28 Dec 2019

मंगल दोष सम्पूर्ण विश्लेषण.



मांगलिक दोष क्या होता है और कैसे ग्रह इस दोष को समाप्त करते हैं?

मंगल दोष जो कि ना केवल भारत में बल्कि अब विदेशों में भी लोग इसे मान ने लगे हैं आज हम इसका पूर्ण रूप से विश्लेषण कर रहे हैं कि कब दोष होता है कब दोष समाप्त होता है। 'मांगलिक' यह शब्द सुनते ही विवाह का लड्डू किरकिरा नज़र आने लगता है। जिस के साथ विवाह होना है यदि उसकी कुंडली में यह दशा मौजूद हो तो वह जीवनसाथी नहीं जीवनघाती लगने लगता है।

लेकिन बहुत बार जैसा ऊपरी तौर पर नज़र आता है वैसा असल में नहीं होता। ज्योतिषशास्त्री भी कहते हैं कि सिर्फ मांगलिक दोष के कारक भाव में मंगल के होने से ही मांगलिक दोष प्रभावी नहीं हो जाता बल्कि उसे घातक अन्य परिस्थितियां भी बनाती हैं। यह हानिकारक तभी होता है जब मंगल निकृष्ट राशि का व पापी भाव का हो। कहने का तात्पर्य है कि मांगलिक मात्र कुंडली का दोष नहीं है बल्कि यह कुछ परिस्थितियों में विशेष शुभ योग भी बन जाता है।

मंगल क्या होता है?

सर्वार्थ चिन्तामणि, चमत्कार चिन्तामणि, देवकेरलम्, अगस्त्य संहिता, भावदीपिका जैसे अनेक ज्योतिष ग्रन्थों में मंगल के बारे में एक प्रशस्त श्लोक मिलता है।

लग्ने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे।
भार्याभर्तृविनाशाय, भर्तुश्च स्त्रीविनाशनम्।।

अर्थात् जन्म कुण्डली के लग्न स्थान से प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुण्डली मंगलीक कहलाती है। पुरुष जातक की कुण्डली में यह स्थिति हो तो वह कुण्डली 'मौलिया मंगल' वाली कुण्डली कहलाती है तथा स्त्री जातक की कुण्डली में उपरोक्त ग्रह-स्थिति को 'चुनरी मंगल' वाली कुण्डली कहते हैं। इस श्लोक के अनुसार जिस पुरुष की कुण्डली में 'मौलिया मंगल' हो उसे 'चुनरी मंगल' वाली स्त्री के साथ विवाह करना चाहिए अन्यथा पति या पत्नी दोनों में से एक की मृत्यु हो जाती है।

यह श्लोक कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण लगता है परन्तु कई बार इसकी अकाट्य सत्यता नव दम्पत्ति के वैवाहिक जीवन पर अमिट बदनुमा दाग लगाकर छोड़ जाती है। उस समय हमारे पास पश्चा ताप के सिवा हमारे पास कुछ नहीं रहता। ज्योतिष सूचनाओं व सम्भावनाओं का शास्त्र है। इसका सही समय पर जो उपयोग कर लेता है वह धन्य हो जाता है और सोचता है वह सोचता ही रह जाता है, उस समय सिवाय पछतावे के कुछ शेष नहीं रहता।


क्या चन्द्रमा से भी मंगल देखना चाहिए?

बहुत जगह यह प्रश्न (विवाद) उठ खड़ा होता है कि क्या लग्न कुण्डली की तरह 'चन्द्र कुण्डली' से भी मंगल का विचार करना चाहिए। क्योंकि उपरोक्त प्रसिद्ध श्लोक में लग्ने शब्द दिया हुआ है यहां चन्द्रमा का उल्लेख नहीं है। इस शंका के समाधान हेतु हमें परवर्ती दो सूत्र मिलते हैं।


लग्नेन्दुभ्यां विचारणीयम्।

अर्थात् जन्म लग्न से एवं जन्म के चन्द्रमा दोनों से मंगल की स्थिति पर विचार करना चाहिए और भी कहा है-यदि जन्म चक्र एवं जन्म समय का ज्ञान न भी हो तो नाम राशि से जन्म तारीख के ग्रहों को स्थापित करके अर्थात् चन्द्र कुंडली बनाकर मंगल की स्थिति पर विचार किया जा सकता है। इस बारे में स्पष्ट वचन मिलता है।


अज्ञातजन्मनां नृणां, नामभे परिकल्पना।
तेनैव चिन्तयेत्सर्व, राशिकूटादि जन्मवत ।।

परन्तु यदि एक जातक का जन्म चक्र मौजूद हो और दूसरे का न हो तो दोनों की परिकल्पना भी नाम राशि से ही करनी चाहिए। एक का जन्म से, दूसरे का नाम से मिलान नहीं करना चाहिए।

जन्मभं जन्मधिषण्येन, नामधिषण्येन नामभम्, व्यत्ययेन यदायोज्यं, दम्पत्योनिर्धनं ध्रुवम्।

अत: आज के युग में तात्कालिक समय में भी मंगलीक दोष की गणना संभव है। भौम पंचक दोष किसे कहते हैं? क्या शनि, राहु व अन्य क्रूर ग्रहों के कारण कुण्डली मंगलीक कहलाती है?

चन्द्राद् व्ययाष्टमे मदसुखे राहुः कुजार्की तथा।
कन्याचेद् वरनाशकृत वरवधूहानिः ध्रुवं जायते।।

मंगल, शनि, राहु, केतु, सूर्य ये पांच क्रूर होते हैं अतः उपरोक्त स्थानों में इनकी स्थिति व सप्तमेश की ६,८,१२ वें घर में स्थिति भी मंगलीक दोष को उत्पन्न करती है। यह भौम पंचक दोष कहलाता है।
द्वितीय भाव भी उपरोक्त ग्रहों से दूषित हो तो भी उसके दोष शमनादि पर विचार अभीष्ट है। विवाहार्थ द्रष्टव्य भावों में दूसरा, १२वां भाव का विशेष स्थान है। दूसरा कुटुम्ब वृद्धि से सम्बन्धित है. १२वां भाव शय्या सुख से। चतुर्थ भाव में मंगल, घर का सुख नष्ट करता है। सप्तम भाव जीवनसाथी का स्थान है, वहां पत्नी व पति के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है। के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है। के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अत: वहां रोगोत्पति की संभावना है।

१. लग्न में मंगल अपनी दृष्टि से १,४,७,८ भावों को प्रभावित करेगा। यदि दुष्ट है तो शरीर व गुप्तांग को बिगाड़ेगा। रति सुख में कमी करेगा। दाम्पत्य सुख बिगाड़ेगा।

२. इसी तरह सप्तमस्थ मंगल, पति, पिता,शरीर और कुटुम्ब सौख्य को प्रभावित करेगा। सप्तम में मंगल पत्नी के सुख को नष्ट करता है जब गृहणी (घर वाली) ही न रहे तो घर कैसा?

३. चतुर्थस्थ मंगल-सौख्य पति, पिता और लाभ को प्रभावित करेगा। चतुर्थ में मंगल घर का सुख नष्ट करता है।

४. लिंगमूल से गुदावधि अष्टम भाव होता है। अष्टमस्थ मंगल इन्द्रिय सुख, लाभ, आयु को व भाई बहनों को गलत ढंग से प्रभावित करेगा।

५. द्वादश भाव शयन सुख कहलाता है। शय्या का परमसुख कान्ता हैं। बारहवें मंगल शयन सुख की हानि करता है। धनस्थ मंगल-कुटुम्ब संतान, इन्द्रिय सुख, आवक व भाग्य को, एकमत से पिता को प्रभावित करेगा।

अत: इन स्थानों में मंगल की एवं अन्य क्रूर ग्रहों की स्थिति नेष्ट मानी गई है। खासकर अष्टमस्थ ग्रहों नूनं न स्त्रियां शोभना मतः (स्त्री जातक) अत: अष्टम और सप्तमस्थ मंगल का दोष तो बहुत प्रभावी है।
स्त्रियों की कामवासना का मंगल से विशेष संबंध है। यह रज है। मासिक धर्म की गड़बड़ियां प्रायः इसी से दूषित होती है। पुरुष की कामवासना का संबंध शुक्र (वीर्य) से है। मंगल रक्तवर्णीय है और शुक्र श्वेतवर्णीय है। इन दोनों के शुभ होने व समागम से ही संतान पुष्ट और वीर्यवान् होती है। अगर कुण्डली में किसी भी दृष्टि से मंगल व शुक्र का संबंध न हो तो संतानोत्पति दुष्कर है। विवाह का एक मुख्य लक्ष्य संतानोत्पति भी है। (ऋतु बराबर मंगल, रेतस् बराबर शुक्र) संतान के बिना स्त्री-पुरुष दोनों ही अपूर्ण व अधूरे रहते हैं।

ऋतु रेतो न पश्येत, रेतं न ऋतु स्तथा।
अप्रसूतो भवेज्जातः परिणीता बहुस्त्रियां।।

मंगल मकर में उच्च का होता है और शुक्र मीन में। संस्कृत में कामदेव का मकरध्वज नाम से संबोधित किया जाता है, और उसको मीन केतु भी कहा है जिसकी ध्वजा में मीन है। मीन व मकर दोनों जल के प्राणी हैं। कामदेव को भी जल तत्त्व प्रधान माना गया है। बसन्त पंचमी को प्रायः शुक्र जब अपनी मीन राशि में आता है तब इसका जन्म माना जाता है। फूलों में पराग का जन्म ही रजोदर्शन है। रजोदर्शन ही बसंत है जो कि जवानी का प्रतीक माना गया है।

कामदेव के पांच बाण हैं शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध। इन सबमें उस समय कन्या के कौमार्य की छटा निखरकर, बासन्ती बन जाती है जब कामोपभोग योग्य बनती है। मंगल रक्त विकास और रक्त की वृद्धि दोनों में सहायक है जैसी इसकी स्थिति हो। सप्तम भवन पति के कारण पत्नी, कामदेव व रतिक्रीड़ा आदि का विचार अत्यन्त होता है।

क्या द्वितीयस्थ मंगल को भी मंगल दोष में माना जाएगा?
जन्म कुण्डली में द्वितीय भाव दक्षिण नेत्र, धन, वाणी, वाक् चातुर्य एवं मारक स्थान का माना गया है। द्वितीय भावस्थ मंगल वाणी में दोष, कुटुम्ब में कलह कराता है। द्वितीय भाव में स्थिति मंगल की पूर्ण दृष्टि पंचम, अष्टम एवं नवम में भाव पर होती है। फलतः ऐसा मंगल सन्तति, स्वास्थ्य (आयु) एवं भाग्य में रुकावट डालता है कहा भी है।

भवेत्तस्य किं विद्यमाने कुटुम्बे, धने वा कुजे तस्य लब्धे धने किम्।
यथा त्रोटयेत् मर्कटः कण्ठहार पुनः सम्मुखं को भवेद्वादभग्नः।।


द्वितीय भाव में मंगल वाला कुटुम्बी क्या काम का?

क्योंकि उसके पास धन-वैभव होते हुए भी वह (जातक) अपने स्वयं का या कुटुम्ब का भला ठीक उसी तरह से नहीं कर सकता, जिस तरह से बन्दर अपने गले में पड़ी हुई बहुमूल्य मणियों के हार का सुख व उपयोग नहीं पहचान पाता? बन्दर तो उस मणिमाला को साधारण-सूत्र समझकर तोड़कर फेंक देगा। किसी को देगा भी नहीं। द्वितीय मंगल वाला व्यक्ति ठीक इसी प्रकार से प्रारब्ध से प्राप्त धन को नष्ट कर देता है तथा कुटुम्बीजनों से व्यर्थ का झगड़ा करता रहता है।
द्वितीय भावस्थ मंगल जीवन साथी के स्वास्थ्य को अव्यवस्थित करता है तथा परिजनों में विवाद उत्पन्न करता है। अतः द्वितीय स्थ मंगल वाले व्यक्ति से सावधानी अनिवार्य है। परन्तु मंगल दोष मेलापक में द्वितीयस्थ मंगल को स्थान नहीं दिया गया है, यह बात प्रबुद्ध पाठकों को भली-भांति जान लेनी चाहिए।
डबल व त्रिबल मंगली दोष क्या होता है? कैसे होता है?

प्राय: ज्योतिषी लोग कहते हैं कि यह कुण्डली तो डबल मांगलिक, त्रिबल मांगलिक है। मंगल डबल कैसे हो जाता है? यह कौन सी विधि (गणित) है? इसका समाधान इस प्रकार है।

१. जब किसी कुण्डली के 1/4/7/8 या 12वें भाव में मंगल हो तो वह कुण्डली मांगलिक कहलाती है। इसे हम (सिंगल) मांगलिक कह सकते हैं।

२. इन्हीं भावों में यदि मंगल अपनी नीच राशि में होकर बैठा हो तो मंगल द्विगुणित प्रभाव डालेगा तो ऐसे में वह कुण्डली डबल (द्विगुणित) मांगलिक कहलाएगी।

३. अथवा 1/477/8/12वें भावों में शनि, राहु, केतु या सूर्य इनमें से कोई ग्रह हो तथा मंगल हो तो ऐसे में भी यह कुण्डली डबल (द्विगुणित) मांगलिक कहलाएगी।

४. मंगल नीच का प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वितीय भावों में हो, साथ में यदि राहु. शनि, केतु या सूर्य हो तो ऐसे में यह कुण्डली त्रिबल (ट्रिबल) मांगलिक कहलाएगी क्योंकि मंगल दोष इस कुण्डली में तीन गुणा बढ़ जाता है।

५. इस प्रकार से एक कुण्डली अधिकतम पंचगुणित मंगल दोष वाली हो सकती है। तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। अब कुछ उदाहरण देंखे,मंगलीक दोष निवारण के कुछ बहुमूल्य सूत्र :-

उपरोक्त सभी सूत्रों को जब हम प्रत्येक कुण्डली पर घटित करेंगे तो 80 प्रतिशत जन्म कुण्डलीयां मंगल दोष वाली ही दिखलाई पड़ेंगी। इससे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि परवर्ती कारिकाओं में मंगल दोष परिहार के इतने प्रमाण मिलते हैं कि इनमें से आधी से ऊपर कुण्डलीयां तो स्वतः ही परिहार वचनों से मंगल होते हुए भी मंगल दोष-रहित हो जाती हैं अर्थात् यदि पुरुष की कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वादश भावों में शनि, राहु या सूर्य हो तो मंगल का मिलान हो जाता है। इसमें कुछ भी परेशानी नहीं है। सारी समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती है। उनमें से कुछ सूत्र इस प्रकार हैं।

