3 Nov 2015

माँ जगदंम्बा-शीघ्र इच्छापुर्ती साधना.

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेष जन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभांददासि।

दारिद्रय दुःख भय हारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकार करणाय सदाऽऽर्द्र चित्ता।।

तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीम् कर्म फलेषु जुष्टाम् ।
दुर्गां देवीं शरणं प्रपद्याम् महेऽसुरान्नाशयित्र्यै ते नमः ।।

शब्दात्मिका सुविमलर्ग्यजुषां निधान
मुदगीथरम्य पदपाठवतां च साम्नाम।

देवी त्रयी भगवती भव भावनाय
वार्ता च सर्वजगतां परमार्तिहन्त्री।।


दुर्गा माँ की कृपा जिस व्यक्ति को कठोर साधना करने पर भी मिल जाय, उसे अपने जीवन को धन्य समझना चाहिए। ऐसा व्यक्ति फिर न सामान्य मानव रह जाता है और न समान्य प्राणी, यह तो इहलोक, परलोक तथा लोकालोकों में उत्पन्न समस्य प्राणियों में श्रेष्ठ आद्याशक्ति, पराशक्ति का वरद पुत्र एवं परमात्माशक्ति सम्पन्न माँ का इकलौता बेटा बनकर सम्पूर्ण सृष्टि में ही नहीं वरन् समस्त ब्रह्माण्ड में अपना यशोगान करवाता है। उसे अपना यशोगान करवाना नहीं होता बल्कि देव दानव सभी उसका यशोगान स्वयं करते हैं।

दुर्गा मां की रंच मात्र कृपा पाकर न जाने कितनों ने अपना जीवन सफल कर लिया आज उन्हीं की कृपा के परिणामस्वरूप स्वयं पूजित हो रहे है माँ के बेटों को
किसी प्रकार से कोई कठिनाई कभी नहीं होती है उनके अन्दर माँ ऐसी अपार शक्ति भर देती हैं। कि बालक को किसी भी देशकाल, किसी भी युगधर्म, किसी भी लोक परलोक, में तीनों कालों में किसी
प्रकार का भय, कष्ट, विपदा, और अभावों का सामना नहीं करना पड़ता। वह सर्वज्ञ एवं स्वयं नियंता बनकर सर्वश्रेष्ठ हो जाता है और फिर मां की सत्ता, मां की सेवा-भक्ति के शिवा उसके समक्ष कोई और लक्ष्य नहीं रहता । तब भुक्ति-मुक्ति की चाह भी समाप्त हो जाती है। बेटा और माँ-माँ और बेटा यही भाव मन मानस में अपना स्थायित्व
पा लेता है और तब-बेटा जो बुलाये मां को आना पड़ेगा-वाली बात स्वयं पैदा हो जाती है इतना ही नहीं माँ अपना सारा काम छोड़कर अपने बेटे के पास दौड़ी चली आती है- बेटा बुलाए झट दौड़ी चली आए माँ।




उपासना क्या? क्यों? कैसे?

उपासना का अर्थ है। उपवेशन करना अर्थात परमेश्वर के करीब बैठना हम जब अपनी भावनाओं को शुद्ध पवित्र कर पूर्ण श्रद्धा के साथ अपने ब्रह्म, ईश्वर, गाड खुदा के पास आसीन होते हैं, बैठते है तो वह
उपासना कहलाती है। जब हम ईश्वर का ध्यान करते है उसकी स्तुति करते हैं, उसकी प्रार्थना करते हैं तब हम उसके समीप हो जाते हैं, किन्तु जब स्तुति नहीं करते, प्रार्थना नहीं करते तो उस ईश्वर से दूर हो जाते हैं। ईश्वर की समीपता प्राप्त करने के लिए जो क्रिया हम करते है वह उपासना होती है। ‘कुलार्णव तंत्र’
नामक ग्रन्थ में उपासना की परिभाषा निम्न प्रकार से दी गयी है-


"कर्मणा, मनसा, वाचा, सर्वावस्थास्सु सर्वदा।
समीप सेवा विधिना उपास्तीरिति कथ्यते।"


अर्थात कर्म द्वारा मन द्वारा, वचन द्वारा समस्त इंन्द्रियों द्वारा सदैव ईश्वर (ब्रह्म) के पास रहकर निरंतर सभी प्रकार से सेवा करना ही उपासना है,वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में, तथा तान्त्रिक ग्रन्थों में उपासना के विभिन्न स्वरूपों तथा तत्वों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। वह सब वर्णन करना अपने विचारों को पाठकों तक अपने पहुँचाने में कठिनता लाना यहाँ हम यह बात स्पष्ट कर देना चाहते हैं, कि उपासना का तात्विक ज्ञान न देकर व्यवहारिक ज्ञान पर प्रकाश डालना आवश्यक है ताकि पाठक हमारे विचारों को भली-भाँति समझ
सकें। ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करना ही उपासना है, यही सबको समझाना चाहिए अब प्रश्न यह उठता है कि ईश्वर के समीप होने के लिए उपासना क्यों ? कैसी ? की जाय।

