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8 Jun 2020

भविष्य को एक ही ग्रह बदल सकता है,नवग्रह नही.



आज बात ज्योतिष के विषय पर करते है और वैसे भी हमारे देश मे यह विषय प्राचीन है,यह एक ऐसा विषय है जिस पर हमेशा से ही नये नये शोध होते रहते है । ज्योतिष शास्त्र एक अपूर्ण शास्त्र है और यह शास्त्र पूर्ण तरह से कभी भी लिखा नही जा सकता है ।

मैं आज आपको यह लेख ग्रहों के नाम पर डराने हेतु नही लिख रहा हु,यह लेख आपको जीवन मे सहाय्यक है । हमेशा से मेरा एक लक्ष्य रहा है,मुझे अपने क्षेत्र में हमेशा नई नई खोज करने का अवसर प्राप्त हुआ और यह अवसर प्राप्त करने हेतु बहोत से विद्वानों की मुझे मदत मिली है । कोई भी ज्योतिषी आपको प्रैक्टिकल करके यह नही बता सकता के आपका कौनसा ग्रह आपको शुभ फल दे रहा है और कौनसा ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है? परंतु माँ भगवती की असीम कृपा से मैं आपको प्रैक्टिकली बता नही बल्कि दिखा सकता हु के आपका कौनसा ग्रह कुंडली मे शुभ और अशुभ फल दे रहा है । यह क्रिया तो आपको आमने-सामने बिठाकर दिखाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नही है और जो भी यह प्रैक्टिकल देखना चाहे वह व्यक्ति आकर मुझसे मिल सकते है ।


सभी लोग जानते है मैं सीधी बात करना पसंद करता हु,मुझे घुमा फिराकर बात करना अच्छा नही लगता । प्रैक्टिकल क्रिया से देखा जाए तो किसी भी व्यक्ति के जन्म विवरण की आवश्यकता नही होती है परंतु कुंडली के अध्ययन हेतु जन्म विवरण आवश्यक है ।

हमारा मुख्य धेय इस लेख का यही है के "ऐसा कौनसा ग्रह हमारे कुंडली मे है जिसका उपासना और उपाय हमारे जीवन को पूर्णतः बदल दे?" । कुंडली मे नव ग्रह होते है जो व्यक्ति के जीवन का आधार है अपितु उन्ही से हमारे भूत भविष्य वर्तमान को हम जान सकते है और उन्ही नवग्रहों में एक ग्रह ऐसा भी होता है जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को शुभता में बदल सकता है ।


ज्योतिषविदों के अनुसार लगभग 144 प्रकार की कुंडलिया बनती है,लेकिन ज्यादातर ज्योतिषी चन्द्र और लग्न कुंडली को ज्यादा महत्व देते है और सर्वोत्तम सटीक फलादेश हेतु यही कुंडलिया महत्वपूर्ण होती है । नवग्रहों में उस एक ग्रह का अध्ययन करना जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को बदलकर हमे खुशिया प्रदान करे इसके लिए चन्द्र-सूर्य कुंडली से ज्यादा अन्य कुंडलियों का अध्ययन करना आवश्यक होता है । चंद्र और सूर्य कुंडली के साथ-साथ नवमांश कुंडली, वर्ग कुंडली, गोचर कुंडली के अध्ययन से हमे समझ मे आता है कि ऐसा कौनसा ग्रह कुंडली मे है जिसके मंत्र जाप करने के माध्यम से हमे जीवन मे उच्चता प्राप्त हो सकती है ।

जो व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए नवग्रहों में से उस एक ग्रह को अपने जीवन मे समर्पित होकर उनकी उपासना करना चाहते है उनको यह जानना अत्यधिक महत्वपूर्ण है के किसी एक ही ग्रह के उपाय और उपासना से जीवन को बेहतर बनाया जाए । आप किसी भी ज्योतिषी के पास जाओ तो वो लोग 2-3 ग्रह का उपाय बता देंगे और उससे भी कुछ फायदा नही हुआ तो कुछ नये उपाय किसी अन्य ग्रहों के बता देंगे परंतु मैं आपको आपकी कुण्डली को पाँच प्रकार से बनाकर सिर्फ एक ही ग्रह का उपाय,मंत्र और उपासना बताऊंगा जिससे जीवन मे फायदा ही होगा नुकसान नही ।

मुझसे किसी भी प्रकार का फलादेश जानने की इच्छा ना रखे क्योके मैं आपको 501/-रुपये दक्षिणा लेकर पाँच कुण्डलीयो का अध्ययन करके बता दूँगा के कौनसे ग्रह का जाप करने से आप जीवन के सभी कष्ट,बाधा,दोष को दूर करके सफलता प्राप्त कर सकते हो और मैं फलित ज्योतिष हेतु अन्य ज्योतिषविदों से ज्यादा दक्षिणा लेता हु इसलिए मुझसे कुंडली का फलित ना पूछे । मुझसे सिर्फ इतना ही जाने के कौनसे ग्रह का जाप-उपाय आपके लिए लाभदायक है ।

जिन्हें एक ग्रह के संबंध में जानना है जिस ग्रह के जाप-उपाय से कल्याण होगा वह व्यक्ति मेरे व्हाट्सएप पर अपना जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान के बारे में लिखकर भेजे और साथ मे 501/-रुपये धनराशि देने का बैंक स्लिप या paytm का स्क्रीनशॉट भेजिए ।

Paytm numbar 8421522368 है और बैंक एकाउंट डिटेल्स आपको व्हाट्सएप पर दिया जाएगा । आपको ग्रह का मंत्र और उपाय भी दिया जाएगा,साथ में यह भी बताया जाएगा के जीवन मे यह उपाय कब तक करना है ।

बिना दक्षिणा लिए और दिए ज्योतिष के संबंध में जानना शुभ नही होता है,इसलिए मैं दक्षिणा लेने हेतु बाध्य हु इसलिए जो लोग दक्षिणा देने में असमर्थ हो वह लोग मुझे माफ़ कर दे परंतु ज्योतिषीय कार्य बिना दक्षिणा के संभव नही है इसलिए बहोत कम धनराशि रखी है ।

निशुल्क में कुछ भी बता भी दु तो आपको उसका कोई महत्व नही रहेगा,यह मैं भली भाति जानता हूं ।


आदेश.....

28 Dec 2019

मंगल दोष सम्पूर्ण विश्लेषण.



मांगलिक दोष क्या होता है और कैसे ग्रह इस दोष को समाप्त करते हैं?

मंगल दोष जो कि ना केवल भारत में बल्कि अब विदेशों में भी लोग इसे मान ने लगे हैं आज हम इसका पूर्ण रूप से विश्लेषण कर रहे हैं कि कब दोष होता है कब दोष समाप्त होता है। 'मांगलिक' यह शब्द सुनते ही विवाह का लड्डू किरकिरा नज़र आने लगता है। जिस के साथ विवाह होना है यदि उसकी कुंडली में यह दशा मौजूद हो तो वह जीवनसाथी नहीं जीवनघाती लगने लगता है।

लेकिन बहुत बार जैसा ऊपरी तौर पर नज़र आता है वैसा असल में नहीं होता। ज्योतिषशास्त्री भी कहते हैं कि सिर्फ मांगलिक दोष के कारक भाव में मंगल के होने से ही मांगलिक दोष प्रभावी नहीं हो जाता बल्कि उसे घातक अन्य परिस्थितियां भी बनाती हैं। यह हानिकारक तभी होता है जब मंगल निकृष्ट राशि का व पापी भाव का हो। कहने का तात्पर्य है कि मांगलिक मात्र कुंडली का दोष नहीं है बल्कि यह कुछ परिस्थितियों में विशेष शुभ योग भी बन जाता है।

मंगल क्या होता है?

सर्वार्थ चिन्तामणि, चमत्कार चिन्तामणि, देवकेरलम्, अगस्त्य संहिता, भावदीपिका जैसे अनेक ज्योतिष ग्रन्थों में मंगल के बारे में एक प्रशस्त श्लोक मिलता है।

लग्ने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे।
भार्याभर्तृविनाशाय, भर्तुश्च स्त्रीविनाशनम्।।

अर्थात् जन्म कुण्डली के लग्न स्थान से प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुण्डली मंगलीक कहलाती है। पुरुष जातक की कुण्डली में यह स्थिति हो तो वह कुण्डली 'मौलिया मंगल' वाली कुण्डली कहलाती है तथा स्त्री जातक की कुण्डली में उपरोक्त ग्रह-स्थिति को 'चुनरी मंगल' वाली कुण्डली कहते हैं। इस श्लोक के अनुसार जिस पुरुष की कुण्डली में 'मौलिया मंगल' हो उसे 'चुनरी मंगल' वाली स्त्री के साथ विवाह करना चाहिए अन्यथा पति या पत्नी दोनों में से एक की मृत्यु हो जाती है।

यह श्लोक कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण लगता है परन्तु कई बार इसकी अकाट्य सत्यता नव दम्पत्ति के वैवाहिक जीवन पर अमिट बदनुमा दाग लगाकर छोड़ जाती है। उस समय हमारे पास पश्चा ताप के सिवा हमारे पास कुछ नहीं रहता। ज्योतिष सूचनाओं व सम्भावनाओं का शास्त्र है। इसका सही समय पर जो उपयोग कर लेता है वह धन्य हो जाता है और सोचता है वह सोचता ही रह जाता है, उस समय सिवाय पछतावे के कुछ शेष नहीं रहता।


क्या चन्द्रमा से भी मंगल देखना चाहिए?

बहुत जगह यह प्रश्न (विवाद) उठ खड़ा होता है कि क्या लग्न कुण्डली की तरह 'चन्द्र कुण्डली' से भी मंगल का विचार करना चाहिए। क्योंकि उपरोक्त प्रसिद्ध श्लोक में लग्ने शब्द दिया हुआ है यहां चन्द्रमा का उल्लेख नहीं है। इस शंका के समाधान हेतु हमें परवर्ती दो सूत्र मिलते हैं।


लग्नेन्दुभ्यां विचारणीयम्।

अर्थात् जन्म लग्न से एवं जन्म के चन्द्रमा दोनों से मंगल की स्थिति पर विचार करना चाहिए और भी कहा है-यदि जन्म चक्र एवं जन्म समय का ज्ञान न भी हो तो नाम राशि से जन्म तारीख के ग्रहों को स्थापित करके अर्थात् चन्द्र कुंडली बनाकर मंगल की स्थिति पर विचार किया जा सकता है। इस बारे में स्पष्ट वचन मिलता है।


अज्ञातजन्मनां नृणां, नामभे परिकल्पना।
तेनैव चिन्तयेत्सर्व, राशिकूटादि जन्मवत ।।

परन्तु यदि एक जातक का जन्म चक्र मौजूद हो और दूसरे का न हो तो दोनों की परिकल्पना भी नाम राशि से ही करनी चाहिए। एक का जन्म से, दूसरे का नाम से मिलान नहीं करना चाहिए।

जन्मभं जन्मधिषण्येन, नामधिषण्येन नामभम्, व्यत्ययेन यदायोज्यं, दम्पत्योनिर्धनं ध्रुवम्।

अत: आज के युग में तात्कालिक समय में भी मंगलीक दोष की गणना संभव है। भौम पंचक दोष किसे कहते हैं? क्या शनि, राहु व अन्य क्रूर ग्रहों के कारण कुण्डली मंगलीक कहलाती है?

चन्द्राद् व्ययाष्टमे मदसुखे राहुः कुजार्की तथा।
कन्याचेद् वरनाशकृत वरवधूहानिः ध्रुवं जायते।।

मंगल, शनि, राहु, केतु, सूर्य ये पांच क्रूर होते हैं अतः उपरोक्त स्थानों में इनकी स्थिति व सप्तमेश की ६,८,१२ वें घर में स्थिति भी मंगलीक दोष को उत्पन्न करती है। यह भौम पंचक दोष कहलाता है।
द्वितीय भाव भी उपरोक्त ग्रहों से दूषित हो तो भी उसके दोष शमनादि पर विचार अभीष्ट है। विवाहार्थ द्रष्टव्य भावों में दूसरा, १२वां भाव का विशेष स्थान है। दूसरा कुटुम्ब वृद्धि से सम्बन्धित है. १२वां भाव शय्या सुख से। चतुर्थ भाव में मंगल, घर का सुख नष्ट करता है। सप्तम भाव जीवनसाथी का स्थान है, वहां पत्नी व पति के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है। के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है। के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है।

१. लग्न में मंगल अपनी दृष्टि से १,४,७,८ भावों को प्रभावित करेगा। यदि दुष्ट है तो शरीर व गुप्तांग को बिगाड़ेगा। रति सुख में कमी करेगा। दाम्पत्य सुख बिगाड़ेगा।

२. इसी तरह सप्तमस्थ मंगल, पति, पिता,शरीर और कुटुम्ब सौख्य को प्रभावित करेगा। सप्तम में मंगल पत्नी के सुख को नष्ट करता है जब गृहणी (घर वाली) ही न रहे तो घर कैसा?