अजे लग्ने, व्यये चापे, पाताले वृश्चिके स्थिते।
वृषे जाये, घटे रन्ध्र, भौमदोषो न विद्यते।।१।।

मेष का मंगल लग्न में, धनु का द्वादश भाव में, वृश्चिक का चौथे भाव में, वृषभ का सप्तम में, कुम्भ का आठवें भाव में हो तो भौम दोष नहीं रहता।।१।।

नीचस्थो रिपुराशिस्थः खेटो भावविनाशकः।
मूलस्वतुंगामित्रस्था भाववृद्धि करोत्यलम् ।।२।। -जातक पारिजात

अतः स्व (१,८) मूल त्रिकोण, उच्च (१०) मित्रस्थ (५,९,१२) राशि अर्थात् सूर्य, गुरु और चन्द्रक्षेत्री हो तो भौम का दोष नहीं रहता ।।२।।

अर्केन्दुक्षेत्रजातानां, कुजदोषो न विद्यते।
स्वोच्चमित्रभजातानां तद् दोषो न भवेत् किल।।३।।

सिंह लग्न और कर्क लग्न में भी लग्नस्थ मंगल का दोष नहीं है।।३।।

शनिः भौमोऽथवा कश्चित्, पापो वा तादृशो भवेत्।
तेष्वेव भवनेष्वेव, भौमदोषविनाशकृत् ।।४।।

शनि, मंगल अथवा कोई भी पाप ग्रह राहु, सूर्य, केतु अगर १, ४, ७, ८, १२ वें भाव में कन्या जातक के हों और उन्हीं भावों में वर के भी हों तो भौम दोष नष्ट होता है। मंगल के स्थान पर दूसरी कुण्डली में शनि या पांच ग्रहों में से एक भी हो, तो उस दोष को काटता है।।४।।

यामित्रे च यदा सौरिःलग्ने वा हिबुकेऽथवा।
अष्टमे द्वादशे वापि भौमदोषविनाशकृत्।।५।।

शनि यदि १,४,७,८,१२ वें भाव में एक की कुण्डली में हो और दूसरे की कुण्डली में इन्हीं स्थानों में से एक किसी स्थान में मंगल हो तो भौम दोष नष्ट हो जाता है।।५।।

केन्द्रे कोणे शुभोदये च, त्रिषडायेऽपि असद् ग्रहाः।
तदा भौमस्य दोषो न, मवने मवपस्तथा।।६।।

तृतीय, षष्ठ, एकादश भावों में अशुभ ग्रह हों और केन्द्र १, ४, ७, १०, व कोण ५,९, में शुभ ग्रह हो तथा सप्तमेश सातवें हो तो मंगल का दोष नहीं रहता।।६।।
सबले गुरौ भृगौ वा लग्नेऽपिवा अथवा भौमे।

वक्रिणि नीचगृहे वाऽर्कस्थेऽपि वा न कुजदोषः।।७।।

गुरु व शनि बलवान हो, फिर भले ही १,४,७,१० व कोण ५,९ में शुभ ग्रह हो तथा सप्तमेश सातवें हो तो मंगल का दोष नहीं होता ।।७।।

वाचस्पती नवमपंचकेन्द्रसंस्थे जातांगना भवति पूर्णविभूति युक्ता।
साध्वी, सुपुत्रजननी सुखिनी गुणढ्याः, सप्ताष्टके यदि भवेदशुभ ग्रहोऽपि।।८।।

कन्या की कुण्डली में गुरु यदि १,४,५,७,९,१० भावों में मंगल हो, चाहे वक्री हो, चाहे नीच हो या सूर्य की राशि में स्थित हो, मंगलीक दोष नहीं लगता। अपितु उसके सुख-सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है।।८।।

त्रिषट् एकादशे राहुः, त्रिषडेकावशे शनिः।
विषडकादेश भौमः सर्वदोषविनाशकृत् ।।९।।

३,६,११ वें भावों में राहु, मंगल या शनि में से कोई ग्रह दूसरी कुण्डली में हो तो भौम दोष नष्ट हो जाता है।।९।।

चन्द्र, गुरु या बुध से मंगल युति कर रहा हो तो भौम दोष नहीं रहता परन्तु इसमें चन्द्र व शुक्र का बल जरूर देखना चाहिए।।१०।।

द्वितीय भौमदोषस्तु कन्यामिथुनयोर्विना ।।११।।

द्वितीय भाव में बुध राशि (मिथुन व कन्या) का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा वृषभ व सिंह लग्न में ही संभव है ।।११।।

चतुर्थे कुजदोषः स्याद्, तुलावृषभयोर्विना ।।१२।।

चतुर्थ भाव में शुक्र राशि (वृषभ-तुला) का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा कर्क और कुंभ लग्न में होगा ।।१२।।

अष्टमो भौमदोषस्तु धनुमीनद्वयोर्विना ।।१३।।

अष्टम भाव में गुरु राशि (धनु-मीन) का मंगल दोषकृत 
नहीं है। ऐसा वृष लग्न और सिंह लग्न में होगा ।।१३।।

व्यये तु कुजदोषः स्याद्, कन्यामिथुनयोर्विना ।।१४।।

बारहवें भाव में मंगल का दोष बुध, राशि (मिथुन, कन्या) में नहीं होगा। ऐसा कर्क लग्न और तुला लग्नों में होगा ।।१४।।

१,४,७,८,१२ भावों में मंगल यदि चर राशि मेष, कर्क, मकर का हो तो कुछ दोष नहीं होता ।।१५।।

दंपत्योर्जन्मकाले, व्यय, धन हिबुके, सप्तमे लग्नरन्ने,
लग्नाच्चंद्राच्च शुक्रादपि भवति यदा भूमिपुत्रो द्वयो।।
दम्पत्योः पुत्रप्राप्तिर्भवति धनपतिर्दम्पति दीर्घकालम्,
जीवेतामत्रयोगे न भवति मूर्तिरिति प्राहुरत्रादिमुख्याः ।।१६।।

दम्पत्ति के १,४,७,८,१२ वें स्थानों में मंगल जन्म से व शुक्र लग्न से हो दोनों के ऐसा होने पर वे दीर्घकाल तक जीवित रहकर पुत्र धनादि को प्राप्त करते हैं ।।१६।।
.
भौमेन सदृशो भौमः पापो वा तादृशो भवेत्।
विवाहः : शुभदः प्रोक्ततिश्चरायुः पुत्रपौत्रदः ।।१७।।

मंगल के जैसा ही मंगल व वैसा ही पाप ग्रह (सूर्य, शनि, राहु) के दूसरी कुण्डली में हो तो विवाह करना शुभ है ।।१७।।

कुजोजीवसमायुक्तो, युक्तौ वा कुजचन्द्रमा।
चन्दे केन्द्रगते वापि, तस्य दोषो न मंगली ।।१८।।

गुरु और मंगल की युति हो या मंगल चन्द्र की युति हो या चन्द्र केन्द्रगत हो तो मंगलीक दोष नहीं होता ।।१८।।

न मंगली यस्य भृगुद्वितीये, न मंगली पश्यन्ति च जीवः ।।१९।।

शुक्र दूसरे घर में हो, या गुरु की दृष्टि मंगल पर हो गुरु मंगल के साथ हो, या मंगल राहु से युति हो या केन्द्रगत हो तो मंगली दोष नहीं होता ।।१९।।

सप्तमस्थो यदा भौमो, गुरुणा च निरीक्षितः।
तदातु सवैसौख्यम् मंगलीदोषनाशकृत् ।।२०।।

सातवें भवन में यदि गुरु से देखा जाए तो मंगलीक दोष नष्ट करके सर्व सुख देता है ।।२०।।

केतु का फल मंगलवत् होता है अतः अश्विनी, मघा मूल नक्षत्रों में मंगल हो तो भी मंगलीक दोष नहीं रहता है।

यह उपरोक्त योग यदि कुंडली में हों तो मंगल का अधिक प्रभाव नहीं रहता है अपितु मंगल दोष खत्म हो जाता है और ऐसे में केवल मंगल पूजन या मंगल के उपाय मात्र करने के बाद शादी विवाह ना निर्णय लिया जा सकता है। मंगल दोष निवारण हेतु आप मंगल दोष निवारण कवच पहने जिससे आपको शीघ्र लाभ प्राप्त होंगे,यह कवच बनाने हेतु मंगल शांति यज्ञ में खैर की लकड़ी को समिधा के रूप में काम में लिया जाता है और अनंतमूल की जड़ को शुभ मुहूर्त में निकालकर उसको प्राण प्रतिष्ठित करना पड़ता है । अनंतमूल की जड़ पर "ॐ क्रां क्रीं कौं सः भौमाय नमः" नमः का मंगल दोष के हिसाब से जाप किया जाता है,यह सब क्रिया करने के बाद ही मंगल दोष निवारण कवच पहेना जाता है जिससे आपको उचित लाभ हो सके । इस कवच का न्योच्छावर राशि 1450/-रुपये है और यह कवच रत्नों से ज्यादा प्रभावशाली है ।

मंगल दोष निवारण कवच प्राप्त करने हेतु आप इस नम्बर पर +91-8421522368 व्हाट्सएप कर सकते है और फोन भी कर सकते है ।


आदेश.......

24 Dec 2019

नक्षत्रानुसार रोगोपचार.



ग्रह और नक्षत्रों से होने वाले रोग और उनके उपाय.
वैदिक ज्योतिषी के अनुसार नक्षत्र पंचांग का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है। भारतीय ज्योतिषी में नक्षत्र को चन्द्र महल भी कहा जाता है। लोग ज्योतिषीय विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणियों के लिए नक्षत्र की अवधारणा का उपयोग करते हैं। शास्त्रों में नक्षत्रों की कुल संख्या 27 बताई गयी है। आज हम आपको इसकी जानकारी दे रहे हैं। ज्योतिषानुसार जिस प्रकार ग्रहों के खराब होने पर उनका बुरा प्रभाव देखने को मिलता है उसी प्रकार नक्षत्रों से भी कई रोगों कि गणना शास्त्रों में दी गई है आज हम आपको सभी नक्षत्रों से होने वाले रोग और उन रोगों के उपायों की संपूर्ण जानकारी दे रहे हैं यदि आपको अपना जन्म नक्षत्र पता है तो आप इस जानकारी को पढ़ें।

(नोट : यह जानकारी जन्म नक्षत्र के आधार पर ही दी गई है)

१. अश्विनी नक्षत्र :
अश्विनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट होते हैं।
उपाय : अश्विनी नक्षत्र के देवता कुमार हैं। उनका पूजन और दान पुण्य, दीन दुखियों की सेवा से लाभ होता है।

२. भरणी नक्षत्र :
भरणी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को शीत के कारण कम्पन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्य क्षमता का अभाव रहता है।
उपाय : भरणी नक्षत्र के देवता यम हैं उनका पूजन और गरीबों की सेवा करें लाभ होगा।

३. कृत्तिका नक्षत्र :
कृतिका नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सिर, आँखें, मस्तिष्क, चेहरा, गर्दन, कण्ठनली, टाँसिल व निचला जबड़ा आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने। पर आपको इससे संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है।
उपाय : कृत्तीका नक्षत्र के देवता अग्नि हैं अग्नि देव पूजन और नित्य सूर्योपासना करें। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी आपके लिए शुभ फलदायक होगा।

४. रोहिणी नक्षत्र :
रोहिणी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सिर या बगल में अत्यधिक दर्द, चित्त में अधीरता जैसे रोग होते हैं।
उपाय : रोहिणी नक्षत्र के देवता ब्रह्मा हैं। ब्रह्म पूजन और चिरचिटे (चिचिढ़ा) की जड़ भुजा में बांधने से मन को शांति और रोग से मुक्ति मिलती है।

५. मृगशिरा नक्षत्र :
मृगशिरा नक्षत्र में पैदा हुए जातकों को ज्यादातर जुकाम, खांसी, नजला, से कष्ट। कफ द्वारा होने वाले सभी रोगों का कारक मृगशिरा नक्षत्र को माना जाता है।
उपाय : मृगशिरा नक्षत्र के देवता चन्द्र हैं। चन्द्र पूजन और पूर्णिमा का व्रत करे लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

६. आर्द्रा नक्षत्र :
आर्द्रा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, आधासीरी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : आर्द्रा नक्षत्र के देवता शिव हैं। भगवान शिव की आराधना करे, सोमवार का व्रत, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधे लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

७. पुनर्वसु नक्षत्र :
पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सिर, नेत्र और कमर दर्द की अत्यधिक पीड़ा रहती है और इन कष्टों के कारण डाक्टरों के पास अधिक आना जाना रहता है।
उपाय : पुनर्वसु नक्षत्र के देवता हैं आदिती । आदिति देव पूजन और रविवार के दिन जिस रविवार को को पुष्य नक्षत्र हो उस दिन आक के पौधे की जड़ अपनी भुजा में बांधने से लाभ और इन रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

८. पुष्य नक्षत्र :
पुष्य नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातक निरोगी व स्वस्थ होता है। कभी तीव्र ज्वर से दर्द परेशानी होती है।
उपाय : पुष्य नक्षत्र के देवता ब्रहस्पति हैं। ब्रहस्पति व्रत, ब्रहस्पति पूजन और कुशा की जड़ भुजा में बांधने से तथा पुष्प नक्षत्र में दान पुण्य करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

९. अश्लेषा नक्षत्र :
आश्लेषा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातक का दुर्बल देह प्रायः रोग ग्रस्त बना रहता है। देह में सभी अंग में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदूषण के कारण कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : आश्लेषा नक्षत्र के देवता सर्प हैं। सर्प देव पूजन और नागपंचमी का पूजन, पटोल की जड़ बांधने से लाभ और रोगों से मुक्ति मिलती हैं।

१०. मघा नक्षत्र :
मघा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अर्धसीरी या अर्धांग पीड़ा, भूत पिचाश से बाधा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : मघा नखट्र के देवता पित्रदेव हैं। पितृ पूजन के साथ कुष्ठ रोगी की सेवा, गरीबों को मिष्ठान्न का दान देने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

११. पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र :
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को बुखार,खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र के देवता भग देव हैं। भग देव पूजन और पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधने, नवरात्रों में देवी माँ की उपासना करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१२. उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र :
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अत्यधिक ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकडन इत्यादि रोग होते हैं।
उपाय : उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के देवता अर्यमा हैं। अर्यमा देव पूजन और आक की जड़ बाजू में बांधने, ब्राह्मण को समय समय परभोजन कराते रहने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

