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6 Jan 2017

षोडश काली नित्या साधना.

सभी वेबसाइट पर पंद्रह काली नित्या साधनाये दिया हुआ है इसलिए मै यहा षोडश काली नित्या साधना विधी-विधान के साथ दे रहा हूं। यह साधना किसी भी अमावस्या से प्रारंभ करें या फिर अब आनेवाले ग्रहण काल मे करें। यह साधना गुरुगम्य है इसलिए इसका महत्व अधिक है। यह साधना कइ योगी महायोगी तपस्वी और अघोर साधकों ने किया हुआ है। इस साधना से साधक को स्वयं भगवती काली अपनी विशेष  क्रुपा साधक पर बरसाती है,इसी साधना से कइ साधको ने जिवन मे अन्य साधनाओं मे सिद्धीया प्राप्त की है। जब कोइ साधक साधनाओं मे असफल हो जाये तब उसको काली नित्या साधना अवश्य करना चाहिए।


साधना विधी-

अमवस्या के रात्री मे साधक को स्नान करके लाल वस्त्र पहनकर अपने साधना स्थल पर बैठना है। माथे पर बभुत का त्रिपुण्ड लगाना है और बिच मे लाल कुम्कुम का अंगुठे से तिलक करना है। सामने कोई लकड़ी का बाजोट रखे और उस पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवती काली का चित्र स्थापित करें। चित्र के सामने सोलह पान के पत्ते रखे,पान के वो पत्ते होने जिसमें हम कथ्था चुना मिलाकर खाते है। पत्तो को अच्छेसे धोकर रखें,पत्ते फटे नही होने चाहिए। अब उन पत्तो पर सोलह सुपारीया स्थापित करदे और भगवती चित्र के साथ उन पत्तो पर रखे हुए सुपारीयो का सामान्य पुजन करें। सामान्य पुजन का मतलब है,कुम्कुम पुष्प चढाना,धूप दिप ("यहा पर कडवे (सरसों) तेल का जरुरी है") जलाना, प्रसाद स्वरुप मे कुछ मिठा भोग रखें। अब सामान्य पुजन के बाद काली हकिक माला से दिये हुए प्रत्येक मंत्र का कम से कम एक माला जाप करना आवश्यक है। जब तक पुर्ण मंत्र जाप नही होता है तब तक आसन से उठना नही है और साथ मे रोज एक पाठ काली कीलकम का करना है। इस तरहा से हमे यह साधना ग्यारह दिनो तक करना है ।


मंत्र-

१. काली :-

प्रथम नित्य का नाम भी काली ही है और मंत्र है :-

II ॐ ह्रीं काली काली महाकाली कौमारी मह्यं देहि स्वाहा II


२. कपालिनी :-

माता काली कि द्वितीय नित्य का नाम कपालिनी है और मन्त्र है :-

II ॐ ह्रीं क्रीं कपालिनी - महा - कपाला - प्रिये - मानसे कपाला सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा II


३. कुल्ला :-

माता काली कि तृतीय नित्या का नाल कुल्ला है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं कुल्लायै नमः II


४. कुरुकुल्ला :-

माता कि चतुर्थ नित्या का नाम कुरुकुल्ला है और मंत्र है :-

II क्रीं ॐ कुरुकुल्ले क्रीं ह्रीं मम सर्वजन वश्यमानय क्रीं कुरुकुल्ले ह्रीं स्वाहा II


५. विरोधिनी :-

माता कि पंचम नित्या का नाम विरोधिनी है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं ह्रीं क्लीं हुं विरोधिनी शत्रुन उच्चाटय विरोधय विरोधय शत्रु क्षयकरी हुं फट II


६. विप्रचित्ता :-

माता कि छटवीं नित्या का नाम विप्रचित्ता है और मंत्र है :-

II ॐ श्रीं क्लीं चामुण्डे विप्रचित्ते दुष्ट-घातिनी शत्रुन नाशय एतद-दिन-वधि प्रिये सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा II


७. उग्रा :-

माता कि सप्तम नित्या का नाम उग्रा है और मंत्र है :-

II ॐ स्त्रीं हुं ह्रीं फट II


८. उग्रप्रभा :-

माँ कि अष्टम नित्या का नाम उग्रप्रभा है और मंत्र है :-

II ॐ हुं उग्रप्रभे देवि काली महादेवी स्वरूपं दर्शय हुं फट स्वाहा II


९. दीप्ता :-

माता कि नवमी नित्या का नाम दीप्ता है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं हुं दीप्तायै सर्व मंत्र फ़लदायै हुं फट स्वाहा II


१०. नीला :-

माता कि दसवीं नित्या का नाम नीला है और मंत्र है :-

II हुं हुं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हसबलमारी नीलपताके हम फट II


११. घना :-

माता कि ग्यारहवीं नित्या के रूप में माता घना को जाना जाता है और मंत्र है :-

II ॐ क्लीं ॐ घनालायै घनालायै ह्रीं हुं फट ।।


१२. बलाका :-

माता कि बारहवीं नित्या का नाम बलाका है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं हुं ह्रीं बलाका काली अति अद्भुते पराक्रमे अभीष्ठ सिद्धिम में देहि हुं फट स्वाहा II


१३. मात्रा :-

माता कि त्रयोदश नित्या का नाम मात्रा है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं ह्लीं हुं ऐं दस महामात्रे सिद्धिम में देहि सत्वरम हुं फट स्वाहा II


१४. मुद्रा :-

माता कि चतुर्दश नित्या का नाम मुद्रा है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं ह्लीं हुं प्रीं फ्रें मुद्राम्बा मुद्रा सिद्धिम में देहि भो जगन्मुद्रास्वरूपिणी हुं फट स्वाहा II


१५. मिता :-

माता की पंचादशम नित्या का नाम मिता है और मंत्र है :-

II ॐ क्रीं हुं ह्रीं ऐं मिते परामिते ॐ क्रीं हुं ह्लीं ऐं सोहं हुं फट स्वाहा II


१६. रौद्री:-

माता की षोडश नित्या का नाम रौद्री है और मंत्र है:-

।। ॐ ह्रीं भगवत्यै विद्महे महामायायै धीमहि । तन्न रौद्री प्रचोदयात ।।


यह सोलह मंत्र आपको समस्त साधानाओ मे सफलता प्रदान करने मे तप्तर है। ग्यारह दिनो का साधना सम्पन्न होने के बाद सोलह पान के पत्तो के साथ सुपारीयो को बहते हुए जल मे प्रवाहित करदे । साधना मे इस्तेमाल किये हुए काली हकिक माला को सम्भाल कर रखिये क्योके यह माला जिवन मे फिर से इसी साधना के लिये काम मे आयेगा। रोज मंत्र जाप के बाद काली कीलकम का एक पाठ किया करे और ग्रहण काल मे 108 पाठ किये जाय तो यह काली कीलकम सिद्ध हो जायेगा।




काली कीलकम्

मंत्र से अधिक प्रभाव कवच का होता है और कवच से गुना अधिक प्रभाव कीलक का कहा गया है । अतः काली पूजन के पश्चात कीलक का पाठ अवश्य करना चाहिए । इसका पाठ किए बिना मंत्र, स्तोत्र, कवच आदि के पाठ का फल नष्ट हो जाता है । कीलक पठ करने वाला मनुष्य धनवान, पुत्रवान, समाज में प्रमुख, धीर, निरोगी रहता है । उसके सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं । शत्रु या जंगली जीवों से उसे भय नहीं रहता । इस कीलक के प्रभाव से ही दुर्वासा, वशिष्ठ, दत्तात्रेय, देवगुरु बृहस्पति, इंद्र, कुबेर अंगिरा, भृगु, च्यवन, कार्तिकेय, कश्यप, ब्रह्मा आदि ऐश्वर्य संपन्न हुए हैं । काली ही परतत्त्व हैं, अतः उसका यह कीलक भी प्रभावशाली है, ऐसा शिवकथन है ।

दाए हाथ मे थोड़ा जल लेकर विनियोग मंत्र पढकर जल को जमिन पर छोड़ देना है।

विनियोग:-

ॐ अस्य श्री कालिका कीलकस्य सदाशिव ऋषिरनुष्टप् छन्दः, श्री दक्षिण कालिका देवता, सर्वार्थ सिद्धि साधने कीलक न्यासे जपे विनियोगः ।

