8 Jun 2021

शोभना यक्षिणी शाबर मंत्र साधना.



कोरोना के वजह से मैंने ब्लॉग पर कोई आर्टिकल नही लिखा,आप सभी साधक साधिकाएं ठीक होंगे ऐसी आशा करता हु,माँ भगवती की कृपा से मैं भी ठीक हु। सम्पूर्ण जग में महामारी फैली हुई है और ऐसे समय मे ब्लॉग लिखना मुझे ठीक नही लगा परंतु अब यह महामारी कंट्रोल में है इसलिए आप सभी के लिए यह अदभुत साधना दे रहे है ।


यक्षिणी एक सौम्य और दैविक शक्ति होती है देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नम्बर आता है,हमारे भारतीय पौराणिक ग्रंथो में बहुत सारी प्रमुख रहस्यमयी जातियो का वर्णन मिलता है । जैसे कि देव गंधर्व ,यक्ष, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, ,भल्ल, किरात, नाग आदि यक्षिणी भी इन रहस्यमय शक्तियो के अंतर्गत आती है । देवताओं के कोषाध्यक्ष महर्षि पुलस्त्य पौत्र विश्रवा पुत्र कुबेर भी यक्ष जाती के हैं । जैसे कि देवताओं के राजा इंद्र है वैसे ही यक्ष यक्षिणी का राजा कुबेर है,कुबेर को यक्षराज बोला जाता है यक्ष यक्षिणीया कुबेर के आधीन होती है।


कुछ साधको के मन शंकाऐं होती है कि यह किस रूप मे सिद्ध होती है? कुछ लोगों की धारणा यह सिर्फ प्रेमिका रूप में सिद्ध की जा सकती है,जो कि बिलकुल गलत है,साधक इच्छा अनुसार किसी भी रूप सिद्ध कर सकता है । इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है, यक्षिणियों की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है ये उसी प्रकारका व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, माँ के रूप में साधने पर वह ममतामयी होकर साधक का सभी प्रकार से पुत्रवत पालन करती हैं तो बहन के रूप में साधने पर वह भावनामय होकर सहयोगात्मक होती हैं, ओर पत्नी या प्रेमिकाके रूप में साधने पर उस साधक को उनसे अनेक सुख तो प्राप्त हो सकते हैं किन्तु उसे अपनी पत्नी व संतान से दूर हो जाना पड़ता है । उड्डीश तंत्र में जिक्र मिलता है कि इस को किसी भी रूप मे सिद्ध किया जा सकता है ।


सर्वासां यक्षिणीना तु ध्यानं कुर्यात् समाहितः ।

भविनो मातृ पुत्री स्त्री रुपन्तुल्यं यथेप्सितम् ॥


तन्त्र साधक को अपनी इच्छा के अनुसार बहन , माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के समान मानकर यक्षिणियों के स्वरुप में साधना अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । कार्य में तनिक – सी भी असावधानी हो जाने से सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती ।


इस श्लोक से उपरोक्त बात स्पष्ट होती है कि आप इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है ।


हमारे प्राचीन भारतीय ग्रंथो में बहुत सारे लोको का वर्णन मिलता है इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी देवता हैं जो इन लोकों में रहते हैं । पृथ्वी से इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है नजदीकि लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण कि यक्ष, अप्सरा, किन्नरी आदि की साधना जल्दी पूरी होती है, क्योंकि इनके लोक पृथ्वी से पास हैं।


साधनात्मक नियम


भोज्यं निरामिष चान्नं वर्ज्य ताम्बूल भक्षणम् ॥

उपविश्य जपादौ च प्रातः स्नात्वा न संस्पृशेत् ॥


यक्षिणी साधन में निरामिष अर्थात् मांस तथा पान का भोजन सर्वथा निषेध है अर्थात् वर्जित है । अपने नित्य कर्म में , प्रातः काल स्नान आदि करके ऊनी आसन पर बैठकर फिर किसी को स्पर्श न करें । न ही जप और पूजन के बीच में किसी से बात करें ।