३. चतुर्थस्थ मंगल-सौख्य पति, पिता और लाभ को प्रभावित करेगा। चतुर्थ में मंगल घर का सुख नष्ट करता है।

४. लिंगमूल से गुदावधि अष्टम भाव होता है। अष्टमस्थ मंगल इन्द्रिय सुख, लाभ, आयु को व भाई बहनों को गलत ढंग से प्रभावित करेगा।

५. द्वादश भाव शयन सुख कहलाता है। शय्या का परमसुख कान्ता हैं। बारहवें मंगल शयन सुख की हानि करता है। धनस्थ मंगल-कुटुम्ब संतान, इन्द्रिय सुख, आवक व भाग्य को, एकमत से पिता को प्रभावित करेगा।

अत: इन स्थानों में मंगल की एवं अन्य क्रूर ग्रहों की स्थिति नेष्ट मानी गई है। खासकर अष्टमस्थ ग्रहों नूनं न स्त्रियां शोभना मतः (स्त्री जातक) अत: अष्टम और सप्तमस्थ मंगल का दोष तो बहुत प्रभावी है।
स्त्रियों की कामवासना का मंगल से विशेष संबंध है। यह रज है। मासिक धर्म की गड़बड़ियां प्रायः इसी से दूषित होती है। पुरुष की कामवासना का संबंध शुक्र (वीर्य) से है। मंगल रक्तवर्णीय है और शुक्र श्वेतवर्णीय है। इन दोनों के शुभ होने व समागम से ही संतान पुष्ट और वीर्यवान् होती है। अगर कुण्डली में किसी भी दृष्टि से मंगल व शुक्र का संबंध न हो तो संतानोत्पति दुष्कर है। विवाह का एक मुख्य लक्ष्य संतानोत्पति भी है। (ऋतु बराबर मंगल, रेतस् बराबर शुक्र) संतान के बिना स्त्री-पुरुष दोनों ही अपूर्ण व अधूरे रहते हैं।

ऋतु रेतो न पश्येत, रेतं न ऋतु स्तथा।
अप्रसूतो भवेज्जातः परिणीता बहुस्त्रियां।।

मंगल मकर में उच्च का होता है और शुक्र मीन में। संस्कृत में कामदेव का मकरध्वज नाम से संबोधित किया जाता है, और उसको मीन केतु भी कहा है जिसकी ध्वजा में मीन है। मीन व मकर दोनों जल के प्राणी हैं। कामदेव को भी जल तत्त्व प्रधान माना गया है। बसन्त पंचमी को प्रायः शुक्र जब अपनी मीन राशि में आता है तब इसका जन्म माना जाता है। फूलों में पराग का जन्म ही रजोदर्शन है। रजोदर्शन ही बसंत है जो कि जवानी का प्रतीक माना गया है।

कामदेव के पांच बाण हैं शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध। इन सबमें उस समय कन्या के कौमार्य की छटा निखरकर, बासन्ती बन जाती है जब कामोपभोग योग्य बनती है। मंगल रक्त विकास और रक्त की वृद्धि दोनों में सहायक है जैसी इसकी स्थिति हो। सप्तम भवन पति के कारण पत्नी, कामदेव व रतिक्रीड़ा आदि का विचार अत्यन्त होता है।

क्या द्वितीयस्थ मंगल को भी मंगल दोष में माना जाएगा?
जन्म कुण्डली में द्वितीय भाव दक्षिण नेत्र, धन, वाणी, वाक् चातुर्य एवं मारक स्थान का माना गया है। द्वितीय भावस्थ मंगल वाणी में दोष, कुटुम्ब में कलह कराता है। द्वितीय भाव में स्थिति मंगल की पूर्ण दृष्टि पंचम, अष्टम एवं नवम में भाव पर होती है। फलतः ऐसा मंगल सन्तति, स्वास्थ्य (आयु) एवं भाग्य में रुकावट डालता है कहा भी है।

भवेत्तस्य किं विद्यमाने कुटुम्बे, धने वा कुजे तस्य लब्धे धने किम्।
यथा त्रोटयेत् मर्कटः कण्ठहार पुनः सम्मुखं को भवेद्वादभग्नः।।


द्वितीय भाव में मंगल वाला कुटुम्बी क्या काम का?

क्योंकि उसके पास धन-वैभव होते हुए भी वह (जातक) अपने स्वयं का या कुटुम्ब का भला ठीक उसी तरह से नहीं कर सकता, जिस तरह से बन्दर अपने गले में पड़ी हुई बहुमूल्य मणियों के हार का सुख व उपयोग नहीं पहचान पाता? बन्दर तो उस मणिमाला को साधारण-सूत्र समझकर तोड़कर फेंक देगा। किसी को देगा भी नहीं। द्वितीय मंगल वाला व्यक्ति ठीक इसी प्रकार से प्रारब्ध से प्राप्त धन को नष्ट कर देता है तथा कुटुम्बीजनों से व्यर्थ का झगड़ा करता रहता है।
द्वितीय भावस्थ मंगल जीवन साथी के स्वास्थ्य को अव्यवस्थित करता है तथा परिजनों में विवाद उत्पन्न करता है। अतः द्वितीय स्थ मंगल वाले व्यक्ति से सावधानी अनिवार्य है। परन्तु मंगल दोष मेलापक में द्वितीयस्थ मंगल को स्थान नहीं दिया गया है, यह बात प्रबुद्ध पाठकों को भली-भांति जान लेनी चाहिए।
डबल व त्रिबल मंगली दोष क्या होता है? कैसे होता है?

प्राय: ज्योतिषी लोग कहते हैं कि यह कुण्डली तो डबल मांगलिक, त्रिबल मांगलिक है। मंगल डबल कैसे हो जाता है? यह कौन सी विधि (गणित) है? इसका समाधान इस प्रकार है।

१. जब किसी कुण्डली के 1/4/7/8 या 12वें भाव में मंगल हो तो वह कुण्डली मांगलिक कहलाती है। इसे हम (सिंगल) मांगलिक कह सकते हैं।

२. इन्हीं भावों में यदि मंगल अपनी नीच राशि में होकर बैठा हो तो मंगल द्विगुणित प्रभाव डालेगा तो ऐसे में वह कुण्डली डबल (द्विगुणित) मांगलिक कहलाएगी।

३. अथवा 1/477/8/12वें भावों में शनि, राहु, केतु या सूर्य इनमें से कोई ग्रह हो तथा मंगल हो तो ऐसे में भी यह कुण्डली डबल (द्विगुणित) मांगलिक कहलाएगी।

४. मंगल नीच का प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वितीय भावों में हो, साथ में यदि राहु. शनि, केतु या सूर्य हो तो ऐसे में यह कुण्डली त्रिबल (ट्रिबल) मांगलिक कहलाएगी क्योंकि मंगल दोष इस कुण्डली में तीन गुणा बढ़ जाता है।

५. इस प्रकार से एक कुण्डली अधिकतम पंचगुणित मंगल दोष वाली हो सकती है। तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। अब कुछ उदाहरण देंखे,मंगलीक दोष निवारण के कुछ बहुमूल्य सूत्र :-

उपरोक्त सभी सूत्रों को जब हम प्रत्येक कुण्डली पर घटित करेंगे तो 80 प्रतिशत जन्म कुण्डलीयां मंगल दोष वाली ही दिखलाई पड़ेंगी। इससे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि परवर्ती कारिकाओं में मंगल दोष परिहार के इतने प्रमाण मिलते हैं कि इनमें से आधी से ऊपर कुण्डलीयां तो स्वतः ही परिहार वचनों से मंगल होते हुए भी मंगल दोष-रहित हो जाती हैं अर्थात् यदि पुरुष की कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भावों में शनि, राहु या सूर्य हो तो मंगल का मिलान हो जाता है। इसमें कुछ भी परेशानी नहीं है। सारी समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती है। उनमें से कुछ सूत्र इस प्रकार हैं।

अजे लग्ने, व्यये चापे, पाताले वृश्चिके स्थिते।
वृषे जाये, घटे रन्ध्र, भौमदोषो न विद्यते।।१।।

मेष का मंगल लग्न में, धनु का द्वादश भाव में, वृश्चिक का चौथे भाव में, वृषभ का सप्तम में, कुम्भ का आठवें भाव में हो तो भौम दोष नहीं रहता।।१।।

नीचस्थो रिपुराशिस्थः खेटो भावविनाशकः।
मूलस्वतुंगामित्रस्था भाववृद्धि करोत्यलम् ।।२।। -जातक पारिजात

अतः स्व (१,८) मूल त्रिकोण, उच्च (१०) मित्रस्थ (५,९,१२) राशि अर्थात् सूर्य, गुरु और चन्द्रक्षेत्री हो तो भौम का दोष नहीं रहता ।।२।।

अर्केन्दुक्षेत्रजातानां, कुजदोषो न विद्यते।
स्वोच्चमित्रभजातानां तद् दोषो न भवेत् किल।।३।।

सिंह लग्न और कर्क लग्न में भी लग्नस्थ मंगल का दोष नहीं है।।३।।

शनिः भौमोऽथवा कश्चित्, पापो वा तादृशो भवेत्।
तेष्वेव भवनेष्वेव, भौमदोषविनाशकृत् ।।४।।

शनि, मंगल अथवा कोई भी पाप ग्रह राहु, सूर्य, केतु अगर १, ४, ७, ८, १२ वें भाव में कन्या जातक के हों और उन्हीं भावों में वर के भी हों तो भौम दोष नष्ट होता है। मंगल के स्थान पर दूसरी कुण्डली में शनि या पांच ग्रहों में से एक भी हो, तो उस दोष को काटता है।।४।।

यामित्रे च यदा सौरिःलग्ने वा हिबुकेऽथवा।
अष्टमे द्वादशे वापि भौमदोषविनाशकृत्।।५।।

शनि यदि १,४,७,८,१२ वें भाव में एक की कुण्डली में हो और दूसरे की कुण्डली में इन्हीं स्थानों में से एक किसी स्थान में मंगल हो तो भौम दोष नष्ट हो जाता है।।५।।

केन्द्रे कोणे शुभोदये च, त्रिषडायेऽपि असद् ग्रहाः।
तदा भौमस्य दोषो न, मवने मवपस्तथा।।६।।

तृतीय, षष्ठ, एकादश भावों में अशुभ ग्रह हों और केन्द्र १, ४, ७, १०, व कोण ५,९, में शुभ ग्रह हो तथा सप्तमेश सातवें हो तो मंगल का दोष नहीं रहता।।६।।
सबले गुरौ भृगौ वा लग्नेऽपिवा अथवा भौमे।

वक्रिणि नीचगृहे वाऽर्कस्थेऽपि वा न कुजदोषः।।७।।

गुरु व शनि बलवान हो, फिर भले ही १,४,७,१० व कोण ५,९ में शुभ ग्रह हो तथा सप्तमेश सातवें हो तो मंगल का दोष नहीं होता ।।७।।

वाचस्पती नवमपंचकेन्द्रसंस्थे जातांगना भवति पूर्णविभूति युक्ता।
साध्वी, सुपुत्रजननी सुखिनी गुणढ्याः, सप्ताष्टके यदि भवेदशुभ ग्रहोऽपि।।८।।

कन्या की कुण्डली में गुरु यदि १,४,५,७,९,१० भावों में मंगल हो, चाहे वक्री हो, चाहे नीच हो या सूर्य की राशि में स्थित हो, मंगलीक दोष नहीं लगता। अपितु उसके सुख-सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है।।८।।

त्रिषट् एकादशे राहुः, त्रिषडेकावशे शनिः।
विषडकादेश भौमः सर्वदोषविनाशकृत् ।।९।।

३,६,११ वें भावों में राहु, मंगल या शनि में से कोई ग्रह दूसरी कुण्डली में हो तो भौम दोष नष्ट हो जाता है।।९।।

चन्द्र, गुरु या बुध से मंगल युति कर रहा हो तो भौम दोष नहीं रहता परन्तु इसमें चन्द्र व शुक्र का बल जरूर देखना चाहिए।।१०।।

द्वितीय भौमदोषस्तु कन्यामिथुनयोर्विना ।।११।।

द्वितीय भाव में बुध राशि (मिथुन व कन्या) का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा वृषभ व सिंह लग्न में ही संभव है ।।११।।