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि कीलकं सर्वकामदम् ।
कालिकायाः परं तत्त्वं सत्यं सत्यं त्रिभिर्ममः ॥
दुर्वासाश्च वशिष्ठश्च दत्तात्रेयो बृहस्पतिः ।
सुरेशो धनदश्चैव अङ्गराश्च भृभूद्वाहः ॥
च्यवनः कार्तवीर्यश्च कश्यपोऽथ प्रजापतिः ।
कीलकस्य प्रसादेन सर्वैश्वर्चमवाप्नुयुः ॥



अथ कीलकम्

ॐ कारं तु शिखाप्रान्ते लम्बिका स्थान उत्तमे ।
सहस्त्रारे पङ्कजे तु क्रीं क्रीं वाग्विलासिनी ॥

कूर्चबीजयुगं भाले नाभौ लज्जायुगं प्रिये ।
दक्षिणे कालिके पातु स्वनासापुट युग्मके ॥

हूंकारद्वन्द्वं गण्डे द्वे द्वे माये श्रवणद्वये ।
आद्यातृतीयं विन्यस्य उत्तराधर सम्पुटे ॥

स्वाहा दशनमध्ये तु सर्व वर्णन्न्यसेत् क्रमात् ।
मुण्डमाला असिकरा काली सर्वार्थसिद्धिदा ॥

चतुरक्षरी महाविद्या क्रीं क्रीं हृदय पङ्कजे ।
ॐ हूं ह्नीं क्रीं ततो हूं हट् स्वाहा च कंठकूपके ॥

अष्टाक्षरी कालिकाया नाभौ विन्यस्य पार्वति ।
क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं स्वाहान्ते च दशाक्षरी ॥

मम बाहु युगे तिष्ठ मम कुण्डलिकुण्डले ।
हूं ह्नीं मे वह्निजाया च हूं विद्या तिष्ठ पृष्ठके ॥

क्रीं हूं ह्नीं वक्षदेशे च दक्षिणे कालिके सदा ।
क्रीं हूं ह्नीं वह्निजायाऽन्ते चतुर्दशाक्षरेश्वरी ॥

क्रीं तिष्ठ गुह्यदेशे मे एकाक्षरी च कालिका ।
ह्नीं हूं फट् च महाकाली मूलाधार निवासिनी ॥

सर्वरोमाणि मे काली करांगुल्यङ्क पालिनी ।
कुल्ला कटिं कुरुकुल्ला तिष्ठ तिष्ठ सदा मम ॥

विरोधिनी जानुयुग्मे विप्रचित्ता पदद्वये ।
तिष्ठ मे च तथा चोग्रा पादमूले न्यसेत्क्रमात् ॥

प्रभा तिष्ठतु पादाग्रे दीप्ता पादांगुलीनपि ।
नीली न्यसेद्विन्दु देशे घना नादे च तिष्ठ मे ॥

वलाका विन्दुमार्गे च न्यसेत्सर्वाङ्ग सुन्दरी ।
मम पातालके मात्रा तिष्ठ स्वकुल कायिके ॥

मुद्रा तिष्ठ स्वमत्येमां मितास्वङ्गाकुलेषु च ।
एता नृमुण्डमालास्त्रग्धारिण्य: खड्गपाणयः ॥

तिष्ठन्तु मम गात्राणि सन्धिकूपानि सर्वशः ।
ब्राह्मी च ब्रह्मरंध्रे तु तिष्ठ स्व घटिका परा ॥

नारायणी नेत्रयुगे मुखे माहेश्वरी तथा ।
चामुण्डा श्रवणद्वन्द्वे कौमारी चिबुके शुभे ॥

तथामुदरमध्ये तु तिष्ठ मे चापराजिता ।
वाराही चास्थिसन्धौ च नारसिंही नृसिंहके ॥

आयुधानि गृहीतानि तिष्ठस्वेतानि मे सदा ।
इति ते कीलकं दिव्यं नित्यं यः कीलयेत्स्वकम् ॥

कवचादौ महेशानि तस्यः सिद्धिर्न संशयः ।
श्मशाने प्रेतयोर्वापि प्रेतदर्शनतत्परः ॥

यः पठेत्पाठयेद्वापि सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ।
सवाग्मी धनवान्दक्षः सर्वाध्यक्ष: कुलेश्वर: ॥

पुत्र बांधव सम्पन्नः समीर सदृशो बले ।
न रोगवान् सदा धीरस्तापत्रय निषूदनः ॥

मुच्यते कालिका पायात् तृणराशिमिवानला ।
न शत्रुभ्यो भयं तस्य दुर्गमेभ्यो न बाध्यते ॥

यस्य य देशे कीलकं तु धारणं सर्वदाम्बिके ।
तस्य सर्वार्थसिद्धि: स्यात्सत्यं सत्यं वरानने ॥

मंत्रच्छतगुणं देवि कवचं यन्मयोदितम् ।
तस्माच्छतगुणं चैव कीलकं सर्वकामदम् ॥

तथा चाप्यसिता मंत्रं नील सारस्वते मनौ ।
न सिध्यति वरारोहे कीलकार्गलके विना ॥

विहीने कीलकार्गलके काली कवच यः पठेत् ।
तस्य सर्वाणि मंत्राणि स्तोत्राण्यन सिद्धये प्रिये ॥


साधना पुर्ण विधि-विधान से सम्पन्न करे। अवश्य आपको सफलता मिलेगा।




आदेश........

18 Apr 2016

काली सहस्त्राक्षरी

माँ कालिका का स्वरूप जितना भयावह है उससे कही ज्यादा मनोरम और भक्तों के लिए आनंददायी है। काली माता को शक्ति और बल की देवी माना जाता है। अपने जीवन से भय, संकट, इच्छा अनुसार फल पाने के लिए काली माता को प्रसन्न करना चाहिए। आमतौर पर मां काली की पूजा सन्यासी तथा तांत्रिक किया करते हैं। माना जाता है कि मां काली काल का अतिक्रमण कर मोक्ष देती है। आद्यशक्ति होने के नाते वह अपने भक्त की हर इच्छा पूर्ण करती है। तांत्रिक तथा ज्योतिषियों के अनुसार मां काली के कुछ मंत्र ऐसे हैं जिन्हें एक आम व्यक्ति अपने रोजमर्रा के जीवन में अपने संकट दूर करने के लिए प्रयोग कर सकता है।

यही एक मंत्र येसा है जिससे कोइ भी कार्य सम्भव है। मैने इस मंत्र के बहोत सारे अनुभव देखे है और गारंटी के साथ बोल सकता हू "इस मंत्र से अनुभव होता है"।
इस मंत्र के कई प्रयोग है जिन्हे लिखना सम्भव तो नही है परंतु कुछ प्रयोग बता देता हूं।

प्रयोग 1-जब स्वास्थ खराब हो तब मंत्र का 108 बार पाठ करके शुद्ध जल पर तिन बार फुंक मारकर जल को रोगी को पिला दे तो कुछ देर मे रिसल्ट देखने मिलेगा।

प्रयोग 2-कोई इच्छा हो मन मे जो पुर्ण नही हो रही हो तो शनिवार के रात्री मे महाकाली जी के चित्र के सामने चमेली के तेल का दिपक लगाये और मंत्र का 3 माला जाप कालि हकिक माला से 7 दिनो तक करे तो अवश्य इच्छा पुर्ण होगी।

प्रयोग 3-हर समय हमे रक्षा कवच का आवश्यकता होता है,जिससे हम बुरे शक्तियों से बच सके तो इसके लिये "ताम्बे के पेटी (ताबीज) मे 7 काले तिल के साथ दो पपिते के बीज भरकर,ताबीज को देखते हुए मंत्र का 108 बार जाप करके धारण करले तो सभी बुरे शक्तियों से रक्षा होता है "।

