Showing posts with label शक्ती साधना.. Show all posts
Showing posts with label शक्ती साधना.. Show all posts

11 Sept 2019

सर्व देवी शक्ति सवारी मंत्र साधना.



आप लोगो ने शरीर मे देवी आना यह बहोत बार देखा होगा,किसी भी भगत के शरीर मे जब देवी आती है तो उस भगत को बहोत तकलीफ सहनी पड़ती है । भगत के शरीर मे सवारी आने से वहा पर दर्शन करने वाले भक्तों का हमेशा कल्याण ही होता है । कुछ जगह पर लोग शरीर मे देवी आने का ढोंग भी रचते है और इस प्रकार से नाटक करते है कि सामान्य भक्त उनके बातों में फस जाते है । जिस स्थान पर माता की सच्ची सवारी आती हो वहा पर किसी भी भक्त को दर्शन करने मात्र से ही परेशानी से छुटकारा मिल जाता है और मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है । आज के समय मे तो 90% पाखंड सवारी के नाम पर चल रहा है जिसके वजेसे आज़कल हर कोई माता की आरती में या फिर भजन में घूमने लगता है और सवारी आने का नाटक करता है । आप सर्वप्रथम वस्तुस्थिती को समझिए जैसे किसी भगत के शरीर मे सवारी आना कोई आसान क्रिया नही है,इसके लिए भगत का आचरण और वाणी भी शुद्ध होना चाहिए । अगर कोई भगत सवारी आने के बाद गालियां देता हो तो सीधे उसके जोर से बाल खिंचकर उसको घुमाओ तो वो चिल्लाने लगेगा या फिर ज्यादा गालियां देने लगेगा,अब यहा आपको समज जाना चाहिए कि यह पाखंड कर रहा है । जिन्हें सच्ची सवारी आती है उनके शरीर को तकलीफ दी जाए तो उस भगत के शरीर को सवारी के वक्त तकलीफ महेसुस नही होती है परंतु सवारी जाने के बाद बेचारे को बहोत तकलीफ होती है । सीधे भाषा मे कहा जाए तो सवारी भगत के शरीर मे शक्ति का चैतन्य होना या फिर माता के शक्ति का आशिर्वाद ही बोल सकते है ।



मैंने पिछले बार कालभैरव सवारी के बारे में लिखा था और उस साधना के माध्यम से बहोत सारे साधक लाभान्वित हुए है,इसलिए इस बार एक ऐसा शाबर मंत्र देने के इच्छुक हु जिससे किसी भी माता/देवी की सवारी को शरीर मे बुला सकते है । पिछले बार मैंने बहोत भरोसा करके मंत्र को पूर्णता स्पष्ट किया था जिसके वजेसे से फेसबुक और यु ट्यूब के धूर्त तांत्रिकों ने उसको चुराकर अपने वीडियो बनाये और किसीने पोस्ट बनाकर डाल दिया । इस बार मंत्र को पूर्णता स्पष्ट नही कर रहा हु इसलिए इस बार अधूरा मंत्र इस आर्टिकल में आपको पढ़ने मिलेगा,अब तक मैंने कुछ मंत्र के शब्दों को गोपनीय रखा था और ये भी कहा था कि गोपनीय शब्द व्हाट्सएप पर बताया जाएगा परंतु इस बार " सर्व देवी शक्ति सवारी शाबर मंत्र " को सिर्फ साधना सामग्री के साथ लीखकर भेज दिया जाएगा ताकि इस दुर्लभ गोपनीय मंत्र की गोपनीयता हमेशा बनी रहे । गोपनीय मंत्र के बारे में यहा पर स्पष्टीकरण देने का एक ही कारण है कि यह दुर्लभ गोपनीय विद्याए कहि लुप्त ना हो जाये,आज के समय मे मंत्रो को गोपनीय रखने के चक्कर मे बहोत सारे मंत्र लुप्त हो चुके है । हर समय गोपनीयता के कारण अगर मंत्र लुप्त होते रहे तो आनेवाले समय मे मंत्रो का ज्ञान समाप्त हो सकता है,शाबर मंत्र अपने आप मे सिद्ध और चैतन्य होते है इसलिए इन मंत्र से हर प्रकार के कार्य संभव है ।



यहा पर पूर्ण विधि समझा रहा हु,इस साधना हेतु देवी शक्ति सवारी पत्थर और कृपा प्राप्ति यंत्र (ताबीज रूप में) आवश्यक है । यह पत्थर माता के शक्तिपीठों में एक ऐसा शक्तिपीठ है जहा उनके कुंड में प्राप्त होता है,यह दिव्य शक्तिपीठ नासिक (महाराष्ट्र) के पास है,माँ सप्तश्रृंगी जी का यह शक्तिपीठ बहोत सारे चमत्कार और रहस्यो से अद्भुत है । इस शक्तिपीठ के पास दादा गुरु मच्छीद्रनाथ जी का तपस्या स्थल है,दादा गुरु मच्छीद्रनाथजी गुरु गोरखनाथजी के गुरु है और सर्वप्रथम उन्होंने अपने गुरु दत्तात्रेय जी से दीक्षा प्राप्त करने के बाद इस शक्तिपीठ पर 108 कुंडों के जल से स्नान करके अपने जीवन मे तपस्या आरंभ की थी और इसी स्थान पर उन्होंने सर्वप्रथम शाबर मंत्रो की रचना की थी । यह देवी शक्ति सवारी पत्थर इस स्थान पर कुंड में कभी कभी प्राप्त हो जाता है और इसे प्राप्त करने के लिये वहा के निवासी लोगो से जान पहचान होना भी जरूरी है । इस बार जब मैं वहा गया था तो मुझे 12 पत्थर प्राप्त हुए,पिछले बार गया था तो सिर्फ एक ही पत्थर मिला था । यह देवी शक्ति सवारी पत्थर बड़ी कठिनाई से प्राप्त होते है और इस पत्थर पर की जाने वाली शाबर मंत्र साधनाये भी फलित होती है । साथ मे सप्तश्रृंगी माता के कुंकुम से बना यंत्र जो कृपा प्राप्ति यंत्र है,वह भी आवश्यक है क्योके बिना माँ भगवती के कृपा प्राप्ति के यह साधना तो असंभव ही है । यह दो साधना सामग्री मुख्य है और बाकी सामग्री आप कही से भी प्राप्त कर सकते है जैसे चार मिट्टी के दीपक, चार गुलाब के पुष्प,50 ग्राम लाल कुमकुम,तिल का तेल,मिठाई ।


साधना विधि-

एक फोटो यहा दे रहा हु और इसी प्रकार से आपको लकड़ी के बाजोट पर यह आकृति कुमकुम से बनानी है । वैसे मैंने यह आकृति टाइल्स पर बनायी है परंतु आप लोग बाजोट पर बनाये,जहा पर चार नीले रंग के गोल है वहा पर मिट्टी के दीपक रखने है और दिए का मुख पत्थर के तरफ हो । जैसा आकृति में दिख रहा है वैसे ही देवी शक्ति सवारी पत्थर और कृपा प्राप्ति यंत्र रखना है,जहा पीले रंग के पुष्प दिख रहे है वहा एक एक गुलाब का पुष्प रोज नया रखना है । साधना नवरात्रि या फिर शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू कर सकते है,मंत्र जाप बिना माला के एक घंटे तक करना है,धूपबत्ती आपको जो भी पसंद हो वही लगाए,रोज मिठाई का भोग भी रखा करे । यह साधना कम से कम 21 दिनों तक करना आवश्यक है,साधना में शरीर का तापमान बढना, सरदर्द होना, शरीर मे भारीपन जैसे अनुभव हो सकते है इसलिए डरने की आवश्यकता नही है । साधनात्मक अनुभव सिर्फ मुझे बता सकते हो अन्य किसीको बताना नही है,साधना में मुख उत्तर दिशा के तरफ होना चाहिए, आसन और वस्त्र लाल रंग के हो और बिना स्नान किये साधना करना वर्जित है,यह साधना रात्रिकालीन है ।






मंत्र-
।। ॐ नमो आदेश गुरु को,बंगाल से आयी सवारी शेरावाली माता की, आगे चले हनुमान पीछे चले भैरव, साथ मे आये अमुक माता मेरे शरीर को सवारों,सवारी के रूप में रुक जाओ भगत का वाचा सिध्द करो ना करो तो.......गुरु का मंत्र सच्चा चले छू वाचापुरी ।।



यहाँ मंत्र अधूरा दिया जा रहा है,मंत्र के मुख्य शब्द गोपनीय रखे है ताकि चोरों को चोरी करने का मौका ना मिले परंतु साधना सामग्री के साथ मंत्र लीखकर भेज दिया जाएगा । अमुक के जगह आप जिस देवी शक्ति का सवारी प्राप्त करना चाहते हो उन्हीका नाम लेना है,इस मंत्र से किसी भी देवी शक्ति की सवारी प्राप्त की जाती है । इस विधान से सच्ची सवारी आपको साधनात्मक फल स्वरूप प्राप्त होगी । सवारी प्राप्त करने के दो ही मार्ग है जैसे भगत खुश होकर भक्त को सवारी दे सकता है या फिर माँ स्वयं खुश होकर भक्त को भगत बना लेती है और दूसरा मार्ग मंत्र साधना से ही सवारी प्राप्त कर सकते है ।



साधना सामग्री की न्योच्छावर राशी 2150/-रुपये है और साधना सामग्री प्राप्त करने हेतू +918421522368 इस नंबर पर व्हाट्सएप करे या फिर सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक फ़ोन कर सकते हो ।


सभी प्रकार के प्रश्नों के जवाब हेतु आपका निशुल्क मार्गदर्शन किया जाएगा और आप सभी सवाल एक साथ ही पूछो यही आपसे विनती है ।


आदेश......

30 May 2019

धूमावती साबर मंत्र साधना



माँ धूमावती जयंती 10 जून 2019 को है,धुएं के रूप में विद्यमान,विधवा देवी धूमावती दस महाविद्याओं में सातवीं महाविद्या हैं। बगलामुखी की अंगविद्या हैं इसीलिए माँ बगलामुखी से साधना की आज्ञा लेनी चाहिए और प्रार्थना करना चाहिए की माँ पूरी कराये । ज्ञान के आभाव में या कौतुहल से किताब , इन्टरनेट से पढ़कर प्रयोग करने से विपत्ति में भी फसते देखे गये हैं, बगलामुखी साधना करने के पश्चात ही धूमावती साधना विशेष करने की योग्यता मिलती है । इसीलिए विशेष परिस्थिति में गुरु से प्रक्रिया जानकार ही शुरू करना चाहिए,गुरु जानते हैं की शिष्य की योग्यता क्या है, धूमावती साधना सबके बस की नही इनके काम करने का ढंग बिलकुल अलग है । बांकी महाविद्या श्री देती हैं और धूमावती श्री विहीनता अपने सूप में लेकर चली जाती है ।

जीवन से दुर्भाग्य , अज्ञान , दुःख , रोग , कलह , शत्रु विदा होते ही साधक ज्ञान, श्री और रहस्यदर्शी हो जाता है और साधना में उच्चतम शिखर पे पहुच जाता है । इन्हे अलक्ष्मी या ज्येष्ठालक्ष्मी यानि लक्ष्मी की बड़ी बहन भी कहा जाता है,ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी को माँ धूमावती जयंती के रूप में मनाया जाता है ।

माँ धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं तथा इनका वाहन कौवा है, ये श्वेत वस्त्र धारण कि हुए, खुले केश रुप में होती हैं। धूमावती महाविद्या ही ऐसी शक्ति हैं जो व्यक्ति की दीनहीन अवस्था का कारण हैं, विधवा के आचरण वाली यह महाशक्ति दुःख दारिद्रय की स्वामिनी होते हुए भी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं ।

इनका ध्यान इस प्रकार बताया है ’- अत्यन्त लम्बी, मलिनवस्त्रा, रूक्षवर्णा, कान्तिहीन, चंचला, दुष्टा, बिखरे बालों वाली, विधवा, रूखी आखों वाली, शत्रु के लिये उद्वेग कारिणी, लम्बे विरल दांतों वाली, बुभुक्षिता, पसीने से आर्द्र स्तन नीचे लटके हो, सूप युक्ता, हाथ फटकारती हुई, बडी नासिका, कुटिला , भयप्रदा,कृष्णवर्णा, कलहप्रिया, तथा बिना पहिये वाले जिसके रथ पर कौआ बैठा हो ऐसी देवी का मैं ध्यान करता हु ।

देवी का मुख्य अस्त्र है सूप जिसमे ये समस्त विश्व को समेट कर महाप्रलय कर देती हैं। दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है। शाप देने नष्ट करने व संहार करने की जितनी भी क्षमताएं है वो देवी के कारण ही है। क्रोधमय ऋषियों की मूल शक्ति धूमावती हैं जैसे दुर्वासा, अंगीरा, भृगु, परशुराम आदि। सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है , चातुर्मास ही देवी का प्रमुख समय होता है जब इनको प्रसन्न किया जाता है। देश के कई भागों में नर्क चतुर्दशी पर घर से कूड़ा करकट साफ कर उसे घर से बाहर कर अलक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है की आप हमारे सारे दारिद्र्य लेकर विदा होइए।