चतुर्थे कुजदोषः स्याद्, तुलावृषभयोर्विना ।।१२।।

चतुर्थ भाव में शुक्र राशि (वृषभ-तुला) का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा कर्क और कुंभ लग्न में होगा ।।१२।।

अष्टमो भौमदोषस्तु धनुमीनद्वयोर्विना ।।१३।।

अष्टम भाव में गुरु राशि (धनु-मीन) का मंगल दोषकृत 
नहीं है। ऐसा वृष लग्न और सिंह लग्न में होगा ।।१३।।

व्यये तु कुजदोषः स्याद्, कन्यामिथुनयोर्विना ।।१४।।

बारहवें भाव में मंगल का दोष बुध, राशि (मिथुन, कन्या) में नहीं होगा। ऐसा कर्क लग्न और तुला लग्नों में होगा ।।१४।।

१,४,७,८,१२ भावों में मंगल यदि चर राशि मेष, कर्क, मकर का हो तो कुछ दोष नहीं होता ।।१५।।

दंपत्योर्जन्मकाले, व्यय, धन हिबुके, सप्तमे लग्नरन्ने,
लग्नाच्चंद्राच्च शुक्रादपि भवति यदा भूमिपुत्रो द्वयो।।
दम्पत्योः पुत्रप्राप्तिर्भवति धनपतिर्दम्पति दीर्घकालम्,
जीवेतामत्रयोगे न भवति मूर्तिरिति प्राहुरत्रादिमुख्याः ।।१६।।

दम्पत्ति के १,४,७,८,१२ वें स्थानों में मंगल जन्म से व शुक्र लग्न से हो दोनों के ऐसा होने पर वे दीर्घकाल तक जीवित रहकर पुत्र धनादि को प्राप्त करते हैं ।।१६।।
.
भौमेन सदृशो भौमः पापो वा तादृशो भवेत्।
विवाहः : शुभदः प्रोक्ततिश्चरायुः पुत्रपौत्रदः ।।१७।।

मंगल के जैसा ही मंगल व वैसा ही पाप ग्रह (सूर्य, शनि, राहु) के दूसरी कुण्डली में हो तो विवाह करना शुभ है ।।१७।।

कुजोजीवसमायुक्तो, युक्तौ वा कुजचन्द्रमा।
चन्दे केन्द्रगते वापि, तस्य दोषो न मंगली ।।१८।।

गुरु और मंगल की युति हो या मंगल चन्द्र की युति हो या चन्द्र केन्द्रगत हो तो मंगलीक दोष नहीं होता ।।१८।।

न मंगली यस्य भृगुद्वितीये, न मंगली पश्यन्ति च जीवः ।।१९।।

शुक्र दूसरे घर में हो, या गुरु की दृष्टि मंगल पर हो गुरु मंगल के साथ हो, या मंगल राहु से युति हो या केन्द्रगत हो तो मंगली दोष नहीं होता ।।१९।।

सप्तमस्थो यदा भौमो, गुरुणा च निरीक्षितः।
तदातु सवैसौख्यम् मंगलीदोषनाशकृत् ।।२०।।

सातवें भवन में यदि गुरु से देखा जाए तो मंगलीक दोष नष्ट करके सर्व सुख देता है ।।२०।।

केतु का फल मंगलवत् होता है अतः अश्विनी, मघा मूल नक्षत्रों में मंगल हो तो भी मंगलीक दोष नहीं रहता है।

यह उपरोक्त योग यदि कुंडली में हों तो मंगल का अधिक प्रभाव नहीं रहता है अपितु मंगल दोष खत्म हो जाता है और ऐसे में केवल मंगल पूजन या मंगल के उपाय मात्र करने के बाद शादी विवाह ना निर्णय लिया जा सकता है। मंगल दोष निवारण हेतु आप मंगल दोष निवारण कवच पहने जिससे आपको शीघ्र लाभ प्राप्त होंगे,यह कवच बनाने हेतु मंगल शांति यज्ञ में खैर की लकड़ी को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है और अनंतमूल की जड़ को शुभ मुहूर्त में निकालकर उसको प्राण प्रतिष्ठित करना पड़ता है । अनंतमूल की जड़ पर "ॐ क्रां क्रीं कौं सः भौमाय नमः" नमः का मंगल दोष के हिसाब से जाप किया जाता है,यह सब क्रिया करने के बाद ही मंगल दोष निवारण कवच पहेना जाता है जिससे आपको उचित लाभ हो सके । इस कवच का न्योच्छावर राशि 1450/-रुपये है और यह कवच रत्नों से ज्यादा प्रभावशाली है ।

मंगल दोष निवारण कवच प्राप्त करने हेतु आप इस नम्बर पर +91-8421522368 व्हाट्सएप कर सकते है और फोन भी कर सकते है ।


आदेश.......

7 Jul 2019

कुण्डली में अशुभ योग और उनका निवारण.


1).चांडाल योग-

गुरु के साथ राहु या केतु हो तो जातक बुजुर्गों का
एवम् गुरुजनों का निरादर करता है ,मोफट होता है,तथा अभद्र भाषाका प्रयोग करता है । यह जातक पेट और श्वास के रोगों से पीड़ित हो सकता है और इनका जीवन कष्टदायक होता है। वह निराश व हताश रहता है उसकी प्रकृति आत्मघाती होती है ।


2).सूर्य ग्रहण योग-

सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो जातक कोहड्डियों की कमजोरी, नेत्र रोग, ह्रदय रोग होने की संभावना होती है ,एवम् पिताका सुख कम होता है,आत्मविश्वास की कमी होती है इसके वजेसे सफलताये नही मिलती है । ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है खा जाना तथा इसी प्रकार यह माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा का कुंडली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


3).चंद्र ग्रहण योग-

चंद्र के साथ राहु या केतु हो तो जातक को मानसिक पीड़ा एवं माता को हानई पोहोंचती है,जीवन मे सुख को कमी और दुःख ज्यादा होते है । चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु की स्थिति अथवा दृष्टि से प्रभाव पड़ता है तो कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण हो जाता है जो जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसे भिन्न भिन्न प्रकार के कष्ट दे सकता है।


4).श्रापित योग-

शनि के साथ राहु हो तो यह योग होता है,इस योग से जीवन मे नर्क यातनाएं भुगतनी पड़ती है,ऐसा जातक आत्महत्या के विचार ज्यादा करता है । शाप का सामान्य अर्थ शुभ फलों का नष्ट होना माना जाता है । जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है उसे इसी प्रकार का फल मिलता है यानी उनकी कुण्डली में जितने भी शुभ योग होते हैं वे प्रभावहीन हो जाते हैं । इस स्थिति में व्यक्ति को कठिन चुनौतियों एवं मुश्किल हालातों का सामना करना होता है ।


5).पितृदोष-

यदि जातक को 2,5,9 भाव में राहु केतु या शनि है तो जातक पितृदोष से पीड़ित है । इसके प्रभाव से किसी भी कार्य को पूर्ण करने की कोशिशें नाकाम हो जाती है । पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैं, जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना।


6).नागदोष-

यदि जातक के पाचवे भाव में राहु विराजमान है तो जातक पितृदोष के साथ-साथ नागदोष से भी पीड़ित होता है,ऐसा जातक जीवन मे हमेशा असंतुष्ट होता है और संतान प्राप्ति में इसे कष्ट उठाने पड़ते है । यह दोष होने पर जातक किसी पुराने या यौन संचारित रोग से ग्रस्‍त रहता है। कुंडली में नागदोष हो तो जातक को अपने प्रयासों में सफलता प्राप्‍त नहीं होती। नाग दोष का अत्‍यंत भयंकर प्रभाव है कि इसके कारण महिलाओं को संतान उत्‍पत्ति में अत्‍यधिक परेशानी आती है। कुंडली में नागदोष होने से व्‍यक्‍ति की गंभीर दुर्घटना होने की संभावना रहती है। इन्‍हें जल्‍दी-जल्‍दी अस्‍पताल के चक्‍कर लगाने पड़ते हैं एवं इनकी आकस्‍मिक मृत्‍यु भी संभव है । नागदोष से प्रभावित जातकों को उच्‍च रक्‍तचाप और त्‍वचा रोग की समस्‍या रहती है।


7).ज्वलन योग-

सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो जातक ज्वलन योग (अंगारक योग) से पीड़ित होता है,हमेशा किसी न किसी चीज की कमी और स्वास्थ्य में तकलीफे रहती है । जिस स्थान मे हो उसी स्थान के खराब फल देता है ।


8).अंगारक योग-

मंगल के साथ राहु या केतु वीराजमान हो तो जातक अंगारक योग से पीड़ित होता है,ऐसा जातक सारी जिंदगी अंगारों पर चलने वाली जैसी तकलीफ को सहता है । इसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध भी खराब हो जाते हैं।


9).प्रेत दोष-

शनि के साथ बुध होने से यह दोष उत्पन्न होता गई,प्रेत बाधा का अ‍र्थ मनुष्‍य के शरीर पर किसी भूत-प्रेत का साया पड़ जाना है। यह योग न केवल जातक को परेशान करता है अपितु उसके पूरे परिवार को भयभीत कर देता है। प्रेत बाधा में अदृश्‍य शक्‍तियां मनुष्‍य के शरीर पर कब्‍जा कर लेती हैं। ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार कुंडली में प्रेत बाधा योग बनने पर जातक को भूत-प्रेत से पीड़ा मिलती है।


10).पिशाच योग-

शनि के साथ केतु हो तो यह योग बनता है,इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है,इनकी मानसिक स्थिति कमज़ोर रहती है,ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं जिससे इनको धोका मिलता है ।इनके मन में निराशात्मक विचारों का आगमन होता रहता है,कभी कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं ।


11).केमद्रुम योग-

चंद्र के साथ कोई ग्रह ना हो एवम् आगेपीछे के भाव में भी कोई ग्रह न हो तथा किसी भी ग्रह की दृष्टि चंद्र
पर ना हो तब वह जातक केमद्रुम योग से पीड़ित होता है तथा जीवन में बोहोत ज्यादा परिश्रम अकेले
ही करना पड़ता है ।


12).दरिद्र योग-

यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बन जाता है। ऐसे में व्यक्ति के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है। दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है।


13).कुज योग-

यदि किसी कुंडली में मंगल  लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं। जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए।


14).षड़यंत्र योग-

यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है। जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है जैसे धोखे से धन-संपत्ति का छीना जाना, विपरीत लिंगी द्वारा मुसीबत पैदा करना आदि।


15).भाव नाश योग-

जब कुंडली में किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और उससे भाव नाश योग केजते है। उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।


16).अल्पायु योग-

जब कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। जिस कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है और उसकी आयु कम होती है।


17).कालसर्प दोष के प्रकार-


अनंत कालसर्प योग
अगर राहु  लग्न में बैठा है और केतु सप्तम में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तो कुंडली में अनंत कालसर्प दोष का निर्माण हो जाता है। अनंत कालसर्प योग के कारण जातक को जीवन भर मानसिक शांति नहीं मिलती। इस प्रकार के जातक का वैवाहिक जीवन भी परेशानियों से भरा रहता है।

कुलिक कालसर्प योग
अगर राहु कुंडली के दुसरे घर में, केतु अष्ठम में विराजमान है और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में है तब कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति के जीवन में धन और स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ उत्पन्न होती रहती हैं।

वासुकि कालसर्प योग
जन्मकुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु विराजमान हो तथा बाकि ग्रह बीच में तो वासुकि कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस प्रकार की कुंडली में बल और पराक्रम को लेकर समस्या उत्पन्न होती हैं।

शंखपाल कालसर्प योग
अगर राहु  चौथे घर में और केतु दसवें घर में हो साथ ही साथ बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे व्यक्ति के पास प्रॉपर्टी, धन और मान-सम्मान संबंधित परेशानियाँ बनी रहती हैं।

पद्म कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के पांचवें भाव में राहु, ग्याहरहवें भाव में केतु और बीच में अन्य ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे इंसान को शादी और धन संबंधित दिक्कतें परेशान करती हैं।

महा पद्म कालसर्प योग
अगर राहु किसी के छठे घर में और केतु बारहवें घर में विराजमान हो तथा बाकी ग्रह मध्य में तो तब महा पद्म कालसर्प योग का जन्म होता है। इस प्रकार के जातक के पास विदेश यात्रा और धन संबंधित सुख नहीं प्राप्त हो पाता है।