प्रयोग 4-अगर आप किसीसे सच्छा शुद्ध प्रेम करते हो और उसको वश मे करना चाहते हो तो "जिसे वश मे करना हो उसके फोटो को देखते हुए मंत्र का रोज शुक्रवार को रात्री मे 3 माला जाप स्फटिक माला से 11 दिनो तक करे और बारहवें दिन काले किशमिश का 11 माला आहुति हवन मे दिजिये तो 7 दिनो मे इच्छित व्यक्ति वश होता है "।


मंत्र-

।। ॐ जयन्ति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।


मंत्र का महत्व और अर्थ:

1)ॐ जयन्ती — जयति सर्वोत्कर्षेण वर्तते इति ‘जयन्ती‘—सबसे उत्कृष्ट एवं विजयशालिनी ।।

2) ॐ मङ्गला –मङ्गं जननमरणादिरूपं समर्पणं
भक्तानां लाति गृह्णाति नाशयति या सा मङ्गला मोक्षप्रदा —जो अपने भक्तों के जन्म -मरण आदि संसार बन्धनको दूर करती है उन मोक्ष दायिनी मंगलमयी देवीका नाम ‘मङ्गला’ है ।।

3) ॐ काली — कलयति भक्षयति प्रलयकाले सर्वम् इति ‘काली’ — जो प्रलयकालमे सम्पूर्ण सृष्टि को अपना ग्रास बना लेती है ; वह ‘काली ‘ है ।।

4) ॐ भद्रकाली — भद्रं मङ्गलं सुखं वा कलयति स्वीकरोति भक्तेभ्यो दातुम् इति भद्रकाली सुखप्रदा -जो अपने भक्तों को देनेके लिए ही भद् , सुख किंवा मंगल स्वीकार करती है , वह ‘भद्रकाली’ है ।।

5) ॐ कपालिनी –धारयति हस्ते कपाल मुण्डभूषिता च
या सा कपालिनी — हातमे कपाल तथा गलेमे मुण्डमाला धारण करने वाली ।।

6) ॐ दुर्गा –दुःखेन अष्टाङ्गयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेन गम्यते प्राप्यते या सा ‘दुर्गा’ –जो अष्टांगयोग, कर्म एवं उपासनारूप दुःसाध्य साधन से प्राप्त होती है , वे जगदम्बिका ‘दुर्गा’ कहलाती है ।।

7) ॐ क्षमा –क्षमते सहते भक्तानाम् अन्येषां वा सर्वानपराधान् जननीत्वेनातिशयकरूणामयस्वभावादिति ‘क्षमा’ — सम्पूर्ण जगत् की जननी होनेसे अत्यन करूणामय स्वभाव होनेके कारण जो भक्तों अथवा दूसरों के भी सारे अपराध क्षमा करती है , उनका नाम ‘क्षमा’ है ।।

ॐ शिवा — सबका कल्याण अर्थात शिव
करनेवाली जगदम्बाको ‘शिवा ‘ कहते है ।।

9) ॐ धात्री –सम्पूर्ण प्रपंचको धारण करनेके कारण भगवती का नाम ‘धात्री’ है ।।

10) ॐ स्वाहा –स्वाहारूपसे यज्ञभाग ग्रहण करके देवताओं का पोषण करनेवाली भगवती को ‘स्वाहा ‘ कहते है ।।

11) ॐस्वधा — स्वधारूपसे श्राद्ध और तर्पणको स्वीकार करके पितरोंका पोषण करनेवाली भगवती को ‘स्वधा ‘ कहते है ।।

इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके ! तुम्हे मेरा नमस्कार हो । देवि चामुण्डे ! तुम्हारी जय हो ।सम्पूर्ण
प्राणियोंकी पीडा हरनेवाली देवि ! तुम्हारी जय हो ।सबमे व्याप्त रहने वाली देवि ! तुम्हारी जय हो ।कालरात्रि ! तुम्हें नमस्कार हो ।।

मंत्र जाप के बाद काली सहस्त्राक्षरी का कम से कम एक पाठ करने से मंत्र से अनुकूल रिसल्ट अवश्य ही शिघ्र प्राप्त होंगे।


।। श्री काली सहस्त्राक्षरी ।।

ॐ क्रीं क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं स्वाहा शुचिजाया महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीँ कामेश्वरी वीँ हं वाराहिके ह्रीँ महामाये खं खः क्रोघाघिपे श्रीमहालक्ष्यै सर्वहृदय रञ्जनी वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिँ हसकहलह्रीँ हस्त्रैँ ॐ ह्रीँ क्लीँ मे स्वाहा ॐ ॐ ह्रीँ ईं स्वाहा दक्षिण कालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा खड्गमुण्डधरे कुरुकुल्ले तारे ॐ. ह्रीँ नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रेँ विमोहिनी सर्वदुष्टान् मोहय मोहय हयग्रीवे सिँहवाहिनी सिँहस्थे अश्वारुढे अश्वमुरिप विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून मां हिँसितुमुघतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले वलाकिनी नीलपताके क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके सर्वजगव्दशमानय वशमानय मातग्ङिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातग्ङिनी सर्वशंकरी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे घोरनादिनी भूर शत्रून् विनाशिनी उन्मादिनी रोँ रोँ रोँ रीँ ह्रीँ श्रीँ हसौः सौँ वद वद क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ क्रीँ क्रीँ कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके शम्वरघातिनी कामेश्वरी कामिके ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा हृदयाहये ॐ ह्रीँ क्रीँ मे स्वाहा ठः ठः ठः क्रीँ ह्रं ह्रीँ चामुण्डे हृदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान् अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नस्तने विष्टंभकारिणि विघाधिके श्मशानवासिनी कलय कलय विकलय विकलय कालग्राहिके सिँहे दक्षिणकालिके अनिरुद्दये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे चमत्कारिणी हं कालिके करालिके घोरे कह कह तडागे तोये गहने कानने शत्रुपक्षे शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि अम्बिके तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथनायै योगमार्ग गच्छ गच्छ निदर्शिके देहिनि दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपुन्दर्शने दर्शय दर्शय सिँहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीँ क्रीँ क्रीँ हूं हूं ह्रीँ ह्रीँ फट् स्वाहा शक्तिरुपायै रोँ वा गणपायै रोँ रोँ रोँ व्यामोहिनि यन्त्रनिकेमहाकायायै प्रकटवदनायै लोलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी तन्त्रनिके मेधप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनि कुल्ले कुरुकुल्ले चैतन्यप्रभेप्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ ह्रीँ रक्ष रक्ष ज्वाला प्रचण्ड चण्डिकेयं शक्तिमार्तण्डभैरवि विप्रचित्तिके विरोधिनि आकर्णय आकर्णय पिशिते पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै नमो नमः ब्राम्हयै नमो नमः माहेश्वर्यै नमो नमः कौमार्यै नमो नमः वैष्णव्यै नमो नमः वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमो नमः अपराजितायै नमो नमः नारसिँहिकायै नमो नमः कालि महाकालिके अनिरुध्दके सरस्वति फट् स्वाहा पाहि पाहि ललाटं भल्लाटनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष परविधा क्षोभय क्षोभय आकृष्य आकृष्य कट कट महामोहिनिके चीरसिध्दके कृष्णरुपिणी अंजनसिद्धके स्तम्भिनि मोहिनि मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।।

इस काली सहस्त्राक्षरी का नित्य पाठ करने से ऐश्वर्य,मोक्ष,सुख,समृद्धि,एवं शत्रुविजय प्राप्त होता है,इसमे कोई संदेह नही है।




आदेश.....

28 Feb 2016

कालीका-सहस्त्रनाम.

