9 Dec 2015

कालसर्प दोष निवारण प्रयोग.

अमावस्या को आध्यात्मिक एवं दिव्य अनुभूतियों के लिए श्रेष्ठ माना गया है… इस दिन चंद्र, सूर्य के अन्दर विलीन होता है, उसकी तरंगें सूर्य की तरंगों में समाहित होती हैं… चन्द्रमा मन का देवता है एवं सूर्य आत्मा का, अतः अमावस्या का अर्थ ही है ‘ मन ’ अर्थात् ‘ अहं’ का आत्मा अर्थात् परमात्मा में लीन होना …और इस स्थिति में अमावस्या आध्यात्मिक अनुभवों के लिए अत्यधिक श्रेष्ठ है… और अगर अमावस्या के साथ-साथ इसमें अमृत तत्त्व का भी समावेश हो जाए, तो इस दिन की गई साधना फलीभूत होती ही है और फिर इससे उत्तम स्थिति अन्य हो ही नहीं सकती ।

इसका प्रादुर्भाव किस प्रकार से हुआ, इस विषय में ‘ कूर्म पुराण ’ में एक रोचक कथा आती है… जब कूर्मावतार में विष्णु की पीठ में मंदरांचल पर्वत रखा गया और वह स्थिर नहीं हो रहा था, तो एक ओर सूर्य ने और दूसरी ओर से चन्द्र ने सहारा देकर उसे संभाल लिया। समुद्र मंथन के बाद कूर्मावतार ने उन दोनों को आशीर्वाद दिया और कहा – ‘ जिस प्रकार से तुम दोनों ने मिलकर लोकहित के लिए यह कार्य किया है, उसी प्रकार जब कभी तुम दोनों जब एक-दूसरे में समाहित होओगे, तो वह दिवस अमृत तत्व से पूर्ण होगा और उसका महत्व एक सिद्ध दिवस के समान होगा। अमावस्या को साधना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इस दिन की जाने वाली साधना असफल नहीं होती… उसका सुप्रभाव हर हालत में मिलता ही है।

कालसर्प दोष निवारण के सम्बन्ध में ज्योतिषीय शास्त्रों में तो स्पष्ट लिखा है कि अमावस्या और नागपंचमी के दिन ही कालसर्प दोष निवारण की पूजा सम्पन्न करनी चाहिए।

अमावस्या को कालसर्प दोष निवारण का सर्वश्रेष्ठ दिवस माना गया है। देव ऋषि व्यास के अनुसार इस तिथि में मौन रहकर स्नान-ध्यान-दान और साधना द्वारा कालसर्प दोष का निवारण किया जाता है। अगर आप की कुंडली में पितृदोष या कालसर्पदोष हैं तो कालसर्प दोष निवारण राहु साधना अवश्य सम्पन्न करनी चाहिए।


राहु और आपका जीवन यह तो निश्चित तथ्य है कि ग्रहों का जीवन पर प्रभाव अवश्य ही पड़ता है, इसलिए योग्य ज्योतिषी कुण्डली में शुभ ग्रहों की अपेक्षा अशुभ ग्रहों का भी विवेचन करते हैं। इसमें इन चार विशेष सूर्य, मंगल, शनि और राहु ग्रहों का कितना प्रभाव पड़ेगा और ये चार ग्रह जीवन में किस प्रकार की विपरीत स्थितियां उत्पन्न करेंगे उस सम्बन्ध में विशेष विवेचन आवश्यक है। जीवन की आकस्मिक घटनाओं और समय-समय पर आने वाली रुकावटों को जीवन यात्रा में पड़ाव कहा गया है जिनसे जीवन की गति बदल जाती है।

राहु को सर्वाधिक अशुभ ग्रह माना गया है तो इसका प्रभाव भी दूषित अवश्य ही होता है। मूलतः राहु ग्रह परिश्रम, शक्ति, हिम्मत, साहस, शौर्य, पापकर्म, व्यय, शत्रुता, विलासिता, चिन्ता, दुर्भाग्य, संकट के अलावा आकस्मिक धन, राजनीति, उच्च पद, विदेश यात्रा और तीक्ष्ण बुद्धि का भी कारक ग्रह है।