ज्योतिष शास्त्रानुसार मां धूमावती का संबंध केतु ग्रह तथा इनका नक्षत्र ज्येष्ठा है । इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है,ज्योतिष शस्त्र अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु ग्रह श्रेष्ठ जगह पर कार्यरत हो अथवा केतु ग्रह से सहयता मिल रही ही तो व्यक्ति के जीवन में दुख दारिद्रय और दुर्भाग्य से छुटकारा मिलता है। केतु ग्रह की प्रबलता से व्यक्ति सभी प्रकार के कर्जों से मुक्ति पाता है और उसके जीवन में धन, सुख और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है ।
देवी की कृपा से साधक धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्राप्त कर लेता है। ऐसा मानना है की कुण्डलिनी चक्र के मूल में स्थित कूर्म में इनकी शक्ति विद्यमान होती है। देवी साधक के पास बड़े से बड़ी बाधाओं से लड़ने और उनको जीत लेने की क्षमता आ जाती है।
महाविद्या धूमावती के मन्त्रों से बड़े से बड़े दुखों का नाश होता है ।


देवी माँ का महामंत्र है-"धूं धूं धूमावती ठ: ठ:"
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे-

1. राई में सेंधा नमक मिला कर होम करने से बड़े से बड़ा शत्रु भी समूल रूप से नष्ट हो जाता है ।
2. नीम की पत्तियों सहित घी का होम करने से लम्बे समस से चला आ रहा ऋण नष्ट होता है ।
3. जटामांसी और कालीमिर्च से होम करने पर काल्सर्पादी दोष नष्ट होते हैं व क्रूर ग्रह भी नष्ट होते हैं ।
4. रक्तचंदन घिस कर शहद में मिला लेँ व जौ से मिश्रित कर होम करें तो दुर्भाग्यशाली मनुष्य का भाग्य भी चमक उठता है ।
5. गुड से होम करने पर गरीबी सदा के लिए दूर होती है ।
6. केवल काली मिर्च से होम करने पर कारागार में फसा व्यक्ति मुक्त हो जाता है ।
7. मीठी रोटी व घी से होम करने पर बड़े से बड़ा संकट व बड़े से बड़ा रोग अति शीग्र नष्ट होता है ।
वाराही विद्या में इन्हे धूम्रवाराही कहा गया है जो शत्रुओं के मारन और उच्चाटन में प्रयोग की जाती है।



साबर मन्त्र :-

।। ॐ पाताल निरंजन निराकार,आकाश मण्डल धुन्धुकार,आकाश दिशा से कौन आई,कौन रथ कौन असवार,आकाश दिशा से धूमावन्ती आई ,काक ध्वजा का रथ असवार थरै धरत्री थरै आकाश,विधवा रुप लम्बे हाथ,लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव,डमरु बाजे भद्रकाली,क्लेश कलह कालरात्रि ,डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी ,
जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्तेजाया जीया आकाश तेरा होये ,धूमावन्तीपुरी में वास,न होती देवी न देव ,
तहा न होती पूजा न पाती तहा न होती जात न जाती ,तब आये श्रीशम्भुजती गुरु गोरखनाथ ,आप भयी अतीत ॐ धूं धूं धूमावती फट स्वाहा ।।



विशेष पूजा सामग्रियां-

पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है । सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र व पुष्पमालाएं,केसर,अक्षत,घी,सफेद तिल,धतूरा,आक,जौ,सुपारी व नारियल,मेवा व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें । सूप की आकृति पूजा स्थान पर रखें,दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो मिटटी के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें।

देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-
माँ धूमावती की पूजा करते समय ऐसा ध्यान करना चाहिए कि माँ प्रसन्न होकर हमारे सभी रोग , दोष , क्लेश , तंत्र , भूत प्रेत आदि बाधाओं को अपने शूप में समेटकर हमारे घर से विदा हो रही हैं और हमें धन , लक्ष्मी सुख शांति का आशीर्वाद दे रही हैं।

जब दुर्भाग्य,दुःख एवं दरिद्रता लम्बे समय से पीछा कर रही हो तो माँ धूमावती की दीक्षा लेकर उनकी उपासना करनी चाहिए । जब शत्रु मृत्यु तुल्य कष्ट दे रहे हों तो माँ बगलामुखी से साथ धूमावती की उपासना करनी चाहिए ।

जो साधक धूमावती साबर मंत्र जाप करना चाहते है और साधना में विशेष सफलता प्राप्त करने की इच्छा रखते है,उनको "साबर मंत्र सिद्धि यंत्र" प्रदान किया जायेगा जिसकी न्योच्छावर राशि 1150/-रुपये रखी है,यह यंत्र साबरशिंगां को प्राणप्रतिष्ठा करके बनाया जाता है । यंत्र को लाल रंग के धागे में धारण कर सकते है और यंत्र धारण के नियम भी बताए जाएंगे ।

सांबरशिंगां और साबरशिंगां में फर्क है,यहा हम यंत्र हेतु साबरशिंगां के जड़ का इस्तेमाल करने वाले है । यंत्र प्राप्त करने हेतु +918421522368 पर फोन भी कर सकते है,बात करने का समय होगा सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक और इस पर आप व्हाट्सएप के जरिये भी संपर्क कर सकते है ।

आदेश........

8 Apr 2019

तंत्र बाधा निवारण पीताम्बरा साधना



वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है । इस वर्ष 2019 में यह जयन्ती 12 मई , को मनाई जाएगी,इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है । साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए, बगलामुखी जयंती के अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है ।

माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं । माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है । देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए ।

देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं । संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है । इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर  प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है । बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है ।

बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं,देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं । देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है ।

कुब्जिका तंत्र के अनुसार, बगला नाम तीन अक्षरों से निर्मित है व, ग, ला; 'व' अक्षर वारुणी, 'ग' अक्षर सिद्धिदा तथा 'ला' अक्षर पृथ्वी को सम्बोधित करता हैं। देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु से सम्बंधित हैं परिणामस्वरूप देवी सत्व गुण सम्पन्न तथा वैष्णव संप्रदाय से सम्बंधित हैं, इनकी साधन में पवित्रता-शुद्धता का विशेष महत्व हैं परन्तु कुछ अन्य परिस्थितियों में देवी तामसी गुण से सम्बंधित है, आकर्षण, मारण तथा स्तंभन कर्म तामसी प्रवृति से सम्बंधित हैं क्योंकि इस तरह के कार्य दूसरों को हानि पहुंचाने हेतु ही किए जाते हैं । सर्वप्रथम देवी की आराधना ब्रह्मा जी ने की थी, तदनंतर उन्होंने बगला साधना का उपदेश सनकादिक मुनियों को किया, कुमारों से प्रेरित हो देवर्षि नारद ने भी देवी की साधना की। देवी के दूसरे उपासक स्वयं जगत पालन कर्ता भगवान विष्णु हुए तथा तीसरे भगवान परशुराम।

बगलामुखी जयंती के पावन अवसर पर आप सभी लोग 21 माला मंत्र जाप करे ताकि आपके जीवन से तंत्र क्रिया का गलत असर समाप्त हो और आप तांत्रिक बाधा से मुक्त हो जाओ । ऐसे पावन अवसर पर बगलामुखी का तंत्र बाधा दोष निवारण मंत्र जाप करने से आपको अवश्य ही लाभ होगा और आपका जीवन अवश्य ही सुखमय होगा । इस मंत्र से तंत्र बाधा दोष समाप्त होता  है और धन-धान्य की प्राप्ति भी होती है,जीवन मे धन की आवश्यकता सभी को है इसलिए इस बार एक प्रामाणिक विधि विधान आपको दिया जा रहा है ।

साधना विधि-साधना सुबह 6 बजे या फिर रात्रि में 9 बजे के बाद करे,साधना एक दिन का है इसलिए इसे अवश्य संपन्न करे, साधना में गाय के घी का दीपक और चंदन के धूपबत्ती का इस्तेमाल करे,उत्तर दिशा के तरफ मुख करके मंत्र जाप करे,आसन और वस्त्र पिले रंग के हो । मंत्र जाप हेतु पिले हल्दी के माला का प्रयोग आवश्यक है परंतु माला ना हो तो 60-70 मिनिट तक मंत्र जाप करे । माता के चित्र और यंत्र की आवश्यकता नही है,अगर आपके पास हो तो अवश्य उसे सामने रखे,प्रसाद में पीले रंग के मिठाई को रखना चाहिए और प्रसाद वितरण स्वयं के परिवार में ही करे ।

मंत्र-
।। ॐ ह्लीं श्रीं पीताम्बरे तंत्र बाधा नाशय नाशय नमः ।।
Om hleem shreem pitambare tantra baadha naashay naashay namah



आदेश.......











14 Mar 2018

कूलदेवी/कुलदेवता पूजन पद्धती ।



समस्त ब्रह्माण्ड जिससे चालयमान है वह है शिव , और जो स्वयं शिव को चालयमान बनाती है वह है  उनकी शक्ति, आदिशक्ति । बिना आदिशक्ति के शिव भी अचल है। वह शक्ति ही है जो शिव परिपूर्ण करती है । यह आदिशक्ति भिन्न भिन्न रूपों में ब्रह्माण्ड की समस्त सजीव और निर्जीव वस्तुओं में विद्यमान है। यही शक्ति देवताओं में, असुरों में , यक्षों में , मनुष्यों में, वनस्पतियों में, जल में थल में , संसार के प्रत्येक पदार्थ में भिन्न भिन्न मात्रा में उपस्थित है। और देवताओं की शक्ति को हम उन देवो के नामों से जानते है जैसे – महेश्वर की शक्ति माहेश्वरी , विष्णु की शक्ति वैष्णवी , ब्रह्मा की शक्ति ब्रह्माणी , इंद्र की इंद्राणी , कुमार कार्तिकेय की कौमारी , इसी प्रकार हम देवों की शक्तियों को उन्ही के नाम से पूजते हैं।
कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारो और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये,अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुँचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है, ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम सशक्त होने से होता है।

कुलदेवी कभी भी अपने उपासकों का अनिष्ट नहीं करती।
कुलदेवियों की पूजा ना करने पर उत्पन्न बाधाओं का कारण कुलदेवी नहीं अपितु हमारे सुरक्षा चक्र का टूटना है। देवी अथवा देवता तब शक्ति संपन्न होते हैं जब हम समय-समय पर उन्हें हवियाँ प्रदान करते हैं व नियमित रूप से उनकी उपासना करते हैं। जब हम इनकी उपासना बंद कर देते हैं तब कुलदेवी तब कुछ वर्षों तक तो कोई प्रभाव ज्ञात नहीं होता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मकता ऊर्जा “वायव्य” बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का भय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योंकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है। कुलदेवता या देवी सम्बन्धित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है।

यदि अपने कुलदेवता के स्थान पर किसी अन्य देवता का नामजप किया जाए, तो केवल उस देवता द्वारा प्रतिनिधित्व किए जानेवाले तत्त्वों का संवर्धन होगा किन्तु वह आध्यात्मिक उन्नति में प्रभावी रूप से सहायक नहीं होगा । जिस प्रकार माता-पिता से भिन्न व्यक्ति हम पर माता-पिता के समान कृपा नहीं करता उसी प्रकार अन्य देवता हम पर कृपा तो करते हैं किन्तु वह कृपा केवल उन्हीं तत्त्वों की होगी जिनका वह देवता प्रतिनिधि है। अतएव यह अपने कुलदेवता के नामजप की भांति अथवा जन्मगत धर्मानुसार देवता के नामजप की भांति प्रभावी नहीं होता । अतः किसी अन्य देवता अथवा अपने इष्ट देव की उपासना करना गलत नहीं है। परंतु इसके लिए हमें हमारी कुलदेवी की उपेक्षा नहीं करना चाहिये और नियमित रूप से पूर्ण श्रद्धा से कुलदेवी की उपासना अवश्य करते रहना चाहिए और हर समय इनका ध्यान करना चाहिए। यदि आप नहीं जानते कि आपकी कुलदेवी कौन है तो पूजा के लिए यह विधि कर सकते हैं "जिन्हें कुलदेवी की जानकारी नहीं है उनके लिए पूजा विधि"।

ऐसे लोगों के लिए हम एक पूजा-साधना प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसके माध्यम से आप अपनी कुलदेवी की कमी को पूरा कर सकते हैं और एक सुरक्षा चक्र का निर्माण आपके परिवार के आसपास हो जाएगा | घर में क्लेश, बार-बार होने वाली बिमारियों, उन्नति में होने बलि बाधाओं इत्यादि  सभी समस्याओ के लिये कुलदेवी /कुल देवता साधना ही सर्वश्रेष्ठसाधना है। चूंकि अधिकतर कुलदेवता /कुलदेवी शिव कुल से सम्बंधित होते हैं ,अतः इस पूजा साधना में इसी प्रकार की ऊर्जा को दृष्टिगत रखते हुए साधना पद्धती अपनाई गयी है |



सामग्री :-

४ पानी वाले नारियल,लाल वस्त्र ,१० सुपारिया ,८ या १६ शृंगार कि वस्तुये ,पान के १० पत्ते , घी का दीपक,कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर ,मौली ,पांच प्रकार कि मिठाई ,पूरी ,हलवा ,खीर ,भिगोया चना ,बताशा ,कपूर ,जनेऊ ,पंचमेवा ।