 १३. हस्त नक्षत्र :
हस्त नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अत्यधिक पेट दर्द, पेट में अफारा, पसीने से अत्यधिक दुर्गन्ध, बदन में वात पीड़ा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : हस्त नक्षत्र के देवता विश्वकर्मा हैं। विश्वकर्मा पूजन और जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१४. चित्रा नक्षत्र :
चित्रा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को जटिल या विषम रोगों से कष्ट पाता है। रोग का कारण बहुधा समझ पाना कठिन होता है ! फोड़े फुसी सूजन या चोट से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : चित्रा नक्षत्र के देवता ट त्वष्टा देव हैं। त्वष्टा देव पूजन और असंगध की जड़ भुजा में बांधने, तिल चावल जौ से हवन करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१५. स्वाती नक्षत्र :
स्वाती नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को वात पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकडन से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : स्वाति नक्षत्र के देवता वायु देव हैं। वायु देव पूजन और गाय माता की सेवा करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१६. विशाखा नक्षत्र :
विशाखा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सर्वांग पीड़ा से दुःख, फोड़े फिन सी आदि से रोग का बढ़ जाना जैसे रोग होते हैं।
उपाय : विशाखा नक्षत्र के देवता इंद्राग्नि हैं। इंद्राग्नि देव पूजन और गूंजा की जड़ भुजा पर बांधने, सुगन्धित वस्तु से हवन करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१७. अनुराधा नक्षत्र :
अनुराधा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को ताप, जलन, और चमड़ी के अत्यधिक कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : अनुराधा नक्षत्र के देवता मित्र देव हैं। मित्र देव पूजन, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१८. ज्येष्ठा नक्षत्र :
ज्येष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को पित्त से रोग बढ़ने से कष्ट, देह में कम्पन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी जैसे रोग होते हैं।
उपाय : ज्येष्ठ नक्षत्र के देवता इंद्रदेव हैं। इंद्रदेव पूजन और दूध का दान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१९. मूल नक्षत्र :
मूल नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सन्निपात ज्वर, हाथ पैरों का ठंडा पड़ना, मन्द रक्तचाप , पेट, गले में दर्द, अक्सर रोगग्रस्त रहना जैसे रोग होते हैं।
उपाय : मूल नक्षत्र के देवता दैत्यराज हैं। देव दैत्यराज पूजन और बत्तीस अलग अलग जगह के जल से स्नान के बाद गंगा जी स्नान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२०. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र :
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अत्यधिक देह कम्पन हाथों में जकड़न, हड्डियों में समस्या, सर्वांग में पीड़ा जैसे रोग होते हैं।
उपाय : पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता जलदेवता हैं। जलदेवता पूजन, बहते जल में मीठे चावल प्रवाहित करने और मस्तक पर सफ़ेद चन्दन का लेप करने से रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२१. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र :
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को संधिवात, गठिया, वात शूल या कटि पीड़ा, असहनीय वेदना इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के देवता विश्वेदेवा हैं। विश्वेदेवा पूजन और कपास की जड़ भुजा में बांधे, ब्राह्मणों को समय समय पर मीठा भोजन कराते रहने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२२. श्रवण नक्षत्र :
श्रवण नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अतिसार, दस्त, देह पीड़ा, दाद-खाज-खुजली जैसे चर्म रोग, कुष्ठरोग, पित्त, मवाद बनना, संधि वात, क्षय रोग से पीड़ा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : श्रवण नक्षत्र के देवता विष्णु हैं। विष्णु पूजन और की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२३. धनिष्ठा नक्षत्र :
धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को मूत्र रोग, खूनी दस्त, पैर में चोट, सूखी खांसी, बलगम, अंग भंग, सूजन, फोड़े या लंगड़ेपन से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : धनिष्ठा नक्षत्र के देवता अष्टवसु हैं। देव अष्टवसु पूजन,भगवान मारुति (हनुमानजी) की आराधना, गुड़ मिश्रित चने का दान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

 २४. शतभिषा नक्षत्र :
शतभिषा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को घुटनों व टखनों के बीच का भाग, पैर की नलियों की मांस पेशियाँ, इत्यादि में समस्या जैसे रोग होते हैं।
उपाय : शतभिषा नक्षत्र के देवता वरुण हैं। वरुण देव पूजन, मां दुर्गा की उपासना, कवच-कीलक-अर्गला का पाठ करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२५. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र :
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को उल्टी या वमन, बैचेनी, हृदय रोग, टखने की सूजन, आंतो के रोग से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के देवता अहि देव हैं। अहि देव पूजन, शृंगराज की जड़ भुजा पर बांधे, तिल का दान करने
से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२६. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र :
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अतिसार, वातपीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पाव सुन्न पड़ना आदि से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के देवता नाग देव हैं। नाग देवता पूजन, पीपल की जड़ भुजा पर बांधने से तथा ब्राह्मणों और गाय माता को मिष्ठान्न दान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२७. रेवती नक्षत्र :
रेवती नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को मति भ्रम, उदर विकार, मादक द्रव्य सेवन से उत्पन्न रोग, किडनी के रोग, बहरापन या कान का रोग, पाँव की अस्थि, माधसपेशियों में खिचाव से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : रेवती नक्षत्र के देवता पुषापित्र हैं। देव पुशापित्र पूजन और कुशा की जड़, काले आक की जड़ बाजू पर धारण करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

नक्षत्र दोष निवारण हेतु दिए गए उपाय करें या फिर आप नक्षत्र दोष निवारण हेतु यंत्र को धारण कीजिए जिससे आपको नक्षत्र दोष से राहत मिलेगी । यह यंत्र नक्षत्र से संबंधित जड़ी बूटियों को शुभ मुहूर्त में प्राप्त करके बनाया जाता है । नक्षत्र दोष निवारण यंत्र का न्योच्छावर राशि 1150/-रुपये है,जो व्यक्ति इस यंत्र को प्राप्त करना चाहते है वह व्हाट्सएप पर भी अधिक जानकारी मुझसे ले सकते है ।

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9 Dec 2019

माँ कालिकाय वचन सिद्धी




माँ काली को माँ के सभी रूपों में सबसे शक्तिशाली स्वरुप माना गया है । भय को दूर करने वाली , बुद्धि देने वाली , शत्रुओं का नाश करने वाली माँ काली की उपासना से सभी कष्ट स्वतः ही दूर होने लगते है । माँ काली की आराधना शीघ्र फल देने वाली है । शास्त्रों में वर्णित है कि कलियुग के समय हनुमान जी , काल भैरव और माँ काली की शक्तियाँ जागृत रूप में अपने भक्तों का उद्धार करने वाली होगी । कुछ मान्यताओं के आधार पर माँ काली की उपासना केवल सन्यासी और तांत्रिक तंत्र सिद्धियाँ प्राप्त करने हेतु करते है । किन्तु यह पूर्णत: सत्य नहीं है , माँ काली की उपासना साधारण व्यक्ति भी अपने कार्य सिद्धि हेतु कर सकते है ।


माँ काली मंत्र साधना में सफल होने से रोगों से मुक्ति मिलती है । शरीर को बल और बुद्धि प्राप्त होती है । हर प्रकार के भय और डर आदि तो माँ काली के स्मरण मात्र से ही दूर होने लगते है । माँ काली साधना से माँ की दस महाविद्याओं में से प्रथम विद्या सिद्ध होती है । माँ काली की साधना करने वाला साधक सम्पूर्ण जीवन मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीता है । माँ काली साधना धन-लक्ष्मी, सुख-शांति व मान-सम्मान आदि सम्पूर्ण सुखों को देने वाली है ।


आज आपको मंत्र साधना के साथ साथ माँ काली जी को वचन में दिया जाएगा,माँ काली जी को वचन में प्राप्त करने हेतु सर्वप्रथम एक लौंग साथ मे एक खाली ताबीज लीजिए और माँ काली जी के मंदिर में जाये,वहा जाकर माँ काली जी से कृपा प्राप्ति हेतु प्रार्थना करे और लौंग को खाली ताबीज में डालकर लाल धागे में पहन लीजिये,यह काम मंगलवार के दिन करना है । ताबीज को शनिवार तक धारण करके रखिये और शनिवार के दिन लाल वस्त्र, 8 निम्बू, एक फूलों का माला, कपूर का तीन-चार टिकिया, लाल कुंकुम और एक मिठाई साथ मे पूजन हेतु रखिये । पूजन का फोटो आपको व्हाट्सएप पर दिया जाएगा जिससे आप जान सकोगे की पूजन कैसे करना है । ताबीज में रखी लौंग का क्या करना है यह भी रहस्य बता दिया जाएगा । पूजन से पूर्व मुझे फोन (मेरा फोन नम्बर +918421522368) कीजिये मैं कुछ मंत्र आपके कान में बोलकर फूँक लगा दूँगा और आपसे एक वचन लूंगा के "आप इस जीवन मे इस साधना से किसीका कभी बुरा नही करेंगे और इस विधान को गोपनीय रखेंगे,किसी भी प्रकार से शक्ति प्रदर्शन भी नही करोगे", साथ मे आपको माँ काली जी को वचन में दिया जाएगा और एक गोपनीय शाबर मंत्र भी दिया जाएगा ।

मंत्र का 108 बार जाप करने से मंत्र सिद्धि हो जाएगी और मंत्र के माध्यम से काम कैसे करना है यह दूसरे दिन बता देंगे परंतु आप अपनी ऊर्जा बढ़ाने हेतु मंत्र का नित्य 108 बार जाप करते रहिए । जितनी ऊर्जा बढ़ेगी उतना ही आपको फायदा होगा,आपके कार्य शीघ्र होने लगेंगे और 108 बार जाप करने में 20 मिनट से ज्यादा समय नही लगेगा । इस साधना हेतु दक्षिणा की न्योच्छावर राशि 2100/-रुपये निर्धारित की गयी है,इससे ज्यादा दक्षिणा स्वीकार नही की जायेगी ।

जो साधक माँ काली जी के वचन प्राप्ति साधना हेतु उस्तुक है वह साधक व्हाट्सएप पर संपर्क करे,योग्य मार्गदर्शन किया जाएगा,सभी प्रकार का मार्गदर्शन निःशुल्क किया जाता है इसलिए चिंता की कोई बात नही है ।




आदेश.......

23 Nov 2019

साबर वशीकरण मंत्र (कामाख्या भैरव उमानंद).



बंगाल के जादू के बारे में पूरी दुनिया जानती है। ना सिर्फ जानती है बल्कि इसे आजमाती भी है और इसके प्रयोग से कई तरह के लक्ष्यों को प्राप्त भी करती है, लेकिन बहुत कम लोग हैं जो असली बंगाल के जादू को जानते हैं और इसको सिद्ध करने का तरीका बताते हैं। ऐसा ही एक साधना प्रयोग आज हमारे ब्लॉग पर दे रहे है जो एक वशीकरण का अचूक साधना कहा जाता है ।

बंगाल शुरुआत से ही आध्यात्मिक क्षेत्र में अग्रणी रहा है। बंगाल रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्य विवेकानंद की धरती है। अध्यात्म के क्षेत्र में बंगाल दो विचारधाराओं में बंटा है। कृष्णानंद आगमबाशीश जैसे बड़े-बड़े योगी बड़े-बड़े अघोरपंथी यही तपस्या कर संसार मे पूजनीय बने है । बंगाल क्षेत्र के छोटे छोटे गाव में रहने वाले लोग जड़ी बूटियों का अच्छा ज्ञान रखते है,उनके पास मौना मुनि अवश्य होती है,जिसमे मौना काले रंग का होता है और मुनि लाल रंग की होती है । अगर स्त्री को वश करना हो तो मुनि को खाने में दिया जाता है और पुरूष को वश करना हो तो मौना को खाने में दिया जाता है,यह एक प्रकार का बीज होता है परंतु इसको जमीन में बोने से यह उगता नही है । इसी तरह वहा गाव में रहने वाले तांत्रिक भुलनबुटी के बारे में अच्छेसे जानते है,इसमे दो प्रकार होते है,एक सफेद ओर दूसरा काले रंग का भुलनबुटी होता है ।

काले रंग का भुलनबुटी वशीकरण में तेज माना जाता है औऱ सफेद रंग का भुलनबुटी याद्दाश्त भुलाने के काम आता है । इन दोनों प्रकार के भुलनबुटीयो पर वैज्ञानिक आज भी कई वर्षो से शोध कर रहे है के इस बूटी पर पैर रखने से इंसान अपनी याद्दाश्त कैसे खो देता है । वैसे दोनो प्रकार की भुलनबुटीया एक जैसा काम करती है परंतु काले रंग की भुलनबुटी वशीकरण का काम करती है । कहा जाता है कामाख्या मंदिर में दर्शन को जाने वाले भक्तों को नरकासुर नामक राक्षस पीड़ा देता था और उसीको मंदिर में आनेवाले भक्तों से दूर रखने के लिए उस समय के माता के भक्त भुलनबुटी के माध्यम से नरकासुर को माया में फसा देते थे और भक्तों पर अत्याचार करने से पूर्व ही उसकी याद्दाश्त को भुला दिया जाता था,जब भी नरकासुर माता के भक्तों पर अत्याचार करने आता तो उसे यह याद ही नही रहता था के वह यहां क्यो आया है । स्वयं भैरव उमानंद ने काले भुलनबुटी इसलिए धारण किया था कि नरकासुर उनके वश में रहे और उनकी आज्ञा का पालन करे । भैरव उमानंद का कार्य सफल हुआ था परंतु नरकासुर भी एक उच्चकोटि का अघोरी ही था जो माता से विवाह करने के इच्छुक था ।

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में नरक नाम के एक असुर ने कामाख्या देवी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, क्योंकि देवी उनसे विवाह नहीं करना चाहती थी इसलिए उन्होंने उसके सामने एक शर्त रखी। शर्त के अनुसार नरक को एक रात में उस जगह पर घाट, मार्ग व मंदिर आदि सब की स्थापना करनी थी। नरक ने शर्त को पूरा करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को आमंत्रित कर उनका आशीर्वाद ले काम शुरू कर दिया। जब कामाख्या देवी ने नरक द्वारा काम पूरा होता देखा तो उन्होंने मुर्गे से सुबह होने से पूर्व ही बांघ दिलवा दी, जिससे शर्त पूरी न हो सकी और नरक की देवी से विवाह की इच्छा पूरी न हो सकी। इस कारण मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि नरकासुर के अत्याचारों से कामाख्या के दर्शन में कई परेशानियां उत्पन्न होने लगी थीं । 

