tag:blogger.com,1999:blog-73122952735517144652024-03-16T15:33:27.523+05:30POWER OF TANTRIK SADHANAजीवन की प्रत्येक क्रिया तन्त्रोक्त क्रिया है॰यह प्रकृति,यह तारा मण्डल,मनुष्य का संबंध,चरित्र,विचार,भावनाये सब कुछ तो तंत्र से ही चल रहा है;जिसे हम जीवन तंत्र कहेते है॰जीवन मे कोई घटना आपको सूचना देकर नहीं आता है,क्योके सामान्य व्यक्ति मे इतना अधिक सामर्थ्य नहीं होता है के वह काल के गति को पहेचान सके,भविष्य का उसको ज्ञान हो,समय चक्र उसके अधीन हो ये बाते संभव ही नहीं,इसलिये हमे तंत्र की शक्ति को समजना आवश्यक है यही इस ब्लॉग का उद्देश्य है.Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comBlogger309125tag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-60937390157232999602024-03-16T15:32:00.001+05:302024-03-16T15:32:42.967+05:30मनोकामना पूर्ति हेतु माँ दुर्गा साधना.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtVGOhobTukV914MhhzUQf-crvGxMtXeUBxtj3m6ZUDCikGue8oXAjTPGHXK0dWcOClNC54lJRcigJPgSTeeACAu6a5NsjyM288pii_m79gQlViQGZRjcikumbDU1PEYQOjBqmH-wF2GPs_wVHTehNkrP82aX5ceHjFCMG94NRo2bgYkp1hl1Q9Vy-z_c/s1024/Navratri-Maa-Durga-HD-Images-Wallpapers-Free-Download-Maa-Durga-1024x640.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="640" data-original-width="1024" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtVGOhobTukV914MhhzUQf-crvGxMtXeUBxtj3m6ZUDCikGue8oXAjTPGHXK0dWcOClNC54lJRcigJPgSTeeACAu6a5NsjyM288pii_m79gQlViQGZRjcikumbDU1PEYQOjBqmH-wF2GPs_wVHTehNkrP82aX5ceHjFCMG94NRo2bgYkp1hl1Q9Vy-z_c/s320/Navratri-Maa-Durga-HD-Images-Wallpapers-Free-Download-Maa-Durga-1024x640.jpg" width="320" /></a></div><br /><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>श्री मातेश्वरी भगवती दुर्गा आदि शक्ति है,जितने भी अवतार हुए हैं सब के सब दुर्गा रूपी जननी के महा कुंड से ही अवतरित हुए हैं । पुराने ग्रंथों में कहीं भी दुर्गा को किसी देव मनुष्य या अन्य किसी शक्ति गर्भ से उत्पन्न होते हुए नहीं दर्शाया गया है ।</p><p> यह परम शक्ति है, सृष्टि का आदि और अंत इन्हीं में निहित है,प्रत्येक युग में अवतरित महापुरुषों ने मां दुर्गा की स्तुति संपन्न की परशुराम ने भी दुर्गा स्तुति की है दत्तात्रेय ने भी मातृ उपासना की है कृष्ण, शिव, गणेश, राम से लेकर सभी के मुख से दुर्गा स्तुति प्रस्फुटित हुई है । प्रत्येक देव मनुष्य एवं जीव के अंदर मातेश्वरी अंश रूप में विराज मान है, दुर्गा तंत्र अपने आप में विराट है अनेक पद्धतियों से अनंत काल से दुर्गा उपासना संपन्न की जा रही है । मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती एक प्रमाणिक और अद्भुत ग्रंथ है, दुर्गा उपासना आत्म अनुशासन पवित्रता और शक्ति संचय करने का सर्वश्रेष्ठ विधान है,प्रत्येक साधक को प्रारंभिक गुरु दीक्षा के साथ नवार्ण मंत्र या गायत्री मंत्र अवश्य ही प्राप्त करना ही चाहिए । दुर्गा उपासना के अनेकों चमत्कारिक परिणाम सामाजिक स्तर पर भी देखने को मिलते हैं । भारतवर्ष में अन्य देशों की अपेक्षा स्त्रियों में मातृत्व की बहुलता है भारतीय स्त्रियों में संतान उत्पत्ति की क्षमता विश्व के अन्य भागों की स्त्रियों की अपेक्षा अत्यधिक है दुर्गा उपासना के कारण ही हमारे देश में वंध्यत्व संतान हीनता नपुंसकता इत्यादि जैसी विषमताएं अल्प मात्रा में देखने को मिलती है । संतानोत्पत्ति भारतवर्ष में एक सहज और सरल जीवन का लक्षण है उपासना के कारण ही नैतिक विकास होता है पाश्चात्य देशों की अपेक्षा भारत में जन्मे हुए बच्चों को पारिवारिक विघटन अपेक्षाकृत अपवाद रूप में ही देखने को मिलता है । विभिन्न परिवारिक संबंधों के कारण यहां की संतानों को मातृत्व अनेकों माध्यम से प्राप्त होता है हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत इस प्रकार है कि एक बालक को अपने जीवन में माता के अलावा दादी नानी परदादी पर नानी इत्यादि से भी विशुद्ध मातृत्व एवं प्रेम और रखरखाव प्रचुरता के साथ मिलता है । अपनत्व एवं परिवार परंपरा के विकास में मातृशक्ति ही अहम भूमिका निभाती है यह सब दिव्य उपहार है परंतु यह आसानी से मिल जाता है इसलिए हम इसके महत्व को नहीं समझते ।</p><p><br /></p><blockquote>सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।<br />शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥</blockquote><p><b></b><br /><b>मंत्र का अर्थ:</b><br />हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। हे मां तुम्हें हमारा नमस्कार है।</p><p><br /></p><p>इस मंत्र के अर्थ के माध्यम से आपको माता के बारे में उनके महत्व को समझ सकते है । </p><p><br /></p><p>माँ भगवती दुर्गा उपासना निराकार को साकार करने की पद्धति है । सबको लगता हैं मेरे पास धन होना चाहिए सुख सुविधाएं होना चाहिए मेरे पास पुत्र ऐश्वर्य और पता नहीं क्या-क्या होना चाहिए, चाहिए तो स्वप्न की अवस्था को इंगित करता है इसे साकार कैसे करें? सीधी सी बात है चाह लेने से पुत्र नहीं हो जाएगा इसके लिए तो संपूर्ण व्यवस्था चाहिए संसर्ग चाहिए बीज को विकसित होने के लिए गर्भ चाहिए और गर्भ से उत्पन्न शिशु के लिए उचित देखभाल चाहिए तब कहीं जाकर चाहिए रूपी महत्वाकांक्षा साकार रूप ले सकेगी दुर्गा उपासना का यही रहस्य है । जीवन में अनंत संभावनाओं को साकार स्वरूप दुर्गा उपासना के कारण ही मिलता है दुर्गा उपासना उर्वरक शक्ति प्रदान करती है एवं जब तक उर्वरकता नहीं होगी कुछ भी साकार नहीं हो सकता कुछ नया निर्मित करना ही दुर्गा उपासना है ।</p><p><br />जननी ने प्रकट कर दिया तो फिर चाहे राजपुत्र हो या वन वासी सबको समान अधिकार प्राप्त है प्रकृति भेद नहीं करती भेद करती तो एकलव्य अर्जुन से भी बड़ा धनुर्धर नहीं बन पाता यही दुर्गा रहस्यम है ठीक है,आपको संस्कृत नहीं आती आपने ग्रंथ पुराण नहीं पढ़े हैं परन्तु इसका मतलब यह नहीं कि आप साधना नहीं कर सकते,अगर आप दुर्गा उपासना संपन्न करते हैं, तो यह भी हो सकता है कि बड़े-बड़े पंडित और तांत्रिक मंत्रिक और प्रवचन करता भी कुछ नहीं कर पाए और आप माता के दर्शन कर लें उनका साक्षात्कार कर लें उनकी कृपा प्राप्त करलें यही विशेषता है । भगवती दुर्गा उपासना की क्यों हर दूसरा व्यक्ति दुर्गा उपासना करता है,इसमें क्या आकर्षण है निश्चित ही दुर्गा तंत्र के इतने विराट होने के पीछे दुर्गा उपासना के चमत्कारिक परिणाम ही हैं साधकों को दुर्गा उपासना में असीमानंद प्राप्त होता है । यह उपासक और माँ के बीच की बात है जब कोई पूजा पद्धति बृहद रूप से सर्वजन प्रिय होती है तो उसमें सर्वजन हित भी छिपा हुआ होता है जनता अपने आपको अनाथ महसूस करती है अपने आप को निरीह लाचार और दुर्गति में पाती है तभी तो दुर्गा उपासना की तरफ भागती है और परिणाम स्वरूप प्रेम से भरपूर मातृशक्ति उन्हें गोद में उठा लेती है । साधक को और क्या चाहिए दुर्गा उपासना से पहले व्यक्ति एकलव्य के रूप में अपने आपको पता है , अगर आप अपने आपको एकलव्य महसूस कर रहे हो तो आने वाला समय आपको दुर्गा उपासना की तरह निश्चित ही ले जाएगा| मातृशक्ति का आंचल मत छोड़ना कसकर थामे रहना बहुत से लोग आएंगे तुम्हारा हाथ छुड़ाने की कोशिश करेंगे कभी-कभी तुम्हारा मन स्वयं आंचल छोड़ने को होगा अध्यात्म की राह में यह सब होता है । अनेकों सिद्धियां चमत्कार तुम्हें आकर ललचायेगें भोग तुम्हारे मुख के पास आकर खड़ा हो जाएगा भोग कहेगा माता का आंचल छोड़ दो और अपने हाथों से मुझे पकड़ो परंतु तुम छोड़ना मत, नहीं तो पार नहीं हो पाओगे जीवन में सुख दुख ऊंच-नीच अच्छा बुरा कर्तव्य कर्म रिश्ते धन उपार्जन पत्नी बच्चे सभी आएंगे इन सब का निर्वाह करते हुए दुर्गेश्वरी के पांव कसकर पकड़े रहना तभी जाकर भवसागर को पार कर पाओगे बस यही मेरा अध्यात्म है और आज तक के आध्यात्मिक जीवन का निचोड़ है इसे कभी मत भूलना और इसे सदैव याद रखना जीवन की पूर्णता है ।</p><p><br /></p><p>बस लक्ष्य निर्धारित करो दुर्गा साधना प्रत्येक नवरात्रि में संपन्न करो प्रकृति से मांगो प्राप्त होगा उसमें इतनी ताकत है कि असंभव भी संभव हो जाएगा,जब जीव को पंख मिल सकते हैं सींग मिल सकते हैं जल के भीतर रहने के लिए विशेष व्यवस्था मिल सकती है तो कुछ भी प्राप्त हो सकता है । जीव जहां से उत्पन्न हो रहा है उस मातृ कुंड में सब कुछ देने की व्यवस्था है और वह मातृ कुंड अपनी इस नैतिक जिम्मेदारी से बंधा हुआ है|</p><p><br /></p><p>जो सर्वश्रेष्ठ है वही सर्वेश्वरी है और सर्वश्रेष्ठ साधक ही दुर्गा उपासना सही रूप से संपन्न कर सकते हैं । सर्वश्रेष्ठ आभूषणों से युक्त है श्रेष्ठ शक्तिपुंज है सर्वश्रेष्ठ वाहन पर आरूढ़ है अर्थात दुर्गा उपासना ही सर्वश्रेष्ठ उपासना है सर्वश्रेष्ठ उपासना से सर्वश्रेष्ठ पुरुष का जन्म होता है सर्वश्रेष्ठ पुरुष ही पुरुषोत्तम कहलाएगा विष्णु अवतार के अंतर्गत दुर्गा उपासना ही आती है राम कृष्ण नरसिंह वामन परशुराम इत्यादि सभी अपने-अपने युगों में पुरुषोत्तम कहलाए हैं, केवल दुर्गा उपासना के बल पर सभी अवतार एकलव्य की गति से प्रारंभ हुई और अंत में दुर्गा शक्ति के कारण ही पूजित हुए हैं । दुर्गा शक्ति ने ही मार्कंडेय से श्रेष्ठतम ग्रंथों की रचना करवाई दत्तात्रेय को महा अवधूत बनाया जब व्यक्ति जीवन में लुटता पीटता है दुखी होता है खंड खंड होता है तब दुर्गा उपासना ही एकमात्र उपाय बचता है जिससे कि वह पुनः प्राण प्रतिष्ठित हो जीवन जी पाता है ।</p><p><br /></p><p>इस बार चैत्र नवरात्रि से पूर्व संपर्क करे,आपको निःशुल्क दुर्गा उपासना का विधि विधान दिया जायेगा । आप सभी से एक ही विनती है "इस जीवन को दुर्गा उपासना में लगा दीजिए, अवश्य ही कल्याण होगा", जय मातादी जी ।</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>आदेश......</p>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-41285489454027662932023-11-18T00:42:00.001+05:302023-11-18T00:42:18.106+05:30श्री ब्रह्मास्त्र मंत्र साधना<section class="section px-3" style="box-sizing: inherit; color: #4a4a4a; font-family: Poppins, sans-serif; font-size: 16px; padding: 30px 1.5rem 3rem;"><div class="container" style="box-sizing: inherit; flex-grow: 1; margin: 0px auto; position: relative; width: auto;"><div class="columns" style="box-sizing: inherit; margin: -0.75rem;"><div class="column is-9" style="box-sizing: inherit; flex: 1 1 0px; padding: 0.75rem;"><div class="content is-medium" style="box-sizing: inherit; font-size: 1.25rem;"><div id="article-content" style="box-sizing: inherit;"><h2 style="box-sizing: inherit; color: #363636; font-size: 1.75em; line-height: 1.125; margin: 1.1428em 0px 0.5714em; padding: 0px; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZO62iclEE_ouZD1nEqAW6sHAAtvbx_yZAi7XJlwxCC33YtXXaQkRzDj4rqo31yZjJmN5C22d153qltTbm5iOEOJ7h9VWN9oMzWRJjkrtuxPN000lx26oyNF9yAJv1kBo6Y1JJ_5-oaw9lNkE0TRY0MGMOYuAUq7NCjVa31-74ZI1Xdp5qju9rvUiuG_o/s672/1613831589278090-1.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="376" data-original-width="672" height="179" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZO62iclEE_ouZD1nEqAW6sHAAtvbx_yZAi7XJlwxCC33YtXXaQkRzDj4rqo31yZjJmN5C22d153qltTbm5iOEOJ7h9VWN9oMzWRJjkrtuxPN000lx26oyNF9yAJv1kBo6Y1JJ_5-oaw9lNkE0TRY0MGMOYuAUq7NCjVa31-74ZI1Xdp5qju9rvUiuG_o/s320/1613831589278090-1.jpg" width="320" /></a></div><br /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 18px; font-weight: 400; text-align: left;"><br /></span></h2><h2 style="box-sizing: inherit; color: #363636; font-size: 1.75em; line-height: 1.125; margin: 1.1428em 0px 0.5714em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 18px; font-weight: 400; text-align: left;">पौराणिक ग्रंथों से लेकर साइंस की रिसर्च तक में ब्रह्मास्त्र जिक्र मिलता है। साल 1945 में अमेरिका में ट्रिनिटी रिसर्च हुई थी जिसमें महाभारत के बारे में लिखा हुआ है। इस रिसर्च में माना गया है कि ब्रह्मास्त्र की वजह से ही इस युद्ध में तबाही मची थी। यह अस्त्र परमाणु बम से भी अधिक विनाशक था। </span><br style="background-color: white; border: 0px; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 18px; font-weight: 400; list-style-type: none; margin: 0px; outline: 0px; padding: 0px; text-align: left;" /><br style="background-color: white; border: 0px; box-sizing: border-box; color: #333333; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 18px; font-weight: 400; list-style-type: none; margin: 0px; outline: 0px; padding: 0px; text-align: left;" /><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 18px; font-weight: 400; text-align: left;">पौराणिक ग्रंथों में ब्रह्मास्त्र का वर्णन किया गया है। इस अस्त्र को विनाशक और संहारक बताया गया है। ब्रह्मा जी ने ब्रह्मास्त्र का निर्माण किया गया था। वर्तमान समय में ब्रह्मास्त्र की तरह परमाणु बम है जो अपने लक्ष्य को पूरी तबाह कर देता है। </span></h2><h2 style="box-sizing: inherit; color: #363636; font-size: 1.75em; line-height: 1.125; margin: 1.1428em 0px 0.5714em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="color: #4a4a4a; font-size: 1.25rem; text-align: left;">ब्रह्मास्त्र ब्रह्मा द्वारा निर्मित एक अत्यन्त शक्तिशाली और संहारक अस्त्र है जिसका उल्लेख संस्कृत ग्रन्थों में कई स्थानों पर मिलता है। इसी के समान दो और अस्त्र है- ब्रह्मशीर्षास्त्र और ब्रह्माण्डास्त्र, किन्तु ये अस्त्र और भी शक्तिशाली है। </span></h2><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">यह दिव्यास्त्र परमपिता ब्रह्मा का सबसे मुख्य अस्त्र माना जाता है। एक बार इसके चलने पर विपक्षी प्रतिद्वन्दी के साथ साथ विश्व के बहुत बड़े भाग का विनाश हो जाता है। यदि एक ब्रह्मास्त्र भी शत्रु के खेमें पर छोड़ा जाए तो ना केवल वह उस खेमे को नष्ट करता है बल्कि उस पूरे क्षेत्र में १२ से भी अधिक वर्षों तक अकाल पड़ता है।</p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">और यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा दिए जाएं तब तो मानो प्रलय ही हो जाता है। इससे समस्त पृथ्वी का विनाश हो जाएगा और इस प्रकार एक अन्य भूमण्डल और समस्त जीवधारियों की रचना करनी पड़ेगी।</p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">महाभारत के युद्ध में दो ब्रह्मास्त्रों के टकराने की स्थिति तब आई जब ऋषि वेदव्यासजी के आश्रम में अश्वत्थामा और अर्जुन ने अपने-अपने ब्रह्मास्त्र चला दिए। तब वेदव्यासजी ने उस टकराव को टाला और अपने-अपने ब्रह्मास्त्रों को लौटा लेने को कहा।</p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">अर्जुन को तो ब्रह्मास्त्र लौटाना आता था, लेकिन अश्वत्थामा ये नहीं जानता था और तब उस ब्रह्मास्त्र को उसने उत्तरा के गर्भ पर छोड़ दिया। उत्तरा के गर्भ में परीक्षित थे जिनकी रक्षा भगवान श्री कृष्ण ने की।</p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><br /></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 18px;">पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, रामायण और महाभारतकाल में सिर्फ कुछ योद्धाओं के पास ही ब्रह्मास्त्र था। रामायणकाल में विभीषण और लक्ष्मण ही इसका इस्तेमाल करना जानते थे जबकि महाभारतकाल में द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा,भगवान श्रीकृष्ण, कुवलाश्व, युधिष्ठिर, कर्ण, प्रद्युम्न और अर्जुन के पास इसको चलाने का ज्ञान था। </span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 18px;"><br /></span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: 18px;">साधनात्मक लाभ:-</span></p><ul style="box-sizing: inherit; list-style-image: initial; list-style-position: outside; margin: 1em 0px 1em 2em; padding: 0px;"><li style="box-sizing: inherit; margin: 0px; padding: 0px;">ब्रह्मास्त्र अत्यन्त घातक एवं गुप्त मंत्र है। अतः इस अस्त्र का अधिकारी एक उच्च साधक ही हो सकता है। मूल मंत्र के विशेष संख्या में मंत्र सिद्ध कर लेने के पश्चात् एवं अति अनिवार्यता में ही ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहिये । समर्थ गुरु की आज्ञा एवं संरक्षण अनिवार्य है।</li><li style="box-sizing: inherit; margin: 0.25em 0px 0px; padding: 0px;">ब्रह्मोपासक के समक्ष आते ही ग्रह, वेताल, चेटक, पिशाच, भूत, डाकिनी, शाकिनी, मातृकादि पलायन कर जाते हैं। ब्रह्ममंत्र से रक्षित मानव संसार के सभी भयों से मुक्त होकर राजा की तरह विचरण करता हुआ चिरकाल तक समस्त सुखों का भोग करता है।</li><li style="box-sizing: inherit; margin: 0.25em 0px 0px; padding: 0px;">ब्रह्माजी सृष्टि के रचियता कहे जाते हैं। सतयुग में ब्रह्मदेव की तपस्या के द्वारा तपस्वी अनेको वरदान एवं दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त करते थे। पुष्कर तीर्थ में ब्रह्मदेव की उपासना मुख्य रूप से की जाती है।</li><li style="box-sizing: inherit; margin: 0.25em 0px 0px; padding: 0px;">महानिर्वाणतंत्र में स्वयं शिव ने पार्वती से ब्रह्मदेव मंत्र की प्रशंसा करते हुए कहा है कि यह मंत्र सभी मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ है। इस मंत्र के द्वारा मानव धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति सहजता से कर सकता है। इस मंत्र में सिद्धि-असिद्धि चक्र का विचार नही किया जाता है। अरि-मित्रादि दोषों से पूर्णता मुक्त है।</li><li style="box-sizing: inherit; margin: 0.25em 0px 0px; padding: 0px;"><br /></li></ul><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #a83271; font-style: inherit; font-weight: inherit;">विनियोग-</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">ॐ अस्य श्री परब्रह्ममंत्र, सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः, निर्गुण सर्वान्तर्यामी परम्ब्रह्मदेवता, चतुर्वर्गफल सिद्धयर्थे विनियोगः ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;"><br /></span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #a83271; font-style: inherit; font-weight: inherit;">ऋष्यादिन्यास-</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">सदाशिवाय ऋषये नमः शिरसि ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">अनुष्टुप् छंदसे नमः मुखे ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">सर्वान्तर्यामी निर्गुण परमब्रह्मणे देवतायै नमः हृदि ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">धर्मार्थकाममोक्षावाप्तये विनियोगः सर्वांगे ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;"><br /></span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #a83271; font-style: inherit; font-weight: inherit;">करन्यास</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;"> ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">सत् तर्जनीभ्यां स्वाहा ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">चित् मध्यमाभ्यां वषट्।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">एकं अनामिकाभ्यां हुं ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">ब्रह्म कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;"><br /></span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #a83271; font-style: inherit; font-weight: inherit;">हृदयादिन्यास-</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">ॐ हृदयाय नमः ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">सत् शिर से स्वाहा ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">चित् शिखायै वषट्।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">एकं कवचाय हुं।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">ब्रह्म नेत्रत्रयाय वौषट् ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म अस्त्राय फट् ।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;"><br /></span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #a83271; font-style: inherit; font-weight: inherit;">ध्यानम्</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">हृदयकमलमध्ये निर्विशेषं निरीहं, हरिहर विधिवेद्यं</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">योगिभिर्ध्यानगम्यम्। जननमरणभि भ्रंशि सच्चित्स्वरूपं, सकलभुवनबीजं ब्रह्म चैतन्यमीडे ।।</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;"><br /></span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #a83271; font-style: inherit; font-weight: inherit;">ब्रह्म मंत्र-</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px; text-align: center;"><span style="box-sizing: inherit; color: #c0392b; font-style: inherit; font-weight: inherit;">'ॐ नमो ब्रह्माय नमः । स्मरण मात्रेण प्रकटय प्रकटय, शीघ्रं आगच्छ आगच्छ, मम सर्वशत्रु नाशय नाशय, शत्रु सैन्यं नाशय नाशय, घातय घातय, मारय मारय हुं फट् ।'</span></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">विधि- ब्रह्मास्त्र मंत्र का पुरश्चरण 51000 जप का है। जपोपरान्त् विधिपूर्वक दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन तथा मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिये।</p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px; padding: 0px;">ब्रह्मास्त्र मंत्र का पुरश्चरण करते समय भक्ष्याभक्ष्य का विचार नहीं किया जाता है। काल शुद्धि तथा स्थान परिवर्तन का कोई नियम नहीं है। मुद्रा प्रदर्शित करना या ना करना, उपवास करके या बिना उपवास के, स्नान करके या बिना नहाये, स्वेच्छानुसार इस अमोघ मंत्र की साधना करें। अपने गुरु से दीक्षा लेकर ही इस विद्या का प्रयोग करना चाहिए |</p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px; padding: 0px;"><br /></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px; padding: 0px;"><br /></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px; padding: 0px;"><br /></p><p style="box-sizing: inherit; margin: 0px; padding: 0px;">आदेश......</p></div></div></div></div></div></section>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-37375936182436961512023-10-12T02:55:00.001+05:302023-10-12T02:55:45.474+05:30मंत्र तंत्र काले जादू को काटने का साधना.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-Id4dB6c5etix19dr7IKWeiQD0Cv81Cgiuni6lTTg1M1eR6aB_cklVfEGk9Zu-4R_bIqqtsO66Z4PRXFHPCVR330w5Uq7QCBq157Ts0uCaWQs_bQMYYgv_PPo5h7xuPf_fi-bzwmmjKR43udjxib5HJQkcQIcDCpmwpfKJXPXZLnfOttyXLv2JnF2gX0/s842/1695559312190.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="842" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-Id4dB6c5etix19dr7IKWeiQD0Cv81Cgiuni6lTTg1M1eR6aB_cklVfEGk9Zu-4R_bIqqtsO66Z4PRXFHPCVR330w5Uq7QCBq157Ts0uCaWQs_bQMYYgv_PPo5h7xuPf_fi-bzwmmjKR43udjxib5HJQkcQIcDCpmwpfKJXPXZLnfOttyXLv2JnF2gX0/s320/1695559312190.jpg" width="274" /></a></div><br /><p><br /></p><p>काली शक्तियों के तांत्रिक प्रयोग की स्पष्ट निशानिया दे रहा हु जिससे आप स्वयं अपने ऊपर हुए अभिचार कर्म से परिचित हो सकते हैं।</p><br />क्या कभी आपका सामना ऐसे परिवार या व्यक्ति से हुआ जिसने स्वयं के बारे में ये बताया हो कि कैसे उसका वसंत सा पल्लवित जीवन अचानक से पतझड़ की तरह वीरान सा हो गया ।जैसे सारी रौनक ही चली गई जीवन से , न तो खुशियों की आहट सुनाई देती है , न ही उम्मीद की खिलखिलाहट। जी हां...... ऐसा ही होता है जब उस परिवार /व्यक्ति की उन्नति /खुशियों से जल कर या मात्र प्रतिस्पर्धा वश कोई उनके ऊपर काली शक्तियों का प्रयोग करवा देता है ।कलियुग को काली युग की संज्ञा उसके अतिशीघ्र साधना में फल प्राप्ति के लिए मिली किंतु अतिशीघ्र सिद्ध होने वाली साधनाओं का सदुपयोग से ज्यादा दुरुपयोग ही हुआ । यद्यपि तांत्रिक प्रयोग इतने आसान नहीं होते हैं कि कोई भी किसी पर कर दे किंतु ईर्ष्यावश या पुरानी दुश्मनी सधाने के लिए लोग अपने विरोधियों पर तंत्र प्रयोग करवा देते है ।आजकल तंत्र ज्ञाता भी ईमान रहित होकर मात्र धनौपार्जन के लिए कार्य कर रहे है । ऐसे मे कई बार बिना सही गलत का निर्णय किए ही , मात्र धन देने वाले का कार्य सम्पन्न कर देते है जिससे कई बार निर्दोष व्यक्ति भी तंत्र के घातक प्रयोग का शिकार हो जाते हैं ।<br /><br />जिसपर तंत्र का घातक प्रयोग किया जा चुका होता है उसके साथ कई लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं ।जिनका बारीकी से अध्ययन करने पर तांत्रिक प्रयोग की गहनता पता चलती है ।ये प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं ---<br /><br />1.) जिसपर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो वह आसमान्य तरीके से हरदम बीमार रहता है और डॉक्टर वैद्य को दिखाने पर भी रोग पता नहीं चलता । असमान्य तरीके से उसके चेहरे की रौनक चली जाती है ।आंख के नीचे काले घेरे पड़ जाते हैं और काया जर्जर होती जाती है ।<br /><br />2.) जिसपर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो उसे बेवजह का ही तनाव बना रहता तथा आत्महत्या की इच्छा बनती रहती है ।वह हरदम घर परिवार को छोड़ कर दूर चले जाने की सोच रखता है ।उसे मित्र बांधव की अच्छी बातें भी कटु वचन लगने लगती हैं ,वह सबसे अलग थलग रहने लगता है।<br /><br />3.) जिस पर तांत्रिक प्रयोग हुआ हो उसका स्व गृह नहीं बन पाता ,या तो वह जमीन ही नहीं खरीदता या उसका निर्माणकार्य कभी पूर्णता तक नहीं पहुँच पाता ।हरदम कोई न कोई विघ्न पड़ते रहते । निर्माण कार्य आरंभ करते ही घर के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है या बहुत बड़ा आर्थिक घाटा लग जाता है ।<br /><br />4.) जिसपर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो उसके बच्चे भी हरदम बीमार पड़ते रहते है ,पढ़ाई मे कमजोर हो जाते है ,उनका शारीरिक - मानसिक विकास अवरुद्ध सा हो जाता है । बच्चों में आपराधिक प्रवृति बढ़ने लगती है ,अचानक से वो नशे की तरफ झुकाव करने लगते हैं । हरवक्त हिंसात्मक रवैया बनाए रहते हैं और बड़ों की बात नहीं मानते हैं।<br /><br />5.) परिवार में कोई न कोई हरदम बीमार रहता है जिससे कि बीमारी में धन की बर्बादी होती है ,डॉक्टर भी रोग की सही वजह नहीं बता पाते । एक सदस्य स्वस्थ्य हो तो दूसरा बीमार पड़ जाता है ।बीमारी का चक्र ही खत्म नहीं होता ।<br /><br />6.) विवाह के कई वर्ष बीत जाने पर और हर प्रकार से मेडिकली फिट होने पर भी संतानसुख नहीं मिलता या बार बार गर्भपात हो जाता है या जन्म लेते ही संतान की मृत्यु हो जाती है ।तब यह मान लेना चाहिए कि तांत्रिक प्रयोग द्वारा कोख बांध दी गयी है ।<br /><br />7.) यदि घर के सबसे छोटे सदस्य की अचानक ही बिना कारण मौत हो जाए तो मुठ विद्या का प्रयोग मानना चाहिए ।<br /><br />8.) जिसपर काली शक्तियों का प्रयोग किया जाता है उसके हितैषी भी उससे मुंह फेरने लग जाते हैं और शत्रुवत व्यवहार करने लगते है । जिनकी कभी मदद की हो वह भी नजर फेर लेते है और उसे अकेला छोड़ देते है।<br /><br />9.) जिसपर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो वह कहीं भी चैन नही पाता है ।वह नया घर भी ले तो उसे समस्याओं का ही सामना करना पड़ता है ।परेशानी जैसे उसका पीछा ही नहीं छोड़ती है ।<br /><br />10.) जिसपर तांत्रिक प्रयोग हो उसके अंदर व्यर्थ की चिड़चिड़ाहत भर जाती है ,वह अवसाद ग्रस्त हो जाता है और सफलता की उम्मीद छोड़ देता है । उसका आत्मबल क्षीण हो जाता है और किसी की प्रेरक बातें भी उसे जहर समान प्रतीत होती है।<br /><br />11.) यदि भाई बहनों से अकारण ही बैर भाव उत्पन्न हो गया हो और किसी भी मध्यस्थ प्रयास से उन्हे साथ न लाया जा सक रहा हो तब निस्संदेह तंत्र प्रयोग मान लेना चाहिए ।<br /><br />12.) जिस व्यक्ति पर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो या जिस घर में तंत्र प्रयोग हुआ हो वहाँ पति पत्नी एक दूसरे के मत विरोधी हो जाते हैं और बेवजह भी विरोधाभास में रहते है ।न तो उनमें सौहार्द्र होता है ,न ही वो आँख मिलाकर प्रेम भाव से बात करते हैं ।<div><br /></div><div>13.) जिसपर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो वह कितना भी अच्छा कार्य करे उसे यश प्राप्त नहीं होता ।उसके कार्यस्थल पर उसके अधिकारियों से भी उसकी नहीं बनती ।उससे कम कार्य करके कोई अधिकारियों की प्रशंसा पा लेता है पर इसे न तो मनचाही तरक्की मिलती है न ही मनचाहा स्थानांतरण ।<br /><br />इसप्रकार हम देखते है कि तंत्र विद्या ,जिसका उद्देश्य लोक कल्याण सुनिश्चित था अब लोगों की जीवन की समस्या भी बन चुका है । कभी तांत्रिक को धरती पर चलता फिरता देवता ही माना जाता था पर भौतिकवादी संस्कृति के सर्वत्र हावी हो जाने पर तंत्र क्षेत्र ने भी अपना सम्मान और नैतिकता खोया है , जिसे पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है ।</div><div><br /></div><div>जिन्हें मंत्र तंत्र काले जादु से बचना है या फिर उसकी काट करनी हो तो वह साधक व्हाट्सएप (whatsapp number-8421522368) पर मेसेज करे,निःशुल्क विधि विधान मंत्र के साथ दिया जाएगा । यह मेरा प्रयास जनकल्याण हेतु है इसलिए आपसे किसी भी प्रकार का दक्षिणा मुझे स्वीकार नही है और हो सके तो आप भी मेरे द्वारा दिये गए विधान से परेशान लोगो की मदत करे,इस प्रकार का जनकल्याण करने से आपको पूण्य मिलेगा ।</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>आदेश......</div><div><br /></div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-49595916783779012282023-03-23T19:27:00.001+05:302023-03-23T19:27:16.955+05:30अद्वितीय मंत्र प्रयोग<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjy66Qpck37_D-ESKnIBmHwttCitwV_3YrLhb7qaV7paSJQib4YpX1miBj5X4_HI85qnlM-emlh2OsEouzGGynbfQ5nMqGqqV7CsIXL8MrrgNkQdulRNyXwX1cqvGphDVF8cW0ShJyH0Ck/s1600/1679579818382460-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjy66Qpck37_D-ESKnIBmHwttCitwV_3YrLhb7qaV7paSJQib4YpX1miBj5X4_HI85qnlM-emlh2OsEouzGGynbfQ5nMqGqqV7CsIXL8MrrgNkQdulRNyXwX1cqvGphDVF8cW0ShJyH0Ck/s1600/1679579818382460-0.png" width="400">