साधना विधि :-

सर्वप्रथम एक लकड़ी के बाजोट या चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं |उस पर चार जगह रोली और हल्दी के मिश्रण से अष्टदल कमल बनाएं |अब उत्तर की ओर किनारे के अष्टदल पर सफ़ेद अक्षत बिछाएं उसके बाद दक्षिण की ओर क्रमशः पीला ,सिन्दूरी और लाल रंग से रंग हुआ चावल बिछाएं |चार नारियल में मौली लपेटें |एक नारियल को एक तरफ किनारे सफ़ेद चावल के अष्टदल पर स्थापित करें |अब तीन नारियल में से एक नारियल को पूर्ण सिंदूर से रंग दे दूसरे को हल्दी और तीसरे नारियल को कुंकुम से,फिर ३ नारियल को मौली बांधे |इस तीन नारियल को पहले वाले नारियल के बायीं और क्रमशः अष्टदल पर स्थापित करें |प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने एक पान का पत्ता और अन्य तीन नारियल के सामने तीन तीन पान के पत्ते रखें ,इस प्रकार कुल १० पान के पत्ते रखे जायेंगे |अब सभी पत्तों पर एक एक सिक्का रखें ,फिर सिक्कों पर एक एक सुपारियाँ रखें |प्रथम नारियल के सामने के एक पत्ते पर की सुपारी पर मौली लपेट कर रखें इस प्रकार की सुपारी दिखती रहे ,यह आपके कुल देवता होंगे ऐसी भावना रखें |अन्य तीन नारियल और उनके सामने के ९ पत्तों पर आपकी कुल देवी की स्थापना है | इनके सामने की सुपारियों को पूरी तरह मौली से लपेट दें |अब इनके सामने एक दीपक स्थापित कर दीजिये |

अब गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न कीजिये | अब सभी नारियल और सुपारियों की चावल, कुंकुम, हल्दी ,सिंदूर, जल ,पुष्प, धुप और दीप से पूजा कीजिये | जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं |जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं |बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं ,हल्दी -रोली चढ़ा सकते हैं ,यहाँ जनेऊ चढ़ाएं ,जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए | इस प्रकार से पूजा करनी है | अब पांच प्रकार की मिठाई इनके सामने अर्पित करें | घर में बनी पूरी -हलवा -खीर इन्हें अर्पित करें |चना ,बताशा केवल रंगे नारियल के सामने अर्थात देवी को चढ़ाएं और आरती करें |साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है,श्रृंगार पूजा मे कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये श्रृंगार सामग्री तीन रंगे हुए नारियल के सामने चढा दे और माँ को स्वीकार करने की विनती कीजिये ।

इसके बाद हाथ जोड़कर इनसे अपने परिवार से हुई भूलों आदि के लिए क्षमा मांगें और प्राथना करें की हे प्रभु ,हे देवी ,हे मेरे कुलदेवता या कुल देवी आप जो भी हों हम आपको भूल चुके हैं ,किन्तु हम पुनः आपको आमंत्रित कर रहे हैं और पूजा दे रहें हैं आप इसे स्वीकार करें | हमारे कुल -परिवार की रक्षा करें |हम स्थान ,समय ,पद्धति आदि भूल चुके हैं ,अतः जितना समझ आता है उस अनुसार आपको पूजा प्रदान कर रहे हैं ,इसे स्वीकार कर हमारे कुल पर कृपा करें |

यह पूजा नवरात्र की सप्तमी -अष्टमी और नवमी तीन तिथियों में करें |इन तीन दिनों तक रोज इन्हें पूजा दें ,जबकि स्थापना एक ही दिन होगी | प्रतिदिन आरती करें ,प्रसाद घर में ही वितरित करें ,बाहरी को न दें |सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता /कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता और उन्हें दीपक देखने तक की मनाही होती है ,किन्तु इस पद्धति में जबकि पूजा तीन दिन चलेगी कन्याएं शामिल हो सकती हैं ,अथवा इस हेतु अपने कुलगुरु अथवा किसी विद्वान् से सलाह लेना बेहतर होगा |कन्या अपने ससुराल जाकर वहां की रीती का पालन करे |इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं ,किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें |वैसे यह आवश्यक नहीं है ,क्योकि सभी लोग पढ़े लिखे हों और सही ढंग से मंत्र जप कर सकें यह जरुरी नहीं |

साधना समाप्ति के बाद सपरिवार आरती करे | इसके बाद क्षमा प्राथना करें |तत्पश्चात कुलदेवता /कुलदेवी से प्राथना करें की आप हमारे कुल की रक्षा करें हम अगले वर्ष पुनः आपको पूजा देंगे ,हमारी और परिवार की गलतियों को क्षमा करें हम आपके बच्चे हैं |तीन दिन की साधना /पूजा पूर्ण होने पर प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने के सिक्के सुपारी को जनेऊ समेत किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले |तीन रंगे नारियल के सामने की नौ सुपारियों में से बीच वाली एक सुपारी और सिक्के को अलग डिब्बी में सुरक्षित करें ,जिस पर लिख लें कुलदेवी |अगले साल यही रखे जायेंगे कुलदेवी /कुलदेवता के स्थान पर |अन्य वस्तुओं में से सिक्के और पैसे रुपये किसी सात्विक ब्राह्मण को दान कर दें |प्रसाद घर वालों में बाँट दें तथा अन्य सामग्रियां बहते जल अथवा जलाशय में प्रवाहित कर दें |

                                                                  सादर आभार,
                                                           - श्री संजय शर्मा जी.
                                     


आदेश.......

28 Dec 2017

गुप्तकाली साधना




महाकाली को ही महाकाल पुरुष की शक्ति के रूप में माना जाता है । महाकाल का कोई लक्षण नहीं, वह अज्ञात है, तर्क से परे है । उसी की शक्ति का नाम है महाकाली । सृष्टि के आरंभ में यही महाविद्या चतुर्दिक विकीर्ण थी । महाकाली शक्ति का आरंभ में यही महाविद्या चतुर्दिक विकीर्ण थी । महाकाली शक्ति का आरंभिक अवतरण था । यही कारण है कि आगमशास्त्र में इसे प्रथमा व आद्या आदि नामों से भी संबोधित किया गया है ।

आगमशास्त्र में रात्रि को महाप्रल्य का प्रतीक माना गया है । रात के १२ बजे का समय अत्यंत अंधकारमय होता है । यही कालखंड महाकाली है । रात के १२ बजे से लेकर सूर्योदय होने से पहले तक संपूर्ण कालखंड महाकाली है । रात के १२ बजे से लेकर सूर्योदय होने से पहले तक संपूर्ण कालखंड महाकाली है । सूर्योदय होते ही अंधकार क्रमश: घटता जाता है । अंधकार के उतार-चढाव को देखते हुए इस कालखंड को ऋषि-मुनियों ने कुल ६२ विभागों में विभाजित किया है । इसी प्रकार महाकाली के भी अलग-अलग रूपों के ६२ विभाग हैं । शक्ति के अलग-अलग रूपों की व्याख्या करने के उद्देश्य से ऋषि-मुनियों ने निदान विद्या के आधार पर उनकी मूर्तियां बनाईं ।


समस्त शक्तियों को अचिंत्या कहा गया है । वे अदृश्य और निर्गुण हैं । शक्तियों की मूर्तियों को उनकी काया का स्वरूप मानना चाहिए ।

अचिंत्यस्थाप्रामैयस्य निर्गुणस्य गुणात्मनः ।
उपासकानां सिद्धयर्थ ब्रह्मणों रूपकल्पना ॥

अर्थात:शक्तियों के रूप की कल्पना करते हुए काल्पनिक मूर्तियों का इसलिए निर्माण किया गया, ताकि उनकी उपासना की जा सके तथा उनके रूप के दर्शन किए जा सकें ।


यह साधना महाकाली जी के गोपनीय रूप का साधना है जिसे गुप्तकाली कहा जाता है,गुप्तकाली मंत्र साधना से गोपनीय ज्ञान के साथ साथ गुप्त शक्तियाँ और सिद्धिया साधक प्राप्त कर सकता है । जिसने यह साधना किसी भी ग्रहण काल (101 माला जाप ) में कर ली तो समझ जाएंगे कि इसी साधना के माध्यम से उसने कई सिद्धियों को प्राप्त करने हेतु अपना जीवन तंत्र शास्त्र हेतु समर्पित कर दिया है । इस साधना में मंत्र जाप हेतु मुख दक्षिण दिशा में और काले रंग के वस्त्रों का उपयोग होगा । साधना रात को करना है,किसी भी समय 9 बजे के बाद और साधना किसी भी अमावस्या से प्रारंभ करे । काली हकीक माला और काली विग्रह आप मार्केट से खरीद ले और दोनों का प्राण-प्रतिष्ठा विधि इस ब्लॉग पर 2013 के आर्टिकल्स में मिल जाएगा ।



दाहिने हाथ मे जल लेकर विनियोग मंत्र बोलकर जल को जमीन पर छोड़ दे ।

विनियोग-
।। अस्य श्री गुप्तकाली मंत्रस्य भैरव ऋषिः उष्णिक् छन्दः, गुप्त कालिके देवता, क्रीं बीजम्, हूं शक्तिः, क्रीं कीलकम्, ममाभीष्ट सिध्यर्थे जपे विनियोगः ।।


ऋष्यादिन्यास:-
ॐ भैरव ऋषये नमः (शिरसि) ।
उष्णिक्छन्दसे नमः (मुखे) ।
गुप्तकालिका देवतायै नमः (ह्रदि) ।
क्रीं बीजाय नमः (गुहये) ।
हूं शक्तये नमः (पादयो:) ।
क्रीं कीलकाय नमः (नाभौ) ।
विनियोगाय नमः (सर्वाङ्गे) ।


करन्यास:-
ॐ क्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ क्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ क्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ क्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ क्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ क्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।


हृदयादि न्यास:-
ॐ क्रां ह्रदयास नमः ।
ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा ।
ॐ क्रूं शिखायै वषट् ।
ॐ क्रैं कवचाय हुम् ।
ॐ क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ क्रः अस्त्राय फट् ।


अक्षर न्यासः-
ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋं लृं लृं नमो (हृदि)
ॐ एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं नमो (दक्ष भुजे)
ॐ ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं नमो वाम (भुजे)
ॐ णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं नमो दक्ष (पादे)
ॐ मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं नमो वाम (पादे) (इत विन्यासः)


सर्वांग न्यास :-
ॐ क्रीं नमः (ब्रह्मरन्ध्रे) ।
ॐ क्रीं नमः (भ्रू मध्ये) ।
ॐ क्रीं नमः (ललाटे) ।
ॐ ह्नीं नमः (नाभौ) ।
ॐ ह्नीं नमः (गुह्ये) ।
ॐ ह्नूं नमः (वक्त्रे) ।
ॐ ह्नूं नमः (गुर्वङ्गे) ।


ध्यान:-
ॐ शवारूढां महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम् ।
चतुर्भुजां खङ्गमुण्डवराभय करां शिवाम् ॥
मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम् ।
एवं सञ्चिन्तयेत्कालीं श्मशानालय वासिनीम् ॥
(कालीतंत्रानुसार)


पुष्पों का आसन बनाए और मंत्र बोलकर काली विग्रह को आसन पर स्थापित करे-
ॐ सदाशिव महाप्रेताय गुप्तकाल्यासनाय नमः ।


पीठशक्ति पूजा (काली जी के विग्रह पर कुंकुम से रंगे हुए चावल एक-एक मंत्र बोलकर चढ़ाये )-
ॐ जयायै नमः । ॐ विजयायै नमः । ॐ अजितायै नमः । ॐ अपराजितायै नमः । ॐ नित्यायै नमः । ॐ विलासिन्यै नमः । ॐ दोग्ध्रूयै नमः । ॐ अघोरायै नमः । ॐ मङ्गलायै नमः ।


इसके पश्चात गुप्त काली के यंत्र अथवा काली जी के मूर्ति को तांबे के पात्र में रखकर, उसे घृत द्वारा अभ्यंग-स्नान कराएं । फिर उसके ऊपर दुग्ध-धारा तथा जल-धारा छोडकर स्वच्छ वस्त्र में लपेटे और "ॐ ह्नीं कालिका योग पीठात्मने नमः" मंत्र द्वारा पुनः पुष्पादि असान देकर, पीठ के मध्यभाग में स्थापित करे ।


गुप्त काली अठारह वर्णीय मंत्र-

।। क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं गुप्तकालीके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।।

Kreem kreem hoom hoom hreem hreem guptakalike kreem kreem hoom hoom hreem hreem swaahaa



उक्त मंत्र मनोकामनापूरक है साधक के सभी कष्टो का हरण करने में सहाय्यक है,निर्भयता पूर्वक मंत्र का जाप नित्य 11 माला 21 दिनों तक करे तो संभव है के माँ भगवती गुप्तकाली जी के दर्शन हो सकते है । यह साधना प्रत्येक साधक को करना चाहिए ताकी उसे सभी प्रकार के साधना में सिद्धि प्राप्त हो । इस साधना के उपरांत साधक अन्य साधनाओ में सिद्धी प्राप्त करने में एक सफल साधक बन जाता है ।


बलिदान मंत्र :-
(बलिदान मंत्र साधना समाप्ति के आखरी दिन बोलकर एक अनार का बलि दे)
ऐह्येहि गुप्तकालिके मम बलि गृहण गृहण मम शत्रून् नाशय नाशय खादय खादय स्फुट स्फुट स्फुट छिन्धि सिद्धि देहि हूं फट् स्वाहा ।

कई स्थानों पर बलि के नाम पर पशुओं का बलि दिया जाता है जो बहोत दुखद है,हमेशा तंत्र शास्त्र में अनार का बलि देना सिद्धप्रद माना जाता है ।


जप समर्पण - मन्त्र जप पूरा करके उसे भगवती को समर्पण करते हुए कहें -
गुह्यति गुह्य गोप्त्री त्वं, गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।
सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ॥

इस प्रकार देवी के बाएँ हाथ में पुष्प के रूप में मतलब एक पुष्प चढ़ाकर जप समर्पण करे ।

नोट-जिन्हें न्यास करने में कठिनाई आती हो वह साधक विनियोग-ध्यान मंत्र बोलकर मुख्य मंत्र जाप कर सकते है ।

इस प्रकार से यह गोपनीय गुप्त काली साधना सम्पन्न किया जाता है और इस साधना से समस्त प्रकार की इच्छाओं को भी पूर्ण किया जा सकता है । साधना की सफलता साधक के विश्वास, श्रद्धा और मेहनत पर आधारित होती है,इसलिए मन के मैल को हटाकर बिना किसी किन्तु परंतु के साधना संपन्न करे ।




अपनो से अपनी बात-
हमारे देश में किसानों की आत्महत्या को एक लो-प्रोफाइल केस माना जाता है। ना तो कोई मदद करने वाला आता है ना ही मीडिया किसी कवरेज को प्राथमिकता देता है। बाकि सरकारों के पास अपना दुखड़ा रोने के लाखों बहाने होते है। सहायता के नाम पर घोषणाएं तो बहुत होती है पर इनमें से कितनी पूरी होती है ये तो हम सबको पता है। ऐसे में अग घोषणाओं के इस दौर में कोई वाकई मदद को आगे आता है वो वाकई किसी दूत से कम नहीं होता।
नाना पाटेकर साहब किसानों की आत्महत्या रोकने तथा उनकी समस्याएं दूर करने के लिए कई प्रकार की पहलें कर रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के किसानों को आर्थिक सहायता भी दी है। ऐसे महान व्यक्तित्व को मैं प्रणाम करता हूँ और आज उनका जन्मदिन भी है तो इस अवसर पर उनको जन्मदिन की बहोत बहोत शुभकामनाएं......