नरकासुर ने सभी प्रकार के वशीकरण क्रियाओं मुक्ति हेतु पाताल भैरवी से मदत ली और वह सफल रहा और उमानंद भैरव असफल हुए । भक्तों को होनेवाली परेशानी देखकर महर्षि वशिष्ट क्रोधित हुए और उन्होने इस जगह को श्राप दे दिया,जिस कारण समय के साथ कामाख्या पीठ लुप्त हो गया । यहां पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को नरकारसुर के नाम से जाना जाता है। इसके आलवा जिस मंदिर में देवी की प्रतिमा स्थापित है उसे कामादेव मंदिर कहा जाता है। 


आज हम जो साधना दे रहे है,यह एक काले रंग के भुलनबुटी पर संपन्न किया जाने वाला शाबर वशीकरण मंत्र है,जिससे इच्छित व्यक्ति को वश में करने हेतु यह मंत्र साधना असरदार है । यहां मंत्र अपूर्ण दिया जा रहा हैं ताकि उन साधको के लिए मंत्र सुरक्षित रहे जो साधना के क्षेत्र में कुछ प्राप्त करना चाहते है,क्योंकि पूर्ण मंत्र यहां देना मुझे उचित नही लगता है ।


मंत्र-

।। ॐ नमो आदेश गुरु को कामरु देश कामाख्या माई को,जहा बसे उमानंद भैरव दिन रात जागता रहे भक्तों के काम करता रहे अमुक को अमुक का मोह लगाओ वश में कराओ मेरा इतना काम ************** ।।


साधना सिद्धी 21 दिनों का है,इसमे रुद्राक्ष माला और काले रंग का भुलनबुटी से निर्मित ताबीज आवश्यक है,वैसे खाली ताबीज में आप भी अपने घर पर भुलनबुटी को डालकर साधना कर सकते हो ।

साधना प्रयोग-गले मे ताबीज पहनकर रुद्राक्ष माला से इच्छित व्यक्ति के फोटो को देखते हुए 108 बार मंत्र का जाप तीन दिनों तक करना है और तीसरे दिन जाप समाप्त होते ही एक अनार का बलि देना है । यह क्रिया संपन्न करने से 24 घंटो में इच्छित व्यक्ति का वशीकरण करना सम्भव है । जीवन मे साधना एक बार ही करना है और इसका उपयोग जीवन मे कभी भी कर सकते है । साधना से संबंधित अन्य बाते आप फोन करके पूछ सकते है या फिर व्हाट्सएप पर भी पूछ सकते हो,नम्बर  +91-8421522368 ।


साधना सामग्री न्योच्छावर राशि 3500/-रुपये.



आदेश.....

10 Nov 2019

पूर्व जन्मकृत पाप दोष शमन क्रियात्मक शक्तिपात




शमन का सीधा अर्थ है – समाप्त करना और समाप्त करना है उन दोषों को, जिन दोषों ने जीवन को जीर्ण शीर्ण कर दिया है। इस जीवन के अज्ञान का शमन हो अथवा पूर्व जन्म के दोषों का शमन हो, इसका एक मात्र उपाय है नाथ संप्रदाय से शमन दीक्षा प्राप्त करना। शमन दीक्षा एक ऐसी चिन्गारी है जो आपके जीवन में एक बार प्रज्वलित हो जाने पर अग्निशिखा बन पूरे देह मानस में व्याप्त हो जाती है, जब एक बार शमन की यह क्रिया प्रारम्भ हो जाती है तो पूरे दोषों को समाप्त कर देती है, इसके प्रभाव से इस जन्म के तो क्या पूर्व जन्म के दोष भी समाप्त हो जाते हैं। आप स्वयं अपने जीवन को नये रूप से स्पष्टतः देख सकते हैं, शमन दीक्षा जीवन की नयी शुरुआत है यहा तक तो यह भी कह सकते है कि आध्यत्मिक जीवन मे नया जन्म है ।

साधक तथा शिष्य नाथ सम्प्रदाय में इसी उद्देश्य से आते हैं, कि वे अपने-आप को पूर्ण समर्पित कर नाथ सम्प्रदाय के दिव्य ज्ञान एवं प्रभाव से अपने भीतर के विकारों का, अपने इस जन्म और पूर्वजन्म के दोषों का नाश कर दें। साधक तथा शिष्य अपना मार्ग स्वयं नहीं पहचान सकता, वह केवल आध्यात्मिक गुरु द्वारा बताये गये मार्ग पर चलना जानता है और जब वह सही मार्ग पर चलता है, तो उसे सिद्धि व सफलता अवश्य प्राप्त होती है।

प्रत्येक व्यक्ति ऐसा ही अनुभव कर रहा है कि इस संसार में उससे अधिक दुःखी, उससे अधिक तनावग्रस्त और उससे ज्यादा पीड़ित कोई अन्य है ही नहीं। ऐसा क्यों हो रहा है और क्यों सारी भौतिक सुविधाओं और उन्नति के बावजूद भी वह अपने-आप को असहाय और कटा हुआ अनुभव करता है, क्यों सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर व्यक्ति अपने अन्दर घुटन अनुभव कर रहा है, क्यों नहीं वह इस प्रकार से चैतन्य, आनन्दित और सुखी बन पा रहा है, जैसा बनना मानव जीवन का अर्थ कहा गया है।

इसका उत्तर व्यक्ति को भौतिक रूप से शायद नहीं मिल सकेगा, क्योंकि यह व्यक्ति के अन्तःपक्ष से जुड़ी समस्या है जिसका समाधान अध्यात्म से ही संभव है, और अध्यात्म में भी थोथी बातों व प्रवचनों से नहीं वरन् वास्तविक और यथार्थ रूप से।

वास्तव में प्रत्येक चिन्तनशील व्यक्ति इस बिन्दु पर आता ही है जब वह सोचता है या सोचने को बाध्य हो जाता है कि मैंने तो अपने जीवन में इतना परिश्रम किया, इतनी बुद्धि लगायी, सफलता के प्रत्येक फॉर्मूलों को अपनाया और अपनी क्षमता से कोई कसर तो नहीं छोड़ी, फिर भी मेरा जीवन बिखरा-बिखरा क्यों है, क्यों नहीं परिवार के साथ मेरा सामंजस्य बनता है, क्यों मुझे इतना मानसिक तनाव बना रहता है? इस प्रकार की अनेक बातों का हल प्राप्त करने के लिए दैव इच्छा पर ही अन्त नहीं कर देना चाहिए। जीवन इतनी सस्ती वस्तु नहीं है, जिसे हम किसी ‘किन्तु-परन्तु’ पर छोड़ दें।

गन्दगी पर कालीन डाल देने से दुर्गन्ध नहीं छिपती, इसी प्रकार अपने मानसिक तनाव, न्यूनताओं और अभावों पर ‘हरि इच्छा – प्रभु इच्छा’ का सुनहरा कालीन बिछा देने से सुगन्ध के झोंके प्रारम्भ नहीं हो जायेंगे, उल्टे जहां से दुर्गन्ध आ रही है, वह ढंकने पर और भी घनी हो जायेगी। इसका हल मिलेगा एक आध्यात्मिक यात्रा में और इस यात्रा का मार्ग है दीक्षाओं के स्वरूप में।

कदाचित यह बात कटु लग सकती है किन्तु व्यक्ति के जीवन के अधिकांश दुःखों का कारण उसके पूर्व जन्मकृत दोष ही होते हैं, जिनका शमन पूर्णरूप से नाथ सम्प्रदाय में दीक्षा द्वारा हो सकता है । जब तक जीवन मे पापों का मोचन और दोषों का शमन पूर्णरूप से नहीं हो जाता तब तक साधक में पूर्णता नहीं आ सकती।

पापमोचन का तात्पर्य है शरीर में स्थित विकारों का नाश। निवृत्ति तथा विकार का तात्पर्य है जीवन में जो दोष हैं, चाहे वे इस जीवन के हों अथवा पूर्व जीवन के, क्योंकि पूर्वजन्म में किये गये कृत्यों का प्रभाव भी इस जीवन पर पड़ता ही है ।

जो गृहस्थ साधक पूर्व जन्म कृत पाप दोष शमन क्रियात्मक शक्तिपात प्राप्त करना चाहते है उनको इस क्रिया से लाभान्वित किया जाएगा,यह क्रिया अपने आप मे एक दुर्लभ क्रिया है,इस क्रिया के माध्यम से आपके इहजन्म दोष एवं पूर्व जन्म दोष का शमन अवश्य ही होगा । इस क्रिया को संपन्न करने के बाद धीरे धीरे आप महसूस करेंगे कि आपके जीवन मे कई सारे बदलाव आरहे है,जैसे किसी भी कार्य मे आनेवाली बाधाएं कम हो जाएगी,शादी में आनेवाली अडचने दूर हो जाएगी । धन-धान्य-सुख-संपदा-ऐश्वर्य आपको प्राप्त होता रहेगा, दुखो का नाश होता रहेगा और सुख की प्राप्ति होती रहेगी,प्रेम प्रकरण में भी आपको सफलता मिलेगी और रिश्तों में सुधार आएगा । अध्यात्म से जुड़े हुये साधको को साधना में सफलता और सिद्धियां प्राप्त होती रहेंगी,मंत्र उच्चारण दोष में भी आपको नुकसान नही उठाना पड़ेगा ।



पूर्व जन्म कृत पाप दोष शमन क्रियात्मक शक्तिपात कैसे प्राप्त करना है इसके बारे में अधिक जानकारी मैंने अपने youtube channel पर दियी है और यह क्रिया संपन्न कर आप जीवन मे सर्वत्र लाभ प्राप्त कर सकते है । यहा पर भी youtube channel का लिंक दे रहा हु अगर आपको यहा से लिंक को coppy-paste करने में समस्या आ रही हो तो इसी ब्लॉग पर youtube channel का पेज पर direct हमारे youtube channel पर जाने का option दिया हुआ है ।


https://youtu.be/_V34Kd3Adjg


आदेश........


14 Oct 2019

चैतन्य मोहिंनी साधना



समय से बड़ा कोई नही है और समय रहते कोई काम करो तो वह भगवान का प्रिय ही माना जायेगा । आज का समय कुछ अलग है और आज से 30 वर्ष पूर्व का समय कुछ अलग ही था,पहिले भी लोग सुखी ही थे शायद आज से ज्यादा ही खुश थे । महिलाओं का मान-सम्मान और पति के आज्ञा का पालन करना यह 30 वर्ष पूर्व होता ही था परंतु आज पति पत्नी को मारता है तो कही पत्नी पति को मार रही है और बहोत सारे किस्सों में तो जो बेगुनाह है वही पिट रहा है । आज के समय मे डर नाम की चीज खत्म हो गयी है,पहिले लोग भगवान से डरते थे अब तो भगवान को डराते है । किसी भी महिला पर बुरी नजर डालना पाप माना जाता है इसमे भी एक भगवान का डर था परन्तु आज बलात्कार बढ़ रहे है और भगवान का डर समाप्त हो रहा है । जैसे अगर चींटी भी मारो तो पाप लगेगा और भगवान इस पाप की अवश्य सजा देंगे, याद कीजिए कुछ शायद आप भी एक समय ऐसा होगा जब चींटी मारने से भी डरते होंगे । अब तो खून भी कर देंगे किसीका तो यही बोलेंगे 5-6 महीनों में जैल से छूट जाएगा और बाइज्जत बलि भी हो जाएगा ।


इतना सब तो नही लिखना था परंतु आपको कुछ याद दिलाने के लिए लिखा है ताकि आप जब भी चैतन्य मोहिंनी मंत्र साधना करे तो किसी भी परस्त्री/परपुरुष पर इसका प्रयोग करने से बचे और दिमाग में वह डर रहे कि अगर किसीका बुरा करोंगे तो भगवान इसकी सजा अवश्य देंगे । चैतन्य मोहिंनी मंत्र साधना नाथ संप्रदाय में एक दुर्लभ साधना मानी जाती है,चैतन्य मोहिंनी मंत्र से आप जिस भी चीज पर 21 बार मंत्र बोलकर किसी को भी वह खाने/पीने का वस्तु देंगे तो उसके उसको ग्रहन करने के बाद मंत्र 3 घंटे में अपना काम शुरू कर देता है और मंत्र का पूर्ण परिणाम 24 घंटो में दिखने मिलता है । मान लो आप किसी को मिठाई नमक सब्जी रोटी लस्सी दूध शक्कर में अगर 21 बार उसका नाम मंत्र में पढ़कर खिला देते हो तो वह हो गया समझिए आपके पूर्ण वश में और आप को वह व्यक्ति पूर्ण मान-सम्मान के साथ आपकी आज्ञा का पालन भी करेगा ।


चैतन्य मोहिंनी मंत्र यह मराठी भाषा मे है और यह एक दुर्लभ शाबर मंत्र है,इसको तो अभी तक गोपनीय ही रखा हुआ है और यह मंत्र दुनिया के किसी भी किताब ने नही है, यह मंत्र मुझे एक नाथ सम्प्रदाय के विद्वान व्यक्ति से प्राप्त हुआ और मैने इससे बहोत सारे लोगो के काम भी किये है । जैसे कोई व्यक्ति बहोत शराब पीता हो और नशे में घर का सत्यानाश करने पर तुला हो तो उस समय मैने उस व्यक्ति को उसके पत्नी के वश में किया है ताकि वह व्यक्ति अपने पत्नी की बात माने, शराब पीना छोड़ दे और घर मे सुख शांति से जीवन जिये । कभी कभी ऐसे भी लोग मिले की पत्नी गलत रास्ते जा रही है और पति इन सब बातों के वजेसे आत्महत्या पर उतर आया है,तो ऐसे परिस्थितियों में पत्नी को पति के वश में कर दिया और परिणाम यही मिला कि पत्नी ने गलत रास्ते पर छोड़ना बंद कर दिया । सास-बहू का युद्ध जो एक पूर्ण जीवन को खराब कर सकता है,तलाक़ करवा सकता है,आत्महत्या करवा सकता है तो उस युद्ध को रोकने के लिए भी चैतन्य मोहिंनी मंत्र से मदत मिली है । कुछ जगह दो भाई या बहन-भाई के रिश्तों में प्रॉपर्टी के वजेसे लड़ाई चल रही थी तो वहा पर भी सबको अपना-अपना हक जो भी था वह मिल गया ।


