27 May 2025

हनुमान जी के विशेष मंत्र

 



हनुमान जी को चोला चढाने से साधक को श्री हनुमान जी कृपा प्राप्त होती हैं ! ऐसा करने से श्री हनुमान जी प्रसन्न होते हैं ! हनुमान जी को चोला चढ़ाने से जातक के उपाय चल रही शनि की साढ़े साती, ढैया, दशा या अंतरदशा या राहू या केतु की दशा या अंतरदशा में हो रहे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। साथ ही साधक के संकट और रोग दूर हो जाते हैं ! जातक की दीर्घायु होती है।

यह तो आप सब जानते है की भगवान श्री हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र अवतार हैं ! हमारे हिन्दू धर्म में सिंदूर का महत्व बताया गया हैं ! ऐसे ही हमारे हिन्दू धर्म में की भी मान्यता हैं ! साधक श्री हनुमान जी को ख़ास कर सिंदूर का चोला चढाने से श्री राम जी की भी कृपा प्राप्त होती हैं यह आपको रामायण में वर्णित मिल जायेगा।

इस लेख को पढ़ने के बाद आप हनुमान जी चोला चढ़ाने में आगे से कोई भी गलती नही होगी।


मंत्र विद्या 

१- "ॐ नमो हनुमते पाहि पाहि एहि एहि सर्वभूतानां डाकिनी शाकिनीनां सर्वविषयान आकर्षय आकर्षय मर्दय मर्दय छेदय छेदय अपमृत्यु प्रभूतमृत्यु शोषय शोषय ज्वल प्रज्वल भूतमंडलपिशाचमंडल निरसनाय भूतज्वर प्रेतज्वर चातुर्थिकज्वर माहेशऽवरज्वर छिंधि छिंधि भिन्दि भिन्दि अक्षि शूल कक्षि शूल शिरोभ्यंतर शूल गुल्म शूल पित्त शूल ब्रह्मराक्षस शूल प्रबल नागकुलविषंनिर्विषं कुरु कुरु स्वाहा ।"


२- " ॐ ह्रौं हस्फ्रें ख्फ्रें हस्त्रौं हस्ख्फें हसौं हनुमते नमः ।"
इस मंत्र को २१ दिनों तक बारह हजार जप प्रतिदिन करें फिर दही, दूध और घी मिलाते हुए धान का दशांश आहुति दें । यह मंत्र सिद्ध होकर पूर्ण सफलता देता है ।


३- "ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते कराल वदनाय नरसिंहाय, ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रै ह्रौं ह्रः सकल भूत-प्रेतदमनाय स्वाहा ।"
(जप संख्या दस हजार, हवन अष्टगंध से)


४- "ॐ हरिमर्कट वामकरे परिमुञ्चति मुञ्चति श्रृंखलिकाम् ।"
इस मन्त्र को दाँये हाथ पर बाँये हाथ से लिखकर मिटा दे और १०८ बार इसका जप करें प्रतिदिन २१ दिन तक । लाभ – बन्धन-मुक्ति ।


५- "ॐ यो यो हनुमन्त फलफलित धग्धगिति आयुराष परुडाह ।"
प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखकर इस मंत्र का २५ माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है । इस मंत्र के द्वारा पीलिया रोग को झाड़ा जा सकता है ।


६- "ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं ।"
यह ११ अक्षरों वाला मंत्र अति फलदायी है, इसे ११ हजार की संख्या में प्रतिदिन जपना चाहिए ।


७- " ॐ ह्रां ह्रीं फट् देहि ॐ शिवं सिद्धि ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं स्वाहा ।"

८- " ॐ सर्वदुष्ट ग्रह निवारणाय स्वाहा ।"

९- " हं पवननन्दाय स्वाहा ।"

१०- "ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा ।" (१८ अक्षर)

११- "ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ।" (१२ अक्षर)

१२- "ॐ नमो हनुमते मदन क्षोभं संहर संहर आत्मतत्त्वं प्रकाशय प्रकाशय हुं फट् स्वाहा ।"

१३- "ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय अमुकस्य श्रृंखला त्रोटय त्रोटय बन्ध मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा ।"

१४- "ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा ।"

१५- "ॐ हनुमते नमः । अंजनी गर्भ-सम्भूतः कपीन्द्र सचिवोत्तम् । राम-प्रिय नमस्तुभ्यं, हनुमन् रक्ष सर्वदा । ॐ हनुमते नमः ।"

