4 Nov 2015

सर्वोन्नती प्राप्ती परशुराम साधना.

हर मनुष्य की कुछ मनोकामनाएं होती है। कुछ लोग इन मनोकामनाओं को बता देते हैं तो कुछ नहीं बताते। चाहते सभी हैं कि किसी भी तरह उनकी मनोकामना पूरी हो जाए। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। यदि आप चाहते हैं कि आपकी सोची हर मुराद पूरी हो जाए तो नीचे लिखे प्रयोग करें। इन टोटकों को करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगी।सभी चाहते हैं कि उसके जीवन में खुशहाली रहे और सुख-शांति बनी रहे पर हर व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं होता। जीवन में सुख और शांति का बना रहना काफी मुश्किल होता है। ऐसे समय में उसे अपना जीवन नरक लगने लगता है। यदि आपके साथ भी यही समस्या है तो आप नीचे लिखे साधारण उपायों को अपना कर अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं।

भगवान विष्णु के दशावतार में छठे अवतार भगवान परशुराम माने जाते हैं। क्रोध और दानशीलता में उनका कोई सानी नहीं है। शस्त्र और शास्त्र के ज्ञाता सिर्फ और सिर्फ भगवान परशुराम ही माने जाते हैं। भगवान शिव ने उन्हें मृत्युलोक के कल्याणार्थ परशु अस्त्र प्रदान किया जिससे वे परशुराम
कहलाए। वे परम शिवभक्त थे। उन्होंने सहस्रार्जुन की इहलीला समाप्त कर दी। प्रायश्चित के लिए सभी तीर्थों में तपस्या की। गणेशजी को एकदंत करने वाले भी परशुराम थे। पृथ्वी को 17 बार क्षत्रियों से
विहीन करने वाले भगवान परशुराम ही
थे। उनकी दानशीलता ऐसी थी कि समस्त पृथ्वी ही ऋषि कश्यप को दान कर दी।

उनके शिष्यत्व का लाभ दानवीर कर्ण ही ले पाए जिसे उन्होंने ब्रह्मास्त्र की दीक्षा ‍दी। भगवान परशुराम की सेवा-साधना करने वाले भक्त भूमि, धन, ज्ञान, अभीष्ट
सिद्धि, दारिद्रय से मुक्ति, शत्रु नाश, संतान प्राप्ति, विवाह, वर्षा, वाक् सिद्धि इत्यादि पाते हैं। महामारी से रक्षा कर सकते हैं l किसी भी तृतीया के दिन सर्वकामना की सिद्धि हेतु भगवान परशुराम के मंत्र का जाप करना चाहिए।

साधना विधी:साधना मे सर्वप्रथम गणेश/गुरू पुजन करे,सामने भगवान परशुराम जी का चित्र स्थापित करके पुष्प चढाते हुए अपनी कामना बोलिये साथ मे रुद्राक्ष माला से शिव मंत्र का एक माला जाप करे "ओम ह्रौं अस्त्रप्रदाय शिवायै नम" l साधना हेतु वस्त्र-आसन सफेद/पिले रंग के हो,दिशा पूर्व/उत्तर हो,दीपक घी का हो,धूप भी जलाये और दिए हुए मंत्र का 11 माला जाप सुबहा के समय मे 11 दिनो तक अवश्य करे तो पूर्ण लाभ संभव है l





रोज साधना मे अवश्य भगवान की स्तुती करिये.

भगवान परशुराम स्तुति:-

प्रात: काले तु उत्थाय, स्मरामि रेणुका
सुतम् जितेन्द्रयं वेद वेतारं दुष्ट् संहारकारकम्। पित्राज्ञा पालकं चैव, कार्त वीये मदा पहम्। हैहयानां कुलान्तकं, शत वारम् नमाभ्याहम्। विप्राय भृगुनाथाय, चिर जीवाय वाचसा। पुरत: चतुर्वेदाय, नम: धनुर्धराय च। परशुरामाय रामाय, जामदग्न्याय तापसे। ब्रह्म देवाय देवाय, रेणुका सूनवे नम:। दारिद्र दु:खहन्तारं दातारं सुख सम्पदाम्। परशुरामं महावीरं, भूयो भूयो नमाभ्याहम्।




निम्न श्लोक का भी 11 बार पाठ करे-

भृगुदेव कुलं भानुं, सहस्रबाहुर्मर्दनम्।
रेणुका नयनानंदं, परशुं वन्दे विप्रधनम्।।



परशुराम मंत्र:-

ll ओम रां रां परशुरामाय सर्व सिद्धी प्रदाय नम: ll

om raam raam parashuraamaay sarva siddhi pradaay namah


मंत्र जाप के बाद एक बार श्री परशुराम चालिसा का पाठ अवश्य करे.


