4 Feb 2018

सूर्यग्रहण मंत्र साधना





16 फ़रवरी 2018 को साल का पहला सूर्य ग्रहण घटित होगा। भारतीय समयानुसार इस सूर्य ग्रहण ग्रहण की समयावधि रात्रि 00:25:51 से सुबह 04:17:08 बजे तक रहेगी,ग्रहण के समय अनुसार यह ग्रहण 15 फरवरी के रात्रि में घटित होगा। यह आंशिक सूर्य ग्रहण होगा जो भारत में नहीं दिखाई देगा। हालांकि दुनिया के अन्य क्षेत्रों जैसे- साउथ अमेरिका, पेसिफिक, अटलांटिक और अंटार्कटिका में इसकी दृश्यता रहेगी। ग्रहण चाहे दुनिया मे कही पर भी हो परंतु तंत्र साधना हेतु वह एक अच्छा समय होता है जिसमे मंत्र सिद्धि प्राप्त की जा सकती है ।

यह ग्रहण हमारे देश मे तंत्र साधना हेतु फायदेमंद है क्युके जो मंत्र साधना हमे रात्रि में करना है,ठीक समयानुसार ग्रहण काल भी रात्रि में है । इसलिए हम इस बार "तंत्र उत्कीलन त्रिपुरा साधना" करेंगे, जो एक महत्वपूर्ण साधना है ।

यदि हम जीवन का गहराई से विश्लेषण करें, तो पायेंगे, कि व्यक्ति हर पल, हर क्षण, भय एवं बाधाओं से आशंकित रहता है। गहराई से विश्लेषण करने पर ऐसा ही प्रतीत होता है कि मनुष्य की शक्तियां कीलित हो गई हैं। शक्तियों का यह कीलन स्वार्थी लोगों द्वारा या उनकी स्वयं की गलतियों से भी हो सकता है। इस कारण जीवन में भय का वातावरण बना रहता है और यह भी सत्य है कि निर्भय हुए बिना जीवन का आनन्द संभव ही नहीं है।

जीवन में निर्भयता एवं बाधाओं के निवारण के लिए व्यक्ति अनेक उपाय करता ही रहता है। जिस प्रकार कांटे से कांटा निकाला जा सकता है उसी प्रकार जीवन में कुछ ऐसी बाधाएं, ऐसी समस्याएं होती हैं जिन्हें उच्च तंत्र साधनाओं द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है।

आवश्यकता केवल इस बात कि है कि हम अपने जीवन का विश्लेषण करें तथा इस बात को समझें कि हमारे जीवन में जो घटित हो रहा है वह सामान्य है अथवा असामान्य। सामान्य समस्याओं का हल तो सामान्य प्रयोगों से किया जा सकता है। किन्तु असामान्य समस्याओं का हल तो विशेष तंत्र प्रयोगों से ही संभव है और इस हेतु उच्चस्तरीय तंत्र साधनाएं सम्पन्न करनी होती हैं। इस हेतु श्रेष्ठ उपाय है – ‘ तंत्र उत्कीलन त्रिपुरा साधना ’।

त्रिपुर भैरवी दस महाविद्याओं में अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं तीव्र शक्ति स्वरूपा हैं। इनकी कृपा से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुरक्षा प्राप्त होेने लगती है और समस्त बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। इनकी तंत्र शक्ति के माध्यम से साधक पूर्ण क्षमतावान एवं वेगवान बन सकता है।

भगवती त्रिपुर भैरवी, महाभैरव की ही शक्ति हैं, उनकी मूल शक्ति होने के कारण उनसे भी सहस्र गुणा अधिक तीव्र तथा क्रियाशील हैं। साधक जिन लाभों को भैरव साधना सम्पन्न करने से प्राप्त करता है, जैसे शत्रुबाधा निवारण, वाद-विवाद मुकदमा आदि में विजय, आकस्मिक दुर्घटना टालना, रोग निवारण आदि इस साधना के माध्यम से इन विषम स्थितियों पर भी आसानी से नियंत्रण कर सकता है।