माँ भगवती जी के कृपा से बहोत सारे काम समय पर संभव हुए इसलिए बहोत सारे परिवार आज खुशी से जीवन की यात्रा पूर्ण करने में लगे हुए है । चैतन्य मोहिंनी साधना की एक खासियत है के यह साधना सिर्फ अच्छे कार्य करती है,जब आप बुरा काम करने की इच्छा मन मे रखेंगे तो आपके सिद्धी का शक्ति ऑटोमैटिकली कम होने लगेगा और सिद्धी हमेशा के लिये समाप्त भी हो जाएगी । मंत्र सिद्धी से पूर्व माता मोहिंनी को तीन वचन स्वयं साधक को देने होते है जैसे-

१-इस मंत्र साधना के माध्यम से मै किसी भी अमीर व्यक्ति को अपना दास बनाकर नही ठगूंगा ।

२-किसी भी महिला/पुरूष से अनैतिक संबंध बनाने के लिये इस विद्या का कभी भी इस्तेमाल नही करूंगा ।

३-कभी भी विद्या सीखने के लालच में अपने गुरु पर इसका प्रयोग नही करूंगा ।


यह तीन वचन देते ही माता मोहिंनी खुश हो जाती है और 21 दिनों तक 108 बार मंत्र जाप करने से चैतन्य मोहिंनी विद्या सिद्ध हो जाती है । इस साधना को संपन्न करने हेतु चैतन्य मोहिंनी सिद्धी यंत्र और चैतन्य मोहिंनी सिद्धी माला की आवश्यकता होती है । साधना समाप्ति के बाद चैतन्य मोहिंनी सिद्धी यंत्र को आप गले मे धारण करे और माला को अन्य मंत्र जाप हेतु सुरक्षित रखे । इस यंत्र को अगर आप खोलकर देखो तो उसमे आपको दुर्लभ पाच जड़ीबूटिया देखने मिलेगी जो आज के समय मे प्राप्त करना भी कठिन है,कुछ खास पाच जड़ीबूटियों को जागृत करके चैतन्य मोहिंनी सिद्धी यंत्र का निर्माण किया जाता है,इसलिए यह यंत्र आपको साधना में पूर्ण सिद्धी हेतु आवश्यक और लाभप्रद है । यह साधना कोई भी व्यक्ति किसी भी समय-किसी भी दिन से शुद्ध पवित्र अवस्था मे प्रारंभ कर सकता है,कलयुग में शाबर मंत्र ही लाभप्रद और शीघ्र परिणाम दिखाने में महत्वपूर्ण है । साधना सामग्री का न्योच्छावर राशि आपको संपर्क करने पर बता दिया जाएगा ।

इस साधना में सफलता प्राप्त करने हेतु आपको मैं पूर्ण मार्गदर्शन करने का वचन देता हू और मुझे यकीन है के आप अवश्य ही इस साधना में सफलता प्राप्त करेंगे ।

जिन्हें सामग्री प्राप्त करनी है वह साधक +91-8421522368 इस नम्बर पर कॉल कर सकते हो और यही मेरी व्हाट्सएप नम्बर है तो आप व्हाट्सएप पर भी मेसेज कर सकते हो ।



आदेश.......

11 Sept 2019

सर्व देवी शक्ति सवारी मंत्र साधना.



आप लोगो ने शरीर मे देवी आना यह बहोत बार देखा होगा,किसी भी भगत के शरीर मे जब देवी आती है तो उस भगत को बहोत तकलीफ सहनी पड़ती है । भगत के शरीर मे सवारी आने से वहा पर दर्शन करने वाले भक्तों का हमेशा कल्याण ही होता है । कुछ जगह पर लोग शरीर मे देवी आने का ढोंग भी रचते है और इस प्रकार से नाटक करते है कि सामान्य भक्त उनके बातों में फस जाते है । जिस स्थान पर माता की सच्ची सवारी आती हो वहा पर किसी भी भक्त को दर्शन करने मात्र से ही परेशानी से छुटकारा मिल जाता है और मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है । आज के समय मे तो 90% पाखंड सवारी के नाम पर चल रहा है जिसके वजेसे आज़कल हर कोई माता की आरती में या फिर भजन में घूमने लगता है और सवारी आने का नाटक करता है । आप सर्वप्रथम वस्तुस्थिती को समझिए जैसे किसी भगत के शरीर मे सवारी आना कोई आसान क्रिया नही है,इसके लिए भगत का आचरण और वाणी भी शुद्ध होना चाहिए । अगर कोई भगत सवारी आने के बाद गालियां देता हो तो सीधे उसके जोर से बाल खिंचकर उसको घुमाओ तो वो चिल्लाने लगेगा या फिर ज्यादा गालियां देने लगेगा,अब यहा आपको समज जाना चाहिए कि यह पाखंड कर रहा है । जिन्हें सच्ची सवारी आती है उनके शरीर को तकलीफ दी जाए तो उस भगत के शरीर को सवारी के वक्त तकलीफ महेसुस नही होती है परंतु सवारी जाने के बाद बेचारे को बहोत तकलीफ होती है । सीधे भाषा मे कहा जाए तो सवारी भगत के शरीर मे शक्ति का चैतन्य होना या फिर माता के शक्ति का आशिर्वाद ही बोल सकते है ।



मैंने पिछले बार कालभैरव सवारी के बारे में लिखा था और उस साधना के माध्यम से बहोत सारे साधक लाभान्वित हुए है,इसलिए इस बार एक ऐसा शाबर मंत्र देने के इच्छुक हु जिससे किसी भी माता/देवी की सवारी को शरीर मे बुला सकते है । पिछले बार मैंने बहोत भरोसा करके मंत्र को पूर्णता स्पष्ट किया था जिसके वजेसे से फेसबुक और यु ट्यूब के धूर्त तांत्रिकों ने उसको चुराकर अपने वीडियो बनाये और किसीने पोस्ट बनाकर डाल दिया । इस बार मंत्र को पूर्णता स्पष्ट नही कर रहा हु इसलिए इस बार अधूरा मंत्र इस आर्टिकल में आपको पढ़ने मिलेगा,अब तक मैंने कुछ मंत्र के शब्दों को गोपनीय रखा था और ये भी कहा था कि गोपनीय शब्द व्हाट्सएप पर बताया जाएगा परंतु इस बार " सर्व देवी शक्ति सवारी शाबर मंत्र " को सिर्फ साधना सामग्री के साथ लीखकर भेज दिया जाएगा ताकि इस दुर्लभ गोपनीय मंत्र की गोपनीयता हमेशा बनी रहे । गोपनीय मंत्र के बारे में यहा पर स्पष्टीकरण देने का एक ही कारण है कि यह दुर्लभ गोपनीय विद्याए कहि लुप्त ना हो जाये,आज के समय मे मंत्रो को गोपनीय रखने के चक्कर मे बहोत सारे मंत्र लुप्त हो चुके है । हर समय गोपनीयता के कारण अगर मंत्र लुप्त होते रहे तो आनेवाले समय मे मंत्रो का ज्ञान समाप्त हो सकता है,शाबर मंत्र अपने आप मे सिद्ध और चैतन्य होते है इसलिए इन मंत्र से हर प्रकार के कार्य संभव है ।



यहा पर पूर्ण विधि समझा रहा हु,इस साधना हेतु देवी शक्ति सवारी पत्थर और कृपा प्राप्ति यंत्र (ताबीज रूप में) आवश्यक है । यह पत्थर माता के शक्तिपीठों में एक ऐसा शक्तिपीठ है जहा उनके कुंड में प्राप्त होता है,यह दिव्य शक्तिपीठ नासिक (महाराष्ट्र) के पास है,माँ सप्तश्रृंगी जी का यह शक्तिपीठ बहोत सारे चमत्कार और रहस्यो से अद्भुत है । इस शक्तिपीठ के पास दादा गुरु मच्छीद्रनाथ जी का तपस्या स्थल है,दादा गुरु मच्छीद्रनाथजी गुरु गोरखनाथजी के गुरु है और सर्वप्रथम उन्होंने अपने गुरु दत्तात्रेय जी से दीक्षा प्राप्त करने के बाद इस शक्तिपीठ पर 108 कुंडों के जल से स्नान करके अपने जीवन मे तपस्या आरंभ की थी और इसी स्थान पर उन्होंने सर्वप्रथम शाबर मंत्रो की रचना की थी । यह देवी शक्ति सवारी पत्थर इस स्थान पर कुंड में कभी कभी प्राप्त हो जाता है और इसे प्राप्त करने के लिये वहा के निवासी लोगो से जान पहचान होना भी जरूरी है । इस बार जब मैं वहा गया था तो मुझे 12 पत्थर प्राप्त हुए,पिछले बार गया था तो सिर्फ एक ही पत्थर मिला था । यह देवी शक्ति सवारी पत्थर बड़ी कठिनाई से प्राप्त होते है और इस पत्थर पर की जाने वाली शाबर मंत्र साधनाये भी फलित होती है । साथ मे सप्तश्रृंगी माता के कुंकुम से बना यंत्र जो कृपा प्राप्ति यंत्र है,वह भी आवश्यक है क्योके बिना माँ भगवती के कृपा प्राप्ति के यह साधना तो असंभव ही है । यह दो साधना सामग्री मुख्य है और बाकी सामग्री आप कही से भी प्राप्त कर सकते है जैसे चार मिट्टी के दीपक, चार गुलाब के पुष्प,50 ग्राम लाल कुमकुम,तिल का तेल,मिठाई ।


साधना विधि-

एक फोटो यहा दे रहा हु और इसी प्रकार से आपको लकड़ी के बाजोट पर यह आकृति कुमकुम से बनानी है । वैसे मैंने यह आकृति टाइल्स पर बनायी है परंतु आप लोग बाजोट पर बनाये,जहा पर चार नीले रंग के गोल है वहा पर मिट्टी के दीपक रखने है और दिए का मुख पत्थर के तरफ हो । जैसा आकृति में दिख रहा है वैसे ही देवी शक्ति सवारी पत्थर और कृपा प्राप्ति यंत्र रखना है,जहा पीले रंग के पुष्प दिख रहे है वहा एक एक गुलाब का पुष्प रोज नया रखना है । साधना नवरात्रि या फिर शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू कर सकते है,मंत्र जाप बिना माला के एक घंटे तक करना है,धूपबत्ती आपको जो भी पसंद हो वही लगाए,रोज मिठाई का भोग भी रखा करे । यह साधना कम से कम 21 दिनों तक करना आवश्यक है,साधना में शरीर का तापमान बढना, सरदर्द होना, शरीर मे भारीपन जैसे अनुभव हो सकते है इसलिए डरने की आवश्यकता नही है । साधनात्मक अनुभव सिर्फ मुझे बता सकते हो अन्य किसीको बताना नही है,साधना में मुख उत्तर दिशा के तरफ होना चाहिए, आसन और वस्त्र लाल रंग के हो और बिना स्नान किये साधना करना वर्जित है,यह साधना रात्रिकालीन है ।






मंत्र-
।। ॐ नमो आदेश गुरु को,बंगाल से आयी सवारी शेरावाली माता की, आगे चले हनुमान पीछे चले भैरव, साथ मे आये अमुक माता मेरे शरीर को सवारों,सवारी के रूप में रुक जाओ भगत का वाचा सिध्द करो ना करो तो.......गुरु का मंत्र सच्चा चले छू वाचापुरी ।।



यहाँ मंत्र अधूरा दिया जा रहा है,मंत्र के मुख्य शब्द गोपनीय रखे है ताकि चोरों को चोरी करने का मौका ना मिले परंतु साधना सामग्री के साथ मंत्र लीखकर भेज दिया जाएगा । अमुक के जगह आप जिस देवी शक्ति का सवारी प्राप्त करना चाहते हो उन्हीका नाम लेना है,इस मंत्र से किसी भी देवी शक्ति की सवारी प्राप्त की जाती है । इस विधान से सच्ची सवारी आपको साधनात्मक फल स्वरूप प्राप्त होगी । सवारी प्राप्त करने के दो ही मार्ग है जैसे भगत खुश होकर भक्त को सवारी दे सकता है या फिर माँ स्वयं खुश होकर भक्त को भगत बना लेती है और दूसरा मार्ग मंत्र साधना से ही सवारी प्राप्त कर सकते है ।



साधना सामग्री की न्योच्छावर राशी 2150/-रुपये है और साधना सामग्री प्राप्त करने हेतू +918421522368 इस नंबर पर व्हाट्सएप करे या फिर सुबह 11 बजे से शाम 7 बजे तक फ़ोन कर सकते हो ।


सभी प्रकार के प्रश्नों के जवाब हेतु आपका निशुल्क मार्गदर्शन किया जाएगा और आप सभी सवाल एक साथ ही पूछो यही आपसे विनती है ।


आदेश......