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</div></div><div><br></div><div>जय मातादी जी......</div><div><br></div><div><br><br></div>23 मार्च 2013 के दिन यह ब्लॉग बनाया था,अब इस ब्लॉग को 10 वर्ष पूर्ण हो गए,इस 10 वर्षो में बहोत सारे लोगो से बात हुए और बहोत से लोगो का समाधान भी किया गया है । अब तक ब्लॉग को 53 लाख से ज्यादा लोगों ने पढ़ा है इसके लिए आप सभी पाठकों का हृदय से धन्यवाद और आशा करते हैं के आगे भी आप निरंतर ब्लॉग को पढ़ते रहेंगे ।<br><br>आज हम एक विशेष साधना प्रयोग दे रहे हैं जिसके माध्यम से आप जीवन मे बहोत कुछ प्राप्त कर सकते है । सर्वप्रथम प्रयोग है बावन भैरव का तांत्रोत्क मंत्र जो सर्वोपरि मंत्र है । इस मंत्र साधना के माध्यम से आप अपने जीवन मे लटके हुए कामो को आसानी से पूर्ण कर सकते है,इसका विधान भी बहोत आसान है, कहि से पाँच मुखी रुद्राक्ष माला प्राप्त करे और उसी माला से आपको 11 माला मंत्र जाप रात्रि में 21 दिनों तक करने से मंत्र सिद्धि संभव होगी । 22 वे दिन आपको अग्नि प्रज्वलित करके लौंग की 108 बार आहुतिया देनी है, साधक का मुख साधना काल मे दक्षिण दिशा के तरफ होना जरूरी है।<div><br></div><div>मंत्र-</div><div><br>ॐ भ्रं भ्रं भैरवाय भ्रं भ्रं नमः</div><div>Om bhram bhram bhairavaay bhram bhram namah</div><div><br><br>जब भी आपकी कोई कामना आपको पूर्ण करनी हो तब दाए हाथ मे जल लेकर अपनी कामना बोले और जल को जमीन पर छोड़ दीजिए,उसके बाद उसी रुद्राक्ष माला से 11 माला जाप करे तो आपको कामना अवश्य ही पूर्ण होगी । यह मेरा स्वयं का आजमाया हुआ मंत्र है और इस मंत्र की 1 माला जाप मैं नित्य करता हु ।<br><br><br>अब बात करेंगे द्वितीय मंत्र की जो पूर्ण रूपेण एक रक्षात्मक मंत्र है,इस मंत्र का 101 माला जाप हनुमान जयंती के दिन करने से यह मंत्र सिद्ध होता है,जब भी आपको डर लगे या आप परेशान हो,या ग्रहों की स्थिति अनुकूल ना हो या आपको कोई अपनी मनोकामना पूर्ण करनी हो तब ईस मंत्र का 11 माला जाप करने से सफलता मिलता है । हनुमान जयंती के दिन स्नान के बाद लाल आसन पर दक्षिण दिशा के तरफ मुख करके बैठ जाये और लाल चंदन की माला से 101 माला जाप करे,11 या 21 माला के बाद आप जाप से उठकर शौच आदि करके या पाणी पीकर फिर बैठ सकते हैं परंतु उसी दिन 101 माला जाप आवश्यक है । जाप के बाद हनुमानजी के नाम से मोतीचूर के लड्डुओं का भोग लगाना है,उनकी आरती करके लड्डुओं को परिवार में बाट दे और स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करे । आवश्यकता होने पर मंत्र से आप अपने कार्य कर सकते है,यह साधना सुबह से शुरू करे ताकि रात्रि से पहिले आपका जाप हो जाये ।<br><br><br>मंत्र<br><br>ॐ हूं हूं हनुमतये हूं हूं फट</div><div>Om hoom hoom hanumataye hoom hoom phat<br><br>यह दोनों मंत्र प्रयोग सरल और प्रामाणिक है,इन दोनों को सिद्ध करने से आपके जीवन मे राहु केतु मंगल और शनि ग्रह की पीड़ा से मुक्ती मिल सकती हैं ।<br><br><br>अन्य मार्गदर्शन हेतु संपर्क कर सकते है,मोबाइल नम्बर है 8421522368 ।</div><div><br></div><div><br><br>आदेश......<br></div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-49623425544846048872022-12-14T01:56:00.001+05:302022-12-14T02:02:24.116+05:30विशेष नवग्रह मंत्र साधना.<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhwhTyK4c05s-xiB2C_BhAR_kzkBsEg_pEYsynBp9-X8CD-lDvAWzh440OSuIK_lEIIMCGWug0k5S4z3rPdjZsEo7Hfd1kUw19AK53dNz84sz3DTTJ_UJGrZ7wd0oikUjAKsdr4ZI429JY/s1600/1670963526644330-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhwhTyK4c05s-xiB2C_BhAR_kzkBsEg_pEYsynBp9-X8CD-lDvAWzh440OSuIK_lEIIMCGWug0k5S4z3rPdjZsEo7Hfd1kUw19AK53dNz84sz3DTTJ_UJGrZ7wd0oikUjAKsdr4ZI429JY/s1600/1670963526644330-0.png" width="400">
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</div><br></div><div><br></div>जीवन मे व्यस्तता के कारण ब्लॉग पर आर्टिकल नही लिख सका इसके लिए आप सभी से क्षमाप्रार्थी हु परंतु अवश्य ही अगले वर्ष 2023 में हर महीने एक आर्टिकल लिखने की कोशिश करुंगा । आज के समय मे सभी के जीवन मे ग्रहों की विपरीत परिस्थितियों के कारण हलचल मची हुई है,अशांति का माहौल बन रहा है,90% लोगो के काम होते होते रुक रहे है । यहां हम सभी का जीवन ग्रहों के कृपा से चले तो अवश्य ही अच्छा रहता है परंतु ग्रहों की अवकृपा हो तो जीवन संघर्षमय बन जाता है,जो दुख और पीड़ाओं से असन्तुलित हो जाता है । आज हम नववर्ष पर संकल्प लेंगे की वर्ष 2023 पूर्णताः खुशियों से भरा हुआ हो और इसके लिए इसी वर्ष हम नवग्रह मंत्र साधना अवश्य करेंगे ।<div><br></div><div>व्यक्ति का जब जन्म होता है उस समय आकाश<br>मण्डल में ग्रहों की स्थिति का विवरण ही जन्म<br>कुण्डली कहलाता है अर्थात् जन्म कुण्डली<br>आकाशीय मण्डल का नक्शा हैऔर यही नक्शा पढ़कर भूत भविष्य वर्तमान का कथन किया जाता है।<br>जन्म कुण्डली का आधार 12 राशियां 27 नक्षत्र<br>और 9 ग्रह एवं 12 लग्न हैं। जिनके द्वारा गणना<br>करने से व्यक्ति को अपने जीवनकाल का पता चलता है, जन्म के<br>समय ग्रहों की स्थिति के अनुसार वे व्यक्ति पर<br>शुभ एवं अशुभ प्रभाव डालते हैं।</div><div>पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और एक वर्ष<br>में पूरा एक चक्कर काटती है, इस चक्कर वाले<br>रास्ते को भू-चक्र कहते हैं इस भू-चक्र को<br>ज्योतिषियों ने 12 भागों में बांटा जिसे जन्म<br>कुण्डली में भाव कहा जाता है। ज्योतिष एक विज्ञान है जो हमारे ऋषियों से प्राप्त वरदान है।<br></div><div><br></div><div>यह नवग्रह व्यक्ति पर अपना निश्चित रूप से<br>शुभ एवं अशुभ प्रभाव डालते हैं, इन ग्रहों के<br>अशुभ प्रभाव से अवतारी व्यक्ति भी नहीं बच<br>सके। जैसे भगवान राम जी को 14 वर्ष वनवास हुआ,भगवान कृष्ण जी को कारागृह में जन्म लेना पड़ा,भीष्म पितामह जी को बाणों की शय्या पर मृत्यु प्राप्त हुई,ऐसे हजारो उदाहरण हैं। केवल मंत्र साधना द्वारा इनके प्रभाव को ठीक किया जा सकता है। कुछ ज्योतिषी व्यक्ति को रत्न धारण करने की सलाह देते हैं। उनके इस विचार से में पूर्णतया सहमत नहीं हूं<br>ज्योतिष का ज्ञान सागर के समान है,जिसमें<br>गोते लगाने वाले व्यक्ति को अनेको नये अनुभव<br>और ज्ञान प्राप्त होता हैं। नौ ग्रहों में से प्रत्येक ग्रह<br>व्यक्ति पर कुछ शुभ और कुछ विपरीत प्रभाव<br>डालता है। यह सब व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मो का फल या फिर इस जन्म कर्म का फल भी कह सकते है। यदि कोई ग्रह आपकी जन्म कुण्डली में अशुभ<br>स्थान पर बैठा है तो उसको अपने अनुकूल<br>करने के लिये आप उसका रत्न धारण नहीं कर<br>सकते जबकि कुछ लोग हर ग्रह के लिये रत्न<br>धारण करने की सलाह देते हैं,जो उपयुक्त नहीं<br>है। उदाहरण के लिए यदि कोई आपका शत्रु है<br>और आप उसके हाथ में बन्दूक देगा तो वह तो<br>आपको ही समाप्त कर देगा। उस व्यक्ति को<br>अपने अनुकूल करने के लिये आपको उसकी<br>सोच, आपके प्रति उसके विचार बदलने होंगे,<br>ठीक इसी प्रकार से ज्योतिष में भी विपरीत ग्रहों को<br>धारण करके बलवान नहीं बना सकते हैं बल्कि मंत्र<br>साधना द्वारा आप ग्रहों को अनुकूल कर सकते<br>हैं। यदि आपका कोई पड़ोसी आपके प्रति<br>विपरीत विचार रखता है किन्तु आप प्रति दिन<br>उसके प्रति सकारात्मक भाव रखें तो एक दिन<br>उसका नजरिया आपके प्रति अवश्य बदल जाता<br>है, इसी प्रकार यदि कोई ग्रह आपके शत्रु भाव में<br>है तो प्रतिदिन आप उस ग्रह का मंत्र जप करके<br>उसे अपने अनुकूल बना सकते हैं। इस संसार मे परेशानी चाहे कितनी ही बड़ी क्यो न हो याद रखिए उस परेशानी से निपटने के लिए ऋषिमुनियों के आशीर्वाद से मंत्र साधनाएं आज भी उपलब्ध है ।</div><div><br></div><div><br><b>साधना विधान</b><br><br>नवग्रह शांति जीवन में भाग्योदय के द्वार<br>खोलती है,जीवन मे शुभ फल देती है, अनिष्ट का नाश करती है और जीवन को पूर्ण बनाती है । इसी कारण प्रत्येक पूजन, यज्ञ कसे पूर्व नवग्रह शांति पाठ सम्पन्न किया जाता है। नवग्रह शांति से ग्रहों के कुप्रभावों से अवश्य ही बचा जा सकता है, पारिवारिक जीवन में आने वाली बाधाओं से पीड़ाओं से छुटकारा मिलता है और जीवन में उन्नति के नये आयाम खुलते हैं। ग्रहों की<br>अनुकूलता से लक्ष्य को पाने में असफल व्यक्ति भी जल्द ही लक्ष्य को प्राप्त कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण कर लेता है।<br></div><div><br></div><div>इस साधना को किसी भी शुभ मुहूर्त (सिद्धि<br>योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, द्विपुष्कर, त्रिपुष्कर,<br>पुष्य, गुरु पुष्य या अमृत योग) में सम्पन्न<br>किया जा सकता है। यह साधना को प्रातः काल में<br>सम्पन्न करने से उचित फल मिलता है इसलिए साधक को प्रातः काल मे साधना करनी चाहिए। साधना करने से पूर्व ही अपने पूजा स्थान को साफ स्वच्छ कर लें।</div><div>साधना स्थल का वातावरण सुगंधित एवं<br>आनन्दमय होना चाहिए ताकि साधना में आपका मन लगे ।<br>साधक सफेद वस्त्र धारण कर उत्तराभिमुख<br>होकर अपने पूजा स्थान में सफेद आसन पर<br>बैठ जाएं और अपने सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र स्थापित कर लें। सामने शिवलिंग को किसी पात्र मे रखे, चाहे पात्र स्टील का हो या फिर तांबे पीतल का हो चलेगा और शिवलिंग का पूजन सम्पन्न कर<br>शिव जी से साधना में सफलता का आशीर्वाद मांगे और साधना प्रारंभ करे ।<br>शिवलिंग के सामने धूप, दीप (घी का)<br>प्रज्वलित कर लें, मिठाई प्रसाद मे रखिये जिसे साधना के बाद साधक को नित्य ग्रहण करना है, हो सके तो अवश्य ही बेलपत्र भी चढाये।<br></div><div><br></div><div>प्रत्येक ग्रह मंत्र का 11 बार जप करते हुए<br>शिवलिंग पर कुंकुम, अक्षत एवं पुष्प चढाये,अगर आपको मंत्र उच्चारण में कठिनाई आये तो आप 108 बार ॐ नमः शिवाय का भी जाप करके पूजन कर सकते है।</div><div><br>नवग्रह मंत्र इस प्रकार से हैं-<br><br>सूर्य- ॥ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः ॥<br>चन्द्र - ॥ ॐ ऐं क्लीं सोमायै नमः॥<br>मंगल - ॥ॐ हुं श्रीं मंगलाय नमः॥<br>बुध - ॥ॐ ऐं स्त्रीं श्रीं बुधायै नमः॥<br>गुरु - [॥ॐ ऐं क्लीं बृहस्पत्यै नमः॥<br>शुक्र - ॥ॐ ह्रीं श्रीं शुक्रायै नमः॥<br>शनि - ॥ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चरायै नमः॥<br>राहु - ॥ॐ ऐं ह्रीं राहवे नमः॥<br>केतु - ॥ॐ केतवे ऐं सौ: स्वाहा ॥<br></div><div><br></div><div><br></div><div>नवग्रह मंत्रों से शिव पूजन के पश्चात्<br>रुद्राक्ष माला से दिये गये नवग्रह मंत्र की 11 माला जप अवश्य करें.<br><br>विशेष नवग्रह मंत्र-<br><br>॥ ॐ श्रीं क्लीं सूर्य चन्द्र भौम बुध गुरु शुक्र<br>शनीश्चराय राहु केतु मुंथा सहिताय क्लीं नमः ॥<br><br>Om shreem kleem Surya Chandra bhoum budha guru shukra shanishcharaay raahu ketu munthaa sahitaaya kleem namah</div><div><br></div><div><br>मंत्र जप के पश्चात् माला को सुरक्षित स्थान पर रख दें तथा शेष सामग्री को जल में विसर्जित कर दें। इस साधना में साधक को 11 दिन तक नित्य माला से उपरोक्त नवग्रह मंत्र का 11 माला जप करना चाहिए। इस प्रकार इस साधना में उपरोक्त मंत्र की 121 माला<br>का जप बताया गया है। मूल साधना के पश्चात्<br>नित्य क्रम में केवल 1 माला मंत्र जप सम्पन्न करना बताया गया है। आप 121 माला मंत्र जप अपनी सुविधानुसार भी सम्पन्न कर सकते हैं। जैसे नित्य 11 माला जाप नही कर सकते है तो 3,5,7 या हो सके तो 21 माला तक नित्य जाप कर सकते है।<br></div><div><br></div><div>अन्य किसीभी मार्गदर्शन हेतु आप संपर्क कर सकते है ।</div><div><br></div><div><br></div><div>आदेश.....</div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-52992161800928671612022-08-01T02:33:00.001+05:302022-08-01T02:36:02.488+05:30मोरपंख (peacock feathers magic) का जादू.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitPBY0cNx8uHUnps744LctFPSo2rlZcByklk_CPLodFla4v8XOl3uvZIuR3IPNRYYz5m02BvmNqhCUewPkGaAzBl-jaxOU3VFmV8vyy07W9nV8XqcXU6jtdzf3W041-qt-Ke1c-Am3p1URIxBmoL5HEXrkyOoipEn3fgJ8D195FD7UXl61pJR6bD0z/s1656/photo-1616075278467-b085da3ab030.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1656" data-original-width="1100" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitPBY0cNx8uHUnps744LctFPSo2rlZcByklk_CPLodFla4v8XOl3uvZIuR3IPNRYYz5m02BvmNqhCUewPkGaAzBl-jaxOU3VFmV8vyy07W9nV8XqcXU6jtdzf3W041-qt-Ke1c-Am3p1URIxBmoL5HEXrkyOoipEn3fgJ8D195FD7UXl61pJR6bD0z/s320/photo-1616075278467-b085da3ab030.jpeg" width="213" /></a></div><br /><div><br /></div><div><br /></div><div>हिन्दू धर्म में मोर के पंखों का विशेष महत्व है। मोर के पंखों में सभी देवी-देवताओं और सभी नौ ग्रहों का वास होता है। ऐसा क्यों होता है, हमारे धर्म ग्रंथों में इससे संबंधित कथा है ... </div><div> </div><div>भगवान शिव ने मां पार्वती को पक्षी शास्त्र में वर्णित मोर के महत्व के बारे में बताया है। प्राचीन काल में संध्या नाम का एक असुर हुआ था। वह बहुत शक्तिशाली और तपस्वी असुर था। गुरु शुकाचार्य के कारण संध्या देवताओं का शत्रु बन गया था।</div><div> </div><div>संध्या असुर ने कठोर तप कर शिवजी और ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया था। ब्रह्माजी और शिवजी प्रसन्न हो गए तो असुर ने कई शक्तियां वरदान के रूप में प्राप्त की। शक्तियों के कारण संध्या बहुत शक्तिशाली हो गया था। शक्तिशाली संध्या भगवान विष्णु के भक्तों का सताने लगा था। असुर ने स्वर्ग पर भी आधिपत्य कर लिया था, देवताओं को बंदी बना लिया था। जब किसी भी तरह देवता संध्या को जीत नहीं पा रहे थे, तब उन्होंने एक योजना बनाई।</div><div> </div><div>योजना के अनुसार सभी देवता और सभी नौ ग्रह एक मोर के पंखों में विराजित हो गए। अब वह मोर बहुत शक्तिशाली हो गया था। मोर ने विशाल रूप धारण किया और संध्या असुर का वध कर दिया। तभी से मोर को भी पूजनीय और पवित्र माना जाने लगा।</div><div> </div><div> ज्योतिष शास्त्र में भी मोर के पंखों का विशेष महत्व बताया गया है। यदि विधिपूर्वक मोर पंख को स्थापित किया जाए तो घर के वास्तु दोष दूर होते हैं और कुंडली के सभी नौ ग्रहों के दोष भी शांत होते हैं। </div><div><br /></div><div>घर का द्वार यदि वास्तु के विरुद्ध हो तो द्वार पर तीन मोर पंख स्थापित करें।</div><div> </div><div> सूर्य के लिए : </div><div><br /></div><div>रविवार के दिन नौ मोर पंख लेकर आएं और पंख के नीचे मैरून रंग का धागा बांध लें। इसके बाद एक थाली में पंखों के साथ नौ सुपारियां रखें, गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।</div><div> </div><div>ॐ सूर्याय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:</div><div>इसके बाद दो नारियल सूर्य भगवान को अर्पित करें।</div><div> </div><div> </div><div>चंद्र के लिए : </div><div><br /></div><div>सोमवार को आठ मोर पंख लेकर आएं, पंख के नीचे सफेद रंग का धागा बांध लें। इसके बाद एक थाली में पंखों के साथ आठ सुपारियां भी रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।</div><div> </div><div>ॐ सोमाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:</div><div>पान के पांच पत्ते चंद्रमा को अर्पित करें। बर्फी का प्रसाद चढ़ाएं।</div><div> </div><div>मंगल के लिए : </div><div><br /></div><div>मंगलवार को सात मोर पंख लेकर आएं, पंख के नीचे लाल रंग का धागा बांध लेँ। इसके बाद एक थाली में पंखों के साथ सात सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें…</div><div> </div><div>ॐ भू पुत्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:</div><div> </div><div>पीपल के दो पत्तों पर चावल रखकर मंगल ग्रह को अर्पित करें। बूंदी का प्रसाद चढ़ाएं।</div><div> </div><div>बुध के लिए : </div><div><br /></div><div>बुधवार को छ: मोर पंख लेकर आएं। पंख के नीचे हरे रंग का धागा बांध लें। एक थाली में पंखों के साथ छ: सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।</div><div> </div><div>ॐ बुधाय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:</div><div>जामुन बुध ग्रह को अर्पित करें। </div><div>केले के पत्ते पर रखकर मीठी रोटी का प्रसाद चढ़ाएं।</div><div> </div><div>गुरु के लिए : </div><div><br /></div><div>गुरुवार को पांच मोर पंख लेकर आएं। पंख के नीचे पीले रंग का धागा बांध लें। एक थाली में पंखों के साथ पांच सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।</div><div> </div><div>ॐ बृहस्पते नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:</div><div>ग्यारह केले बृहस्पति देवता को अर्पित करें।</div><div>बेसन का प्रसाद बनाकर गुरु ग्रह को चढ़ाएं।</div><div> </div><div>शुक्र के लिए : </div><div><br /></div><div>शुक्रवार को चार मोर पंख लेकर आएं। पंख के नीचे गुलाबी रंग का धागा बांध लेँ। एक थाली में पंखों के साथ चार सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।</div><div> </div><div>ॐ शुक्राय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:</div><div>तीन मीठे पान शुक्र देवता को अर्पित करें।</div><div>गुड़-चने का प्रसाद बना कर चढ़ाएं।</div><div><br /></div><div>शनि के लिए : </div><div><br /></div><div>शनिवार को तीन मोर पंख ले कर आएं। पंख के नीचे काले रंग का धागा बांध लें। एक थाली में पंखों के साथ तीन सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें-</div><div> </div><div>ॐ शनैश्वराय नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:</div><div>तीन मिटटी के दीपक तेल सहित शनि देवता को अर्पित करें।</div><div>गुलाब जामुन या प्रसाद बना कर चढ़ाएं। इससे शनि संबंधी दोष दूर होता है।</div><div><br /></div><div>राहु के लिए : </div><div><br /></div><div>शनिवार को सूर्य उदय से पूर्व दो मोर पंख लेकर आएं। पंख के नीचे भूरे रंग का धागा बांध लें। एक थाली में पंखों के साथ दो सुपारियां रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें…</div><div> </div><div>ॐ राहवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:</div><div>चौमुखा दीपक जलाकर राहु को अर्पित करें।</div><div>कोई भी मीठा प्रसाद बनाकर चढ़ाएं।</div><div> </div><div>केतु के लिए :</div><div><br /></div><div><div>शनिवार को सूर्य अस्त होने के बाद एक मोर पंख लेकर आएं। पंख के नीचे स्लेटी रंग का धागा बांध लें। एक थाली में पंख के साथ एक सुपारी रखें। गंगाजल छिड़कते हुए 21 बार इस मंत्र का जप करें।</div><div> </div><div>ॐ केतवे नमः जाग्रय स्थापय स्वाहा:</div><div>पानी के दो कलश भरकर राहु को अर्पित करें।</div><div>फलों का प्रसाद चढ़ाएं।</div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><div><br /></div><div>Peacock feathers have special significance in Hindu religion. In the peacock feathers, all the gods and goddesses and all nine planets are inhabited. Why does this happen, in our religious texts there is a related story ...</div><div><br /></div><div>Lord Shiva told Mother Parvati about the importance of the peacock as described in bird science. In ancient times, there was an Asura named Sandhya. He was very powerful ascetic. Due to Guru Shukacharya, Sandhya became the enemy of Gods.</div><div><br /></div><div>Sandhya Asur had made Shiva and Brahma happy by harsh tenacity. When Brahmaji and Shiva were pleased, Asura got many powers in the form of boon. Due to strengths Sandhya became very powerful. Lord Vishnu devotees were tortured and harrassed. Asur also possessed heaven, made the gods captive. Whenever the gods were not able to win Sandhya, they made a plan.</div><div><br /></div><div>According to the plan all the gods and all the nine planets became entrenched in the wings of a peacock. Now the peacock became very powerful. Peacock took a huge look and killed Sandhya. Since then, peacocks have also been considered sacred and devoted.</div><div><br /></div><div>In astrology, peacock feathers have also been shown to have special significance. If peacock feathers are established, the Vastu defects of the house are removed and all the nine planets in the horoscope are also calmer.</div><div><br /></div><div>If the door of the house is against Vaastu, then set up three peacock feathers at the door.</div><div><br /></div><div>For Sun:</div><div><br /></div><div>On Sunday, bring nine peacock feathers and wrap the maroon colored thread under the wings. After this, place nine supari’s with wings in a plate, chanting this mantra 21 times spraying ganga water.</div><div><br /></div><div>Om Surya Namah Jagraya Sthapaya Swaha:</div><div><br /></div><div>After this, offer two coconut to the God Sun.</div><div><br /></div><div>For the Moon:</div><div><br /></div><div>Bring eight peacock feathers on Monday, bundle the white thread under the wings. After this, place eight betel leaves with wings in a plate. Chant this mantra 21 times spraying the Ganga Water.</div><div><br /></div><div>Om Somaye Namah Jagraya Sthapaya Swaha:</div><div><br /></div><div>Offer five leaves of paan to the moon. Offer barfi to Moon as prasad.</div><div><br /></div><div>For Mars:</div><div><br /></div><div>On Tuesday, bring seven peacock feathers, bind the red thread under the wings. After this, place seven suparias with wings in a plate. Chanting this mantra 21 times spraying the Ganga Water.</div><div><br /></div><div>Om Bhu Putraye Namah Jagraya Sthapye Swaha:</div><div><br /></div><div>Put rice on Peepal leaves and offer Mars to Mars. Offerings of Bundi should be made.</div><div><br /></div><div>For Mercury:</div><div><br /></div><div>On Wednesday bring six peacock feathers. Tie green thread under the wings. Place six Suparias with wings in a plate. Chant this mantra 21 times spraying the Ganges water or any holy water.</div><div><br /></div><div>Om Buddhaye Namah Jagraya Sthapye Swaha:</div><div><br /></div><div>Offer black berries to the planet Mercury.</div><div>Offer sweetened bread offerings on the banana leaves.