तक्षक कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के सातवें भाव में राहु और केतु लग्न में हो तो इनसे तक्षक कालसर्प योग बनता है। यह योग शादी में विलंब व वैवाहिक सुख में बाधा उत्पन्न करता है।

कर्कोटक कालसर्प योग
अगर राहु आठवें घर में और केतु दुसरे घर आ जाता है और बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो कर्कोटक कालसर्प योग कुंडली में बन जाता है। ऐसी कुंडली वाले इंसान का धन स्थिर नहीं रहता है और गलत कार्यों में धन खर्च होता है।

शंखनाद कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य हों तो इनसे बनने वाले योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते है। यह दोष भाग्य में रूकावट, पराक्रम में रूकावट और बल को कम कर देता है।

पातक कालसर्प योग
इस स्थिति के लिए राहु दसंम में हो, केतु चौथे घर में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तब पातक कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  काम में बाधा व सुख में भी कमी करने वाला बन जाता है।

विषाक्तर कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के ग्याहरहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को विषाक्तर कालसर्प योग कहते है। इस प्रकार की कुंडली में शादी, विद्या और वैवाहिक जीवन में परेशानियां बन जाती हैं।

शेषनाग कालसर्प योग
अगर राहु बारहवें घर में, केतु छठे में और बाकी ग्रह इनके बीच में हो तो शेषनाग कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  स्वास्थ्य संबंधित दिक्कतें, और कोर्ट कचहरी जैसी समस्याएं उत्पन्न करता है।
इन सारे दोष और योगों में से किसी भी दोष/योग का  शांति करेंगे तो बहोत ज्यादा खर्च होगा,इसलिए मैंने इनके निवारण हेतु एक अच्छा उपाय ढूंढा है,वह है तंत्र और तांत्रिक जड़ी बूटियों के माध्यम से बना हुआ कवच,जो इन दोष/योग से मुक्ति दे सकता है,इस कवच का निर्माण कुंडली के अध्ययन के बाद किया जाएगा और किसी शुभ मुहूर्त में कवच को बनाया जाएगा । इससे आपको कुछ ही दिनों में अच्छे परिणाम देखने मिलेंगे,इस कवच के निर्माण हेतु 1250/-रुपये धनराशि का खर्च आपको उठाना है ।कवच प्राप्त करने हेतु +918421522368 पर whatsapp से संपर्क करे ।


आदेश......

30 Jun 2019

दोष निवारण और रक्षा कवच.


कर्म और भाग्य कभी-कभी इसलिए साथ नहीं दे पाते हैं  क्योंकि राह में किसी और का भी रोड़ा आ जाता है। अधिक परिश्रम करने के बावजूद किसी भी प्रकार का कोई शुभ परिणाम या मनचाहा परिणाम नहीं निकल पाता है। ऐसे में 4 में से किसी एक तरह की बाधा हो सकती है ।

"1. ग्रह बाधा, 2. गृह बाधा, 3. पितृ बाधा और 4.देव बाधा"।


ग्रह-नक्षत्र बाधा : पहली प्राथमिक बाधा को ग्रह नक्षत्रों या कुंडली की बाधा माना जाता है। किसी को राहु परेशान करता है तो कोई शनि से पीड़ित है, जबकि असल में कुंडली बनती है पूर्व जन्म के कर्मों अनुसार। फिर उसका संचालन होता है इस जन्म के कर्मों अनुसार। कर्म के सिद्धांत को समझना बहुत ही कठिन होता है। कोई ग्रह या नक्षत्र किसी व्यक्ति विशेष पर उतना प्रभाव नहीं डालता जितना कि वह स्थान विशेष पर डालता है। हालांकि व्यक्ति 27 में से जिस नक्षत्र में जन्म लेता है, उसकी वैसी प्रकृति होती है। कोई व्यक्ति क्यों किसी विशेष और कोई क्यों किसी निम्नतम नक्षत्र में जन्म लेता है? इसका कारण है व्यक्ति के पूर्व जन्मों की गति इसीलिए नक्षत्रों का समाधान जरूरी है।


वास्तु दोष : घर के स्थान और दिशा का जीवन पर सबसे ज्यादा असर होता है। यदि ग्रह-नक्षत्र सही न भी हों तो भी यदि घर का वास्तु सही है तो सब कुछ सही होने लगेगा। अक्सर यह देखने में आया है कि उत्तर, ईशान और पश्चिम एवं वायव्य दिशा का घर ही उचित और शुभ फल देने वाला होता है। घर के अंदर शौचायल, स्नानघर और किचन को उचित दिशा में ही बनवाएं।


पितृ बाधा : यदि आपके ग्रह-नक्षत्र भी सही हैं, घर का वास्तु भी सही है तब भी किसी प्रकार का कोई आकस्मिक दुख या धन का अभाव बना रहता है, तो फिर पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र से भी पितृदोष का पता लगाया जाता है और उसके निवारण हेतु शान्तिकर्म भी किया जाता है ।


देव बाधा : देव बाधा से बचना मुश्किल है। अधिकतर लोगों पर देव बाधा नहीं होती । देव बाधा उन पर होती है, जो नास्तिक है, सदा झूठ बोलते रहते हैं। किसी भी प्रकार का व्यसन करते हैं और देवी-देवता, धर्म या किसी साधु का मजाक उड़ाते या उनके प्रति असम्मान व्यक्त करते रहते हैं। देवी या देवता आपके हर गुप्त कार्य या बातों को सुनने और देखने की क्षमता रखते हैं। छली, कपटी, कामी, दंभी और हिंसक व्यक्ति के संबंध में देवता अधिक जानकारी रखते हैं। वे जानते हैं कि आप किस तरह के व्यक्ति हैं। आप मनुष्य के भेष में असुर हैं या मानव, देव हैं या दानव। इसलिए इस दोष को भी आप निवारण करने हेतु हमेशा तत्पर रहे ।


व्यक्ति मेहनत तो बहोत कर लेता है परंतु जब असफलता के कारण से उसे गुजरना पडता है तो वह जीवन मे मायूस हो जाता है,हार जाता है और फिर से उसको मेहनत करने की इच्छा नही होती है । तंत्र शास्त्र में कई प्रकार की जड़ी बूटियां है जिनके माध्यम से चारो प्रकार के दोषों से बचा जा सकता है परंतु आवश्यकता है सकारात्मक भूमिका की,आप सकारात्मकता के साथ इन चारों दोषों के निवारण हेतु तांत्रिक जडी बूटियों के साथ रक्षा कवच धारण करेंगे तो अवश्य ही आपको जीवन मे सफलता मिलेगी । ये चारों दोष भलेही अपने अपने स्थान पर बड़े है परंतु इस धरा पर ही इन दोषों का समाधान है,बिना कुंडली देखे हमे इन चारों में से कौन-कौनसा दोष है ये पता करना कठिन है । इसलिए ज्योतिष शास्त्र का सहारा लेकर कुंडली के अध्ययन मात्र से हम दोष की सही पहचान करके अगर सही प्रकार से दोष निवारण हेतु तांत्रिक जड़ी बूटियों को रक्षा कवच बनाकर धारण करेंगे तो अवश्य ही जीवन मे सभी क्षेत्रों में उन्नति ही उन्नति संभव है ।


आनेवाले समय मे बहोत सारे शुभ मुहूर्त है,जैसे अभी चंद्रग्रहण, गुरुपूर्णिमा, श्रावण माह......इत्यादि, तो ऐसे मुहूर्तों में जड़ी बूटियों से निर्मित दोष निवारण रक्षा कवच शक्तिशाली बनाये जा सकते है । मैने जीवन मे इस प्रकार का कार्य पहिले भी संपन्न किया था और इसमे मुझे बहोत से लोगो की सेवा करने का मौका मिला, आज वह सभी लोग कहीं ना कही अपने जीवन मे अपने अपने क्षेत्र में उन्नति के ओर आगे बढ़ चुके है । ऐसा तांत्रिक जड़ी बूटियों के माध्यम से बनाया जानेवाला रक्षा कवच कुंडली के अध्ययन से बनाया जायेगा, जिसका न्योच्छावर राशि 1450/-रुपये है । जो व्यक्ति इन्हें धारण करने के इच्छुक है उन्हें धनराशि भेजने हेतु संपर्क करना है,जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान whatsapp पर भेजना है,कुंडली अध्ययन के बाद उचित मूहर्त में उनके लिए कवच बनाकर  उनके रहिवासी स्थान पर जल्दी भेज दिया जाएगा ताकि उन्हें अच्छे परिणाम शीघ्र प्राप्त हो ।
" Whatsapp number   +918421522368 "

आदेश........

25 Apr 2016

ग्रह शान्ति उपाय.

आसान उपायों द्वारा ग्रहों की नाराजगी दूर करें -

1)सूर्य- भूल कर भी झूठ न बोलें,सूर्य का गुस्सा कम हो जाएगा । झूठ क्या है झूठ वो है जो अस्तित्व में नहीं है और यदि हम झूठ बोलेंगे तो सूर्य को उसका अस्तित्व पैदा करना पडेगा आश्चर्य की कोई बात नहीं है । ये नौ ग्रह हमारे जीवन के लिए ही अस्तित्व में आये हैं सूर्य का काम बढ़ जाएगा और मुश्किल भी हो जाएगा ।

2)चंद्रमा - जितना ज्यादा हो सके सफाई पसंद हो जाईये ,और साफ़ रहिये भी -चंद्रमा का गुस्सा कम हो जाएगा । चंद्रमा को सबसे ज्यादा डर राहू से लगता है । राहू अदृश्य ग्रह है ,राहू क्रूर है,हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में राहू गंदगी है । हम हमारे घर को, आसपास के वातावरण को कितना भी साफ़ करें -उसमें ढूँढने जायेंगे तो गंदगी मिल ही जायेगी ,या हम हमारे घर और आस पास के वातावरण को कितना भी साफ़ रखें वो गंदा हो ही जाएगा और हम सब जानते हैं कि गंदगी कितनी खतरनाक हो सकती है और होती है । ज़िंदगी के लिए ,न जाने कितने बेक्टीरिया , वायरस ,जो अदृश्य होते हुए भी हमारी ज़िंदगी को भयभीत कर देते हैं ,बीमार करके ,ज़िंदगी को खत्म तक कर देते हैं , चंद्रमा (जो सबके मन को आकर्षित करता है स्वय राहू के मन को भी) राहू से डरता है । अतः यदि आप साफ़ रहेंगे तो चंद्रमा को अच्छा लगेगा और उसका क्रोध शांत रहेगा , चंद्रमा का गुस्सा उतना ही कम हो जाएगा ।

3)मंगल- यह ग्रह सूर्य का सेनापती ग्रह है भोजन में गुड है । सूर्य गेंहू है रविवार को गेहूं के आटे का चूरमा गुड डालकर बनाकर खाएं खिलाये ,मंगल को बहुत अच्छा लगेगा । सूर्य गेहूं है -मंगल गुड है और घी चंद्रमा है ,अब तीनो प्रिय मित्र हैं तो तीन मित्र मिलकर जब खुश होंगे तो गुस्सा किसे याद रहेगा ।

4)बुध - बुध ग्रह यदि आपकी जन्म पत्रिका में क्रोधित है तो बस तुरंत मना लीजिये । गाय को हरी घास खिलाकर उसको प्रसन्न करना हैं धरती और गाय दोनों शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है । हरी घास जो बुध ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है -बुध ग्रह का रंग हरा है ,वो बच्चा है नौ ग्रहों में शारीरिक रूप से सबसे कमजोर और बौद्धिक रूप में सबसे आगे आगे । बुध घास है जो पृथ्वी के अन्य पेड़ पौधों के मुकाबले कमजोर है बिलकुल बुध ग्रह की तरह , घास भी शारीरिक रूप से बलवान नहीं होती है मगर ताकत देने में कम नहीं अतः बुध स्वरूप ही है । हरी हरी घास से सजी धरती कितनी सुंदर और खुश दिखती है । घास =बुध और धरती = शुक्र इसी तरह गाय हरी -हरी घास खा कर कितनी खुश होती है इसलिए - हरी- हरी घास =बुध ग्रह और गाय और धरती शुक्र इसलिए गाय को हरी हरी घास खिलाएंगे तो दो बहुत अच्छे दोस्तों को मिला रहे होंगे, ऐसी हंसी खुशी के वातावरण में हर कोई गुस्सा थूक देता है और बुध ग्रह भी अपना क्रोध शांत कर लेंगे ।