नित्यकृत्यं च कृत्वा तु स्थाने निर्जनिके जपेत् ।

यावत् प्रत्यक्षतां यान्ति यक्षिण्यो वाञ्छितप्रदाः ॥


अपना नित्यकर्म करने के पश्चात् निर्जन स्थान में इसका जप करना चाहिए । तब तक जप करें , जब तक मनवांछित फल देने वाली ( यक्षिणी ) प्रत्यक्ष न हो । क्रम टूटने पर सिद्धि में बाधा पड़ती है । अतः इसे पूर्ण सावधानी तथा बिना किसी को बताए करें ।


शोभना यक्षिणी साधना-

आप इस साधना को घर पर ही सिद्ध कर सकते हैं यह जितनी सरल साधना उतनी ही प्रभावकारी भी हैं । शोभना यक्षिणी का रूप शांतिमय तेजस्विता से पूरण अत्यंत ही ख़ूबसूरत और यौवन आकर्षण से परिपूर्ण होती है। अगर वृद्धि व्यक्ति इस साधना करें एक युवक की तरह यौवनवान हो जाएगा । साधक काल के दिनो में साधक के शरीर जोश और चेहरे के उपर लालीमा और तेज आ जाता है । दिव्य आकर्षण शक्ति प्राप्त होती शत्रु के मन में आप के प्रति आदर भाव पैदा होता है अगर शादी शुदा हो पती पत्नी के रिश्ते में मधुरता आ जाती है । संसार में मान सम्मान की प्राप्ती होती है । साधना के दिनो में आप यह बदलाव महसूस करोगे । हर वह साधक जो साधना क्षेत्र में आगे नया है लेकिन तंत्र मंत्र साधना में आगे बढ़ना चाहता वह साधक शोभना से शुरुआत करनी चाहिए वैसे यह साधना हरेक के लिए है । प्रत्येक मनुष्य इस साधना को कर सकता है स्त्री पुरूष कर सकता है । अगर स्त्री करे तो अपार सुंदरता की प्राप्ती होती है।


साधना विधी – साधना में लाल आसन और लाल माला रक्त चंदन की लकड़ी की होनी चाहिए,साधक खुद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए । साधना वाले कमरे को पहले अच्छे तरह से साफ करे दूध से धोकर इत्र का पोचा लगाए । लाला रंग के आसन पर गंगा जल छिटकाव करना चाहिए । फिर वातावरण को सुगंधित करने के लिए गूगल की धूप जलाए । यक्षिणी मंत्र का 1 माला जप करे 41 दिन तक करे । साधक को साधना के दिनो में यक्षिणी के दर्शन हो पास आकर बैठ जाए बोले नहीं देवी को दूर से प्रणाम करें बिना पने आसन से उठे जप करते रहें ।


मंत्र


।। ॐ नमो आदेश गुरु को जगमगाती नगरी अलकापुरी निवासिनी शोभना यक्षिणी आवो आवो जागृत होकर दर्शन दो मेरा इच्छीत कार्य सिध्द करो ना करो तो यक्षराज के सेज पर सजो ************ की दुहाई मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा छू ।।



शोभना यक्षिणी साधक इच्छा अनुसार भोग विलास भी करती है ।


साधक त्रिकाल प्रदान करती है भूत भविष्य वर्तमान की जानकारी भी प्रदान करती है ।


ईस साधना से साधक को यौवन शक्ति और सौदर्य की प्राप्ति होती है जिससे के साधक स्त्री और पुरुष सभी आकर्षित रहते ।


यक्षिणी साधक संसार शोभा और मान सम्मान दिलाती है इस लिए इस को शोभना यक्षिणी कहते है ।


पूर्ण मंत्र प्राप्त करने हेतू संपर्क करे,यहां दिया हुआ अधूरा मंत्र व्हाट्सएप पर पूरा दिया जाएगा,गोपनीय मंत्र है इसलिए ऐसे ही ब्लॉग पर देना संभव नही है । मंत्र निःशुल्क दिया जाएगा और मार्गदर्शन भी किया जायेगा ।

मोबाईल और व्हाट्सएप नम्बर-8421522368


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