्र सिद्ध कर लीजिये ताकि साधना मे आपको परेशानी के समय सहायता प्राप्त हो,यह साधना ज्यादा से ज्यादा १-२ घंटे का ही है और एक ही दिवसीय है,साधना से पूर्व किसी भी पीपल के पेड़ का व्यवस्था कर ले ताकि आप रात्री मे वहा साधना सम्पन्न कर सके,वहा पे आपको कोई परेशान ना करे और नहीं आपको वहा कोई देखने वाला हो,साधना एकांत मे करनी है,समय रात्रि मे ११:३६ से १२:३६ रहेगा सारी क्रिया इसी समय मे करनी है और प्रत्यक्षीकरण इसी समय मे होगा,साधना मे किसी माला का आवश्यकता नहीं है हा हो सके तो इतर योनि सुरक्षा कवच आप गले मे धारण कर सकते है जिससे आपको कोई शक्तिशाली भूत सिद्ध हो,सर्वप्रथम एक नारियल का कटोरा लेना जैसे हम नारियल तोड़ते है तो उसके २ टुकड़े हो जाते है,तो इस मे से एक टुकड़ा लेना है जो बाहरी भाग होता,जो हम खाने मे प्रयोग करते है वह भाग नहीं लेना है॰रात्री मे पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर एक सुरक्षा गोला खिचे वहा पे बैठकर नारियल का सामान्य पूजन करके नारियल का बलि देदे फिर वृक्ष का स्पर्श न करते हुये भी वृक्ष का सामान्य पूजन करे,नारियल के कटोरे के अंदर केवड़े के रस और अनार के कलम से “भूत सिद्धि” यंत्र निर्मित करे,यंत्र का सामान्य पूजन करे और वृक्ष के नीचे ४ लोहे के कील गड़ा दे और उसिपे कटोरे को रखिये फिर कटोरे मे दूध,शक्कर और साबुत चावल डालिये,अब किल्लो के नीचे बबूल का लकड़ी डालकर उन्हे अग्नि से प्रज्वलित करे,यहा आप कह सकते हो के हमे खीर पकानी है और अग्नि का तापमान कम होना चाहिये नहीं तो कटोरा ही टूट जायेगा,यह सारी क्रिया करते समय और खीर बनते समय

॥ ॐ भ्रं भ्रुं भूतनाथाय आगच्छ आगच्छ प्रत्यक्षं दर्शय स्मरण मात्रेन प्रकटय प्रकटय मम शीघ्र कार्य सिद्धिम कुरु कुरु भ्रुं भ्रं फट ॥ 


मंत्र जाप करना है,जैसे जैसे खीर का खुशबू फैलेगा और आपके मंत्र का ध्वनि भी वैसे ही शीघ्रता से आपके सामने भूतो का प्रत्यक्षीकरण होना शुरू हो जायेगा,अब यहा पे तो सब किस्मत का खेल है १ से ४-५ भूत आये तो टिक है नहीं तो खीर को वही वृक्ष मे अर्पित करके वहा से क्षमा मांगकर चले जाये क्यूके अगर १०-१२....२०-२५.........आगये और आपने उन्हे सिद्ध करने का कोशिश किया तो शायद वही आपके जीवन का आखरी समय होगा,इसिलिये आप कुछ तय्यरिया करके साधना को सम्पन्न करे,जब १-२ भूत प्रत्यक्ष हो तो वह आपको खीर मांगेगे तो येसे समय मे आपको बोलना है “आप मेरा कार्य सिद्ध करे तो मै आपको खीर का कुछ अंश दुगा और मै आपको जब स्मरण करुगा तो आपको प्रत्यक्ष होना पड़ेगा” उनके हा बोलतेही आप उन्हे उनको कोई नाम दे दीजिये ताकि उसी नाम से उन्हे स्मरण करने मात्र से वह आपको दर्शन देगे और आपका कार्य सिद्ध करेगे,जब कार्य हो जाये तो उन्हे खीर के १-२ चावल के दाने दे दीजिये,जब साधना मे सफलता मिल जायेगा और आप घर पे वापस आजायेगे तो दुसरे ही दीन आप खीर को धूप मे सुखाये कुछ दिनो तक सुखाने के बाद चावल अलग अलग हो जायेगे तो आप चावल के दाने संभाल के रखे ताकि भविष्य मे आपको लाभ हो,साधना से उठने के बाद सीधा घर पे जाये और पीछे मूड कर ना देखे,आपको बहोत सी आवाज़े आसकती है,आपको उसी स्थान पे वापस लौट ने का आवाहन किया जा सकता है परंतु आप मोह मे ना पड़ते हुये सीधा घर पे लौट जाये.............
साधना मे आवश्यक सामग्री-१ नारियल,गुलाब के पुष्प,केवड़ा रस (इत्र का प्रयोग वर्जित है),४ कील,बबूल का लकड़ी,घी और कपूर (लकड़ी जलाने के लिये),भूत सिद्धि यंत्र(१-५ दिसंबर तक 
आपको प्राप्त हो जायेगा),इतर योनि सुरक्षा कवच(जो आपको सफलता और सुरक्षा प्रदान करे)