कैसा भी वशीकरण प्रयोग करवा दिया गया हो, कैसा भी भीषण तांत्रिक प्रयोग कर दिया गया हो, दुर्भावना वश वशीकरण प्रयोग कर दिया गया हो, गृहस्थ या व्यापार बन्ध प्रयोग हुआ हो, तो तंत्र उत्कीलन त्रिपुरा साधना सम्पन्न करने पर वह बेअसर हो जाता है।



उच्च स्तरीय तंत्र प्रयोग

जब किसी व्यक्ति पर या उसके परिवार पर द्वेष वश तांत्रिक प्रयोग होता है, तो वह परिवार अत्यन्त कष्ट भोगने के लिए विवश हो जाता है। तांत्रिक बाधा के कारण उसके समस्त कार्य बाधित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में तंत्र साधना सम्पन्न करने पर व्यक्ति का जीवन निष्कंटक तथा तेजस्वी क्षमताओं से युक्त हो जाता है।



कीलन दोष क्या है?

कीलन का तात्पर्य है, एक बन्धन। जिस प्रकार एक खूंटे से बंधा पशु उस खूंटे के चारों ओर तो चक्कर लगा सकता है लेकिन वह सीमा से आगे नहीं बढ़ सकता, खूंटे से गले तक की रस्सी किसी के लिए छोटी हो सकती है और किसी के लिए बड़ी, परन्तु बन्धन तो बन्धन ही है, वह एक पक्षी की भांति स्वच्छन्द विचरण तो नहीं कर सकता, इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की शक्तियों का कीलन किया हुआ है, और यह कीलन उसके कर्मों के कारण, उसके दोषों के कारण, उस पर किये गये किसी तांत्रिक प्रयोगों द्वारा आदि शक्ति के प्रभाव से हो जाता है, और जब तक यह दोष दूर नहीं हो जाता तब तक वह कितना ही प्रयास करे, उसके कार्य सफल नहीं हो पाते, उसके देखते-देखते उसके साथ वाले जीवन की दौड़ में आगे निकल जाते हैं और वह एक पशु की भांति अपने ही स्थान पर बंधा छटपटाता रहता है।



उत्कीलन क्या है?

क्या कीलन दोष का कोई उपाय है? क्या कीलन दोष ऐसा कलंक है, जिसे उतारा ही नहीं जा सकता? क्या साधक अपने भीतर अपनी शक्ति का उस स्तर तक विकास नहीं कर सकता, जिससे कीलन दोष दूर हो जाय?

ठीक यही प्रश्न तंत्र के आदि रचियता भगवान शिव से पार्वती ने किया था कि – हे प्रभु! आप तो भक्तों पर परम कृपा करने वाले हैं, आगम-निगम बीज मंत्रों के स्वरूप हैं, भक्ति मुक्ति के प्रदाता हैं फिर आपने मन्त्रों का कीलन क्यों किया? क्यों सांसारिक प्राणियों को मंत्र सिद्धि में पूर्णता प्राप्त नहीं होती?

देवों के देव महादेव ने कहा, कि जैसे-जैसे युग बदलेगा वैसे-वैसे लोगों में भक्ति-प्रीति कम होगी, राग, द्वेष, ईर्ष्या, विरोध, शत्रुता में वृद्धि होगी, एक प्राणी दूसरे प्राणी को देखकर प्रसन्न नहीं होगा, अपितु ईर्ष्या करेगा और इस ईर्ष्या के वशीभूत अपनी शक्तियों का उपयोग बुरे कार्यों में करेगा, यदि ऐसे गलत व्यक्तियों के हाथ में मंत्र सिद्धि, तंत्र सिद्धि लग गई तो वे संसार में विपत्ति की स्थिति उत्पन्न कर देंगे।