5)बृहस्पति -चने की दाल parrots को खिलादे , बृहस्पति कभी गुस्सा नहीं करेंगे । चने की दाल पीले रंग की होती है और बृहस्पति भी पीले रंग के हैं ।
बृहस्पति का भी घनत्व सौरमंडल में ज्यादा है और चने की दाल भी हलकी फुल्की नहीं होती पचाने में हमारी आँतों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है ।
तोता हरे रंग का होता है , बुध ग्रह भी हरे रंग का होता है । तोता भी दिन भर बोलता रहता है और बुध ग्रह भी बच्चा होना के कारण बोलना पसंद करता है । अतः तोता =बुध ग्रह और चने की दाल = बृहस्पति ग्रह
बुध ग्रह बृहस्पति के जायज पुत्र और चंद्रमा के नाजायज पुत्र है। बुध के पिता बृहस्पति हैं और बृहस्पति के चंद्रमा अच्छे मित्र हैं और बृहस्पति की पत्नी तारा ने चंद्रमा से नाजायज शारीरिक सम्बन्ध बनाकर बुध ग्रह को जन्म दिया था इस बात से बृहस्पति अपनी पत्नी तारा से नाराज़ रहते है और बुध की माँ से नाराज़ रहने के कारण अपने जायज पिता बृहस्पति से बुध ग्रह नाराज़ रहता है । इस बात से बृहस्पति दुखी रहता है अतः जब तोता जो बुध स्वरूप है जब चने की दाल खाकर पेट भरेगा और खुश होगा तो बृहस्पति को खुशी मिलेगी और गुस्सा तो अपने आप कम हो जाएगा ।

6)शुक्र - यदि नाराज़ हो तो गाय को रोटी खिलाओ .
सूर्य गेहूं है और शुक्र गाय । किस बलवान व्यक्ति को उसके खुद के अलावा कोई और राजा हो तो अच्छा लगता है । शुक्र को भी सूर्य के अधीन रहना पसंद नहीं है अतः जब आप उसके शत्रु सूर्य जो गेहूं को गाय जो शुक्र है को खिलाएंगे तो वो अपने आप ही गुस्सा भूल जाएगा ।

7)शनि- जिस किसी से भी नाराज़ हो तो उसकी पीड़ा तो बस वो खुद ही जानता है । शनि समानतावादी है ,
ये बड़ा है और ये छोटा है ऐसी बातें शनि को क्रोधित कर देती है, क्योंकि शनि सूर्य (राजा ) का पुत्र है और उसके पिता सूर्य ने उसकी माँ का सम्मान नहीं किया इसलिए शनि को अपनी माँ छाया से प्यार होने के कारण सूर्य पर बहुत गुस्सा आता है । किसी का बड़े होने का अहं उनको पसंद नही है। अहंकार छोड़ देने से शनि भगवान का कृपा प्राप्त होता है।




आदेश.....

13 Mar 2016

ज्योतिष मे लाल किताब.

लाल किताब में ग्रह दोष निवारण के लिए सच्चरित्रता एवं सद्व्यवहारिकता को बहुत प्रमुखता दी गयी है। इस पद्धति में सकारात्मक और मनचाहे फल की प्राप्ति के लिए भाव परिवर्तन की विधि का भी प्रावधान है जिससे शुभ फल की प्राप्ति की जा सकती है। इस किताब के विधिवत सूत्र अर्थात ज्योतिषीय दृष्टिकोण, चमत्कारी उपाय व टोटके जनमानस की व्यवहारिकता की कसौटी पर दिन प्रतिदिन खरे उतरते चले गए तथा इस की लोकप्रियता बढ़ती रही।


ज्योतिषीय स्वरूपः- इस किताब के ज्योतिषीय स्वरूप में कुण्डली के भावों को ख़ााना अर्थात घर की संज्ञा दी गई है तथा जातकों के जन्म कुण्डली में लग्न को स्थाई रूप से मेष राद्गिा के रूप में बरकरार रखते हुए लग्न एक से लेकर बारह भावों की राशियों क्रमशः मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर, कुंभ व मीन के स्थानों को यथावत रखा गया है।

जिसमें सूर्य को पहले व पांचवें, चन्द्र को चौथे, मंगल को तीसरे व आठवें, बुध को छठे व सातवें, गुरू को दूसरे, नौवें व बारहवें, शुक्र को सातवें तथा शनि को आठवें, दसवें व ग्यारहवें भाव का कारक ग्रह माना गया है। रातु-केतु को कोई भाव नही दिया गया परन्तु छठे भाव में इनकी उपस्थिति को शुभ फल दायक कहा गया है। इस ग्रंथ के व्यवहारिक सिद्धांतों में राहु-सूर्य, राहु-चन्द्र, केतु-सूर्य, केतु-चन्द्र,शनि-राहू, शनि-केतु, शनि-चन्द्र तथा शनि-सूर्य की युतियों को शुभ फलदायक नही माना गया है। ग्रह-दोष निवारण में सच्चरित्र व सद्व्यवहारिकता को अधिक प्रमुखता दी गई है।

ग्रहों से संबधित वस्तुओं के दान के अतिरिक्त ग्रहों को मनचाहे ख़ााने में पहुंचाने व निर्बल तथा पाप ग्रहों के अनेकों प्रावधानों का उल्लेख है। ग्रहों का भाव (ख़ााना) परिवर्तन लाल किताब के ज्योतिषीय विधान में कुण्डली के अकारक व निर्बल भाव में स्थित किसी ग्रह के सकारात्मक व मन चाहे फल की प्राप्ति हेतु भाव परिर्वतन की विधि का भी प्रावधान है जिस के द्वारा किसी भी ग्रह को किसी भी भाव में स्थापित करके शुभफल की प्राप्ति की जा सकती है।



किसी ग्रह को पहले भाव अर्थात लग्न स्थान में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को गले में धारण करना।
दूसरे भाव में किसी ग्रह को पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को किसी धार्मिक स्थान पर रखना।
किसी ग्रह को तीसरे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित रत्न व धातु को हाथ या उंगुली में धारण करना।

किसी ग्रह को चौथे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दरिया की बहती जल धारा में प्रवाहित करना।

किसी ग्रह को पांचवे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को पाठशाला में दान करना। किसी
ग्रह को छठे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को कुऐं में डालना।

यदि किसी ग्रह को सातवें भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को जमीन की सतह के अन्दर दबाना।

आठवें भाव में यदि किसी ग्रह को पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को शमशान की सतह में जाकर दबाना।

किसी ग्रह को नौवे भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को धारण करना।

किसी ग्रह को दसवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित कोई खाने की वस्तु अपने पिता को खिलाना या किसी समीप के सरकारी कार्यालय की जमीन की सतह पर गाड़ देना।

ग्यारहवें भाव में कोई भी ग्रह उच्च या नीच का नही होता इस कारण इस स्थिति में किसी भी प्रकार के उपाय की आवश्यकता नही पड़ती।

किसी ग्रह को बारहवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को घर की छत पर रखना।


कुण्डली में यदि कोई ग्रह प्रबल व बलवान हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दान में देना लाल किताब में हानिकारक बताया गया है। ऐसा करने से ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों को हानि पहुंचती है।

प्रबल व बलवान ग्रहों के हेतु निर्देशः-कुण्डली में यदि कोई ग्रह प्रबल व बलवान हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दान में देना लाल किताब में हानिकारक बताया गया है। ऐसा करने से ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों को हानि पहुंचती है।

उदाहरणार्थ-यदि कुण्डली में सूर्य बलवान हो तो इस ग्रह से संबंधित वस्तु गुड़, गेहूं, लाल वस्त्र, तांबा, सोना, माणिक्य रत्न का दान करना वर्जित कहा गया है। ग्रह-दोषों का उपायः-कुण्डली व गोचर में किसी भी ग्रह की अनिष्टता के कारण उत्पन्न समस्या व उसके निवारण हेतु लाल किताब में अनेकों उपायों का उल्लेख है।
प्रत्येक उपाय को कम से कम 7 दिन व अधिक से अधिक 43 दिनों तक लगातार करने का निर्देश है। यदि प्रक्रिया का क्रम बीच में खंडित हो जाए तो पुनः विधिवत् इन प्रयोगों को फिर से पूर्ण करना चाहिए।


"सभी नौ ग्रहों की शांति के हेतु सूखे नारियल के अंदर घी  व खांड भरकर सुनसान जगह में स्थित चीटियों के बिल के अन्दर गाड़ने के प्रयोग को सर्वोत्तम उपाय की संज्ञा दी गई है। इस के अतिरिक्त सभी नौ ग्रहों के दोषों के अलग-अलग विधिवत् उपायों के भी सूत्र बताए गए हैं।"



सूर्यः-यदि कुण्डली में सूर्य छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो अथवा गोचर में निर्बल व अशुभ अवस्था में हो तो यह राजद्गााही समस्या, दुर्धटना में हड्डी टूटने, रक्त-चाप, दाई नेत्र में कष्ट, उदर व अग्नि-तत्व से संबंधित रोग व पीड़ा का कारक माना गया है।

उपायः-राजा, पिता व सरकारी पदाधिकारी का सम्मान करें। उदित सूर्य के समय में संभोग न करें। सूर्य से संबंधित कोई वस्तु बाजार से मुफ्त में न लें। पीतल के बर्तनों का सर्वदा प्रयोग करें। रविवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में गुड़ व तांबा प्रवाहित करें।



चंद्रः-गोचर में चन्द्र निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में छठे, आठवें, दसवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो इस कारण मानसिक पीड़ा, जल तत्व से जुड़ा रोग व पशु हानि की समस्यांए उत्पन्न हो जाती है।

उपायः- रात को दूध का सेवन न करें। जल व दूध को ग्रहण करते समय चाँदी के पात्र का प्रयोग करें। सोमवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में मिश्री व चावल को सफेद कपड़े में बांधकर प्रवाहित करें। सोमवार के दिन अपने दाहिने हाथ से चावल व चाँदी का दान करें।



मंगलः-गोचर में मंगल निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे व आठवें भाव में अकेला विराजमान हो तो इस अकारक अवस्था के कारण रक्त विकार, क्रोध, तीव्र सिर दर्द, नेत्र रोग व संतान हानि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः- बुआ अथवा बहन को लाल कपड़ा दान में दें। मंगलवार को दरिया की बहती जलधारा में रेवड़ी व बताद्गाा प्रवाहित करें। मूंगा, खांड, मसूर व सौंफ का दान करें। नीम का पेड़ लगाएं। मीठी तंदूरी रोटी कुत्ते को खिलाएं। रोटी पकाने से पहले गर्म तवे पर पानी की छींटे दें।



बुधः-गोचर में बुध नीच, अस्त व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे भाव में स्थित हो तो आत्म विश्वास की कमी, नशे, सट्टे व जुए की लत, बेटी व बहन को कष्ट, मानसिक तथा गले से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है।

उपायः- बुधवार के दिन भीगी मूंग का दान करें। मिट्टी के घड़े या पात्र में शहद रखकर किसी वीराने स्थान पर दबाएं। कच्चा घड़ा दरिया में प्रवाहित करें। तांबे का सिक्का गले में धारण करें। सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराएं व चूड़ी दान में दें। चौड़े हरे पत्ते वाले पौधे अपने घर की छत के ऊपर लगाएं।



गुरु :-गोचर में गुरु नीच, वक्री व निर्बल हो तथा कुण्डली में छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो तो मान-सम्मान में कमी, अधूरी शिक्षा, गंजापन, झूठे आरोप, पीलिया आदि जैसे रोग व समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः- माथे पर नित्य हल्दी अथवा केसर का तिलक करें। पीपल का वृक्ष लगाएं तथा केसर का तिलक करें। दरिया में गंधक प्रवाहित करें। पुरोहित को पीले रंग की वस्तु दान में दें।



शुक्र :-गोचर में शुक्र अशुुभ हो तथा कुण्डली में पहले, छठे व नौवें भाव में स्थित हो तो चर्मरोग, स्वप्न दोष, धोखा, हाथ की अंगूठी आदि निष्क्रिय होने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः- 43 दिनों तक किसी गंदे नाले में नीले फूल डालें। स्त्री का सम्मान करें। इत्र लगाएं। दही का दान करें। साफ सुथरे रहें तथा अपने बिस्तर की चादर को सिलवट रहित रखें।



शनिः-गोचर में शनि के अशुभ तथा कुण्डली में पहले, चौथे, पांचवें व छठे भाव में स्थित होने की अवस्था को आर्थिक हानि, कानूनी समस्या, गठिया रोग, पलकों के झड़ने, कन्या के विवाह में विलंब, आग लगने, मकान गिरने, नौकर के काम छोड़ने आदि घटनाओं का कारक माना गया है।

उपायः- लोहे का छल्ला अथवा कड़ा धारण करें। मछलियों को आटे की गोलियां खाने को दें। अपने भोजन का अंद्गा कौए को दें। सुनसान जगह के सतह पर सुरमा दबाएं।



राहु :-कुण्डली में राहु अशुभ व शत्रु ग्रह से युक्त हो तथा पहले, पांचवें, आठवें, नौवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो शत्रुता, दुर्धटना, मानसिक पीड़ा, क्षयरोग, कारोबार में हानि, झूठे आरोप आदि की समस्याऐं उत्पन्न होने लगती हैं।

उपायः- मूली दान में दें। जौ को दूध में धोकर दरिया में प्रवाहित करें। कच्चे कोयले को दरिया में प्रवाहित करें। हाथी के पांव के नीचे की मिट्टी कुऐं में डालें।



केतु :-कुण्डली व गोचर में अशुभ केतु फोड़े फुंसी, मूत्राद्गाय से संबंधित रोग, रीढ़ व जोड़ों का दर्द, संतान हानि आदि जैसी समस्या का कारक माना गया है।

उपायः- कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं। मकान के नीव की सतह पर शहद दबाएं। कंबल दान में दें। सफेद रेशम के धागे को कंगन की तरह हाथ में बांधे।


अगर आप अपने कुण्डली का विश्लेषण करेंगे तो आपको सही उपाय अवश्य ही प्राप्त होगा।




आदेश.....