दूसरी बात-जो व्यक्ती यह साधना नहीं कर सकते है वह व्यक्ति भूत सिद्धि यंत्र को प्राण-प्रतिष्ठित करके उसे तकिये के नीचे रखकर सो जाये तो स्वप्न मे उन्हे इतर योनिया दर्शन देती है आज तक का यह अनुभव है॰




BHOOT SIDDHI SADHNA


The system has a different speed, it is impossible not only possible to measure the speed, and other similar mechanisms in the area to contact Yonio Day is considered the best "ghost mechanism accomplishment Day" event on 15 December 2013 On the night of the day of the festival is considered auspicious well established, but because of the compulsion to practice to date in this class job seeker still garner took to the practice garner, it spiritual, but a verb This practice also weakens the person's heart does not result otherwise you'll need to face, on the 15th before you take any protective armor or spells proven so in practice aided time of trouble, the practice at most 1 2 hours and the same day of the order of practice before taking any oak tree in the night there, so you could practice concluded, there should not be disturbed on you and you do not there's no one looking, Silence take in solitude, time 12:36 to 11:36 in the night will have all the action in the same time and in the same time would be the manifestation, in practice, does not require a series of safeguards ha, if possible, other vaginal hold you in the throat so you can make a powerful ghost proved, we first take a bowl of coconut coconut pieces are broken, it is 2, then take a bite out of the outer part, which we have used in foodpomegranate juice and the pen "ghost accomplishment" to build instruments, instrument common to worship and give the tree and buried under 4 iron nail Usipe put the cup in the cup milk, add sugar and wholegrain rice, now under Killo Put them to ignite the fire of acacia wood, here you can tell us to cook the pudding and the temperature should be less if not fire bowl will be broken, while the entire process and the time of Heel
Chanting the mantra, such as sweet aroma fills the sound of your mantra just as quickly you will start to be the manifestation of the ghostly, so here is a game of luck on all the ghosts come from 1 4-5 is then tick Not so sweet in the same tree there to offer some excuse to be gone if Kyuke Agye 10-12 .... 20-25 ......... and if you try to prove to them that maybe your life The last time, will you Tyyria Therefore, the practice to conclude, when 1-2 specter Heel ask you directly if he is speaking to you in time, so Yese "If you like my work to prove the pudding and I am a part of Duga When you remember Kruga you have to be direct, "a name they give their ha Boltehi you enter them with the same name to remember them just shelve it and you see your work shall prove, then they should be the task of the pudding 1-2 Please give a grain of rice, and you will find success in the practice back at home Ajayege then dried in the sun for another few days to the poor and you pudding rice after drying, will be different, so you should handle grain of rice in the future you benefit, directly after getting up from meditation mood behind at home and not be seen, you have an extremely small voices Askti, you may be called upon by returning the same location, but you will get it in fascination at home straight to return .............
In practice the necessary material-1 coconut, rose, floral, sisal juice (using perfume is forbidden), 4 wedge, of acacia wood, ghee and camphor (for burning wood), Ghost accomplishment device (1-5 December
You will receive), other vaginal protective shield (to protect you and success)
The second thing is that a person can not cultivate it, he distinguished life ghost accomplishment device may sleep with it under his pillow and in dreams he is a non-Yonia philosophy until today it has experienced.




