वैदिक साहित्य में उपासना का महत्त्वपूर्ण
स्थान है। हिन्दू धर्म के सभी मतावलम्बी-
वैष्णव, शैव, शाक्त तथा सनातन धर्मावलम्बी-उपासना का ही आश्रय ग्रहण
करते हैं। यह अनुभूत सत्य है कि मन्त्रों में शक्ति होती है। परन्तु मन्त्रों की क्रमबद्धता,
शुद्ध उच्चारण और प्रयोग का ज्ञान भी परम आवश्यक है। जिस प्रकार कई सुप्त
व्यक्तियों में से जिस व्यक्ति के नाम का
उच्चारण होता है, उसकी निद्रा भंग हो
जाती है, अन्य सोते रहते हैं उसी प्रकार
शुद्ध उच्चारण से ही मन्त्र प्रभावशाली
होते हैं और देवों को जाग्रत करते हैं।
क्रमबद्धता भी उपासना का महत्त्वपूर्ण
भाग है। दैनिक जीवन में हमारी दिनचर्या
में यदि कहीं व्यतिक्रम हो जाता है तो कितनी कठिनाई होती है, उसी प्रकार उपासना में भी व्यतिक्रम कठिनाई उत्पन्न कर सकता है। अतः उपासना-पद्धति में मंत्रों का शुद्ध उच्चारण तथा क्रमबद्ध प्रयोग करने से ही अर्थ चतुष्टय की प्राप्ति कर परम लक्ष्य-मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।
इस बार ब्लौग में प्रस्तुत है-शनि उपासना।
प्राक्कथन-
कम श्रम अधिक लाभ, भौतिक सुख-
सुविधाओं की प्राप्ति, ऐश्वर्य लाभ,दीर्घायु होने व स्वस्थ रहने, विघ्न-बाधाओं को नाश करने, गृह-शान्ति, कलह से मुक्ति,
ईश-भक्ति, कुटुम्ब-वृद्धि, योग्य संतान उत्पन्न होने, संघर्ष से मुक्ति जैसी इच्छाएं मानव मात्र की सदैव से रही है और वह निरन्तर इसके लिए प्रयत्नशील रहता है। हां, उक्ति प्राप्ति के जहां अनेकानेक साधन हैं, वहीं प्रभु-स्मरण, भगवद्-भक्ति, यन्त्र-मन्त्र भी एक सारभूत उपाय हैं।
आज का मानव, आज का समाज (मैं किसी
पर आक्षेप नहीं करता) अभक्ष्य या भक्षण कर कामाचारी होने, कामवासना की ओर
अधिक झुकने, श्रम के प्रति अनास्था, विवेक का अभाव, अन्याय अवगुणों के साथ-साथ अधिक-से-अधिक ऐश्वर्य-साधन जुटाने की भावना और गलत कार्यों के प्रति,व्यामोह में फंस कर आज मानव पदच्युत कर्तव्यों से भ्रष्ट हो गया है या होता जा रहा है। समीक्षा कम, आलोचना अधिक,धार्मिकता का अभाव, परमपिता परमात्मा के प्रति अनास्था, आलोचना अधिक बढ़ती जा रही है। जो थोड़ी-बहुत भक्ति, ईश्वरनिष्ठा या जहां आध्यात्मिकता शेष बची है वहीं धूर्तता, पाखण्ड, व्यर्थ प्रदर्शन, दम्भ व अन्याय दुष्प्रवृत्तियां बढ़ती जा रही हैं।
ऐसे ही समय में, भ्रष्टाचार की दुरुहवेला में,
परेशानी भरे वातावरण में, विषम परिस्थितियों में शनि उपासना आवश्यक ही नहीं, परमावश्यक है। इससे हमारे शक्ति और ब्रह्मचर्य की रक्षा, दास्यभाव,भक्तिभाव, शक्ति-सम्पन्नता, आयुर्बल वृद्ध,श्री की प्राप्ति, बुद्धि में सहायता मिलती है। कुछ भी कहने, विरोध करने, आलोचना करने के पूर्व स्वयं निष्ठापूर्वक उपासना करके देखें, यही मात्र कहूंगा।
जिस उपासना के द्वारा व्यक्ति अपने इष्ट
देव में तथा उसके गुणरूप, धर्मरूप, स्वरूप रूप,शक्तिरूप में तदाकारता, एकात्मकता
प्राप्त कर ले, यही उपासना है। जिनका
पक्ष शनि ले लें उसके लिए असंभव क्या है ! वह समाज में, राष्ट्र में अपना वर्चस्व सहज ही स्थापित कर लेता है। भला उसे कौन हरा सकता है ! स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का लाभ होता है, और जिसका शरीर और मस्तिष्क स्वस्थ हो उसके लिए असंभव क्या है ! उनकी भक्ति-शक्ति के आगे मद चूर-चूर हो जाता है। उनकी शरण पा लेने पर भला टेढ़ी नजर कौन कर सकता है ! शक्ति में, भक्ति में अग्रगण्य हैं श्री शनि। ज्ञानियों में ज्ञानी, विज्ञान के ज्ञाता शास्त्र कहता है। जो आत्मा सहित दसों वायुओं पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह योगी प्राण वायु को ब्रह्माण्ड में स्थापित कर सकने में समर्थ हो जाता है।
शाबर शनि मंत्र:-
llओम गुरूजी थावर वार।थावर आसन थरहरो। पॉंच तत्व की विद्या करो पॉंच तत्व का साधो करो विचार।तो गुरू पावूं थावर
वार शनिवार कश्यप गोत्र कृष्ण वर्ण तेईस
हजार जाप सोरठ देश पश्चिम स्थान धनुषाकार मंडल,तीन अंगुल़,मकर कुम्भ राशि के गुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे,पान फूल वासना सिंहासन धरे।तो इतरो काम थावर जी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll
अपने सामने साधना कक्ष मे सामान्य पुजन करे और मंत्र के शनिवार से रोज 8 दिन तक 33 बार जाप करने से भगवान शनि का अद्वितीय कृपा प्राप्त होगा.
आदेश......