29 Sept 2015

शिव मंत्र -इच्चापुर्ती साधना.

जो साधक मनोकामनाओं की पूर्ति करने के लिये भगवान शिव की साधना पूर्ण भक्ति भाव से करते हैं उन्हे इस साधना के द्वारा अनन्य लाभ की प्राप्ति होती है l जीवन में अनेक प्रकार की समस्यायें होती हैं। समाज के अलग-अलग वर्ग की अलग-अलग आवश्यकतायें होती हैं किन्तु जिस
प्रकार से भगवान शिव का परिवार सभी विरोधाभाषों को समेटे एक सम्पूर्णता का प्रतीक है उसी प्रकार की यह साधना जीवन की विभिन्न विरोधाभाषी स्थितियों का निदान करने में समर्थ हैं। उदाहरण के लिये परिवार का मुखिया विभिन्न जिम्मेदारियों के साथ आय प्राप्ति के लिये चिन्तित रहता हैं। पत्नी अपने अक्ष्क्षुण सौभाग्य की कामना करती है, किशोर आयु वर्ग के बालक-बालिकाओं
को विद्या प्राप्ति की समस्या होती हैं,वहीं युवा वर्ग के साथ विवाह की सुखद गृहस्थ जीवन, शत्रु नाश, राज्य सम्मानइत्यादि
स्थितियों का समाधान भी इसी से प्राप्त होता हैं।
भगवान शिव का स्वरुप शक्ति युक्त होने के कारण सर्वाधिक प्रभावशाली और साधक की मनोकामना को पूर्ण करने वाला हैं। इसी से जहॉ छोटे से छोटे गॉव में शिवालय की स्थापना मिलती है। उस शिवालय में कोई भी स्त्री गौरा- पार्वती की आराधना करके अपने जीवन की सफलता को प्राप्त कर सकती हैं। पुरुष यदि कामना करता हैं। कि उसका पुत्र भगवान श्री गणपति के समान बल बुद्धी से युक्त हो तो वहीं स्त्री की कामना रहती है कि उसका पुत्र कार्तिकेय जैसा सौन्दर्यवान और वीर हो। जहॉ शिव है वहीं शक्ति है ठीक उसी प्रकार जहॉ श्री गणपति हैं, वहीं लक्ष्मी है, जहॉ
श्री कार्तिकेय हैं, वहीं भगवती सरस्वती हैं, इसी से इस साधना को सम्पूर्ण साधना कहा गया हैं। भगवान शिव की साधना के लिये सामान्य रुप से निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है।

यथा :- (1) आसन (2) ताम्र-पात्र जल हेतु (3) गंगाजल (4) स्टी की प्लेट (5) रौली
(6) चावल (7) केसर (8) पुष्प व पुष्पमाला-6 (9) वेल-पत्र (10) पंच्चामृत (11) नारियल (12) यज्ञोपवीत (13) अबीर-गुलाल (14) अगरबत्ती (15) कपूर (16) घी का दीपक (17) नैवेद्य (18) पॉच प्रकार के फल (19) लौग-इलायची (20) ताम्बूल (21) चन्दन लाल व श्वेत (22) रुद्राक्ष
की माला।

इसके अलावा पंचपात्र, अध्र्यपात्र, घण्टी, इत्यादि की व्यवस्था भी रहनी चाहियें।

साधना विधि :- सर्वप्रथम स्नान कर शुद्ध सफेद धोती पहनकर पूर्व की ओर मुंह कर
आसन पर बैठ जाय, यदि सम्भव हो तो जोडे से बैठे जोडे में अपनी पत्नी को दाहिने हाथ की ओर आसन पर बैठाना चाहिये। इसके बाद अपनी चोटी में गॉठलगा लेनी चाहिये इसके बाद बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने पूरे
शरीर पर निम्न प्रोक्षण बोलते हुये अपने
शरीर पर जल छिडकना चाहिये , जिससे शरीर पवित्र हो जाय।

llअपवित्र पवित्रो वा सर्वावस्था गतोपिवा।
य: स्मेरत पुण्डरीकाक्षं स वाहृयाभ्यन्तर शुचि: ll