१६- "ॐ हनुमते नमः । आपदाममपहर्तारं दातारं सर्व-सम्पदान् । लोकाभिरामः श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् । ॐ हनुमते नमः ।"

१७- "ॐ हनुमते नमः । मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन । शत्रून् संहर मां रक्ष, श्रियं दापय मे प्रभो । ॐ हनुमते नमः ।"

१८- " ॐ हं पवननन्दाय स्वाहा ।"

१९- "ॐ पूर्व-कपि-मुखाय पञ्च-मुख-हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु संहरणाय स्वाहा ।"

२०- "ॐ पश्चिम-मुखाय-गरुडासनाय पंचमुखहनुमते नमः मं मं मं मं मं, सकल विषहराय स्वाहा ।"

इस मन्त्र की जप संख्या १० हजार है, इसकी साधना दीपावली की अर्द्ध-रात्रि पर करनी चाहिए । यह मन्त्र विष निवारण में अत्यधिक सहायक है ।

२१- "ॐ उत्तरमुखाय आदि वराहाय लं लं लं लं लं सी हं सी हं नील-कण्ठ-मूर्तये लक्ष्मणप्राणदात्रे वीरहनुमते लंकोपदहनाय सकल सम्पत्ति-कराय पुत्र-पौत्रद्यभीष्ट-कराय ॐ नमः स्वाहा ।"
इस मन्त्र का उपयोग महामारी, अमंगल एवं ग्रह-दोष निवारण के लिए है ।

२२- "ॐ नमो पंचवदनाय हनुमते ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुं रुं रुं रुं रुं रुद्रमूर्तये सकललोक वशकराय वेदविद्या-स्वरुपिणे ॐ नमः स्वाहा ।"


यह वशीकरण के लिए उपयोगी मन्त्र है ।
२३- "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रैं हनुमते नमः ।

२४- "ॐ श्री महाञ्जनाय पवन-पुत्र-वेशयावेशय ॐ श्रीहनुमते फट् ।"

यह २५ अक्षरों का मन्त्र है इसके ऋषि ब्रह्मा, छन्द गायत्री, देवता हनुमानजी, बीज श्री और शक्ति फट् बताई गई है । छः दीर्घ स्वरों से युक्त बीज से षडङ्गन्यास करने का विधान है । इस मन्त्र का ध्यान इस प्रकार है -

आञ्जनेयं पाटलास्यं स्वर्णाद्रिसमविग्रहम् ।
परिजातद्रुमूलस्थं चिन्तयेत् साधकोत्तम् ।।




हनुमान जी को चोला चढ़ाने की विधि और लाभ


श्री हनुमान जी को चोला चढाने से साधक को श्री हनुमान जी कृपा प्राप्त होती हैं ! ऐसा करने से श्री हनुमान जी प्रसन्न होते हैं । हनुमान जी को चोला चढ़ाने से जातक के उपाय चल रही शनि की साढ़े साती, ढैया, दशा या अंतरदशा या राहू या केतु की दशा या अंतरदशा में हो रहे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। साथ ही साधक के संकट और रोग दूर हो जाते हैं । जातक की दीर्घायु होती है।

यह तो आप सब जानते है की भगवान श्री हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र अवतार हैं ! हमारे हिन्दू धर्म में सिंदूर का महत्व बताया गया हैं । ऐसे ही हमारे हिन्दू धर्म में की भी मान्यता हैं ! साधक श्री हनुमान जी को ख़ास कर सिंदूर का चोला चढाने से श्री राम जी की भी कृपा प्राप्त होती हैं यह आपको रामायण में वर्णित मिल जायेगा।

इस लेख को पढ़ने के बाद आप हनुमान जी चोला चढ़ाने में आगे से कोई भी गलती नही होगी।


हनुमान जी को चोला चढ़ाने की सामग्री

हनुमान जी को चोला चढ़ाने के लिए श्री हनुमान जी वाला सिंदूर, गाय का घी या चमेली का तेल, शुद्ध गंगाजल मिश्रित जल, चांदी या सोने का वर्क या माली पन्ना (चमकीला कागज), धुप व् दीप , श्री हनुमान चालीसा भी पढ़े ताकि विशेष कृपा प्राप्त हो ।





चोला चढ़ाने की विधि

हनुमान जी को चोला चढ़ाने से पहले पुराना चोला उतारकर साफ़ गंगाजल से मिश्रित जल से स्नान करना चाहिये। स्नान के बाद प्रतिमा को साफ कपड़े से पोछने के बाद सिंदूर में घी या चमेली का तेल मिलाकर गाढ़ा लेप बना ले इसके बाद सीधे हाथ से हनुमान जी के सर से आरम्भ करके सम्पूर्ण शरीर पर लेपन करें।