उत्कीलन महाविद्या

मनुष्य जीवन में ऐसा ही हो रहा है, कुछ स्वार्थी व्यक्तियों या स्वयं की कुछ गलतियों के कारण भी जीवन कीलित हो जाता है और उसके द्वारा किये गये कार्यों का उसे पूर्ण फल नहीं मिल पा रहा है। जीवन में उसे किसी भी प्रकार के कीलन को समाप्त करने हेतु ही ब्लॉग में विशेष ‘ तंत्र उत्कीलन त्रिपुरा साधना ’ दिया जा रहा है। जिससे कीलन दोष शांत करने में सफलता प्राप्त होगी, वह अपने ऊपर अन्य व्यक्तियों द्वारा किये गये तंत्र दूर कर सकेगा, अपने तंत्र ज्ञान को अपनी रक्षा के लिए प्रयोग कर सकेगा।



साधना विधान

यह साधना विशेष रूप से सूर्यग्रहण के समय और होली के रात्रि को 10 बजे के पश्चात् सम्पन्न करें। इस साधना हेतु आवश्यक है –एक नारियल, लाल सुपारी और काली हकीक माला आवश्यक है जो आपको पंसारी के दुकान में आसानी से मिल जाएगा । नारियल के सामने जब साधक मंत्र जप करता है तो कैसा ही कीलन प्रयोग हुआ हो वह स्वतः ही समाप्त हो जाता है क्युके नारियल स्वयं त्रिनेत्र से पूर्ण फल है,जिसे श्री फल भी कहा जाता है।

अपने सामने एक बाजोट पर लाल कपड़ा बिछा दें तथा उस लाल कपड़े पर कुंकुम से रंगे चावल और अष्टगन्ध फैला दें, उस पर एक पंक्ति में तिल तथा सरसों बराबर मात्रा में मिलाकर उनकी 11 ढेरियां बनाएं तथा प्रत्येक ढेरी पर एक-एक ‘ लाल सुपारी’ रख दें, अब इनके सामने ही ‘ नारियल ’ एक ताम्र पात्र में स्थापित कर दें। अब सर्वप्रथम विनियोग करें –


विनियोग

ॐ अस्य श्री सर्वयंत्रमंत्राणां उत्कीलनमंत्र स्तोत्रस्य मूल प्रकृतिर्ॠषिर्जगतीच्छन्दः, निरंजनी देवता क्लीं बीजं ह्रीं शक्तिः, ह्रः लौं कीलकं सप्तकोटिमन्त्रयन्त्रतन्त्रकी
लकानां संजीवन सिद्धर्थे जपे विनियोगः।


विनियोग के पश्चात् त्रिपुर भैरवी का ध्यान निम्न मंत्र का जप करते हुए करें –

उद्यद्भानु सहस्र कांति मरुणा क्षौमां शिरोमालिकाम् रक्तालिप्त पयोधरां जपपटीं विद्यामभीतिं वरम् हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्र विलसद् वक्त्रार विन्द श्रियम् देवी बद्ध हिमांशु रत्न मुकुटां वन्दे – रमन्दस्तिाम्।

भगवती त्रिपुर भैरवी की देह कान्ति उदीयमान सहस्र सूर्यों की कांति के समान है। वे रक्त वर्ण के रेशमी वस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके गले में मुण्ड माला तथा दोनों स्तन रक्त से लिप्त हैं। वे अपने हाथों में जप-माला, पुस्तक, अभय मुद्रा तथा वर मुद्रा धारण किए हुए हैं। उनके ललाट पर चन्द्रमा की कला शोभायमान है। रक्त कमल जैसी शोभा वाले उनके तीन नेत्र हैं। आपके मस्तक पर रत्न जटित मुकुट है तथा मुख पर मन्द मुस्कान है। आपको मेरा प्रणाम स्वीकार हो।



अपने दाहिने हाथ से नारियल को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्रों का उच्चारण करें –