दोहा

श्री गुरु चरण सरोज छवि, निज मन मन्दिर
धारि।
सुमरि गजानन शारदा, गहि आशिष
त्रिपुरारि।।
बुद्धिहीन जन जानिये, अवगुणों का
भण्डार।
बरणौं परशुराम सुयश, निज मति के
अनुसार।।

चौपाई
जय प्रभु परशुराम सुख सागर, जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर।
भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा, क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा।
जमदग्नी सुत रेणुका जाया, तेज प्रताप सकल जग छाया।
मास बैसाख सित पच्छ उदारा, तृतीया
पुनर्वसु मनुहारा।
प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा, तिथि
प्रदोष व्यापि सुखधामा।
तब ऋषि कुटीर रुदन शिशु कीन्हा, रेणुका
कोखि जनम हरि लीन्हा।
निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े, मिथुन राशि
राहु सुख गाढ़े।
तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा, जमदग्नी घर
ब्रह्म अवतारा।
धरा राम शिशु पावन नामा, नाम जपत लग लह विश्रामा।
भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर, कांधे मूंज
जनेऊ मनहर।
मंजु मेखला कठि मृगछाला, रुद्र माला बर
वक्ष विशाला।
पीत बसन सुन्दर तुन सोहें, कंध तुरीण धनुष मन मोहें।
वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता, क्रोध रूप
तुम जग विख्याता।
दायें हाथ श्रीपरसु उठावा, वेद-संहिता
बायें सुहावा।
विद्यावान गुण ज्ञान अपारा, शास्त्र-
शस्त्र दोउ पर अधिकारा।
भुवन चारिदस अरु नवखंडा, चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा।
एक बार गणपति के संगा, जूझे भृगुकुल कमल पतंगा।
दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा, एक दन्द
गणपति भयो नामा।
कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला, सहस्रबाहु दुर्जन
विकराला।
सुरगऊ लखि जमदग्नी पाही, रहिहहुं निज
घर ठानि मन माहीं।
मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई, भयो
पराजित जगत हंसाई।
तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी, रिपुता मुनि
सौं अतिसय बाढ़ी।
ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना, निन्ह पर
शक्तिघात नृप कीन्हा।
लगत शक्ति जमदग्नी निपाता, मनहुं
क्षत्रिकुल बाम विधाता।
पितु-बध मातु-रुदन सुनि भारा, भा अति
क्रोध मन शोक अपारा।
कर गहि तीक्षण परा कराला, दुष्ट हनन
कीन्हेउ तत्काला।
क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा, पितु-
बध प्रतिशोध सुत लीन्हा।
इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी, छीन
धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी।
जुग त्रेता कर चरित सुहाई, शिव-धनु भंग
कीन्ह रघुराई।
गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना, तब समूल नाश ताहि ठाना।
कर जोरि तब राम रघुराई, विनय कीन्ही
पुनि शक्ति दिखाई।
भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता, भये शिष्य
द्वापर महँ अनन्ता।
शस्त्र विद्या देह सुयश कमावा, गुरु प्रताप
दिगन्त फिरावा।
चारों युग तव महिमा गाई, सुर मुनि मनुज
दनुज समुदाई।
दे कश्यप सों संपदा भाई, तप कीन्हा महेन्द्र
गिरि जाई।
अब लौं लीन समाधि नाथा, सकल लोक
नावइ नित माथा।
चारों वर्ण एक सम जाना, समदर्शी प्रभु तुम
भगवाना।
लहहिं चारि फल शरण तुम्हारी, देव दनुज नर भूप भिखारी।
जो यह पढ़ै श्री परशु चालीसा, तिन्ह
अनुकूल सदा गौरीसा।
पूर्णेन्दु निसि बासर स्वामी, बसहुं हृदय प्रभु
अन्तरयामी।

दोहा
परशुराम को चारु चरित, मेटत सकल
अज्ञान।
शरण पड़े को देत प्रभु, सदा सुयश सम्मान।।





आदेश......