28 Aug 2019

भुवनेश्वरी मंत्र साधना



भुवनेश्वरी महाविद्या जयंती भद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती हैं जो कि दिनांक 10-09-2019 मंगलवार को मनाई जाएगी । भुवनेश्वरी देवी, दस महाविद्याओं में से एक है, जो चौथे स्थान में विराजित है,भुवनेश्वरी देवी के अवतार आदि शक्ति का रूप है, जो शक्ति का आधार है । इन्हें ओम शक्ति भी कहा जाता है,भुवनेश्वरी देवी को प्रकति की माँ माना जाता है, जो समस्त प्रकति को संभालती है । ये भगवान शिव की अभिव्यक्ति है, इन्हें सभी देवियों से कोमल एवं उज्जवल माना जाता है । भुवनेश्वरी देवी ने चंद्रमा को अपने माथे में सजाया हुआ है, और इसके श्वेत प्रकाश से वे समस्त धरती को प्रकाशमय करती है । इन्हें सभी देविओं में उत्तम माना जाता है, जिन्होंने समस्त धरती की रचना की और दानव शक्तियों को मार गिराया । जो इस देवी शक्ति की पूजा करता है, उसे शक्ति, बुद्धि और धन की प्राप्ति होती है ।


भुवनेश्वरी साधना:-


1. सब पहले आपके सामने देवी का कोई भी चित्र या यंत्र या मूर्ति हो। इनमेसे कुछ भी नही तो आपके रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे ।

2. घी का दीपक या तेल का दीपक या दोनों दीपक जलाये। धुप अगरबत्ती जलाये। बैठने के लिए आसन हो। जाप के लिए रुद्राक्ष माला या काली हकीक माला हो ।

3. एक आचमनी पात्र , जल पात्र रखे। हल्दी,कुंकुम,
चन्दन,अष्टगंध और अक्षत पुष्प ,नैवेद्य के लिए
मिठाई या दूध या कोई भी वस्तु ,फल भी एकत्रित करे। अगर यह सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे ।

4. सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं है तो भी गुरु स्मरण करे। गणेश का स्मरण करे-

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम:
क्रीं कालिकायै नमः
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम :


फिर आचमनी या चमच से चार बार बाए हाथ से दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए -
(अगर जल नहीं है तो मानसिक ग्रहण करे )

ह्रीं आत्मतत्वाय स्वाहा
ह्रीं विद्या तत्वाय स्वाहा
ह्रीं शिव तत्वाय स्वाहा
ह्रीं सर्व तत्वाय स्वाहा


उसके बाद पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे -(अगर पूजन सामग्री नहीं है तो मानसिक करे )

ॐ श्री गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः


उसके बाद अपने आसन का स्पर्श करे और पुष्प अक्षत अर्पण करे-

ॐ पृथ्वीव्यै नमः


अब तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे -

।।बॐ श्री दुर्गा भुवनेश्वरी सहित महाकाल्यै नमः आत्मानं रक्ष रक्ष ।।


अब जल के पात्र को गंध लगाकर अक्षत पुष्प अर्पण करे-
।। ॐ कलश मण्डलाय नमः ।।



अब दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प करे -

"मन में यह बोले की मैं (अपना नाम और गोत्र ) भुवनेश्वरी जयंती (or भुवनेश्वरी पुंजन) पर् भगवती भुवनेश्वरी की कृपा प्राप्त होने हेतु तथा अपनी समस्या निवारण हेतु या अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु यथा शक्ति साधना कर रहा हूँ " और जल को जमीन पर छोड़े ।


अब गणेशजी का ध्यान करे -

वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
ॐ श्री गणेशाय नमः का 11 या 21 बार जाप करे ।


फिर भैरव जी का स्मरण करे -

।।ॐ भं भैरवाय नमः।।



भगवती भुवनेश्वरी पूजन-

अब आप भगवती भुवनेश्वरी जी का ध्यान का जो मंत्र है उसे पढे और उनका आवाहन करे-

ध्यान मंत्र :-

उदत दिन द्युतिम इंदुं किरिटां तुंगकुचां नयनत्रययुक्ताम ।
स्मेरमुखीं वरदांकुश पाशाभितिकरां प्रभजे भुवनेशीम ।।
ह्रीम भुवनेश्वर्यै नम: माँ भगवती राजराजेश्वरी भुवनेश्वरी आवाहयामि मम पूजा स्थाने मम हृदये स्थापयामि पूजयामि नम: ।।


अब आवाहनादि मुद्राये आती हो तो प्रदर्शित करे-

ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: आवाहिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: संस्थापिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सन्निधापिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सन्निरुद्धा भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सम्मुखी भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: अवगुंठिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: वरदो भव सुप्रसन्नो भव ।



फिर भुवनेश्वरी देवी का पंचोपचार पूजन करे-

ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: गंधं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: पुष्पं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: धूपं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: दीपं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: नैवेद्यं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: तांबूलं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सर्वोपचारार्थे पुन: गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।


इसके बाद अगर आवरण पूजन करना हो तो करे या फिर नीचे दिये हुये भुवनेश्वरी खडगमाला स्तोत्र का पाठ करे और भगवती भुवनेश्वरी के साथ चलनेवाली समस्त आवरण देवताओं के पुजन हेतु पुष्पाक्षत अर्पण करे,खडगमाला के पाठ से आवरण देवताओं का पूजन अपने आप होता है  ।


श्री भुवनेश्वरी खडगमाला स्तोत्र :-

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं भुवनेश्वरी - हृदयदेवि- शिरोदेवि- शिखादेवि- कवचदेवि -नेत्रदेवि - अस्त्रदेवि - कराले विकराले उमे सरस्वती श्री दुर्गे उषे लक्ष्मि श्रूति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कांति आर्ये श्री भुवनेश्वरी - दिव्यौघ गुरुरुपिणी - सिद्धौघ गुरुरुपिणी - मानवौघ गुरुरुपिणी - श्री गुरु रुपिणी - परम गुरु रुपिणी - परात्पर गुरु रुपिणी - पारमेष्ठी गुरु रुपिणी - अमृतभैरव सहित श्री भुवनेश्वरी - हृदय शक्ति - शिर शक्ति - शिखा शक्ति - कवच शक्ति - नेत्र शक्ति - अस्त्र शक्ति - हृल्लेखे गगने रक्ते करालिके महोच्छुष्मे - सर्वानंदमय चक्रस्वामिनी !
गायत्रीसहित ब्रम्हमयि - सावित्रीसहित विष्णुमयि - सरस्वतीसहित रुद्रमयि - लक्ष्मीसहित कुबेरमयि - रतिसहित काममयि - पुष्टिसहित विघ्नराजमयि - शंखनिधि सहित वसुधामयि - पद्मनिधि सहित वसुमतिमयि - गायत्र्यादिसह श्री भुवनेश्वरी ! ह्रां हृदयदेवि - ह्रीं शिरोदेवि - ह्रैं कवचदेवि - ह्रौं नेत्रदेवि - ह्र: अस्त्रदेवि - सर्वसिद्धप्रदचक्रस्वामिनि !
अनंगकुसुमे - अनंगकुसुमातुरे - अनंगमदने - अनंगमदनातुरे - भुवनपाले - गगनवेगे - शशिरेखे - अनंगवेगे - सर्वरोगहर चक्रस्वामिनि !
कराले विकराले उमे सरस्वति श्री दुर्गे उषे लक्ष्मी श्रूति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कांति आर्ये सर्वसंक्षोभणचक्रस्वामिनि !
ब्राम्हि माहेश्वरी कौमारि वैष्णवी वाराही इंद्राणी चामुंडे महालक्ष्म्ये - अनंगरुपे - अनंगकुसुमे - अनंगमदनातुरे - भुवनवेगे - भुवनपालिके - सर्वशिशिरे - अनंगमदने - अनंगमेखले - सर्वाशापरिपूरक चक्रस्वामिनि !
इंद्रमयि - अग्निमयि - यममयि- नैर्ऋतमयि - वरुणमयि - वायुमयि - सोममयि - ईशानमयि - ब्रम्हमयि- अनंतमयि - वज्रमयि - शक्तिमयि - दंडमयि - खडगमयि- पाशमयि - अंकुशमयि - गदामयि- त्रिशूलमयि - पद्ममयि - चक्रमयि - वरमयि - अंकुशमयि - पाशमयि - अभयमयि - बटुकमयि- योगिनिमयि - क्षेत्रपालमयि - गणपतिमयि - अष्टवसुमयि - द्वादशआदित्य मयि - एकादशरुद्रमयि - सर्वभूतमयि - अमृतेश्वरसहित भुवनेश्वरी - त्रैलोक्यमोहन चक्रस्वामिनि - नमस्ते नमस्ते नमस्ते स्वाहा श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ ।।




मंत्र :-
।। ॐ ह्रीम नम: ।।



फिर मंत्र जाप भगवती को समर्पित करे और एक आचमनी जल मे कुंकुम या अष्टगंध मिलाकर भगवती को अर्घ्य दे "ह्रीं भुवनेश्वर्यै विद्महे रत्नेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवि प्रचोदयात् "

फिर आप अपनी बाधा समस्या का स्मरण करे या कोइ समस्या नही है तो फिर कोइ समस्या बाधा घर मे ना आये ऐसा स्मरण कर एक निंबु काटे,फिर उस निंबु को पानी बहा दे या मिट्टी मे गाडे या ऐसी कोइ सुविधा ना हो तो कचरे मे डाले । अगर आप निंबु ना काटे तो भी चलेगा इसकी जगह नारियल भी फोड सकते है ।


यह बहुत संक्षिप्त पूजन है , इस साधना से घर मे कोइ नकारात्मक बाधा नही होगी , रोग नही आयेंगे ,शत्रू बाधा या काम मे कोइ रुकावट आ रही है तो वो दूर होगी ,भगवती दुर्गा महाकाली एवं भुवनेश्वरी की कृपा से जीवन मे कोइ किसी प्रकार की नकारात्मक बाधा नही होगी । पुजन के बाद माँ से मन ही मन क्षमा प्रार्थना भी अवश्य करे ।

"जय जय माँ भुवनेश्वरी"



आदेश......

12 Jul 2019

मधुमेह का आयुर्वेदिक इलाज .(Ayurvedic treatment of diabetes.)



मधुमेह आज सिर्फ भारत ही नहीं, पूरे विश्व में अपने पैर पसारने लगा है। भारत को तो विश्व की डायबिटीक कैपिटल कहकर पुकारा जाता है। इस प्रकार भारत में मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या काफी अधिक है। 

आजकल के इस भागदौड़ भरे युग में अनियमित जीवनशैली के चलते जो बीमारी सर्वाधिक लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है वह है मधुमेह। मधुमेह को धीमी मौत भी कहा जाता है। यह ऐसी बीमारी है जो एक बार किसी के शरीर को पकड़ ले तो उसे फिर जीवन भर छोड़ती नहीं। इस बीमारी का जो सबसे बुरा पक्ष है वह यह है कि यह शरीर में अन्य कई बीमारियों को भी निमंत्रण देती है। मधुमेह रोगियों को आंखों में दिक्कत, किडनी और लीवर की बीमारी और पैरों में दिक्कत होना आम है। पहले यह बीमारी चालीस की उम्र के बाद ही होती थी लेकिन आजकल बच्चों में भी इसका मिलना चिंता का एक बड़ा कारण हो गया है। 

जब हमारे शरीर के पैंक्रियाज में इंसुलिन का पहुंचना कम हो जाता है तो खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। इस स्थिति को डायबिटीज कहा जाता है। इंसुलिन एक हार्मोन है जोकि पाचक ग्रंथि द्वारा बनता है। इसका कार्य शरीर के अंदर भोजन को एनर्जी में बदलने का होता है। यही वह हार्मोन होता है जो हमारे शरीर में शुगर की मात्रा को कंट्रोल करता है। मधुमेह हो जाने पर शरीर को भोजन से एनर्जी बनाने में कठिनाई होती है। इस स्थिति में ग्लूकोज का बढ़ा हुआ स्तर शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।

डायबिटीज के मरीजों में सबसे ज्यादा मौत हार्ट अटैक या स्ट्रोक से होती है। जो व्यक्ति डायबिटीज से ग्रस्त होते हैं उनमें हार्ट अटैक का खतरा आम व्यक्ति से पचास गुना ज्यादा बढ़ जाता है। शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने से हार्मोनल बदलाव होता है और कोशिशएं क्षतिग्रस्त होती हैं जिससे खून की नलिकाएं और नसें दोनों प्रभावित होती हैं। इससे धमनी में रुकावट आ सकती है या हार्ट अटैक हो सकता है। स्ट्रोक का खतरा भी मधुमेह रोगी को बढ़ जाता है। डायबिटीज का लंबे समय तक इलाज न करने पर यह आंखों की रेटिना को नुकसान पहुंचा सकता है। इससे व्यक्ति हमेशा के लिए अंधा भी हो सकता है।

आयुर्वेद में मधुमेह जैसे बीमारी का सटीक इलाज दिया हुआ है,कुछ ऐसी जड़ीबूटीया है जिसके सेवन से मधुमेह को हमेशा के लिये ठीक किया जा सकता है । 32 प्रकार की जड़ीबूटियों के मिश्रण से मधुमेह की एक शक्तिशाली दवा बनायी जाती है जिसका असर 7-8 दिनों में देखने मिलता है,आजतक मैंने जिन मरीजो को भी दवाई दी है उनसे एक बात तो हमेशा बोलता हू "अगर 15 दिनों में आपको दवा से फर्क महसूस नहीं हुआ तो मुझे मेरी दवाई वापिस भेज दो और आपका दवा के लिए किया पुरा धनराशि मुझसे वापिस लीजिए" ।

यह दवा अगर तीन महीने तक सेवन की जाए तो मधुमेह नामक बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है । चाहे आपका मधुमेह कितना ही क्यो ना तकलीफ देता हो,इस दवा से मधुमेह कंट्रोल में आजाता है,मैं यह दवा 100% गारंटी के साथ देता हू और 15 दिनों में आपको असर ना दिखे तो 100% पुरा दवाई का खर्च वापिस दिया जाएगा । दवाई का असर तो पहिले ही दिन से शुरू हो जाता है और 7-8 दिनों में आपको फायदे दिखाई देते है,15 दिनों तक आप रोजाना दवा लेने के बाद स्वयं ही दवा की प्रशंसा करने लगेंगे । यह दवा 30 दिनों के लिए दी जाती है क्योके कुछ लोगो का मधुमेह 30 दिनों में ही ठीक हो गया और कुछ लोगो को ज्यादा से ज्यादा 90 दिनों तक का समय लगा,कम से कम 30 दिन और ज्यादा से ज्यादा 90 दिनों तक दवाई लेने से मधुमेह पूर्णता ठीक हो जाता है,ऐसा आजतक का हमारा अनुभव रहा है ।

जो मधुमेह के मरीज यह 32 प्रकार की जड़ीबूटियों से निर्मित दवाई का सेवन करके स्वास्थ्य होना चाहते है,उन्हें मुझे व्हाट्सएप नंबर पर आपकी मेडिकल रिपोर्ट भेजनी है,जिसमे यह पता चले कि अभी आपका मधुमेह कितना है,आपकी रिपोर्ट देखकर ही सही मात्रा में जड़ीबूटियों का मिश्रण करके दवाई बनाई जाएगी क्योके इन जड़ीबूटियों में मात्राओं को कम ज्यादा करना पड़ता है । इस दवाई के 30 दिन का खर्च 1800/-रुपये है और कूरियर चार्जेस 80- 120/-रुपये तक है,एक दिन के दवा का खर्च ही 60 रुपया आता है और 30 दिनों तक दवाई को लेने के बाद मैं गारण्टी के साथ बोलता हू आप स्वयं पूर्ण स्वास्थ लाभ प्राप्त होने तक अवश्य ही दवाई का सेवन करेंगे । आपको 15 दिनों के बाद फिर से एक बार अपना रिपोर्ट भेजना है और उसमें आपको लाभ ना दिखाई दे तो आपको आपकी धनराशि वापिस कर देंगे,यह मैं आपको वचन देता हू ।

इस दवाई को सेवन करने से लाभ 100% होगा और साथ मे मैं आपको कुछ आवश्यक बाते भी बता दूँगा जिससे आपको अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे । दवाई के सेवन काल मे कोई भी तकलीफ हो तो तुरंत फोन करे,इस लिए इस दवाई के सेवन हेतु आपको डरने की आवश्यकता नही है,इसमे मेरा अनुभव भी 10 वर्ष से ज्यादा का रहा है । आयुर्वेद में रोग को ठीक करने के साथ ही उसे शरीर से खत्म करने पर ध्यान दिया जाता है। 


Whats'app and calling number-

+918421522368




आदेश......