</div><div><br /></div><div>For the Guru:</div><div><br /></div><div>On Thursday, bring five peacock feathers. Tie a yellow thread under the wings. Put five beetle nuts with wings in a plate. Chant this mantra 21 times spraying the Ganges water or any holy water.</div><div><br /></div><div>Om Brihaspat Namah Jagraya Sthapaye Swaha:</div><div><br /></div><div>Offer eleven bananas to the god Jupiter.</div><div>Make offerings of thimgs made of Besan and offer it to the Guru Planet.</div><div><br /></div><div>For Venus:</div><div><br /></div><div>O Friday bring four peacock feathers. Bind a pink thread under the wings. Place four beetle nuts in one plate with the wings. Chant this mantra 21 times spraying the Ganges water or any holy water.</div><div><br /></div><div>Om Shukraya Namah Jagraya Sthapaye Swaha:</div><div><br /></div><div>Offer three sweet beeteal (paan) to Venus.</div><div>Make offerings by making gurh-gram (Gud Chana) offerings.</div><div><br /></div><div>For Saturn:</div><div><br /></div><div>On Saturday Bring three peacock feathers. Bind with black thread under the wings. Put three beetle nuts in one plate with wings. Chant this mantra 21 times spraying gangaajal -</div><div><br /></div><div>Om Shaneshwariya Namah Jagraya Sthapaye Swaha:</div><div><br /></div><div>Offer lighted three clay lamp filled wth mustard oil.</div><div>Make Gulab Jamuns and offer to lord Saturn. It removes saticuline defects.</div><div><br /></div><div>For Rahu:</div><div><br /></div><div>Before sunrise on Saturdays, bring two peacock feathers. Bind the brown thread under the wings. Put two betel leaves with wings in a plate. Chanting this mantra 21 times spraying the Ganges water or any holy water.</div></div><div><br /></div><div><div>Om Rahave Namah Jagraya Sthapaye Swaha:</div><div><br /></div><div>Offer Chhamukha lamp to Rahu.</div><div>Make any sweet offerings and offer them.</div><div><br /></div><div><br /></div><div>For Ketu:</div><div><br /></div><div>After sunset on Saturday, bring a peacock feather. Bind the gray thread under the wings. Place a betel nut with a feather in the plate. Chant this mantra 21 times spraying the Ganges water or any holy water.</div><div><br /></div><div>Om Ketave Namah Jagraya Sthapaye Swaha:</div><div><br /></div><div>Offer two pots filled with water to Rahu.</div><div>Offer offerings of fruits.</div></div><div><br /></div><div><br /></div><div>आदेश.....</div><div><br /></div><div>संपर्क (contact)- 8421522368</div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-33666743925139083902022-06-29T02:30:00.001+05:302022-06-29T02:30:19.470+05:30महाभैरव शाबर मंत्र साधना.<p> महाभैरव साधना</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJONEBXYbnIG7ufxbOGMLJapB2IBDUoJGyLExMd27x5YmYsgC7Tgpo4P6BIOGQTuAShBaaI0sIvaWx090BM9SGbJkBGVusOV_0_w6V5qt3lOj4Jqo0HTAIGPtkvmhzCDr-E_lDRTtiqw3Xrhp5KH6BE8LzpkNVwPGi2w1xRbtJy_4HcRRf3wt6nZ_X/s567/images%20-%202022-06-29T021908.670.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="567" data-original-width="540" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJONEBXYbnIG7ufxbOGMLJapB2IBDUoJGyLExMd27x5YmYsgC7Tgpo4P6BIOGQTuAShBaaI0sIvaWx090BM9SGbJkBGVusOV_0_w6V5qt3lOj4Jqo0HTAIGPtkvmhzCDr-E_lDRTtiqw3Xrhp5KH6BE8LzpkNVwPGi2w1xRbtJy_4HcRRf3wt6nZ_X/s320/images%20-%202022-06-29T021908.670.jpeg" width="305" /></a></div><br /><p><br /></p><p>मानव अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याओं, बाधाओं, परेशानियों, दुःखों से प्रतिपल संघर्षरत रहता ही है। व्यक्ति का पूरा जीवन इनको समाप्त करने, इन पर विजय प्राप्त करने में ही बीत जाता है। नित्य प्रति व्यक्ति इन्हें सुलझाने का प्रयास करता है, पर वह उतना ही ज्यादा उनमें उलझता जाता है, कोई उपाय जब उसकी बुद्धि के अनुसार सफल नहीं हो पाता, तब वह हार कर देवी-देवताओं की आराधना करने लगता है, क्योंकि जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए आवश्यक है, कि मानव मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ हो और किसी भी प्रकार का तनाव उसको नहीं हो, तभी वह निश्चिंतता पूर्वक सभी समस्याओं का हल प्राप्त कर सकता है।</p><p><br /></p><p>इस प्रकार की स्थिति प्रदान करने में साधना पक्ष का सहारा लेना मनुष्य के लिए अत्यधिक हितकारी होता है, अब यहां प्रश्न यह उठता है कि हमारे सामने तो सैकड़ों प्रकार की साधनाएं हैं और प्रत्येक ही अपने आपमें महत्वपूर्ण और तेजस शक्तियों से युक्त हैं, ऐसी स्थिति में हम अपने जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए, वह भी विशेष कर शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त करने के लिए, अपने जीवन की समस्त विपत्तियों का नाश करने के लिए साथ ही अपने बालकों की सुरक्षा करने के लिए जो साधना अत्यधिक उपयुक्त हो, उसका चयन कैसे करें ?</p><p><br /></p><p>ऐसी स्थिति में व्यक्ति का ध्यान सर्वप्रथम 'भैरव साधना' की ओर ही आकृष्ट होता है। वैसे भी देखा जाए तो एक भी ऐसा गाँव नहीं है, जहां भैरव का मंदिर न हो। जन-जन के देवता के रूप में भैरव के प्रति लोगों की आस्था जुड़ी हुई है।</p><p><br /></p><p>विभिन्न तांत्रिक ग्रंथों में चाहे वह 'तंत्र चूड़ामणि' हो अथवा किसी भी ऋषि-मुनि के द्वारा रचित साधना विधान हो। प्रत्येक देवी-देवता के पूजन के पूर्व गुरु, गणपति एवं भैरव पूजन अनिवार्य होता ही है, क्योंकि भैरव समस्त प्रकार के शत्रुओं का नाश करने में पूर्ण सक्षम होते हैं। 'भैरव तंत्र' के अनुसार - भैरव साधना सम्पन्न करने से मनुष्य को अपने जीवन में निम्न लाभ प्राप्त होते हैं ।</p><p><br /></p><p>(1) मानसिक कष्ट एवं संताप का नाश । </p><p> </p><p>(2) समस्त प्रकार के उपद्रवों का नाश। </p><p> </p><p>(3) शरीर स्थित रोगों का नाश । </p><p> </p><p>(4) सामाजिक शत्रुओं का नाश ।</p><p> </p><p>(5) समस्त प्रकार के कर्जों की समाप्ति । </p><p> </p><p>(6) शासन की ओर से आने वाली अकारण बाधाओं का नाश ।</p><p> </p><p>(6) मुकदमे में विजय । </p><p> </p><p>(7) अकाल मृत्यु निवारण | </p><p> </p><p>(8) वृद्धावस्था के समय व्याप्त होने वाले रोगों का नाश । बालकों की सर्वविधि रक्षा के लिए । </p><p> </p><p>(9) व्यवसाय में आनेवाली बाधाओं का नाश ।</p><p> </p><p>(10) परिवार तथा स्वयं के ऊपर आने वाली बाधा या तंत्र बाधा का नाश ।</p><p> </p><p>( 11 ) विपत्ति को पहले से ही समाप्त करने के लिए। किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचाव के लिए ।</p><p> </p><p>यहां शत्रु "नाश" का अर्थ शत्रु समाप्ति नही है,शत्रुत्व समाप्ति है ।</p><p> </p><p>ऐसे अनेक लाभ महाभैरव साधना से साधक को प्राप्त होते ही है। </p><p> </p><p>भैरव तंत्र में ही वर्णन आता है, कि जो व्यक्ति अपनेआप के प्रति सजग एवं चैतन्य होता है, वह निश्चित रूप से महाभैरव साधना सम्पन्न करता ही है, क्योंकि उसे अपना जीवन प्रिय होता है, अपने बच्चों का जीवन प्रिय होता है, पूरे परिवार का जीवन प्रिय होता है। यदि कोई शत्रु हो तो सर्वविधि वध शत्रुदोष समाप्त करने के लिए भी भैरव साधना उपयुक्त है। इसके अलावा भैरव दिवस पर प्रत्येक उच्चकोटि के संन्यासी महाभैरव साधना सम्पन्न करते ही हैं, जिससे उन्हें अपने द्वारा की जा रही समस्त प्रकार की साधनाओं में किसी भी प्रकार की विपत्ति का सामना न करना पड़े। </p><p> </p><p>समाज में पूर्ण सम्माननीय स्थान प्राप्त व्यक्ति भी निश्चित रूप से भैरव साधना सम्पन्न करता ही है। इस प्रकार समस्त व्यक्तियों का अनुभव यही है कि कलियुग में महाभैरव साधना अतिशीघ्र लाभदायक होती है। महाभैरव साधना करने के लिये कोई विशेष विधि-विधान की आवश्यकता नहीं होती है। </p><p> </p><p>साधना विधि </p><p> </p><p>(1) महाभैरव यंत्र, रुद्राक्ष माला ,महाभैरव कंगण इन तीनो सामग्रियों का प्रयोग इस साधना में किया जाता है। भैरव तंत्र में वर्णित विशिष्ट मंत्रों से अनुप्राणित इन सामग्रियों को आप पहले से ही प्राप्त कर लें।</p><p> (2) स्नान आदि से निवृत्त होकर, साफ-स्वच्छ वस्त्र पहिन कर साधना में प्रवृत्त हो। </p><p> (3) धोती आप लाल या काली इन दोनों में से किसी भी रंग की पहिने । </p><p> (4) पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठे। </p><p> (5) अपने सामने किसी प्लेट में काले तिल की एक ढेरी निर्मित करें और उस पर 'महाभैरव यंत्र' स्थापित करें। महाभैरव यंत्र के ऊपर ही 'महाभैरव कंगण"' स्थापित करें। </p><p> (6) काले रंग में रंगे हुए अक्षत एवं काली सरसों चढ़ाकर यंत्र और कंगण का पूजन करें।</p><p>(7) गुड़ से बने नैवेद्य का भोग लगायें। </p><p>(8) पूजन करने के पश्चात् निम्न महाभैरव मंत्र का 'रुद्राक्ष माला' से 1 या 3 माला मंत्र जप शाबर मंत्र का अपनी सामर्थ्य एवं कार्य की कठिनता को देखते हुए सम्पन्न करें। </p><p>(9) मंत्र जप सम्पन्न करते समय आपको हिलना डुलना नहीं है। </p><p>(10) भैरव यंत्र की ओर अपलक देखते हुए मंत्र जप को करना है ।</p><p> (11) मंत्र जप समाप्ति के पश्चात् महाभैरव से अपनी जिस इच्छा को, जिस कामना को लेकर अपने साधना सम्पन्न की है, उसे पूर्ण करने के लिए पुन: प्रार्थना करें। </p><p> (12) जिस दिन आप इस साधना को सम्पन्न करे, उसके ठीक ग्यारहवे दिन के बाद रात्रि में हवन करना है । हवन सामग्री हेतु फोन पर संपर्क करे । </p><p> (13) यह साधना किसी भी शनिवार के दिन अथवा किसी भी मास की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली अष्टमी को तथा भैरवाष्टमी के दिन रात्रि 9 बजे के पश्चात् तथा सुबह 3 बजे के बीच में सम्पन्न की जाती है। </p><p> </p><p> पूर्ण श्रद्धा भावना के साथ इस साधना को सम्पन्न करने पर 15 दिन के अन्दर - अन्दर लाभ प्राप्त होने लगता हैं । जो शाबर मंत्र महाभैरव साधना में आपको दिया जाएगा वह अत्यंत गोपनीय है और यह मंत्र सिर्फ साधना सामग्री के साथ ही दिया जाएगा क्योके ऐसे तिष्ण और प्रामाणिक शाबर मंत्र बिना साधना सामग्री के जपने नही चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि की संभावनाये ज्यादा हैं । इसलिए सर्वप्रथम फोन पर संपर्क करे, मार्गदर्शन जो निःशुल्क है, वह प्राप्त करे, फिर साधना सामग्री के साथ महाभैरव शाबर मंत्र प्राप्त करे । मंत्र ब्लॉग पर पोस्ट करना संभव नही है ।</p><p><br /></p><p> नोट:-इस एक मंत्र साधना से षट्कर्म सम्भव है ।</p><p>फ़ोन नम्बर :- 8421522368</p><p>साधना सामग्री न्योच्छावर राशि: "3800/-रुपये" ।</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>आदेश......</p>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-79179807578041595132022-02-22T02:49:00.001+05:302022-02-22T02:50:41.597+05:30वशीकरण साबर मंत्र,षटकर्म भाग-2.<p>द्वितीय क्रिया शाबर वशीकरण मंत्र</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhpjXPf2gGeC6U1U2JUW5qUBEVt7bN9pdIU4Cmt2yxoaLRhMbCGt7lCg1ngoNPFrnSax4qORgrbERUhygSt6JZLgksIUluxBTXravaYBnV5Ebh2XApxdFDJ908WXfK0hOryFUm5b9lIMzai1gJQqqf6XqAOGSVKKb91F8lnCS9iuubdoHB-ica2PbFi=s1080" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="604" data-original-width="1080" height="179" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhpjXPf2gGeC6U1U2JUW5qUBEVt7bN9pdIU4Cmt2yxoaLRhMbCGt7lCg1ngoNPFrnSax4qORgrbERUhygSt6JZLgksIUluxBTXravaYBnV5Ebh2XApxdFDJ908WXfK0hOryFUm5b9lIMzai1gJQqqf6XqAOGSVKKb91F8lnCS9iuubdoHB-ica2PbFi=s320" width="320" /></a></div><br /><p><br /></p><p><br /></p><p>वश्यं जनानां सर्वेषां वात्सल्य हृद्-गतं-स्मृतम् ।</p><p>(सांख्यायन तंत्र)</p><p><br /></p><p>वश्यं जनानां सर्वेषां विधेयत्वमुदीरितम् ।</p><p>(उड्डीश तंत्र)</p><p><br /></p><p>राजअर्थात् जिससे सभी जीवों (स्त्री-पुरुषों) को वश में किया जाता है और सबके हृदय में अपने प्रति वात्सल्य (प्रेम) पैदा किया जाता है उसे वशीकरण कहते हैं। स्त्री-पुरुष वशीकरण, -वशीकरण, आकर्षण, मोहन आदि वश्य-कर्म के भेद हैं।</p><p><br /></p><p>उपरोक्त मंत्र से यह स्पष्ट है कि वशीकरणा साधना प्रेम की साधना है। संसार के सारे प्राणियों को प्रेम से वश में किया जा सकता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति काम इत्यादि भाव से अथवा बुरे विचार रखता है तो उसे लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। शुद्ध भाव से प्रेम में सफलता राज्यकार्य में सफलता, परिवार में अनुकूलता, मित्रों से सहयोग इत्यादि कार्य हेतु ही यह वशीकरण साधना सम्पन्न करनी चाहिये।</p><p><br /></p><p>साधना विधान:-</p><p><br /></p><p>साधक किसी भी माह के शनिवार को रात्रि में 10 बजे के पश्चात् शुद्ध पवित्र होकर पश्चिम दिशा की ओर मुख कर अपने सामने लकड़ी के एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दें।</p><p><br /></p><p>इसके पश्चात साधक अपने सामने रखे बाजोट पर एक सरसों की ढेरी बनाकर उस पर मोहिनी वशीकरण यंत्र स्थापित करें, यंत्र का फोटो व्हाट्सएप पर दिया जाएगा और आपको वैसा ही यंत्र भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से घर पर ही किसी शुभमुहूर्त में बनाना है । अब यंत्र के सामने सफेद आक की जड़ स्थापित कर दें। साधक जिन व्यक्तियों को अपने वश में करना चाहता है अथवा अपने अनुरूप करना चाहता है उन सभी के नाम एक कागज पर काजल से लिख कर यंत्र के नीचे रख दें। अब साधक यंत्र का पूजन कुंकुम, चावल से करें तथा घी का दीपक जलाएं । इस साधना में विशेष बात यह है कि मंत्र जप दीपक की लो को देखते हु ही करना है। सामान्य साधक के लिये यह संभव नहीं है क्योंकि मंत्र थोड़ा बड़ा है और याद रखना संभव नहीं है। अतः प्रत्येक बार मंत्र जप के पश्चात् दीपक की लौ की ओर अवश्य देख लें। इसके बाद साधक रुद्राक्ष माला से निम्न मंत्र की 1 माला मंत्र जप करें।</p><p><br /></p><p>मंत्र</p><p><br /></p><p>।। ॐ नमो आदेश गुरु को,चल चल रे मोहन्या बिर मोहन का काम करने चल अमुक को मेरा मोह लगा मेरे वश में कर सोते सुख ना बैठे सुख फिर फिर देखे मेरा मुख सम्मोहन का बाण चला मेरे से आकर्षित कर इतना काम ना करे तो मांगनी के कुंड में पड़े दुहाई महादेव पार्वती की इतने पर भी काम ना करे तो पिता से वैर करे महादेव की जटा टूट तेरे पर पड़े फुरो बंगाली मंत्र ईश्वरो वाचा छू ।।</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>मंत्र जप के पश्चात जिस पर वशीकरण क्रिया करनी है उसका नाम लिखा हुआ कागज सफेद आक की जड़ के साथ बांध कर अपने आज्ञा चक्र से 11 बार स्पर्श कराये और मन में यह भावना व्यक्त करें कि इस साधना के फलस्वरूप यह व्यक्ति पूर्ण रूप से मेरे आकर्षण, सम्मोहन, मोहन में मुझसे बंध जाये ।</p><p><br /></p><p>यह साधना उतने दिनों तक कर सकते हैं, जब तक पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हो तथा 21 दिन बाद सफेद आक की जड़ को माला सहित जल में प्रवाहित कर दें।</p><p><br /></p><p><br /></p><p>नोट: मोहिनी वशीकरण यंत्र का फ़ोटो व्हाट्सएप पर निःशुल्क दिया जाएगा,इस यंत्र को आपको स्वयं बनाना है ।</p><p><br /></p><p>Contact and whatsapp number</p><p>+91 8421522368</p><p><br /></p><p><br /></p><p>आदेश......</p>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-20381817172587399432022-01-26T22:46:00.002+05:302022-01-26T22:48:00.707+05:30षट्कर्म साबर मंत्र साधना-भाग 1.<p> <b>प्रथम क्रिया शांति कर्म</b></p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgXeKjlB5crDrzfOf6SqUnMBuNZv16pVl1AzHkjA9gjPjb8AjQIXvDxiT43iXy86V6QKvS2m6bSjeWKejkXXR_OIJU3nmTMYEpvZnRamY9zwuH9UBa25ZLCT2iEfVVWTVCpRWfCGfMbkW-DJDYtpLAwoYm9KHxw5e0nWYVBkaKtM6aArO1LUIEMoYdA=s439" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="393" data-original-width="439" height="286" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgXeKjlB5crDrzfOf6SqUnMBuNZv16pVl1AzHkjA9gjPjb8AjQIXvDxiT43iXy86V6QKvS2m6bSjeWKejkXXR_OIJU3nmTMYEpvZnRamY9zwuH9UBa25ZLCT2iEfVVWTVCpRWfCGfMbkW-DJDYtpLAwoYm9KHxw5e0nWYVBkaKtM6aArO1LUIEMoYdA=w291-h286" width="291" /></a></div><br /><p><br /></p><p>नाना रोगः कृतिमष्ट नाना चेष्टा क्रमेण च ।</p><p>विष-भूत निराशः शान्तिरीरिता ।।</p><p>रोग-कृत्या ग्रहादीनां निरासः शान्तिरीरिता ।।</p><p><br /></p><p>अर्थात् नाना प्रकार के रोग, नाना प्रकार की चेष्टाओं (क्रियाओं, विधियों) से निर्मित विष, भूत आदि प्रयोगों (अभिचार) कृत्या और दुष्ट ग्रहों का निराकरण करना शान्ति कर्म कहा जाता है।</p><p><br /></p><p>(ब्लॉग पर हम षट्कर्म साधनाये देने वाले है,यह प्रथम साधना है, इसके बाद वशीकरण साधना पोस्ट किया जाएगा)</p><p><br /></p><p>साधना विधान</p><p><br /></p><p>इस प्रयोग को किसी भी सोमवार अथवा बुधवार को सम्पन्न किया जा सकता है। यह साधना रात्रि अथवा प्रातः काल दोनों ही समय सम्पन्न की जा सकती है। इस साधना में वस्त्र के रंग का महत्व नही है,वस्त्र किसी भी रंग का पहन सकते है । साधना वाले दिन साधक स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाएं। अपने सामने एक लकड़ी के बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर भगवती काली विग्रह अथवा चित्र स्थापित करें। इसके पश्चात् साधक अपने दाहिने हाथ में जल लेकर अपनी कामना बोलकर जल को भगवती के चित्र के सामने छोड़ दीजिए ।</p><p><br /></p><p>इसके पश्चात् साधक बाजोट पर आयताकार रूप में चावल को फैला दें। इस आयत के मध्य पीपल के एक पत्ते को रख कर उस पर एक सुपारी स्थापित करें। सुपारी पर कुमकुम से रंगे चावल चढ़ाये और एक पुष्प चढ़ाये ।</p><p>अब मुख्य सुपारी के आठो दिशाओ के तरफ शांति, श्रद्धा, कीर्ति, लक्ष्मी, घृति, दया, तुष्टि और पुष्टि के स्वरूप की स्थापना आठ सुपारी रख कर करें। इनका पूजन करते समय निम्न मंत्र का आह्वान करें।</p><p><br /></p><p>ॐ शांत्यै नमः 11 बार ,</p><p>ॐ श्रद्धायै नमः 11बार,</p><p>ॐ कीर्त्यै नमः 11 बार,</p><p>ॐ लक्ष्म्यै नमः 11 बार,</p><p>ॐ धृत्यै नमः 11 बार,</p><p>ॐ दयायै नमः 11 बार,</p><p>ॐ तुष्टयै नमः 11 बार,</p><p>ॐ पुष्टयै नमः 11 बार जपे,</p><p><br /></p><p>इस प्रकार प्रार्थना करने से ये शक्तियां स्थापित होती है तदन्तर मुख्य सुपारी का फिर से कुंकुम, अक्षत, रक्त चंदन इत्यादि से पंचोपचार पूजन करें। पूजन के समय निरन्तर अक्षत चढ़ाते रहें। इसके पश्चात् मुख्य मंत्र का जप करें। शांति कर्म में रुद्राक्ष माला का प्रयोग किया जा सकता है । एक ही स्थान पर बैठे - बैठे 1 माला मंत्र जप अवश्य करें । यह विधान कम से कम सात दिन तक सम्पन्न करना चहिये। यदि नियमित रूप से सात दिन संभव ना हो तो वे भाग में कर सकते हैं।</p><p><br /></p><p>मंत्र</p><p><br /></p><p>।। ॐ नमो आदेश गुरु को काली काली महाकाली कावड़ देश बंगाल वाली, आवो माता कृपा करो दुःख बांधो भूत प्रेत पिशाच बांधो दुष्ट ग्रहो का फल बांधो अभिचार कर्म का असर बांधो आयी बला बांधो बुरी नजर बांधो दरिद्रता बांधो कौन बांधे माता काली बांधे ना बांधे तो महादेव की आन गुरु गोरखनाथ की आन गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा छू ।।</p><p><br /></p><p>इस मंत्र के जप से रोगों का नाश होता है तथा दुष्ट ग्रह अनुकूल होते हैं। जब भी विपरीत स्थिति का अनुभव करें तो मुख्य सुपारी के आगे रुद्राक्ष माला से इस मंत्र का जप अवश्य करें।</p><p><br /></p><p>जिस घर में साधना पूर्ण होने के बाद मुख्य सुपारी को पूजा स्थान में स्थापित किया जाता है उस घर में भूत-प्रेत इत्यादि आ नहीं सकते हैं। प्रत्येक साधक के लिये यह साधना आवश्यक है ।</p><p><br /></p><p>साधनात्मक मार्गदर्शन हेतु निःशुल्क मार्गदर्शन किया जाएगा ।</p><p><br /></p><p>आदेश.......</p>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-8962981678671336952021-11-13T20:37:00.001+05:302021-11-13T20:37:53.479+05:30पहाड़िया मामा प्रत्यक्षीकरण साधना सिद्धी.<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAE51ouC5FNFtdLSFRkynAH4LA5bodEB3tX6fSwCgUAm6xyLi7PU_X_iBakNSaettb-m-fLUg0Nnf0MTvMuHHmgD8hawBTk6STyJtgJrUauJXAyJMZ3TzhEvSDMoQ6F1M3LQsHGXeKvk0/s1600/1636816063142505-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhAE51ouC5FNFtdLSFRkynAH4LA5bodEB3tX6fSwCgUAm6xyLi7PU_X_iBakNSaettb-m-fLUg0Nnf0MTvMuHHmgD8hawBTk6STyJtgJrUauJXAyJMZ3TzhEvSDMoQ6F1M3LQsHGXeKvk0/s1600/1636816063142505-0.png" width="400">
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</div><br></div><div><br></div><div>आज आप सभी के ज्ञान हेतु "पहाड़िया-मामा" की सिद्धि के विषय में बताने जा रहा हूँ। यह मूलतः हिमाचली देव माना जाता है, यहा जहा पर पहाड़ी-क्षेत्र होता है वहां इनका निवास होता है।</div><div><br></div><div>जैसा कि मैंने अपनी पिछली कई पोस्ट्स में कहा है कि साधना अपितु शक्ति कोई बुरी नहीं होती बस उसका उपयोग सही या गलत होता है, हाँ यह अवश्य है कि जिस गुण की वह शक्ति है वह आपको उसी गुण-स्वभाव का बनाने का प्रयत्न करती है, तामसिक या सात्विक यदि आपके इष्ट या गुरु की शक्ति आपके साथ है तो ये अधिक प्रभाव नहीं डाल सकती ।</div><div><br></div><div>पहाड़िया-मामा कहि से भी सबकुछ ला सकता है या आस-पड़ोस में कलह करवा सकता है, जो चाहो वह यह कर सकता है किंतु हिमाचल में इसे देव कहा जाता है न कि भूत-प्रेत, जिस प्रकार बुलाकी आदि देव होते हैं उसी प्रकार यह हिमाचल में प्रसिद्ध है।</div><div><br></div><div>यह मूलतः 21 दिन की साधना होती है, जिसमें प्रत्येक दिन साधना में आपको इसके भोग के लिए शराब और मांस रखना होता है,ज़्यादा मात्रा में न रखें थोड़ा-बहुत चलेगा और नित्य मंत्र जप के पश्च्यात उस शराब को आप किसी शराबी को पीने के लिए दे देवें या निर्जन स्थान पर रख दें और वह मांस कुत्तों को डाल दिया करें।</div><div><br></div><div>21वें दिन मामा सफेद वस्त्रों में हंसते हुए प्रकट होंगे और सिर पर टोपी भी होगी वे बिल्कुल आदमी की तरह आपसे बात करेंगे और आपसे कहेंगे कि मुझे दारू और मांस खिला जोकि उनका भोग है। आप वह मांस, शराब और एक गिलास पानी भरकर उनके सामने रख दें। अब यह उनकी इच्छा है कि दारू नीट पियें या पानी मिलाकर पिएं फिर वे आपके साथ बैठकर ही वह दारू-मांस खाएंगे तत्पश्चात आपसे पूछेंगे कि 'बताओ मेरे लिए क्या काम है?'</div><div><br></div><div>फिर आपकी जो भी इच्छा या मनोरथ हो वह कह दें जो भी आपको चाहिए, किन्तु इच्छा भी वही प्रकट करें जो सम्भव हो अन्यथा आप कहें कि मुझे हवाई-जहाज चाहिए तो थोड़े ही मिलेगा।</div><div><br></div><div><br></div><div><b>पहाड़ी मामा का मन्त्र -</b></div><div><br></div><div>।। पहाड़िया आवे आवे तुझे मनावे, तुझे भोग में दारू मास खिलावे, मेरा काम कर नहीं आवे, तुझे गौरा माता की दुहाई जय पहाड़िया मामा तेरी सेवा करूँ दिन रात ।।</div><div><br></div><div><br></div><div>जपसंख्या - नित्य 11 माला जाप.</div><div>साधना सामग्री-रुद्राक्ष माला,रक्षा कवच,पहाड़िया मामा प्रत्यक्षीकरण यंत्र.</div><div>साधना समय-रात्रिकालीन.</div><div>अन्य सामग्री-सफेद आसन, सफेद वस्त्र,धूप,दीप और सफेद पुष्प.</div><div><br></div><div>यह साधना कम समय मे सिद्धिदायक है,ऐसी प्रामाणिक साधना प्राप्त होना नसीब की बाते है,जिन्हें मिल जाती है उनका जीवन बदल जाता है ।</div><div><br></div><div>साधना सामग्री न्यौच्छावर राशी 3500/-रुपये है,साधना की गोपनीय क्रियाये सिर्फ फोन पर बतायी जाएगी,क्योंकि कुछ क्रिया को हमे गोपनीय रखना पड़ता है ।</div><div><br></div><div>साधना सामग्री प्राप्त करने हेतु संपर्क करे-</div><div>📞 8421522368</div><div><br></div><div><br></div><div>आदेश.....</div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-86457244794295039402021-10-26T00:16:00.001+05:302021-10-26T00:16:03.858+05:30दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन एवं मंत्र विधान.दीपावली की आप सभी को बहोत बहोत शुभकामनाएं<div>💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐<br><div><br></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgL21vpnglSs9rFKcocxLUVzuUDuv6osUSE2x37P1SD5lDBhe4RCRwvRpTfg_6gR4O15KEQJ-Gj8jIFK3QUmiRnHpxJm9i4GOj9SMV5lVhXCS7HrP8EdHTIMZZHrjFRokTxLqSuaUz5lTI/s1600/1635187468915417-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgL21vpnglSs9rFKcocxLUVzuUDuv6osUSE2x37P1SD5lDBhe4RCRwvRpTfg_6gR4O15KEQJ-Gj8jIFK3QUmiRnHpxJm9i4GOj9SMV5lVhXCS7HrP8EdHTIMZZHrjFRokTxLqSuaUz5lTI/s1600/1635187468915417-0.png" width="400">
