7 Dec 2015

दसमहाविद्या सायुज्य नवार्ण मंत्र साधना.

आज मै यहा अद्वीतिय साधना दे रहा हु,दसमहाविद्या सायुज्य नवार्ण साधना जो गोपनीय है।इस साधना को सम्पन्न करने से प्रत्येक साधना मे शीघ्र सफलता एवं सिद्धियां प्राप्त होता है।

दस महाविद्या जिसकी उपासना से चतुर्मुख सृष्टि रचने में समर्थ होते हैं, विष्णु जिसके कृपा कटाक्ष से विश्व का पालन करने में समर्थ होते हैं, रुद्र जिसके बल से विश्व का संहार करने में समर्थ होते हैं, उसी सर्वेश्वरी जगन्माता महामाया के दस स्वरूपों का संक्षिप्त चरित्र प्रस्तुत है।

देवी के 10 रूपों - काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला- का वर्णन तोडल तंत्र में किया गया है। शक्ति के यह रूप संसार के सृजन का सार है। इन शक्तियों की उपासना मनोकामनाओं की पूर्ति। सिद्धि प्राप्त करने के लिए की जाती है। देवताओं के मंत्रों को मंत्र तथा देवियों के मंत्रों को विद्या कहा जाता है। इन मंत्रों का सटीक उच्चारण अति आवश्यक है। ये दश महाविद्याएं भक्तों का भय निवारण करती हैं। जो साधक इन विद्याओं की उपासना करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सबकी प्राप्ति हो जाती है।

1. काली : दस महाविद्याओं में काली प्रथम है। महा भागवत के अनुसार महाकाली ही मुखय हैं। उन्हीं के उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दश महाविद्याएं हैं। कलियुग में कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायी एवं साधक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने में सहायक हैं। शक्ति साधना के दो पीठों में काली की उपासना श्यामापीठ पर करने योग्य है। वैसे तो किसी भी रूप में उन महामाया की उपासना फल देने वाली है परंतु सिद्धि के लिए उनकी उपासना वीरभाव से की जाती है।

2. तारा : भगवती काली को नीलरूपा और सर्वदा मोक्ष देने वाली और तारने वाली होने के कारण तारा कहा जाता है। भारत में सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी। इसलिए तारा को वशिष्ठाराधिता तारा भी कहा जाता है। आर्थिक उन्नति एवं अन्य बाधाओं के निवारण हेतु तारा महाविद्या का स्थान महत्वपूर्ण है। इस साधना की सिद्धी होने पर साधक की आय के नित नये साधन खुलने लगते हैं और वह पूर्ण ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत कर जीवन में पूर्णता प्राप्त कर लेता है। इनका बीज मंत्र 'ह्रूं' है। इन्हें नीलसरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। अनायास ही विपत्ति नाश, शत्रुनाश, वाक्-शक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए तारा की उपासना की जाती है।

3. षोडशी : षोडशी माहेश्वरी शक्ति की सबसे मनोहर श्री विग्रह वाली सिद्ध देवी हैं। इनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं। ये शांत मुद्रा में लेटे हुए सदाशिव पर स्थित कमल के आसन पर आसीन हैं। जो इनका आश्रय ग्रहण कर लेते हैं उनमें और ईश्वर में कोई भेद नहीं रह जाता। षोडशी को श्री विद्या भी माना गया है। इनके ललिता, राज-राजेश्वरी, महात्रिपुरसुंदरी, बालापञ्चदशी आदि अनेक नाम हैं, वास्तव में षोडशी साधना को राज-राजेश्वरी इसलिए भी कहा गया है क्योंकि यह अपनी कृपा से साधारण व्यक्ति को भी राजा बनाने में समर्थ हैं। चारों दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें पंचवक्रा कहा जाता है। इनमें षोडश कलाएं पूर्ण रूप से विकसित हैं। इसलिए ये षोडशी कहलाती है। इन्हें श्री विद्या भी माना गया है और इनकी उपासना श्री यंत्र या नव योनी चक्र के रूप में की जाती है। ये अपने उपासक को भक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करती हैं। षोडशी उपासना में दीक्षा आवश्यक है।

4. भुवनेश्वरी : महाविद्याओं में भुवनेश्वरी महाविद्या को आद्या शक्ति अर्थात मूल प्रकृति कहा गया है। इसलिए भक्तों को अभय और समस्त सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है। दशमहाविद्याओं में ये पांचवें स्थान पर परिगणित है। भगवती भुवनेश्वरी की उपासना पुत्र-प्राप्ति के लिए विशेष फलप्रदा है। अपने हाथ में लिए गये शाकों और फल-मूल से प्राणियों का पोषण करने के कारण भगवती भुवनेश्वरी ही 'शताक्षी' तथा 'शाकम्भरी' नाम से विख्यात हुई।

