18 Aug 2018

ज्ञान उत्कीलन साधना

गुरु दीक्षा प्राप्त व्यक्ति के जीवन मे एक ऐसा समय आता है जिसमे वह गुरु के उपदेश को भूलते जाता है । शिष्य अपने गुरुमुख से प्राप्त मंत्रो पर संदेह करने लगता है, तो कभी कभी उसे गुरु पर अविश्वास भी होने लगता है । ऐसे स्थिति में शिष्य को गुरुमंत्र की महिमा भी गलत लगने लगती है और एक अच्छा शिष्य पतन के रास्ते पर चलने लगता है ।

"सात चक्रो का सफर है
एक को पार करो तो जानो
दूजा तो रास्ता खोल देगा
पाँचवे से आगे ही गुरु शिव रूप में दर्शन देगे
और छठवे पर पुर्णत्व देगे"।

यह शब्द मैने एक सन्यासी से सुने थे,जो सप्तचक्र जाग्रत करने के लिए सब कुछ त्याग कर बैठा था और गृहस्थ जीवन जीने वाले साधको पर हस रहा था । उसे सफलता तो नही मिली थी परंतु वह कई साधनात्मक रहस्यों से अवगत था, पहिले तो मैंने मान लिया था के वह मूर्ख है,एक ऐसा मूर्ख जो ज्ञानी होकर भी साधनात्मक जीवन से दूर रहकर यादों में खोया रहेता है । उसने एक बात बताई जो जीवन मे मृत्यु के आखरी क्षणों तक याद रहेगी "सबसे बड़ा गुरु और गुरु से बड़ा गुरु का ध्यास",ये शब्द सुनकर मैंने मान लिया के वह मूर्ख नही अपितु इस संसार का सबसे बड़ा ज्ञानी है । जिसने गुरुदीक्षा प्राप्त कर जीवन मे गुरु को प्राप्त करने का संकल्प लिया था,उसके पास साधनात्मक ज्ञान होकर भी वह सिर्फ गुरुतत्व को समजने के लिए वह कठिन उपासना में लगा हुआ था ।

आज मैं एक ऐसे विषय को आपके सामने रखने की कोशिश कर रहा हु जो शायद आप सभी के लिए आवश्यक है । "ज्ञान का उत्कीलन" शायद यह बात सुनने में नही आता है परंतु "ज्ञान के उत्कीलन" की आवश्यकता सभी को है,चाहे वह कोई भी हो । इस संसार मे जितनी भी चैतन्य शक्तियाँ अवतरित हुई है वह "ज्ञान के उत्कीलन" को समझकर ही अवतरित होती आरही है । भगवान राम सिर्फ रावण के वध हेतु धरती पर नही आये थे,उन्होंने भी इसी धराह पर गुरु से ज्ञान प्राप्त किया और अपने अद्भुत ज्ञान का उत्कीलन किया । उत्कीलन का अर्थ सिर्फ इतना ही है ‘परस्पर दो और लो’,कीलित मंत्रो का उत्कीलन एक अलग क्रिया है परंतु ज्ञान के उत्कीलन को समझना कठिन है । आप सभी ज्ञानी हो परंतु माया का एक जाल जो आपको ज्ञानी होते हुए भी गलतियां करने पर मजबूर कर देता है । आप जानते हो शराब पीने से जीवन बर्बाद होता है परंतु पीने वाला शराब पीना छोडता नही है और उसे पीते हुए देखने वाला उसे शराब पीने से रोकने के लिए ज्यादा प्रयास करता नही है ।

आज जो साधना दे रहा हु,वह आपके जीवन मे ज्ञान को उत्कीलन कर देगा,जो ज्ञान आपने प्राप्त किया है उसीको आपके जीवन मे उतार देगा,जैसे अच्छे विचार सभी पढ़ते है परंतु उसको जीवन मे उतारते नही है । गुरु से बहोत ज्ञान प्राप्त कर लेते है परंतु जीवन मे उस ज्ञान के महत्व को समजते नही है ।

इस साधना के माध्यम से आप जो भी किताब पढोगे उसमे आपको आपके अंदर के गुरु से पूर्ण सहाय्यता प्राप्त होगी,इसीसे आपको साधनात्मक दुर्लभ ज्ञान प्राप्त होगा और आप कई सारे रहस्यों को समझ सकेंगे ।"यथा पिंडे,तथा ब्रम्हांडे" का अर्थ अगर समजना चाहते हो तो यही साधना आपको इस दुर्लभ ज्ञान को प्राप्त करने में मार्गदर्शक है । इस साधना के बाद गुरु स्वयं सुष्म रूप में आकर आपको ज्ञान और आशीर्वाद प्रदान करेंगे ।

मंत्र-

।। ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तचक्र गुरु रहस्यम उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा ।।

Om shreem kleem hreem saptachakra guru rahasyam utkilanam kuru kuru swaha

साधना किसी भी गुरुवार से प्रातः 5 बजे प्रारंभ करे,11 दिन की साधना है,रोज 11 माला जाप करे,आसन वस्त्र पिले रंग के हो और मुख उत्तर दिशा में हो,धूप-दीप नित्य किया करे,दीपक घी का लगाए,मंत्र जाप स्फटिक माला से करना अनिवार्य है,माला आपको पंसारी के दुकान से मिल जाएगा ।
संसार के समस्त साधनाओ के दुर्लभ रहस्य को समजने हेतु यह साधना करना अनिवार्य है,इसीसे आपको अन्य साधनाओ में भी सफलता प्राप्त होगी ।

आदेश.........