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</div><br><div><br></div><div>माँ भगवती आप सभी पर कृपा करें इसी कामना के साथ दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन दिया जा रहा है-</div><div><div><br></div><div>भगवती श्री-लक्ष्मी का विधिवत पूजन जिसमे ऋद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ का पूजन समाहित है | </div><div><br></div><div>श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यां बहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि </div><div>रूप मश्विनो! इष्णन्निषाणां मुम्म ईषाणा सर्वलोकम्म ईषाणा | </div><div><br></div><div>हे जगदीश्वर! ये समस्त ऐश्वर्य और समग्र शोभा अर्थात 'लक्ष्मी' और 'श्री' दोनों ही आपकी पत्नी तुल्य हैं, दिन और रात आपकी सृष्टि में विचरण करते रहते हैं, सूर्य चंद्र आपके मुख हैं | नक्षत्र आपके रूप है, मैं आपसे समस्त सुखों की कामना करता हूं |</div><div><br></div><div>यही प्रश्न हजारों वर्ष पहले हमारे ऋषि-मुनियों के मन में भी अवश्य आया होगा, तभी उन्होनें लक्ष्मी की पूर्ण व्याख्या की | प्रारम्भ के श्लोक में यही विवरण आया है कि लक्ष्मी, जो 'श्री' से भिन्न होते हुए भी "श्री" का ही स्वरुप हैं, जो पालनकर्ता विष्णु के साथ रहती हैं, जिनके चारों ओर सारे नक्षत्र, तारे, विचरण करते हैं, जो सारे लोकों में विद्यमान हैं, उस 'श्री'का मैं वन्दन करता हूं |</div><div><br></div><div>अर्थात 'श्री' ही मूल रूप से लक्ष्मी हैं और इसीलिए हमारी संस्कृति में 'मिस्टर' की जगह 'श्री' लिखा जाता है| अर्थात वह व्यक्ति, जो श्री से युक्त है, उसी के नाम के आगे 'श्री' लगाकर सम्बोधित किया जाता है|</div><div><br></div><div>'श्री सूक्त' जिसे 'लक्ष्मी सूक्त' भी कहा जाता है, उसमें लक्ष्मी का श्री रूप से ही प्रार्थना की गई है, जो वात्सल्यमयी हैं,धन-धान्य, संतान देने वाली हैं, जो मन और वाणी को दीप्त करती हैं, जिनके आने से दानशीलता प्राप्त होती है, जो वनस्पति और वृक्षों में स्थित हैं, जो कुबेर और अग्नि अर्थात तेजस्विता प्रदान करने वाली हैं, जो जीवन में परिश्रम का ज्ञान कराती हैं, जिसकी कृपा से मन में शुद्ध संकल्प और वाणी में सत्यता आती है,जो शरीर में तरलता और पुष्टि प्रदान करने वाली हैं, उस श्री के सांसारिक जीवन में स्थायी स्थान के लिए बार-बार प्रार्थना और नमन किया गया है |</div><div><br></div><div>श्री सूक्त में एक विशेष बात यह कही गई है कि लक्ष्मी की जेष्ट भगिनी अर्थात अलक्ष्मी अर्थात अलक्ष्मी अर्थात दरिद्रता है जो भूख और प्यास के साथ दुर्गन्धयुक्त है, अर्थात यदि जीवन में धन तो है लेकिन तृष्णाएं यथावत हैं, मानसिक रूप से विकारों में मलिनता है तो वह लक्ष्मी 'श्री' रुपी लक्ष्मी नहीं है और वह लक्ष्मी स्थायी रह भी नहीं सकती है |</div><div><br></div><div>जो 'श्री' रुपी लक्ष्मी है, वही जीवन में स्थायी रह सकती है, और इस श्री रुपी लक्ष्मी की नौ कलाओं का जब जीवन में पदार्पण होता है तभी जीवन में पूर्णता आ पाती है |</div><div><br></div><div><br></div><div><b>लक्ष्मी की नौ कलाएं -</b></div><div><b><br></b></div><div>जिस व्यक्ति में लक्ष्मी की इन नौ कलाओं का विकास होता है, वहीं लक्ष्मी चिरकाल के लिए विराजमान होती है|</div><div><br></div><div>१. विभूति - सांसारिक कर्तव्य करते हुए दान रुपी कर्तव्य जहां विद्यमान होता है, अर्थात शिक्षा दान, रोगी सेवा, जल दान इत्यादि कर्तव्य हैं, वहां लक्ष्मी की 'विभूति' नामक पीठिका है, यह लक्ष्मी की पहली शक्ति है |</div><div><br></div><div>२. नम्रता - दूसरी शक्ति है नम्रता | व्यक्ति जितना नम्र होता है, लक्ष्मी उसे उतना ही ऊंचा उठाती है |</div><div><br></div><div>३. कान्ति - जब विभूति और कान्ति दोनों कलाएं आ जाती हैं, तो वह लक्ष्मी की तीसरी कला 'कान्ति' का पात्र हो जाता है, चेहरे पर एक तेज आता है |</div><div><br></div><div>४. तुष्टि - इन तीनों कलाओं की प्राप्ति होने पर 'तुष्टि' नामक चतुर्थ कला का आगमन होता है, वाणी सिद्धि, व्यवहार, गति, नए-नए कार्य, पुत्र-प्राप्ति, दिव्यता-सभी उसमें एक रास होती हैं|</div><div><br></div><div>५. कीर्ति - यह लक्ष्मी की पांचवी कला है, इसकी उपासना करने से साधक अपने जीवन में धन्य हो जाता है, संसार के आधार का अधिकारी हो जाता है |</div><div><br></div><div>६. सन्नति - कीर्ति-साधना से लक्ष्मी की छटी कला सन्नति मुग्ध होकर विराजमान होती है|</div><div><br></div><div>७. पुष्टि - इस कला द्वारा साधक अपने जीवन में जो सन्तुष्टि अनुभव करता है| उसे अपने जीवन का सार मालूम पड़ता है |</div><div><br></div><div>८. उत्कृष्टि - इस कला से जीवन में क्षय-दोष होता है वह समाप्त हो जाता है | केवल वृद्धि ही वृद्धि होती है |</div><div><br></div><div>९. ऋद्धि - सबसे महत्वपूर्ण, सर्वोत्तम कला ऋद्धि पीठाधिष्ठात्री है, जो बाकी आठ कलाओं के होने पर स्वतः ही समाविष्ट हो जाती है |</div><div><br></div><div>दीपावली रात्रि को विधिवत पूजन से श्री-लक्ष्मी, नौ कलाओं सहित घर में स्थायी निवास करती है |</div><div><br></div><div><b>पूजन सामग्री</b></div><div><br></div><div>कुंकुम,मौली, अगरबत्ती, केशर, कपूर, सिन्दूर, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, फल, पुष्प माला, गंगाजल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी), यज्ञोपवीत, वस्त्र, मिठाई एवं पंचपात्र |</div><div><br></div><div><b>पवित्रीकरण</b> </div><div><br></div><div>ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा | </div><div>यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः || </div><div><br></div><div><b>संकल्प</b> </div><div>दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न मन्त्र को पढ़े -</div><div><br></div><div>ॐ विर्ष्णु विर्ष्णु विर्ष्णुः श्री मदभगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मनोहि द्वितीय परार्द्वे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे जम्बु द्वीपे भारतवर्षे अस्मिन पवित्र क्षेत्रे अमुक वासरे (दिन बोले) अमुक गोत्रोत्पन्नहं (अपना गोत्र बोले), अमुक शर्माहं (अपना नाम बोले) यथा मिलितोपचारैः श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थे तदंगत्वेन यथाशक्ति गणपति पूजनं च एवं मंत्र जाप करिष्ये | </div><div><br></div><div>जल भूमि पर छोड़ दें |</div><div><br></div><div><b>गुरु पूजन</b> </div><div>दोनों हाथ जोड़ कर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -</div><div><br></div><div>गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर | </div><div>गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः || </div><div>गुरुं आवाहयामि स्थापयामि नमः | </div><div>पाद्यं स्नानं तिलकं पुष्पं धूपं </div><div>दीपं नैवेद्यं च समर्पयामि नमः || </div><div><br></div><div>ऐसा बोलकर पाद्य, जल स्नान, तिलक, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य आदि समर्पित करें, फिर दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें -</div><div><br></div><div>अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया | </div><div>चक्षुरन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः || </div><div><br></div><div><b>गणपति-पूजन </b></div><div>इसके बाद दोनों हाथ जोड़ कर भगवान् गणपति का ध्यान करें -</div><div><br></div><div>गजाननं भूत गणाधिसेवितं,</div><div>कपित्थ जम्बूफल चरुभक्षणं| </div><div>उमासुतं शोक विनाश कारकं ;</div><div>नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम || </div><div>ॐ गणेशाय नमः ध्यानं समर्पयामि || </div><div><br></div><div>भगवान् गणपति को आसन के लिए पुष्प समर्पित करें | इसके बाद सामने स्थापित 'महागणपति-महालक्ष्मी' यंत्र अथवा विग्रह को जल से स्नान करावें, फिर पंचामृत स्नान करावें, स्नान के समय निम्न मन्त्र बोलें -</div><div><br></div><div>पञ्च नद्यः सरस्वती मपियन्ति सस्त्रोतसः | </div><div>सरस्वती तू पञ्चधा सोदेशेभवत सरित || </div><div><br></div><div>इसके बाद चन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, नैवेद्य आदि समर्पित करें तथा धुप-दीप दिखाएं -</div><div><br></div><div>चन्दनं अक्षतान पुष्प मालां </div><div>नैवेद्यं च समर्पयामि नमः | </div><div>धूपं दीपं दर्शयामि नमः || </div><div><br></div><div>इसके बाद तीन बार मुख शुद्धि के लिए आचमन करायें, इलायची और लौंग आदि से युक्त पान चढ़ायें| फिर दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें -</div><div><br></div><div>नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः | </div><div>नमस्ते रुद्ररूपाय करिरूपाय ते नमः || </div><div>विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे | </div><div>भक्तिप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक || </div><div>ॐ गं गणपतये नमः | </div><div>निर्विघ्नमस्तु| निर्विघ्नमस्तु | निर्विघ्नमस्तु | </div><div>अनेन कृतेन पूजनेन सिद्धि बुद्धि सहितः || </div><div>श्री भगवान् गणाधिपतिः प्रीयन्ताम || </div><div><br></div><div>इसके बाद दोनों हाथ जोड़ कर भगवती महालक्ष्मी का ध्यान करें -</div><div><br></div><div>ॐ अम्बेअम्बिके अम्बालिके न मा नयति कश्चन| </div><div>ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम || </div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः आवाहनं समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>महालक्ष्मी ध्यान </b></div><div>दोनों हाथ जोड़कर मन ही मन स्मरण करें कि भगवती महालक्ष्मी आकर विराजमान हो, प्रार्थना करे -</div><div><br></div><div>पदमासना पदमकरां पदममाला विभूषिताम | </div><div>क्षीर सागर संभूतां हेमवर्ण समप्रभाम || </div><div>क्षीर वर्ण समं वस्त्रं दधानं हरिवल्लभाम | </div><div>भावये भक्तियोगेन भार्गवीं कमलां शुभां || </div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः ध्यानं समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>आसन</b> </div><div>आसन के लिए पुष्प अर्पित करें -</div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि नमः || </div><div><br></div><div><b>पाद्य</b> </div><div>पाद्य के लिए दो आचमनी जल चढ़ायें -</div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः पाद्यं समर्पयामि | </div><div>अर्घ्यं आचमनीयं स्नानं च समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>पंचामृत स्नान</b> </div><div>पंचामृत से भगवती महालक्ष्मी को स्नान कराये -</div><div>मध्वाज्यशर्करायुक्तं दधिक्षीरसमन्वितम | </div><div>पंचामृतं गृहाणेदं पंचास्यप्राणवल्लभे |</div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>शुद्धोदक स्नान </b></div><div>इसके बाद उन्हें शुद्ध जल से स्नान करायें -</div><div><br></div><div>परमानन्द बोधाब्धि निमग्न निजमूर्तये | </div><div>शुद्धोदकैस्तु स्नानं कल्पयाम्यम्ब शंकरि || </div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>वस्त्र </b></div><div>वस्त्र समर्पित करे -</div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>आभूषण</b> </div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः आभूषणं समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>गन्ध</b> </div><div>इत्र चढ़ावें</div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः गन्धं समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>अक्षत</b> </div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः अक्षतान समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>पुष्प</b> </div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पाणि समर्पयामि || </div><div><br></div><div>इसके बाद कुंकुम, चावल तथा पुष्प मिला कर निम्न मन्त्रों का उच्चारण करते हुए विग्रह/यंत्र पर चढ़ायें -</div><div><br></div><div>ॐ चपलायै नमः पादौ पूजयामि || </div><div>ॐ चञ्चलायै नमः कटिं पूजयामि || </div><div>ॐ कमलायै नमः कटिं पूजयामि || </div><div>ॐ कात्यायन्यै नमः नाभिं पूजयामि || </div><div>ॐ जगन्मात्रे नमः जठरं पूजयामि || </div><div>ॐ विश्ववल्लभायै नमः वक्षःस्थलं पूजयामि || </div><div>ॐ कमलवासिन्यै नमः हस्तौ पूजयामि || </div><div>ॐ पाद्याननायै नमः मुखं पूजयामि || </div><div>ॐ कमलपत्राख्यै नमः नेत्रत्रयं पूजयामि || </div><div>ॐ श्रियै नमः शिरः पूजयामि || </div><div>ॐ महालक्ष्म्यै नमः सर्वाङ्गं पूजयामि || </div><div><br></div><div><br></div><div><b>धूप </b></div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं आघ्रापयामि ।।</div><div><br></div><div><b>दीप</b> <br></div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं दर्शचयामि ||</div><div><br></div><div><br></div><div><b>नैवेद्य</b> </div><div>नाना विधानी भक्ष्याणी</div><div>व्यञ्जनानी हरिप्रिये |</div><div>यथेष्टं भूङक्ष्व नैवेद्यं |</div><div>षडरसं च चतुर्विधम || </div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि || </div><div><br></div><div>नैवेद्य समर्पित कर तीन बार जल का आचमन कराएं |</div><div><br></div><div><br></div><div><b>ताम्बूल</b> </div><div>लौंग इलायची युक्त पान समर्पित करें -</div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि || </div><div><br></div><div><b>दक्षिणा</b> </div><div>दक्षिणा द्रव्य समर्पित करें -</div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः दक्षिणां समर्पयामि ||</div><div><br></div><div><br></div><div>इसके बाद 'कमलगट्टे की माला' से निम्न मन्त्र का १ माला मन्त्र जप करें -</div><div><br></div><div><b>|| ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ आगच्छ धनं देहि देहि ॐ || </b></div><div><br></div><div><br></div><div> इसके बाद घी की पांच बत्ती की आरती बना कर आरती करें ।</div><div><br></div><div><b>जल आरती</b> </div><div>तीन बार आचमनी से जल लेकर दीपक के चरों ओर घुमायें तथा निम्न मन्त्र का उच्चारण करें -</div><div><br></div><div>ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष (गूं ) शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्ति </div><div>रोषधयः शान्तिः | वनस्पतयः शान्ति र्विश्वे देवाः शान्तिः ब्रह्म </div><div>शान्तिः सर्व (गूं ) शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि || </div><div><br></div><div><br></div><div> <b>पुष्पाञ्जलि</b> </div><div>दोनों हाथों में पुष्प लेकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें तथा यंत्र अथवा विग्रह पर चढ़ा दे -</div><div><br></div><div>नाना सुगंध पुष्पाणि यथा कालोदभवानि च |</div><div>पुष्पाञ्जलिर्मया दत्ता गृहाण जगदम्बिके || </div><div>श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पांजलि समर्पयामि ||</div><div><br></div><div><br></div><div><b>समर्पण</b> </div><div>इसके बाद निम्न समर्पण मन्त्र का उच्चारण करते हुए पूजन व् जप भगवती लक्ष्मी को समर्पित करें, जिससे कि इसका फल आपको प्राप्त हो सके -</div><div><br></div><div>ॐ तत्सत ब्रह्मार्पणमस्तु,</div><div>अनेन कृतेन पूजाराधन कर्मणा | </div><div>श्री महालक्ष्मी देवता परासंवित </div><div>स्वरूपिणी प्रियनताम || </div><div><br></div><div>एक आचमनी जल लेकर, पूजन की पूर्णता हेतु भूमि पर छोड़ दें | इसके बाद वहा उपस्थित परिवार के सभी सदस्यों एवं स्वजनों को प्रसाद वितरित करें|</div><div><br></div><div>इस प्रकार यह सम्पूर्ण पूजन व् साधना संपन्न होती है| साधना समाप्ति के पश्चात सवा माह तक नित्य कमलगट्टे की माला से - </div><div>|| ॐ श्रीं श्रीं महालक्ष्मी आगच्छ आगच्छ धनं देहि देहि ॐ ||</div><div>मंत्र का १ माला जप करें | सवा माह पश्चात माला तथा यंत्र को जल में विसर्जित कर दें |</div></div><div><br></div><div><br></div><div>आदेश.....</div><div><br></div></div></div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-36697534528869330122021-10-16T12:22:00.001+05:302021-10-16T12:22:10.118+05:30पापांकुशा साधना.<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiczoq1EU75cwlRSO2H_8cr5nAbvaplMJxpv04PrhvAVxCjqG1U-zMhTG_jEstAX9iFPkDh1PjxT0oT2ndDTCB7xtn32I36BxssovfUGL8zsySuksNqP2_janRwupYU4nc3j-sN_rIXYa8/s1600/1634366898760769-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div><br></div><div>यावत् जीवेत सुखं जीवेत ।<br></div><div>सर्वं पापं विनश्यति ।।</div><div><br></div><div>प्रत्येक जीव विभिन्न योनियों से होता हुआ निरन्तर गतिशील रहता है| हलाकि उसका बाहरी चोला बार-बार बदलता रहता है, परन्तु उसके अन्दर निवास करने वाली आत्मा शाश्वत है, वह मारती नहीं हैं, अपितु भिन्न-भिन्न शरीरों को धारण कर आगे के जीवन क्रम की ओर गतिशील रहती है ।</div><div><br></div><div>जो कार्य जीव द्वारा अपनी देह में होता है, उसे कर्म कहते हैं और उसके सामान्यतः दो भेद हैं - शुभ कर्म यानी कि पुण्य तथा अशुभ कर्म अर्थात पाप| शुभ कर्म या पुण्य वह होता है, जिसमे हम किसी को सुख देते हैं, किसी की भलाई करते हैं और अशुभ कर्म वह होता है, जिसमें हमारे द्वारा किसी को दुःख प्राप्त होता है, जिसमें हमारे द्वारा किसी को संताप पहुंचता हैं ।</div><div><br></div><div>मानव योनी ही एक ऐसे योनि है, जिसमें वह अन्य कर्मों को संचित करता रहता है| पशु आदि तो बस पूर्व कर्मों के अनुसार जन्म ले कर ही चलते रहते हैं, वे यह नहीं सोचते, कि यह कार्य में कर रहा हूं या मैं इसको मार रहा हूं । अतः उनके पूर्व कर्म तो क्षय होते रहते हैं, परन्तु नवीन कर्मों का निर्माण नहीं होता; जबकि मनुष्य हर बात में 'मैं' को ही सर्वोच्चता प्रदान करता हैं... और चूंकि वह प्रत्येक कार्य का श्रेय खुद लेना चाहता है, अतः उसका परिणाम भी उसे ही भुगतना पड़ता है। </div><div><br></div><div>मनुष्य जीवन और कर्म-</div><div>मनुष्य जीवन में कर्म को शास्त्रीय पद्धति में तीन भागों में बांटा गया है -</div><div>१. संचित</div><div>२. प्रारब्ध</div><div>३. आगामी (क्रियमाण)</div><div><br></div><div>'संचित कर्म' वे होते हैं, जो जीव ने अपने समस्त दैहिक आयु के द्वारा अर्जित किये हैं और जो वह अभी भी करता जा रहा है। </div><div>'प्रारब्ध' का अर्थ है, जिन कर्मों का फल अभी गतिशील हैं, उसे वर्त्तमान में भोगा जा रहा हैं ।</div><div>'आगामी' का अर्थ है, वे कर्म, जिनका फल अभी आना शेष है ।</div><div><br></div><div>इन तीनो कर्मों के अधीन मनुष्य अपना जीवन जीता रहता है| प्रकृति के द्वारा ऐसी व्यवस्था तो रहती है, कि उसके पूर्व कर्म संचित रहें, परन्तु दुर्भाग्य यह है, कि मनुष्य को उसके नवीन कर्म भी भोगने पड़ते हैं, फलस्वरूप उसे अनंत जन्म लेने पड़ते हैं| परन्तु यह तो एक बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है, और इसमें तो अनेक जन्मों तक भटकते रहना पड़ता है ।</div><div><br></div><div>परन्तु एक तरीका है जिससे व्यक्ति अपने छल, दोष, पाप को समूल नष्ट कर सकता है, नष्ट ही नहीं कर सकता अपितु भविष्य के लिए अपने अन्दर अंकुश भी लगा सकता है, जिससे वह आगे के जीवन को पूर्ण पवित्रता युक्त जी सके, पूर्ण दिव्यता युक्त जी सके और जिससे उसे फिर से कर्मों के पाश में बंधने की आवश्यकता नहीं पड़े ।</div><div><br></div><div>साधना : एकमात्र मार्ग </div><div>...और यह तरीका, यह मार्ग है साधना का, क्योंकि साधना का अर्थ ही है, कि अनिच्छित स्थितियों पर पूर्णतः विजय प्राप्त कर अपने जीवन को पूरी तरह साध लेना, इस पर पूरी तरह से अपना नियंत्रण कायम कर लेना ।</div><div><br></div><div>यदि यह साधना तंत्र मार्ग के अनुसार हो, तो इससे श्रेष्ठ कुछ हो ही नहीं सकता, इससे उपयुक्त स्थिति तो और कोई हो ही नहीं सकती, क्योंकि स्वयं शिव ने 'महानिर्वाण तंत्र' में पार्वती को तंत्र की विशेषता के बारे में समझाते हुए बताया है -</div><div><br></div><div>श्लोक:-</div><div><br></div><div>कल्किल्मष दीनानां द्विजातीनां सुरेश्वरी |</div><div>मध्या मध्य विचाराणां न शुद्धिः श्रौत्कर्मणा ||</div><div>न संहिताध्यैः स्र्मुतीभिरष्टसिद्धिर्नुणां भवेत् |</div><div>सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्य सत्यं मयोच्यते ||</div><div>विनाह्यागम मार्गेण कलौ नास्ति गतिः प्रिये |</div><div>श्रुतिस्मृतिपुराणादी मयैवोक्तं पूरा शिवे ||</div><div>आगमोक्त विधानेन कलौ देवान्यजेत्सुधिः || </div><div><br></div><div><br></div><div>अर्थ:-</div><div><br></div><div>- ही देवी! कलि दोष के कारण ब्राह्मण या दुसरे लोग, जो पाप-पुण्य का विचार करते हैं, वे वैदिक पूजन की विधियों से पापहीन नहीं हो सकते । मैं बार बार सत्य कहता हूं, कि संहिता और स्मृतियों से उनकी आकांक्षा पूर्ण नहीं हो सकती। कलियुग में तंत्र मार्ग ही एकमात्र विकल्प है । यह सही है, कि वेद, पुराण, स्मृति आदि भी विश्व को किसी समय मैंने ही प्रदान किया था, परन्तु कलियुग में बुद्धिमान व्यक्ति तंत्र द्वारा ही साधना कर इच्छित लाभ पाएगा। </div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>इससे स्पष्ट होता है, कि तंत्र साधना द्वारा व्यक्ति अपने पाप पूर्ण कर्मों को नष्ट कर, भविष्य के लिए उनसे बन्धन रहित हो सकते हैं । वैसे भी व्यक्ति यदि जीवन में पूर्ण दरिद्रता युक्त जीवन जी रहा है या यदि वह किसी घातक बीमारी के चपेट में है, जो कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रही हो, तो यह समझ लेना चाहिए, कि उसके पाप आगे आ रहे है ...</div><div><br></div><div>नीचे कुछ स्थितियां स्पष्ट कर रहा हूं, जो कि व्यक्ति के पूर्व पापों के कारण जीवन में प्रवेश करती हैं -</div><div><br></div><div>१. घर में बार-बार कोई दुर्घटना होना, आग लगना, चोरी होना आदि ।</div><div>२. पुत्र या संतान का न होना, या होने पर तुरंत मर जाना ।</div><div>३. घर के सदस्यों की अकाल मृत्यु होना ।</div><div>४. जो भी योजना बनायें, उसमें हमेशा नुकसान होना ।</div><div>५. हमेशा शत्रुओं का भय होना ।</div><div>६. विवाह में अत्यंत विलम्ब होना या घर में कलह पूर्ण वातावरण, तनाव आदि ।</div><div>७. हमेशा पैसे की तंगी होना, दरिद्रतापूर्ण जीवन, बीमारी और अदालती मुकदमों में पैसा पानी की तरह बहना ।</div><div><br></div><div>ये कुछ स्थितियां हैं, जिनमें व्यक्ति जी-जान से कोशिश करने के उपरांत भी यदि उन पर नियंत्रण नहीं प्राप्त कर पाता, तो समझ लेना चाहिए, कि यह पूर्व जन्म कर्मों के दोष के कारण ही घटित हो रहा है । इसके लिये फिर उन्हें साधना का मार्ग अपनाना चाहिए, जिसके द्वारा उसके समस्त दोष नष्ट हो सकें और वह जीवन में सभी प्रकार से वैभव, शान्ति और श्रेष्ठता प्राप्त कर सके ।</div><div><br></div><div>ऐसी ही एक साधना है पापांकुशा साधना, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दोषों को - चाहे वह दरिद्रता हो, अकाल मृत्यु हो, बीमारी हो या चाहे और कुछ हो, उसे पूर्णतः समाप्त कर सकता है और अब तक के संचित पाप कर्मों को पूर्णतः नष्ट करता हुआ भविष्य के लिए भी उनके पाश से मुक्त हो जाता है, उन पर अंकुश लगा पाता है ।</div><div><br></div><div>इस साधना को संपन्न करने से व्यक्ति के जीवन में यदि ऊपर बताई गई स्थितियां होती है, तो वे स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं । वह फिर दिनों-दिन उन्नति की ओर अग्रसर होने लग जाता है, इच्छित क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है और फिर कभी भी, किसी भी प्रकार की बाधा का सामना उसे अपने जीवन में नहीं करना पड़ता। </div><div><br></div><div>यह साधना अत्याधिक उच्चकोटि की है और बहुत ही तीक्ष्ण है । चूंकि यह तंत्र साधना है, अतः इसका प्रभाव शीघ्र देखने को मिलता है| यह साधना स्वयं ब्रह्म ह्त्या के दोष से मुक्त होने के लिए एवं जनमानस में आदर्श स्थापित करने के लिए कालभैरव ने भी संपन्न की थी ... इसी से साधना की दिव्यता और तेजस्विता का अनुमान हो जाता है ....</div><div><br></div><div>यह साधना तीन दिवसीय है, इसे पापांकुशा एकादशी से या किसी भी एकादशी से प्रारम्भ करना चाहिए । इसके लिए 'समस्त पाप-दोष निवारण यंत्र' तथा 'हकीक माला' की आवश्यकता होती है ।</div><div><br></div><div>सर्वप्रथ साधक को ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान आदि से निवृत्त हो कर, सफेद धोती धारण कर, पूर्व दिशा की ओर मूंह कर बैठना चाहिए और अपने सामने नए श्वेत वस्त्र से ढके बाजोट पर 'समस्त पाप-दोष निवारण यंत्र' स्थापित कर उसका पंचोपचार पूजन संपन्न करना चाहिए। 'मैं अपने सभी पाप-दोष समर्पित करता हूं, कृपया मुझे मुक्ति दें और जीवन में सुख, लाभ, संतुष्टि प्रसन्नता आदि प्रदान करें' - ऐसा कहने के साथ यदि अन्य कोई इच्छा विशेष हो, तो उसका भी उच्चारण कर देना चाहिए । फिर 'हकीक' से निम्न मंत्र का २१ माला मंत्र जप करना चाहिए -</div><div><br></div><div>मंत्र:-</div><div><br></div><div><b>|| ॐ क्लीं ऐं पापानि शमय नाशय ॐ फट ||</b></div><div><br></div><div>यह मंत्र अत्याधिक चैत्यन्य है और साधना काल में ही साधक को अपने शरीर का ताप बदला मालूम होगा । परन्तु भयभीत न हों, क्योंकि यह तो शरीर में उत्पन्न दिव्याग्नी है, जिसके द्वारा पाप राशि भस्मीभूत हो रही है| साधना समाप्ति के पश्चात साधक को ऐसा प्रतीत होगा, कि उसका सारा शरीर किसी बहुत बोझ से मुक्त हो गया है, स्वयं को वह पूर्ण प्रसन्न एवं आनन्दित महसूस करेगा और उसका शरीर फूल की भांति हल्का महसूस होगा ।</div><div><br></div><div>जो साधक अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ना चाहते हैं, उन्हें तो यह साधना अवश्य ही संपन्न करने चाहिए, क्योंकि जब तक पाप कर्मों का क्षय नहीं हो जाता, व्यक्ति की कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो ही नहीं सकती और न ही वह समाधि अवस्था को प्राप्त कर सकता है ।</div><div><br></div><div>साधना के उपरांत यंत्र तथा माला को किसी जलाशय में अर्पित कर देना चाहिए। ऐसा करने से साधना फलीभूत होती है और व्यक्ति समस्त दोषों से मुक्त होता हुआ पूर्ण सफलता अर्जित कर, भौतिक एवं अध्यात्मिक, दोनों मार्गों में श्रेष्टता प्राप्त करता है ।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>आदेश.....</div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-88770243554631277252021-09-23T02:07:00.001+05:302021-09-23T02:07:47.054+05:30सिद्ध काला सिंदूर.(चौसठ योगिनी प्रदत्व)<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6Yxip_N2M_hw_j7TFVh5j6fa289jUKxgeHssQSZ9wrQfaZJtzAPUvjHNoaprUWbRvuTiarZiNOeL35dC1c8IHTaevBJ4nX6S964tSoLEusjdXiBY5AKU4yYhS48mWAGL7CYoSi5VxG1U/s1600/1632343047558412-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6Yxip_N2M_hw_j7TFVh5j6fa289jUKxgeHssQSZ9wrQfaZJtzAPUvjHNoaprUWbRvuTiarZiNOeL35dC1c8IHTaevBJ4nX6S964tSoLEusjdXiBY5AKU4yYhS48mWAGL7CYoSi5VxG1U/s1600/1632343047558412-0.png" width="400">
