23 Mar 2018

लिवर का ईलाज (Curing the Liver)



लिवर खराब होने पर शरीर की कार्य करने की क्षमता न के बराबर हो जाती है और लिवर डैमेज का सही समय पर इलाज कराना भी जरूरी होता है नहीं तो यह गंभीर समस्या बन सकती है। गलत आदतों की वजह से लीवर खराब होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है। गलत आदते जैसे जैसे शराब का अधिक सेवन करना, धूम्रपान अधिक करना, खट्टा ज्यादा खाना, अधिक नमक सेवन आदि।

सबसे पहले लिवर खराब होने के लक्षणों को जानना बहुत जरूरी है। जिससे समय रहते आपको पता रहे और इलाज सही समय पर हो सके। भारत में दस खतरनाक रोगों में से एक है लिवर की बीमारी। हर साल तकरीब दो लाख लोग लीवर की समस्या से मरते हैं। नए शोध के अनुसार भारत में 32 फीसदी लोग लीवर की किसी न किसी समस्या से ग्रसित हैं। लेकिन इसमें से सबसे अधिक वे लोग हैं जो अधिक मात्रा में शराब का सेवन करते हैं। लिवर में बीमारी होते ही यह सिरोसिस का रूप ले लेती है जिस वजह से लिवर टाइट,गांठ या भूरा जैसे होने लगता है।

लिवर को खराब करने वाले महत्वपूर्ण कारण:-
1. दूषित मांस खाना, गंदा पानी पीना, मिर्च मसालेदार और चटपटे खाने का अधिक सेवन करना।
2. पीने वाले पानी में क्लोरीन की मात्रा का अधिक होना।
3. शरीर में विटामिन बी की कमी होना।
4. एंटीबायोटिक दवाईयों का अधिक मात्रा में सेवन करना।
5. घर की सफाई पर उचित ध्यान न देना।
6. मलेरिया, टायफायड से पीडित होना।
7. रंग लगी हुई मिठाइयों और कोल्डड्रिंक्स का प्रयोग करना।
8. सौंदर्य वाले कास्मेटिक्स का अधिक इस्तेमाल करना।
9. चाय, काफी, जंक फूड आदि का प्रयोग अधिक करना।

लिवर प्रत्यारोपण-
लिवर जब पूरी तरह से खराब हो जाता है तब इसका एक ही इलाज बचता है वह है लिवर प्रत्यारोपण। यह एक कठिन और खतरनाक आॅपरेशन होता है। इस अवस्था में पीड़ित इंसान के लिवर को हटा के नए लीवर को लगाया जाता है। इसलिए यह जरूरी है कि लीवर की समस्या का शुरूआती दौर में पता चलते ही अपने खान.पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

मुझसे एक 68 वर्ष की महिलाके बेटे ने संपर्क किया था,महिला का लिवर 90% खराब हो चुका था और उनका परिवार उनके बीमारी पर 40 लाख खर्च कर चुके थे परंतु उनके जिंदा रहने का कोई ज्यादा समय उनके पास नही बचा था । ऐसे समय मे उनको बेटे की आपबीती सुनकर उन्हें आयुर्वेदिक दवाओं के माध्यम से 16 दिनों में पूर्ण तरह से ठीक कर दिया । आज उनके मेडिकल रिपोर्ट देखकर विश्वास करना भी डॉक्टर लोगो के लिये कठिन हो रहा है परंतु एक बात लिखना चाहुगा के आयुर्वेद में सभी बीमारियों के इलाज है और दुनिया कोई भी बीमारी 7 दिनों से लेकर 90 दिनों में खत्म की जा सकती है । मैं पिछले 15 वर्षों से लिवर का दवाई रोगियों को दे रहा हूँ और आज तक ऐसा नही हुआ के आयुर्वेदिक दवाओं से लिवर ठीक नही हुआ होगा । लिवर कम से कम 7 दिन और ज्यादा से ज्यादा 30 दिनों में ठीक किया जा सकता है,बड़े बड़े हॉस्पिटल में लाखों रुपए खर्च करने पर भी लिवर ठीक नही होता है,ये मैने बहोत सारे रोगियों से सुना है । मैं रोगियों का सबसे पहले मेडिकल टेस्ट रिपोर्ट देखता हूं जिसमे लिवर के खराब होने के बारे में लिखा होता है,उसके बाद ही लिवर का दवा उन्हें देता हूँ और उन्हें चुनौती के साथ बोलता हूँ "अगर तुम्हारा लिवर आयुर्वेदिक दवाओं से ठीक नही हुआ तो 95% पैसा रिफंड मेरे से ले लेना " । लोगो को लाखों रुपए खर्च करके भी आराम नही मिलता और यहां हम लोग सिर्फ 5 हजार रुपए लेते है,जिसमे रोगी को आराम नही मिला तो 4500 रुपया वापिस भी कर देते है ।
कौनसा हॉस्पिटल या डॉक्टर लाखो रुपये लेने के बाद 1 रुपया भी वापिस नही देता है परंतु हम लोग रिफंड दे देते है क्योंकि हमें आयुर्वेद पर 100% विश्वास है के रोगी का रोग ठीक हो सकता है । मुझे मेरे इस कार्य के वजेसे से एक संस्थान के तरफ से 10 वर्ष का सम्मानजनक अनुभव प्रमाणपत्र भी प्राप्त हुआ है और मातारानी के कृपा से लिवर के साथ किडनी का इलाज भी कर लेता हूँ । अभी तो आज सिर्फ इन दो विषय पर ही लिखा है और भविष्य में बाकी रोगों के विषय पर भी लिखूंगा जिसमे हार्ट ब्लॉकेज, कैंसर, डाईबेटिज,ब्लड प्रेशर जैसे गंभीर बीमारियों पर आवश्यकता नुसार लिखेंगे ।