सावधानियां

श्री हनुमान जी को चोला मंगलवार, शनिवार या विशेष पर्व जैसे की श्री हनुमान जंयती, रामनवमी, दीपवाली, व् होली के दिन चढ़ा सकते है । इसके अलावा अन्य दिन चढ़ाना निषेध माना गया हैं ।

श्री हनुमान जी के लिए लगाने वाला सिंदूर सवा के हिसाब से लगाना चाहिए ! जैसे की सवा पाव ,सवा किलो आदि ।

सिंदूर में मंगलवार के दिन देसी गाय का घी एवं शनिवार के दिन केवल चमेली के तेल का ही प्रयोग करना चाहिए ।

हनुमान जी को चोला चढ़ाने के समय साधक को पवित्र यानी साफ़ लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए ।

श्री हनुमान जी चोला चढाते समय सिंदूर में गाय का घी या चमेली का तेल ही मिलाना चाहिए ।

हनुमान जी को चोला चढ़ाने से पहले पुराने छोले को उतारा जरुर चाहिए और उसके बाद उस चोले को बहते हुए जल में बहा देना चाहिए ।

श्री हनुमान जी की प्रतिमा पर चोला का लेपन अच्‍छी तरह मलकर, रगड़कर चढ़ाना चाहिए उसके बाद चांदी या सोने का वर्क चढ़ाना चाहिए ।

चोला चढ़ाते समय दिए गये मंत्र का जाप करते रहना चाहिए । हनुमान जी को चोला चढ़ाने का मन्त्र

सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।
भक्तयां दत्तं मया देव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम ।।



श्री हनुमान जी को स्त्री द्वारा चोला नही चढ़ाना चाहिए और ना ही चोला चढ़ाते समय स्त्री मंदिर में होनी चाहिए !
हनुमान जी को चोला चढ़ाने के समय साधक की श्वास प्रतिमा पर नही लगनी चाहिए ।


श्री हनुमान जी को चोला सृष्टि क्रम ( पैरों से मस्तक तक चढ़ाने में देवता सौम्य रहते हैं ) में चढ़ाना चाहिए ! संहार क्रम ( मस्तक से पैरों तक चढ़ाने में देवता उग्र हो जाते हैं ) ! यदि आपको कोई मनोकामना पूरी करनी है तो पहले उग्र क्रम से चढ़ाये मनोकामना पूरी होने के बाद सोम्य क्रम में चढ़ाये ! चोला चढ़ाने के बाद हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाकर नीचे दिए क्रम से धूप दीप के बाद क्षमा याचना करें।



धूप-दीप :

अब इस मंत्र के साथ हनुमानजी को धूप-दीप दिखाएं -
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।
ऊँ हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि।।



पूजन वंदन :

इसके पश्चात एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर 11 बार श्री हनुमान चालीसा का पाठ करे व अंत में श्री हनुमानजी की आरती करें। इस प्रकार पूजन करने से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं तथा साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।



क्षमा याचना :

श्री हनुमानजी पूजन के पश्चात अज्ञानतावश पूजन में कुछ कमी रह जाने या गलतियों के लिए भगवान् श्री हनुमानजी के सामने हाथ जोड़कर निम्नलिखित मंत्र का जप करते हुए
क्षमा याचना करे।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं ।
यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव ।
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं ।
पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं ।।



आदेश......


5 Apr 2025

दस महाविद्या साधना.




प्रत्येक साधक अपने जीवन में यह चाहता है कि उसे महाविद्याओं की साधना में सफलता प्राप्त हो और वह जीवन में दैविक शक्ति के सहयोग से भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करें ,पहली बार जब किसी हिरण शावक ने संसार में नेत्र खोला और अंगड़ाई लेकर उठा तो माता मृग के सामने आई और स्तन पान कराकर उसकी क्षुधा शांत की। संसार में आने पर मां के ही सुखद, स्नेहशील स्पर्श से वह आनन्दित हुआ। धीरे-धीरे उसे बोध होने लगा कि मां के रहते उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। इस तरह जीवन में निर्भय और मुक्त होते हुए कुलांचे भर्ता हुआ हिरण शावक बचपन की खुशियों में खो गया।