ॐ मण्डूकाय नमः। ॐ कालाग्निरुद्राय नमः। ॐ मूलप्रकृत्यै नमः। ॐ आधारशक्त्यै नमः। ॐ कूर्माय नमः। ॐ अनन्ताय नमः। ॐ वाराहाय नमः। ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ सुधाम्बुधये नमः। ॐ सर्वसागराय नमः। ॐ मणिद्विषाय नमः। ॐ चिन्तामणि गृहाय नमः। ॐ श्मशानाय नमः। ॐ पारिजाताय नमः। ॐ रत्न वेदिकायै नमः। ॐ मणिपीठाय नमः। ॐ नानामुनिभ्यो नमः। ॐ शिवेभ्यो नमः। ॐ शिवमुण्डेभ्यो नमः। ॐ बहुमांसास्थिमोदमान शिवोभ्यो नमः। ॐ धर्माय नमः। ॐ ज्ञानाय नमः। ॐ वैराज्ञाय नमः। ॐ ऐश्वर्याय नमः। ॐ अधर्माय नमः। ॐ अज्ञानाय नमः। ॐ अवराज्ञानाय नमः। ॐ अनैश्वर्याय नमः। ॐ आनन्दकन्दाय नमः। ॐ सर्वतत्वात्मपद्माय नमः। ॐ प्रकृतिमयपत्रेभ्यो नमः। ॐ विकारमयकेसरेभ्यो नमः। ॐ पंचाशद्वर्णढ़यकर्णिकायै नमः। ॐ अर्कमण्डलाय नमः। ॐ सोममण्डलाय नमः। ॐ महीमण्डलाय नमः। ॐ सत्वाय नमः। ॐ रजसे नमः। ॐ तमसे नमः। ॐ आत्मने नमः। ॐ अन्तरात्मने नमः। ॐ परमात्मने नमः। ॐ ज्ञानात्मने नमः। ॐ क्रियायै नमः। ॐ आनन्दायै नमः। ॐ ऐं पारयै नमः। ॐ परापरायै नमः। ॐ निस्धानाय नमः। ॐ महारुद्र भैरवाय नमः॥

मंत्र उच्चारण के पश्चात् मानसिक रूप से भगवान सदाशिव का ध्यान करें तथा भगवान सदाशिव से तंत्र बाधाओं से मुक्त कराने का निवेदन करें। भगवान शिव के ध्यान के पश्चात् साधक ‘ काली हकीक माला ’ से निम्न भैरवी उत्कीलन मंत्र की एक माला जप करें।


मंत्र
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं षट् पंचाक्षराणाम उत्कीलय उत्कीलय स्वाहा। ॐ जूं सर्वमन्त्र यन्त्र तन्त्राणां संजीवनं कुरु कुुरु स्वाहा॥
Om hreem hreem hreem shat panchaaksharaanaam utkilay utkilay swaahaa,om jum sarvmantra yantra tantranaam sanjivanam kuru kuru swaahaa


भैरवी उत्कीलन मंत्र पश्चात् साधक निम्न त्रिपुर भैरवी मंत्र की 31 माला मंत्र जप करें –

मंत्र
॥ह्सैं ह्सकरीं ह्सैं॥
Hasaim hasakareem hasaim


मंत्र जप की पूर्णता पर शक्ति स्वरूपा त्रिपुरा से तंत्र बाधाओं की समाप्ति की प्रार्थना करें तथा समस्त साधना सामग्री को लाल कपड़े में बांधकर होली की अग्नि में विसर्जित कर दें।

अन्य किसी मुहूर्त पर साधना प्रारम्भ करने पर सात दिन तक नित्य साधना सम्पन्न करने के पश्चात् आठवें दिन समस्त साधना सामग्री को किसी निर्जन स्थान पर जमीन में गाड़ दें। यह विशेष तांत्रोक्त प्रयोग सूर्यग्रहण और होली पर करे तो निच्छित ही सफलता मिलते हुए देखा गया है ।

आदेश......