बड़े पर्दे पर अपनी ऐक्टिंग से लोगों का दिल जीतने वाले मशहूर थिअटर और फिल्म ऐक्टर नाना पाटेकर अब रियल लाइफ हीरो भी साबित हो गए हैं। अपने साथी और मराठी ऐक्टर मकरंद अनासपुरे के साथ मिलकर नाना ने 'नाम फाउंडेशन' की स्थापना की है।
'नाम फाउंडेशन' की स्थापना का उद्देश्य उस किसान समुदाय की मदद करना है,जिनकी परिस्थितियां काफी दुखद हैं। इसके तहत जो भी चीजें संभव हो सकेंगी, वह किसानों को मुहैया कराई जाएंगी। इसके जरिए कोशिश की जाएगी कि देश में किसानों की आत्महत्या में कमी हो।


हमने कई बार फिल्म स्टार्स की ऐसी कहानियां सुनी होंगी जो जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं लेकिन नाना ने अपनी कमाई का 90 फीसदी पैसा इस फाउंडेशन को डोनेट किया है और इस तरह नाना ऐसे पहले ऐक्टर हैं।
नाना को हमेशा लगता है कि राज्य में किसानों की स्थिति बेहतर होनी चाहिए और इसीलिए उन्होंने इस फाउंडेशन की शुरुआत की है। बता दें, 'नाम फाउंडेशन' एक गैर सरकारी फाउंडेशन है जो महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे सूखा प्रभावित इलाकों में किसानों की बेहतरी के लिए काम करता है ।


महाराष्ट्र में मराठवाड़ा और विदर्भ के किसानों को खुदकुशी करता देख नाना ने उन्होंने अलग अलग इलाकों में जाकर किसानों की करीब 300 विधवाओं को 15,000-15000 रुपये की आर्थिक मदद दी। नाना पाटेकर से प्रभावित होकर बॉलीवुड के सुपरस्टार अक्षय कुमार भी आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवारों की मदद के लिए आगे आए। अक्षय ने 180 परिवारों को 50-50 हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी। अभी हाल ही में क्रिकेटर अजिक्य रहाणे ने किसानों के लिए आगे बढ़कर कदम बढ़ाते हुए सीएम देवेन्द्र फणनवीस को किसानों की मदद के लिए 5 लाख रूपये डोनेट किये।
हो सके तो आप सभी सज्जन नाना पाटेकर साहब के "नाम फाउंडेशन" में अपने योग्यता नुसार कुछ धनराशि अवश्य ही दान करे और सही मायनों में पूण्य के भागीदार बने । मैने भी किसानों के मदत हेतु एक अच्छा प्रयास किया था परंतु मैं उसमें असफल राहा, इस वर्ष मेरा एक ही संकल्प है के ज्यादा से ज्यादा सज्जन लोग "नाम फाउंडेशन" जुड़कर अपना योगदान दे ।

मातारानी आप सभी पर कृपा करें,यही नववर्ष पर कामना करता हूँ ......



आदेश......


11 Sept 2017

शाबर दुर्गा मंत्र साधना ।



बहोत सारे ज्ञानी-महाज्ञानी कहेते है सकारात्मक सोचो,मुझे एक बात कहनी है के सकारात्मक सोच तो ठीक है परंतु क्या सिर्फ सकारात्मक सोच रखने से ही जीवन बदल जायेगा ? मैं इतना ही कहूंगा के स्वयं पर विश्वास रखो और फिर सकारात्मक सोचो तो जो कार्य अब तक आप जीवन मे नही कर सके हो वह 100% कर सकते हो । अब नवरात्रि आरही है और सभी मातारानी के भक्त उनके सेवा में समर्पित हो रहे है,यहां बुरा मत मानना क्योंकी एक सवाल पूछना है आप लोगो से "क्या आप मातारानी को जानते हो या फिर मातारानी आपको जानती है?",एक बात तो मैं मानता हूँ के "जिस माँ ने आपको जन्म दिया है वो आपको अच्छेसे जानती है फिर चाहे आप शायद उन्हें अच्छेसे जानते हो या नही ये मुझे नही पता" ।
नवरात्रि में तो मातारानी के प्रति जो भक्ति दिखाते हो कृपया वैसे ही कुछ भक्ति जन्म देने वाली माँ के प्रति भी रखो ताकि जीवन मे मातारानी का आशीर्वाद आपको मिल सके ।

माँ के बिना तो स्वयं तीनो लोको के स्वामी भी किसी काम के नही और वह स्वयं कहेते है अगर माँ आदिमाया की शक्ति की कृपा हमे प्राप्त ना होती तो हम भी सामान्य होते । इसलिए आप सभी महान अद्वितीय साधक मित्रो से मेरा निवेदन है "जिस माँ ने जन्म दिया है उनकी ही ज्यादा सेवा करो",स्वयं माँ जगदंबा बिना आवाहन किये आपके सामने प्रत्यक्ष हो जाएगी । ये मेरा वहम नही है मित्रो,यह मुझे पूर्ण विश्वास है और कृपया जिन व्यक्तियों ने अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया है उन सभीके मैं पैर पकडर उनसे विनती करता हूँ के "उन्हें अपने घर पर वापिस लाओ और उनकी सेवा करो" । माता-पिता जब वृध्द हो जाते है तो वह बोझ नही बनते है,वह तो हमे स्ययं की सेवा के माध्यम से ऋण उतारने का मौका देते है और उनका ऋण इस जन्म में हम नही उतार पाते है ।

माँ शब्द ही अपने आप मे सभी पापो से पीड़ाओं से मुक्ति दिला सकता है,इस संसार के सभी ऋषि-मुनियों से मैं इस बात पर द्वंद भी करना चाहूंगा के "माँ" इस पवित्र शब्द से बड़ा ना कोई मंत्र है और ना कोई सिद्धि है । सिर्फ माँ कहेने से नही होगा,हमे उस माता को भी समझना पड़ेगा जिसे हम माँ कहेते है,यार नवरात्रिया तो आते-जाते रहेगी परंतु जिन्होंने जन्म दिया है वो तो बस इस जन्म में एक ही बार अपने स्वयं के आखरी साँस तक साथ रहेगी । माँ की सेवा करो तो मातारानी बिना किसी भी प्रकार के सेवा से प्रसन्न हो जाएगी । आप नवरात्रि में वैसे भी मातारानी से क्या मांगेंगे धन-धान्य-ऐश्वर्य-पत्नी-प्रियसी-रोगमुक्ति या ओर भी कुछ जो सिर्फ आपका स्वार्थ ही होगा परंतू इस बार कुछ विशेष मांगो "है माँ भगवती मेरे प्रिय माता-पिता को स्वस्थ जीवन,चिन्तामुक्ति,सुख और मेरे हाथो उनकी सेवा प्रदान करो,मैं सदैव आपका ऋणी बनकर रहुगा" ।

यह मातारानी से की जाने वाली प्रार्थना ही आपके जीवन को बदल सकती है,येसा ही मुझे पूर्ण विश्वास है । इसी प्रार्थना के साथ आज आपको एक विशेष मंत्र भी दे रहा हूँ जो अत्यंत गोपनीय है परंतु आज इस मंत्र के गोपनीय रखना मुझे उचित नही लग रहा है । मेरे तो कई सारे शत्रु है जो सिर्फ मेरे पिट-पीछे बात करते है,उनमे शायद इतनी हिम्मत नही है के वह मेरे सामने आकर मुझसे बात करे । आजकल मेरे प्रिय शत्रुओ ने कई सारे ग्रुप बनाए हुये है जहां मेरी स्तुति चलती रहती है और स्तुति में बुराई ही होती है ओर तो नया कुछ होता नही है ।

मैने अपने प्राण-प्रिय मूर्ख शत्रुओ का ज़िक्र आज इसलिये किया क्युके उन्हें लगता है के मैं स्वयं मंत्र बनाता हूँ और अपने ब्लॉग पर पोस्ट करता हूँ । मेरे आठ गुरु है,जिसमे सात गुरु नाथ साम्प्रदायिक है और उन्हें शाबर मंत्रों के उच्चकोटि के ज्ञान से सिद्धिया प्राप्त है । उनके पास जो भी कुछ मंत्रविद्या है वह तो गोपनीय ही है,उनसे प्राप्त मंत्र दुनिया के किसी भी किताब में देखने मिलते नही है । उन्होने ने कठिन तपस्या के माध्यम से मंत्रो को शक्तिशाली बनाए रखा है और मेरे जैसे कई शिष्यों को थोड़े बहोत संख्या में जाप करने के माध्यम से सफलता दिलवायी है । अब मेरे शत्रुओं को यही समस्या है के जो शाबर मंत्र मैं देता हूँ वह किताबो में क्यों नही मिलते है?,मेरे विद्वान शत्रुओ तुम लोग कब तक किताबी कीड़े बनकर इस धरा पर रेंगते रहोगे,मैं तो चाहता हूँ के इस नवरात्रि के पावन अवसर पर संकल्प लो के "हमे मंत्रविद्या का उच्चकोटि का ज्ञान मिले और हम जीवन मे कुछ प्रैक्टिकल भी कर सके",यार तुम लोग कब तक किताबें पढ़ते रहोगे? । कुछ तो प्रैक्टिकल करना भी सिख लो और मातारानी से प्रार्थना करो के तुम्हारे अंदर का अज्ञान समाप्त हो जाये ।






मंत्र-


ॐ नमो आदेश गुरु को,दुर्गा माई सत्य की सवाई,आगे चले हनुमंत बीर पीछे चले भैरुनाथ,अष्टभुजी अम्बारानी शत्रु आवे त्रिशूल चलाये,रोग आये सुदर्शन चलाये,बाधा आये तलवार चलाये,जादू आये बाण चलाये,बालक पर कृपा बनाये,इतना मंत्र चौरासी लाख सिद्धो को गोरख ने सुनाया,मेरी भक्ति गुरु की शक्ति,फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा ।।






(नवरात्रि से पूर्व इस मंत्र का साधना विधान पोस्ट कर दिया जायेगा,तब तक आप यह अद्वितीय शाबर मंत्र याद करके रखे क्युके प्रत्येक शाबर मंत्र बिना कंठस्थ किये सफलता नही दे सकता है)


आदेश..........

