दिव्यांगना रूपोज्ज्वला अप्सरा तो सम्पूर्ण यौवन को शरीर में उतार देने की स्वामिनी है। सुन्दर, पतला, छरहरा शरीर, मानो पुष्प की पंखुड़ियों को एकत्र करके बनाया गया हो, जिन गुलाब की कोमल व नरम पंखुड़ियों पर अभी तक ओस की एक बूंद भी ढलकी न हो, जैसे उन्हें कोमलता से बांधकर एक नारी शरीर तैयार कर दिया गया हो और उसमें से जो सुगंध प्रवाहित होती है वह असमय बूढ़े पड़ गए मन में नवीन चेतना भर देती है….
भारतीय शास्त्रों में सौन्दर्य को जीवन का उल्लास और उत्साह माना गया है, यदि किसी व्यक्ति के जीवन में सौन्दर्य नहीं है, तो वह जीवन नीरस और बेजान हो जाता है। इसका कारण यह है कि हम सौन्दर्य की परिभाषा ही भूल चुके हैं, हम अपने जीवन में हंसना, मुस्कराना ही भूल चुके हैं। हम धन के पीछे भागते हुए एक प्रकार से अर्थ-लोभी बन गये, जिसकी वजह से जीवन की अन्य वृत्तियां लुप्त सी हो गई हैं। ठीक इसी के विपरीत जैसा कि मैंने कहा, कि यदि हम अपने शास्त्रों को टटोलकर देखें तो हमारे पूर्वजों ने, उन ॠषियों और देवताओं ने सौन्दर्य को अपने जीवन में एक विशिष्ट स्थान दिया और उन अप्सराओं की साधनाएं सम्पन्न कीं और उन्हें सिद्ध किया जिनके द्वारा वे सौन्दर्यमय, तेजस्विता पूर्ण, सम्पन्न बन सके।
इन विशिष्ट अप्सराओं को सिद्ध करने के पीछे हमारे पूर्वजों का चिंतन यह नहीं था कि वे अपने सामने एक नारी-शरीर उपस्थित करके अपनी वासना को, कामोत्तेजना को शांत कर सकें, अपितु इनके माध्यम से उन्होंने जीवन में ऐश्वर्य, धन-धान्य पूर्ण सौन्दर्य आदि प्राप्त कर, विशिष्ट प्रतिमानों को समाज के सामने रखा, जिस सौन्दर्य का अर्थ ही पूर्णता व श्रेष्ठता देना है।
अप्सरा और सौन्दर्य दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं, और किसी भी अप्सरा के बारे में जानने के लिए हमें सबसे पहले उसके अपूर्व सौन्दर्य को समझना आवश्यक है।
सभी देवताओं व ॠषियों जैसे – वशिष्ठ, विश्वामित्र, इन्द्र आदि ने इस सौन्दर्य को अपने जीवन में न केवल स्थान दिया, बल्कि एक महत्वपूर्ण स्थान दिया, जिससे साधारण मानव को भी उर्वशी, मेनका, रम्भा आदि के साधनात्मक चिंतन को स्पष्ट कर उन्हें पूर्णता का मार्ग दिखलाया जा सके जो जीवन में रस भर दे, सौन्दर्य भर दे, और रस और सौन्दर्य अगर किसी के जीवन में प्राप्त हो जाए, तो वह जीवन सफल, श्रेष्ठ और अद्वितीय कहलाता है।
इसी सौन्दर्य का एक और प्रतिबिम्ब हमारे सामने प्रस्तुत हुआ है उस ‘रूपोज्ज्वला अप्सरा’ के माध्यम से जिसमें केवल लुभा लेने के लिए एक अदा की प्याली ही नहीं है अपितु पूर्ण सौन्दर्य का लबालब भरा जाम है, जिसे देखने मात्र से ही कोई व्यक्ति स्तब्ध और निष्प्राण हो जाए, …और व्यक्ति ही नहीं देवता भी जिसके सौन्दर्य को देखकर निष्प्राण से हो जाएं।
हां! ऐसा ही वह अप्रतिम और अनूठा सौन्दर्य, प्रेम और आनन्द से लबालब भरा हुआ, जो किसी को भी अपने अंग-प्रत्यगों के गठन से बांध ले, स्तम्भित कर दे उसे।
इस सौन्दर्य को देखकर कौन नहीं अपने-आप को भुला बैठेगा? आपने रूप, रंग, यौवन और मादकता की तो कई झलकियां देखी होंगी आपने अपने जीवन में, लेकिन जो सौन्दर्य आंखों से लेकर दिल तक एक अक्स बनकर उतर जाए, उसी का नाम है रूपोज्ज्वला अप्सरा ।