काली-सहस्रनाम का एक पाठ रात्रि मे करने से समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलता है।आज के समय में जबकि गुरु का मिलना मुश्किल है और साधना मार्ग ठीक से निर्देशित करने वालों की बहुत कमी सामान्य पाठकों को महसूस होती है ,जबकि उनकी समस्याए बहुत अधिक बढ़ चुकी हैं ,ऐसे  मे काली सहस्त्रनाम का पाठ सामान्य जन के लिए अमृत स्वरुप और हर समस्या का रामबाण इलाज है |

‘भैरव-तन्त्र’ के अनुसार साधक को अपनी साधना की सम्पूर्णत: निर्विघ्न सिद्धि के निमित्त कालिका देवी की उपासना करना अपरिहार्य है ।भगवती काली ही तंत्रों के प्रवर्तक भगवान सदाशिव की आह्लादनी शक्ति हैं । कालिका देवी के कृपा-कटाक्ष बिना अघोरेश्वर शिव भी साधक को उसका वांछित वर देने में असमर्थ हो जाते हैं।

‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ (गणपति खण्ड) में परशुरामजी द्वारा शिवजी की आज्ञा से कालिका देवी को प्रसन्न करने हेतु बार-बार स्तुति करने का वर्णन मिलता है । शिवजी द्वारा प्रदत्त‘कालिका सहस्रनाम’ पूर्णत: सिद्ध है । इसका पाठ करने के लिए पूजन, हवन, न्यास, प्राणायाम,ध्यान, भूत-शुद्धि, जप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है । भगवान सदाशिव ने परशुरामजी से इस पाठ के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि इस पाठ को करने से साधक में प्रबल आकर्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है, उसके कार्य स्वत: सिद्ध होते जाते हैं, उसके शत्रुगण हतबुद्धि हो जाते हैं तथा उसके सौभाग्य का उदय होता है ।

"शाक्त तंत्र" सर्वसिद्धिप्रद है जिसमे करकादी स्तोत्र और कालिका सहस्त्रनाम का उल्लेख तिष्ण प्रभावशाली बताया गया है।

‘ कालिका-सहस्रनाम’ का पाठ करने की अनेक गुप्त विधियाँ हैं, जो विभिन्न कामनाओं के अनुसार पृथक पृथक हैं और गुरु-परम्परा प्राप्त हैं । इस चमत्कारी एवं स्वयंसिद्ध ‘कालीका सहस्त्रनाम' का पाठ सिर्फ रात्रि मे ही करना अनुकुल माना जाता है। क्युके रात्रि मे महाविद्याओ कि समस्त शक्तियाँ जाग्रत होती है और उन्हे साधक प्रसन्न करके मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकता है। यहा एक गोपनीय विधान दे रहा हू,जो आसान है और फलदायी है।

सर्वप्रथम लाल रंग के कपडे पर महाकाली जी का चित्र स्थापित करें। साधक/साधिकाये स्वयं लाल वस्त्र धारण करे और लाल आसन का ही प्रयोग करे । हाथ मे किसी भी प्रकार का लाल पुष्प लेकर अपना कामना बोलकर पुष्प को मातारानी के चरणों मे समर्पित करें। रुद्राक्ष माला से "क्रीं कालिके स्वाहा" मंत्र का एक माला जाप सहस्त्रनाम पाठ से पुर्व और अंत मे करे तो शिघ्र सफलता प्राप्त होता है। जब भी यह साधना करना हो तो मंगलवार/शनिवार से प्रारंभ करें। दक्षिण दिशा मे मुख करके पढ़ने से समस्त प्रकार के लाभ प्राप्त होते है,पच्छिम दिशा मे मुख करके पढ़ने से दारिद्रता नष्‍ट हो जाती है,पुर्व दिशा मे मुख करके पढ़ने से वाचा सिद्धि प्राप्त होती है और उत्तर दिशा मे मुख करके पढ़ने से मातारानी के दर्शन करना सम्भव है।



"कालीका सहस्त्रनाम"

श्मशान-कालिका काली भद्रकाली कपालिनी ।
गुह्य-काली महाकाली कुरु-कुल्ला विरोधिनी ।।१।।

कालिका काल-रात्रिश्च महा-काल-नितम्बिनी ।
काल-भैरव-भार्या च कुल-वत्र्म-प्रकाशिनी ।।२।।

कामदा कामिनीया कन्या कमनीय-स्वरूपिणी ।
कस्तूरी-रस-लिप्ताङ्गी कुञ्जरेश्वर-गामिनी।।३।।

ककार-वर्ण-सर्वाङ्गी कामिनी काम-सुन्दरी ।
कामात्र्ता काम-रूपा च काम-धेनुु: कलावती ।।४।।

कान्ता काम-स्वरूपा च कामाख्या कुल-कामिनी ।
कुलीना कुल-वत्यम्बा दुर्गा दुर्गति-नाशिनी ।।५।।

कौमारी कुलजा कृष्णा कृष्ण-देहा कृशोदरी ।
कृशाङ्गी कुलाशाङ्गी च क्रीज्ररी कमला कला ।।६।।

करालास्य कराली च कुल-कांतापराजिता ।
उग्रा उग्र-प्रभा दीप्ता विप्र-चित्ता महा-बला ।।७।।

नीला घना मेघ-नाद्रा मात्रा मुद्रा मिताऽमिता ।
ब्राह्मी नारायणी भद्रा सुभद्रा भक्त-वत्सला ।।८।।

माहेश्वरी च चामुण्डा वाराही नारसिंहिका ।
वङ्कांगी वङ्का-कंकाली नृ-मुण्ड-स्रग्विणी शिवा ।।९।।

मालिनी नर-मुण्डाली-गलद्रक्त-विभूषणा ।
रक्त-चन्दन-सिक्ताङ्गी सिंदूरारुण-मस्तका ।।१०।।

घोर-रूपा घोर-दंष्ट्रा घोरा घोर-तरा शुभा ।
महा-दंष्ट्रा महा-माया सुदन्ती युग-दन्तुरा ।।११।।

सुलोचना विरूपाक्षी विशालाक्षी त्रिलोचना ।
शारदेन्दु-प्रसन्नस्या स्पुरत्-स्मेराम्बुजेक्षणा ।।१२।।

अट्टहासा प्रफुल्लास्या स्मेर-वक्त्रा सुभाषिणी ।
प्रफुल्ल-पद्म-वदना स्मितास्या प्रिय-भाषिणी ।।१३।।

कोटराक्षी कुल-श्रेष्ठा महती बहु-भाषिणी ।
सुमति: मतिश्चण्डा चण्ड-मुण्डाति-वेगिनी ।।१४।।

प्रचण्डा चण्डिका चण्डी चर्चिका चण्ड-वेगिनी ।
सुकेशी मुक्त-केशी च दीर्घ-केशी महा-कचा ।।१५।।

पे्रत-देही-कर्ण-पूरा प्रेत-पाणि-सुमेखला ।
प्रेतासना प्रिय-प्रेता प्रेत-भूमि-कृतालया ।।१६।।

श्मशान-वासिनी पुण्या पुण्यदा कुल-पण्डिता ।
पुण्यालया पुण्य-देहा पुण्य-श्लोका च पावनी ।।१७।।

पूता पवित्रा परमा परा पुण्य-विभूषणा ।
पुण्य-नाम्नी भीति-हरा वरदा खङ्ग-पाशिनी ।।१८।।

नृ-मुण्ड-हस्ता शस्त्रा च छिन्नमस्ता सुनासिका ।
दक्षिणा श्यामला श्यामा शांता पीनोन्नत-स्तनी ।।१९।।

दिगम्बरा घोर-रावा सृक्कान्ता-रक्त-वाहिनी ।
महा-रावा शिवा संज्ञा नि:संगा मदनातुरा ।।२०।।

मत्ता प्रमत्ता मदना सुधा-सिन्धु-निवासिनी ।
अति-मत्ता महा-मत्ता सर्वाकर्षण-कारिणी ।।२१।।

गीत-प्रिया वाद्य-रता प्रेत-नृत्य-परायणा ।
चतुर्भुजा दश-भुजा अष्टादश-भुजा तथा ।।२२।।

कात्यायनी जगन्माता जगती-परमेश्वरी ।
जगद्-बन्धुर्जगद्धात्री जगदानन्द-कारिणी ।।२३।।

जगज्जीव-मयी हेम-वती महामाया महा-लया ।
नाग-यज्ञोपवीताङ्गी नागिनी नाग-शायनी ।।२४।।

नाग-कन्या देव-कन्या गान्धारी किन्नरेश्वरी ।
मोह-रात्री महा-रात्री दरुणाभा सुरासुरी ।।२५।।

विद्या-धरी वसु-मती यक्षिणी योगिनी जरा ।
राक्षसी डाकिनी वेद-मयी वेद-विभूषणा ।।२६।।

