3 Dec 2015

श्रीकृष्ण मंत्र साधना.

भगवान् श्रीकृष्ण – विश्वम्भर, प्राणेश्वर, परमात्मा हैं।

विश्वम्भर, प्राणेश्वर, परमात्मा के रूप में वे अत्यन्त गुप्त रूप से हम सभी मनुष्यों के हृदय में विराजते हैं और सतत हमारी अज्ञानता का हरण कर, हमें धर्म-मार्ग पर प्रतिष्ठित करते हैं। इसीलिए कहा गया है कि— कर्षति पापानि यः, स वै कृष्णः।

भगवान् श्रीकृष्ण हम मनुष्यों की अज्ञानता का हरण करते हैं, हमें कल्याणकारी मार्ग पर प्रतिष्ठित होने की प्रेरणा देते हैं, अतएव उन्हें सच्चे सुख-चन्द्र भी कहा जाता है।

मनुष्य जब विश्वम्भर भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में जाते हैं, उनका नित्य ध्यान करते हैं, उनकी हृदय से स्तुति करते हैं, उनके दिव्य मन्त्रों का जप करते है तथा उनके द्वारा दिए गए उपदेशों का अनुसरण करते हैं, तब उन्हें उनकी कृपा – स्वरूप सच्चे सुख-सच्ची शान्ति की प्राप्ति होती है।

मनुष्यों को सामान्यतः इन्द्रियों के द्वारा जो विषय-रूपी सुख का भान होता है, वह वास्तविक सुख नहीं होता। वह एक लहर की भाँति सुख का केवल आभास-मात्र होता है। अतएव जो मनुष्य सच्चे सुख को प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें ज्ञान-कर्म-भक्ति के द्वारा अपने मन में बहनेवाली इन्द्रिय-जन्य विषय-रूपी सुख की हवा को रोकने का प्रयत्न करना पड़ता है।

कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार हैं। सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। जब-जब इस पृथ्वी पर असुर एवं राक्षसों के पापों का आतंक व्याप्त होता है तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी के भार को कम करते हैं। वैसे तो भगवान विष्णु ने अभी तक तेईस अवतारों को धारण किया। इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण के ही माने जाते हैं।



विनियोग:-

।। अस्य श्रीद्वादशाक्षर श्रीकृष्णमंत्रस्य नारद ऋषि गायत्रीछंदः श्रीकृष्णोदेवता, बीजं नमः शक्ति, सर्वार्थसिद्धये जपे विनियोगः ।।


ध्यान:-

"चिन्ताश्म युक्त निजदोःपरिरब्ध कान्तमालिंगितं सजलजेन करेण पत्न्या।"

ऋष्यादि न्यास :-

नारदाय ऋषभे नमः शिरसि।
गायत्रीछन्दसे नमः, मुखे ।
नमो शिरसे स्वाहा।
श्री कृष्ण देवतायै नमः,
हृदि भगवते शिखायै वषट्।
बीजाय नमः गुह्ये।
वासुदेवाय कवचाय हुम्।
नमः शक्तये नमः, पादयोः।
नमो भगवते वासुदेवाय अस्त्राय फट् ।।




मंत्र:-

।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।।



इस कृष्ण द्वादशाक्षर (12) मंत्र का जो भी साधक जाप करता है, उसे सबकुछ प्राप्त हो जाता है। यह मंत्र प्रेम विवाह कराने में चमत्कारी सिद्ध होता है।तुलसी माला से रोज मंत्र का 11 माला जाप बुधवार से सवेरे सुर्य निकलने से पुर्व करे और स्वयं अनुभुतीया प्राप्त करे।जाप के बाद स्तुती अवश्य करे।





श्रीकृष्ण स्तुति

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम।
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥






गोविंद दामोदर स्तोत्र

अग्रे कुरूणामथ पाण्डवानां दुःशासनेनाहृतवस्त्रकेशा।
कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथा गोविंद दामोदर माधवेति॥
श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे।
त्रायस्व माम् केशव लोकनाथ गोविंद दामोदर माधवेति॥
विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:।
दध्यादिकम् मोहवसादवोचद् गोविंद दामोदर माधवेति॥






श्रीकृष्णाष्टकम्

(श्री शंकराचार्यकृतम्)
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥ १ ॥

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ॥ २ ॥

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं
व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम् ।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ॥ ३ ॥

सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं
दधानमुत्तमालकं नमामि नन्दबालकम्
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ॥ ४ ॥

भुवोभरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ।
दृगन्तकान्तभङ्गिनं सदासदालसङ्गिनं
दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम् ॥ ५ ॥

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ।
नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलंपटं
नमामि मेघसुन्दरं तटित्प्रभालसत्पटम् ॥ ६ ॥

समस्तगोपनन्दनं हृदंबुजैकमोदनं
नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् ।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं
रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकम् ॥ ७ ॥

विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायि नं
नमामि कुञ्जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम् ।
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् ॥ ८ ॥

प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान् ।
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान् ॥ ९ ॥







आदेश.....