ऐसा अप्रतिम और अनूठा सौन्दर्य, जो खींच ले चुम्बक की तरह अपनी ओर, सौन्दर्य से भी अधिक मादकता और मन को लुभा लेने की कला अपने-आप में समाए, एक ऐसी अप्सरा, जिससे हम अभी तक अपरिचित थे, एक अप्रतिम सुन्दरी जिसे देखकर रग-रग में तूफान मचल उठे।
‘ रूपोज्ज्वला अप्सरा ’… जैसा इसका नाम है वैसा इसका सौन्दर्य भी है, जो एक निर्झर झरने की तरह एक अबाध गति से बह रहा हो। व्यक्ति को या देवता को पहली ही बार में बेसुध कर देने वाला सौन्दर्य, जो केवल और केवल मात्र रूपोज्ज्वला अप्सरा में ही है।
सौन्दर्य के समुद्र से उत्पन्न वह श्रेष्ठ रत्न, जिसके समान दूसरा कोई रत्न उत्पन्न ही नहीं हो सका और यह सच ही तो है, ऐसे रत्न क्या बार-बार गढ़े जाते हैं… नहीं, यह तो कभी-कभी प्रकृति के खजाने से अनायास प्राप्त हो जाने वाली वस्तु है और प्रकृति के इस खजाने से, सौन्दर्य के इस खजाने से पूर्ण सौन्दर्य की स्वामिनी केवल रूपोज्ज्वला अप्सरा ही हैं।
इस पूर्णता को देने वाली है यह ‘ रूपोज्ज्वला अप्सरा सिद्धि- साधना ’ जो अत्यंत ही दुर्लभ और गोपनीय है। इस साधना को सम्पन्न करने से व्यक्ति के अन्दर स्वतः ही कायाकल्प की प्रक्रिया आरम्भ होने लगती है।
इस साधना को सिद्ध करने पर व्यक्ति निश्चिंत और प्रसन्नचित्त बना रहता है, उसके जीवन में मानसिक तनाव व्याप्त नहीं होते, इस रूपोज्ज्वला अप्सरा साधना के माध्यम से उसे मनचाहा स्वर्ण, द्रव्य, वस्त्र, आभूषण और अन्य भौतिक पदार्थ उपलब्ध होते रहते हैं, यही नहीं, इस अप्सरा-साधना को सिद्ध करने पर साधक इसे जो भी आज्ञा देता है वह उस आज्ञा का तुरन्त पालन करती है, और इस प्रकार साधक अपनी आवश्यकता और महत्वपूर्ण सभी मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति कर लेता है।
साधना सामग्री – गुलाब पुष्प माला – 2, इत्र, चैतन्य रूपोज्ज्वला यंत्र और अप्सरा माला।
साधना-विधि
पूर्णिमा की रात्रि में किसी भी समय साधक इस साधना को सम्पन्न कर सकता है। साधक को चाहिए कि वह अत्यंत ही सुन्दर, सुसज्जित वस्त्र पहनकर साधना-स्थल पर बैठ जाए, इसमें किसी भी प्रकार के वस्त्रों को धारण किया जा सकता है, जो सुन्दर और आकर्षक लगें।
इस साधना में आसन, दिशा आदि का इतना महत्व नहीं है, जितना कि व्यक्ति के उत्साह, उमंग, सुमधुर सम्बन्धों की चेष्ठा और मिलन कामनाओं से भरे मन का है।
सर्वप्रथम साधक एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा दें फिर उस पर पुष्पों का आसन देकर मंत्र सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठायुक्त ‘ चैतन्य रूपोज्ज्वला अप्सरा यंत्र’ स्थापित करें। इसके पश्चात् उसके पास रखी गुलाब की दो मालाओं में से एक माला वह स्वयं धारण कर ले तथा दूसरी माला चैतन्य रूपोज्ज्वला अप्सरा यंत्र के सामने रख दें।
इसके पश्चात् यंत्र के समक्ष एक दीपक प्रज्वलित कर दें, सुगन्धित अगरबत्ती भी जला दें। यंत्र का पूजन कुंकुम, अक्षत, चन्दन से कर उस पर इत्र लगा दें। इसके पश्चात् इत्र की बूंद दीपक में भी डाल दें, दीपक सम्पूर्ण साधना काल जलते रहना चाहिए। इसी इत्र को साधक अपने कपड़ों पर भी लगा लें। उसके पश्चात् वह मंत्र जप आरम्भ कर दें।