मनुष्य का मूल स्वभाव है शिशुवत् रहना। प्यार से कोई उसको बेटा कह देता है तो कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों न हो, मन एक बार पुलकित हो जाता है। इसके पीछे छुपी होती है व्यक्ति के अंदर वात्सली और प्रेम को पा लेने की इच्छा और उसमें अपने आपको सुरक्षित कर लेने की भावना, मां के ममतामयी आँचल के तले शिशु अपने आपको निश्चिन्त महसूस करता है। उसको कोई कर्तव्य बोध तो होता नहीं है, तरह-तरह की शैतानियां करके भी वह मां की गोद में दुबक कर एकदम से निश्चिन्त हो जाता है क्योंकि वह जानता है कि रक्षक के रूप में मां उसके साथ खड़ी हैं। साधक के अन्दर भी एक शिशु छुपा होता है, जिससे वह विराट शक्ति को मातृ स्वरूप में देखता है और वह शक्ति मातृ स्वरूप जगदम्बा का स्वरूप ही होता है।

शक्ति मातृ स्वरूप जगदम्बा दस दिशाओं के अनुसार दस महाविद्याओं का रूप धारण करती है। जिन्हें महाकाली, तारा, श्री विद्या, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर-भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला के नाम से जाना जाता है।


1.महाकाली:
महाकाली तंत्र की दस महाविद्याओं में सबसे श्रेष्ठ हैं, जो अपने साधक को तुरंत परिणाम देती हैं। वे अपने साधक को वह सब कुछ दे सकती हैं जो इस संसार में जीने के लिए आवश्यक है। वे शनि ग्रह के बुरे प्रभाव से सुरक्षा प्रदान करती हैं और मनुष्य की सभी इच्छाओं को पूरा कर सकती हैं। वे अपने साधक को नाम, प्रसिद्धि, धन समृद्धि प्रदान करती हैं। उनकी साधना प्राप्त करने से साधक को सभी अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। वे रोग दूर करती हैं, शत्रुओं का नाश करती हैं, तांत्रिक बाधाओं को दूर करती हैं, गलतफहमी दूर करती हैं और तांत्रिक ज्ञान प्रदान करती हैं। महाकाली साधना से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। जब जीवन में प्रबल पुण्योदय होता है तभी साधक ऐसी प्रबल महिषासुर मर्दिनी, वाक् सिद्धि प्रदायक महाकाली साधना सम्पन्न करता है। महाकाली साधना को रोग मुक्ति, शत्रु नष्ट, तंत्र बाधा, भय, वाद-विवाद, धन हानि, कार्य सिद्धि, तन्त्र ज्ञान के लिए किया जाता है।



2.तारा:
तारा देवी को साधक को सर्वांगीण समृद्धि प्रदान करने वाली देवी कहा जाता है। वे वाणी, सुख और मोक्ष की शक्ति प्रदान करती हैं। तांत्रिक विधि से शत्रुओं के नाश के लिए भी उनकी पूजा की जाती है। दस महाविद्या साधना बृहस्पति ग्रह के अशुभ प्रभावों को दूर करती है। व्यवसाय में वृद्धि, नाम और प्रसिद्धि के लिए व्यवसायी को इसकी पूजा करनी चाहिए। तारा महाविद्या साधना आर्थिक उन्नति एवं अन्य बाधाओं के निवारण के लिए की जाती है। इस साधना के सिद्ध होने पर साधक के जीवन में आय के नित्य नये स्रोत खुलने लगते हैं और ऐसा माना जाता है कि माँ भगवती तारा प्रसन्न होकर नित्य साधक को दो तोले सोना प्रदान करती है, जिससे साधक किसी भी प्रकार से दरिद्र न रहे ऐसा साधक पूर्ण ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत कर जीवन में पूर्णता प्राप्त करता है और जीवन चक्र से मुक्त हो जाता है ।