श्रुति-स्मृतिर्महा-विद्या गुह्य-विद्या पुरातनी ।
चिंताऽचिंता स्वधा स्वाहा निद्रा तन्द्रा च पार्वती ।।२७।।

अर्पणा निश्चला लीला सर्व-विद्या-तपस्विनी ।
गङ्गा काशी शची सीता सती सत्य-परायणा ।।२८।।

नीति: सुनीति: सुरुचिस्तुष्टि: पुष्टिर्धृति: क्षमा ।
वाणी बुद्धिर्महा-लक्ष्मी लक्ष्मीर्नील-सरस्वती ।।२९।।

स्रोतस्वती स्रोत-वती मातङ्गी विजया जया ।
नदी सिन्धु: सर्व-मयी तारा शून्य निवासिनी ।।३०।।

शुद्धा तरंगिणी मेधा शाकिनी बहु-रूपिणी ।
सदानन्द-मयी सत्या सर्वानन्द-स्वरूपणि ।।३१।।

स्थूला सूक्ष्मा सूक्ष्म-तरा भगवत्यनुरूपिणी ।
परमार्थ-स्वरूपा च चिदानन्द-स्वरूपिणी ।।३२।।

सुनन्दा नन्दिनी स्तुत्या स्तवनीया स्वभाविनी ।
रंकिणी टंकिणी चित्रा विचित्रा चित्र-रूपिणी ।।३३।।

पद्मा पद्मालया पद्म-मुखी पद्म-विभूषणा ।
शाकिनी हाकिनी क्षान्ता राकिणी रुधिर-प्रिया ।।३४।।

भ्रान्तिर्भवानी रुद्राणी मृडानी शत्रु-मर्दिनी ।
उपेन्द्राणी महेशानी ज्योत्स्ना चन्द्र-स्वरूपिणी ।।३५।।

सूय्र्यात्मिका रुद्र-पत्नी रौद्री स्त्री प्रकृति: पुमान् ।
शक्ति: सूक्तिर्मति-मती भक्तिर्मुक्ति: पति-व्रता ।।३६।।

सर्वेश्वरी सर्व-माता सर्वाणी हर-वल्लभा ।
सर्वज्ञा सिद्धिदा सिद्धा भाव्या भव्या भयापहा ।।३७।।

कर्त्री हर्त्री पालयित्री शर्वरी तामसी दया ।
तमिस्रा यामिनीस्था न स्थिरा धीरा तपस्विनी ।।३८।।

चार्वङ्गी चंचला लोल-जिह्वा चारु-चरित्रिणी ।
त्रपा त्रपा-वती लज्जा निर्लज्जा ह्नीं रजोवती ।।३९।।

सत्व-वती धर्म-निष्ठा श्रेष्ठा निष्ठुर-वादिनी ।
गरिष्ठा दुष्ट-संहत्री विशिष्टा श्रेयसी घृणा ।।४०।।

भीमा भयानका भीमा-नादिनी भी: प्रभावती ।
वागीश्वरी श्रीर्यमुना यज्ञ-कत्र्री यजु:-प्रिया ।।४१।।

ऋक्-सामाथर्व-निलया रागिणी शोभन-स्वरा ।
कल-कण्ठी कम्बु-कण्ठी वेणु-वीणा-परायणा ।।४२।।

वशिनी वैष्णवी स्वच्छा धात्री त्रि-जगदीश्वरी ।
मधुमती कुण्डलिनी शक्ति: ऋद्धि: सिद्धि: शुचि-स्मिता ।।४३।।

रम्भोवैशी रती रामा रोहिणी रेवती मघा ।
शङ्खिनी चक्रिणी कृष्णा गदिनी पद्मनी तथा ।।४४।।

शूलिनी परिघास्त्रा च पाशिनी शाङ्र्ग-पाणिनी ।
पिनाक-धारिणी धूम्रा सुरभि वन-मालिनी ।।४५।।

रथिनी समर-प्रीता च वेगिनी रण-पण्डिता ।
जटिनी वङ्किाणी नीला लावण्याम्बुधि-चन्द्रिका ।।४६।।

बलि-प्रिया महा-पूज्या पूर्णा दैत्येन्द्र-मन्थिनी ।
महिषासुर-संहन्त्री वासिनी रक्त-दन्तिका ।।४७।।

रक्तपा रुधिराक्ताङ्गी रक्त-खर्पर-हस्तिनी ।
रक्त-प्रिया माँस - रुधिरासवासक्त-मानसा ।।४८।।

गलच्छोेणित-मुण्डालि-कण्ठ-माला-विभूषणा ।
शवासना चितान्त:स्था माहेशी वृष-वाहिनी ।।४९।।

व्याघ्र-त्वगम्बरा चीर-चेलिनी सिंह-वाहिनी ।
वाम-देवी महा-देवी गौरी सर्वज्ञ-भाविनी ।।५०।।

बालिका तरुणी वृद्धा वृद्ध-माता जरातुरा ।
सुभ्रुर्विलासिनी ब्रह्म-वादिनि ब्रह्माणी मही ।।५१।।

स्वप्नावती चित्र-लेखा लोपा-मुद्रा सुरेश्वरी ।
अमोघाऽरुन्धती तीक्ष्णा भोगवत्यनुवादिनी ।।५२।।

मन्दाकिनी मन्द-हासा ज्वालामुख्यसुरान्तका ।
मानदा मानिनी मान्या माननीया मदोद्धता ।।५३।।

मदिरा मदिरोन्मादा मेध्या नव्या प्रसादिनी ।
सुमध्यानन्त-गुणिनी सर्व-लोकोत्तमोत्तमा ।।५४।।

जयदा जित्वरा जेत्री जयश्रीर्जय-शालिनी ।
सुखदा शुभदा सत्या सभा-संक्षोभ-कारिणी ।।५५।।

शिव-दूती भूति-मती विभूतिर्भीषणानना ।
कौमारी कुलजा कुन्ती कुल-स्त्री कुल-पालिका ।।५६।।

कीर्तिर्यशस्विनी भूषां भूष्या भूत-पति-प्रिया ।
सगुणा-निर्गुणा धृष्ठा कला-काष्ठा प्रतिष्ठिता ।।५७।।

धनिष्ठा धनदा धन्या वसुधा स्व-प्रकाशिनी ।
उर्वी गुर्वी गुरु-श्रेष्ठा सगुणा त्रिगुणात्मिका ।।५८।।

महा-कुलीना निष्कामा सकामा काम-जीवना ।
काम-देव-कला रामाभिरामा शिव-नर्तकी ।।५९।।

चिन्तामणि: कल्पलता जाग्रती दीन-वत्सला ।
कार्तिकी कृत्तिका कृत्या अयोेध्या विषमा समा ।।६०।।

सुमंत्रा मंत्रिणी घूर्णा ह्लादिनी क्लेश-नाशिनी ।
त्रैलोक्य-जननी हृष्टा निर्मांसा मनोरूपिणी ।।६१।।

तडाग-निम्न-जठरा शुष्क-मांसास्थि-मालिनी ।
अवन्ती मथुरा माया त्रैलोक्य-पावनीश्वरी ।।६२।।

व्यक्ताव्यक्तानेक-मूर्ति: शर्वरी भीम-नादिनी ।
क्षेमज्र्री शंकरी च सर्व- सम्मोह-कारिणी ।।६३।।

ऊध्र्व-तेजस्विनी क्लिन्न महा-तेजस्विनी तथा ।
अद्वैत भोगिनी पूज्या युवती सर्व-मङ्गला ।।६४।।

सर्व-प्रियंकरी भोग्या धरणी पिशिताशना ।
भयंकरी पाप-हरा निष्कलंका वशंकरी ।।६५।।

आशा तृष्णा चन्द्र-कला निद्रिका वायु-वेगिनी ।
सहस्र-सूर्य संकाशा चन्द्र-कोटि-सम-प्रभा ।।६६।।

वह्नि-मण्डल-मध्यस्था सर्व-तत्त्व-प्रतिष्ठिता ।
सर्वाचार-वती सर्व-देव - कन्याधिदेवता ।।६७।।