इस ब्रह्माण्ड में कोई भी ऐसा नहीं है जो कामना रहित हो, भले ही वह देवलोक का निवासी देवता हो या राक्षस हो अथवा मृत्यु लोक में रहने वाला प्राणी जगत में रहने वाले हम मानव ही नहीं कीट,पतंगे, तथा पशु-पक्षी भी कामनाओं से युक्त होते हैं। बिना कामना तो कोई प्राणी है ही नहीं। मानव समस्त प्राणियों में श्रेष्ठ है। इसलिए उसकी कामनाएँ अन्य प्राणियों की अपेक्षा अधिक होंगी, यह सबकों भली प्रकार ज्ञात है। स्पष्ट है कि कोई भी मनुष्य जो इच्छारहित कामना रहित होकर जीवन यापन कर रहा हो यदि कोई व्यक्ति
अपने को कामना रहित कहता है। तो वह असत्य भाषण करता है। क्योंकि जब व्यक्ति के अन्दर कोई इच्छा, कोई कामनाएं नहीं रह जाएगी तो उसका जीवन नीरस एवं व्यर्थ हो जाएगा। ऐसी स्थिति में
भी दो कामनाएं उभर कर सामने आ आएगी. पहली यह कि यदि कोई कामना नहीं है तो ईश्वर प्रदत्त इस जीवन को जीते रहने की कामना है। दूसरी यह कि यदि कोई कामनाएं नहीं रह गयी तो मरने की
तमन्ना है–कामना है क्योंकि जीवन नीरस हो जाता है।

जैसे जीवन मे धागे पर विश्वास रखकर पतंग को उचाई पर लेकर जा सकते है।
वैसे ही जीवन मे प्रामाणिक मंत्रो को
विश्वास और श्रद्धा के साथ जाप किया जाये तो उन्नति आसानी से होती ही है। परंतु हमें जो भी चाहिए क्या वह एक ही एक ही मंत्र से मिल सकता है ?
यह सवाल मन मे आते जाते रहते है ,क्या यह संभव है?

हा साधक बंधुओ यह यह सम्भव है। जगत मे एक मंत्र जगदंबा साधना है । जिन के कृपा से सब कुछ सम्भव है,सबी इच्छा माँ पूर्ण करती है । सिर्फ जरुरत है माँ आशीर्वाद दे और उनकी निरंतर कृपा प्राप्त हो। हमे हमेशा कोशिश करते रहना चाहिए ताकि उन्नति होने मे कोई बाधा ना आये। नौकरी बाधा ,पढाई बाधा,ग्रह बाधा ,देवी देवता दर्शन मे आनेवाली बाधा ,प्रेम संबंध मे होने वाली बाधा,धन प्राप्ति की परेशानिया ऐसे बहोत सारी बाधाये और परेशानिया इस साधना से खत्म होती ही है, जीवन की पूर्णता जगदम्बा साधना ही है।




पूर्व या उत्तर दिशा के तरफ मुँह करे,आसन और वस्त्र पीले या लाल रंग के हो गुरु और गणेश पूजन अवश्य करिये फिर सर्वसिद्धिदायिनी मंत्र का एक माला जप करे और साथ मे जगदंबा मंत्र का ११ माला जाप रोज रात्रि मे ९ बजे बाद या
सुबह ५-७ बजे के समय मे करे माला लाल रंग की या स्फटिक की हो।

जप करने के बाद आप अपनी परेशानी या
कामना का उच्चारण करके एक पुष्प माँ के चित्र पर चढ़ाये यह साधना 11 दिन तक करनी है।





सर्वसिद्धिदायिनी मंत्र :-

॥ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं हूं फट स्वाहा ॥




जगदंबा मंत्र :-

॥ ॐ दूं दुर्गायै जगत प्रसूत्यै जगदम्बायै
नमः ॥






जो साधक ज्यादा दिन करना चाहता है वह कर सकता है,इस मंत्र का सव्वा लाख जप करने से माँ साधक को दर्शन देती है। पर यह साधक के विश्वास पर निर्भर है।
आप सबी का कल्याण हो......



आदेश आदेश आदेश…………