आकस्मिकता राहु का विशेष गुण है, किसी कार्य को अचानक गति प्राप्त होना और किसी कार्य का अचानक गतिहीन हो जाना राहु प्रभाव का सूचक है जिसके कारण व्यक्ति घबराहट तथा असमंजस का शिकार होता है। राहु ग्रह प्रचण्डता, उत्तेजना, आवेश को भी प्रकट करता है।

छाया ग्रह होने के कारण यह अपूर्ण इच्छाओं और भ्रमित बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है, इस कारण इसका प्रत्येक दृष्टि से विवेचन आवश्यक है। स्त्रीलिंग ग्रह होने के कारण इसके प्रभाव से व्यक्ति में निम्न विचार, अवसर वादिता, क्रूरता आती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह जन्म कुण्डली में जिस भाव में हेाता है उस भाव की वृद्धि में अवरोध उत्पन्न अवश्य करता है। आगे राहु के प्रत्येक भाव में स्थितिगत प्रभाव का विवरण दिया जा रहा है। वैसे राहु ग्रह छठे, आठवें भाव में श्रेष्ठ फल देता है। क्योंकि छठे भाव द्वारा शत्रु चिंता, भय, रोग का अध्ययन किया जाता है और आठवें भाव द्वारा आयु मानसिक व्यथा, मृत्यु, ॠण आदि का अध्ययन किया जाता है। इन भावों में स्थित होकर अथवा इन भावों पर राहु की दृष्टि होने पर भी वह इन भावों के प्रभाव को क्षीण कर देता है।




जिसके जन्म लग्न में राहु होता है वह शत्रुओं का नाश करने वाला तथा स्वार्थी स्वभाव का होता है। ऐसा व्यक्ति अल्पसंतान वाला, मस्तिष्क रोगी, नीच कर्म में तत्पर, दुर्बल तथा संसार से विरक्ति रखने वाला होता है।

दूसरे स्थान पर यदि राहु हो तो कुटुम्ब का नाश करने वाला होता है। यह जातक अल्प सम्पत्ति वाला, परदेश गमन प्रिय, संग्रहशील तथा शत्रुओं का विनाश करने वाला होता है।

जिसके तीसरे स्थान में राहु हो वह व्यक्ति अत्यन्त बलिष्ठ होता है। ऐसा व्यक्ति दृढ़, विवेकयुक्त, प्रवासी, दुःखों का विनाश करने वाला, विद्वान एवं व्यवसायी होता है।

चौथे स्थान में पड़ा हुआ राहु माता को हानि पहुंचाता है, पर यदि चतुर्थ भाव मेष, कर्क, कन्या और मिथुन राशि का हो और उसमें राहु पड़ा हो तो श्रेष्ठ फल देता है।

जिसके पांचवें स्थान में राहु होता है, उसे पुत्र-प्राप्ति होती रहती है। उसकी स्त्री हमेशा बीमार रहती है, अतः उस ओर से वह चिंतित ही रहता है।

छठे स्थान का राहु विधर्मियों द्वारा लाभ उठाता है। बलवान, धैर्यवान तथा वीर्यवान होता हुआ भी ऐसा व्यक्ति कमर दर्द से पीड़ित रहता है।

जिसके सातवें स्थान में राहु हो, वह एक से अधिक विवाह करता है। लोग उसकी निन्दा करते नहीं थकते, चाहे वह कितना ही अच्छा काम क्यों न करें।

आठवें स्थान में राहु वाला व्यक्ति कठोर परिश्रमी होता है। उसे पिता की सम्पत्ति प्राप्त नहीं होती तथा कुटुम्बियों से एकान्तवास करता है।

जिसके नवें भाव में राहु होता है, वह अपने सद्गुणों से सबको प्रसन्न रखता है। ऐसा व्यक्ति वात-रोगी, प्रमादी, परिश्रमी, दुष्ट बुद्धि तथा भाग्योदय से रहित होता है।