दक्ष-कन्या दक्ष-यज्ञ नाशिनी दुर्ग तारिणी ।
इज्या पूज्या विभीर्भूति: सत्कीर्तिब्र्रह्म-रूपिणी ।।६८।।

रम्भीश्चतुरा राका जयन्ती करुणा कुहु: ।
मनस्विनी देव-माता यशस्या ब्रह्म-चारिणी ।।६९।।

ऋद्धिदा वृद्धिदा वृद्धि: सर्वाद्या सर्व-दायिनी ।
आधार-रूपिणी ध्येया मूलाधार-निवासिनी ।।७०।।

आज्ञा प्रज्ञा-पूर्ण-मनाश्चन्द्र-मुख्यानुवूलिनी ।
वावदूका निम्न-नाभि: सत्या सन्ध्या दृढ़-व्रता ।।७१।।

आन्वीक्षिकी दंड-नीतिस्त्रयी त्रि-दिव-सुन्दरी ।
ज्वलिनी ज्वालिनी शैल-तनया विन्ध्य-वासिनी ।।७२।।

अमेया खेचरी धैर्या तुरीया विमलातुरा ।
प्रगल्भा वारुणीच्छाया शशिनी विस्पुलिङ्गिनी ।।७३।।

भुक्ति सिद्धि सदा प्राप्ति: प्राकम्या महिमाणिमा ।
इच्छा-सिद्धिर्विसिद्धा च वशित्वीध्र्व-निवासिनी ।।७४।।

लघिमा चैव गायित्री सावित्री भुवनेश्वरी ।
मनोहरा चिता दिव्या देव्युदारा मनोरमा ।।७५।।

पिंगला कपिला जिह्वा-रसज्ञा रसिका रसा ।
सुषुम्नेडा भोगवती गान्धारी नरकान्तका ।।७६।।

पाञ्चाली रुक्मिणी राधाराध्या भीमाधिराधिका ।
अमृता तुलसी वृन्दा वैटभी कपटेश्वरी ।।७७।।

उग्र-चण्डेश्वरी वीर-जननी वीर-सुन्दरी ।
उग्र-तारा यशोदाख्या देवकी देव-मानिता ।।७८।।

निरन्जना चित्र-देवी क्रोधिनी कुल-दीपिका ।
कुल-वागीश्वरी वाणी मातृका द्राविणी द्रवा ।।७९।।

योगेश्वरी-महा-मारी भ्रामरी विन्दु-रूपिणी ।
दूती प्राणेश्वरी गुप्ता बहुला चामरी-प्रभा ।।८०।।

कुब्जिका ज्ञानिनी ज्येष्ठा भुशुंडी प्रकटा तिथि: ।
द्रविणी गोपिनी माया काम-बीजेश्वरी क्रिया ।।८१।।

शांभवी केकरा मेना मूषलास्त्रा तिलोत्तमा ।
अमेय-विक्रमा व्रूâरा सम्पत्-शाला त्रिलोचना ।।८२।।

सुस्थी हव्य-वहा प्रीतिरुष्मा धूम्रार्चिरङ्गदा ।
तपिनी तापिनी विश्वा भोगदा धारिणी धरा ।।८३।।

त्रिखंडा बोधिनी वश्या सकला शब्द-रूपिणी ।
बीज-रूपा महा-मुद्रा योगिनी योनि-रूपिणी ।।८४।।

अनङ्ग - मदनानङ्ग - लेखनङ्ग - कुशेश्वरी ।
अनङ्ग-मालिनि-कामेशी देवि सर्वार्थ-साधिका ।।८५।।

सर्व-मन्त्र-मयी मोहिन्यरुणानङ्ग-मोहिनी ।
अनङ्ग-कुसुमानङ्ग-मेखलानङ्ग - रूपिणी ।।८६।।

वङ्कोश्वरी च जयिनी सर्व-द्वन्द्व-क्षयज्र्री ।
षडङ्ग-युवती योग-युक्ता ज्वालांशु-मालिनी ।।८७।।

दुराशया दुराधारा दुर्जया दुर्ग-रूपिणी ।
दुरन्ता दुष्कृति-हरा दुध्र्येया दुरतिक्रमा ।।८८।।

हंसेश्वरी त्रिकोणस्था शाकम्भर्यनुकम्पिनी ।
त्रिकोण-निलया नित्या परमामृत-रञ्जिता ।।८९।।

महा-विद्येश्वरी श्वेता भेरुण्डा कुल-सुन्दरी ।
त्वरिता भक्त-संसक्ता भक्ति-वश्या सनातनी ।।९०।।

भक्तानन्द-मयी भक्ति-भाविका भक्ति-शज्र्री ।
सर्व-सौन्दर्य-निलया सर्व-सौभाग्य-शालिनी ।।९१।।

सर्व-सौभाग्य-भवना सर्व सौख्य-निरूपिणी ।
कुमारी-पूजन-रता कुमारी-व्रत-चारिणी ।।९२।।

कुमारी-भक्ति-सुखिनी कुमारी-रूप-धारिणी ।
कुमारी-पूजक-प्रीता कुमारी प्रीतिदा प्रिया ।।९३।।

कुमारी-सेवकासंगा कुमारी-सेवकालया ।
आनन्द-भैरवी बाला भैरवी वटुक-भैरवी ।।९४।।

श्मशान-भैरवी काल-भैरवी पुर-भैरवी ।
महा-भैरव-पत्नी च परमानन्द-भैरवी ।।९५।।

सुधानन्द-भैरवी च उन्मादानन्द-भैरवी ।
मुक्तानन्द-भैरवी च तथा तरुण-भैरवी ।।९६।।

ज्ञानानन्द-भैरवी च अमृतानन्द-भैरवी ।
महा-भयज्र्री तीव्रा तीव्र-वेगा तपस्विनी ।।९७।।

त्रिपुरा परमेशानी सुन्दरी पुर-सुन्दरी ।
त्रिपुरेशी पञ्च-दशी पञ्चमी पुर-वासिनी ।।९८।।

महा-सप्त-दशी चैव षोडशी त्रिपुरेश्वरी ।
महांकुश-स्वरूपा च महा-चव्रेश्वरी तथा ।।९९।।

नव-चव्रेâश्वरी चक्र-ईश्वरी त्रिपुर-मालिनी ।
राज-राजेश्वरी धीरा महा-त्रिपुर-सुन्दरी ।।१००।।

सिन्दूर-पूर-रुचिरा श्रीमत्त्रिपुर-सुन्दरी ।
सर्वांग-सुन्दरी रक्ता रक्त-वस्त्रोत्तरीयिणी ।।१०१।।

जवा-यावक-सिन्दूर -रक्त-चन्दन-धारिणी ।
त्रिकूटस्था पञ्च-कूटा सर्व-वूट-शरीरिणी ।।१०२।।

चामरी बाल-कुटिल-निर्मल-श्याम-केशिनी ।
वङ्का-मौक्तिक-रत्नाढ्या-किरीट-मुकुटोज्ज्वला ।।१०३।।

रत्न-कुण्डल-संसक्त-स्फुरद्-गण्ड-मनोरमा ।
कुञ्जरेश्वर-कुम्भोत्थ-मुक्ता-रञ्जित-नासिका ।।१०४।।

मुक्ता-विद्रुम-माणिक्य-हाराढ्य-स्तन-मण्डला ।
सूर्य-कान्तेन्दु-कान्ताढ्य-कान्ता-कण्ठ-भूषणा ।।१०५।।

वीजपूर-स्फुरद्-वीज -दन्त - पंक्तिरनुत्तमा ।
काम-कोदण्डकाभुग्न-भ्रू-कटाक्ष-प्रवर्षिणी ।।१०६।।

मातंग-कुम्भ-वक्षोजा लसत्कोक-नदेक्षणा ।
मनोज्ञ-शुष्कुली-कर्णा हंसी-गति-विडम्बिनी ।।१०७।।

पद्म-रागांगदा-ज्योतिर्दोश्चतुष्क-प्रकाशिनी ।
नाना-मणि-परिस्फूर्जच्दृद्ध-कांचन-वंकणा ।।१०८।।

