7 Nov 2015

मंगल शाबर मंत्र.

मंगल ग्रह की उत्पत्ति का पौराणिक वृत्यांत स्कंद पुराण के अवंतिका खण्ड में आता है की एक समय उज्जयिनी पुरी में अंधक नाम से प्रसिद्ध दैत्य राज्य करता था | उसके महापराक्रमी पुत्र का नाम कनक दानव था | एक बार उस महाशक्तिशाली वीर ने युध्य के लिए इन्द्र को ललकारा तब इन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसके साथ युध्य करके उसे मार गिराया |दोष एक ज्योतिषीय स्थिति है जो तब होता है यदि वैदिक ज्योतिष के जन्मांग चक्र के 1, 4, 7, 8 और 12वे घर में मंगल हो | उस दानव को मारकर वे अंधकासुर के भय से भगवान शंकर को ढूंढते हुए कैलाश पर्वत पर चले गये | वह देवताओं के स्वामी इन्द्र ने भगवान चंद्रशेखर के दर्शन करके अपनी अवस्था उन्हें बतायी और प्रार्थना की, भगवन ! मुझे अंधकासुर से अभय दीजिये | इन्द्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने अभय देते हुए कहा - इन्द्र तुम अंधकासुर से भय न करो | इसके पश्च्यात भगवान शिव ने अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते - लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद
पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के सामान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल उत्पन्न हुए | अंगारक , रक्ताक्ष तथा महादेव पुत्र, इन नामो से स्तुति कर ब्राह्मणों ने उन्हें ग्रहों के
मध्य प्रतिष्ठित किया, तत्पश्चात उसी स्थान पर ब्रम्हाजी ने मंगलेश्वर नामक उत्तम शिवलिंग की स्थापना की | वर्तमान में यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो उज्जैन में स्थित है | मंगल देव जब बालक रूप में उत्पन्न हुए तब उनका तेज़ बहुत ज्यादा था, जिससे देवता एवं मनुष्य गण पीड़ित होने लगे, तब भगवान शिव ने उन्हें गोद में उठाया और उनसे बोले, हे बालक ! तुम मेरी ही राजस प्रकृति से उत्पन्न हुए हो, लोगो को त्रास मत दो, मै तुम्हे ग्रहों के सेनापति का पद प्रदान करता हूँ | तुम अवंतिका नगरी में निवास करो और लोगो का मंगल करो !

ज्योतिष के अनुसार मंगल की चार भुजाएँ है | इनके शारीर के रोए लाल है तथा इनके हाथो में अभय मुद्रा, त्रिशूल, गदा और वर मुद्रा है | इन्होने लाल माला और लाल वस्त्र धारण कर रखे है | इनके मस्तक पर स्वर्ण मुकुट है तथा ये मेष ( मेंढा ) के वहां पर स्वर है | ज्योतिष में मंगल को क्रूर ग्रह माना गया है जिसका अर्थ अग्नि के समान लाल है, इसलिए इसे
अंगारक भी कहते है | वे स्वतंत्र प्रकृति के तथा अनुशासन प्रिय है | इस ग्रह से प्रभावित जातक सेनाध्यक्ष या राजदूत आदि होते है या उच्च पदों पर कार्य करते है | उनमे नेतृत्व शक्ति विशेष होती है | वे निडर होते है, किसी भी प्रकार का जोखिम ले सकते है | खिलाडी, वायुसेना, थलसेना, नौसेना के अध्यक्ष तथा उच्च पदों पर आसीन राजनीतिज्ञ मंगल से प्रभावित माने जाते है | मंगल को भौम, कुज आदि नामो से भी जाना जाता है | नवग्रहों में मंगल को सेनापति की संज्ञा दी गई है | शारीरिक
तौर पर मंगल प्रभावित जातक स्वस्थ और माध्यम लम्बे कद के होते है | कमर पतली, छाती चौड़ी, बाल घुंगराले और आँखे लाल होती है | उनके चेहरे पर तेज होता है | मंगल मेष एवं वृशिक राशी के स्वामी है | मृगशिरा, चित्रा और घनिष्ठा नक्षत्रो का स्वामित्व भी मंगल को ही प्राप्त है | मंगल तृतीय एवं षष्ठ भाव के कारक ग्रह है | कर्क एवं सिंह लग्न की कुंडली में ऐ विशेष कारक माने जाते है एवं मिथुन और कन्या लग्न की कुंडली में यह विशेष अकारक ग्रह बन जाते है | मंगल मकर राशि में उच्च एवं कर्क राशि में नीच के होते है | जन्म-कुंडली में मंगल जिस भाव में स्थित होते है, उस भाव से सम्बंधित कार्य को अपनी स्थिति के अनुसार सुदृढ़ करते है | शुभ मंगल, मंगलकारी और अशुभ मंगल, अमंगलकारी कार्य करवाते है | मंगल शक्ति, साहस, क्रोध, युद्ध, दुर्घटना, षड़यंत्र, बीमारियों, विवाद, भूमि सम्बन्धी आदि कार्यो का कारक ग्रह है | मंगल तांबे, खनिज पदार्थो , सोने, मूंगे, हथियार, भूमि आदि का प्रतिनिधित्व करता है | मंगल शिराओं व धमनियों की टूट-फूट, अस्थि मज्जा के रोग, रक्त्रस्राव, गर्भपात, मासिक धर्म में अनियमितता, सुजाक गठिया
और दुर्घटना तथा जलना का प्रतिक है | अशुभ मंगल अमंगलकारी हो जाता है | जिसके प्रभाव से जातक आतंकवादी, दुराचारी, षड्यंत्रकारी और विद्रोही बनता है | मंगल की क्रूरता के कारण ही वर-वधु
की कुंडली में मंगल का मिलान आवश्यक
होता है | दांपत्य जीवन सुखमय हो इसके लिए वर -वधु दोनों की कुंडली में मंगल ग्रह
की स्थिति देखकर मिलान किया जाना चाहिए एवं मंगल शांति अवश्य करवाना चाहिये | मंगल ग्रह की शांति के लिए शिव उपासना एवं मूंगा रत्ना धारण करने का भी विधान है |

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मंगलनाथ मंत्र:-

ll ओम गुरूजी मंगलवार मन कर बन्दा,जन्ममरण का कट जावे फन्दा।जन्म मरण का भागे कार।तो गुरू पावूं मंगलवार। मंगलवार भारद्वाज गोत्र,रक्त वर्ण दस हजार जाप अवन्तिदेश।दक्षिण स्थान त्रिकोण मंडल तीन अंगुल,वृश्चिक
मेष राशि के गुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे।पान फूल वासना सिंहासन धरै।तो इतरो काम मंगलवार जी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll







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