27 Aug 2017

आसुरी दुर्गा मंत्र साधना (नवरात्रि विशेष)



पुरातन काल में दुर्गम नामक दैत्य हुआ। उसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर सभी वेदों को अपने वश में कर लिया जिससे देवताओं का बल क्षीण हो गया। तब दुर्गम ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। तब देवताओं को देवी भगवती का स्मरण हुआ। देवताओं ने शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ तथा चण्ड-मुण्ड का वध करने वाली शक्ति का आह्वान किया।
देवताओं के आह्वान पर देवी प्रकट हुईं। उन्होंने देवताओं से उन्हें बुलाने का कारण पूछा। सभी देवताओं ने एक स्वर में बताया कि दुर्गम नामक दैत्य ने सभी वेद तथा स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया है तथा हमें अनेक यातनाएं दी हैं। आप उसका वध कर दीजिए। देवताओं की बात सुनकर देवी ने उन्हें दुर्गम का वध करने का आश्वासन दिया।

यह बात जब दैत्यों का राजा दुर्गम को पता चली तो उसने देवताओं पर पुन: आक्रमण कर दिया। तब माता भगवती ने देवताओं की रक्षा की तथा दुर्गम की सेना का संहार कर दिया। सेना का संहार होते देख दुर्गम स्वयं युद्ध करने आया। तब माता भगवती ने काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला आदि कई सहायक शक्तियों का आह्वान कर उन्हें भी युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। भयंकर युद्ध में भगवती ने दुर्गम का वध कर दिया। दुर्गम नामक दैत्य का वध करने के कारण भी भगवती का नाम दुर्गा के नाम से भी विख्यात हुआ।

असुर देवताओं पर अपने तपस्या के माध्यम से विजयी रहे है,जैसे तारकासुर को हराना इतना आसान नही था । स्वयं त्रिदेव और त्रिदेवी भी उसको हराने में सक्षम नही थे क्युके उसने ऐसा वरदान प्राप्त किया था जो किसी भी असुर को प्राप्त नही हो सका । हम सब के अंदर एक असुर विद्यमान है जिसका हम जिक्र नही कर सकते है । किसीको मोह है तो कोई माया के पीछे पागल है,कुछ तो देवताओं को भी नही मानते है और कुछ लोग स्वयं को भगवान मान बैठे हुए है,बहोत सारे लोगो मे अहंकार भी है और साथ मे उन्होंने यह मान लिया है के उनके जैसा श्रेष्ठ इस दुनिया मे पैदा नही हुआ ।

अब बस भी करो,बहोत हो गया । अब आनेवाली नवरात्रि में हमे माँ दुर्गा के स्वरूप "आसुरी दुर्गा" जी के साधना को संपन्न करना ही है,अब इस बार इस जीवन को श्रेष्ठ जीवन बनाना ही है । इस बार भागो मत, साधना क्षेत्र में आप सभी का स्वागत है । आप इस साधना को स्वयं करो और अपने जीवन को खुशहाल बनाओ,आपका सभी कामना इसी साधना से पूर्ण होगा "यह मुझे विश्वास है" ।

मेरे प्यारे साधक मित्रो,मैं कोई आपका गुरु नही हु और नाही कोई आपका सगा संबंधि हु परंतु आप के समस्याओ को सुनकर मुझे भी दुख होता है और अब आपको यह साधना सम्पन्न करके सभी समस्याओं से मुक्त होना ही है । इस नवरात्रि पर मैं आप सभी को वचन देता हूं के आपके समस्या निवारण हेतु यह साधना मैं भी करूँगा सिर्फ फर्क इतना ही है के आपको नित्य इस साधना में स्वयं के कल्याण हेतु 11 माला जाप करना है और मैं 21 माला रात्री में मंत्र जाप करूँगा । साथ मे ये भी संकल्प लेने वाला हु "हे माँ जगतजननी जो भी व्यक्ति यह साधना कर रहा हो,उसका अवश्य ही आपकी कृपा से मनोकामना पूर्ती हो" ।

जो लोग मुझे गलत समझते हो वो समझते रहे क्युके वही उनके लिए एक बचा हुआ कार्य है और शायद उनका लगता होगा के उन्हें मेरा विरोध करने से कुछ प्राप्त हो जाये । आसुरी दुर्गा तो प्रत्यांगिरा पर भी भारी है,मैने महसुस किया है "माँ आसुरी दुर्गा तो इस संसार के समस्त कामनाओ को पूर्ण कर सकती है,सिर्फ कामना अच्छा होना जरूरी है" । इस नवरात्रि के पावन अवसर पर असुरी शक्तियो का आपके जीवन मे नाश हो क्योंकि यह असुरी शक्तियां सभी के जीवन मे बाधाये बनकर व्यक्ति के जीवन का नाश करती है । दुर्भाग्य को समाप्त करने का यह अवसर आप ना गवाये,सिर्फ मंत्र साधना करे तो अवश्य ही आपको पाखंडी बाबाओं के जाल में फसने कि आवश्यकता नही पड़ेगी ।

अब अर्थववेदोक्त आसुरी विद्या के प्रयोगों की श्रेष्ठतम विधि लिख रहा हूँ,जिसे आप मंत्रमहोदधी में पढ़ सकते है ।






साधना विधान:-

सर्वप्रथम माँ भगवती दुर्गा जी का चित्र या विग्रह लाल रंग के कपड़े को किसी भी प्रकार के बाजोट पर बिछाकर स्थापित करे,साधना काल मे घी का दीपक जलाएं और सुगंधित धूपबत्ती का प्रयोग करे । मातारानी को हो सके तो गुडहल के पुष्प या जो भी आप चढ़ाने में सक्षम हो वह पुष्प चढ़ाये । साधक को लाल रंग की धोती और लाल रंग के आसन का ही प्रयोग करना है,साधिकाएं लाल रंग का सलवार/साडी पहन सकती है । मंत्र जाप के समय साधक का मुख उत्तर दिशा में होना जरूरी है और इस साधना में मंत्र जाप हेतु लाल मूंगा/लाल हकीक/लाल चंदन माला का प्रयोग करना है । साधना समाप्ति के बाद माला को याद से जल में प्रवाहित कर दिया जाना चाहिए । साधना रात्रि में सूर्यास्त के एक घंटे के बाद शुरू करे और हो सके तो नवरात्रि के 9 दिनों तक 11 माला मंत्र जाप करे ।


अब एक चम्मच जल दाहिने हाथ मे लेकर मंत्र बोलिये और जल को जमीन पर छोड़ दे-

विनियोग विधि -

।। ॐ अस्य आसुरीमन्त्रस्य अंगिरा ऋषिर्विराट् छन्दः आसुरीदुर्गादेवता ॐ बीजं स्वाहा शक्तिरात्मनोऽभीष्टसिद्ध्यर्थ जपे विनियोगः ।।



अब बायें हाथ मे जल लेकर अपने दाहिने हाथ की पाँचो उंगलियों को जल में डुबोकर बताए गए शरीर के स्थान पर स्पर्श करें-


ऋष्यादिन्यास -

ॐ अङ्गिरसे ऋषये नमः, शिरसि,
ॐ विराट् छन्दसे नमः मुखे,
ॐ आसुरीदुर्गादेवतायै नमः हृदि,
ॐ ॐ बीजाय नमः गुह्ये
ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः ।।



अब दाहिने हाथ से मंत्रो में कहे गए संबंधित शरीर के स्थान पर स्पर्श करें -

षड्ङन्यास -

ॐ कटुके कटुकपत्रे हुं फट् स्वाहा हृदाय नमः,
सुभगे आसुरि हुं फट् स्वाहा शिरसे स्वाहा,
रक्तेरक्तवाससे हुं फट् स्वाहा शिखायै वषट्,
अथर्वणस्य दुहिते हुं फट् स्वाहा कवचाय हुम्,
अघोरे अघोरकर्मकारिके हुं फट् स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट्,
अमुकस्यं गति यावन्मेवशमायाति हुँ फट् स्वाहा, अस्त्राय फट् ॥



अब दोनो हाथ जोडकर अथर्वापुत्री भगवती आसुरी दुर्गा का ध्यान करे-

।। " जिनके शरीर की आभा शरत्कालीन चन्द्रमा के समान शुभ है, अपने कमल सदृश हाथों में जिन्होंने क्रमशः वर, अभय, शूल एवं अंकुश धारण किया है ।
ऐसी कमलासन पर विराजमान, आभूषणों एवं वस्त्रों से अलंकृत, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करने वाली अथर्वा की पुत्री भगवती आसुरी दुर्गा मुझे प्रसन्न रखें" ।।




आसुरी दुर्गा मंत्र:-

।। ॐ कटुके कटुकपत्रे सुभगे आसुरिरक्ते रक्तवाससे अथर्वणस्य दुहिते अघौरे अघोरकर्मकारिके अमुकस्य गतिं दह दह उपविष्टस्य गुदं दह दह सुप्तस्य मनो दह दह प्रबुद्धस्य हृदयं दह दह हन हन पच पच तावद्दह तावत्पच यावन् मे वशमायाति हुं फट् स्वाहा  ।।




जिन साधक मित्रो को संस्कृत पढने में कठिनाई हो वह साधक विनियोग करे फिर ध्यान करे और मंत्र जाप शुरू करे,न्यास जिनसे करना संभव हो वही करे । मंत्रमहोदधी में जिस प्रकार से आसुरी दुर्गा मंत्र के काम्य प्रयोग दिए हुए है वह यहां प्रस्तुत किये जा रहे है-


इस मन्त्र का दश हजार जप करना चाहिए । तदनन्तर घी मिश्रित राई से दशांश होम करने पर यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है । (जयादि शक्ति युक्त पीठ पर दुर्गा की एवं दिशाओं में सायुध शशक्तिक इन्द्रादि की पूजा करनी चाहिए) ॥१३३॥

अब काम्य प्रयोग का विधान कहते हैं - राई के पञ्चाङ्गो (जड शाखा पत्र पुष्प एवं फलों) को लेकर साधक मूलमन्त्र से उसे १०० बार अभिमन्त्रित करे, तदनन्तर उससे स्वयं को धूपित करे तो जो व्यक्ति उसे सूँघता है वही वश में हो जाता है । मधु युक्त राई की उक्त मन्त्र से एक हजार आहुति देकर साधक जगत् को अपने वश में कर सकता है ॥१३४-१३५॥

अब वशीकरण आदि अन्य प्रयोग कहते हैं -
स्त्री या पुरुष जिसे वश में करना हो उसकी राई की प्रतिमा बना कर पुरुष के दाहिने पैर के मस्तक तक, स्त्री के बायें पैर से मष्टक तक, तलवार से १०८ टुकडे कर, प्रतिदिन विधिवत् राई की लकडी से प्रज्वलित अग्नि में निरन्तर एक सप्ताह पर्यन्त इस मन्त्र से हवन करे, तो शत्रु भी जीवन भर स्वयं साधक का दास बन जाता है । स्त्री को वश में करने के लिए साध्य में (देवदत्तस्य उपविष्टस्य के स्थान पर देवदत्तायाः उपविष्टायाः इसी प्रकार देवदत्तायाः सुदामा आदि) शब्दों को ऊह कर उच्चारण करना चाहिए ॥१३६-१३८॥

सरसों का तेल तथा निम्ब पत्र मिला कर राई से शत्रु का नाम लगा कर मूलमन्त्र से होम करने से शत्रु को बुखार आ जाता है ॥१३८-१३९॥

इसी प्रकार नमक मिला कर राई का होम करने से शत्रु का शरीर फटने लगता है । आक के दूध में राई को मिश्रित कर होम करने से शत्रु अन्धा हो जाता है ॥१३९-१४०॥

पलाश की लकडी से प्रज्वलित अग्नि में एक सप्ताह तक घी मिश्रित राई का १०८ बार होम करने से साधक ब्राह्मण को, गुडमिश्रित राई का होम करने से क्षत्रिय को, दधिमिश्रित राई के होम से वैश्य को तथा नमक मिली राई के होम से शूद्र को वश में कर लेता है । मधु सहित राई की समिधाओं का होम करने से व्यक्ति को जमीन में गडा हुआ खजाना प्राप्त होता है ॥१४०-१४२॥

जलपूर्ण कलश में राई के पत्ते डाल कर उस पर आसुरी देवी का आवाहन एवं पूजन कर साधक मूलमन्त्र से उसे १०० बार अभिमन्त्रित करे । फिर उस जल से साध्य व्यक्ति का अभिषेक करे तो साध्य की दरिद्रता, आपत्ति, रोग एवं उपद्रव उसे छोडकर दूर भाग जाते है ॥१४३-१४४॥

राई का फूल, प्रियंगु, नागकेशर, मैनसिल एवं तगार इन सबको पीसकर मूलमन्त्र से १०८ बार अभिमन्त्रित करे । फिर उस चन्दन को साध्य व्यक्ति के मस्तक पर लगा दे तो साधक उसे अपने वश में कर लेता है ॥१४५-१४६॥

नीम की लकडी ल्से प्रज्वलित अग्नि में एक सप्ताह तक दक्षिणाभिमुख सरसोम मिश्रित राई की प्रतिदिन १०० आहुतियाँ देकर साधक अपने शत्रुओं को यमलोक का अथिथि बना देता है ॥१४६-१४७॥

यदि इस आसुरी विद्या की विधिवत् उपासना कर ली जाय तो क्रुद्ध राजा समस्त शत्रु किम बहुना क्रुद्ध काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड सकता है ॥१४८॥




133 से 148 तक जो कुछ शब्द है उसका वर्णन हमारे प्राचीन ऋषियों ने किया हुआ है और उनको इस अद्वितीय ज्ञान को जानकारों ने मंत्रमहोदधी नामक किताब में आबद्ध किया हुआ है । विश्वास और धैर्य से साधना संपन्न कर तो निसंदेह आपको लाभ प्राप्त हो सकता है ।



आदेश.........