नागेन्द्र-दन्त-निर्माण-वलयांचित-पाणिनी ।
अंगुरीयक-चित्रांगी विचित्र-क्षुद्र-घण्टिका ।।१०९।।

पट्टाम्बर-परीधाना कल-मञ्जीर-शिंजिनी ।
कर्पूरागरु-कस्तूरी-कुंकुम-द्रव-लेपिता ।।११०।।

विचित्र-रत्न-पृथिवी-कल्प-शाखि-तल-स्थिता ।
रत्न-द्वीप-स्पुâरद्-रक्त-सिंहासन-विलासिनी ।।१११।।

षट्-चक्र-भेदन-करी परमानन्द-रूपिणी ।
सहस्र-दल - पद्यान्तश्चन्द्र - मण्डल-वर्तिनी ।।११२।।

ब्रह्म-रूप-शिव-क्रोड-नाना-सुख-विलासिनी ।
हर-विष्णु-विरंचीन्द्र-ग्रह - नायक-सेविता ।।११३।।

शिवा शैवा च रुद्राणी तथैव शिव-वादिनी ।
मातंगिनी श्रीमती च तथैवानन्द-मेखला ।।११४।।

डाकिनी योगिनी चैव तथोपयोगिनी मता ।
माहेश्वरी वैष्णवी च भ्रामरी शिव-रूपिणी ।।११५।।

अलम्बुषा वेग-वती क्रोध-रूपा सु-मेखला ।
गान्धारी हस्ति-जिह्वा च इडा चैव शुभज्र्री ।।११६।।

पिंगला ब्रह्म-सूत्री च सुषुम्णा चैव गन्धिनी ।
आत्म-योनिब्र्रह्म-योनिर्जगद-योनिरयोनिजा ।।११७।।

भग-रूपा भग-स्थात्री भगनी भग-रूपिणी ।
भगात्मिका भगाधार-रूपिणी भग-मालिनी ।।११८।।

लिंगाख्या चैव लिंगेशी त्रिपुरा-भैरवी तथा ।
लिंग-गीति: सुगीतिश्च लिंगस्था लिंग-रूप-धृव् ।।११९।।

लिंग-माना लिंग-भवा लिंग-लिंगा च पार्वती ।
भगवती कौशिकी च प्रेमा चैव प्रियंवदा ।।१२०।।

गृध्र-रूपा शिवा-रूपा चक्रिणी चक्र-रूप-धृव् ।
लिंगाभिधायिनी लिंग-प्रिया लिंग-निवासिनी ।।१२१।।

लिंगस्था लिंगनी लिंग-रूपिणी लिंग-सुन्दरी ।
लिंग-गीतिमहा-प्रीता भग-गीतिर्महा-सुखा ।।१२२।।

लिंग-नाम-सदानंदा भग-नाम सदा-रति: ।
लिंग-माला-वंâठ-भूषा भग-माला-विभूषणा ।।१२३।।

भग-लिंगामृत-प्रीता भग-लिंगामृतात्मिका ।
भग-लिंगार्चन-प्रीता भग-लिंग-स्वरूपिणी ।।१२४।।

भग-लिंग-स्वरूपा च भग-लिंग-सुखावहा ।
स्वयम्भू-कुसुम-प्रीता स्वयम्भू-कुसुमार्चिता ।।१२५।।

स्वयम्भू-पुष्प-प्राणा स्वयम्भू-कुसुमोत्थिता ।
स्वयम्भू-कुसुम-स्नाता स्वयम्भू-पुष्प-तर्पिता ।।१२६।।

स्वयम्भू-पुष्प-घटिता स्वयम्भू-पुष्प-धारिणी ।
स्वयम्भू-पुष्प-तिलका स्वयम्भू-पुष्प-चर्चिता ।।१२७।।

स्वयम्भू-पुष्प-निरता स्वयम्भू-कुसुम-ग्रहा ।
स्वयम्भू-पुष्प-यज्ञांगा स्वयम्भूकुसुमात्मिका ।।१२८।।

स्वयम्भू-पुष्प-निचिता स्वयम्भू-कुसुम-प्रिया ।
स्वयम्भू-कुसुमादान-लालसोन्मत्त - मानसा ।।१२९।।

स्वयम्भू-कुसुमानन्द-लहरी-स्निग्ध देहिनी ।
स्वयम्भू-कुसुमाधारा स्वयम्भू-वुुसुमा-कला ।।१३०।।

स्वयम्भू-पुष्प-निलया स्वयम्भू-पुष्प-वासिनी ।
स्वयम्भू-कुसुम-स्निग्धा स्वयम्भू-कुसुमात्मिका ।।१३१।।

स्वयम्भू-पुष्प-कारिणी स्वयम्भू-पुष्प-पाणिका ।
स्वयम्भू-कुसुम-ध्याना स्वयम्भू-कुसुम-प्रभा ।।१३२।।

स्वयम्भू-कुसुम-ज्ञाना स्वयम्भू-पुष्प-भोगिनी ।
स्वयम्भू-कुसुमोल्लास स्वयम्भू-पुष्प-वर्षिणी ।।१३३।।

स्वयम्भू-कुसुमोत्साहा स्वयम्भू-पुष्प-रूपिणी ।
स्वयम्भू-कुसुमोन्मादा स्वयम्भू पुष्प-सुन्दरी ।।१३४।।

स्वयम्भू-कुसुमाराध्या स्वयम्भू-कुसुमोद्भवा ।
स्वयम्भू-कुसुम-व्यग्रा स्वयम्भू-पुष्प-पूर्णिता ।।१३५।।

स्वयम्भू-पूजक-प्रज्ञा स्वयम्भू-होतृ-मातृका ।
स्वयम्भू-दातृ-रक्षित्री स्वयम्भू-रक्त-तारिका ।।१३६।।

स्वयम्भू-पूजक-ग्रस्ता स्वयम्भू-पूजक-प्रिया ।
स्वयम्भू-वन्दकाधारा स्वयम्भू-निन्दकान्तका ।।१३७।।

स्वयम्भू-प्रद-सर्वस्वा स्वयम्भू-प्रद-पुत्रिणी ।
स्वम्भू-प्रद-सस्मेरा स्वयम्भू-प्रद-शरीरिणी ।।१३८।।

सर्व-कालोद्भव-प्रीता सर्व-कालोद्भवात्मिका ।
सर्व-कालोद्भवोद्भावा सर्व-कालोद्भवोद्भवा ।।१३९।।

कुण्ड-पुष्प-सदा-प्रीतिर्गोल-पुष्प-सदा-रति: ।
कुण्ड-गोलोद्भव-प्राणा कुण्ड-गोलोद्भवात्मिका ।।१४०।।

स्वयम्भुवा शिवा धात्री पावनी लोक-पावनी ।
कीर्तिर्यशस्विनी मेधा विमेधा शुक्र-सुन्दरी ।।१४१।।

अश्विनी कृत्तिका पुष्या तैजस्का चन्द्र-मण्डला ।
सूक्ष्माऽसूक्ष्मा वलाका च वरदा भय-नाशिनी ।।१४२।।

वरदाऽभयदा चैव मुक्ति-बन्ध-विनाशिनी ।
कामुका कामदा कान्ता कामाख्या कुल-सुन्दरी ।।१४३।।

दुःखदा सुखदा मोक्षा मोक्षदार्थ-प्रकाशिनी ।
दुष्टादुष्ट-मतिश्चैव सर्व-कार्य-विनाशिनी ।।१४४।।

शुक्राधारा शुक्र-रूपा-शुक्र-सिन्धु-निवासिनी ।
शुक्रालया शुक्र-भोग्या शुक्र-पूजा-सदा-रति:।।१४५।।

शुक्र-पूज्या-शुक्र-होम-सन्तुष्टा शुक्र-वत्सला ।
शुक्र-मूत्र्ति: शुक्र-देहा शुक्र-पूजक-पुत्रिणी ।।१४६।।

शुक्रस्था शुक्रिणी शुक्र-संस्पृहा शुक्र-सुन्दरी ।
शुक्र-स्नाता शुक्र-करी शुक्र-सेव्याति-शुक्रिणी ।।१४७।।