24 Feb 2016

आप और आपका ज्योतिष.

थोडा देखिये अपने कुण्डली मे,शायद आप चाण्डाल योग से भी परेशान हो सकते है।

योगचांडाल शब्द का अर्थ होता है क्रूर कर्म करनेवाला, नीच कर्म करनेवालाराहू और केतु दोनों छाया ग्रह है। पुराणों में यह राक्षस है,राहू और केतु के लिए बड़े सर्प या अजगर की कल्पना करने में आती है। राहू सर्प का मस्तक है तो केतु सर्प की पूंछ, ज्योतिषशास्त्र में राहू -केतु दोनों पाप ग्रह है । अत: यह दोनों ग्रह जिस भाव में या जिस ग्रह के साथ हो उस भाव या उस ग्रह संबंधी अनिष्ठ फल दर्शाता है । यह दोनों ग्रह चांडाल जाती के है, इसलिए इनकी युति को चांडाल ( राहू-केतु ) योग कहा जाता है।कैसे होता है चाण्डाल योगजब कुण्डली में राहु या केतु जिस गृह के साथ बैठ जाते है तो उसकी युति को ही चाण्डाल योग कहा जाता है ये मुख्य रूप से सात प्रकार का होता है।



1- रवि-चांडाल योग

सूर्य के साथ राहू या केतु हो तो इसे रवि चांडाल योग कहते है. इस युति को सूर्य ग्रहण योग भी कहा जाता है । इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक गुस्सेवाला और जिद्दी होता है,उसे शारीरिक कष्ठ भी भुगतना पड़ता है, पिता के साथ मतभेद रहता है और संबंध अच्छे नहीं होते,पिता की तबियत भी अच्छी नहीं रहती ।


2- चन्द्र-चांडाल योग

चन्द्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चांडाल योग कहते है. इस युति को चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है, इस योग में जन्म लेनेवाला शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नहीं भोग पाता। माता संबंधी भी अशुभ फल मिलता है. नास्तिक होने की भी संभावना होती है।


3- भौम-चांडाल योग

मंगल के साथ राहू या केतु हो तो इसे भौम चांडाल योग कहते है. इस युति को अंगारक योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक क्रोधी, जल्दबाज, निर्दय और गुनाखोर होता है,स्वार्थी स्वभाव, धीरज न रखनेवाला होता है । आत्महत्या या अकस्मात् की संभावना भी होती है ।


4- बुध-चांडाल योग

बुध के साथ राहू या केतु हो तो इसे बुध चांडाल योग कहते है. बुद्धि और चातुर्य के ग्रह के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानी पहुचती है. और जातक अधर्मी. धोखेबाज और चोरवृति वाला होता है ।


5- गुरु-चांडाल योग

गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु चांडाल योग कहते है । ऐसा जातक नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा न रखनेवाला और नहीं करने जेसे कार्य करनेवाला होता है ।


6- भृगु-चांडाल योग

शुक्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे भृगु चांडाल योग कहते है, इस योग में जन्म लेनेवाले जातक का जातीय चारित्र शंकास्पद होता है । वैवाहिक जीवन में भी काफी परेशानिया रहती है, विधुर या विधवा होने की सम्भावना भी होती है ।


7- शनि-चांडाल योग

शनि के साथ राहू या केतु हो तो इसे शनि चांडाल योग कहते है । इस युति को श्रापित योग भी कहा जाता है। यह चांडाल योग भौम चांडाल योग जेसा ही अशुभ फल देता है।जातक झगढ़ाखोर, स्वार्थी और मुर्ख होता है, ऐसे जातक की वाणी और व्यव्हार में विवेक नहीं होता, यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ भी इशारा करता है।

अब आप भी देखे कहीं आपकी कुण्डली में भी चाण्डाल योग तो नहीं है यदि हो तो इसकी शांति अवश्य करवाएं क्योंकि कहा जाता है की शान्ति का उपाय करके जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है।




अब बात करेंगे कोनसे महादशा मे क्या उपाय करना उचित है।
महादशा के उपाय ज्योतिष शास्त्र ग्रहों की गति एवं उसकी दशाओं के आधार पर किसी व्यक्ति के जीवन में आने वाली उतार चढ़ाव एवं सुख दुख का आंकलन करता है । ग्रहों की दशा महादशा सभी व्यक्ति के जीवन में चलती रहती है। कुछ दशा महादशा शुभ फल देती है तो कोई अशुभ,नीच स्थान में होने पर शुभ ग्रह भी विपरीत प्रभाव देते हैं और उच्चस्थान में होने पर अशुभ ग्रह भी शुभ फल देते हैं । अगर आपके जीवन में किस ग्रह विशेष की महादशा में परेशानी और कठिनाई आ रही है तो आप क्या उपचार कर सकते हैं-


1. सूर्य महादशा उपचारसूर्य की महादशा में आपको ब्राह्मणों को तांबे के बर्तन में गेहूंका दान देना चाहिए.आदित्य हृदय स्तोत्र का प्रतिदिन सुबह स्नान करके पाठ करना चाहिए.सूर्य देव की सफेद फूल एवं लाल चंदन से पूजा करनी चाहिए और आर्घ्य देना चाहिए.जब आप किसी विशेष काम से घर से बाहर निकलें तो गुड़ की एक डली मुंह में डाल पानी पिएं फिर जाएं.ताम्बे की अंगूठी में सवा पांच रत्ती का माणिक अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए.


2. चन्द्र महादशा उपचारचन्द्र की महादशा होने पर आपको चन्द्र की वस्तु जैसे चावल, मोती व चांदी का दान करना चाहिए.कन्याओं को खीर बनाकर भोजन करना चाहिए.अपने खाने में दही शामिल करना चाहिए.भगवान भोले शंकर की पूजा करनीचाहिए एवं दूध से अभिषेक करना चाहिए.सुबह दूध में भिंगोकर चावल गाय को खिलानी चाहिए.अपने गले में चांदी का चन्द्रमा बनाकर लॉकेट की तरह धारण करना चाहिए.दाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली में मोती चांदीकी अंगूठी में धारण करना चाहिए.


3. मंगल महादशा उपचारमंगल की महादशा होने पर बन्दरों को गुड़ चना देना चाहिए.सात शनिवार हनुमान जी को लाल लंगोट चढाएं.प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें.लाल वस्त्र ब्राह्मणों को दान दें.सोने अथवा ताम्बे में मूगा दाएं हाथ की अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए.


4. बुध महादशा उपचारआप अगर बुध की महादशा से पीड़ित हैं तो उपचार हेतु गाय को प्रतिदिनहरी घास अथवा पालक खिलाएं.सीप की पूजा करें.बुध की वस्तु जैसे मूंग की दाल, हरे रंग की चूड़ी बुधवार के दिन दान करें.प्रतिदिन दुर्गा मां की पूजा करनी चाहिए और दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए.मध्यमा उंगली में पन्ना सोने अथवा चांदी में धारण करना चाहिए.


5. बृहस्पति महादशा उपचारबृहस्पति की वस्तु जैसे पीला वस्त्र, सोना, गुड़ व केसर का दान करनाचाहिए.घी का दीपक जलाकर बृहस्पतिवार के दिन केले की पूजा करनी चाहिए.पीला चंदन लगाना चाहिए व बृहस्पतिवार के दिन पीला वस्त्र पहनना चाहिए.पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण भगवान की पूजा कथा करानी चाहिए.दाएं हाथ की तर्जनी उंगली में सुनैला सोने में धारण करना चाहिए.


6. शुक्र महादशा उपचारशुक्र की महादशा से अगर आप पीड़ित हैं तो शुक्र की वस्तु का दान करना चाहिए जैसे दूध, मोती, दही. गाय की सेवा करनी चाहिए और अपने खाने में से एक भाग निकालकर गाय को खिलानी चाहिए.माता सरस्वती की पूजा करनी चाहिए.चांदी की उंगूठी दाएं हाथ के अंगूठे में पहनना चाहिए.


7. शनि महादशा उपचारशनि की महादशा से बचने के लिए रोटी पर सरसों तेल लगकार गाय को अथवा कुत्ते को खिलाना चाहिए.शनिवार और मंगलवार के दिन हनुमान जी का दर्शन करना चाहिए.चांदी का चौकोर टुकड़ा हमेशा अपने पास रखें.बांसुरी में शक्कर भर कर एकांत स्थान में दबाएं.शनिवार के दिन दूधऔर काले तिल से पीपल की पूजा करनी चाहिए.शनिवार के दिन शनि मंदिर में दीप दान दें.


8. राहु महादशा उपचारराहु की महादशा में काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं.सरसों का तेल व काले तिल का दान दें.रात को सोते समय अपने सिरहाने में जौ रखें जिसे सुबह पंक्षियों को दें.बहते पानी में शीशा अथवा नारियल प्रवाहित करें. इसके अलावा बहते पानी में तांबे के 43 टुकड़े प्रवाहित करें.माता सरस्वती की पूजा करें.गोमेद चांदी की अंगूठीमें दाएं हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए.


9. केतु महादशा उपचारअगर आप केतु की महादशा से पीड़ित हैं तो इसके उपचार के लिए लकड़ी केक चार टुकड़े चार दिन तक बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए.कन्याओं को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करना चाहिए.ग़रीब अथवाब्रह्मणों को कम्बल दान करना चाहिए.प्रतिदिन गणेश जी पूजा करनी चाहिए और गणपति जी को लड्डू का भोग लगाना चाहिए.बहते जल में कोयले के 21 टुकड़े प्रवाहित करना चाहिए.दाएं हाथ की मध्यमा उंगली में लहसुनियां चांदी में धारण करना चाहिए.




जिवन मे आनेवाले अन्य समस्या हेतु भी आप मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते है। 1250/-रुपये मे आप अपना हस्तलिखित कुण्डली भी प्राप्त कर सकते है,जिसमें सभी प्रकार के उपाय दिये जायेंगे । यह जन्म कुण्डली विश्लेषण आपको ई-मेल से प्राप्त होगा। इसमे सबसे ज्यादा आपके समस्याओं पर ही ध्यानपुर्वक उपाय दिये जायेंगे ।





आदेश......

8 Feb 2016

ज्योतिष से भाग्योदय.

सभी ग्रहों का अलग-अलग पेड़ों से सीधा संबंध होता है। अत: इन पेड़ों की जड़ों को धारण करने से अशुभ ग्रहों के प्रभाव कम हो जाते हैं। धन संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं। यहां बताई जा रही जड़ें किसी भी पूजन सामग्री या ज्योतिष संबंधी सामग्रियों की दुकान से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं...