तत्पश्चात अपने सामने जल का कलश चावलों की ढेरी पर रख दें और कलश के चारों ओर रोली या केसर चन्दन से चारों दिशाओं में स्वास्तिक बना देना चाहिये और निम्न मंत्र पढ़तें हुयें कलश में जल भरें-

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले स्मिन सन्निध कुरु ।।
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्यास्सकरतस्तथा ।
आगच्छन्तु पवित्राणि पूजाकाले सदा मम।।

फिर उस कलश में स हाथ मे जल लेकर संकल्प करे -

ll ओम र्विष्णु र्विष्णु श्रीमद भगवतो मापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य
अद्य श्री ब्रहण: द्वितीय परार्धे श्वेतवाराह
कल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्ट र्विशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बुद्वीपे भारत वर्षे (अपने शहर का नाम ले) नगरे अमुक (माह का नाम )  मासे अमुक (दिन का नाम) वासरे मम (अपना नाम व -कामनाओं का नाम ले) अमुक (कामना बोलिये ) कामना सिद्यर्थे साधना करिष्ये।

हाथ मे लिया हुआ जल जमीन पर छोड दे



इसमें जिन जिन कार्यो की पूर्ति का विवरण दिया गया है या आपकी जो भी इच्छा है, उसका उच्चारण कर सकते हैं या मन में बोल सकते हैं।

सर्व प्रथम गणेश जी का पूजन करना चाहिये शिव परिवार में स्थापित गणेश जी सर्व प्रथम जन चढाना चाहिये तत्पश्चात केसर युक्त चन्दन का तिलक लगाना चाहिये नैवेद्य तथा फल अर्पण करके पुष्प चढ़ाना चाहियें और निम्न मन्त्र से गणेश जी का ध्यान करना चाहिये ।

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक: ।।
ध्रूमकेतुर्गणाध्यक्षो भाल चन्द्रो गजानन: ।
द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छाणुयादपि ।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्राम संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।

फिर शुद्ध जल में थोडा सा कच्चा दूध और गंगाजल मिलाकर "ओम नम: शिवाय" मन्त्र का उच्चारण करते हुये सभी शिव परिवार देवताओं पर पतली धार गभग दस मिनट तक जल चढाना चाहिये उसके बाद पंच्चामृत से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिये। तत्पश्चात सभी देवों के निम्न मन्त्र से केशर और कुंकुम का तिलक लगावें।

नमस्सुगन्धदेहाय हय्वन्ध्य फल दायिने ।
तुम्य गन्धं प्रदास्यामि चान्धकासुरभन्जन ।।

इसके पश्चात भगवान शिव पर और अन्य देवताओं पर अबीर, गुलाल और अक्षत तथा पुष्प और पुष्पमाला अर्पण करना चाहिये । अगरबत्ती और दीपक जला कर नैवेद्य तथा फल चढ़ाना चाहिये और श्रद्धायुक्त दोनों हाथ जोड़ कर निम्न स्तुति का पाठ करें।

वन्दे देव उमापति सुरगुरु वन्दे जगत्कारणम ।
वन्दे पन्नग भूषणा मृगधर वन्दे पशुनापतिम् ।।
वन्दे सूर्य शशांक वहि नयनं वन्दे मुकुन्द प्रियम ।
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिव शंकरम् ।।

इसके बाद रुद्राक्ष की माला से जप करना चाहिये रुद्राक्ष की माला के अलावा स्फटिक माला मूंगा की माला अपनी मनोकामना के अनुसार ली जाती हैं । लेकिन उक्त माला अभिमन्त्रित होनी चाहिये । अभिमन्त्रित माला से ही जप का पूर्ण लाभ प्राप्त होता हैं। जाप में कम से
कम ग्यारह मालाओं का जाप 11 दिनो तक करना आवश्यक है और मंत्र का जाप सोमवार से प्रारंभ करे ।

गोपनिय शिव मंत्र-

ll ओम ऐं साम्ब सदाशिवाय नम: ll

(om aim saamb sadaashivaay namah)

मंत्र जाप के बाद शिव जी की आरती करे और चढाया हुआ प्रसाद परिवार मे वितरित कर दे.


आदेश.