12 Apr 2017

महालक्ष्मी साधना


वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता है। भारतीय ॠषियों ने साढ़े दिनों के मुहूर्तों को सिद्ध मुहूर्त बताया है, इन मुहूर्तों में कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है। इन साढ़े तीन मुहूर्तों में नवीन वस्त्र, धन-धान्य, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, स्थाई वस्तु का क्रय शुभ माना गया है।

ये पर्व है –
1. चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस –चैत्र शुक्ल प्रतिपदा।
2. आश्विन नवरात्रि शुक्ल पक्ष दशमीं –विजयादशमी।
3. कार्तिक अमावस्या –दीपावली का प्रथम काल (आधा दिन)
4. वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया – अक्षय तृतीया।


इन चार पर्वों में भी अक्षय तृतीया शुभ कार्य अर्थात् विवाह, अस्त्र-शस्त्र, वाहन, धन, भवन-भूमि, स्वर्ण-आभूषण, युद्ध क्रिया, तीर्थ यात्रा, दान-धर्म-पुण्य, पितरेश्वर तर्पण सभी दृष्टियों से सर्वोत्तम है।

अक्षय तृतीया के दिन किये जाने वाले शुभ कार्य का फल अक्षय होता है। इस दिन दिया जाने वाला दान अक्षुण्ण रहता है। ज्योतिष की दृष्टि से भी अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है। अक्षय तृतीया के दिन सूर्य और चन्द्रमा अपने परमोच्च अंश पर रहते हैं।

सूर्य दस अंश पर उच्च का होता है और चन्द्रमा 33 अंश पर परमोच्च होता है। इस दिन ग्रह-नक्षत्र, मण्डल में यह स्थिति बनती है। इस कारण इस दिन किये गये मंत्र जप, साधना, दान से सूर्य और चन्द्रमा दोनों जातक के लिये बलवान होते हैं और सूर्य चन्द्रमा का आशीर्वाद मनुष्य को प्राप्त होता है। वेदों के अनुसार सूर्य को इस सकल ब्रह्माण्ड की आत्मा माना गया है और चन्द्रमा मानव मन को सर्वाधिक प्रभावित करता है। अतः इस दिन मन और आत्मा के कारक सूर्य और चन्द्रमा दोनों पूर्ण बली होते हैं। दोनों उच्च के होते हैं, इस कारण अक्षय तृतीया का दिन पूर्ण सफलता, समृद्धि एवं आंतरिक सुख अनुभूति का वाहक बन जाता है।

अक्षय तृतीया के दिन भगवान कृष्ण और सुदामा का पुनः मिलाप हुआ था। भगवान कृष्ण चन्द्र वंशीय है और इस दिन चन्द्रमा उच्च का होता है। चन्द्रमा मन का कारक है और सुदामा साक्षात् निस्वार्थ भक्ति के प्रतीक हैं। इस अर्थ में निस्वार्थ भक्ति और मन के प्रभु मिलन का यह पर्व है। भक्ति और साधना से ही ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अक्षय तृतीया को युगादि तिथि कहा जाता है। युगादि का तात्पर्य है एक युग का प्रारम्भ और अक्षय तृतीया से त्रेता युग प्रारम्भ हुआ था। त्रेता युग में ही भगवान राम का जन्म हुआ था जो सूर्यवंशी थे। सूर्य उच्च का और परम तेजस्वी होने पर इस योग से सूर्य वंश में तेजस्वी भगवान राम का जन्म हुआ।
अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम का जन्म हुआ था, भगवान परशुराम के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रिय रहित किया था। शास्त्रों में सही वर्णन है, क्षत्रिय से तात्पर्य किसी जाति से नहीं है। प्रत्येक मनुष्य में तीन गुण सत्व, रजस और तमस प्रधान होते है। भगवान परशुराम ने सत्व गुण अर्थात् ॠषि, वेद, साधना, तपस्या, यज्ञ, ज्ञान के पुनर्स्थापन के लिये रजस और तमस तत्वों का अंत किया था।
अक्षय तृतीया के दिन ही भारतवर्ष में गंगा नदी का अवतरण ब्रह्माण्ड से हुआ था। गंगा नदी को पवित्रतम् माना जाता है और भारत की प्राण धारा कहा जाता है। गंगा की सहायक नदियां यमुना, सरस्वती, कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, ब्रह्मपुत्र हैं। अतः पतितपावनी गंगा के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिये अक्षय तृतीया को नदी, तीर्थ आदि पर स्नान सम्पन्न किया जाता है।

पाण्डवों के वनवास के दौरान पांचों पाण्डव वन-वन भटक रहे थे और उनके पास अन्न, धन-धान्य समाप्त हो गया। इस पर युधिष्ठर ने भगवान कृष्ण से इसका उपाय पूछा, भगवान कृष्ण ने कहा कि तुम सब पाण्डव धौम्य ॠषि के निर्देश में सूर्य साधना सम्पन्न करो। धौम्य ॠषि के निर्देशोनुसार पाण्डवों ने सूर्य साधना सम्पन्न की और सूर्य देव के द्वारा उन्हें अक्षय तृतीया के दिन अक्षय पात्र प्रदान किया गया । कहा जाता है कि उस अक्षय पात्र का भण्डार कभी खाली नहीं होता था और उस अक्षय पात्र के माध्यम से पाण्डवों को धन-धान्य की प्राप्ति हुई। उस धन-धान्य से वे पुनः अस्त्र-शस्त्र क्रय करने में समर्थ हो गये। इसी कारण अक्षय तृतीया के दिन अस्त्र-शस्त्र, वाहन क्रय किया जाता है। द्रौपदी के चीर हरण की घटना अक्षय तृतीया के दिन ही घटित हुई थी, इस दिन भगवान कृष्ण ने द्रौपदी के चीर को अक्षय बना दिया था।

भगवान वेद व्यास ने जब महाभारत कथा लिखने का विचार किया तो सारी कथा का विचार कर उनका धैर्य कम हो गया तब भगवान का आदेश आया कि तुम बोलते रहो और गणेश लिखते रहेंगे जिससे पूरी रचना में व्यवधान नहीं होगा। यह शुभ कार्य वेद-व्यास जी ने इसी दिन प्रारम्भ किया था और महाभारत द्वापर युग का ऐसा विवेचनात्मक ग्रंथ है, जिसमें उस काल की प्रत्येक घटना स्पष्ट है। जिससे कलियुग में मनुष्य यह जान सकें कि जीवन में उतार-चढ़ाव, लाभ-हानि, मित्रता-द्वेष, यश-अपयश क्या होता है? तथा जो व्यक्ति श्रीकृष्ण अर्थात् भगवान का ध्यान कर उनके सम्मुख नम्र रहता है, वही इस संसार चक्र में विजयी होता है।

अक्षय तृतीया के दिन ही श्रीबलराम का जन्म हुआ था जो कि भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई थे और उनका शस्त्र ‘हल’ था। ॠषि गर्ग उनका नाम ‘राम’ रखना चाहते थे लोगों ने कहा कि भगवान राम तो त्रेता युग में हुए हैं तब ॠषि ने कहा कि इस बालक में अतुलित बल होगा इस कारण संसार में यह बलराम के नाम से जाना जायेगा। बलराम का दूसरा नाम हलअस्त्र होने के कारण ‘हलायुध’ तथा अद्भुत संगठन शक्ति के कारण ‘संकर्षण’ होगा।

बलराम को शेषनाग का अवतार भी माना गया है। इसके पीछे कथा यह है कि लक्ष्मण ने त्रेता युग में भगवान राम की बहुत सेवा की और भगवान राम ने यह वरदान दिया कि इस जन्म में तुमने मेरी बहुत सेवा की है, अगले जन्म में तुम मेरे बड़े भाई होओगे और मैं तुम्हारा छोटा भाई बनकर तुम्हारी सेवा करूंगा।

अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान शिव ने देवी लक्ष्मी को जगत् की सम्पत्ति का संरक्षक नियुक्त किया था इसीलिये भगवती लक्ष्मी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिये इस दिन स्वर्ण आभूषण, भूमि, भवन इत्यादि क्रय करने का विशेष महत्व है।
अन्नपूर्णा अन्न की देवी है और यह देवी पार्वती का अवतार हैं। इनका निवास प्रत्येक मनुष्य और देवताओं के घर में है। एक पौराणिक प्रसंग में एक भिक्षुक के वेश में भगवान शिव ने देवताओं से प्रश्न किया कि इस जगत में भिक्षुकों का पेट कौन भरेगा? तो देवताओं ने कहा – ‘भगवती पार्वती का स्वरूप अन्नपूर्णा’ जिसके घर में स्थापित रहेगी वहां किसी भी प्रकार की क्षुधा (भूख) नहीं रहेगी और खान-पान का भण्डार सदैव भरा रहेगा। उसके घर से कोई खाली पेट नहीं लौटेगा।
इस दिन भगवान शिव ने देवी लक्ष्मी को धन के रूप में स्थापित किया। अन्न और धन दोनों लक्ष्मी का स्वरूप हैं जिस घर में अन्न की पूजा अर्थात् देवी पार्वती के स्वरूप अन्नपूर्णा की पूजा और देवी लक्ष्मी के स्वरूप धन लक्ष्मी का स्थापन होता है वह गृहस्थ सद्गृहस्थ कहा जाता है और उसके निवास में सब ओर से परिपूर्णता रहती है। इसीलिये अक्षय तृतीया के दिन अन्नपूर्णा लक्ष्मी का स्थापन विशेष रूप से किया जाता है।



इस जगत में 12 प्रकार के दान श्रेष्ठतम् माने गये हैं,
ये हैं – गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, चांदी, नमक, शहद और कन्या है।
अक्षय तृतीया इन सारी वस्तुओं को दान करने का श्रेष्ठतम पर्व है। इन वस्तुओं का दान करने से मनुष्य को विशेष फल प्राप्त होता है। इस संसार में परिपूर्णता और शांति सौभाग्य का सद्व्यवहार दान से ही प्राप्त होता है। दान से समभाव की उत्पत्ति होती है।विवाह संस्कार में कन्या दान किया जाता है। पिता अपनी पुत्री का कन्या दान संस्कार कर दूसरे घर में लक्ष्मी के रूप में भेजता है। इस कारण अक्षय तृतीया कन्या दान अर्थात् विवाह का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है।

सार रूप में अक्षय तृतीया श्रेष्ठतम् पर्व है इस दिन साधक को शिव साधना, गुरु साधना, कुबेर साधना, अन्नपूर्णा लक्ष्मी साधना के साथ-साथ, दान-यज्ञ अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिये। जो साधक अक्षय तृतीया के दिन भी साधना नहीं करता है। उसे दुर्भाग्यशाली ही कहा जा सकता है। उसके भाग्य को तो शिव भी ठीक नहीं कर सकते हैं। येसे महान पर्व पर 'लक्ष्मी साधना' करना ही जीवन मे योग्य है क्योंके आज के युग मे धन से संबंधित बाधाएं बहोत सारी है और धन-धान्य-ऐश्वर्य प्राप्त करता आवश्यक है ।

आज सभी के लिए एक उत्तम लक्ष्मी साधना दे रहा हू,जिसका प्रभाव जीवन मे देखने मिलता है और साधक के जीवन मे माँ लक्ष्मी जी के कृपा से धन-धान्य-ऐश्वर्य की प्राप्ती संभव है ।




साधना विधान:-

सर्वप्रथम किसी लकड़ी के बाजोट पर पीले/स्वर्णीय रंग का वस्त्र बिछाये, यहां पीले/स्वर्णीय वस्त्र का महत्व है क्योंके हमारा जीवन स्वर्ण की तरह उज्वल हो और जीवन मे धनप्राप्ती में रुकावट ना आये । बाजोट पर माँ का भव्य चित्र स्थापित करे, एक ऐसा चित्र जिसमे दो हाथी माँ पर जल वर्षाव कर रहे हो और माँ कमल पर विराजमान हो । सामने घी का दीपक लगाये और गुलाब के धूपबत्ती से वातावरण को गुलाब के सुगंध से आनंदित करे । माँ को घर पर बने हुये मीठे पदार्थ का भोग लगाएं,उनके श्री चरणों में गुलाब या कमल का पुष्प चढ़ाए । कुछ फल भी रखे जो भी मार्केट में ताजा मिल रहे हो,यह साधना कुछ कारणों वश अक्षय तृतीया के अवसर पर नही कर सके तो किसी भी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को कर सकते है । साधना में मंत्र जाप हेतु कमलगट्टे की माला या स्फटिक माला का ही प्रयोग करे, घर मे श्रीयंत्र हो तो उसका भी पूजन करे । आपके पास माला होना जरूरी है,अगर माला ना हो तो अपने शहर के किसी भी मार्केट से माला स्वयं खरीदे और अगर वहा किसी भी प्रकार का श्रीयंत्र मिलता हो तो वह भी खरीद लेना उत्तम कार्य है । इस ब्लॉग पर माला और यंत्र प्राण-प्रतिष्ठा विधान दिया हुआ है,उसीके माध्यम से माला और श्रीयंत्र को प्राण-प्रतिष्ठित अवश्य करे ताकि साधना में पूर्ण सफलता प्राप्त हो ।



सर्वप्रथम हाथ जोडकर माँ का ध्यान करे-

ध्यानः-
ॐ अरुण-कमल-संस्था, तद्रजः पुञ्ज-वर्णा,
कर-कमल-धृतेष्टा, भीति-युग्माम्बुजा च।
मणि-मुकुट-विचित्रालंकृता कल्प-जालैर्भवतु-भुवन-माता सततं श्रीः श्रियै नः ।।



अब मन मे मंत्रो का उच्चारण करते हुए माँ का मानसिक पूजन करे और साथ मे मन मे यह भावना भी रखे के "मंत्रो में दिए हुए सबंधित वस्तुओं को माँ के समक्ष मानसिक रूप से चढ़ा रहे है"-

मानसिक-पूजनः-

ॐ लं पृथ्वी तत्त्वात्वकं गन्धं श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।

ॐ हं आकाश तत्त्वात्वकं पुष्पं श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।

ॐ यं वायु तत्त्वात्वकं धूपं श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये घ्रापयामि नमः।

ॐ रं अग्नि तत्त्वात्वकं दीपं श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये दर्शयामि नमः।

ॐ वं जल तत्त्वात्वकं नैवेद्यं श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये निवेदयामि नमः।

ॐ सं सर्व-तत्त्वात्वकं ताम्बूलं श्रीमहालक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।



महालक्ष्मी मन्त्र:-

।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ।।
Om shreem hreem shreem mahaalakshmyai namah




मंत्र दिखने में छोटा है परंतु यह एक उत्तम प्रभावशाली मंत्र है । इस मंत्र का कम से कम 21 माला जाप 11 दिनों तक करना एक श्रेष्ठ क्रिया है । हो सके तो 12 वे दिन "ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः स्वाहा"  मंत्र बोलते हुए अग्नी में घी की आहुतिया दे,आहूति हेतु मंत्र संख्या निच्छित होती है परंतु आप चाहे तो 108 बार मंत्र बोलकर भी आहुति दे सकते है परंतु संभव हो तो 21 माला मंत्र जाप करते हुए अवश्य ही आहुतिया दे सकते है ।




नित्य जाप समाप्ति के बाद साधक निम्न मंत्रों के साथ हाथ जोड़कर क्षमा याचना करे-


॥ क्षमा प्रार्थना॥

अपराधसहस्राणि, क्रियन्तेऽहॢनशं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा, क्षमस्व परमेश्वर॥ १॥

आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि, क्षम्यतां परमेश्वर॥ २॥

मंत्रहीनं क्रियाहीनं, भक्तिहीनं सुरेश्वर।
यत्पूजितं मया देव, परिपूर्णं तदस्तु मे॥ ३॥

अपराधशतं कृत्वा, श्रीसद्गुरुञ्च यः स्मरेत्।
यां गतिं समवाप्नोति, न तां ब्रह्मादयः सुराः॥ ४॥

सापराधोऽस्मि शरणं, प्राप्तस्त्वां जगदीश्वर।
इदानीमनुकम्प्योऽहं, यथेच्छसि तथा कुरु॥ ५॥

अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या, यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देव, प्रसीद परमेश्वर॥ ६ ।।

ब्रह्मविद्याप्रदातर्वै, सच्चिदानन्दविग्रह!।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या, प्रसीद परमेश्वर॥ ७॥

गुह्यातिगुह्यगोप्ता त्वं, गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देव, त्वत्प्रसादात्सुरेश्वर॥ ८॥




आदेश...........