दसवें स्थान में पड़ा हुआ राहु मनुष्य को नीच कर्मरत बना देता है वह व्यसनों का शौकीन तथा क्रूर कार्य करने में तत्पर रहता है। बुरे व्यक्तियों की मित्रता करने से जाति तथा समाज में उसको आदर नहीं मिलता।

यदि राहु ग्यारहवें स्थान पर हो, तो उस पुरुष को सदैव नीच कार्य वाले लोगों से द्रव्य प्राप्ति होती है। ऐसा व्यक्ति मन्दमति, लाभहीन, परिश्रम करने वाला, अरिष्टनाशक तथा अपने कार्य में चौकन्ना रहने वाला होता है।

बारहवें स्थान में यदि राहु हो तो वह व्यक्ति पसलियों के दर्द से पीड़ित रहता है। सज्जनों से विरोध रखता हुआ यह व्यक्ति दुष्टों से मित्रता रखता है।



राहु का श्रेष्ठ प्रभाव होने पर व्यक्ति उच्च पद, शत्रुओं पर विजय, राजनीति में सफलता अवश्य ही प्राप्त करता है। इसके साथ ही राहु साधना और ध्यान का भी प्रभावी कारक ग्रह है। राहु की अनुकूलता से ही व्यक्ति इष्ट सिद्धि प्राप्त कर सकता है। राहु जब व्यक्ति को गति प्रदान करता है तो वह जीवन में किसी भी प्रकार से सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो जाता है। राहु व्यक्ति को निश्चय का पक्का बना देता है, उसका यही लक्ष्य रहता है कि जीवन में किसी भी प्रकार से सफलता प्राप्त कर ली जाए, चाहे उसके लिए कोई भी मार्ग क्यों न अपनाना पड़े। राजनीति में राहु के प्रभाव से ही विशेष सफलता प्राप्त होती है।




राहु और कालसर्प योग-

जन्म कुण्डली में यदि राहु लग्न से छठे घर के बीच और केतु सातवें से बारहवें भाव के बीच हो और उनके मध्य सारे ग्रह स्थित हों तो यह काल सर्प योग कहलाता है। सामान्यतः कालसर्प योग को अत्यन्त खराब बताया गया है लेकिन कालसर्प योग वाला व्यक्ति जीवन में अचानक लाभ भी प्राप्त करता है। उसके जीवन में आकस्मिक स्थितियां बनती रहती हैं और वह धन लाभ, श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त करता ही है। इसी कारण यह प्रभाव चालीस से अड़तालीस साल की उम्र में विशेष रूप से देखा जाता है। कालसर्प योग होने से आकस्मिकता की स्थिति विशेष रूप से अवश्य रहती है। विशेष घटनाएं घटित होती रहती हैं। इसलिए अज्ञात भय बना रहता है।

मूलतः प्रभावी राहु ग्रह श्रेष्ठ योग अवश्य बनाता है, इस कारण राहु को अनुकूल बना लेना आवश्यक है। कालसर्प दोष निवारणार्थ राहु साधना कालसर्प दोष और राहु का सीधा सम्बन्ध है। जो व्यक्ति अपने जीवन में इस विशिष्ट प्रयोग को पूर्णता के साथ सम्पन्न कर लेता है उसके जीवन से दुर्भाग्यों का समापन होकर भाग्योदय की स्थिति बनती है।

किसी भी अमावस्या को कालसर्प योग निवारण का विशिष्ट दिवस माना गया है। इस दिन उपरोक्त साधना करने से व्यक्ति की कुण्डली में उपस्थित कालसर्प योग के दुष्प्रभावों को समाप्त किया जा सकता है। कालसर्प योग व्यक्ति के पितृदोषों को भी बल प्रदान करता है जिसके कारण उसके जीवन में बाधाएं निरन्तर बनी रहती हैं।

कालसर्प योग से सम्बन्धित आलेख को पढ़कर आपने यह तो निश्चित रूप से जान लिया है कि आपकी कुण्डली में कालसर्प योग है अथवा नहीं। यदि आपकी कुण्डली में कालसर्प योग है तो आप तत्काल प्रभाव से ‘ कालसर्प दोष निवारर्णाथ राहु साधना’ की प्राण प्रतिष्ठित साधना सामग्री प्राप्त कर इस विशिष्ट दिन यह प्रयोग अवश्य सम्पन्न करें और यदि आपको कालसर्प दोष नहीं है तो भी अपने जीवन में निर्बाध रूप से सफलता प्राप्त करने के लिए इस साधना को सम्पन्न कर सकते है ताकि राहु कि शुभता आपको सदैव मिलती रहे।