3.त्रिपुरसुंदरी:
त्रिपुर सुंदरी को षोडशी भी कहा जाता है, क्योंकि उनमें सोलह अलौकिक शक्तियां समाहित हैं। सोलह अक्षरों वाले मंत्र से युक्त षोडशी के अंग उगते सूर्य के समान चमकते हैं। उनके चार हाथ और तीन आंखें हैं। वे कमल के फूल पर विराजमान हैं, जो शांत मुद्रा में लेटे हुए शिव के शरीर पर रखा हुआ है। उनके प्रत्येक हाथ में पाश, अंकुश, धनुष और बाण है। अपने भक्तों पर कृपा बरसाने के लिए सदैव तत्पर रहने वाली, उनका स्वरूप पूर्णतया गंभीर और सौम्य है तथा उनका हृदय करुणा से भरा हुआ है। दस महाविद्या साधना बुध ग्रह के अशुभ प्रभावों को दूर करती है। त्रिपुरसुंदरी महाविद्या की साधना से जीवन में सौन्दर्य, काम, सौभाग्य व शरीर सुख के साथ-साथ वशीकरण, सरस्वती सिद्धि, लक्ष्मी सिद्धि, आरोग्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में त्रिपुर सुन्दरी साधना को राजराजेश्वरी कहा गया है क्योंकि यह अपनी कृपा से साधारण व्यक्ति को भी राजा बनाने में समर्थ हैं।


4.भुवनेश्वरी:
भुवनेश्वरी देवी को तीनों लोकों (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) की महारानी कहा जाता है। भुवनेश्वरी साधना से चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, कर्म, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भुवनेश्वरी महाविद्या त्रि-शक्ति स्वरूप महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के रूप में पूजी जाती है, इनकी साधना से जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।



5.छिन्नमस्ता:
छिन्नमस्ता महाविद्या की साधना से जीवन में सौन्दर्य, काम, सौभाग्य व आसुरी शक्तियों की प्राप्ति होती है। वास्तव में छिन्नमस्ता महाविद्या उच्चकोटि की महातंत्र साधना है जिसके करने से ऐसा कुछ रह ही नहीं जाता जो मनुष्य चाहता हो। यह साधना भौतिक और पूर्ण आध्यात्मिक उन्नति देने वाली साधना कही जाती हैं।



6.त्रिपुर भैरवी:
त्रिपुर भैरवी महाविद्या महाकाली स्वरूप ही मानी जाती है। जिनकी साधना कल्पवृक्ष के समान शीघ्र फलदायी मानी गयी हैं। इस साधना को रोग मुक्ति, शत्रु नष्ट, तंत्र बाधा, भय, वाद-विवाद, धन हानि, कार्य सिद्धि, तन्त्र ज्ञान के लिए किया जाता है।



7.धूमावती:
महाविद्या धूमावती, जो भगवान शिव की विधवा, कुरूप तथा अपवित्र देवी है, जिनका स्वरूप अत्यंत ही क्रोधित है, जो अपने शत्रु के लिए सदा भूखी रहती है। जिनकी साधना करने से सभी प्रकार के शत्रु जड़ से समाप्त हो जाते है। बर्बाद हो जाते है और इस लायक नहीं रहते की कभी सामने उपस्थित हो, आजकल के घोर कलयुग में इस साधना को अवश्य ही करना चाहिये।



8.बगलामुखी:
दस महाविद्या में आठवें स्थान पर बगलामुखी विराजमान है, इनकी साधना से शत्रु की बुद्धि, मति, दंत तालु, गति स्तंभित हो जाती है, शत्रु पशु की तरह आपके सामने रहता है और कभी भविष्य में आपको हानि पहुँचाने की कोशिश नहीं करता। यह साधना शीघ्र प्रभाव दिखाती है जो शत्रु को नष्ट करके धन, कार्य सिद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति के नित्य नयें रास्ते खोल देती है।



9.मातंगी:
मातंगी महाविद्या साधना से तन्त्र असुरी, संगीत तथा ललित कलाओं में महारत प्राप्त होती है जो संगीत कलाओं में निपुण बनना चाहते हो उन्हें यह साधना अवश्य ही करनी चाहिए। इस साधना के द्वारा पूर्ण ग्रहस्त सुख की प्राप्ति होती है। जिनके घर में कलह बनी रहती है उन्हें यह साधना अवश्य ही करनी चाहिये।



10.कमला:
कमला महाविद्या की साधना से जीवन में सुख, सौभाग्य, धन, लक्ष्मी, भूमि, वाहन, संतान, प्रतिष्ठा आरोग्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है, वास्तव में कमला साधना को “कमलेश्वरी” कहा गया है क्योंकि यह साधना साधारण व्यक्ति को भी राजा बनाने में समर्थ हैं।

यह महाविद्या संसार की श्रेष्ठ साधना हैं, जिन्हें करके व्यक्ति अपनी भौतिक, आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है।


जो भी साधक दस महाविद्या साधना करना चाहते है उन्हें अवश्य ही निःशुल्क मार्गदर्शन किया जाएगा।

फोन नंबर:  8421522368

आदेश.....