मंत्र
।। ॐ श्रीं रूपोज्ज्वला वश्यमानय श्रीं फट् ।।
इस मंत्र का 21 माला जप 16 दिन करना होता है। यह मंत्र-जप अप्सरा माला से सम्पन्न किया जाता है। यह साधना विश्व की दुर्लभ एवं महत्वपूर्ण साधना है। अगर व्यक्ति को अपने जीवन में वह सभी कुछ पाना है, जिसे श्रेष्ठता कहते हैं, दिव्यता कहते हैं, सम्पूर्णता कहते हैं तो वह मात्र रूपोज्ज्वला अप्सरा सिद्धि साधना के माध्यम से ही संभव है। यह साधना अपने मादक, प्रवीण, वरदायक, शक्तियुक्त, अद्भुत प्रभाव से सिद्ध साधक को पूर्णता देने में समक्ष हैं।
साधना सामग्री: 1450/-रुपये
Divyaangana Roopojjwalaa Apsara is the maestro of imbibing complete youthfulness within the body. Beautiful, lovely, slim figure, resembling a dazzling collection of flower petals. Seems a creation of soft delicate rose petals, which haven’t tasted even a single drop of dew. Delicately enmeshed tenderly into a feminine form, emanating a sweet fragrance, capable of rejuvenating even the old!
The Indian holy scriptures consider beauty to be the energy and excitement of life. A life without beauty becomes monotonous and numb. We have forgotten the definition of beauty, and our life lacks laughter and smiles. The rat-race to run after wealth has made us so greedy and mean, that we have forgotten other aspects of life. As I earlier mentioned, quiet stark opposite, If we pore through our holy scriptures, we will realize that our ancestors, the wise sages and Gods accorded an elevated pedestal to beauty in their lives. They successfully accomplished the Sadhana practices of celestial nymphs Apsaras, and filled their lives with beauty, intensity, perfection and totality.
Our forefathers did not manifest these special Apsaras to satiate their lust or crave for a female-body. Instead, their motive was to present a medium to the society to obtain luxuries and wealth-prosperity through these Sadhanas, thereby presenting a perfect comprehensive definition of beauty.
The beauty and Apsara are synonyms of each other, and we can understand about Apsara only after comprehending its unique beauty.
All Gods and sages like – Vashisht, Vishwamitra, Indra etc. accorded a significant position to beauty in their liveṣ. They demonstrated the divine path of attaining complete perfection through clarification of spiritual thoughts about Urvashi, Menaka, Rambha etc. This enabled them to fill divine nectar and celestial beauty into their lives. This divine combination of nectar and beauty in life makes it successful, perfect and total.