7 Jul 2019

कुण्डली में अशुभ योग और उनका निवारण.


1).चांडाल योग-

गुरु के साथ राहु या केतु हो तो जातक बुजुर्गों का
एवम् गुरुजनों का निरादर करता है ,मोफट होता है,तथा अभद्र भाषाका प्रयोग करता है । यह जातक पेट और श्वास के रोगों से पीड़ित हो सकता है और इनका जीवन कष्टदायक होता है। वह निराश व हताश रहता है उसकी प्रकृति आत्मघाती होती है ।


2).सूर्य ग्रहण योग-

सूर्य के साथ राहु या केतु हो तो जातक कोहड्डियों की कमजोरी, नेत्र रोग, ह्रदय रोग होने की संभावना होती है ,एवम् पिताका सुख कम होता है,आत्मविश्वास की कमी होती है इसके वजेसे सफलताये नही मिलती है । ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है खा जाना तथा इसी प्रकार यह माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा का कुंडली में फल खा जाते हैं जिसके कारण जातक को अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


3).चंद्र ग्रहण योग-

चंद्र के साथ राहु या केतु हो तो जातक को मानसिक पीड़ा एवं माता को हानई पोहोंचती है,जीवन मे सुख को कमी और दुःख ज्यादा होते है । चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु की स्थिति अथवा दृष्टि से प्रभाव पड़ता है तो कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण हो जाता है जो जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसे भिन्न भिन्न प्रकार के कष्ट दे सकता है।


4).श्रापित योग-

शनि के साथ राहु हो तो यह योग होता है,इस योग से जीवन मे नर्क यातनाएं भुगतनी पड़ती है,ऐसा जातक आत्महत्या के विचार ज्यादा करता है । शाप का सामान्य अर्थ शुभ फलों का नष्ट होना माना जाता है । जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है उसे इसी प्रकार का फल मिलता है यानी उनकी कुण्डली में जितने भी शुभ योग होते हैं वे प्रभावहीन हो जाते हैं । इस स्थिति में व्यक्ति को कठिन चुनौतियों एवं मुश्किल हालातों का सामना करना होता है ।


5).पितृदोष-

यदि जातक को 2,5,9 भाव में राहु केतु या शनि है तो जातक पितृदोष से पीड़ित है । इसके प्रभाव से किसी भी कार्य को पूर्ण करने की कोशिशें नाकाम हो जाती है । पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैं, जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना।


6).नागदोष-

यदि जातक के पाचवे भाव में राहु विराजमान है तो जातक पितृदोष के साथ-साथ नागदोष से भी पीड़ित होता है,ऐसा जातक जीवन मे हमेशा असंतुष्ट होता है और संतान प्राप्ति में इसे कष्ट उठाने पड़ते है । यह दोष होने पर जातक किसी पुराने या यौन संचारित रोग से ग्रस्‍त रहता है। कुंडली में नागदोष हो तो जातक को अपने प्रयासों में सफलता प्राप्‍त नहीं होती। नाग दोष का अत्‍यंत भयंकर प्रभाव है कि इसके कारण महिलाओं को संतान उत्‍पत्ति में अत्‍यधिक परेशानी आती है। कुंडली में नागदोष होने से व्‍यक्‍ति की गंभीर दुर्घटना होने की संभावना रहती है। इन्‍हें जल्‍दी-जल्‍दी अस्‍पताल के चक्‍कर लगाने पड़ते हैं एवं इनकी आकस्‍मिक मृत्‍यु भी संभव है । नागदोष से प्रभावित जातकों को उच्‍च रक्‍तचाप और त्‍वचा रोग की समस्‍या रहती है।


7).ज्वलन योग-

सूर्य के साथ मंगल की युति हो तो जातक ज्वलन योग (अंगारक योग) से पीड़ित होता है,हमेशा किसी न किसी चीज की कमी और स्वास्थ्य में तकलीफे रहती है । जिस स्थान मे हो उसी स्थान के खराब फल देता है ।


8).अंगारक योग-

मंगल के साथ राहु या केतु वीराजमान हो तो जातक अंगारक योग से पीड़ित होता है,ऐसा जातक सारी जिंदगी अंगारों पर चलने वाली जैसी तकलीफ को सहता है । इसके कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में आने वाले जातकों के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ संबंध भी खराब हो जाते हैं।


9).प्रेत दोष-

शनि के साथ बुध होने से यह दोष उत्पन्न होता गई,प्रेत बाधा का अ‍र्थ मनुष्‍य के शरीर पर किसी भूत-प्रेत का साया पड़ जाना है। यह योग न केवल जातक को परेशान करता है अपितु उसके पूरे परिवार को भयभीत कर देता है। प्रेत बाधा में अदृश्‍य शक्‍तियां मनुष्‍य के शरीर पर कब्‍जा कर लेती हैं। ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार कुंडली में प्रेत बाधा योग बनने पर जातक को भूत-प्रेत से पीड़ा मिलती है।


10).पिशाच योग-

शनि के साथ केतु हो तो यह योग बनता है,इनमें इच्छा शक्ति की कमी रहती है,इनकी मानसिक स्थिति कमज़ोर रहती है,ये आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं जिससे इनको धोका मिलता है ।इनके मन में निराशात्मक विचारों का आगमन होता रहता है,कभी कभी स्वयं ही अपना नुकसान कर बैठते हैं ।


11).केमद्रुम योग-

चंद्र के साथ कोई ग्रह ना हो एवम् आगेपीछे के भाव में भी कोई ग्रह न हो तथा किसी भी ग्रह की दृष्टि चंद्र
पर ना हो तब वह जातक केमद्रुम योग से पीड़ित होता है तथा जीवन में बोहोत ज्यादा परिश्रम अकेले
ही करना पड़ता है ।


12).दरिद्र योग-

यदि किसी कुंडली में 11वें घर का स्वामी ग्रह कुंडली के 6, 8 अथवा 12वें घर में स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में दरिद्र योग बन जाता है। ऐसे में व्यक्ति के व्यवसाय तथा आर्थिक स्थिति पर बहुत अशुभ प्रभाव डाल सकता है। दरिद्र योग के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातकों की आर्थिक स्थिति जीवन भर खराब ही रहती है तथा ऐसे जातकों को अपने जीवन में अनेक बार आर्थिक संकट का सामाना करना पड़ता है।


13).कुज योग-

यदि किसी कुंडली में मंगल  लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं। जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है। यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए।


14).षड़यंत्र योग-

यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है। जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है जैसे धोखे से धन-संपत्ति का छीना जाना, विपरीत लिंगी द्वारा मुसीबत पैदा करना आदि।


15).भाव नाश योग-

जब कुंडली में किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं और उससे भाव नाश योग केजते है। उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।


16).अल्पायु योग-

जब कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है। जिस कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है और उसकी आयु कम होती है।


17).कालसर्प दोष के प्रकार-


अनंत कालसर्प योग
अगर राहु  लग्न में बैठा है और केतु सप्तम में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तो कुंडली में अनंत कालसर्प दोष का निर्माण हो जाता है। अनंत कालसर्प योग के कारण जातक को जीवन भर मानसिक शांति नहीं मिलती। इस प्रकार के जातक का वैवाहिक जीवन भी परेशानियों से भरा रहता है।

कुलिक कालसर्प योग
अगर राहु कुंडली के दुसरे घर में, केतु अष्ठम में विराजमान है और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में है तब कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग के कारण व्यक्ति के जीवन में धन और स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ उत्पन्न होती रहती हैं।

वासुकि कालसर्प योग
जन्मकुंडली के तीसरे भाव में राहु और नवम भाव में केतु विराजमान हो तथा बाकि ग्रह बीच में तो वासुकि कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस प्रकार की कुंडली में बल और पराक्रम को लेकर समस्या उत्पन्न होती हैं।

शंखपाल कालसर्प योग
अगर राहु  चौथे घर में और केतु दसवें घर में हो साथ ही साथ बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे व्यक्ति के पास प्रॉपर्टी, धन और मान-सम्मान संबंधित परेशानियाँ बनी रहती हैं।

पद्म कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के पांचवें भाव में राहु, ग्याहरहवें भाव में केतु और बीच में अन्य ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसे इंसान को शादी और धन संबंधित दिक्कतें परेशान करती हैं।

महा पद्म कालसर्प योग
अगर राहु किसी के छठे घर में और केतु बारहवें घर में विराजमान हो तथा बाकी ग्रह मध्य में तो तब महा पद्म कालसर्प योग का जन्म होता है। इस प्रकार के जातक के पास विदेश यात्रा और धन संबंधित सुख नहीं प्राप्त हो पाता है।

तक्षक कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के सातवें भाव में राहु और केतु लग्न में हो तो इनसे तक्षक कालसर्प योग बनता है। यह योग शादी में विलंब व वैवाहिक सुख में बाधा उत्पन्न करता है।

कर्कोटक कालसर्प योग
अगर राहु आठवें घर में और केतु दुसरे घर आ जाता है और बाकी ग्रह इनके बीच में हों तो कर्कोटक कालसर्प योग कुंडली में बन जाता है। ऐसी कुंडली वाले इंसान का धन स्थिर नहीं रहता है और गलत कार्यों में धन खर्च होता है।

शंखनाद कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु और तीसरे भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य हों तो इनसे बनने वाले योग को शंखनाद कालसर्प योग कहते है। यह दोष भाग्य में रूकावट, पराक्रम में रूकावट और बल को कम कर देता है।

पातक कालसर्प योग
इस स्थिति के लिए राहु दसंम में हो, केतु चौथे घर में और बाकी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में तब पातक कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  काम में बाधा व सुख में भी कमी करने वाला बन जाता है।

विषाक्तर कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली के ग्याहरहवें भाव में राहु और पांचवें भाव में केतु हो और सारे ग्रह इनके मध्य मे अटके हों तो इनसे बनने वाले योग को विषाक्तर कालसर्प योग कहते है। इस प्रकार की कुंडली में शादी, विद्या और वैवाहिक जीवन में परेशानियां बन जाती हैं।

शेषनाग कालसर्प योग
अगर राहु बारहवें घर में, केतु छठे में और बाकी ग्रह इनके बीच में हो तो शेषनाग कालसर्प योग का निर्माण होता है। ऐसा राहु  स्वास्थ्य संबंधित दिक्कतें, और कोर्ट कचहरी जैसी समस्याएं उत्पन्न करता है।
इन सारे दोष और योगों में से किसी भी दोष/योग का  शांति करेंगे तो बहोत ज्यादा खर्च होगा,इसलिए मैंने इनके निवारण हेतु एक अच्छा उपाय ढूंढा है,वह है तंत्र और तांत्रिक जड़ी बूटियों के माध्यम से बना हुआ कवच,जो इन दोष/योग से मुक्ति दे सकता है,इस कवच का निर्माण कुंडली के अध्ययन के बाद किया जाएगा और किसी शुभ मुहूर्त में कवच को बनाया जाएगा । इससे आपको कुछ ही दिनों में अच्छे परिणाम देखने मिलेंगे,इस कवच के निर्माण हेतु 1250/-रुपये धनराशि का खर्च आपको उठाना है ।कवच प्राप्त करने हेतु +918421522368 पर whatsapp से संपर्क करे ।


आदेश......

30 Jun 2019

दोष निवारण और रक्षा कवच.


कर्म और भाग्य कभी-कभी इसलिए साथ नहीं दे पाते हैं  क्योंकि राह में किसी और का भी रोड़ा आ जाता है। अधिक परिश्रम करने के बावजूद किसी भी प्रकार का कोई शुभ परिणाम या मनचाहा परिणाम नहीं निकल पाता है। ऐसे में 4 में से किसी एक तरह की बाधा हो सकती है ।

"1. ग्रह बाधा, 2. गृह बाधा, 3. पितृ बाधा और 4.देव बाधा"।


ग्रह-नक्षत्र बाधा : पहली प्राथमिक बाधा को ग्रह नक्षत्रों या कुंडली की बाधा माना जाता है। किसी को राहु परेशान करता है तो कोई शनि से पीड़ित है, जबकि असल में कुंडली बनती है पूर्व जन्म के कर्मों अनुसार। फिर उसका संचालन होता है इस जन्म के कर्मों अनुसार। कर्म के सिद्धांत को समझना बहुत ही कठिन होता है। कोई ग्रह या नक्षत्र किसी व्यक्ति विशेष पर उतना प्रभाव नहीं डालता जितना कि वह स्थान विशेष पर डालता है। हालांकि व्यक्ति 27 में से जिस नक्षत्र में जन्म लेता है, उसकी वैसी प्रकृति होती है। कोई व्यक्ति क्यों किसी विशेष और कोई क्यों किसी निम्नतम नक्षत्र में जन्म लेता है? इसका कारण है व्यक्ति के पूर्व जन्मों की गति इसीलिए नक्षत्रों का समाधान जरूरी है।


वास्तु दोष : घर के स्थान और दिशा का जीवन पर सबसे ज्यादा असर होता है। यदि ग्रह-नक्षत्र सही न भी हों तो भी यदि घर का वास्तु सही है तो सब कुछ सही होने लगेगा। अक्सर यह देखने में आया है कि उत्तर, ईशान और पश्चिम एवं वायव्य दिशा का घर ही उचित और शुभ फल देने वाला होता है। घर के अंदर शौचायल, स्नानघर और किचन को उचित दिशा में ही बनवाएं।


पितृ बाधा : यदि आपके ग्रह-नक्षत्र भी सही हैं, घर का वास्तु भी सही है तब भी किसी प्रकार का कोई आकस्मिक दुख या धन का अभाव बना रहता है, तो फिर पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र से भी पितृदोष का पता लगाया जाता है और उसके निवारण हेतु शान्तिकर्म भी किया जाता है ।


देव बाधा : देव बाधा से बचना मुश्किल है। अधिकतर लोगों पर देव बाधा नहीं होती । देव बाधा उन पर होती है, जो नास्तिक है, सदा झूठ बोलते रहते हैं। किसी भी प्रकार का व्यसन करते हैं और देवी-देवता, धर्म या किसी साधु का मजाक उड़ाते या उनके प्रति असम्मान व्यक्त करते रहते हैं। देवी या देवता आपके हर गुप्त कार्य या बातों को सुनने और देखने की क्षमता रखते हैं। छली, कपटी, कामी, दंभी और हिंसक व्यक्ति के संबंध में देवता अधिक जानकारी रखते हैं। वे जानते हैं कि आप किस तरह के व्यक्ति हैं। आप मनुष्य के भेष में असुर हैं या मानव, देव हैं या दानव। इसलिए इस दोष को भी आप निवारण करने हेतु हमेशा तत्पर रहे ।