ग्रहों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना एक उपाय है। असली रत्न काफी मूल्यवान होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर होते है। इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं, लेकिन धन अभाव में इन्हें धारण नहीं कर पाते हैं। ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।




1. सूर्य ग्रह के लिए

सूर्य के लिए बेलपत्र की जड़ धारण करे । यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करना चाहिए। इससे सूर्य से शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।




2. चंद्र ग्रह के लिए

चन्द्र के लिए खिरनी की जड़ धारण करे । चंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।




3. मंगल ग्रह के लिए

मंगल के लिए अनंतमूल की जड़ धारण करे । मंगल ग्रह को शुभ बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।




4. बुध ग्रह के लिए

बुध के लिए विधारा की जड़ धारण करे । बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधी झाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।




5. गुरु ग्रह के लिए

गुरु के लिए केले की जड़ धारण करे । गुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।




6. शुक्र ग्रह के लिए

शुक्र के लिए गुलर की जड़ धारण करे । गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।




7. शनि ग्रह के लिए

शनि के लिए शमी की जड़ धारण करे । शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए।




8. राहु ग्रह के लिए

राहू के लिए सफ़ेद चन्दन का टुकड़ा धारण करे । कुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में हो तो राहु को शुभ बनाने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करना चाहिए।




9. केतु ग्रह के लिए

केतु के लिए अश्वगंधा की जड़ का टुकड़ा धारण करे । केतु से शुभ फल पाने के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।




जब हमे नवग्रह से सबंधित जड को धारण करना हो तो उसको प्राण-प्रतिष्ठित करने से कई गुना फल प्राप्त किया जा सकता । मै यहा विधान दे रहा हु जो आपके लिये लाभदायक होगा।


संकल्प-

दाहिने हाथ मे जल,अक्षत व कुंकुम लेकर संकल्प कीजिये

ॐ विष्णु र्विष्णु र्विष्णु: श्री मदभगवतों महाप्रभावस्य द्वितीय परार्धे श्वेतवारहकल्पे भरतखण्डे पुण्य क्षेत्रे, अमुक गोत्रीय(अपना गोत्र बोले) अमुक शर्माहं (अपना नाम बोले) अद्द अमुक (जड़ का नाम बोले) जड अमुक (ग्रह का नाम बोले) ग्रह प्रित्यर्थे प्राण-प्रतिष्ठा करिष्ये ॥



विनियोग-

अस्य श्री प्राण-प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा-विष्णु-रूद्रौ ऋषी ऋज्ञजु: सामानिच्छदासी  प्राणख्या देवता । ॐ आं बीजं ह्रीं शक्ति: क्रां कीलकं यं रं लं वं शं षं सं हं हं स: एत: शक्तय: प्रतिष्ठापन विनियोगा: ॥



मंत्र का कम से कम २१ बार जाप करे या १०८ बार,जाप करते समय जड़ को स्पर्श कर सकते है ।



ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं स: देवस्य प्राणा: इह प्राणा: पुरुच्चार्य देवस्य सर्वेनींद्रयानी इह:। पुरुच्चार्य देवस्य त्वक्पाणि पाद पायु पस्थादीनी इह: । पुरुच्चार्य देवस्य वाड मनुश्चक्षु: श्रोत्र घ्राणानि इहागत्य सुखेन चीरं तिष्ठतु स्वाहा ॥



यह विधान करने के बाद जड़ को धारण करें।इन जड़ों को धारण करने से पूर्व किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए।




आदेश.....

19 Jan 2016

यंत्र की शक्ति-नवग्रह.

ज्योतिष के उपायों के रूप में यंत्र दिन प्रतिदिन अधिक मान्य होते जा रहे हैं जिसके कारण इनका प्रयोग करने वाले जातकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। हालांकि नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह के लिए एक पृथक यंत्र उपलब्ध है किन्तु फिर भी कुछ वैदिक ज्योतिषी नवग्रहों के एक संयुक्त यंत्र जिसे नवग्रह यंत्र कहा जाता है, को प्रयोग करने का सुझाव देते हैं जिसके पीछे इन ज्योतिषियों की यह धारणा है कि सभी के सभी नौ ग्रहों के साथ जुड़ने के कारण यह यंत्र जातक की प्रत्येक प्रकार की समस्या का निवारण कर सकता है। पिछले कुछ समय से नवग्रह यंत्र के प्रयोग का प्रचलन बहुत बढ़ गया है तथा इसी के साथ साथ यह प्रश्न भी प्रबल होता जा रहा है कि यदि नवग्रह यंत्र के प्रयोग से एक साथ सभी नवग्रहों से लाभ प्राप्त किया जा सकता है तो नवग्रहों में से किसी विशेष ग्रह का पृथक यंत्र क्यों स्थापित किया जाए जबकि सभी ग्रहों से संबंधित लाभ एक ही यंत्र से प्राप्त किये जा सकते हैं। आज के लेख में हम नवग्रह यंत्र के साथ जुड़े कुछ ऐसे ही प्रश्नों के उत्तर ढूंढने का प्रयास करेंगें।

यंत्रों का प्रयोग किसी भी कुंडली विशेष में शुभ अथवा अशुभ दोनों रूप से कार्य कर रहे ग्रहों से लाभ प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है हालांकि किसी ग्रह के कुंडली में शुभ होने की स्थिति में उस ग्रह से संबंधित रत्न को धारण करना यंत्र के प्रयोग की अपेक्षा एक अच्छा उपाय है तथा इसीलिए यंत्रो का प्रयोग मुख्य रूप से अशुभ ग्रहों के अशुभ फलों को दूर करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार किसी यंत्र के द्वारा प्रसारित की जाने वाली उसके ग्रह विशेष की उर्जा के माध्यम से उस ग्रह की अशुभता को कम किया जा सकता है। किन्तु किसी कुंडली में अशुभ रूप से कार्य कर रहे ग्रहों की अशुभता को यंत्रों अथवा मंत्रों की सहायता से कम करने का प्रयास करते समय हमें सदा इस बात को याद रखना चाहिए कि ये ग्रह मुख्य रूप से जातक के लिए अशुभ हैं तथा इन उपचारों के माध्यम से इन अशुभ ग्रहों के साथ संबंध स्थापित करने के प्रयास में भी ये ग्रह कभी कभी जातक को अशुभ फल प्रदान कर सकते हैं तथा यह संभावना उस स्थिति में बढ़ जाती है जब इन उपायों का प्रयोग करते समय जातक से नियम अथवा अनुशासन में कोई त्रुटि रह जाती है।इसलिए यंत्र इत्यादि के प्रयोग से किसी कुंडली के अशुभ ग्रहों से लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते समय बहुत सावधानी से काम लेना चाहिए जिससे ये अशुभ ग्रह जातक को किसी प्रकार की हानि न पहुंचा दें अथवा ये ग्रह कुंडली में शुभ, अशुभ या मिश्रित रूप से काम कर रहे किसी अन्य ग्रह की कार्यशैली को विपरीत रूप से प्रभावित न कर दें।

यंत्रो को बनाने की विधि के बारे में विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी भी यंत्र को बनाने में प्रयोग होने वाली प्रक्रियाओं में से यंत्र को उर्जा प्रदान करने वाली प्रक्रिया सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है जिसके माध्यम से यंत्र को उसके ग्रह विशेष के मंत्रों की शक्ति से विशेष विधियों द्वारा उर्जा प्रदान की जाती है जैसे कि सूर्य यंत्र को उर्जा प्रदान करने के लिए सूर्य मंत्र का प्रयोग किया जाता है, चन्द्र यंत्र को उर्जा प्रदान करने के लिए चन्द्र मंत्र का प्रयोग किया जाता है तथा इसी प्रकार अन्य सभी प्रकार के यंत्रो को उर्जा प्रदान करने के लिए उन यंत्रों से संबंधित ग्रह विशेष के मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। किन्तु यदि हम नवग्रह यंत्र को उर्जा प्रदान करने का प्रयास करें तो सबसे बड़ी कठिनाई यह आती है कि किसी भी वेद अथवा ज्योतिष के मान्य पुराण में न तो नवग्रह यंत्र को उर्जा प्रदान करने वाले किसी मंत्र की चर्चा की गई है तथा न ही किसी एक मंत्र के माध्यम से नवग्रहों की शांति के लिए पूजा करने की चर्चा की गई है तथा इन सभी आदरणीय वेदों पुराणों में प्रत्येक ग्रह का पृथक रूप से आवाहन करने के लिए उस ग्रह के मंत्रों की चर्चा की गई है जिससे यह मत सपष्ट हो जाता है कि नवग्रह यंत्र को उर्जा प्रदान करने के लिए किसी भी प्रकार का मान्य नवग्रह मंत्र उपलब्ध नहीं है तथा इस तथ्य से इस धारणा को भी बल प्राप्त होता है कि वैदिक काल के ज्योतिषी किसी भी प्रकार के नवग्रह यंत्र का प्रयोग नहीं करते थे अपितु प्रत्येक ग्रह के साथ आवश्यकता अनुसार पृथक रूप से उसके यंत्र अथवा मंत्र की सहायता से संबंध स्थापित करते थे। इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि वैदिक काल के ॠषि तथा ज्योतिषी यह मानते थे कि समस्त नवग्रहों से एक साथ लाभ प्राप्त करने का प्रयास लाभप्रद नहीं है तथा किसी जातक की कुंडली विशेष के अनुसार ही किसी ग्रह विशेष के साथ संबंध स्थापित करके उससे लाभ प्राप्त करने का प्रयास उस ग्रह के मंत्र अथवा यंत्र के माध्यम से करना चाहिए।

जैसा कि हम जान गएं हैं कि नवग्रह यंत्र को उर्जा प्रदान करने के लिए वेदों तथा ज्योतिष पुराणों में किसी भी मान्य मंत्र का वर्णन नहीं आता है इसलिए बाजार में बेचे जाने वाले सभी नवग्रह यंत्र या तो बिल्कुल ही उर्जाहीन हैं अथवा इन्हें किसी अमान्य मंत्र के द्वारा उर्जा प्रदान करने की चेष्टा की गई है तथा दोनों ही स्थितियों में यह यंत्र प्रयोग की दृष्टि से उचित नहीं है क्योंकि किसी भी यंत्र को चलाने के लिए उस यंत्र को प्रदान की गई उर्जा ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है तथा जिस यंत्र में उर्जा ही नहीं है उसका प्रभाव क्या होगा। कुछ पंडित नवग्रह यंत्र को उर्जा प्रदान करने के लिए नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह के मंत्र का बारी बारी से प्रयोग करते हैं जिससे कि नवग्रह यंत्र में स्थित प्रत्येक ग्रह को पृथक रूप से उर्जा प्राप्त हो जाए किन्तु यह प्रक्रिया भी संदेह से रहित नहीं है क्योंकि यदि प्रत्येक ग्रह को पृथक रूप से ही उर्जा प्रदान करनी है तो फिर प्रत्येक ग्रह का पृथक यंत्र ही क्यों न प्रयोग किया जाए। इसलिए बाजार में बिकने वाले नवग्रह यंत्रों को या तो किसी भी प्रकार की उर्जा प्रदान ही नहीं की गई है अथवा इन्हें किसी ऐसी विधि के माध्यम से उर्जा प्रदान करने का प्रयास किया गया है जो मान्य नहीं है तथा दोनों ही स्थितियों में नवग्रह यंत्र प्रयोग करने के योग्य नहीं है।

ग्रहों की कार्यप्रणाली से जुड़े कुछ तथ्यों पर विचार करें तो अधिकतर जातक नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह की उर्जा अचानक बढ़ जाने से इस उर्जा को ठीक प्रकार से नियंत्रित तथा निर्देशित करने में सक्षम नहीं होंगें तथा इससे बहुत से जातकों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए यदि कोई जातक अपनी कुंडली में बुध के शुभ प्रभाव के चलते गायक है तथा ये जातक अपने गायन के क्षेत्र में अधिक से अधिक सफलता प्राप्त करना चाहता है तो इस स्थिति में इस जातक को मुख्य रूप से केवल बुध के रत्न पन्ने की अथवा बुध यंत्र की आवश्यकता है जिसके प्रयोग से बुध ग्रह के कुछ विशेष फलों को और अधिक बढ़ाया जा सके तथा इस जातक को ऐसे किसी भी ग्रह की उर्जा की आवश्यकता नहीं है जो इसके इस लक्ष्य को प्राप्त करने में इसकी सहायता नहीं कर सकता। ऐसे जातक के आभामंडल में किसी यंत्र के प्रयोग से यदि मंगल तथा केतु ग्रह की उर्जा बढा दी जाए तो जातक को अपने गायन के क्षेत्र में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि मंगल तथा केतु दोनों ही ग्रह अपनी सामान्य विशेषताओं के चलते गायन को प्रोत्साहित नहीं करेंगें बल्कि इसके विपरीत जातक का व्यवसाय ही बदला देने की चेष्टा करेंगें जो निश्चय ही इस जातक के लक्ष्य से विपरीत कार्य है। इसलिए इस उदाहरण में बहुत से ग्रहों को अतिरिक्त उर्जा प्रदान करने से अथवा अवांछित ग्रहों को उर्जा प्रदान करने से जातक का काम बनने की अपेक्षा बिगड़ भी सकता है।