महा-शुक्रा शुक्र-भवा शुक्र-वृष्टि-विधायिनी ।
शुक्राभिधेया शुक्रार्हा शुक्र-वन्दक-वन्दिता ।।१४८।।

शुक्रानन्द-करी शुक्र-सदानन्दाभिधायिका ।
शुक्रोत्सवा सदा-शुक्र-पूर्णा शुक्र-मनोरमा ।।१४९।।

शुक्र-पूजक-सर्वस्वा शुक्र-निन्दक-नाशिनी ।
शुक्रात्मिका शुक्र-सम्पत् शुक्राकर्षण-कारिणी ।।१५०।।

शारदा साधक-प्राणा साधकासक्त-रक्तपा ।
साधकानन्द-सन्तोषा साधकानन्द-कारिणी ।।१५१।।

आत्म-विद्या ब्रह्म-विद्या पर ब्रह्म स्वरूपिणी ।
सर्व-वर्ण-मयी देवी जप-माला-विधायिनी ।।१५२||

पाठ समाप्ति के बाद महाकाली और महाकाल को प्रणाम करे क्युके जहा महाकाल है वही महाकाली जी है और कपुर से आरती करें। आप सभी के कल्याण हेतु यह पाठ कलयुग मे स्वए कल्पवृक्ष के समान है,जो समस्त कार्य मे सफलता प्रदान करता है।

आदेश....

25 Nov 2015

महाकाली दर्शन साधना,( Mahakali Darahan)

जब सम्पूर्ण जगत् जलमग्न था और भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या बिछाकर योगनिद्रा का आश्रय ले सो रहे थे, उस समय उनके कानों के मैल से मधु और कैटभ दो भयंकर असुर उत्पन्न हुए। वे दोनों ब्रह्माजी का वध करने को तैयार हो गये। भगवान विष्णु के नाभिकमल में विराजमान प्रजापति ब्रह्माजी ने जब उन दोनों भयानक असुरों को अपने पास आया और भगवान को सोया हुआ देखा, तब एकाग्रचित्त होकर उन्होंने भगवान विष्णु को जगाने के लिये उनके नेत्रों में निवास करनेवाली योगनिद्रा का स्तवन आरम्भ किया। जो इस विश्व की अधीश्वरी, जगत् को धारण करनेवाली, संसार का पालन और संहार करने वाली तथा तेज:स्वरूप भगवान विष्णु की अनुपम शक्ति हैं, उन्हीं भगवती निद्रादेवी की भगवान ब्रह्मा स्तुति करने लगे। ब्रह्माजी ने कहा- देवि! तुम्हीं इस जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार करनेवाली हो। तुम्हीं जीवनदायिनी सुधा हो। देवि! तुम्हीं संध्या, सावित्री तथा परम जननी हो। तुम्हीं इस विश्व-ब्रह्माण्ड को धारण करती हो। तुमसे ही इस जगत् की सृष्टि होती है। तुम्हीं से इसका पालन होता है और सदा तुम्हीं कल्प के अन्त में सबको अपना ग्रास बना लेती हो। जगन्मयी देवि! इस जगत् की उत्पत्ति के समय तुम सृष्टिरूपा हो, पालन-काल में स्थितिरूपा हो तथा कल्पान्त के समय संहाररूप धारण करनेवाली हो। तुम्हीं महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी हो। तुम्हीं तीनों गुणों को उत्पन्न करनेवाली सबकी प्रकृति हो। भयंकर कालरात्रि, महारात्रि और मोहरात्रि भी तुम्हीं हो। तुम्हीं श्री, तुम्हीं ईश्वरी, तुम्हीं ह्री और तुम्हीं बोधस्वरूपा बुद्धि हो। लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति और क्षमा भी तुम्हीं हो। तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, घोररूपा तथा गदा, चक्र, शङ्ख और धनुष धारण करनेवाली हो। बाण, भुशुण्डी और परिघ- ये भी तुम्हारे अस्त्र हैं। तुम सौम्य और सौम्यतर हो-इतना ही नहीं, जितने भी सौम्य एवं सुन्दर पदार्थ हैं, उन सबकी अपेक्षा तुम अत्यधिक सुन्दरी हो। पर और अपर-सबके परे रहनेवाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। सर्वस्वरूपे देवि! कहीं भी सत्-असत्रूप जो कुछ वस्तुएँ हैं और उन सबकी जो शक्ति है, वह तुम्हीं हो। ऐसी अवस्था में तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? जो इस जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं, उन भगवान को भी जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया है, तब तुम्हारी स्तुति करने में यहाँ कौन समर्थ हो सकता है? मुझको, भगवान शङ्कर को तथा भगवान विष्णु को भी तुमने ही शरीर धारण कराया है; अत: तुम्हारी स्तुति करने की शक्ति किसमें है? देवि! ये जो दोनों दुर्धर्ष असुर मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो और जगदीश्वर भगवान विष्णु को शीघ्र ही जगा दो। साथ ही इनके भीतर इन दोनों महान असुरों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर दो। इस प्रकार स्तुति करने पर तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी योगनिद्रा भगवान के नेत्र, मुख, नासिका, बाहु, हृदय और वक्ष:स्थल से निकलकर ब्रह्माजी के समक्ष उपस्थित हो गयीं। योगनिद्रा से मुक्त होने पर भगवान जनार्दन उस एकार्णव के जल में शेषनाग की शय्या से जाग उठे। उन्होंने दोनों पराक्रमी असुरों को देखा जो लाल आँखें किये ब्रह्माजी को खा जाने का उद्योग कर रहे थे। तब भगवान श्रीहरि ने दोनों के साथ पाँच हजार वर्षो तक केवल बाहुयुद्ध किया। इसके बाद महामाया ने जब दोनों असुरों को मोह में डाल दिया तो वे बलोन्मत्त होकर भगवान से ही वर माँगने को कहा। भगवान ने कहा कि यदि मुझ पर प्रसन्न हो तो मेरे हाथों मारे जाओ। असुरों ने कहा जहाँ पृथ्वी जल में डूबी न हो, वहीं हमारा वध करो। तब भगवान ने तथास्तु कहकर दोनों के मस्तकों को अपनी जाँघ पर रख लिया तथा चक्र से काट डाला। इस प्रकार देवी महामाया (महाकाली) ब्रह्माजी की स्तुति करने पर प्रकट हुई। कमलजन्मा ब्रह्माजी द्वारा स्तवित महाकाली अपने दस हाथों में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शङ्ख धारण करती हैं। त्रिनेत्रा भगवती के समस्त अङ्ग दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं।

महाकाली को शत्रुसंहार, विघ्ननिवारण, संकटनाश और सुरक्षा की अधीश्वरी देवी माना जाता है। महाकाली की पूजा करने वाले को अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि-भय कभी नहीं सताता इनकी कृपा से भक्त हमेशा-हमेशा के लिए भय-मुक्त हो जाता है।
महाकाली का रूप चाहे बहुत डरावना है मगर भक्तों के लिए बहुत शुभ है तभी तो मां को शुभंकरी नाम से भी जाना जाता है। इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।

मां को प्रसन्न करने के लिए लाल रंग के आसन पर महाकाली का स्वरूप, चित्रपट अथवा यन्त्र स्थापित करें। लाल रंग का चन्दन, गुलाब के फूल और धूप दीप से पूजन करने के बाद मन्त्र का रोज 11 माला जाप काली हकिक माला से करें।



मंत्र:-

।। क्रीं क्रीं महाकालिके प्रसीद प्रसीद आगच्छ आगच्छ वरदाय क्रीं क्रीं स्वाहा  ।।



इस मंत्र का सच्चे ह्रदय से नियमित जाप करने से महाकाली भक्त को सपने में दर्शन देती हैं। जब ऐसे दर्शन हो तो घबराएं नहीं और किसी अन्य से स्वप्न की चर्चा भी न करें।

महाकाली पुजन में बली देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। बलि में अवश्यक नहीं है कि जीव हत्या ही की जाए। सात्विक बलि से भी मां को प्रसन्न किया जा सकता है। इसके लिए नारियल की बली दी जा सकती है। अगर नारियल न मिले तो किसी भी फल की बली दी जा सकती है।







आदेश......