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</div><br></div><div><br></div><div>जीवन की प्रत्येक क्रिया तन्त्रोक्त क्रिया है । किसी भी वनस्पति के साथ कोई तंत्र करने पर वनस्पति तंत्र कहा जाता है,वैसे ही यह प्रकृति,यह तारा मण्डल,मनुष्य का संबंध,चरित्र,विचार,भावनाये सब कुछ तो तंत्र से ही चल रहा है,जिसे हम जीवन तंत्र कहेते है।</div><div><br></div><div>जीवन मे कोई घटना आपको सूचना देकर नहीं आति है,क्योकी सामान्य व्यक्ति मे इतना अधिक सामर्थ्य नहीं होता है की वह काल की गति को पहचान सके,भविष्य का उसको ज्ञान हो,समय चक्र उसके अधीन हो ये बाते संभव ही नहीं,इसलिये हमे तंत्र की शक्ति को समझना आवश्यक है और यह बात मैंने बहोत बार समझाया है ।</div><div><br></div><div><br></div><div>आज बात करेंगे के सिद्ध काला सिंदूर क्या है?</div><div><br></div><div><br></div><div>सिद्ध काला सिंदूर तंत्र जगत की बहुत ही दुर्लभतम वस्तु मानी जाती है । तांत्रिकों एवं काला जादू करने वालो के लिए ये उसी प्रकार है,जैसे अंधेरे में व्यक्ति को अचानक सूर्य प्रकाश मील जाय, काली और त्रिपुर सुंदरी एवं भैरव महाराज के मंत्रों के अनुष्ठान में काला सिंदूर तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण वस्तु है । 64 योगिनियो की सिद्धि या उनका यंत्र बनाने के लिए मुख्य रूप से चाहिए ।</div><div><br></div><div>सिद्ध काला सिंदूर अत्याधिक दुर्लभ होने के कारण यह आसानी से प्राप्त नही होता । गुरु कृपा ही केवलं यही पंक्ति यहां पर याद आती है,क्योंकि बिना गुरु कृपा ये प्राप्त नही हो सकता,रावण कृत उड्डीश तंत्र के अनुसार शुद्ध काला सिंदूर पूरी पृथ्वी पर केवल 16,000 किलो है । इसे प्राप्त करना अत्यंत दुर्लभ है , दस महाविद्या की किसी भी साधनाओ में अगर सिद्ध काले सिंदूर का उपयोग केवल तिलक के रूप में किया जाए तो यह ईष्ट को आकर्षण करने का कार्य करता है । मता महाकाली के एवं भैरव बाबा कि पूजन एवं सिद्धि में भी यह काला सिंदूर तिलक सहाय्यक है एवं सिद्धि की प्राप्ति में 100% सहायता हो सकती है। इससे यह सिद्ध काला सिंदूर तंत्र विद्या और काला जादू के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। सिद्ध काला सिंदूर की इतनी मान्यता है, कि अगर इसका तिलक करके कोई भी व्यक्ति अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए माँ भगवती काली को आवाहन करे तो व्यक्ति किसी भी कार्य से जाए उसमे सफलता प्राप्त होती है और यह बात बहोत से साधको ने अपने जीवन मे आजमायी हुई है । कोई अपना प्रिय बिछड़ गया हो, उसे वापस प्राप्त करना हो, उसके किसी भी कपड़े या उसके बाल युक्ति से प्राप्त कर उसपर सिद्ध कला सिंदूर लगाए एवं निम्न मंत्र का जाप करे आप का प्रिय आपको आपके घर पर आकर मिलेगा । ये सिंदूर इतना दुर्लभ है कि इसका मन्त्र भी हर किसी को नही दिया जा सकता ।</div><div><br></div><div>64 योगिनी मंदिर मुरैना के पास पाया गया है,ये पूरातत्व विभाग के अंतर्गत आता है,इस क्षेत्र के आसपास क़ई शिलालेख एवं कई तांत्रिक मंत्र पाए गए हैं,जिससे स्पष्ट है "जिसमे काला सिंदूर के विषय में इतना दुर्लभ शिला लेख है,कि इस काला सिंदूर को स्वर्ण में बदला जा सकता है"। 64 योगिनी मंदिर के आसपास इसका महत्वपूर्ण आधार है,ऐसा माना जाता है कि अधिकांश कौल तांत्रिक की उत्पत्ति यही हुई है । सामान्य धारणा यह है कि कोई भी व्यक्ति तब तक पूर्ण तांत्रिक नहीं बन सकता जब तक कि वह 64 योगिनी के सामने साधना करके माथा न टेके ।</div><div><br></div><div>अकसर यह सोचा जाता है कि तंत्र विद्या और काली शक्तियों का समय गुजर चुका है,लेकिन 64 योगिनी तंत्र आज भी यह जीवन शैली का हिस्सा है । शक्ति तांत्रिक ऐसे समय में एकांतवास से बाहर आते हैं और अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हैं । इस दौरान वे लोगों को वरदान अर्पित करने के साथ-साथ जरूरतमंदों की मदद भी करते हैं । वैसे तो 64 योगिनी मंदिर अत्यंत प्राचीन मंदिर में दिया जाने वाला प्रसाद भी दूसरें शक्तिपीठों से बिल्कुल ही अलग है। इस मंदिर में प्रसाद के रूप कभी कभार ये काला सिंदूर किसी सिद्ध तांत्रिक के द्वारा किसी बिरले को ही प्राप्त होता है और जो साधक 64 योगिनियों के मंत्र जानता हो वह इस सिंदूर को हक़ से मांगकर प्राप्त कर लेता है । कहा जाता है कि "जब योगिनियां ऋतुकाल में जाग्रत होती है,तो सफेद रंग का कपडा हर योगिनी के सामने बिछा दिया जाता है"। तब वह वस्त्र 3 दिन के बाद रज से काले रंग का होता है । इस कपड़ें को काला वस्त्र कहते है। इस वस्त्र से ये काला सिंदूर प्राप्त कर लिया जाता है । यह एक अत्यंत गोपनीय सिंदूर है,इसे ही विशेष भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है । सिद्ध काला सिन्दूर पाउडर के रूपमें जो की 64 योगिनियो के मंदिर से प्राप्त होता है । मुरैना के इस मंदिर में कुल 64 कमरे और 101 खंभे हैं, प्रत्येक कमरे में एक शिवलिंग के साथ योगिनी की मूर्ति है। इस मंदिर को इकंतेश्वर या इकोत्तरसो मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के बीच में भगवान शिव लिंग को स्थापित किया गया है।</div><p>स्थानीय लोगों के अनुसार पहले इस मंदिर में रात के समय तंत्र-मंत्र की शिक्षा दी जाती थी इस कारण से कोई इंसान आज भी रात में चौसठ योगिनी मंदिर में नहीं रहता है और इसी मंदिर से सिद्ध काला सिंदूर प्राप्त किया जा सकता है । पौराणिक कथा के अनुसार, देवी दुर्गा ने एक राक्षसो को मारने के लिए 64 देवताओं और देवी का रूप धारण कर लिया था, इसी कारण से इन चौसठ योगिनी मंदिरों, जिन्हें जोगिनियों के रूप में भी जाना जाता है इसलिए 64 मूर्ति के रूप में स्थापना की गई थी ।</p><div><br></div><div><br></div><div>* सिद्ध काला सिन्दूर से वशीकरण सम्भव है और मै यहा आज सिद्धो के आजमाये हुये प्रयोग को दे रहा हूँ ।</div><div><br></div><div>1-किसी भी अष्टमी के दिन शुभ समय पर सिद्ध काला सिन्दूर पर "ॐ ह्रीं त्रीं हूं सर्वजन वश्यय वश्यय फट" मंत्र का 50-60 मिनट तक जाप करे और सिन्दूर को संम्भाल कर रखें । जब भी किसी महत्वपूर्ण कार्य पर जाना हो तो स्वयं सिन्दूर का तिलक करके जाये तो सभी कार्यो मे सफलता प्राप्त किया जा सकता है । </div><div><br></div><div>2-अगर किसी साधना मे सफलता ना मिल रहा हो तो सिद्ध काला सिन्दूर (स्याही) से भोजपत्र पर महुआ (पेड़) के कलम से अगर नही मिले तो अनार के पेड़ की लकड़ी से जिस मंत्र को सिद्ध करना हो वह लिखे । उसका साधारण पुजन करते हुए उसको देखते हुए मंत्र का जाप करे तो मंत्र जागृति होता हैं । इस तरह से किसी भी विशेष मंत्र को सिद्ध किया जा सकता है । </div><div><br></div><div>3-मन मे कोइ मनोकामना हो जो पुर्ण नहीं हो रहा हो तो किसी नये लाल वस्त्र पर एक सुपारी रखे जो भैरव का रुप माना जायेगा और उसका किसी अमावस्या के रात्री मे पुजन करके "ॐ भं भैरवाय मम अमुक कामना शिघ्र सिद्धये ह्रीं फट" मंत्र का जाप 540 बार जाप करके सिद्ध काला सिन्दूर का सुपारी को तिलक लगायें । यह क्रिया होने के बाद सुपारी को उसी लाल कपड़े मे बांधकर उसी रात से सर के निचे रखकर सो जाये । जब तक आपका मनोकामना पुर्ण ना हो तब तक सुपारी को सर के निचे रखकर ही सोना है और मनोकामना पुर्ण होने के बाद सुपारी को लाल वस्त्र के साथ बहते हुए जल मे प्रवाहित कर देना है । इस प्रयोग से मनोवांछित सफलता पाया जा सकता है,फसा हुआ धन वापस मिल सकता है,शादी जुड़ सकता है.....इस प्रकार से बहोत सारा मनोकामना पुर्ण किया जा सकता हैं । </div><div><br></div><div>4-जिवन मे धन का अभाव हो और अच्छा पैसा कमाने के बाद घर मे पैसा टिकता ना हो तो पिले रंग के वस्त्र मे सिद्ध काला सिंदूर के साथ बेलपत्र को बांधकर तिजोरी मे रखे तो इस प्रकार के समस्या का समाधान हो सकता है । </div><div><br></div><div>5-अब महत्वपूर्ण प्रयोग जो शायद कुछ लोगो के लिये विशेष है । यह प्रयोग वशीकरण हेतु है,जब दो प्यार करने वालो के जिवन मे किसी कारण से मनमुटाव आजाये और दोनो का रिश्ता टुट जाये तो यह साधनात्मक प्रयोग जो खोये हुए प्यार को वापस जिवन मे प्राप्त किया जा सकता है । यह एक शाबर मंत्र प्रयोग होते हुए भी आसान सा प्रयोग है,इससे हम जिसे चाहते है उसको प्राप्त कर सकते है ।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><b>शाबर वशीकरण मंत्र प्रयोग:-</b></div><div><b><br></b></div><div>सिद्ध काले सिन्दूर को गुलाब जल में मीला कर स्याही बनाये शुक्ल पक्ष के शनिवार को अगर पुष्य नक्षत्र हो तो बहुत उपयोगी होगा किसी भी चौराहे से मिट्टी लेकर आये उस मिट्टी की पुतली बनाये उस पुतली पर काले सिंदूर से आँख नाक कान बनाये एवं साध्य स्त्री का नाम लिखे उसके बाद काले सिंदूर की स्याही से 1 घेरा बनाये उस घेरे में पुतली को रखे । उपरोक्त मन्त्र की 11 मालाये जपे प्रबल वशीकरण होगा । उत्तर दिशा मे मुख करके जाप करे,यह एक गोपनिय प्रयोग है-</div><div><br></div><div><br></div><div><b>मंत्र:-</b></div><div><b><br></b></div><div>।। ॐ नमो आदेश गुरु को,जंगल की योगिनी पाताल के नाग उठ गए,मेरे वीर अमुक को लाओ मेरे पास जहाँ जहाँ जाए मेरे सहाई तहां तहां आव कजभरी नजभरी अन्तासो अगरी तक नफे तक एक फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा मेरे गुरु का वचन साँचा जो न जाये वीर गुरु गोरखनाथ की दुहाई छू ।।</div><div><br></div><div><br></div><div>अब आप लोग समझ ही गये होगे की सिद्ध काला सिन्दूर को मोहिनी/वशीकरण का श्रेष्ठ माध्यम भी कहा जाता है । मैंने यहा मंत्र को आपके सामने रखा है ताकि आप सभीको लाभ हो । तांत्रिक ग्रंथो के अनुसार सिद्ध काले सिंदूर का 1 टीका किसी बच्चे को रोज लगा दिया जाए तो नजर दोष दूर हो जाता है,कोई मकान नया बना हो तो मकान पर कही भी सिद्ध काले सिंन्दूर का एक टीका नारियल के साथ किसी मटके में रख कर घर के मुख्य द्वार पर लटका दे,कभी भी घर बनाने में विलंब नही होगा । अगर केवल सिद्ध काले सिंदूर का एक टीका भी रोज लगा लिया जाए तो 9 ग्रहों के दुष्ट परिणामो से मुक्ति मिलती है,किंतु ये समझ लीजिए कि काला सिंदूर ओरिजनल होना चाहिए और शुद्ध एवं सिद्ध भी होना आवश्यक है ।</div><div><br></div><div>मुख्य रूप से काला सिंदूर एक अत्यंत दुर्लभ वस्तु है,जो सिद्ध होने के बाद आप को सफल व्यक्ति बना सकती है,इसके अलावा धरती में से स्वर्ण की खोज एवं अत्याधिक उच्च तांत्रिक क्रियाओं के लिए इस सिद्ध काले सिंदूर का प्रयोग किया जाता है ब्लॉग पर सब कुछ लिखना सम्भव नही है इसलिए यह आर्टिकल यही पर पूर्ण करता हु ।</div><div><br></div><div>सिद्ध काले सिंदूर को प्राप्त करने के लिए आपको 1850/-रुपये दक्षिणा राशि देनी होगी जो कि कामिया (कामाख्या) सिन्दूर के मुकाबले बहोत कम है । जितना फायदा कामिया सिंदूर का है, उतना ही फायदा काले सिंदूर से होता है । यहां पर सिध्द काले सिंदूर का फोटो डालने की इच्छा थी परंतु इतने गोपनीय वस्तु को सब के सामने फ़ोटो के माध्यम से दिखना मुझे सही नही लग रहा है इसलिए सिध्द काले सिंदूर को प्राप्त करके अवश्य लाभ उठाएं ।</div><div><br></div><div>सिध्द काले सिंदूर को प्राप्त करने हेतु सम्पर्क करें-</div><div><br></div><div>Calling number,</div><div>Whatsapp number,</div><div>And paytm number</div><div>+91-8421522368 .</div><div><br></div><div><br></div><div>आदेश......</div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-76948697690136942652021-09-16T02:17:00.001+05:302021-09-16T02:17:52.315+05:30अघोरी मनसाराम साधना एवं अघोर गुरुमंत्र.<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhPp75QLFp7bHOi6DdjEgM2w8G6uTfTty0MJJO0_00K5crONxzwJw9MSwhNlUKP2Yu42QBJxIU1-kx6KrOnszUPOvytOQ5zGxdUtDdpRHeoYpUwqU4lUo6ck7tjktQtISe8e6z_lMiiWrc/s1600/1631738862600997-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div><div>अघोरी साधना का नाम सुनकर लोगों के मन में या तो भय व्याप्त होता है या उनके मन में एक नार्किक मलीन साधना के बारे में मानसिक दृष्य चलने लगता है।</div><div><br></div><div>ये बात प्रमाणित है कि मनुष्य की समाज में प्रतिष्ठा उसे व्यवहार या संस्कार से नही अपितु उसके धन वैभव से ही होती है सभके जीवन में ईश्वर एक न एक बार समृद्ध होने का अवसर देता है लेकिन कई बार आदमी खुद गलती करता है यो कई बार अपने स्नेही जनों के कारण किसी मुसीबत में पड़ता है और भी बहुत सारी धन वैभव प्राप्त करने की साधनायें है, जो शास्त्रों में विधिवत रूप से वर्णित है लेकिन ये समय बहुत तीव्रता से चलता है समय कम होने के कारण अक्सर सभी शास्त्रीक साधनायें मर्यादित और विधिवत न होने के कारण फलित नही होती ।</div><div><br></div><div>बहुत सारी मुस्लिम साधनायें भी होती है उनमें बहुत सख़्त नियम और बहुत गहन मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है और कई बार उन साधनाओं को कई कई बार दोहराना पड़ता है जिससे बिना मार्गदर्शन और धैर्य के मनुष्य का अमूल्य समय नष्ट होता है और साधना कभी फलित नही होती।</div><div>मेरे जीवन में ऐसे बहुत से साधकों से संपर्क हुआ जिनका जीवन धन के अभाव में या भूत प्रेत बाधा के कारण अंत होने के कगार पर था एक अघोरी साधना जिसका कोई भी साधक आज तक निराश नही हुआ हा कई बार आदमी के परिश्रम या भावना में ही कोई कमी रह जाती है।</div><div><br></div><div>वरना इस साधना से साधक का जीवन अवश्य परिवर्तित होता है और साधक समृद्धि की तरफ अग्रसर होता ही है।</div><div><br></div><div>अब कोई बोले कि मुझे रातों रात में करोड़पति बनना है तो वो कोरे झूठ के इलावा कुछ नही होगा । साधना करने के बाद आपको आभा मण्डल असमान्य रूप से विकसित हो चुका होता है,अगर आप साधनाकाल पूरा होने तक प्रतीक्षा नही कर सकते तो ये वही बात होगी कि बिल्ली दही ना जमने दे,उतनी प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ेगी ही पड़ेगी ।</div><div><br></div><div>एक मिनट में जिन्न दो मिनट में परी सिद्ध करने वाले के बारे में क्या बोला जाए। सुनकर ही हंसी आती है कि जो संभव नहीं है झूठ बोलने वाले किस तरह डींगें मारते हैं,लेकिन सच सामने आने में समय नही लगता ये बात बिल्कुल सही है ।</div><div><br></div><div>असल बात ये है कि अगर आप नए साधक हो तो पहली बार गलती करोगे ही करोगे । बस उसी चक्कर में बहुत सारे नए साधक उलझ जाते है और एक बार भ्रमित अवश्य होंगे और जब होश आएगा तब बहुत ज्यादा समय बर्बाद हो गया होगा।</div><div><br></div><div>अघोरी साधना एक बहुत ही आधिक प्रचंड शक्तिशाली उग्र तामसिक साधना है,अघोरी साधना इसको करने से कोई भी इच्छा पूरी ना हो ये हो नही सकता । अघोरी साधनाये कभी भी व्यर्थ नही जाती है परंतु बिना गुरु के मार्गदर्शन ऐसी साधनाये भी कभी कभी विफल हो जाती है । इस साधना को गृहस्थ और सन्यासी सभी कर सकते हैं। किसी तरह के खाने पीने का कोई परहेज़ नही है।</div><div><br></div><div>ये साधना आपको तब करनी चाहिए जब आप के जीवन में रुकावटें खत्म होने का नाम नही लेती एक से एक समस्या आपके जीवन में आती ही रहती है और धंदे व्यापार में से कोई लाभ नही मिलता । अगर पूरी तरह कंगाली भी आ गयी हो खाने के लाले पड़ गए हों तो ये साधना आपके जीवन को सम्पन्नता को और अग्रसर करती है।</div><div><br></div><div><br></div><div>मैं यहाँ पर आपको मनसाराम अघोरी बाबा का एक मन्त्र उसके नियम और विधि देने जा रहा हूं जिसको करने से बहोत सारे साधकों का किसी ना किसी तरह से फायदा हुआ ही हुआ है।</div><div><br></div><div>ये जाने अगर आप बिलकुल नए साधक है तो कुछ चीजों का किसी विद्वान जानकार पता लगा लें कि आपके ग्राम देवी, ग्राम देवता,कुलदेवी,कुलदेवता,इष्ट और पित्र किसी तरह से नाराज तो नही हैं, क्या जीवन में कोई भूल या कोई गलती तो नही हुई या किसी का कोई भोग देना तो नही रहता है। या आपके घर में किसी अनजानी शक्ति जिस का आपको पता न हो वास तो नही। ये अनजान शक्तियां आपका फायदा और नुकसान दोनों तरह का काम कर सकती है।</div><div><br></div><div>ये साधना 41 दिनों की है। खाने पीने का कोई परहेज नहीं है,अपितु जो भी खाओ पीओ पहले अघोरी बाबा को भोग लगाओ ताकि जल्दी सफलता मिले । हां ब्रह्मचर्य व्रत का पालन सख्ती से करें , जिनको स्वप्नदोष की समस्या है उनको पहले शमसान की साधना करनी चाहिए, क्योंकि जलते हुए मसान के सामने खड़े होने से ये दोष धीरे धीरे समाप्त हो जाता है।</div><div><br></div><div>प्रथम दिन साधना को शुरू करने से पहले एक बार अपने इष्ट पित्र को भोग दे, फिर हाथ में जल लेकर मनोकामना स्मरण करें और संकल्प लें। सिर पर काला पटका बांधे और कपड़े काले पहनने है।</div><div>भोजन जितनी बार भी करो लेकिन पहला ग्रास अघोरी को समर्पित करना होगा।</div><div><br></div><div><br></div><div>जिस दिन जाप शुरू करना हो उस दिन शमशान मैं या चौराहे पर जाकर आपको एक बोतल शराब एक पताशा पांच लड्डू लौंग का जोड़ा एक इलायची ग्यारह सफेद गुलाब के फूल अघोरी मंसाराम के नाम से दें और वहाँ से थोड़ी सी मिट्टी किसी कागज में डालकर अपने साथ ले लें।</div><div><br></div><div><br></div><div>साधना स्थल का चुनाव करने के बाद आपको दक्षिण दिशा छोड़कर किसी भी दिशा में मुँह कर सकते हैं। भोग में देसी या अंग्रेजी शराब देना है। सफेद मिठाई, सफेद फूल,चंदन की अगरबत्तियां लगानी है और गुग्गल की धूनी देनी है । साधना काल में एक सरसों के टेलनक दीया जलता रहे। कंम्बल का आसन लगाएं। इस साधना को आप श्मशान चौराहे खाली मैदान या घर की खाली छत पर कर सकते है,लेकिन भोग आपको श्मशान घाट,किसी चौराहे,किसी पीपल या वट वृक्ष के नीचे ही देना है । जल पात्र अवश्य अपने पास में रखें जाप के बाद वो जल दूसरे दिन सुबह किसी पेड़ में डाल दें।</div><div>5 माला रोज़ जाप करें तो बहुत अद्धभुत होगा आपको ज्यादा से ज्यादा एक हफ्ते में परिणाम मिलने लगेंगे,किसी किसी साधक को ऐसा भी हो सकता है अघोरी वीर परीक्षा लें अक्सर ऐसा नहीं होता उस अवस्था में साधक को धैर्य से काम लेना चाहिए। इस साधना को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>मन्त्र:-</div><div><br></div><div>।।ॐ नमो आदेश गुरु को,मनसाराम मरघट बसे खप्पर में पिये मद कस प्याला फिर मेरा कारज सिद्ध करे तो पूजूँ औघड़वीर ना सिद्ध करो तो गौरा महादेव पार्वती की दुहाई,चले मन्त्र औघड़ी वाचा देखूं औघड़वीर मनसाराम तेरे शब्द का तमाशा मेरे लिये चल मेरा कारज करने चल ना चले तो कालभैरव की लाख लाख दुहाई फिरै छू ।।</div><div><br></div><div><br></div><div>ये प्रामाणिक मंत्र है अन्य किसी के भी आर्टिकल में देखने नही मिलेगा, कुछ लोगो ने इस विषय पर अधूरा लिखा है और गलत मंत्र दिया है परंतु आज आपको सही मंत्र दिया जा रहा है ।<br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>अघोर गुरु मंत्र</div><div><br></div><div>।। घोर घोर अघोर का चेला मद मे मस्त रमता मुर्दे के भस्म को चलाता महाकाल को पुजे मसान को पुजे गुरु के चरणों को पूजे गुरुकृपा से सब कारज सिद्ध करे इतनी शक्ति औघड़ के शिष्य को वचन में मीले ना मिले तो ****** गुरुमुख औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र सच्चा चले छू ।।</div><div><br></div><div><br></div><div>संसार का कोई भी अघोरी साधना करो परन्तु उससे पहिले औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र जाप करो,इससे सभी साधनाओ में सफलता मिलता है । इस गुरुमंत्र को कान में 3 बार बोलकर फुंक लगाकर दिया जाता है और मंत्र देने से पहिले मशान में एक देसी मुर्गा,शराब की बड़ी बॉटल, पान के पत्ते पर कत्था चुना लौंग इलायची सुपारी काले वस्त्र पर रखकर देना पड़ता है । गुरुमंत्र को देने के लिए लगने वाला सामान का खर्चा 1800/-रुपये के आस पास आता है और 101 रुपये दक्षिणा को पकड़कर 1900/-रुपये लिया जाएगा,अब जिन्हें बिना औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र जाप किये साधना करनी है वो कर सकते है और जिन्हें औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र प्राप्त करके साधना करनी हो वो भी कर सकते है ।</div><div><br></div><div>यह साधना निशुल्क है परंतु जिन्हें औघड़ अघोरी बाबा का गुरुमंत्र चाहिए उन्हें खर्चा करना पड़ेगा ।</div><div>आगे आपकी मर्जी.....भगवती सभी को सफलता प्रदान करे यही प्रार्थना है ।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>आदेश......</div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-32063498842298572072021-09-01T01:32:00.004+05:302021-09-02T02:30:06.435+05:30पितृदोष निवारण शाबर मंत्र (pitru dosh nivaran shabar mantra)<p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnFwdKZRN5wbbzdMBGOz4e5QkxhrtSLPSGlys3JSaCCbgMnWpjkQn0FEaj8KpQ-l_1UCbva19mROhVXnP7yqJVmj2J9MkD4OH7uCXrY2XhmDNoHliCCq5Z5gRHB3toT0PG8ohN0-f08BQ/s1600/1630530000260661-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnFwdKZRN5wbbzdMBGOz4e5QkxhrtSLPSGlys3JSaCCbgMnWpjkQn0FEaj8KpQ-l_1UCbva19mROhVXnP7yqJVmj2J9MkD4OH7uCXrY2XhmDNoHliCCq5Z5gRHB3toT0PG8ohN0-f08BQ/s1600/1630530000260661-0.png" width="400">
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</div><br></p><p><br></p><p>हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं,जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं । इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं । भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं।</p><p><br></p><p>भारतीय संस्कृति के अनुसार प्रेत योनि के समकक्ष एक और योनि है जो एक प्रकार से प्रेत योनि ही है, लेकिन प्रेत योनि से थोड़ा विशिष्ट होने के कारण उसे प्रेत न कहकर पितृ योनि कहते हैं । प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों की मृतात्माएं पितृ योनि की आत्माएं कहलाती है । इसीलिए प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों को पितृ लोक की संज्ञा दी गयी है।</p><p><br></p><p>भारतीय ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है । अतः जब जन्मकुंडली में सूर्य या मंगल, पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण होता है । पितृ दोष वाली कुंडली में समझा जाता है कि जातक अपने पूर्व जन्म में भी पितृदोष से युक्त था । प्रारब्धवश वर्तमान समय में भी जातक पितृदोष से युक्त है ।</p><p>जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है । यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैं, बहुत खराब हो सकते हैं, मिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है । सब कुछ होते भी व्यक्ति दुखी होता है ।</p><p>इसका क्या कारण हो सकता है? कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब वह ज्योतिषीय सलाह लेता है । तब उसे पता चलता है कि उसकी कुण्डली में पितृ-दोष बन रहा है और इसी कारण वह परेशान है ।</p><p>बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं । जिनमें पितृ दोष, मातृ दोष, भ्रातृ दोष, मातुल दोष, प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है । इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है, पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं । उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं :-</p><p><br></p><p>जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है. इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है ।</p><p>सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है.किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है । </p><p><br></p><p>यदि समय रहते ही इस दोष के शाबर मंत्र का जाप कर लिया जाये तो पितृदोष से मुक्ति मिल सकती है। पितृदोष वाले जातक के जीवन में सामान्यतः निम्न प्रकार की घटनाएं या लक्षण दिखायी दे सकते हैं ।</p><p><br></p><p>1. यदि राजकीय/प्राइवेट सेवा में कार्यरत हैं तो उन्हें अपने अधिकारियों के कोप का सामना करना पड़ता है । व्यापार करते हैं, तो टैक्स आदि मुकदमे झेलने होंगे, सम्मान की बर्बादी होगी ।</p><p>2. मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है । पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता।</p><p>3. जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं।</p><p>4. जीवन के अंतिक समय में जातक का पिता बीमार रहता है या स्वयं को ऐसी बीमारी होती है जिसका पता नहीं चल पाता।</p><p>5. विवाह व शिक्षा में बाधाओं के साथ वैवाहिक जीवन अस्थिर सा बना रहता है।</p><p>6. वंश वृद्धि में अवरोध दिखायी पड़ते हैं। काफी प्रयास के बाद भी पुत्र/पुत्री का सुख नहीं होगा।</p><p>7. गर्भपात की स्थिति पैदा होती है।</p><p>8. अत्मबल में कमी रहती है। स्वयं निर्णय लेने में परेशानी होती है। वस्तुतः लोगों से अधिक सलाह लेनी पड़ती है।</p><p>9. परीक्षा एवं साक्षात्मार में असफलता मिलती है।</p><p><br></p><p><br></p><p>पितृदोष ऐसे भी पहचान सकते है:-</p><p>पेट के रोग, दिमागी रोग, पागलपन, खाजखुजली ,भूत -चुडैल का शरीर में प्रवेश, बिना बात के ही झूमना, नशे की आदत लगना, गलत स्त्रियों या पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनाकर विभिन्न प्रकार के रोग लगा लेना, शराब और शबाब के चक्कर में अपने को बरबाद कर लेना,लगातार टीवी और मनोरंजन के साधनों में अपना मन लगाकर बैठना, होरर शो देखने की आदत होना, भूत प्रेत और रूहानी ताकतों के लिये जादू या शमशानी काम करना, नेट पर बैठ कर बेकार की स्त्रियों और पुरुषों के साथ चैटिंग करना और दिमाग खराब करते रहना, कृत्रिम साधनो से अपने शरीर के सूर्य यानी वीर्य को झाडते रहना, शरीर के अन्दर अति कामुकता के चलते लगातार यौन सम्बन्धों को बनाते रहना और बाद में वीर्य के समाप्त होने पर या स्त्रियों में रज के खत्म होने पर टीबी तपेदिक फ़ेफ़डों की बीमारियां लगाकर जीवन को खत्म करने के उपाय करना, शरीर की नशें काटकर उनसे खून निकाल कर अपने खून रूपी मंगल को समाप्त कर जीवन को समाप्त करना, ड्र्ग लेने की आदत डाल लेना, नींद नही आना, शरीर में चींटियों के रेंगने का अहसास होना,गाली देने की आदत पड जाना,सडक पर गाडी आदि चलाते वक्त अपना पौरुष दिखाना या कलाबाजी दिखाने के चक्कर में शरीर को तोड लेना, जैसे गाडीबाजी,पहलवानी, शर्त लगाना ...आदि ।</p><p><br></p><p>पितृदोष निवारण शाबर मंत्र पितृदोष को समाप्त करने हेतु एक तीव्र प्रभावशाली मंत्र है,यह मंत्र गुरु गोरखनाथ जी का है और इस मंत्र को कई बार आजमाया गया है । इस मंत्र का असर शीघ्र देखने मिल जाता है,चाहे जीवन मे कितना भी भयंकर पितृदोष हो इस एक मंत्र से दोष समाप्त किया जा सकता है । इस मंत्र में साधक का पितृदोष स्वयं गुरु गोरखनाथ जी समाप्त करते है,अभी पितृपक्ष आनेवाला है और पितृपक्ष में जाप करे तो अच्छा फल मिलता है अन्यथा किसी भी अमावस्या से यह साधना की जा सकती है ।</p><p>यह साधना मात्र 3 दिनों की है, रोज इसमें 108 बार ही मंत्र जाप करना है,साधना का पूर्ण जानकारी व्हाट्सएप पर दिया जाएगा ।</p><p>पितृदोष निवारण शाबर मंत्र और पूर्ण विधि विधान सशुल्क है,इसमे 501 रुपये दक्षिणा ली जाएगी क्योके निशुल्क मंत्र और विधान का आज के समय मे किसीको भी महत्व नही रहा है ।</p><p><br></p><p>इसलिए जो साधक दक्षिणा देने में समर्थ हो वही साधक संपर्क करे,दक्षिणा की राशि हमारे प्यारे किसानो को लिये मदत हेतु इस्तेमाल होगी ।</p><p><br></p><p>मोबाइल नम्बर</p><p>व्हाट्सएप नम्बर</p><p>पेटीयम नम्बर</p><p>8421522368</p><p><br></p><p><br></p><p>आदेश......</p>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-38640779728579749222021-06-08T03:50:00.001+05:302021-06-08T03:51:39.634+05:30शोभना यक्षिणी शाबर मंत्र साधना.<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKUotj2C4DXKq7KDpyABvkvL3D3gO0762N4GDpWiBd-oXFcqQ8-pehrbxQ_2-HgR6Pg5t5ccBHsw4zgsHFlUamDt2Dr6ct68PCumIlFpFJ3bcWIpBbblmnVd98G7iBn_W4iZLydea5XsI/s630/SAVE_20210608_034501.