7 Apr 2017

पंचांगुली साधना (Panchanguli Sadhana)



दिव्य दृष्टि प्राप्त करने की अद्भुत साधना जब दृष्टि प्रभाव से भूत-भविष्य, वर्तमान का ज्ञान हो जाता है । पंचांगुली साधना केवल पांच अंगुलियों और हस्तरेखा सिद्ध करने की साधना नहीं है। पंचांगुली देवी वह शक्ति है, जो साधक के भीतर एक चैतन्य शक्ति जाग्रत करती है, साधक अपने आप में जानकार होता हुआ स्वयं के साथ-साथ, दूसरों के बारे में भी जान सकता है पंचांगुली मूलतः सम्मोहन की साधना है। भविष्य के अज्ञात रहस्यों को जानने वाली यह विद्या है, जिसे प्रत्येक ॠषि ने सिद्धि किया था। इस विद्या के प्रमुख प्रवर्तक – अंगिरस, कणाद और अत्रेय थे। आज के युग में भी इस साधना को सम्पन्न कर सिद्ध किया जा सकता है। पूज्य सद्गुरुदेव ने अपनी पुस्तक हस्तरेखा और पंचांगुली विज्ञान में इस रहस्य को स्पष्ट किया हैं ।

मनुष्य स्वभावतः इसी बात के लिए उत्सुक रहता है, कि वह अपने भविष्य को जान सके। अनेकों रहस्यमय प्रश्न उसके मानस में उठते रहते हैं – क्या ऐसी कोई शक्ति ब्रह्माण्ड मेंे है, जिसका सम्बन्ध हमसे स्थापित हो? क्या ऐसी कोई युक्ति है, जिसके माध्यम से हम अपना भूत, भविष्य और वर्तमान स्पष्ट रूप से देख सकें? ऐसे अनेकों प्रश्न उसके मानस पटल पर अंकुरित होते रहते हैं।

आज ऐसी कई पद्धतियां बन चुकी हैं, जिनके द्वारा अपने अतीत और भविष्य का आंकलन किया जा सकता है – हस्त रेखा विज्ञान, नेपोलियन थ्योरी, फलित ज्योतिष, टेरो आदि-आदि। इनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित विधि है – ‘ हस्त रेखा विज्ञान’, जिसके माध्यम से हाथ की लकीरों का, जो देखने में तो कुछ लाइनें ही दिखाई देती हैं, किन्तु सैकड़ों सूक्ष्म तन्तुओं को अपने अन्दर समेटे रहती हैं, जिनका सूक्ष्मातिसूक्ष्म अध्ययन एक अच्छा हस्त विशेषज्ञ ही कर सकता है।
संसार में जितने भी पुरुष या स्त्रियां हैं, उनके हाथों की लकीरें कभी एक जैसी नहीं होतीं और उन लकीरों में ही उनका भूत, भविष्य और वर्तमान छिपा होता है, आवश्यकता होती है उस शक्ति के माध्यम से, उन सूक्ष्म रेखाओं को पढ़कर ब्रह्माण्ड से सम्पर्क स्थापित करने की, क्योंकि जब तक ब्रह्माण्ड में व्याप्त अणुओं से हमारी आत्म-शक्ति का सम्बन्ध नहीं होगा, तब तक हम कालज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते… तभी हमें पहले की, अब की और आने वाले समय की घटनाओं का पूर्णतः ज्ञान प्राप्त हो सकता है।

मंत्र और यंत्र ही ऐसी दो अक्षय निधियां हैं, जिनके माध्यम से अपने जीवन में परिवर्तन लाया जा सकता है और सुखी, सफल एवं सम्पन्नतायुक्त जीवनयापन किया जा सकता है। आज साधना और सिद्धि, कालज्ञान आदि विधाएं केवल ‘साधु-संतों’ तक ही सिमट कर नहीं रह गई हैं। कोई भी इन्हें सम्पन्न कर सफलता तक पहुंच सकता है। सभी की उत्सुकता का केन्द्र ‘भविष्य’ का ज्ञान अर्जित करने के लिए ‘ पंचांगुली साधना ’ सर्वश्रेष्ठ मानी गई है, जिसके माध्यम से अपने या किसी भी व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान को आसानी से जाना जा सकता है।

पंचांगुली देवी कालज्ञान की देवी हैं, जिनकी साधना कर साधक को होने वाली घटनाओं व दुर्घटनाओं का पूर्वानुमान हो जाता है तथा इसी साधना के द्वारा हस्त विज्ञान में पारंगत हुआ जा सकता है और भविष्यवक्ता बना जा सकता है। प्राचीन काल के योगी, साधु, संन्यासी इस साधना को सिद्ध कर लोगों को भविष्य के बारे में बताया करते थे और यश, कीर्ति, वैभव सब कुछ प्राप्त कर लेते थे। धीरे-धीरे कुछ लोगों की चालाकी और कायरता की वजह से, जो ये समझते थे कि यदि किसी को या सभी लोगों को इस साधना की पूर्ण जानकारी हो गई, तो हमें कौन पूछेगा? इसलिए यह ज्ञान एक छोटे से दायरे में ही सिमट कर रह गया। समय ने पलटा खाया और बहुत बड़ा जन समुदाय इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हो गया, जिसके कारण इस साधना का प्रचार-प्रसार होने लगा, जो उन ढोंगी साधु-संतों पर एक तीव्र प्रहार ही था, क्योंकि वे इस विद्या का लाभ उठाकर, दूसरों को आसानी से मूर्ख बनाकर उन्हें अपने अधीन कर लेते थे। इस साधना को सम्पन्न कर ऐसे ढोंगियों पाखण्डियों का पर्दाफाश कर, स्वयं के साथ-साथ समाज का भी कल्याण किया जा सकता है।

पंचांगुली साधना के माध्यम से सामने वाले को देखकर उसका भविष्य पूर्णरूप से ज्ञात हो जाता है, वह स्वयं भी अपने आपात्कालीन संकटों का पूर्वाभास कर अपने जीवन की रक्षा आप कर सकता है, किसी भी व्यक्ति के भविष्य के प्रत्येक क्षण को अक्षरशः जान सकता है, और घटित होने वाली दुर्घटनाओं की पूर्व जानकारी देकर उन्हें सावधान कर सकता है।

इस साधना को सिद्ध करना जीवन की श्रेष्ठता है तथा किसी भी साधना को करने से पूर्व इस साधना को अवश्य ही कर लेना चाहिए, जिससे कि साधना के अन्तर्गत रह गई त्रुटियों और आने वाली अड़चनों को सुगमता से दूर किया जा सके।
महाभारत युद्ध में धृतराष्ट्र नेत्रहीन होने की वजह से उस युद्ध को नहीं देख सकते थे, किन्तु संजय की दिव्य दृष्टि ने उन्हें कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध का अक्षरशः विवरण कह सुनाया। लोग उसे दिव्य दृष्टि का ज्ञान कहते थे, किन्तु वास्तव में कुछ भी देख लेने की शक्ति उस दृष्टि के माध्यम से नहीं, अपितु उस शक्ति के माध्यम से प्राप्त हुई थी, जिसे उन्होंने साधना के बल पर प्राप्त किया था, क्योंकि मात्र दृष्टि के माध्यम से भूत, भविष्य एवं वर्तमान का ठीक-ठीक ज्ञान प्राप्त होना कठिन-सी प्रक्रिया है, ज्ञान तो चैतन्य शक्ति के माध्यम से ही प्राप्त होता है, जिसे अपने अन्दर से प्रस्फुटित करना पड़ता है। यदि पंचांगुली मंत्र के साथ-साथ काल ज्ञान मंत्र को भी सिद्ध कर लिया जाय, तो संजय के समान ही दिव्य दृष्टि प्राप्त की जा सकती है, फिर यह जरूरी नहीं, कि जिस व्यक्ति का भूत-भविष्य जानना हो, वह सामने हो ही। पंचांगुली साधना की उच्चतम स्थिति दिव्य दृष्टि सम्पन्न होना है। यहां प्रस्तुत वर्णन ‘पंचांगुली साधना' की उसी भावभूमि को अपने में समेटे हुए है।





साधना विधान:-

1. इस साधना को करने के लिए ‘ पंचांगुली यंत्र व कवच तथा ‘ रुद्राक्ष माला ’, जो प्राण प्रतिष्ठायुक्त एवं मंत्र-सिद्ध हो, प्रयोग करना आवश्यक होता है।

2. यह साधना शुक्ल पक्ष की किसी भी द्वितीया , पंचमी , सप्तमी या पूर्णमासी को की जा सकती है।

3. यह साधना प्रातः कालीन है, इसे ब्रह्म मुहूर्त में ही करना चाहिए।

4. इस साधना को किसी एकांत स्थल या पूजा स्थल में ही, जहां शोर न हो, सम्पन्न करना चाहिए। यह इक्कीस दिन की साधना है।

5. पीले आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके, पीले वस्त्र धारण कर बैठ जायें।

6. फिर एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर ‘ पंचांगुली देवी का यंत्र (ताबीज)’ भी स्थापित कर दें। यंत्र को किसी ताम्र प्लेट में रखें।

7. सबसे पहले गणपति का ध्यान करें, फिर गुरुदेव का ध्यान, स्नान, पंचोपचार पूजन सम्पन्न कर, गुरु मंत्र का जप करें।

8. गुरु पूजन के पश्चात् षोडशोपचार पूजन हेतु यंत्र पर कुंकुम से ‘ स्वस्तिक ’ का चिह्न बनायें।

9. निम्न प्रकार षोडशोपचार विधि से यंत्र का विधिवत् पूजन करें-




ध्यान:-
ॐ भूभुर्वः स्वः श्री पंचांगुली देवीं ध्यायामि।

आह्वान:-
ॐ आगच्छाच्छ देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे।
क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुरसत्तमे॥
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली देवताभ्योः नमः आह्वाहनं समर्पयामि।

आसन:-
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्य करं शुभम्।
आसनञ्च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरीं॥
ॐ भूभुर्वः स्वः श्री पंचांगुली देवताभ्यो नमः आसनं समर्पयामि।

स्नान:-
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः।
स्नापिताऽसि मया देवि तथा शान्तिं कुरुष्व मे॥

पयस्नान:-
कामधेनु समुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्॥

दधिस्नान:-
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्।
दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥

मधुस्नान:-
तरुपुष्प समुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥

घृतस्नान:-
नवनीत समुत्पन्नं सर्वसन्तोष कारकम्।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥

शर्करास्नान:-
इक्षुरस समुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्॥

वस्त्र:-
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रति गृह्यताम् ।।

गन्ध:-
श्री खण्ड चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठि चन्दनं प्रति गृह्यताम्॥

अक्षत:-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठि कुकुम्माक्ता सुशोभिता।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ।।

पुष्प:-
ॐ माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै विभे।
मयाहृतानि पुष्पाणि प्रीत्यर्थं प्रति गृह्यताम्॥

दीप:-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे॥

नैवेद्य:-
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्तिं मे ह्यचला कुरु।
ईप्सितं मे वरं देहि परत्रेह परां गतिम्॥

दक्षिणा:-
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः।
अनन्तः पुण्य फलदमतः शांतिं प्रयच्छ मे॥

विशेषार्घ्य:-
नमस्ते देवदेवेशि नमस्ते धरणीधरे।
नमस्ते जगदाधारे अर्घ्यं च प्रति गृह्यताम्।
वरदत्वं वरं देहि वांछितं वांछितार्थदं।
अनेन सफलार्घैण फलादऽस्तु सदा मम।
गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्र्यमेव च।
आगता सुख सम्पत्तिः पुण्योऽहं तव दर्शनात्॥



10. हाथ में जल लेकर मंत्र-जप करने का संकल्प करें ।

11. निम्नलिखित पंचांगुली मंत्र का ‘ रुद्राक्ष माला ’ से इक्कीस दिन तक पाँच-पाँच माला मंत्र-जप करें।



मंत्र:-

ईं ।। ॐ नमो पंचांगुली पंचांगुली परशरी परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमय दंडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्ये दीवानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोंटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये शंखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषिणीमध्ये शेकनीमध्ये गुणीमध्ये गरुडीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपर बुरो जो कोई करे करावे जड़े जडावे तत चिन्ते  चिन्तावे तस माथे श्री माता श्री पंचांगुली देवी तणो वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठं ठं स्वाहा ।। ईं



12. मंत्र-जप करने का समय निर्धारित होना चाहिए।

13. जप काल में ध्यान रखने योग्य बातें –
* इस साधना को तभी सम्पन्न करें, जब आप दृढ़ चित्त हों, आपका निश्चय पक्का हो और संघर्षों से जूझने की शक्ति हो।
* गृहस्थ साधना काल में स्त्री सम्पर्क न करें, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
* साधना काल में असत्य भाषण न करें।
* मंत्र जप के समय बीच में उठें नहीं।
* गुरु के प्रति आस्थावान होकर, गुरु पूजन के पश्चात् ही साधना सम्पन्न करें। तामसिक भोजन से दूर रहें।
* मंत्रोच्चारण शुद्ध व स्पष्ट हो।
* यदि साधना पूरी होने पर भी सफलता न मिले, तो झुंझलावें नहीं, बार-बार प्रयत्न करें।

14. साधना-समाप्ति के पश्चात् समस्त सामग्री को किसी नदी या कुंए में विसर्जित कर दें। इस प्रकार पूर्ण विश्वास के साथ की गई साधना से मंत्र की सिद्ध होती ही है तथा उस साधक को भूत, भविष्य एवं वर्तमान की सिद्धि हो जाती है।



साधना सामग्री :- 1850/-रुपये ।
amannikhil011@gmail.com



आदेश..........