पाठकों के लिए यह जान लेना आवश्यक है कि इस संसार के अधिकतर जातक किसी न किसी विशेष कार्यक्षेत्र में केवल एक, दो अथवा तीन ग्रहों के प्रबल प्रभाव के कारण ही कार्यरत तथा सफल होते हैं तथा संसार के अधिकतर जातक सभी के सभी नवग्रहों के बहुत प्रबल हो जाने पर इस बढ़ी हुई उर्जा को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होते जिसके चलते इनमें से कुछ जातक दिशाभ्रमित तथा कुछ जातक दिशाहीन हो सकते हैं तथा कुछ जातक तो अपना मानसिक संतुलन भी खो सकते हैं। उदाहरण के लिए, सेना में कार्यरत सभी जातकों में सामान्यतया मंगल ग्रह की उर्जा प्रबल होती है जिसके चलते इन जातकों को लड़ाई तथा युद्ध करने की प्रेरणा मिलती रहती है। यदि ऐसे किसी जातक को गुरू या चंद्र की प्रबल उर्जा प्रदान कर दी जाए तो यह जातक सेना में काम करने के योग्य नहीं रह जाएगा क्योंकि गुरू तथा चन्द्र दोनों ही ग्रह शांति तथा अहिंसा को प्रोत्साहित करने वाले हैं तथा इन ग्रहों का जातक पर प्रभाव बहुत बढ़ जाने की स्थिति में जातक का मन सेना के कार्य तथा युद्ध के अभ्यास से विचलित होना शुरू हो जाएगा जिसके कारण ऐसे जातक को अपने व्यवसाय में लाभ की अपेक्षा हानि हो सकती है तथा जातक को अपने व्यवसाय से हाथ भी धोना पड़ सकता है। इसी प्रकार आध्यातमिक विकास के मार्ग पर चलने वाला कोई भी जातक अपने अंदर शुक्र ग्रह की उर्जा को बढ़ाना नहीं चाहेगा क्योंकि शुक्र की उर्जा के बलवान होते ही ऐसे आध्यातमिक जातक में संसारिक भोगों के प्रति लालसा उत्पन्न होनी शुरू हो जाएगी जिससे उसके आध्यतमिक विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाएगा। इसलिए इस जातक के लिए गुरू अथवा केतु की उर्जा को बढ़ाना ही लाभप्रद होगा।


इस प्रकार की और भी बहुत सी उदाहरणों पर विचार किया जा सकता है किन्तु इसका सार यह है कि किसी भी जातक को किसी विशेष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए सामान्यतया 1, 2 अथवा 3 ग्रहों की प्रबल उर्जा की आवश्यकता होती है तथा इसी प्रकार प्रत्येक जातक की कुंडली के अनुसार कुछ ऐसे ग्रह भी होते हैं जिनकी उर्जा बढ़ जाने से जातक की किसी विशेष क्षेत्र में होने वाली प्रगति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है तथा इसलिए जातक की सफलता में विघ्न डालने वाले ग्रहों को अतिरिक्त उर्जा किसी भी माध्यम से प्रदान नहीं करनी चाहिए। इसलिए प्रत्येक बुद्धिमान तथा अनुभवी ज्योतिषी किसी भी जातक के आभामंडल में केवल उस उर्जा को बढ़ाने का प्रयास करता है जो उस जातक के लिए किसी क्षेत्र विशेष में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इसलिए नवग्रह यंत्र तो दूर की बात है, अधिकतर जातकों को 1, 2 या 3 से अधिक पृथक यंत्र भी एक समय में नहीं स्थापित करने चाहिएं जिससे जातक के वर्तमान लक्ष्य का विरोध करने वाले ग्रहों को भी उर्जा प्राप्त हो सकती है जिससे जातक की लक्ष्य प्राप्ति में विघ्न उपस्थित हो सकते हैं। प्रत्येक जातक को अपने लिए आवश्यक केवल 1 या 2 यंत्रो का प्रयोग करने से ही सामान्यतया उत्तम फल की प्राप्ति होती है तथा बहुत सी विपरीत दिशाओं में जाने वालीं उर्जाओं को एकसाथ बढ़ा देने पर जातक को अधिकतर स्थितियों में लाभ की अपेक्षा हानि ही होती है।'

आपको नवग्रह से सम्बंधित यंत्रो मे कोनसा यंत्र "जिवन यंत्र","भाग्योदय यंत्र" और "पुण्य यंत्र" है? इसका ग्यान होना आवश्यक है। आवश्यकता नुसार यंत्र धारण करने से अवश्य ही लाभ प्राप्त होता है। कुण्डली के अध्ययन से हम जान सकते है,किस ग्रह का यंत्र हमे लाभदायक होगा और जिवन मे कष्टों का नाश होगा। यंत्र धारण करने के साथ साथ आप नवग्रह मंत्रो का जाप भी करे तो समज लिजीये अब आपका भागोदय होना सम्भव है। मै प्रत्येक ग्रह का यंत्र जब बनाता हू तो ग्रह से सम्बंधित सही मुहूर्त को देखता हू और उसके उपरांत ही यंत्र का निर्माण करता हू । इसी कारण से मैने अपने जिवन मे कई लोगो को यंत्र धारण करने के बाद सफल होते हुये देखा है। आज यहा पर "नवग्रह मंत्र" दे रहा हू,जिसका आप सभी कम से कम 1,3,5,7....11 माला जाप रुद्राक्ष माला से सवेरे करे तो आपको जिवन शुभता प्राप्त होगा परंतु येसा ना समझे के कुछ 5-6 दिन जाप करने से लाभ प्राप्त होगा।लाभ तो अवश्य प्राप्त होगा किंतु इसके लिये शायद आपको 10-12 दिन का समय भी लग सकता है। जितना ज्यादा जाप करेगे उतना ही ज्यादा लाभ भी देखने मिलेगा।




नवग्रह मंत्र:-


।।ॐ सं सर्वारिष्ट निवारणाय नवग्रहेभ्यो नमः ।।

Om sam sarvaarishta nivaaranaay navagrahebhyo namah




मै जब भी ग्रहो के यंत्र किसी जातक के लिये बनाता हू तब उनके कुण्डली का अध्ययन करता हू और उसके उपरांत उनको ग्रह यंत्र पहेनने का सलाह देता हूं। मै अलग-अलग ग्रह से सम्बंधित प्राण-प्रतिष्ठित एवं चैतन्य यंत्र को ही जातक को प्रदान करता हू,यंत्र बनाने के बाद उन्हे गोटा चांदी के ताबिज मे सुरक्षित रखता हू ताकि यंत्र को गले मे धारण किया जा सके और उससे सम्बंधित पुर्ण लाभ जातक को प्राप्त हो सके। प्रत्येक ग्रह से सम्बंधित यंत्र की धनराशि 550/-रुपये है और कुरियर का चार्जेस 100/- रुपये,इस प्रकार से किसी भी एक प्रकार के यंत्र को 650/-रुपये मे प्राप्त किया जा सकता है। अधिक माहिती हेतु हमसे सम्पर्क करें।


 


The power-Navagraha equipment.

Astrology measures as instruments which are daily becoming more recognized that their use is also increasing the number of natives. Each of the nine planets are a separate instrument, but nevertheless some Vedic astrologer whom nine Navagraha instrument called a joint mechanism, the use of which suggests that this assumption behind all of these astrologers nine planets to connect with each of the natives of this equipment can troubleshoot. For some time, the use of instruments Navagraha prevalence has increased and with it the question is becoming even stronger that the nine planets using instruments can simultaneously benefit from all nine of the nine planets Why should set up a separate instrument of special planet of the planet, while the benefits can be obtained from a single device. In today's article we Navagraha associated with the instrument will try to find some of these questions.

Use of equipment in any particular good or bad coil are both working to benefit from planets may be good in the event of any planet in the horoscope of the planet using instruments to hold gem Expect a good solution and therefore use Yantro mainly ominous planets is to remove bad fruit. Thus an instrument to be broadcast by the special energy of the planet, through the planet inauspiciousness can be reduced.So is the use of equipment, etc. A coil while trying to benefit from the ominous planets must act very carefully so they do not hurt any ominous native planet or the planet in the horoscope good, bad or Mixed working as another planet should not adversely affect the functioning.

chants of the power energy is provided by special methods such as solar energy equipment is used to provide sun spells, spells Chandra Chandra instrument used to provide energy, and all other similar Yantro types to provide the energy the planet particular those related to equipment used mantras. But if we try to provide power to equipment Navagraha biggest difficulty is that there is neither any scripture or astrological mythology Navagraha valid instrument that provides the power of a mantra has been discussed, nor any oneNavagraha equipment to provide the energy of any kind is not acceptable and the fact Navagraha mantra credence to the notion that the Vedic astrologer did not use any type of device, but each planet Navagraha In accordance with the requirement of separate spells with the help of the instrument or the connection was established.Try to get through the planet's mantra or equipment should.

As we know that Navagraha Gan mechanism to provide energy in the Vedas and Puranas astrology does not describe any valid spells the Navagraha equipment sold in the market or they absolutely Urgahin or an invalid spellsWhat is the effect. Some pundits Navagraha device to provide power to each of the nine planets rotate use of the mantra so that each planet separately in Navagraha device may receive power but the process is not devoid of suspicion If each planet separately to provide the energy of each planet, then why not use the same equipment to be isolated.does not qualify.

also may have to.On the contrary, the business will not native, who will try to repay the opposite is indeed the goal of the native. So in this example, providing additional energy from the planets or planets unwanted powering even worse than might be the work of the native.

It is essential for readers to know that the world's most exclusive jurisdiction only in the native rough one, two or three planets because of the strong influence of the world's most natives are employed and successful in all nine of the very strong When you have not been able to control the increased energy resulting disorienting and some of these natives are the native directionless and so few natives may lose his composure. For example, all natives employed in the army is strong and the energy of the planet in general Tue these natives go to war to fight and continue to be inspired. If such a strong power of the native leader or lunar have granted it will no longer be able to work in the native army because the planet Jupiter and the Moon both peace and non-violence and promoting effect on the native of these planets In the event of increased military action of the native heart and will begin to deviate from the practice of war which the native may harm than benefit to their business, and native to your business may need to wash hands. Similarly, follow the path of spiritual development within any native would not want to increase the energy of the planet Venus, because Venus has strong power of earthly temptations such as native spiritual longing, which will begin to generate growth path of his Adhytmic will be blocked. So for the native leader or Ketu will be beneficial to increase the energy.

These and many other examples can be considered, but the essence is that any native to succeed in a particular area, typically 1, 2 or 3 planetary requires strong energy and similar Each native's horoscope according to certain planets whose energy by growing native's progress in a particular field may have the opposite effect and therefore planets native's success in impeding any additional energy provided through should not. Therefore every intelligent and experienced astrologers in the aura of any native who only try to increase the power of the natives in a particular area is necessary to achieve success. So Navagraha instrument is so far away, mostly natives of the 1, 2 or 3 more separate instruments should not set a time goal against the natives of the current planets may also gain energy of the native target disruption in the receipt may be present. Each native Yantro you need to use only 1 or 2 the normally leads to good fruit, and go in many different directions, who energies together to deliver increased benefits in most cases than the native is evil. '

In Yantro Konsa instruments relating to the Navagraha "Life instrument", "Bhagyodaya instruments" and "virtue instrument is"? This knowledge is necessary. Accordingly need to hold the instrument must receive the same benefits. The study is the chart we can see, what equipment we will be profitable and Life on the planet will destroy sufferings. Along with holding device Even if you chant Mantras Navagraha Liziye understanding your Bagoday is possible now. I am each planet makes the planet associated with the instrument when you look at the right moment and thereafter the device creates Hu Hu. In his Life of why I succeed after several men were seen to hold the instrument. Today on here "mantra Navagraha" am giving, you chant the least 1,3,5,7 .... 11 Rudraksha mala beads to the morning, but you will receive the blessings Life Yesa not understand some of the 5- 6 day Hogazlab surely will benefit from chanting for it but maybe you can take 10-12 days. The more benefits we will get to see as much chanting.

Navagraha mantra: -

Om sam sarvaarishta nivaaranaay navagrahebhyo namah

I am a native of the equipment makes the planets and the sun studies Hu Hu and thereafter advise them of the planet Phenne equipment. I belong to a different planet life prestigious and consciousness equipment provides the native Hu, making equipment after edging them in silver reserves Tabij Who is holding the device in the throat and its related benefits absolutely native is received. The amount of equipment associated with each planet 550 / -rupye and courier charges 100 / - Rs, thus any one type of device 650 / -rupye can be obtained on. Contact us for more information.




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