साधना विधान:-

इस प्रयोग हेतु आवश्यक साधना सामग्री-राहु यंत्र, कालसर्प पाश तथा,काली हकीक माला को एक पात्र में अपने पास रख लें। कालदोष निवारण का यह प्रयोग सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य ही सम्पन्न करना चाहिए और सर्वाधिक श्रेष्ठ काल तो प्रातः सूर्योदय और शाम को सूर्यास्त से 1 घंटे पूर्व (गोधूलि) का है।

साधक पूर्व दिशा की ओर मुख कर लाल आसन पर बैठें और अपने सामने चौकी पर लाल आसन बिछा दें, उस पर शिव जी का चित्र स्थापित कर शिव जी का पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। शिव पूजन के पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर समस्त ग्रहों का ध्यान निम्न मंत्र द्वारा सम्पन्न करें-


।। ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमि सुतो बुधश्च, गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः सर्वे ग्रहाः शांति करा भवन्तु ।।


समस्त ग्रहों के ध्यान के बाद अपने सामने एक ताम्र पात्र अथवा स्टील की बड़ी प्लेट में पुष्पों का आसन देकर ‘ राहु यंत्र ’ स्थापित करें।

इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर राहु से कालसर्प दोष निवारण की प्रार्थना करते हुए निम्न ध्यान मंत्र का पाठ करें-


वन्दे राहुं धूम्र वर्ण अर्धकायं कृतांजलिं
विकृतास्यं रक्त नेत्रं ध्रूमालंकार मन्वहम्।



राहु यंत्र का पूजन तिल, सिन्दूर, काजल, काली सरसों, कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से सम्पन्न करें।



इसके पश्चात् यंत्र पर ‘ कालसर्प पाश’ स्थापित करें। कालसर्प दोष निवारण की भावना रखते हुए, निम्न नाग स्तुति का पाठ करें-

अनंतं वासुकिं शेषंपद्म नाभं च कम्बले।
शंख पालं धृत राष्ट्रं तक्षकं कालियंतथा॥
एतानि नव नामानि नागानां चमहात्मनां॥
सायं काले पठेन्नित्यं प्रातः कालेविशेषतः॥
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीभवेत्॥



इसके पश्चात् निम्न मंत्र का जप करते हुए ‘ कालसर्प पाश’ पर काले तिलों को 108 बार अर्पित करें-

॥ ॐ ह्रौं ॐ जूं सः ॐ॥

इसके पश्चात् साधक एक पात्र में जल लेकर स्वयं उस जल में अपने बिम्ब को देखे और भगवान सदाशिव से कालसर्प दोष निवारण की प्रार्थना करें।


इसी जल में कुंकुम और पुष्प की पंखुड़ियां मिलाकर
कालसर्प पाश और राहु यंत्र का अभिषेक निम्न मंत्र उच्चाचरण के साथ सम्पन्न करें-

॥ॐ काल सर्पेभ्यो नमः॥

अभिषेक के पश्चात् ‘ काली हकीक माला ’ से निम्न राहु मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें।


राहु मंत्र:-

॥ ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः॥

Om bhraam bhreem bhroum sah raahave namah



मंत्र जप की पूर्णता के पश्चात् साधक शिव आरती सम्पन्न करें। भगवान शिव को दूध से बना नैवेद्य अर्पित करें और राहुदेव को पके हुए फल का नैवेद्य अर्पित करें।

साधना की पूर्णता के पश्चात् समस्त साधना सामग्री को एक लाल कपड़े में बांध दें तथा अभिषेक किए हुए जल को एक पात्र में लेकर साधना सामग्री सहित पीपल के वृक्ष की जड़ में अर्पित कर दें।

काल सर्पदोष निवारण साधना पैकेट- ₹.1440/-.





आदेश.....