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="354" data-original-width="630" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKUotj2C4DXKq7KDpyABvkvL3D3gO0762N4GDpWiBd-oXFcqQ8-pehrbxQ_2-HgR6Pg5t5ccBHsw4zgsHFlUamDt2Dr6ct68PCumIlFpFJ3bcWIpBbblmnVd98G7iBn_W4iZLydea5XsI/s320/SAVE_20210608_034501.jpg" width="320" /></a></div><br /><p><br /></p><p>कोरोना के वजह से मैंने ब्लॉग पर कोई आर्टिकल नही लिखा,आप सभी साधक साधिकाएं ठीक होंगे ऐसी आशा करता हु,माँ भगवती की कृपा से मैं भी ठीक हु। सम्पूर्ण जग में महामारी फैली हुई है और ऐसे समय मे ब्लॉग लिखना मुझे ठीक नही लगा परंतु अब यह महामारी कंट्रोल में है इसलिए आप सभी के लिए यह अदभुत साधना दे रहे है ।</p><p><br /></p><p>यक्षिणी एक सौम्य और दैविक शक्ति होती है देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नम्बर आता है,हमारे भारतीय पौराणिक ग्रंथो में बहुत सारी प्रमुख रहस्यमयी जातियो का वर्णन मिलता है । जैसे कि देव गंधर्व ,यक्ष, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, ,भल्ल, किरात, नाग आदि यक्षिणी भी इन रहस्यमय शक्तियो के अंतर्गत आती है । देवताओं के कोषाध्यक्ष महर्षि पुलस्त्य पौत्र विश्रवा पुत्र कुबेर भी यक्ष जाती के हैं । जैसे कि देवताओं के राजा इंद्र है वैसे ही यक्ष यक्षिणी का राजा कुबेर है,कुबेर को यक्षराज बोला जाता है यक्ष यक्षिणीया कुबेर के आधीन होती है।</p><p><br /></p><p>कुछ साधको के मन शंकाऐं होती है कि यह किस रूप मे सिद्ध होती है? कुछ लोगों की धारणा यह सिर्फ प्रेमिका रूप में सिद्ध की जा सकती है,जो कि बिलकुल गलत है,साधक इच्छा अनुसार किसी भी रूप सिद्ध कर सकता है । इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है, यक्षिणियों की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है ये उसी प्रकारका व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, माँ के रूप में साधने पर वह ममतामयी होकर साधक का सभी प्रकार से पुत्रवत पालन करती हैं तो बहन के रूप में साधने पर वह भावनामय होकर सहयोगात्मक होती हैं, ओर पत्नी या प्रेमिकाके रूप में साधने पर उस साधक को उनसे अनेक सुख तो प्राप्त हो सकते हैं किन्तु उसे अपनी पत्नी व संतान से दूर हो जाना पड़ता है । उड्डीश तंत्र में जिक्र मिलता है कि इस को किसी भी रूप मे सिद्ध किया जा सकता है ।</p><p><br /></p><p>सर्वासां यक्षिणीना तु ध्यानं कुर्यात् समाहितः ।</p><p>भविनो मातृ पुत्री स्त्री रुपन्तुल्यं यथेप्सितम् ॥</p><p><br /></p><p>तन्त्र साधक को अपनी इच्छा के अनुसार बहन , माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के समान मानकर यक्षिणियों के स्वरुप में साधना अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । कार्य में तनिक – सी भी असावधानी हो जाने से सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती ।</p><p><br /></p><p>इस श्लोक से उपरोक्त बात स्पष्ट होती है कि आप इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है ।</p><p><br /></p><p>हमारे प्राचीन भारतीय ग्रंथो में बहुत सारे लोको का वर्णन मिलता है इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी देवता हैं जो इन लोकों में रहते हैं । पृथ्वी से इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है नजदीकि लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण कि यक्ष, अप्सरा, किन्नरी आदि की साधना जल्दी पूरी होती है, क्योंकि इनके लोक पृथ्वी से पास हैं।</p><p><br /></p><p><span style="font-family: arial;"><b>साधनात्मक नियम</b></span></p><p><br /></p><p>भोज्यं निरामिष चान्नं वर्ज्य ताम्बूल भक्षणम् ॥</p><p>उपविश्य जपादौ च प्रातः स्नात्वा न संस्पृशेत् ॥</p><p><br /></p><p>यक्षिणी साधन में निरामिष अर्थात् मांस तथा पान का भोजन सर्वथा निषेध है अर्थात् वर्जित है । अपने नित्य कर्म में , प्रातः काल स्नान आदि करके ऊनी आसन पर बैठकर फिर किसी को स्पर्श न करें । न ही जप और पूजन के बीच में किसी से बात करें ।</p><p><br /></p><p>नित्यकृत्यं च कृत्वा तु स्थाने निर्जनिके जपेत् ।</p><p>यावत् प्रत्यक्षतां यान्ति यक्षिण्यो वाञ्छितप्रदाः ॥</p><p><br /></p><p>अपना नित्यकर्म करने के पश्चात् निर्जन स्थान में इसका जप करना चाहिए । तब तक जप करें , जब तक मनवांछित फल देने वाली ( यक्षिणी ) प्रत्यक्ष न हो । क्रम टूटने पर सिद्धि में बाधा पड़ती है । अतः इसे पूर्ण सावधानी तथा बिना किसी को बताए करें ।</p><p><br /></p><p><b>शोभना यक्षिणी साधना-</b></p><p>आप इस साधना को घर पर ही सिद्ध कर सकते हैं यह जितनी सरल साधना उतनी ही प्रभावकारी भी हैं । शोभना यक्षिणी का रूप शांतिमय तेजस्विता से पूरण अत्यंत ही ख़ूबसूरत और यौवन आकर्षण से परिपूर्ण होती है। अगर वृद्धि व्यक्ति इस साधना करें एक युवक की तरह यौवनवान हो जाएगा । साधक काल के दिनो में साधक के शरीर जोश और चेहरे के उपर लालीमा और तेज आ जाता है । दिव्य आकर्षण शक्ति प्राप्त होती शत्रु के मन में आप के प्रति आदर भाव पैदा होता है अगर शादी शुदा हो पती पत्नी के रिश्ते में मधुरता आ जाती है । संसार में मान सम्मान की प्राप्ती होती है । साधना के दिनो में आप यह बदलाव महसूस करोगे । हर वह साधक जो साधना क्षेत्र में आगे नया है लेकिन तंत्र मंत्र साधना में आगे बढ़ना चाहता वह साधक शोभना से शुरुआत करनी चाहिए वैसे यह साधना हरेक के लिए है । प्रत्येक मनुष्य इस साधना को कर सकता है स्त्री पुरूष कर सकता है । अगर स्त्री करे तो अपार सुंदरता की प्राप्ती होती है।</p><p><br /></p><p><b>साधना विधी – </b>साधना में लाल आसन और लाल माला रक्त चंदन की लकड़ी की होनी चाहिए,साधक खुद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए । साधना वाले कमरे को पहले अच्छे तरह से साफ करे दूध से धोकर इत्र का पोचा लगाए । लाला रंग के आसन पर गंगा जल छिटकाव करना चाहिए । फिर वातावरण को सुगंधित करने के लिए गूगल की धूप जलाए । यक्षिणी मंत्र का 1 माला जप करे 41 दिन तक करे । साधक को साधना के दिनो में यक्षिणी के दर्शन हो पास आकर बैठ जाए बोले नहीं देवी को दूर से प्रणाम करें बिना पने आसन से उठे जप करते रहें ।</p><p><br /></p><p><b>मंत्र</b></p><p><br /></p><p>।। ॐ नमो आदेश गुरु को जगमगाती नगरी अलकापुरी निवासिनी शोभना यक्षिणी आवो आवो जागृत होकर दर्शन दो मेरा इच्छीत कार्य सिध्द करो ना करो तो यक्षराज के सेज पर सजो ************ की दुहाई मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा छू ।।</p><p><br /></p><p><br /></p><p>शोभना यक्षिणी साधक इच्छा अनुसार भोग विलास भी करती है ।</p><p><br /></p><p>साधक त्रिकाल प्रदान करती है भूत भविष्य वर्तमान की जानकारी भी प्रदान करती है ।</p><p><br /></p><p>ईस साधना से साधक को यौवन शक्ति और सौदर्य की प्राप्ति होती है जिससे के साधक स्त्री और पुरुष सभी आकर्षित रहते ।</p><p><br /></p><p>यक्षिणी साधक संसार शोभा और मान सम्मान दिलाती है इस लिए इस को शोभना यक्षिणी कहते है ।</p><p><br /></p><p>पूर्ण मंत्र प्राप्त करने हेतू संपर्क करे,यहां दिया हुआ अधूरा मंत्र व्हाट्सएप पर पूरा दिया जाएगा,गोपनीय मंत्र है इसलिए ऐसे ही ब्लॉग पर देना संभव नही है । मंत्र निःशुल्क दिया जाएगा और मार्गदर्शन भी किया जायेगा ।</p><p>मोबाईल और व्हाट्सएप नम्बर-8421522368</p><p><br /></p><p>आदेश.....</p><p><br /></p>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-28799933996410097732021-02-05T00:41:00.004+05:302021-05-14T03:45:08.293+05:30भूत वार्तालाप यंत्र (Ghost conversation Yantra)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8GgTrPj4cOxRebcn9uI28N4Y607puKYmvmqfJHB_UubkNcmyrbAi-JXt6AXaTtESZukyQL_kgea9dZOVatv0Uq1J-AF5BDI3ndQNdNJIo19sAKpEedbsaPkYIBSJJ5RXH27ADAUwmggU/s1080/PicsArt_02-05-12.53.51.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8GgTrPj4cOxRebcn9uI28N4Y607puKYmvmqfJHB_UubkNcmyrbAi-JXt6AXaTtESZukyQL_kgea9dZOVatv0Uq1J-AF5BDI3ndQNdNJIo19sAKpEedbsaPkYIBSJJ5RXH27ADAUwmggU/s320/PicsArt_02-05-12.53.51.jpg" /></a></div><br /><div><br /></div><div>आज हम बात करेंगे एक विशेष विद्या के बारे में जिसे यंत्र विद्या कहा गया है,यंत्र विद्या तंत्र की एक सर्वश्रेष्ठ विद्या है । प्रत्येक तंत्र साधना में यंत्र का अत्याधिक महत्व है,बहुत से साधक पूछते हैं के भूत सिद्धि किस माध्यम से हो सकती है । भूत सिद्धि कोई साधारण सिद्धि नहीं है, जब हनुमान जी भगवान श्री राम जी का पता ढूंढ रहे थे तब वह श्री तुलसीदास जी से मिले और उनसे पूछा कि मुझे प्रभु श्री राम जी के दर्शन कैसे हो सकते हैं,तो श्री तुलसीदास जी महाराज ने कहा था यहां से भूत जाता है, वह जानता है के भगवान श्री राम कहा मिल सकते हैं और हनुमान जी ने भूत से पूछा फिर भूत के माध्यम से उन्हें भगवान श्री राम जी का पता लगाया । यह कहानी मैं बचपन से सुनते आरहा हु तबसे मुझे भूत साधना में अत्यधिक रुचि है । इसलिए आज हम ऐसे यंत्र के बारे में बात करेंगे जिस यंत्र के माध्यम से आप किसी भी आत्मा से मतलब एक ऐसी आत्मा से जो भूत योनि में हो उससे स्वप्न में किसी भी प्रकार का प्रश्न पूछ सकते हैं । भूत के माध्यम से प्रश्न का जवाब प्राप्त कर सकते है, प्रश्न कुछ भी हो सकता है, कोई भी हो सकता है, क्योंकि इंसान के दिमाग में हजारों हजारों प्रश्न होते हैं और इन प्रश्नों का जवाब प्राप्त करना किसी भी इंसान के जीवन में महत्वपूर्ण विषय है ।</div><div><br /></div><div>मैंने 7 वर्षो पहिले तांत्रिक अल्कानंदा जी से इस विषय पर गहन चर्चा की थी,तांत्रिक अल्कानंदा जी एक महिला है और उन्होंने तंत्र साधनाओ में बहोत सारे विषयों पर सटीक ज्ञान प्राप्त किया है । उन्होंने मुझे कुछ यंत्रो का ज्ञान प्रदान किया था जिसमे उन्होंने मुझे "भूत योनि वार्तालाप यंत्र" के बारे बताया था । इस यंत्र के निर्माण कार्य हेतु साधक का नाम और उनके जन्म तारीख का महत्व है । नाम और जन्म तारीख से अंक गणित करके हमे उस यंत्र का पता चलता है जिससे हम जिस भुत से वार्तालाप करना हो कर सकते है और हमारे प्रश्नों के जवाब उनसे प्राप्त कर सकते है ।</div><div><br /></div><div>मैंने 2-3 बार सट्टे का नम्बर भुत से प्राप्त किया था और वही नम्बर सट्टे में आया था परंतु मैंने उस नम्बर पर पैसा नही लगाया क्योके मुझे ऐसे मार्ग से प्राप्त धन की आवश्यकता नही लगी । इस तरह से मैंने बहोत सारे भूतों से बहोत से सवाल पूछे है जिनका जवाब मुझे पूर्णतः सत्य मिला है । इस यंत्र विद्या के बारे में आज पहिली बार लिखने का मन किया और यह 2021 का मेरा आपके लिए पहिला आर्टिकल है,इस आर्टिकल को लिखने से पूर्व मैंने कल यंत्र का अनुभव प्राप्त किया जिसका परिणाम मुझे सटीक मिला,इसलिए आज यह आर्टिकल लिख रहा हु ।<br /></div><div><br /></div><div>बहोत आसान सा क्रिया है,इस यंत्र को बनाने के लिए आपका नाम आपके पिताजी का नाम और जन्म तारिख की आवश्यकता पड़ेगी,उसके बाद अंक गणित के माध्यम से आपको यंत्र बनाकर व्हाट्सएप पर यंत्र का फोटो भेज देंगे । जैसा यंत्र फ़ोटो में है वैसा ही आपको किसी भी रंग के पेन से सफेद कागज पर बनाना है । आपको इस मे एक दिन में यंत्र को 7 बार बनाना है और 6 दिनों तक रोज एक यंत्र को अग्नि में जलाना है । 7 वे दिन यंत्र के नीचे मृत व्यक्ति का नाम और अपना सवाल लिखना है,सवाल वही लिखे जिसका आपको भूत से जवाब चाहिए,फिर यंत्र को तकिए के नीचे एवं गद्दी के नीचे रखकर रात में सो जाना है । रात्रि में स्वप्न में जिस मृत व्यक्ति का नाम लिखा था उनके दर्शन होंगे और वह भूत आपको आपके सवाल का जवाब देंगा । इसमें किसी भी प्रकार से डरने की कोई आवश्यकता नही है,भूत आपको परेशान नही कारेंगा और इसमें सुरक्षा की कोई आवश्यकता भी नही है ।<br /></div><div><br /></div><div><div>इस यंत्र को प्राप्त करने के लिए व्हाट्सएप पर सम्पर्क कीजिए या फिर फोन कीजिए, यह यंत्र सशुल्क है,इसकी आपको 1100/-रुपये दक्षिणा देनी होंगी । आप चाहे तो बैंक एकाउंट में धनराशि जमा करवा सकते है या फिर paytm के माध्यम से भी धनराशि दे सकते है ।</div><div><br /></div><div>इस यंत्र के माध्यम से आप कोई भी सवाल का जवाब मृत आत्मा मतलब भूतों से प्राप्त कर सकते है ।</div></div><div><br /></div><div>साधना में अगर आप असफल होते है तो इसकी जिम्मेदारी हमारी नही है और इस पर किसी भी प्रकार का वाद विवाद स्वीकार नही है,क्योके प्रत्येक व्यक्ति सफल होगा ऐसा दावा करना गलत है । इसलिए अपनी समझदारी और ज्ञान को महत्व देते हुए दक्षिणा दे अन्यथा आप पाँच पीपल के पौधे लगाकर मुझे उनके फ़ोटो व्हाट्सएप पर भेजिए तो यंत्र आपको निःशुल्क में दिया जाएगा । आपके दक्षिणा से ज्यादा महत्व हमारे देश मे पौधे लगाना है ताकि हमारा देश हरा भरा रहे और ऑक्सिजन की देश मे कोई कमी ना हो । इस आर्टिकल को मैंने पैसे कमाने हेतु नही लिखा है,यह आर्टिकल आप सभी लोग पौधे लगाए इसलिए लिखा है और जो व्यक्ति पौधे लगाने की क्षमता ना रखते हो वही लोग मुझे दक्षिणा प्रदान कर सकते है ।मैं चाहता हु के हमारे देश मे ज्यादा से ज्यादा लोग पेड़-पौधे लगाए और इस देश को स्वर्ग से भी ज्यादा सुंदर बनाये । जिन्हें आस्था हो वही लोग मुझसे किंतु परंतु ना करते हुए यंत्र का चित्र प्राप्त करे और जिन्हें यह अंधश्रद्धा लगता हो वह व्यक्ति इस आर्टिकल को पढ़कर आकर्षित ना हो,अपने जीवन के मुख्य कामो पर ध्यान दे । आपके जीवन के मुख्य कार्यो पर आपके ध्यान देने का आपको ही फायदा होगा और मेरा भी समय बचेगा ताकि मैं भी अपने जीवन के मुख्य कार्यो पर ध्यान दे सकू । मंत्र तंत्र यंत्र में सफलता प्राप्त करना हर किसीके बस की बात नही है और जिन्हें सफलता प्राप्त होती है वह लोग जीवन मे अपने अनुभव बता भी सकते है साथ ही लिख भी सकते है । अपनी मूर्खता का प्रदर्शन ना करते हुए उचित समझ से इस प्रकार का यंत्र प्राप्त करे क्योके हिन्दू-मुस्लिम धर्म मे हजारों यंत्र दिए हुए है,जिनका लाभ कुछ ही लोग प्राप्त करने में सफल होते है । मैं आपको लालच दे रहा हु इस यंत्र के माध्यम से ताकि आप लोग अपने जीवन मे पीपल-बरगद-नीम.....या अन्य कोई भी पौधा लगा सके जो भविष्य में एक विशाल वृक्ष बनेगा । मेरा यह कार्य मानवजाति हेतु महत्वपूर्ण रहे ऐसा ही मैं माँ भगवती से प्रार्थना करता हु.....</div><div><br /></div><div>Calling, Whatsapp and Paytm number -</div><div>+91-8421522368.<br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>आदेश......💐</div><div><br /></div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-28670074802461485112020-12-06T01:18:00.001+05:302020-12-06T01:44:48.052+05:30दुर्लभ इंद्रजाल विद्या<div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7qmbTEtO4YmzxkL4eG6qhHKLr_OHRKD_EzkGjfwkLRLL_2RVX-6eSdwjTNf24TppX8NenZYzfkdz9q2H1whnkWExgnf2sNOvf1_tSSeCDSEGKpLyRrlzlCim_MexPYEzyubmE4oVi4Gw/s960/f79f47ead1b245c932ab50b023e8b08c.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="816" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7qmbTEtO4YmzxkL4eG6qhHKLr_OHRKD_EzkGjfwkLRLL_2RVX-6eSdwjTNf24TppX8NenZYzfkdz9q2H1whnkWExgnf2sNOvf1_tSSeCDSEGKpLyRrlzlCim_MexPYEzyubmE4oVi4Gw/s320/f79f47ead1b245c932ab50b023e8b08c.jpg" /></a></div><br /><div class="freeHtml"><br /></div><div class="freeHtml"><br /></div><div class="freeHtml">प्राचीनकाल में इस विद्या के कारण भी भारत को विश्व में पहचाना जाता था। देश-विदेश से लोग यह विद्या सिखने आते थे। आज पश्चिम देशों में तरह-तरह की जादू-विद्या लोकप्रिय है तो इसका कारण है भारत का ज्ञान।<br /><br /></div><div></div><div class="freeHtml"><strong>जादू अनंतकाल से किया जाने वाला सम्मोहन भरा प्रदर्शन है, जिसका उपयोग पश्चिमी धर्मों व सम्प्रदायों के प्रचारक अशिक्षित लोगों को डराकर, सम्मोहित कर या छलपूर्ण तरीके से उन्हें अपना आज्ञाकारी अनुयायी बनाने के लिए किया करते थे। </strong></div></div><div class="freeHtml"><strong><br /></strong></div><div class="freeHtml">माना जाता है कि गुरु दत्तात्रे भी इन्द्रजाल के जनक थे। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में एक बड़ा भाग विद्या पर लिखा है। सोमेश्वर के मानसोल्लास में भी इन्द्रजाल का उल्लेख मिलता है। उड़ीसा के राजा प्रताप रुद्रदेव ने 'कौतुक चिंतामणि' नाम से एक ग्रंथ लिखा है जिसमें इसी तरह की विद्याओं के बारे में उल्लेख मिलता है। बाजार में कौतुक रत्नभांडागार, आसाम और बंगाल का जादू, मिस्र का जादू, यूनान का जादू नाम से कई किताबें मिल जाएगी, लेकिन सभी किताबें इन्द्रजाल से ही प्रेरित हैं।<strong><br /></strong></div><div class="freeHtml"><br /></div><strong><div><strong><br /></strong></div>इन्द्रजाल विद्या क्या है ?</strong><div><br /></div><div>जैसे कि इसके नाम में ही इसका रहस्य छुपा हुआ है। देवताओं के राजा इंद्र को छली या चकमा देने वाला माना गया है बस इन्द्रजाल का मतलब भी यही होता है। रावण इस विद्या को जानता था,रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह अपने दुश्मनों के लिए इन्द्रजाल बिछा देता था,जिससे कि दुश्मन भ्रमित होकर उसके जाल में फंस जाता था। राक्षस मायावी थे और वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे,दरअसल आजकल इसे जादूगरों की विद्या माना जाता है परंतु यह सम्मोहन की एक असली किताब है ।</div><div><br /></div><div>इन्द्रजाल जैसी विद्या चकमा देने की विद्या है। आजकल भी भाषा में इसे भ्रमजाल कह सकते हैं। खासकर अपने प्रतिद्वंद्वियों को कैसे भरमाया जाए और उनके इरादों को कैसे नीचा दिखाया जाए। इसके लिए जो उपाय किए जाते, वे इन्द्रजाल के उपाय कहे गए और इस विद्या के कर्ता को ऐंद्रजालिक कहते हैं। अर्थात जो व्यक्ति भ्रमजालों का प्रदर्शन करता है प्राचीनकाल में ऐंद्रजालिक और वर्तमान युग में एक जादूगर कहलाता है।<br /></div><div><br /></div><div>दरअसल इन्द्रजाल के अंतर्गत कुछ भी हो सकता है, जिससे आपकी आंखें, दिल और दिमाग धोखा खा जाए वह इन्द्रजाल है। आप किसी पर मोहित हो जाओ और उसकी तरीफ करने लगो और उसके प्यार में पागल हो जाओ वह भी इन्द्रजाल है।<br /></div><div><br /></div><div>इन्द्रजाल के अंतर्गत मंत्र, तंत्र, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, नाना प्रकार के कौतुक, प्रकाश एवं रंगादि के प्रयोजनीय वस्तुओं के आश्चर्यजनक खेल, तामाशे आदि सभी का प्रयोग किया जाता है। इन्द्रजाल से संबंधित कई किताबें बाजार में प्रचलित है। उन्हीं में से एक किताब मेरे पास भी है,उसका नाम भी "इंद्रजाल है जो 936 पन्नो की है" और उस किताब में प्रकाशक ने यह कहा था कि "अगर किताब पसंद ना आये तो मुझे 8 दिन में वापिस कर दो",प्रकाशक की प्रामाणिकता को देखकर मैंने वह किताब खरीदी ।<br /></div><div><br /></div><div>इस किताब के कुछ प्रयोग मैंने करके देखे है जिससे मुझे सफलता मिला है,इस किताब से मैंने 14 यंत्रो का अब तक उपयोग किया जो मुझे कारगर लगे है । साधक का विश्वास और उसकी मेहनत हमेशा उसको सफलता दिलाती है,इसलिए अगर प्राचीन ज्ञान प्राप्त हो जाये तो सफलता मिलने की संभावनाये बढ़ जाती है । शायद आज यह किताब मार्केट में मिलती होगी,मुझे इसके बारे में आज के समय मे ज्यादा पता नही क्योके मैंने किताब शायद 12 वर्ष पूर्व खरीदी थी तब यह 201 रुपये में मिलती थी,उसके बाद यह किताब मैंने मुंबई में देखी थी तब उसकी कीमत 300 रुपये थी ।</div><div><br /></div><div>यह किताब मैं आप सभी को उपलब्ध करवाना चाहता हु,यह किताब आपको <b>telegram app</b> पर भेजा जाएगा क्योके इस किताब को <b>whatsapp</b> पर नही भेज सकते है,यह किताब <b>100mb</b> से ज्यादा है ।</div><div><br /></div><div>मै पिछले 10 वर्षों से किसानो के मदत हेतु एक संस्था चला रहा हु,इस वर्ष बहोत सारे किसानों की फसल खराब हो गयी क्योके इस वर्ष ज्यादा बारिश के कारण सोयाबीन का फसल खराब हो गया । इस किताब को मै आपको 201 रुपये में ही उपलब्ध करवा रहा हु और यह आपकी न्यौछावर राशि 201 रुपया किसानों के मदत हेतु उपयोग में लाये जाएंगे ।</div><div><b><br /></b></div><div><b><br /></b></div><div><b><br /></b></div><div><b>किताब को कैसे प्राप्त करे ?</b></div><div><b><br /></b></div><div>आप paytm से या फिर bank account में 201/-रुपये न्यौछावर राशि देकर पेमेंट की डिटेल्स व्हाट्सएप पर या फिर टेलीग्राम पर भेजिए,उसके बाद आपको यह इंद्रजाल की 936 पन्नो की किताब टेलीग्राम पे भेज दी जाएगी ।</div><div><br /></div><div><b>Telegram number,Whatsapp number,Paytm number -</b></div><div><b>+91-8421522368</b></div><div><b><br /></b></div><div><br /></div><div>किताब के कुछ पन्ने इस आर्टिकल में दे रहा हु-</div><div><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBGzhIe-jYmbRuZSxCIkMu243RGgWgwOZmwz4OZD4oPsp0_8kvsOR6IFMFcYCHy07Dqsq_KoUUKnrOYLYZ4fRgXk8qT4ilFDJ_umZ2B7H_FwxUaRovnSZwQ_TB9KVigeks6ZMAVviTmD4/s1183/IMG_20201205_234708.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1183" data-original-width="972" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBGzhIe-jYmbRuZSxCIkMu243RGgWgwOZmwz4OZD4oPsp0_8kvsOR6IFMFcYCHy07Dqsq_KoUUKnrOYLYZ4fRgXk8qT4ilFDJ_umZ2B7H_FwxUaRovnSZwQ_TB9KVigeks6ZMAVviTmD4/s320/IMG_20201205_234708.jpg" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1uUJLAazZCQKMG9AYQCPLSHypm8978StkYdpR-RmLnnMa4I3iwGuOfYwb0qPFkLCJIo8PdvIo1sjIAC3CJbxkGQ6vY2a7kqjTKUhVPResMfLYhLMV3jQF03R-5MuGimklGvrXdV79FPw/s925/IMG_20201205_234919.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="721" data-original-width="925" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1uUJLAazZCQKMG9AYQCPLSHypm8978StkYdpR-RmLnnMa4I3iwGuOfYwb0qPFkLCJIo8PdvIo1sjIAC3CJbxkGQ6vY2a7kqjTKUhVPResMfLYhLMV3jQF03R-5MuGimklGvrXdV79FPw/s320/IMG_20201205_234919.jpg" width="320" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiJrfdAYnqPIHHQ_1cOpaSFWFl_x0j1Zw0EXzOoe1Gp2A859q2Nbs5KEyn3GNQk1wqGm_RkKM5Jht_pHuYI0-gqx7wPgNHVw68rnyDtBhdofH9rFOe7kxrAznL3dY-cwbDgBk1xMATKvk8/s967/IMG_20201205_235353.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="967" data-original-width="920" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiJrfdAYnqPIHHQ_1cOpaSFWFl_x0j1Zw0EXzOoe1Gp2A859q2Nbs5KEyn3GNQk1wqGm_RkKM5Jht_pHuYI0-gqx7wPgNHVw68rnyDtBhdofH9rFOe7kxrAznL3dY-cwbDgBk1xMATKvk8/s320/IMG_20201205_235353.jpg" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJaGwrG18acACVAwHrTOKhwp4vis2kLLDbdPEnOBuR_M74wWLX9tZ1gjWtKqLHSTRZKSfb2azEpPVbZtTo-UHV36eSXVCrQPYdeO5-a4OsVaIcaBMTfztrHiE0UBP_hHFQH1-XfZcA018/s1500/IMG_20201205_235429.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1500" data-original-width="853" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJaGwrG18acACVAwHrTOKhwp4vis2kLLDbdPEnOBuR_M74wWLX9tZ1gjWtKqLHSTRZKSfb2azEpPVbZtTo-UHV36eSXVCrQPYdeO5-a4OsVaIcaBMTfztrHiE0UBP_hHFQH1-XfZcA018/s320/IMG_20201205_235429.jpg" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTrSSZXnVyUkGuw3J3re5DmwzOW3QUkYf3O3rgAnj_lBauPz4ejOebE1aSD1NVFlYfORvQR93wplx1-e7sZpPOOUWA84k7m46NriPmqBJaMmVXUkPse2ZXWROHWXsUrTVZipmIqu6b4Hs/s1489/IMG_20201206_000156.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1489" data-original-width="783" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTrSSZXnVyUkGuw3J3re5DmwzOW3QUkYf3O3rgAnj_lBauPz4ejOebE1aSD1NVFlYfORvQR93wplx1-e7sZpPOOUWA84k7m46NriPmqBJaMmVXUkPse2ZXWROHWXsUrTVZipmIqu6b4Hs/s320/IMG_20201206_000156.jpg" /></a></div><br /><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div>आदेश.....</div><div><br /></div><div><br /></div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-82326605373563104212020-09-28T12:06:00.002+05:302020-09-28T12:16:34.358+05:30माँ भुवनेश्वरी महाविद्या<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSPdOKxpJsFvisTd7HpTVynLlGuRXpFD7bb8ViCDheMCiqJjPxMR5KPUgCItuza7KdrZir7A4SMwdl19H-esEKxsLrrXITSTEEGF9yPy9Qr4bpQ2U6992aKXbHCqSQSDddVNEpuWCFhaU/s395/SAVE_20200928_121028.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="395" data-original-width="395" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiSPdOKxpJsFvisTd7HpTVynLlGuRXpFD7bb8ViCDheMCiqJjPxMR5KPUgCItuza7KdrZir7A4SMwdl19H-esEKxsLrrXITSTEEGF9yPy9Qr4bpQ2U6992aKXbHCqSQSDddVNEpuWCFhaU/s320/SAVE_20200928_121028.jpg" /></a></div><br /><p><br /></p><p>महाविद्याओं में चतुर्थ स्थान पर विद्यमान देवी भुवनेश्वरी’, त्रिभुवन (ब्रह्माण्ड) पालन एवं उत्पत्ति कर्ता।देवी भुवनेश्वरी,देवी<wbr></wbr><span class="word_break"></span> भुवनेश्वरी, दस महाविद्याओं में चौंथीं महा-शक्ति, तीनों लोकों या त्रि-भुवन (स्वर्ग, विश्व, पाताल) की ईश्वरी।</p><p><br /></p><p>
सम्पूर्ण जगत या तीनों लोकों की ईश्वरी देवी भुवनेश्वरी नाम की महा-शक्ति
हैं तथा महाविद्याओं में इन्हें चौथा स्थान प्राप्त हैं। अपने नाम के
अनुसार देवी त्रि-भुवन या तीनों लोकों के ईश्वरी या स्वामिनी हैं, देवी
साक्षात सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण करती हैं। सम्पूर्ण जगत के पालन पोषण
का दाईत्व इन्हीं 'भुवनेश्वरी देवी' पर हैं, परिणामस्वरूप ये जगन-माता तथा
जगत-धात्री के नाम से भी विख्यात हैं। पंच तत्व १. आकाश, २. वायु ३. पृथ्वी
४. अग्नि ५. जल, जिनसे इस सम्पूर्ण चराचर जगत के प्रत्येक जीवित तथा
अजीवित तत्व का निर्माण होता हैं, वह सब इन्हीं देवी की शक्तियों द्वारा
संचालित होती हैं। पञ्च तत्वों को इन्हीं, देवी भुवनेश्वरी ने निर्मित किया
हैं, देवी कि इच्छानुसार ही चराचर ब्रह्माण्ड (तीनों लोकों) के समस्त
तत्वों का निर्माण होता हैं। प्रकृति से सम्बंधित होने के कारण देवी की
तुलना मूल प्रकृति से भी की जाती हैं। आद्या शक्ति, भुवनेश्वरी स्वरूप में
भगवान शिव के समस्त लीला विलास की सहचरी हैं, सखी हैं। देवी नियंत्रक भी
हैं तथा भूल करने वालों के लिए दंड का विधान भी तय करती हैं, इनके भुजा में
व्याप्त अंकुश, नियंत्रक का प्रतीक हैं। जो विश्व को वमन करने हेतु वामा,
शिवमय होने से ज्येष्ठा तथा कर्म नियंत्रक, जीवों को दण्डित करने के कारण
रौद्री, प्रकृति का निरूपण करने से मूल-प्रकृति कही जाती हैं। भगवान शिव के
वाम भाग को देवी भुवनेश्वरी के रूप में जाना जाता हैं तथा सदा शिव के
सर्वेश्वर होने की योग्यता इन्हीं के संग होने से प्राप्त हैं।</p><p><br /></p><p> पञ्च तत्वों की अधिष्ठात्री हैं देवी भुवनेश्वरी।<br />
संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त समस्त जीवित तथा अजीवित वस्तुओं का
निर्माण मूल पञ्च तत्वों से ही होता हैं। १. आकाश, २. वायु ३. पृथ्वी ४.