व्यक्ति मेहनत तो बहोत कर लेता है परंतु जब असफलता के कारण से उसे गुजरना पडता है तो वह जीवन मे मायूस हो जाता है,हार जाता है और फिर से उसको मेहनत करने की इच्छा नही होती है । तंत्र शास्त्र में कई प्रकार की जड़ी बूटियां है जिनके माध्यम से चारो प्रकार के दोषों से बचा जा सकता है परंतु आवश्यकता है सकारात्मक भूमिका की,आप सकारात्मकता के साथ इन चारों दोषों के निवारण हेतु तांत्रिक जडी बूटियों के साथ रक्षा कवच धारण करेंगे तो अवश्य ही आपको जीवन मे सफलता मिलेगी । ये चारों दोष भलेही अपने अपने स्थान पर बड़े है परंतु इस धरा पर ही इन दोषों का समाधान है,बिना कुंडली देखे हमे इन चारों में से कौन-कौनसा दोष है ये पता करना कठिन है । इसलिए ज्योतिष शास्त्र का सहारा लेकर कुंडली के अध्ययन मात्र से हम दोष की सही पहचान करके अगर सही प्रकार से दोष निवारण हेतु तांत्रिक जड़ी बूटियों को रक्षा कवच बनाकर धारण करेंगे तो अवश्य ही जीवन मे सभी क्षेत्रों में उन्नति ही उन्नति संभव है ।


आनेवाले समय मे बहोत सारे शुभ मुहूर्त है,जैसे अभी चंद्रग्रहण, गुरुपूर्णिमा, श्रावण माह......इत्यादि, तो ऐसे मुहूर्तों में जड़ी बूटियों से निर्मित दोष निवारण रक्षा कवच शक्तिशाली बनाये जा सकते है । मैने जीवन मे इस प्रकार का कार्य पहिले भी संपन्न किया था और इसमे मुझे बहोत से लोगो की सेवा करने का मौका मिला, आज वह सभी लोग कहीं ना कही अपने जीवन मे अपने अपने क्षेत्र में उन्नति के ओर आगे बढ़ चुके है । ऐसा तांत्रिक जड़ी बूटियों के माध्यम से बनाया जानेवाला रक्षा कवच कुंडली के अध्ययन से बनाया जायेगा, जिसका न्योच्छावर राशि 1450/-रुपये है । जो व्यक्ति इन्हें धारण करने के इच्छुक है उन्हें धनराशि भेजने हेतु संपर्क करना है,जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान whatsapp पर भेजना है,कुंडली अध्ययन के बाद उचित मूहर्त में उनके लिए कवच बनाकर  उनके रहिवासी स्थान पर जल्दी भेज दिया जाएगा ताकि उन्हें अच्छे परिणाम शीघ्र प्राप्त हो ।
" Whatsapp number   +918421522368 "

आदेश........

29 Jun 2019

कुंडलिनी उर्जा का सत्य



कुंडलिनी के बारे में आज आध्यत्म और विज्ञान दोनों ही खोज कर रहे हैं,यह एक आकर्षण का विषय हो गया है किन्तु बिना सत्य यह एक कल्पना और अंधविश्वास का विषय ही है। आज कुंडलिनी ध्यान पर कितने शिबिर और योग और हीलिंग सेंटर चल रहे पर क्या कुंडलिनी के बारे में जो सत्य परोसा गया है वो कितना सत्य है ?

क्यूंकि बिना अभ्यास सीधा ही कुंडलिनी जागरण में प्रवेश करना तबाही का कारण हो सकता है। गुरु परम्परा या सिद्ध कौलमार्ग को समझे बिना मूर्खतावश कुंडलिनी जाग्रत करना साधक का अधोपतन करवाता है। कुंडलिनी विषय गहरा और ध्यानात्मक विषय है। यह एक दिन के शिबिर या कुछ महीनो की प्राणायाम की प्रेक्टिस से सिद्ध नहीं होता। प्राणायाम केवल मस्तिष्क और ब्रह्मरंध्र शरीर के सोये हुए कोषों को चार्ज करता है। इससे कुंडलिनी का वहन 1 प्रतिशत भी नहीं होता। यह मिथ्या धारणा फेली हुई है। इस पर न जाने कितने लोग अपना बिज़नेस बना कर बैठ गए हैं। बिना सिद्धि को प्राप्त किये साधना में कुंडलिनी पर काबू पाना सम्भव नहीं है।

अब यह कुंडलिनी है क्या ? वह समझना है और उसके आयाम कितने है ? यह 16 आयाम और 7 पथ पर चल कर अपने शिव को मिलती है। कुंडलिनी एक सॉफ्टवेर प्रोग्राम जैसा है जहाँ उसकी खुद की शक्ति नहीं है वो प्रोग्रामर के आधीन हो कर अपने प्रोग्राम को रन करती है,प्रोग्रामर अपनी सोच, अपने संकल्प के अनुसार एक ही कुंडलनी को अनेको आयामों में विभाजित करता है,जिसको सहस्त्रदल की सिद्धि कहते हैं।

किन्तु यह प्रोग्रामर के पास खुद की शक्ति नहीं है। बल्कि वो अपने प्रोग्राम को रन करने के लिए पावर हाउस चैतन्य आत्मा का करता है आत्मा को अजाग्रत अवस्था में बांध दिया जाता है,अभी आत्मा तो स्वयं मुक्त है किन्तु कर्म-बंधन या कर्म-चक्र का प्रोग्राम वो आत्मा और शरीर के बीच का माध्यम जिसे मन कहते उसमें इंस्टाल किया जाता है।

कम्पूटर में जितने प्रोग्राम कम होगे उतने कम्पूटर की स्पीड ज्यादा रहेगी पर यह प्रोग्राम की कर्म की चिप जिसे कुंडलिनी कहते है उसे सुषुप्त अवस्था में छोड़ा जाता है। इस के कारण आत्मा परमात्मा नहीं बनकर
जीवात्मा बनाया जाता है। प्रोग्रामर के द्वारा पहले से जन्म और आने वाले जन्मो का कर्म पहले से ही इंस्टाल है। कभी-कभी इन्सान सिक्स्थ सेन्स की बातें करता है मानो वो नॉनसेन्स है क्यूंकि उसको पता ही नहीं प्रेरणा देने वाला उसका ही प्रोग्राम किया हुआ मन है। वो अपने प्रोग्राम के अनुसार ही कर्म करता है
और पाप-पूण्य सिद्धियो के चक्र को सत्य मान लेता है। यही मायाजाल है और उसका सेंसर है मन।
मन की तीन अवस्थाएं है-
उसको बाह्य, सूक्ष्म और अंतर मन कहते हैं। बाह्य वाला व्यक्ति जड और तामसिक होता है। सूक्ष्म वाला भोगी और राजसिक होता है। अंतर मन वाला सात्विक और वैरागी होता है। यह तीनो मायाजाल में घूमते है। किसी प्रोग्रामर के संकल्पों को पूरा करता है। सत्व वाला सत्व बढ़ा कर वापस दूसरे जन्म में रजस में फसता है क्यूंकि उसने सत्व में भौतिक सुखों का त्याग किया किन्तु बाह्य और सूक्ष्म मन के प्रोग्राम को नहीं जिया। विधाता कर्म का चक्र ऐसे घुमाता है।

दुसरे तत्वों वाले उसके विपरीत तत्वों का चयन करेंगे। कुंडलिनी का कार्य है भोगी बनाना।
भोग चाहे सत्व हो, रज हो या तमस,अब बात आएगी प्रोग्रामर के आगे की सोच को समझने की।
उसका एक ही सिद्धांत है-
परमात्मा त्रिगुणातीत है, काला तीत है।
समय उसके हिसाब से चलता है वो समय के हिसाब से नहीं।

अपरा सिद्धि को सिर्फ शब्दब्रह्म की साधना के अंतर्गत गुरु द्वारा सत्य शिष्य को समझाया जाता है।
गुरु ही केवल मार्ग है जो प्रोग्रामर से विपरीत भाषा को जानते हैं। इस हेतु बिना सिद्ध गुरु-निर्देशन से साधना मुक्ति में बाधा बनती है। एक बार गुरुदेव से इस विषय पर बातचीत हुई। उन्होंने कहा था मूर्ख होते है जो कुंडलिनी के पीछे पडते हैं। कुंडलिनी के वश में नहीं होना है कुंडलिनी को अपने वश में करना है। चैतन्य को साधा नहीं जाता, चैतन्यमय हुआ जाता है। जब तक यह अवस्था नहीं है तब तक जीव अपनी आत्मा को कुंडलिनी के पाश में पाता है। कुंडलिनी जागरण में अनेकों सिद्धियों को बताया गया है किन्तु वो सिद्धि साधक को मोक्ष में भटका सकती है।

इसमें दो प्रकार की सिद्धि कार्य में रहती है-
एक परा सिद्धि और एक अपरा सिद्धि। परा सिद्धि के अंतर्गत देवता, यक्ष ,किन्नर, गंधर्व, भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी-लाकिनी-हाकिनी-काकिनी--इन तत्वों से जुडी हुई सिद्धि मिलती है। इसमें जीव के प्रमुख तत्वों के अनुसार यह सिद्धियां जाग्रत होती हैं।
साधक कौनसे तत्वों में अपनी साधना करता है उस हिसाब की सिद्धि होती है। 'पराशक्ति पिंडे सौ ब्रह्मांडे' के अनुसार ब्रह्मांड को एक पिंड समझो। उसके अंतर्गत जीव, देवता, मनुष्य सब आ जाते हैं। यह मूल पंचभूतो के माध्यम से 3 तत्वों से अनुसन्धान करता है।

यह तीन तत्व हैं- सत्व, रज और तम।
इसमें से कौन-से तत्व का जीव है,उस प्रकार की सिद्धि जाग्रत होती है।
ऐसीे परासिद्धि से वो एक काल- चक्र के सीमित ज्ञान काउद्बोधन कर सकता है। यह जाग्रति ने कितने सिद्ध आत्माओं को फंसा दिया है।
कौन बोल रहा है कौन-सी भाषा आ रही है? उस हिसाब की सिद्धि का पता चलता है।
इसमें मध्यमा, वैखरी, परा और पश्यन्ति की प्राप्ति होती है किन्तु वो सार या बोध की अवस्था की प्राप्ति नहीं कर पाता। ललिता सहस्त्र नाम् में भगवती और कुंडलिनी के नामो का विवरण आता है। उसमे एक मन्त्र आता है जिसमें पश्यन्ति पर देवता यानि देवताओ की वाणी समझना जिसे श्रुति कहते हैं। यह आकाशिक रिकॉर्ड का ज्ञान मिल जाता है किन्तु आकाश और अन्तरिक्ष वो ब्रह्मांड यानि पिंड का ही सत्य है। साधक अपने आप को यहाँ मोक्ष प्राप्त किया हुआ समझता है पर यह मोक्ष का छल है।
सात्विक वृतियों की सर्वोच्च सिद्धि मिलने पर इन्सान मुक्ति को समझता है, प्राप्त नहीं करता। यहां वह कुछ सिद्धियो को प्राप्त करके अपने आप को पद दे देता है। पर इससे आगे यानि हिरण्यगर्भ संकल्प के अंतर्गत यह एक छलावे के लिए रचना की गयी है कि
साधक को मुक्ति का भ्रम हो। जिसमे बहुत सारे सिद्ध फंस चुके। हमने कितने देवताओं के पीछे नाग का चित्र देखा है। उसका निर्देश यही है की वो कुंडलिनी के अंतर्गत मोक्ष को मिले है मूल मुक्ति इससे काफी दूर है। कृष्ण ने कालियानाग का दमन किया उसके ऊपर चढ़कर। हम इश्वर या देवता की लीला में फंस गए किन्तु यह नहीं सोचा कि बोध क्या है ?

हमारी आत्मा जो इश्वर है, जो काल रूपी कुंडलिनी से उपर है, मुक्त है। हमें यहा साधना कुंडलिनी जागरण की नहीं करनी बल्कि उससे मुक्त होकर उसका उद्धार करने की है। अब अपरा सिद्धि को देखो। यह भौतिक और वासनात्मक नहीं अपितु पराभौतिक और आध्यात्मिक है। परा-सिद्धि से आत्मा को प्रलय तक ही मुक्ति मिलती है और अपरा-सिद्धि सर्वदा मुक्ति के लिए है । प्रलय और महाप्रलय में परासिद्धि वाला आत्मा वापस अपने जीव और तत्व के भाव में आ जाता है। जब की अपरासिद्धि कभी नष्ट नहीं होती। वो जब भी जन्म लेती है वो वैरागयुक्त और काल-चक्र से मुक्त रहती है। उसका प्रयोजन मायाजाल में भेद करके मोक्ष के ज्ञान को प्रगट करना होता है। अपरा का महत्व इतना ही है कि परा इसके सामने तुच्छ है।

यही अपराशक्ति परब्रह्म की शक्ति होती है। गुरुतत्व-बोध,तत्वों का सारतत्व युक्त होती है। कौलमार्ग परा और अपरा दोनों ही सीद्धि का मार्ग है। उसके प्रणेता नादी गुरु हैं जो स्वयम प्रगट नाद रूप हो। नाद उनके हिसाब से चलता है। हमने कितने ब्रह्म पुरुषों के बारे में सुना है। वो कहते हैं कि अनेको ब्रह्मांड है, अनेको ब्रह्म हैं और ब्रह्म ही काल से मुक्त होता है। क्यूंकि अपरासिद्धि से कुंडलिनी को छोड़ आत्मा अपने मूल शब्दस्वरुप में आता है। मानो कोई कम्पनी का wi-fi नेटवर्क जहाँ जाओगे हमें ही पाओगे यह इश्वरीय शक्ति है। कण-कण में व्याप्त है।

आत्मा की मूल शक्ति शब्दब्रह्म है नकि कुंडलिनी।
कुंडलिनी काल का पाश है।वो बार- बार अपने ज़हर से इन्द्रिय रूपी गोकुल में तबाही करता है। नाद अनुसन्धान से ही अपरा प्रकृति उद्भव होती है।
इंद्र भी दास हो जाता है। देवता तुम्हारी सेवा में आ जाते हैं। ब्रह्मा तुम्हे समझने नीचे आते हैं। यह बहुत उच्चतम और भगवदीय अवस्था है। इसको मात्र गुरुसेवा और गुरुभक्ति से ही प्राप्त किया जाता है।


आदेश........