This “Roopojjwalaa Apsara” reflects another perspective of this divine beauty. Instead of being just a tempting cup of beauty, it exhibits an inexhaustible bubbling brimming pitcher of beauty with captivating power to strike anyone into numbing inanity… Numbing not just ordinary humans, but even divine Gods.
Yes! This is the stunning presentation of dazzling incomparable beauty, brimming with love and joy, captivating and mesmerizing everyone with this divine emplacement of human body.
Who will not lose himself on sight of this bewitching beauty. You would have witnessed many flashes of beauty, magnificence, youth and splendor in your life, but Roopojjwalaa Apsara is the divine unparalleled form of beauty from mesmerizing eyes to lovely heart.
The magnetic captivation of the stunning startling beauty, enhanced with the artful temptation and bewitching beauty, a celestial Nymph whose very existence was hitherto unknown till recently, an amazing beauty which fills our veins with storming temptations.
“ Roopojjwalaa Apsara” … the dazzling beauty befitting the name, flowing unabated rapidly like a hilly spring. Only Roopojjwalaa Apsara assimilates the beauty to captivate any person or God at first sight.
The rare gem extracted from the sea of beauty, which is completely unique and unparalleled. And it is factually true as such gems are produced but only once…. No, it was sheer luck that this dazzling gem emerged from the treasure of mother nature. Only Roopojjwalaa Apsara can accurately fit-in the complete, perfect definition of amazing beauty.
This rare and confidential “ Roopojjwalaa Apsara Siddhi Sadhana ” provides this perfection to the beauty. The rejuvenation process automatically starts within the Sadhak of this Sadhana practice.
After accomplishing this Sadhana, the person stays relaxed and happy, mental tensions do not appear in his life, and he continues to procure the desirable gold, wealth, clothes, jewelry and other material items through Roopojjwalaa Apsara Sadhana. Moreover the Apsara instantly obeys any order which the Sadhak commands Her to do. Thus the Sadhak manages to fulfill all kinds of his important and necessary wishes-desires.
Sadhana Materials – Rose Floral Garland -2 , Itra (Perfume), Cheitanya Roopojjwalaa Yantra and Apsara Mala.
Sadhana Procedure
The Sadhak can perform this Sadhana at any time during the full-moon night. The Sadhak should sit in this Sadhana wearing highly beautiful and attractive clothes. Any kinds of garments can be worn, provided they are attractive and beautiful-stunning.
The Asana and directions do not have much importance in this Sadhana, rather the energy, enthusiasm and excitement to create sweet relationship and wishful-mind are much more significant.
First, the Sadhak should spread a yellow colored cloth on a wooden board. Make a seat of flowers on it and place Mantra-Siddha Prana-Pratisthaayukt consecrated-sanctified Cheitanya Roopojjwalaa Apsara Yantra on it. Then he should wear one rose garland himself and offer the second garland onto Cheitanya Roopojjwalaa Apsara Yantra .
Then, he should light a lamp in front of the Yantra, and ignite fragrant aromatic incense sticks. Worship the Yantra with Kumkum (vermilion) , Akshat (Unbroken Rice) and Chandan (Sandalwood) and pour perfume on the Yantra. A drop of perfume should also be dropped in the lighted lamp. The lamp should be continuously lit during the entire Sadhana period. The Sadhak should also apply this perfume on his clothes. Thereafter he should start Mantra chanting –
Mantra
Om Shreem Roopojjwalaa Vashya Maanaya Shreem Phat
21 malas (rosary-rounds) of this Mantra 16 days should be chanted. This Mantra chanting is performed using the Apsara Mala .
This is a highly rare and significant Sadhana. A person can attain whatever he seeks, the excellence-perfection, divinity, totality; only though the Roopojjwalaa Apsara Siddhi Sadhana. This sadhana practice provides completion-perfection to the Sadhak through its stupefying, proficient, bane, powerful and amazing benefits.
Sadhana Materials –1450/-Rs.
आदेश.........