अग्नि ५. जल, मूल-तत्व हैं जिनसे समस्त दिखने वाली तत्वों का निर्माण होता
हैं। देवता, राक्षस, वेद, प्रकृति, महासागर, पर्वत, जीव, जंतु, समस्त
वनस्पति इत्यादि समस्त भौतिक जगत इन्हीं पंच-तत्वों से सम्बद्ध हैं।
पञ्च-तत्वों का निरूपण एवं रचना इन्हीं भुवनेश्वरी देवी द्वारा ही हुआ हैं
तथा वह इन समस्त तत्वों की ईश्वरी या स्वामिनी हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के
निर्वाह, पालन पोषण का दाईत्व इन्हीं देवी भुवनेश्वरी का हैं, सात करोड़
महा-मंत्र सर्वदा इनकी आराधना करने में तत्पर रहते हैं। देवी भक्तों को
समस्त प्रकार कि सिद्धियाँ तथा अभय प्रदान करती हैं।</p><p><br /> देवी, ललित
के नाम से भी विख्यात हैं, परन्तु यह देवी ललित, श्री विद्या-ललित नहीं
हैं। भगवान शिव द्वारा दो शक्तियों का नाम ललिता रखा गया हैं, एक
‘पूर्वाम्नाय तथा दूसरी ऊर्ध्वाम्नाय’ द्वारा। ललिता जब त्रिपुरसुंदरी के
साथ होती हैं तो वह श्री विद्या-ललिता के नाम से जानी जाती हैं इनका
सम्बन्ध श्री कुल से हैं। ललिता जब भुवनेश्वरी के साथ होती हैं तो
भुवनेश्वरी-ललित<wbr></wbr><span class="word_break"></span> के नाम से जानी जाती हैं।</p><p><br /></p><p><b> देवी भुवनेश्वरी का भौतिक स्वरूप</b><br />
देवी भुवनेश्वरी, अत्यंत कोमल एवं सरल स्वभाव सम्पन्न हैं। देवी
भिन्न-भिन्न प्रकार के अमूल्य रत्नों से युक्त अलंकारों को धारण करती हैं,
स्वर्ण आभा युक्त उदित सूर्य के किरणों के समान कांति वाली देवी, कमल के
आसान पर विराजमान हैं तथा उगते सूर्य या सिंदूरी वर्ण से शोभिता हैं। देवी,
तीन नेत्रों से युक्त त्रिनेत्रा हैं जो की! इच्छा, काम तथा प्रजनन शक्ति
का प्रतिनिधित्व करती हैं। मंद-मंद मुस्कान वाली, अपने मस्तक पर अर्ध
चन्द्रमा धारण करने वाली देवी अत्यंत मनोहर प्रतीत होती हैं। देवी के स्तन
उभरे हुए तथा पूर्ण हैं, देवी चार भुजाओं से युक्त तथा पूर्ण शारीरिक गठन
वाली हैं। देवी अपने दो भुजाओं में पाश तथा अंकुश धारण करती हैं तथा अन्य
दो भुजाओं से वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। देवी नाना प्रकार से
मूल्यवान रत्नों से जडें हुए मुक्ता के आभूषण धारण कर बहुत ही शांत और
सौम्य प्रतीत होता हैं।</p><p><br /></p><p> देवी भुवनेश्वरी के प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।<br />
सृष्टि के प्रारम्भ में केवल स्वर्ग ही विद्यमान था, सूर्य केवल स्वर्ग
लोक में ही दिखाई देता था तथा उनकी किरणें स्वर्ग लोक तक ही सीमित थी।
समस्त ऋषियों तथा सोम देव ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (ग्रह, नक्षत्र इत्यादि)
के निर्माण हेतु, सूर्य देव की आराधना की जिससे प्रसन्न हो सूर्य देव ने,
देवी भुवनेश्वरी की प्रेरणा से संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण किया। उस काल
में देवी ही सर्व-शक्तिमान थी, देवी षोडशी ने सूर्य देव को वह शक्ति
प्रदान तथा मार्गदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप सूर्य देव ने संपूर्ण
ब्रह्माण्ड की रचना की। देवी षोडशी की वह प्रेरणा उस समय से भुवनेश्वरी
(सम्पूर्ण जगत की ईश्वरी) नाम से प्रसिद्ध हुई। देवी का सम्बन्ध इस चराचर
दृष्टि-गोचर समस्त ब्रह्माण्ड से हैं, इनके नाम दो शब्दों के मेल से बना
हैं भुवन + ईश्वरी, जिसका अभिप्राय हैं समस्त भुवन की ईश्वरी।</p><p><br /></p><p> देवी भुवनेश्वरी से सम्बंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य-<br /> देवी भुवनेश्वरी अपने अन्य नाना नमो से भी प्रसिद्ध हैं :<br /> १. मूल प्रकृति, देवी इस स्वरूप में स्वयं प्रकृति रूप में विद्यमान हैं, समस्त प्राकृतिक स्वरूप इन्हीं का रूप हैं। <br /> २. सर्वेश्वरी या सर्वेशी, देवी इस स्वरूप में, सम्पूर्ण चराचर जगत की ईश्वरी या विधाता हैं। <br /> ३. सर्वरूपा, देवी इस स्वरूप में, ब्रह्मांड के प्रत्येक तत्व में विद्यमान हैं। <br /> ४. विश्वरूपा, संपूर्ण विश्व का स्वरूप, इन्हीं देवी भुवनेश्वरी के रूप में स्थित हैं। <br /> ५. जगन-माता, सम्पूर्ण जगत, तीनों लोकों की देवी जन्म-दात्री हैं माता हैं। <br /> ६. जगत-धात्री, देवी इस रूप में सम्पूर्ण जगत को धारण तथा पालन पोषण करती हैं।</p><p><br /></p><p> देवी, 'पञ्च परमेश्वरी' नाम से विख्यात हैं। (मूल पांच तत्वों की ईश्वरी)<br />
'देवी काली और भुवनेशी या भुवनेश्वरी' प्रकारांतर से अभेद हैं काली का लाल
वर्ण स्वरूप ही भुवनेश्वरी हैं। दुर्गम नामक दैत्य के अत्याचारों से
संतृप्त हो, सभी देवता, ऋषि तथा ब्राह्मणों ने हिमालय पर जा, सर्वकारण
स्वरूपा देवी भुवनेश्वरी की ही आराधना की थी। देवताओं, ऋषियों तथा
ब्राह्मणों के आराधना-स्तुति से संतुष्ट हो देवी, अपने हाथों में बाण, कमल
पुष्प तथा शाक-मूल धारण किये हुए प्रकट हुई थी। देवी ने अपने नेत्रों से
सहस्रों अश्रु जल धारा प्रकट की तथा इस जल से सम्पूर्ण भू-मंडल के समस्त
प्राणी तृप्त हुए। समुद्रों तथा नदियों में जल भर गया तथा समस्त वनस्पति
सिंचित हुई। अपने हाथों में धारण की हुई, शाक-मूलों से इन्होंने सम्पूर्ण
प्राणियों का पोषण किया, तभी से ये शाकम्भरी नाम से भी प्रसिद्ध हुई।
इन्होंने ही दुर्गमासुर नामक दैत्य का वध कर समस्त जगत को भय मुक्त, इस
कारण देवी दुर्गा नाम से प्रसिद्ध हुई, जो दुर्गम संकटों से अपने भक्तों को
मुक्त करती हैं।</p><p><br /></p><p> भुवनेश्वरी अवतार धारण कर सम्पूर्ण जगत का निर्माण
तथा सञ्चालन, तथा भगवान विष्णु, 'ब्रह्मा' तथा शिव को जल प्रलय के पश्चात
अपना कार्य भर प्रदान करना।</p><p><br /> श्रीमद देवी-भागवत पुराण के अनुसार! राजा
जनमेजय ने व्यास जी से 'ब्रह्मा', विष्णु, शंकर की आदि शक्ति, से सम्बन्ध
तथा विश्व के उत्पत्ति के कारण हेतु प्रश्न पूछे जाने पर, व्यास जी द्वारा
जो वर्णन प्रस्तुत किया गया वह निम्नलिखित हैं।</p><p><br /> एक बार व्यास जी के मन
में जिज्ञासा जागृत हुई कि, "पृथ्वी या इस सम्पूर्ण चराचर जगत का सृष्टि
कर्ता कौन हैं?" इस निमित्त उन्होंने नारद जी से प्रश्न किया। नारद जी ने
व्यास जी से कहा की! "एक बार उनके मन भी ऐसे ही जिज्ञासा जागृत हुई
थीं।"तदनंतर, नारद जी ब्रह्म लोक स्थित अपने पिता ब्रह्मा जी के पास गए और
उन्होंने उनसे पूछा!"ब्रह्मा, विष्णु और महेश, में किसके द्वारा इस चराचर
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई हैं, सर्वश्रेष्ठ ईश्वर कौन हैं ?"</p><p><br /></p><p>
ब्रह्मा जी ने नारद से कहा! प्राचीन काल में जल प्रलय पश्चात केवल पञ्च
महा-भूतों की उत्पत्ति हुई, जिसके कारण वे (ब्रह्मा जी) कमल से आविर्भूत
हुए। उस समय सूर्य, चन्द्र, पर्वत इत्यादि स्थूल जगत लुप्त था तथा चारों ओर
केवल जल ही जल दिखाई देता था। ब्रह्मा जी कमल-कर्णिका पर ही आसन जमाये
विचरने लगे। उन्हें यह ज्ञात नहीं था की इस महा सागर के जल से उनका
प्रादुर्भाव कैसे हुआ तथा उनका निर्माण करने वाला तथा पालन करने वाला कौन
हैं? एक बार, ब्रह्मा जी ने दृढ़ निश्चय किया की वे अपने कमल के आसन का मूल
आधार देखेंगे, जिससे उन्हें मूल भूमि मिल जाएगी। तदनंतर, उन्होंने जल में
उतर-कर पद्म के मूल को ढूंढने का प्रयास किया, परन्तु वे अपने कमल-आसन के
मूल तक नहीं पहुँच पाये। तक्षण ही आकाशवाणी हुई की, तुम तपस्या करो!
तदनंतर, ब्रह्मा जी ने कमल के आसन पर बैठ हजारों वर्ष तक तपस्या की। कुछ
काल पश्चात पुनः आकाशवाणी हुई सृजन करो, परन्तु ब्रह्मा जी समझ नहीं पाये
की क्या सृजन करें तथा कैसे करें! उनके द्वारा ऐसा विचार करते हुए, उनके
सनमुख 'मधु तथा कैटभ' नाम के दो महा दैत्य उपस्थित हुए तथा वे दोनों उनसे
युद्ध करना चाहते थे, जिसे देख ब्रह्मा जी भयभीत हो गए। ब्रह्मा जी अपने
आसन कमल के नाल का आश्रय ले महासागर में उतरे, जहाँ उन्होंने एक अत्यंत
सुन्दर एवं अद्भुत पुरुष को देखा, जो मेघ के समान श्याम वर्ण के थे तथा
उन्होंने अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण कर रखा था। शेष नाग की
शय्या पर शयन करते हुए ब्रह्मा जी ने श्री हरि विष्णु को देखा। उन्हें देख
ब्रह्मा जी के मन में जिज्ञासा जागृत हुई और वे सहायता हेतु आदि शक्ति देवी
की स्तुति करने लगे, जिनकी तपस्या में वे सर्वदा निमग्न रहते थे।
परिणामस्वरूप, निद्रा स्वरूपी भगवान विष्णु की योग माया शक्ति आदि शक्ति
महामाया, उनके शरीर से उद्भूत हुई। वे देवी दिव्य अलंकार, आभूषण, वस्त्र
इत्यादि धारण किये हुए थी तथा आकाश में जा विराजित हुई। तदनंतर, भगवान
विष्णु ने निद्रा का त्याग किया तथा जागृत हुए, तत्पश्चात उन्होंने पाँच
हजार वर्षों तक मधु-कैटभ नामक महा दैत्यों से युद्ध किया। बहुत अधिक समय तक
युद्ध करते हुए भगवान विष्णु थक गए, वे अकेले ही युद्ध कर रहे थे, इसके
विपरीत दोनों दैत्य भ्राता एक-एक कर युद्ध करते थे। अंततः उन्होंने अपने
अन्तः कारण की शक्ति योगमाया आद्या शक्ति से सहायता हेतु प्रार्थना की,
देवी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे उन दोनों दैत्यों को अपनी माया से मोहित
कर देंगी। योगमाया आद्या शक्ति की माया से मोहित हो दैत्य भ्राता भगवान
विष्णु से कहने लगे! "हम दोनों तुम्हारे वीरता पर बहुत प्रसन्न हैं, हमसे
वर प्रार्थना करो!" भगवान विष्णु ने दैत्य भ्राताओं से कहा! "मैं केवल इतना
ही चाहता हूँ की तुम दोनों अब मेरे हाथों से मारे जाओ।" दैत्य भ्राताओं ने
देखा की चारों ओर केवल जल ही जल हैं तथा भगवान विष्णु से कहा! "हमारा वध
ऐसे स्थान पर करो जहाँ न ही जल हो और न ही स्थल।" भगवान विष्णु ने दोनों
दैत्यों को अपनी जंघा पर रख कर अपने चक्र से उनके मस्तक को देह से लग कर
दिया। इस प्रकार उन्होंने मधु-कैटभ का वध किया, परन्तु वे केवल निमित्त
मात्र ही थे, उस समय उनकी संहारक शक्ति से शंकर जी की उत्पत्ति हुई, जो
संहार के प्रतीक हैं।</p><p><br /></p><p> तदनंतर, 'ब्रह्मा', विष्णु तथा शंकर द्वारा,
देवी आदि शक्ति योगनिद्रा महामाया की स्तुति की गई, जिससे प्रसन्न होकर आदि
शक्ति ने ब्रह्मा जी को सृजन, विष्णु को पालन तथा शंकर को संहार के दाईत्व
निर्वाह करने की आज्ञा दी। तत्पश्चात, ब्रह्मा जी ने देवी आदि शक्ति से
प्रश्न किया गया कि! "अभी चारों ओर केवल जल ही जल फैला हुआ हैं, पञ्च-तत्व,
गुण, तन-मात्राएँ तथा इन्द्रियां, कुछ भी व्याप्त नहीं हैं तथापि तीनों
देव शक्ति-हीन हैं।" देवी ने मुसकुराते हुए उस स्थान पर एक सुन्दर विमान को
प्रस्तुत किया और तीनों देवताओं को विमान पर बैठ अद्भुत चमत्कार देखने का
आग्रह किया गया, तीनों देवों के विमान पर आसीन होने के पश्चात, वह
देवी-विमान आकाश में उड़ने लगा।</p><p><br /></p><p> मन के वेग के समान वह दिव्य तथा
सुन्दर विमान उड़कर ऐसे स्थान पर पहुंचा जहाँ जल नहीं था, यह देख तीनों
देवों को महान आश्चर्य हुआ। उस स्थान पर नर-नारी, वन-उपवन, पशु-पक्षी,
भूमि-पर्वत, नदियाँ-झरने इत्यादि विद्यमान थे। उस नगर को देखकर तीनों
महा-देवों को लगा की वे स्वर्ग में आ गए हैं। थोड़े ही समय पश्चात, वह
विमान पुनः आकाश में उड़ गया तथा एक ऐसे स्थान पर गया, जहाँ! ऐरावत हाथी और
मेनका आदि अप्सराओं के समूह नृत्य प्रदर्शित कर रही थी, सैकड़ों गन्धर्व,
विद्याधर, यक्ष रमण कर रहे थे, वहाँ इंद्र भी अपनी पत्नी सची के साथ
विद्यमान थे। वहाँ कुबेर, वरुण, यम, सूर्य, अग्नि इत्यादि अन्य देवताओं को
देख तीनों को महान आश्चर्य हुआ। तदनंतर, तीनों देवताओं का विमान ब्रह्म-लोक
की ओर बड़ा, वहाँ पर सभी देवताओं से वन्दित ब्रह्मा जी को विद्यमान देख,
तीनों देव विस्मय में पर पड़ गए। विष्णु तथा शंकर ने ब्रह्मा से पूछा, यह
ब्रह्मा कौन हैं ? ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया! "मैं इन्हें नहीं जनता हूँ,
मैं स्वयं भ्रमित हूँ।" तदनंतर, वह विमान कैलाश पर्वत पर पहुंचा, वहां
तीनों ने वृषभ पर आरूढ़, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण किये हुए, पञ्च मुख तथा
दस भुजाओं वाले शंकर जी को देखा। जो व्यग्र चर्म पहने हुए थे तथा गणेश और
कार्तिक उनके अंग रक्षक रूप में विद्यमान थे, यह देख पुनः तीनों अत्यंत
विस्मय में पड़ गये। तदनंतर उनका विमान कैलाश से भगवान विष्णु के वैकुण्ठ
लोक में जा पहुंचा। पक्षी-राज गरुड़ के पीठ पर आरूढ़, श्याम वर्ण, चार भुजा
वाले, दिव्य अलंकारों से अलंकृत भगवान विष्णु को देख सभी को महान आश्चर्य
हुआ, सभी विस्मय में पड़ गए तथा एक दूसरे को देखने लगे। इसके बाद पुनः वह
विमान वायु की गति से चलने लगा तथा एक सागर के तट पर पहुंचा। वहाँ का दृश्य
अत्यंत मनोहर था तथा नाना प्रकार के पुष्प वाटिकाओं से सुसज्जित था, तीनों
महा-देवों ने रत्नमालाओं एवं विभिन्न प्रकार के अमूल्य रत्नों से विभूषित,
पलंग पर एक दिव्यांगना को बैठे हुए देखा। उन देवी ने रक्त-पुष्पों की माला
तथा रक्ताम्बर धारण कर रखी थीं। वर, पाश, अंकुश और अभय मुद्रा धारण किये
हुए, देवी भुवनेश्वरी, त्रि-देवो को सनमुख दृष्टि-गोचर हुई, जो सहस्रों
उदित सूर्य के प्रकाश के समान कान्तिमयी थी। वास्तव में आदि शक्ति
महामायाही भुवनेश्वरी अवतार में, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सञ्चालन तथा
निर्माण करती हैं।</p><p><br /></p><p> देवी समस्त प्रकार के श्रृंगार एवं भव्य परिधानों
से सुसज्जित थी तथा उनके मुख मंडल पर मंद मुसकान शोभित हो रही थी। उन
भगवती भुवनेश्वरी को देख त्रि-देव आश्चर्य चकित एवं स्तब्ध रह गए तथा सोचने
लगे, यह देवी कौन हैं? ब्रह्मा, विष्णु तथा महेशसोचने लगे कि! "न तो यह
अप्सरा हैं, न ही गन्धर्वी और न ही देवांगना!" यह सोचते हुए वे तीनो संशय
में पड़ गए। तब उन सुन्दर हास्वली हृल्लेखा देवी के सम्बन्ध में, भगवान
विष्णु ने अपने अनुभव से शंकर तथा ब्रह्मा जी से कहा! "यह साक्षात् देवी
जगदम्बा महामाया हैं साथ ही यह देवी हम तीनों तथा सम्पूर्ण चराचर जगत की
कारण रूपा हैं। देवी, महाविद्या शाश्वत मूल प्रकृति रूपा हैं, सभी-की आदि
स्वरूप ईश्वरी हैं तथा इन योग-माया महाशक्ति को योग मार्ग से ही जाना जा
सकता हैं। मूल प्रकृति स्वरूपी भगवती महामाया परम-पुरुष के सहयोग से
ब्रह्माण्ड की रचना कर, परमात्मा के सनमुख उसे उपस्थित करती हैं।" तदनंतर,
तीनों देव भगवती भुवनेश्वरी की स्तुति करने के निमित्त उनके चरणों के निकट
गए। जैसे ही ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर, विमान से उतरकर देवी के सनमुख जाने
लगे, देवी ने उन्हें स्त्री-रूप में परिणीत कर दिया तथा वे भी नाना प्रकार
के आभूषणों से अलंकृत तथा वस्त्र धारण किये हुए थे। तदनंतर, तीनों देवी के
सनमुख जा खड़े हो गए, उन्होंने देखा की असंख्य सुन्दर स्त्रियाँ देवी की
सेवा में सेवारत थी। तीनों देवों ने देवी के चरण-कमल के नख में सम्पूर्ण
स्थावर-जंगम ब्रह्माण्ड को देखा, समस्त देवता, ब्रह्मा, विष्णु, शिव,
समुद्र, पर्वत, नदियां, अप्सरायें, वसु, अश्विनी-कुमार, पशु-पक्षी, राक्षस
गण इत्यादि सभी, देवी के नख में प्रदर्शित हो रहे थे। वैकुण्ठ, ब्रह्मलोक,
कैलाश, स्वर्ग, पृथ्वी इत्यादि समस्त लोक देवी के पद नख में विराजमान थे।
तब त्रिदेव यह समझ गए की देवी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की जननी हैं।</p><p><br /></p><p>माँ जगतजननी भुवनेश्वरी जी के कृपा प्राप्ति हेतु आपको निःशुल्क मंत्र दीक्षा नवरात्रि पर दी जाएगी । साथ मे आपको उनका गोपनीय मंत्र जाप की विधि भी दी जाएगी । दीक्षा प्राप्त करने हेतु मुझे व्हाट्सएप पर अपना नाम और फ़ोटो भेज दीजिए, आपको 1% भी चिंतित होने की आवश्यकता नही है,यह क्रिया पूर्णतः निःशुल्क है । जब आपको इस क्रिया के बाद अनुभव होने लगेंगे तब माँ भुवनेश्वरी जी के नाम से एक पौधा लगा दीजियेगा और पौधा ऐसा हो जो भविष्य में एक विशालकाय वृक्ष बने । आपका पौधा लगाना ही मेरे लिए संतुष्टि है ।</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p>आदेश.......💐</p>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-70765597945138101642020-08-17T01:14:00.002+05:302021-02-05T19:00:23.808+05:30रजिया बेगम शाबर मंत्र साधना ।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6YqY1LnAU6VioqikapjbvLHd1v7MHpTBhHtiriCnjbmmAd1BojXK5pno1H2wu0N9co-CPXdvHdp_CiykLMrMQTGGqM-PXauIPsetjyr_u_RexU3EtX0uzVWJ9kegceBnOlzT_R_nzlHE/s409/PicsArt_08-17-01.16.02.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="409" data-original-width="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj6YqY1LnAU6VioqikapjbvLHd1v7MHpTBhHtiriCnjbmmAd1BojXK5pno1H2wu0N9co-CPXdvHdp_CiykLMrMQTGGqM-PXauIPsetjyr_u_RexU3EtX0uzVWJ9kegceBnOlzT_R_nzlHE/s0/PicsArt_08-17-01.16.02.jpg"></a></div><div><br></div><div><br></div>रजिया बेगम ने शासन पर 3 साल 6 महीने तथा 6 दिन राज किया,रज़िया भारत की प्रथम महिला शासक थी जिसका जन्म 1205 मे हुआ था । रज़िया ने पर्दा प्रथा का त्याग किया तथा पुरुषो की तरह खुले मुंह ही राजदरबार में जाती थी । रज़िया के शासन का बहुत जल्द अंत हो गया लेकिन उसने सफलता पूर्वक शासन चलाया, रज़िया में शासक के सभी गुण मौजूद थे लेकिन उसका स्त्री होना इन गुणों पर भारी था अत: उसके शासन का पतन उसकी व्यकतिगत असफलता नहीं थी ।<div><br></div><div>अपने शाषनकाल में रजिया ने अपने पुरे राज्य में कानून की व्यवस्था को उचित ढंग से करवाया । उसने व्यापार को बढ़ाने के लिए इमारतो के निर्माण करवाए , सडके बनवाई और कुवे खुदवाए । उसने अपने राज्य में शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई विद्यालयों , संस्थानों , खोज संस्थानों और राजकीय पुस्तकालयों का निर्माण करवाया । उसने सभी संस्थानों में मुस्लिम शिक्षा के साथ साथ हिन्दू शिक्षा का भी समन्वय करवाया । उसने कला और संस्कृति को बढ़ाने के लिए कवियों ,कलाकारों और संगीतकारो को भी प्रोत्साहित किया था । इतिहास में रजिया बेगम के बारे में कुछ ज्यादा नही लिखा गया है,कोई कहेता है के उसका प्रेमी था तो कोई कहेता है नही था । इसलिए इतिहास से प्राप्त की जाने वाली जानकारी को समझना कठिन है,मैंने जो जानकारी प्राप्त की वह तंत्र विद्या के संदर्भ से है ।<br></div><div><br></div><div>रजिया बेगम को बुलाने की मंत्र विद्या आज भी राजस्थान के तांत्रिकों में गोपनीय है । एक राजस्थान के तांत्रिक थे जिन्होंने यह साधना मुझसे संपन्न करवाया था और उस मंत्र विद्या का परिणाम मुझे अच्छे से महसूस हुआ,यहां पर मैं अपने अनुभव नही लिख सकता क्योके यह साधना क्षेत्र के नियम के हिसाब से ठीक नही है । और जैसे मेरे सभी आर्टिकल चोरी हो जाते है,लोग कॉप्पी पेस्ट करके कहिना कही छाप देते है इसलिए किसी भी विषय पर लिखना इन चोरों के वजेसे कठिन हो गया है ।</div><div><br></div><div>रजिया बेगम मृत्यु के बाद तो आज के समय मे यह भुतिनी साधना के श्रेणी में आती है और मुझे यह मंत्र साधना जब प्राप्त हुई तो मेरे जानकार तांत्रिक के नोटबुक में कुछ ऐसा लिखा हुआ था "रजिया बेगम भुतिनी साधना" । नोटबुक में साधना पढ़ने के बाद मै इस साधना से काफी प्रभावित हुआ था क्योंकि यह मात्र इक्कीस दिन की साधना थी और उन इक्कीस दिनों में मुझे काफी अच्छे अनुभव प्राप्त हुए थे । यह साधना दुनिया के किसी भी किताब में नही है,यह एक प्रकार से साबर मंत्र विद्या है । </div><div><br></div><div>तांत्रिक का नाम श्यामदास बाबा था और उन्होंने मुझे साधना के सभी पैलुओ पर सब कुछ ठीक तरह से समझाया,यहां तक कि साधना सामग्री के निर्माण हेतु उन्होंने मुझे दो दिन का समय दिया । एक प्रकार का विशेष नीले रंग का रत्न जो रजिया बेगम को पसंद था और उस रत्न को नदी के किनारे बबूल के पेड़ में छेद करके मंत्र बोलकर चौबीस घंटे तक रखना था । जब चौबीस घण्टे पूर्ण हो जाये तब मजमुआ का इत्र लगाकर उसे गुलाब की पंखुड़ियों पर रखकर घर लाना था और उस पर कुछ ईलम पढ़ने थे । वैसे तो मैं सिर्फ नवनाथ भगवान की साधना करता हु परंतु यह साधना शाबर मंत्र साधना थी इसलिए मैंने इस साधना के लिये मेहनत की,यह शाबर मंत्र साधना नही होती तो शायद मैं मेहनत नही करता । काले हकीक माला को भी प्राण प्रतिष्ठा किया जो 101 मनके की थी और रक्षा कवच का भी निर्माण तांत्रिक श्यामदास बाबा ने मेरे हाथों से करवाया । तब जाकर कहा मेरी साधना सामग्री बनी और मैंने साधना संपन्न की है,यह एक प्रामाणिक साधना है जिसका अनुभव आनंद दायक होता है ।</div><div><br></div><div>यह एक प्रकार से प्रत्यक्षीकरण साधना है,रजिया बेगम के प्रत्यक्षीकरण से जीवन मे कोई भी कार्य करवाये जा सकते है । यहां पर ज्यादा लिखना ठीक नही है इसलिए सिर्फ इतना ही लिखना चाहता हु के यह साधना करना जीवन का सुखद पल होता है ।</div><div><br></div><div>साधनात्मक अन्य जानकारी फोन पर या फिर व्हाट्सएप पर दी जाएगी,टाइम पास करने हेतु कृपया फोन ना करे,सिर्फ वही व्यक्ति फोन करे जो प्रत्यक्षीकरण साधनाओ में रुचि रखते हो । इस साधना में रजिया बेगम प्रत्यक्षीकरण रत्न,काली हकीक माला और रक्षा कवच की आवश्यकता होती है,जिसका न्योच्छावर राशि 3600/-रुपये निर्धारित किया है ।</div><div><br></div><div>जिन्हें साधना करनी है उनको साधना सामग्री के साथ रजिया बेगम प्रत्यक्षीकरण मंत्र दिए जाएंगे । साधना सामग्री के न्योच्छावर राशि बैंक अकाउंट से या फिर Paytm से भी भेज सकते है । इस साधना से सभी प्रकार के भौतिक लाभ प्राप्त करना संभव है ।<br></div><div><br></div><div>Calling, whatsapp and Paytm number-</div><div>+91-8421522368</div><div><br></div><div><br></div><div>यह साधना अदभुत अविस्मरणीय प्रामाणिक साधना है,जिसका जिक्र पहिली बार सिर्फ हमारे ब्लॉग पर किया जा रहा है ।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div>आदेश.......💐</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-64100031554834683062020-07-03T00:03:00.001+05:302020-07-03T00:09:17.686+05:30गुरुपूर्णिमा साधना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjABRFusMnWUQ4dxHfMqsEQ9AXP9t3qrkRudR-fYBXmTX6C5sE0n9wqvgNnKqj8Be5jpIwo-r2RnnjmzUzA0S6ff1Us0oLvTWn4r_CPoF8kdA6IiXVrSwQbP3qO5vbhfbzkXHR0EPmjlWY/s1600/PicsArt_07-03-12.06.29.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="592" data-original-width="740" height="256" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjABRFusMnWUQ4dxHfMqsEQ9AXP9t3qrkRudR-fYBXmTX6C5sE0n9wqvgNnKqj8Be5jpIwo-r2RnnjmzUzA0S6ff1Us0oLvTWn4r_CPoF8kdA6IiXVrSwQbP3qO5vbhfbzkXHR0EPmjlWY/s320/PicsArt_07-03-12.06.29.jpg" width="320" /></a></div>
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ऐसा कोई शाबर मंत्र ही नही है जिसका जाप गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर करने से सिद्धी ना मिले,जरा सोचिए 365 दिनों में कई सारे मुहूर्त या कुछ ग्रहण आते है और उनमें शाबर मंत्र सिद्ध हो या ना हो परंतु गुरुपूर्णिमा को होते है, इसका अर्थ यही है के साधक और शिष्यों के जीवन मे गुरुपूर्णिमा से बढ़कर कोई पावन अवसर नही होता है ।<br />
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संस्कृत में ‘गुरु’ शब्द का अर्थ है ‘अंधकार को मिटाने वाला।’ गुरु साधक के अज्ञान को मिटाता है, ताकि वह अपने भीतर ही सृष्टि के स्रोत का अनुभव कर सके। पारंपरिक रूप से गुरु पूर्णिमा का दिन वह समय है जब साधक गुरु को अपना आभार अर्पित करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंत्र साधना और तंत्र का अभ्यास करने के लिए गुरु पूर्णिमा को विशेष लाभ देने वाला दिन माना जाता है। जिनके जीवन मे गुरु ना हो उनके लिए तो सिर्फ यही कहूंगा के जीवन मे ऐसा गलती ना करे और सर्वप्रथम किसी गुरु के चरणों मे स्वयं को समर्पित करके उनसे अवश्य गुरुदीक्षा प्राप्त करे । </div>
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हमारे गुरुजी हमेशा कहते थे "आज गुरुपूर्णिमा नही शिष्यपूर्णिमा है क्योके आपने मुझे गुरु कहकर संबोधित किया तब जाकर कहा मेरे ज्ञान और तपस्या को एक नाम मिला अन्यथा मैं दुनिया के लिए एक महाराज ही था,जितना महत्व आज के दिवस का आपको है उससे कई ज्यादा महत्व मेरे लिए है,मेरे सामने आज सेकड़ो शिष्य खड़े है जिनका मैं गुरु हु पिता हु माता हु और आपके सामने सिर्फ एक गुरु खड़ा है,इसलिए आप स्वयं समझिए के मेरे लिए सेकड़ो शिष्यों के सामने खड़े रहने के बाद हृदय में कितना स्नेह उत्पन्न हो जाता होगा,इसलिए आज का यह पावन अवसर मेरे लिए शिष्यपूर्णिमा है ।</div>
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गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर आप सभी शिष्य और साधकगण अवश्य गुरुमंत्र का जाप करे,एक शाबर मंत्र दे रहा हु उसका भी जाप करे ताकि आपको गुरु की कृपादृष्टि प्राप्त होती रहे । मैं जो साधना दे रहा हु,इस साधना में आपके गुरु कोई भी हो उनकी भी कृपा आपको प्राप्त होती रहेगी और आपको जीवन मे शाबर मंत्र साधनाओं में सफलता भी मिलती रहेगी ।</div>
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मंत्र-</div>
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।। ॐ नमो आदेश गुरु को आदि गुरु को अनादि गुरु को,गुरु को ध्यावु गुरु को पावु,अन्तर्मन में बिराजू सकल मन करू सेवा,गुरु कृपा प्राप्त करु सर्व विद्या प्रसन्न करू,सत नमो आदेश गुरु जी को आदेश गुरु का मंत्र सच्चा चले छू ।।</div>
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मंत्र सरल भाषा मे होने के कारण आप अर्थ समझ जायेंगे, गुरुपूर्णिमा के अवसर पर गुरु मंत्र का जाप होने के बाद इस शाबर मंत्र का 108 बार जाप गुरुमंत्र माला से अवश्य करे ।</div>
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इस मंत्र की दीक्षा भी होती है,जिसके बारे में समझाना कठिन है,इसलिए यह आर्टिकल यही समाप्त करते है ।<br />
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आदेश.....<br />
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Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-90588205984088133502020-06-11T02:16:00.000+05:302020-06-11T02:33:41.339+05:30गुरु दीक्षा और दक्षिणा.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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मेरी गुरु दीक्षा देने की इच्छा हो रही है परंतु गुरु बनने की इच्छा नही है । दीक्षा मैं देने के लिए तय्यार हु और आपको गुरु मंत्र गोरखनाथ जी का दिया जाएगा इसलिए आपके गुरु गोरखनाथ जी ही होंगे । गुरु मंत्र नाथ सम्प्रदाय का है जो एक रहस्यमयी मंत्र है,इस मंत्र का रहस्य जो भी साधक जानेगा वही गुरु गोरखनाथ जी को प्रसन्न कर दर्शन का अवसर प्राप्त करेंगा ।<br />
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आपको मुझे जो भी गुरु दक्षिणा देने की इच्छा है वह आप अपनी क्षमता नुसार दे सकते है और मैं आपसे किसी भी प्रकार की गुरु दक्षिणा धन स्वरूप में अपने मुख से नही मांगूगा यह मैं आप सभी को वचन देता हूं । अगर कोई 1 रुपया देने की क्षमता रखता हो तो दे सकता है,मैं उस साधक को यह नही कहूंगा के मुझे हजार रुपया चाहिए क्योंकि जो भी साधक देना चाहे वह अपने स्व-ईच्छा से दे सकता है । यह बात हुई आपके धन स्वरूप में गुरु दक्षिणा देने की,अब बात करेंगे के मुझे आपसे गुरुदक्षिणा में क्या चाहिए?</div>