Aadesh.....


2 Jul 2013

प्रत्यक्ष भूत सिद्धि-1.



भूत बहोत ज्यादा विश्वसनीय होते है,इनपे विश्वास रखने से कोई हानी  नहीं होती,ना भूत हानिकारक होते है ना भयप्रद सिर्फ आवश्यकता है सही मार्गदर्शन का,जो आपको हर समय मिलता रहे॰साधक भूत सिद्धि के उपरांत निच्छितं हो जाते है,उनमे किसी प्रकार का भय और चिंता नहीं होती,साधक का हर प्रकार से रक्षा होता रहेता है,हर क्षण भूत साधक का आज्ञा पालन करता है,भूत सिद्धि का दो प्रकार है 1) दृश्य और 2) अदृश्य
यह साधना किसी एक भूत का नहीं बल्कि ६ भूतो का है,एक ही समय मे इस साधना मे ६ भूत सिद्ध होता है,भूत बलशाली होने के कारण साधक का प्रत्येक कार्य कम समय मे सम्पन्न करते है,इस साधना मे जब भी आपको भूतो से कार्य करवाना हो तो वह उनके नाम का स्मरण करने से आंखो के सामने प्रकट होते है और कार्य को सिद्ध करने के लिये सहाय्यता करते है॰
इस साधना की आवश्यक बाते-
जब आप अपने शहर का समाचार पत्र (न्यूज़-पेपर) पढ़ोगे तो उसमे एक बात का खयाल रखिये जैसे कुछ दिन पहिले कितने व्यक्ति का आकस्मिक मृत्यु हुआ है,उनमेसे ६ व्यक्ति यो के नाम लिखकर अपने पास सुरक्षित रखिये क्यूके हमे उन ६ व्यक्तियोको प्रत्यक्ष करना है,नाम हमे पता होगा तो उनको सिद्धि करने के बाद प्रत्यक्ष करने मे सहाय्यता मिलेगा नहीं तो आप नाम के चक्कर मे दुविधा मे प जायेगे,एक भूत का बात होता तो नाम का कोई आवश्यकता नहीं था परंतु यहा बात है ६ भूतो का इसलिये और हमे तो नाम से भूत सिद्ध करने है,मजा आजायेगा यार.............
यह एक साबर साधना है जो निष्फल नहीं होती,साधना कोई भी कर सकता है आवश्यकता है तो सिर्फ धैर्य का बाकी बाते साधना मे कोई मायने नहीं रखती



साधना विधि:-





बिना दाग के नींबू लीजिये और किसी भी अमावस्या से पहिले आनेवाले शुक्रवार के दिन निम्बू को ६ गड्डे खोदकर गाड दे,भी गड्डे पास-पास ही खोदने है,यह क्रिया सूर्य-अस्त होने के बाद करना है,प्रत्येक नींबू जिनका आकस्मिक मृत्यु हुआ है और आपने उनके नाम लिखकर रखे थे उनका ही नाम ७ बार पढ़कर गाड़ने है,जब ६ नींबू गड जायेगे तब एक गोल बनाना है लोहे के खील्ले से,गोलाकार बड़ा होना चाहिए जिसमे सभी गड्डे आजाये,गोलाकार बनाते समय मंत्र को २१ या १०८ बार बोलना है हूं हूं बंधय बंधय हूं हूं फट,यह सारा क्रिया स्मशान मे करना है॰फिर घर पे आकर स्नान करले और शांत भाव से साधना हेतु मन को पक्का कीजिये मै किसि भी हालात मे साधना को पूर्ण करुगा और किसि भी प्रकार से मन मे डर को जगह नहीं दुगा

क्रिया होने के बाद काली हकीक माला जो प्राण-प्रतिष्ठित हो उससे ही रात्रि मे १० बजे से मंत्र जाप का शुरुवात करना है,साधना से पूर्व ही गुरुमंत्र जाप एवं गुरुजी से आज्ञा मांग लीजिये और कोई भी रक्षा कवच का कम से कम एक बार पाठ करना आवश्यक है.


आगे का विधि प्रतीक्षारत है.......


                                                           कृपया इंतेजार करे........