5. छिन्नमस्ता : परिवर्तनशील जगत का अधिपति कबंध है और उसकी शक्ति छिन्नमस्ता है। छिन्नमस्ता का स्वरूप अत्यंत ही गोपनीय है। इनका सर कटा हुआ है और इनके कबंध से रक्त की तीन धाराएं प्रवाहित हो रही हैं जिसमें से दो धाराएं उनकी सहचरियां और एक धारा देवी स्वयं पान कर रही हैं इनकी तीन आंखें हैं और ये मदन और रति पर आसीन हैं। इनका स्वरूप ब्रह्मांड में सृजन और मृत्यु के सत्य को दर्शाता है। ऐसा विधान है कि चतुर्थ संध्याकाल में छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्धि हो जाती है। इस प्रकार की साधना के लिए दृढ़ संकल्प शक्ति की आवश्यकता होती है और जो साधक जीवन में निश्चय कर लेते हैं कि उन्हें साधनाओं में सफलता प्राप्त करनी है वे अपने गुरु के मार्गदर्शन से ही इन्हें संपन्न करते हैं।

7. धूमावती : धूमावती देवी महाविद्याओं में सातवें स्थान पर विराजमान हैं। धूमावती महाशक्ति अकेली है तथा स्वयं नियंत्रिका है। इसका कोई स्वामी नहीं है। इसलिए इन्हें विधवा कहा गया है। धूमावती उपासना विपत्ति नाश, रोग निवारण, युद्ध जय आदि के लिए की जाती है। यह लक्ष्मी की ज्येष्ठा हैं, अतः ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति जीवन भर दुख भोगता है। जो साधक अपने जीवन में निश्चिंत और निर्भीक रहना चाहते हैं उन्हें धूमावती साधना करनी चाहिए।

8. बगलामुखी : यह साधना शत्रु बाधा को समाप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साधना है। ये सुधा समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मण्डप में रत्नमय सिंहासन पर विराजमान है। इस विद्या के द्वारा दैवी प्रकोप की शांति, धन-धान्य के लिए और इनकी उपासना भोग और मोक्ष दोनों की सिद्धि के लिए की जाती है। इनकी उपासना में हरिद्र माला, पीत पुष्प एवं पीत वस्त्र का विधान हैं इनके हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्रा है।

9. मातंगी : मातंग शिव का नाम और इनकी शक्ति मातंगी है। इनका श्याम वर्ण है और चंद्रमा को मस्तक पर धारण किए हुए हैं। इन्होंने अपनी चार भुजाओं में पाश, अंकुश, खेटक और खडग धारण किया है। उनके त्रिनेत्र सूर्य, सोम और अग्नि हैं। ये असुरों को मोहित करने वाली और भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली हैं। गृहस्थ जीवन को सुखमय बनाने के लिए मातंगी की साधना श्रेयस्कर है।

10. कमला : जिसके घर में दरिद्रता ने कब्जा कर लिया हो और घर में सुख-शांति न हो, आय का स्रोत न हो उनके लिए यह साधना सौभाग्य के द्वार खोलती है। कमला को लक्ष्मी और षोडशी भी कहा जाता है। वैसे तो शास्त्रों में हजारों प्रकार की साधनाएं दी गई हैं लेकिन उनमें से दस महत्वपूर्ण विद्याओं की साधनाओं को जीवन की पूर्णता के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है। जो व्यक्ति दश महाविद्याओं की साधना को पूर्णता के साथ संपन्न कर लेता है। वह निश्चय ही जीवन में ऊंचा उठता है परंतु ध्यान रहे विधिवत् उपासना के लिए गुरु दीक्षा नितांत आवश्यक है। निष्काम भाव से भक्ति करने के लिए दश शक्तियों के नाम का उच्चारण करके भी इनका अनुग्रह प्राप्त किया जा सकता है। शक्ति पीठों में शक्ति उपासना के अंतर्गत नवदुर्गा व दसमहाविद्या साधना करने से शीघ्र सिद्धि होती है।

साधक स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें। इस समय निम्न मंत्रों को बोलें-

ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥

तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें।

शापोद्धार मंत्र का एक माला जाप करे-

।। ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा ।।

अब उत्कीलन मंत्र का एक माला जाप करे-

।। ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं मंत्र चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा ।।