21 Mar 2017

रोगमुक्ती साधना-माँ भद्रकाली


बहोत दिनोसे चाहता था,माँ भद्रकाली जी का मंत्र साधना विधान लिखा जाए । भद्रकाली जी प्रचंड शक्तियुक्त देवी मानी जाती है,उनका कोई भी साधना विधान कभी भी खाली नही जाता । अन्य साधनाओं में भले ही सफलता मिले या ना मिले परंतु काली जी के इस रूप के साधना में सफलता अवश्य ही मिलता है । जहां माँ भद्रकाली अपने बच्चो को ममतामयी नजरो से देखती है , ठीक उसी तरहां भक्तो के समस्त शत्रुओं को दंडित करती है ।

आज जो साधना दे रहा हू इससे समस्त प्रकार के रोगों से मुक्ती प्राप्त होता है । जब तक शरीर रोगों से मुक्त ना हो जाए तब तक जीवन में सब कुछ होकर भी कुछ नही रहेता है । यह साधना विधान आपके समस्त रोगों का स्तंभन करने हेतु आवश्यक है, पहला सुख निरोगी काया -अर्थात स्वस्थ्य शरीर ही जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है और उसी से आप अन्य सुखों का उपभोग कर सकते हैं तथा साधना में आसन की दृढ़ता को प्राप्त कर सकते हैं ।

यह साधना किसी भी शनिवार से शुरू करे,आसन और वस्त्र लाल रंग के हो,मंत्र जाप के समय उत्तर दिशा में हो,मंत्र जाप करने हेतु रुद्राक्ष का माला उत्तम है । साधना के समय गाय के घी का ही दीपक प्रज्वलित करे,धुपबत्ती कोई भी ले सकते है परंतु गुग्गल का धूपबत्ती जलाया जाये तो अतिउत्तम । यह साधना ग्यारह दिनों तक किया जाए तो आरोग्य प्राप्त होता रहेगा और रोगों से मुक्ति मिलता रहेगा । 11 माला जाप करने का विधान है परंतु आप आवश्यता नुसार 21,51,101 माला भी जाप कर सकते है । कोई रोगी व्यक्ति जाप ना कर सके तो किसी योग्य व्यक्ति से स्वयं के लिए जाप करवा सकते हैं ।


मंत्र-

।। ॐ क्रीं क्रीं क्रीं भद्रकाली सर्वरोगबाधा स्तंभय स्तंभय स्वाहा ।।
Om kreem kreem kreem bhadrakali sarvarogbaadhaa stambhay stambhay swaahaa


11,21.....दिनों का साधना पूर्ण होने के बाद संभव होतो काले तिल और शुध्द घी से हवन में आहूति देना उचित होगा । हवन करना जरुरी नहीं है फिर भी साधक पूर्ण सिद्धि हेतु चाहे तो हवन कर सकता है ।



आदेश ...........

25 Jan 2017

गायत्री मंत्र उपासना

गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ:

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

भावार्थ: उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे ।


गायत्री उपासना हम सबके लिए अनिवार्य है-

गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी कहा गया है । वेदों से लेकर धर्मशास्त्रों तक समस्त दिव्य ज्ञान गायत्री के बीजाक्षरों का ही विस्तार है । माँ गायत्री का आँचल पकड़ने वाला साधक कभी निराश नहीं हुआ । इस मंत्र के चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं । गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, ऐसा ऋषिगणों का अभिमत है ।
गायत्री वेदमाता हैं एवं मानव मात्र का पाप नाश करने की शक्ति उनमें है । इससे अधिक पवित्र करने वाला और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है । भौतिक लालसाओं से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी और आत्मकल्याण की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु के लिए भी एकमात्र आश्रय गायत्री ही है । गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु,कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं ।
भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को नित्य-नियमित गायत्री उपासना करनी चाहिए । विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विभिन्न विपत्तियों, आसन्न विभीषिकाओं से उसकी रक्षा करती है । प्रस्तुत समय संधिकाल का है । आगामी वर्षों में पूरे विश्व में तेजी से परिवर्तन होगा । इस विशिष्ट समय में की गयी गायत्री उपासना के प्रतिफल भी विशिष्ट होंगे । युगऋषि, वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने गायत्री के तत्त्वदर्शन को जन-जन तक पहुँचाया व उसे जनसुलभ बनाया है । प्रत्यक्ष कामधेनु की तरह इसका हर कोई पयपान कर सकता है । जाति, मत, लिंग भेद से परे गायत्री सार्वजनीन है । सबके लिए उसकी साधना करने व लाभ उठाने का मार्ग खुला हुआ है ।


गायत्री उपासना का विधि-विधान-

गायत्री उपासना कभी भी, किसी भी स्थिति में की जा सकती है । हर स्थिति में यह लाभदायी है, परन्तु विधिपूर्वक भावना से जुड़े न्यूनतम कर्मकाण्डों के साथ की गयी उपासना अति फलदायी मानी गयी है । तीन माला गायत्री मंत्र का जप आवश्यक माना गया है । शौच-स्नान से निवृत्त होकर नियत स्थान, नियत समय पर, सुखासन में बैठकर नित्य गायत्री उपासना की जानी चाहिए ।

उपासना का विधि-विधान इस प्रकार है:

(१) ब्रह्म सन्ध्या - जो शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिए की जाती है । इसके अंतर्गत पाँच कृत्य करने होते हैं ।

(अ) पवित्रीकरण - बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मंत्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें ।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा । यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।


(ब) आचमन - वाणी, मन व अंतःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें । हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाए ।

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा । ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा । ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ।


(क) शिखा स्पर्श एवं वंदन - शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे । निम्न मंत्र का उच्चारण करें

। ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते । तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥


(ड) प्राणायाम - श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है । श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं । प्राणायाम निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ किया जाए ।

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ ।

(य) न्यास - इसका प्रयोजन है-शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देव-पूजन जैसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके । बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर बताए गए स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।

ॐ वाङ् मे आस्येऽस्तु । (मुख को)
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु । (नासिका के दोनों छिद्रों को)
ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु । (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु । (दोनों कानों को)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु । (दोनों भुजाओं को)
ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु । (दोनों जंघाओं को)
ॐ अरिष्टानि मेऽङ्गानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु । (समस्त शरीर पर)

आत्मशोधन की ब्रह्म संध्या के उपरोक्त पाँचों कृत्यों का भाव यह है कि सााधक में पवित्रता एवं प्रखरता की अभिवृद्धि हो तथा मलिनता-अवांछनीयता की निवृत्ति हो । पवित्र-प्रखर व्यक्ति ही भगवान् के दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते हैं ।


(२) देवपूजन - गायत्री उपासना का आधार केन्द्र महाप्रज्ञा-ऋतम्भरा गायत्री है । उनका प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा की वेदी पर स्थापित कर उनका निम्न मंत्र के माध्यम से आवाहन करें । भावना करें कि साधक की प्रार्थना के अनुरूप माँ गायत्री की शक्ति वहाँ अवतरित हो, स्थापित हो रही है।

ॐ आयातु वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि । गायत्रिच्छन्दसां मातः! ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते॥
ॐ श्री गायत्र्यै नमः । आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि, ततो नमस्कारं करोमि ।


(ख) गुरु - गुरु परमात्मा की दिव्य चेतना का अंश है, जो साधक का मार्गदर्शन करता है । सद्गुरु के रूप में पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी का अभिवंदन करते हुए उपासना की सफलता हेतु गुरु आवाहन निम्न मंत्रोच्चारण के साथ करें ।

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः । गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ अखण्डमंडलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ ॐ श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि ।


(ग) माँ गायत्री व गुरु सत्ता के आवाहन व नमन के पश्चात् देवपूजन में घनिष्ठता स्थापित करने हेतु पंचोपचार द्वारा पूजन किया जाता है । इन्हें विधिवत् संपन्न करें । जल, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप तथा नैवेद्य प्रतीक के रूप में आराध्य के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं । एक-एक करके छोटी तश्तरी में इन पाँचों को समर्पित करते चलें । जल का अर्थ है - नम्रता-सहृदयता । अक्षत का अर्थ है - समयदान अंशदान । पुष्प का अर्थ है - प्रसन्नता-आंतरिक उल्लास । धूप-दीप का अर्थ है - सुगंध व प्रकाश का वितरण, पुण्य-परमार्थ तथा नैवेद्य का अर्थ है - स्वभाव व व्यवहार में मधुरता-शालीनता का समावेश ।

ये पाँचों उपचार व्यक्तित्व को सत्प्रवृत्तियों से संपन्न करने के लिए किये जाते हैं । कर्मकाण्ड के पीछे भावना महत्त्वपूर्ण है । 


(३) जप - गायत्री मंत्र का जप न्यूनतम तीन माला अर्थात् घड़ी से प्रायः पंद्रह मिनट नियमित रूप से किया जाए । अधिक बन पड़े, तो अधिक उत्तम । होठ हिलते रहें, किन्तु आवाज इतनी मंद हो कि पास बैठे व्यक्ति भी सुन न सकें । जप प्रक्रिया कषाय-कल्मषों-कुसंस्कारों को धोने के लिए की जाती है ।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करते हुए माला की जाय एवं भावना की जाय कि हम निरन्तर पवित्र हो रहे हैं । दुर्बुद्धि की जगह सद्बुद्धि की स्थापना हो रही है । 


(४) ध्यान - जप तो अंग-अवयव करते हैं, मन को ध्यान में नियोजित करना होता है । साकार ध्यान में गायत्री माता के अंचल की छाया में बैठने तथा उनका दुलार भरा प्यार अनवरत रूप से प्राप्त होने की भावना की जाती है । निराकार ध्यान में गायत्री के देवता सविता की प्रभातकालीन स्वर्णिम किरणों को शरीर पर बरसने व शरीर में श्रद्धा-प्रज्ञा-निष्ठा रूपी अनुदान उतरने की भावना की जाती है, जप और ध्यान के समन्वय से ही चित्त एकाग्र होता है और आत्मसत्ता पर उस क्रिया का महत्त्वपूर्ण प्रभाव भी पड़ता है । 


(५) सूर्यार्घ्यदान - विसर्जन-जप समाप्ति के पश्चात् पूजा वेदी पर रखे छोटे कलश का जल सूर्य की दिशा में र्अघ्य रूप में निम्न मंत्र के उच्चारण के साथ चढ़ाया जाता है ।

ॐ सूर्यदेव! सहस्रांशो, तेजोराशे जगत्पते । अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥
ॐ सूर्याय नमः, आदित्याय नमः, भास्कराय नमः॥

भावना यह करें कि जल आत्म सत्ता का प्रतीक है एवं सूर्य विराट् ब्रह्म का तथा हमारी सत्ता-सम्पदा समष्टि के लिए समर्पित-विसर्जित हो रही है ।

इतना सब करने के बाद पूजा स्थल पर देवताओं को करबद्ध नतमस्तक हो नमस्कार किया जाए व सब वस्तुओं को समेटकर यथास्थान रख दिया जाए । जप के लिए माला तुलसी या चंदन की ही लेनी चाहिए । सूर्योदय से दो घण्टे पूर्व से सूर्यास्त के एक घंटे बाद तक कभी भी गायत्री उपासना की जा सकती है । मौन-मानसिक जप चौबीस घण्टे किया जा सकता है । माला जपते समय तर्जनी उंगली का उपयोग न करें तथा सुमेरु का उल्लंघन न करें । 

 
(सौजन्य :- प.पु. गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी)




आदेश...........