21 Dec 2015

हनुमंत विद्या,भाग-2.

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।


यह हमेशा याद रखें कि हनुमत सिद्ध के लिये राम उपासना की बहुत आवश्यकता है। क्योंकि भगवान राम के अयोध्या से साकेत को प्रणाम करते है समय हनुमान को आदेश दिया था कि तुम मेरी कथा का प्रचार-प्रसार करते हुये मेरे भक्तों के समीप रहो, कल्पपर्यन्त पृथ्वी पर निवास करते रहो। अतः जहाँ भी रामकथा होती है वहाँ के समीप रहो, कल्पपर्यन्त पृथ्वी पर निवास करते रहो। अतः जहाँ भी रामकथा होती है वहां अपने लूक्ष्म शरीर से उपस्थित रहते हैं। तुलसी बाबा ने इनके सान्निध्य से ही रामकथा मानस पूरी की। साधक और साधिकाओं, प्रेमी-प्रेमिकाओं को एक विचित्र और अनुभव सत्य बात यह है कि जो भी व्यक्ति इन क्षेत्रों में आगे बढ़ते हैं वह माता अंजनी की कृपा से ही। हनुमान जी की माता परम तपश्विनी परम, पतिव्रतास पति की आज्ञा से ही वायु पुत्र पवनपुत्र का जन्म हुआ था। इनके मंत्र-तन्त्र अलग से गोपनीय रूप से उपलब्ध हैं।


हनुमान जी के रौद्र रूप जिससे लंका दहन किया, जिससे सीता की खोज की तथा वटुक रूप जिससे सुग्रीव की राम से मित्रता कराई, हनुमान का वैद्यक रूप जिससे संजीवन लाकर लक्ष्मण जी जीवित हुये। इनका भी ध्यान करना चाहिये।
इन्होंने अपने गुरु सूर्य से वेद रहस्य अर्थशास्त्र दर्शन, औषधि शास्त्र, ज्योतिष आदि की शिक्षा ग्रहण की। प्रस्तुत पुस्तक में ज्योतिष का सबसे सरल व आसान तरीका न जिसमें गणना की आवश्यकता है न अन्य कुछ केवल श्री राम स्मरण तथा हनुमान वन्दना के साथ केवल श्रद्धा तब देखिये साक्षात् हनुमान जी का चमत्कार। अहंकार को नष्ट करने तथा मित्रता कराने में श्री गुरु हनुमान ही सहायक हैं। पंचमुख-एकादश मुख हनुमान के मंत्र गरुड़ के चमत्कारी मंत्र भी हैं।


हनुमान जी पूर्ण ब्रह्म ही हैं, इस बात में कोई शंका किसी को भी उत्पन्न नहीं होनी चाहिये। हनुमान जी इस बात के प्रतीक हैं कि कोई भी वस्तु छोटी नहीं हो सकती, प्रत्येक जीव-जन्तु मानव-पशु का भी पूर्ण अस्तित्व है, लंका विध्वंस में हनुमान द्वारा किसी भी संकट में किसी भी तंत्र के षट्यकर्म में हनुमत् उपासना मंत्र आदि हैं। ‘‘ध्यावहुँ बिपद बिदारन सुवन समीर।’’
हनुमान जी में पूज्यपिता पवनदेव के 49 स्वरूपों का, त्रिदेवों का, आद्याशक्ति, महाशक्तियों, मूल प्रकृति, पंच महाभूत, ग्रह नक्षत्र, देवी-देवता, गंधर्व-यक्ष-किन्नर, अप्सराओं, दैत्य-दानव-राक्षसों, नाग, ऋषि-मुनि, वेदशास्त्र, कला विधाओं, सब जीव वृक्ष वनस्पतियों का अंश समावेश हैं। इनकी पूजा के साथ माता अन्नपूर्णा एवं वाममार्गी साधक भगवती छिन्नमस्ता की भी उपासना करनी चाहिये। अर्द्धनारीश्वर का अवतार होने के कारण सांख्य के अनुसार पूर्णरूपेण है।




साधना विधी:-

यह अद्वितीय साधना करना जिवन का भाग्य समजे क्युके जिनमें ग्यारह रुद्रो की शक्ति है उनका साधना महाकाली बीज मंत्रो से सम्बंधित हो तो वह साधना पुर्ण सिद्धिदात्री होती है।साधना मंगलवार रात्रि मे 9 बजे के बाद करना है। वस्त्र और आसन लाल रंग के हो,दिशा उत्तर होना चाहिये। साधना ग्यारह दिवसीय है और नित्य गेहूँ के आटे से बना रोटला भोग मे लगाना है। रोटले पर थोड़ा घी लागाये और थोड़ा शक्कर उसपर रखें। साधना के तुरंत बाद भोग को प्रसाद स्वरूप मे स्वयं ग्रहण करें। तिनो मंत्र का जाप भी करे,जो यहा दिये है ताकी आपको परेशानी ना हो ।साधना प्रती कोइ भी प्रश्न हो तो आप मुझे पुछ सकते है।



गुरुमंत्र-

। गुं गुरुभ्यो नमः ।

एक माला जाप करें।


गणपती मंत्र-

। गं गणपतये नमः ।

एक माला जाप करें।


नवार्ण मंत्र-

। ऐं हीं क्लीं चामुण्डाये विच्चै।

इस मंत्र का 3 माला जाप करें।


यह तिनो मंत्र के जाप करने के बाद "महाकाली युत्क हनुमान मंत्र" का 108 बार जाप करें। मंत्र फोटो मे दिया हुआ है। साधना से कई लाभ प्राप्त होते जिन्हे मै यहा नही दे रहा हु इसलिये आप स्वयं साधना करे और आपके अनुभव मुझे बताये क्युके इस साधना से अनुभुतीया तो अवश्य होता है।

वैसे तो ये साक्षात् रुद्रावतार होने के नाते श्रीरामोपासना के परमाचार्य है। इनकी कृपा बिना श्रीराम की उपासना में किसी को अन्तरंगता प्राप्त नहीं हो सकती। राम-भक्ति के तो यो भण्डारी एवं संरक्षक ठहरे।

गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के कथनानुसार इनकी सेवा में कोई विशेष प्रयास करना नहीं पड़ता। ये गुणगान करने नमस्कार करने, स्मरण करने तथा नाम जपने मात्र से प्रसन्न होकर सेवकों का अभीष्ट हितसाधक सम्पन्न करने को सदैव तत्पर रहते हैं।


‘जिनके, हृदय में इनकी विकराल मूर्ति निवास कर लेती है, स्वप्न में भी उसकी छाया के पास भी संताप-पाप निकट नहीं आ सकते।’





आदेश.....