ध्यान मंत्र:-

खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर: शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।

नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥



दसमहाविद्या सायुज्य नवार्ण मंत्र-

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं दसगुणात्मिकायै चामुंडायै प्रसीद प्रसीद दुर्गादेव्यै नमः॥

जब ध्यान हो जाये तब दस महाविद्या सायुज्य नवार्ण मंत्र का नित्य 11 माला जाप 21 दिन रात्रिकालीन समय मे उत्तर मुखी बैठकर करे,आसन वस्त्र लाल रंग के हो।फोटो मे दुर्गा सप्तशती मंत्र दे रहा हु उसका कॉपी बनवाकर यंत्र को स्थापित करे और मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से कर सकते हैं।इससे साधना के बाद नवार्ण मंत्र और दस महाविद्या मंत्रो मे पुर्ण सफलता प्राप्त होता है।









साथ मे काली तंत्र का एक विधान दे रहा हु जिसे आप इस साधना को करने के बाद करे तो महाकाली जी का आशिर्वाद विषेश रुप से प्राप्त होता है।


बाईस अक्षर का श्री दक्षिण काली मंत्र -

।। ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं स्वाहा ।।




विनियोग-

अस्य श्री दक्षिण मंत्रस्य भैरव ऋषी: |उस्णिक छंद : |
दक्षिण कलिका देवता |क्रीं बीजं |ह्रुं शक्ति : |क्रीं कीलकम |ममाभिस्ट सिध्यथर्ये जपे विनियोग : |




ऋषयादी न्यास -

ॐ भैरव ऋषये नमः शिरसी ||१ ||

उष्णिक छंद्से नमः मुखे ||२||

दक्षिण कलिका देवताये नमः ह्रदि ||३||

क्रीं बीजाय नमः गृहे ||४||

ह्रूं शक्तये नमः पादयो ||५||

क्रीं किलकाय नमः नाभौ ||६||

विनियोगाय नमः सर्वांगे ||७||




करन्यास -

ॐ क्राम आन्गुष्ठाभ्याम नमः ||१||

ॐ क्रीं तर्जनिभ्याम नमः ||२||

ॐ क्रूं मध्यमाभ्याम नमः ||३||

ॐ क्रें अनामिकभ्याम नमः ||४||

ॐ क्रों कनिष्ठकाभ्याम नमः ||५||

ॐ क्र: करतल कर्पुश्थाभ्याम नमः ||६||





ह्रद्यादी षडंग न्यास -

ॐ क्राम ह्रदयाय नमः ||१||

ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा ||२||

ॐ क्रुम शिखाये वष्ट ||३||

ॐ क्रेह कवचाय ह्रुं ||४||

ॐ क्रों नेत्रत्रयाय वौष्ट ||५||

ॐ क्र: अस्त्राय फट ||६||




वर्णमाला न्यास -

ॐ अं अँ ईं ऊं ऊं त्र लृम लृम नामोह्रदी ||१||

ॐ अं अई ओ औ अं अ: कं खं गे धं दक्षभुजे ||२||

ॐ दं चं छं जं झं गं थं ठं ड ढ नमो वामभूजे ||३||

ॐ ण तं थं दं धं नं पं फं लं भं नमो दक्ष पादे ||४||

ॐ मं यं रं लं वं शं षम सं हं क्षम नमो वामपादे ||५||




इस न्यास के बाद निचे दिए गए न्यास करे-

ॐ क्रीं नमः भ्रमरन्ध्रे ||१||

ॐ क्रीं नमः भ्रूमध्ये ||२||

ॐ क्रीं नमः ललाटे ||३||

ॐ ह्रीं नमः नाभो ||४||

ॐ ह्रीं नमः गृह्ये ||५||

ॐ ह्रुं नमः वक्ते ||६||

ॐ ह्रुं नमः गुवर्गे ||७||



ध्यान मंत्र -

।। ॐ स्धशीचछन्नसिर: कृपणंभयं हस्तेवरम बिभ्रती धोरास्याम सिर्शाम स्त्रजा सुरुचिरामुन्मुक्त केशावलिम || स्रुकास्रुक प्रव्हाम स्मशान निल्याम श्रुतयो: रावालंकृति श्रुतयो: सवालंकृतिम श्यामांगी कृतमेख्लाम शवकरेदेवीभजे कालिकाम ।।

इस तरह से ध्यान करके मंत्र सिद्धि के लिए जाप करे।





आदेश.....