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मैं चाहता हु विधिवत मुझसे गुरु गोरखनाथ जी का साबर गुरु मंत्र ग्रहण करने हेतु आप लोग मुझे मेरी मनचाही दक्षिणा दे और यह दक्षिणा है के "आप सभी साधक जो मंत्र ग्रहण करेंगे वह 5,7,9,11....इस संख्या में पौधे लगाए और ऐसे पौधे लगाए जो भविष्य में विशाल वृक्ष बने"।</div>
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आपका पौधे लगाना और उस पौधे की देखभाल करना ही मेरे लिए सर्वोच्च गुरु दक्षिणा है,यह गुरुदक्षिणा आपसे पाकर मैं संतुष्ट हो जाऊंगा और नवनाथ भगवान से आपके लिए मंगलकामनाये करूंगा । 5 या 5 से ज्यादा पौधे लगाने का आपका कार्य आपके लिए गुरु आज्ञा है और शिष्यों को गुरु आज्ञा का उल्लंघन कभी भी नही करना चाहिए । बात सिर्फ यही समाप्त नही होगी,आपको आगे भी जीवन मे मंत्र साधनायें दी जाएगी और हर मंत्र साधना की मैं आपसे दक्षिणा मांगूगा और मैं वचन देता हूं के "हर बार आपसे दक्षिणा में पौधे लगवावउँगा",जो भी साधक मुझे इस प्रकार की दक्षिणा देना चाहता हो वही मुझसे गुरुदीक्षा प्राप्त करे अन्यथा आजकल मार्केट में गुरु तो ढेरो सारे पड़े है इसमें कोई यूट्यूब पर शराब पीकर अघोरी बनकर गालियां दे रहा है,तो कोई काले-पीले-लाल वस्त्र पहनकर एक दूसरे की बुराईया कर करकर अपनी महानता साबित कर रहा है,तो कोई गुरु हजारों रुपए दक्षिणा में मांगकर गुरुदीक्षा दे रहा है ।</div>
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अभी भी समय है,गुरु की पहेचान ना हो तो कम से कम गुरु को पहचानने की कोशिश करो । गुरु गोरखनाथ जी जैसे गुरु मिल जाये तो मूर्खो के पीछे भागने की जरूरत नही पड़ेगी । जितने भी सोशल मीडिया के गुरु है उसमें शायद ही 1-2% गुरु सच्चे होंगे अन्य तो बैठे है अपनी-अपनी दुकान खोलकर और आप भी उनके ग्राहक बनने का आनंद ले रहे हो,ऐसा आनंद किसी काम का नही है । शिष्य बनो साधक बनो तो ऐसा बनो के जीवन की प्रत्येक चुनौती को आसानी से स्वीकार करके सफलता प्राप्त कर सको ।</div>
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श्वेताश्वतरोपनिषद ६.२३ "गुरु ही भक्त या साधक को दिव्य भक्ति (प्रेमानंद, दिव्यानंद) प्रदान करते है" अर्थात गुरु के माध्यम से ही दिव्य भक्ति (प्रेमानंद, दिव्यानंद) मिलता है। वेद कहता है ब्रह्मविद्या उपनिषद् ३१ "केवल गुरु की भक्ति करने पर लक्ष (प्रेमानंद, दिव्यानंद) की प्राप्ति हो जाती है" । भागवत ११.२६.३४ में भगवान कहते है कि "गुरु मेरा इष्ट देव है, मेरा बंधु है मेरी आत्मा है, वह मैं ही हूँ और मैं गुरु की भक्ति करता हूँ" तो ऐसे होते है गुरु और आपको गुरु गोरखनाथ जी से समर्थ गुरु ओर कौन चाहिए?</div>
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गुरु मंत्र प्राप्त करने हेतु आपको तीन काम करने है-</div>
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१-स्व-इच्छा से क्षमता नुसार गुरु दक्षिणा देनी है,चाहे 1 रुपया ही दे दो परंतु दक्षिणा देना तो आवश्यक कार्य है,इसके लिए आप paytm कर सकते हो या फिर मुझसे बैंक अकाउंट डिटेल्स प्राप्त कर लो ।</div>
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२-मेरी मनचाही दक्षिणा मुझे दो मतलब पौधे लगाने है ।</div>
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३-मुझे मेरे व्हाट्सएप पर आपका फ़ोटो और नाम भेजना है ।</div>
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यह तीन कार्य अगर आप लोग कर सकते हो तो अवश्य मुझसे संपर्क करना अन्यथा मार्केट में गुरुओं की कोई कमी नही है और अन्य गुरुओं से मेरा कोई वाद-विवाद नही है ओर नाही कोई मित्रता है परंतु मुझ में कितना सामर्थ्य है यह अन्य गुरु अच्छेसे जानते है ।</div>
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2013 में ब्लॉग बनाया था तब से लेकर आज तक कभी किसी को गुरुदीक्षा देने की मेरी इच्छा नही हुई है परंतु गुरुदीक्षा के नाम पर जो पाखंड देखने को मिल रहा है वह दुःखदायी है,इसलिए मेरा यह एक कदम आपको नाथ सम्प्रदाय से जोड़ना और गुरुदीक्षा के माध्यम से गुरुमंत्र के माध्यम से गुरु के भक्ति की शक्ति क्या हो सकती है यह दिखाने हेतु है ।</div>
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आप सभी का मैं स्वागत करता हु जीवन में एक नए मार्ग पर आने के लिए......</div>
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Whatsapp, calling and Paytm number-</div>
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+91-8421522368<br />
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आदेश......<br />
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Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-21437043127951308302020-06-08T02:05:00.001+05:302020-06-08T02:11:27.616+05:30भविष्य को एक ही ग्रह बदल सकता है,नवग्रह नही.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrEEH1bYHFmiuDJrkXFRERjFA-Yekz8BEgQ-Yam0ZS1ayJB3F8R3bl-AC-N-UBp7Kj26CBX3kbc-F9BGhJ8vjAn6aTKc5u4iNphVOdNVTzSNaQbdKHR7io_FiTY-oHg9wu4qmyZWvqlTE/s1600/PicsArt_06-08-01.57.13.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1031" data-original-width="1569" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrEEH1bYHFmiuDJrkXFRERjFA-Yekz8BEgQ-Yam0ZS1ayJB3F8R3bl-AC-N-UBp7Kj26CBX3kbc-F9BGhJ8vjAn6aTKc5u4iNphVOdNVTzSNaQbdKHR7io_FiTY-oHg9wu4qmyZWvqlTE/s320/PicsArt_06-08-01.57.13.jpg" width="320" /></a></div>
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आज बात ज्योतिष के विषय पर करते है और वैसे भी हमारे देश मे यह विषय प्राचीन है,यह एक ऐसा विषय है जिस पर हमेशा से ही नये नये शोध होते रहते है । ज्योतिष शास्त्र एक अपूर्ण शास्त्र है और यह शास्त्र पूर्ण तरह से कभी भी लिखा नही जा सकता है ।<br />
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मैं आज आपको यह लेख ग्रहों के नाम पर डराने हेतु नही लिख रहा हु,यह लेख आपको जीवन मे सहाय्यक है । हमेशा से मेरा एक लक्ष्य रहा है,मुझे अपने क्षेत्र में हमेशा नई नई खोज करने का अवसर प्राप्त हुआ और यह अवसर प्राप्त करने हेतु बहोत से विद्वानों की मुझे मदत मिली है । कोई भी ज्योतिषी आपको प्रैक्टिकल करके यह नही बता सकता के आपका कौनसा ग्रह आपको शुभ फल दे रहा है और कौनसा ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है? परंतु माँ भगवती की असीम कृपा से मैं आपको प्रैक्टिकली बता नही बल्कि दिखा सकता हु के आपका कौनसा ग्रह कुंडली मे शुभ और अशुभ फल दे रहा है । यह क्रिया तो आपको आमने-सामने बिठाकर दिखाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नही है और जो भी यह प्रैक्टिकल देखना चाहे वह व्यक्ति आकर मुझसे मिल सकते है ।<br />
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सभी लोग जानते है मैं सीधी बात करना पसंद करता हु,मुझे घुमा फिराकर बात करना अच्छा नही लगता । प्रैक्टिकल क्रिया से देखा जाए तो किसी भी व्यक्ति के जन्म विवरण की आवश्यकता नही होती है परंतु कुंडली के अध्ययन हेतु जन्म विवरण आवश्यक है ।</div>
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हमारा मुख्य धेय इस लेख का यही है के "ऐसा कौनसा ग्रह हमारे कुंडली मे है जिसका उपासना और उपाय हमारे जीवन को पूर्णतः बदल दे?" । कुंडली मे नव ग्रह होते है जो व्यक्ति के जीवन का आधार है अपितु उन्ही से हमारे भूत भविष्य वर्तमान को हम जान सकते है और उन्ही नवग्रहों में एक ग्रह ऐसा भी होता है जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को शुभता में बदल सकता है ।</div>
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ज्योतिषविदों के अनुसार लगभग 144 प्रकार की कुंडलिया बनती है,लेकिन ज्यादातर ज्योतिषी चन्द्र और लग्न कुंडली को ज्यादा महत्व देते है और सर्वोत्तम सटीक फलादेश हेतु यही कुंडलिया महत्वपूर्ण होती है । नवग्रहों में उस एक ग्रह का अध्ययन करना जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को बदलकर हमे खुशिया प्रदान करे इसके लिए चन्द्र-सूर्य कुंडली से ज्यादा अन्य कुंडलियों का अध्ययन करना आवश्यक होता है । चंद्र और सूर्य कुंडली के साथ-साथ नवमांश कुंडली, वर्ग कुंडली, गोचर कुंडली के अध्ययन से हमे समझ मे आता है कि ऐसा कौनसा ग्रह कुंडली मे है जिसके मंत्र जाप करने के माध्यम से हमे जीवन मे उच्चता प्राप्त हो सकती है ।</div>
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जो व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए नवग्रहों में से उस एक ग्रह को अपने जीवन मे समर्पित होकर उनकी उपासना करना चाहते है उनको यह जानना अत्यधिक महत्वपूर्ण है के किसी एक ही ग्रह के उपाय और उपासना से जीवन को बेहतर बनाया जाए । आप किसी भी ज्योतिषी के पास जाओ तो वो लोग 2-3 ग्रह का उपाय बता देंगे और उससे भी कुछ फायदा नही हुआ तो कुछ नये उपाय किसी अन्य ग्रहों के बता देंगे परंतु मैं आपको आपकी कुण्डली को पाँच प्रकार से बनाकर सिर्फ एक ही ग्रह का उपाय,मंत्र और उपासना बताऊंगा जिससे जीवन मे फायदा ही होगा नुकसान नही ।</div>
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मुझसे किसी भी प्रकार का फलादेश जानने की इच्छा ना रखे क्योके मैं आपको 501/-रुपये दक्षिणा लेकर पाँच कुण्डलीयो का अध्ययन करके बता दूँगा के कौनसे ग्रह का जाप करने से आप जीवन के सभी कष्ट,बाधा,दोष को दूर करके सफलता प्राप्त कर सकते हो और मैं फलित ज्योतिष हेतु अन्य ज्योतिषविदों से ज्यादा दक्षिणा लेता हु इसलिए मुझसे कुंडली का फलित ना पूछे । मुझसे सिर्फ इतना ही जाने के कौनसे ग्रह का जाप-उपाय आपके लिए लाभदायक है ।</div>
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जिन्हें एक ग्रह के संबंध में जानना है जिस ग्रह के जाप-उपाय से कल्याण होगा वह व्यक्ति मेरे व्हाट्सएप पर अपना जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान के बारे में लिखकर भेजे और साथ मे 501/-रुपये धनराशि देने का बैंक स्लिप या paytm का स्क्रीनशॉट भेजिए ।</div>
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Paytm numbar 8421522368 है और बैंक एकाउंट डिटेल्स आपको व्हाट्सएप पर दिया जाएगा । आपको ग्रह का मंत्र और उपाय भी दिया जाएगा,साथ में यह भी बताया जाएगा के जीवन मे यह उपाय कब तक करना है ।</div>
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बिना दक्षिणा लिए और दिए ज्योतिष के संबंध में जानना शुभ नही होता है,इसलिए मैं दक्षिणा लेने हेतु बाध्य हु इसलिए जो लोग दक्षिणा देने में असमर्थ हो वह लोग मुझे माफ़ कर दे परंतु ज्योतिषीय कार्य बिना दक्षिणा के संभव नही है इसलिए बहोत कम धनराशि रखी है ।<br />
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निशुल्क में कुछ भी बता भी दु तो आपको उसका कोई महत्व नही रहेगा,यह मैं भली भाति जानता हूं ।</div>
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आदेश.....</div>
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Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-88170600564951315792020-05-02T12:22:00.001+05:302020-05-02T12:29:04.017+05:30स्वयं सिद्ध नऊ गुणि साबर मंत्र विद्या.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJz0oN8uukay0d97QYFfZhPQQEbJTidkrqp-DY9v9LxT7Mu8EOhz-0pyJj42Ba9-w5OBywJmllA7SreNMmOWwaz9Gxadyre9-N6ZYaE_deDkjvtkPP92A5OvQV4bJ7v60hxCKZJ89RMN4/s1600/FB_IMG_15883527505277772.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="967" data-original-width="1080" height="286" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJz0oN8uukay0d97QYFfZhPQQEbJTidkrqp-DY9v9LxT7Mu8EOhz-0pyJj42Ba9-w5OBywJmllA7SreNMmOWwaz9Gxadyre9-N6ZYaE_deDkjvtkPP92A5OvQV4bJ7v60hxCKZJ89RMN4/s320/FB_IMG_15883527505277772.jpg" width="320" /></a></div>
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महाराष्ट्र में दत्तात्रेय, नवनाथों के तंत्र-मंत्र-यंत्र का विशेष प्रभाव दिखाई देता है और महाराष्ट्र की मुख्य विद्या शाबर मंत्र विद्या है । यहां पर ग्रामीण मंत्र विद्या भी अपना विशेष स्थान रखता है, ग्रामीण शाबर मंत्रो का अपना एक विलक्षण प्रभाव है । यहां पर सबसे ज्यादा वनवासी विद्या को तिष्ण माना जाता है और ऐसे विद्या के जानकारों से अच्छी मित्रता महत्वपूर्ण होती है । यहा प्राचीन समय के तंत्राचार्यों ने कइ सारी विद्याओं को प्रगट किया एक विद्या का हम यहां उल्लेख करेंगे जैसे "नऊ गुणि विद्या" यह विद्या जालिन्दरनाथ जी के परम शिष्य कानिफनाथ जी से संबंधित है,कौल मार्ग के प्रमुख गुरु परंपरा में कानिफ नाथजी का स्थान महत्वपूर्ण है ।</div>
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आज हम जिस विद्या के विषय मे बात करने वाले है,यह अपने आप मे कामधेनु समान, सरल-सुगम, विलक्षण, प्रभावी, बेजोड़ है । जिसे हमारे यहा नऊ गुणि विद्या कहा जाता है,इस विद्या की विशेषता यह है कि यह जल्दी सिद्ध जागृत हो जाती है,ग्रहण काल मे बस एक 1 माला जाप से नऊ गुणि विद्या मंत्र सिद्ध हो जाता है,यह मंत्र ग्रहण में जो साधक नही कर सकते उन्हें कुछ दिनों तक जाप करने माध्यम से सिद्ध हो जाता है । जून माह में चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण आनेवाला है,यह ग्रहण भारत मे दृश्य और पूर्ण प्रभावी है,इस ग्रहण का हमे अवश्य ही लाभ उठाना चाहिए । यह शाबर मंत्र दिखने में छोटा मंत्र है परंतु इसमें बड़े बड़े काम करने की अद्भुत क्षमता है । इस छोटे से मंत्र को सिर्फ 108 बार बोलकर आखिर में अपना इच्छीत कार्य जो है वह बोल दे जैसे शान्ति कर्म,कार्यसिद्धि के लिए, सम्मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेषण, सांप का जहर झाड़ना, किसी का रोग दुःख-दर्द दूर करना इत्यादि...वैसे इस मंत्र की गोपनीयता के बारे में भी आपको बताया जाएगा ।</div>
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यह विद्या बैठे जगह से 36 कोस मतलब 450 किलोमीटर के आस पास तक अपना पूर्ण प्रभाव दिखाती है और इसके आगे का काम करना हो तो कुछ समय में काम करता है । यह मंत्र अपने आपमे एक तेजपुंज है जो अपनी तेजस्विता से सभी कार्यो को पूर्ण करता है,इस अद्वितीय मंत्र को प्राप्त करके आप स्वयं ही अपने मनचाहे कार्य को सिद्ध कर सकते है परंतु किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य ना करे अन्यथा विश्वास के साथ कहेता हु बुरे काम करने से नुकसान होगा । आप जितने अच्छे काम करेंगे उतना ही मंत्र ओर ज्यादा प्रभावी होता रहेगा और आपके काम भी अधिक गति से पूर्ण होते जाएंगे,यह इस विद्या की खासियत है ।</div>
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पिछले आर्टिकल में आप सभी से नम्र निवेदन किया गया था के इस समय हम लोग हमारे कार्य मे व्यस्त है और समय को समझते हुए पीड़ित लोगों तक खाना-राशन-दवाइयों को पोहचाने का कार्य माँ भगवती जी के कृपा से चल रहा है । इस कार्य को अच्छेसे करने हेतु आप लोग आर्थिक सहायता करें ताकि पीड़ितों के सेवा हेतु हमारा कार्य ना रुके परंतु हमे अब तक पिछले आर्टिकल के माध्यम से 0.1% लोगो से ही मदत मिली है । जब 1000 लोग आर्टिकल पढ़ते है तो उसमें कोई एक व्यक्ति मदत करता है,हो सकता है कोई 100 रुपये देकर मदत करे या कोई 500 रुपये देकर मदत करे,हमे आप सभी से उचित आर्थिक मदत की उम्मीद थी परंतु निराशा प्राप्त हुयी ।</div>
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एक छोटीसी बात कहेना चाहता हु-</div>
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"लोग भूखे है,भिखारी नही<br />सहयोग करे,शर्मिंदा नही"</h4>
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मेरे शहर की जनसंख्या 1 लाख 20 हजार है और अब तक 100 के आस पास कोरोना के मरीज पाए गए है,अभी तक 40 हजार लोगों को घर पर ही home quarantine करके रखा हुआ है,हमारे यहां ज्यादा लोग मजदूरी करके कमाकर जीवन जीते है । अभी आज सुना के जो महिला पुलिस वालो के लिए खाना बनाती थी वह भी कोरोना से संक्रमित निकली है,अब हो सकता है जो पुलिस वाले पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से सेवा कर रहे थे उनमें से 50% से ज्यादा पुलिस वाले कोरोना से संक्रमित हो ।</div>
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हमारे लिए सेवा कार्य अब बढ़ रहा है,समय बहोत भयंकर होता जा रहा है । धन-धान्य समाप्त होने पर है,यहां के व्यापारियों से बहोत अच्छी मदत मिली परंतु वो लोग भी कब तक मदत करेंगे ? सरकार से जो मदत प्राप्त होने की आशा थी अब वह आशा भी खत्म हो रही है,बोलते तो सभी है सरकार मदत करेगी परन्तु अभी तो यह देखने नही मिल रहा है । हो सकता है कुछ लोगो को सरकार के तरफ से राशन मिल रहा हो परंतु हमे तो सीधे सीधे पीडित लोगो तक पोहचकर मदत करनी है । सरकार और प्रशासन से प्राप्त होनेवाली मदत सीधे सीधे आसानी से प्राप्त होती नही दिखाई दे रही है । अब तो समय का चक्र यही कहेता है के सरकार को अपना कार्य करने दे और हमे भी अपना कार्य करते रहेना चाहिए क्योंकि मदत कोई भी करे हमे सिर्फ मदत से लेना देना है,किसी पर आक्षेप लेना हमारा काम नही है । मैंने पिछले बार भी हनुमानजी की कसम लेकर बोला था के आपसे प्राप्त आर्थिक मदत सीधे सीधे पीड़ितों को पोहचाने के का वचन देता हूं और इस बार भी यही वचन देता हू के "हनुमानजी की कसम लेकर बोल रहा हु आपसे प्राप्त आर्थिक सहायता धनराशि सीधे सीधे पीड़ितों के मदत हेतु ही पोहचायी जाएगी " ।</div>
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इस बार आपसे मदत प्राप्त करने हेतू नऊ गुणी विद्या का मंत्र और विधि विधान 501 रुपये आर्थिक सहायता धनराशि लिए बिना नही दिया जाएगा और कृपया कंजूस लोग दूर ही रहे क्योंकि आप लोग ऐसे दिव्य मंत्र प्राप्त करके भी किसी का भला नही कर सकते हो ।</div>
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बात क्या है ना ये जो गरीब लोग है,वो भूख से परेशान है,सोचते है के घर से बाहर जाएंगे तो कुछ खाने के लिए मिल जाएगा,इन्हें नही पता है के अभी इनके घर से बाहर निकलने से इन्हें क्या नुकसान होगा क्योंकि ज्यादा लोग तो इसमें देहाती है । मेरे शहर के सभी गरीब लोग शायद कोरोना से संक्रमित हो सकते है अगर इन्हें घर से बाहर निकलने से नही रोका तो । इन्हें रोकने का एक ही अवसर यह है के इनके जरूरत का सामान इनके घर तक पोहचाया जाए ।</div>
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4-5 दिन पहिले की बात है जब मैं सरकारी हॉस्पिटल गया था, यह देखने के लिए क्या वहा हम कुछ मदत कर सकते है । तो वहां एक गर्भवती महिला के माता ने एक दुखद बात बताई,बोल रही थी "कल रात में 9 बजे खाना मिला था और अब दोपहर 3 बज रहे है फिर भी खाना नही मिला" यह बात अत्यंत दुखदाई थी । वहा पर बहोत सारी गर्भवती महिलाएं थी जो कुछ ही दिनों में बच्चे को जन्म देने के लिए अप्सताल में भर्ती हुई थी और ऐसी महिलाओं को भूखा रखना पीड़ादायक है । दूसरे दिन हमने सुबह वहा नाश्ता पोहचाने का कार्य शुरू कर दिया है,इस तरह से हमारे कार्य को हमे आगे बढ़ाना है । हाथ मे माला लेकर जाप करने वाले हाथों से ज्यादा सेवा करने वाले हाथ समस्त देवताओं को प्रिय होते है,कृपया सहयोग करे ।</div>
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आर्थिक सहायता करने हेतु व्हाट्सएप पर अकाउंट डिटेल्स प्राप्त कर सकते हो या फिर Paytm से भी पेमेंट कर सकते है । अन्य किसी भी जानकारी हेतु व्हाट्सएप पर बात करे या फिर फोन कीजिएगा दोपहर 12 बजे से रात में 9 बजे तक,आप सभी से जो उम्मीद लगायी है उसे अवश्य सफल करे ।<br />
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WhatsApp, calling and Paytm number-<br />
+91-8421522368</div>
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आदेश........</div>
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Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7312295273551714465.post-66342093110046944232020-04-09T01:36:00.001+05:302020-04-09T02:50:20.906+05:30भूत भविष्य दर्शन साबर मंत्र सिद्धी साधना.<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRcfMohy6QjxzLWT4DHAjZfbBfdWMlLbYtIXfJYosA9ouEb2UNvHsDSrgKczKon3xO6ucJX6HlaiqSxVZMUFF7yWFJ-P7Me2JOlsbclm8gJcydPSIFBYQVeoRMpJ01orftFlGtLoH7uU0/s1600/PicsArt_04-09-01.40.10.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="456" data-original-width="696" height="209" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRcfMohy6QjxzLWT4DHAjZfbBfdWMlLbYtIXfJYosA9ouEb2UNvHsDSrgKczKon3xO6ucJX6HlaiqSxVZMUFF7yWFJ-P7Me2JOlsbclm8gJcydPSIFBYQVeoRMpJ01orftFlGtLoH7uU0/s320/PicsArt_04-09-01.40.10.jpg" width="320" /></a></div>
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आज आपको अद्वितीय शाबर मंत्र के बारे में बता रहा हु जिससे आप भुत भविष्य वर्तमान दर्शन सिद्धि प्राप्त कर सकते हो,यह साधना इसलिए अद्वितीय है क्योंकि यह नजर पिशाच का मंत्र है और नजर पिशाच कभी भी मनुष्य जाति को तकलीफ नही देते है साथ मे किसी भी प्रकार की कोई हानि नही पोहचाते है । इस साधना में किसी भी प्रकार के साधना सामग्री की आवश्यकता नही है । इस साधना में सिर्फ रात्रिकालीन मंत्र जाप नित्य करना आवश्यक है । साधना समाप्ति के बाद साधक आंख बंद करके किसी भी व्यक्ति का ध्यान करता है तो साधक को उस व्यक्ति के भूत भविष्य वर्तमान का दर्शन होता है । इस सिद्धी से साधक चलते फिरते भी मंत्र का जाप करके किसी भी व्यक्ति के बारे में कुछ भी जान सकता है ।<br />
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मैंने यह मंत्र एक महात्मा से प्राप्त किया था और वह महात्मा इस सिद्धी को पूर्णता प्राप्त कर चुके थे,आज अचानक उनकी याद आयी तो सोचा उस मंत्र को ब्लॉग के पाठकों तक पोहचाया जाए । इस समय तो महात्मा इस दुनिया मे नही रहे परंतु अगर आज वह जीवित होते तो अवश्य ही उनके बारे में मैं आपको बताता । वह महात्मा विक्रांत भैरव जी के सिद्ध साधक नाम से देश विदेश में जाने जाते है और उज्जैन नगरी में उनके बारे में हर कोई उन्हें जानता था । डबराल बाबा नाम से आप गूगल पर सर्च कीजिए तो आप उनके बारे में अवश्य जिज्ञासा वश माहिती ले सकते है । बाबा बड़े ही कृपालु थे और अपने भक्तों का हमेशा खयाल रखते थे,यह मंत्र उन्होंने मुझे वर्ष 2010 में उज्जैन के विक्रांत भैरव मंदिर में रविवार के दिन दिया था । आज वही मंत्र आपको भी दिया जाएगा और इससे भी पहिले कई साधक मित्रो को मैं यह मंत्र दे चुका हूं,जिसने इस मंत्र को सिद्ध करने हेतु अच्छा प्रयास किया उन्होंने सफलता प्राप्त की है । यह मंत्र कोई भी व्यक्ति कर सकता है,इस मंत्र के जाप हेतु साधक के गुरु हो तो अच्छी बात है और गुरु ना भी हो तो शिव जी को गुरु मानकर साधक इस मंत्र सिद्धि में सफलता प्राप्त कर सकता है ।</div>
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यह गोपनीय मंत्र आपको व्हाट्सएप या फिर ईमेल के माध्यम से दिया जाएगा-<br />
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whatsapp & calling number </div>
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+91-8421522368</div>
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E-mail-<br />
snpts1984@gmail.com<br />
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बड़े ही विनम्रता से मदत मांगी थी और प्रार्थना भी की थी के इस समय देश के हालात ऐसे है "हमे एक दूसरे की मदत करना अत्याधिक आवश्यक है" । अब जिनमे इंसानियत थी वह लोग मदत करने में लगे हुए है। मुझे भी आज खुशी हुई के हमारे क्षेत्र में मदत करने वाले व्यक्तियों के नाम और उनके ग्रुप के नाम दिए गए है,उन नामो में मेरा और मेरे ग्रुप का भी नाम है । आज सही में हनुमान जयंती के अवसर पर प्रभु की दया से किये जाने वाले कार्य को ओर ज्यादा करने की हिम्मत मिली । हमारे यहां के लोग कार्य से खुश है,साथ मे कार्य करने वालो के परिजन भी खुश है । यह खुशी प्राप्त करने के लिए तन-मन-धन से जो परिश्रम किया है वह हमारे लिए परमानंद है ।</div>
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मैंने आप सभी से पिछले आर्टिकल में मदत मांगी थी जिसमे एक सज्जन ने मदत की और बाकी लोगो ने सिर्फ उस आर्टिकल में दिये हुए रोग निवारण साबर मंत्र को ही महत्व दिया इसलिए उस आर्टिकल को ब्लॉग से निकालना पड़ा । आज आपसे मदत नही मांगी जा रही है अपितु आज इस समय देश की हालत को समजते हुए मंत्र के बदले दक्षिणा ली जाएगी । आपसे प्राप्त दक्षिणा की राशि उन लोगो तक पोहचाई जाएगी जिन्हें अन्न-वस्त्र और ओषधियों की आवश्यकता है । मैं आपको भगवान हनुमानजी की कसम लेकर वचन देता हूं के "मंत्र के बदले ली जाने वाली धनराशि को सहाय्यता के रूप में पीड़ित तक अवश्य ही पोहचा दिया जाएगा " आप चिंता ना करे ।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhp3fxIaKkf9AAn38VY8iFZoiUc5vIg09cyMQcvHZUaN-nfdo0rA8VILVGVZX5qncoR-N0QsSMPiXacFOQe-3GimUGR7gKCjCYYb3rG9BJTAbEV2G0VlG2D1n1EeHR5qHofJqV6cEFzrDM/s1600/IMG-20200408-WA0016.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="793" data-original-width="712" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhp3fxIaKkf9AAn38VY8iFZoiUc5vIg09cyMQcvHZUaN-nfdo0rA8VILVGVZX5qncoR-N0QsSMPiXacFOQe-3GimUGR7gKCjCYYb3rG9BJTAbEV2G0VlG2D1n1EeHR5qHofJqV6cEFzrDM/s320/IMG-20200408-WA0016.jpg" width="287" /></a></div>
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यहां आज आपको मंत्र बेचा नही जा रहा है सिर्फ आपसे पीड़ितों के सहायता हेतु आर्थिक मदत मांगी जा रही है । जो सज्जन देश के हालात को देखते हुए हमे आर्थिक रूप से मदत करेंगे उन्हें अवश्य ही मंत्र दिया जाएगा और साधना की पूर्ण गोपनीय विधि भी बताई जाएगी । </div>
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आपको फिर से एक बात बता दु आपके दान के स्वरूप में आर्थिक मदत मांग रहे है,भिक नही मांग रहे है । आपमे इंसानियत होगी इतना मुझे विश्वास है और आप बिना दान किये मंत्र प्राप्त करने हेतु परेशान नही करेंगे यह आशा करता हु ।</div>
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आप Paytm के माध्यम से भी आर्थिक मदत कर सकते है-</div>
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Paytm number +918421522368</div>
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या फिर बैंक डिटेल्स भी मांग सकते है,आपको व्हाट्सएप पर बैंक एकाउंट डिटेल्स दिया जाएगा ।<br />
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आर्थिक सहाय्यता हेतु आपसे कोई जबर्दस्ती नही की जा रही है,आप सोच विचार करके अपने हिसाब से दान कीजिएगा, मंत्र अमूल्य है इसलिए मंत्र का मूल्य नही लगाया जा रहा है,जो भी आपको ठीक लगे उतना ही दान करे ।<br />
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आदेश.......<br />
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Shri Govind Nath jihttp://www.blogger.com/profile/08279677148632078727noreply@blogger.com