लिवर और किडनी के रोगी जिन्हें अभी तक ईलाज करने पर भी आराम ना मिला हो वह लोग अवश्य संपर्क करे,डरने की कोई बात नही है । आपको सही तरह से ठीक करना और आपको स्वास्थ्य रहने हेतु सभी प्रकार के प्रयास अवश्य करूँगा ।

My whats app no.
+1 (270) 551-1006

संपर्क हेतु ई-मेल करे-
snpts1984@gmail.com



Curing the Liver

If the Liver is damaged, the body loses its capacity to function and if it is not treated well on time it can become seriously threatening to the body. Bad habits lead to Liver damage. For example, excessive drinking, excessive smoking, eating very salty food etc.

Firstly, it is important to recognise the signs of Liver damage. So that we can diagnose ourselves and get us treated on time. Every year 2 lakh people die of diseases related to Liver. According to new researchs almost 32% of Indians are afflicted by some sort of Liver disease. Most of these people are excessive drinkers. Liver damage takes the form of cirosis which can turn the Liver tight, brown or even have hard knots in it.
Main reasons for Liver diseases-

1. Having contaminated meat, drinking dirty water, eating very salty or spicy food.
2. Drinking water with excessive chlorine on it.
3. Deficiency of vitamin b
4. Having a lot of antibiotics
5. Not keeping the house clean
6. Having malaria or typhoid
7. Having coloured sweets or soda
8. Using a lot of beauty cosmetics
9. Drinking excessive coffee, tea or having too much junk food.


Liver transplant

When the Liver is damaged beyond repair, only one thing can be done. Liver transplant. It is a difficult and dangerous operation. The old Liver is removed and a new one is added. That is why if one comes to know about his Liver disease at an early stage he should keep a strict control over his diet.
I was contacted by the son of a 68 year old woman whose Liver had been damaged completely. The family hd spent 40 lakh on her treatment but it seemed nothing was working. After hearing about this from her son i treated her with ayurvedic medicines and cured her in 16 days. Even doctors find it hard to believe that she is completely cured. I would like to add that all the world's diseases can be cured with ayurveda, within 7-90 days. The Liver diseases can be cured within 7-30 days at the best. I always see my patients test report and then give them the medicine along with the challenge that if it doesn't work I'll refund 95% of your money. We take only 5000 rs for the treatment, unlike hospitals that charge lakhs of rupees, and 4500 is refunded if the patient does not feel better. No hospitals offer refund, but we do, because we have 100% faith on ayurvedic medicine. Because of this work, I have received a respectful certificate from an institute validating my 10 years of experience and by the grace of the goddess i can even treat kidneys
I've written only on two topics today, but I'll write more, including heart blockage, cancer, diabetes, blood pressure, etc.

All those Liver and kidney patients who haven't had relief anywhere else feel free to contact me, don't worry. I will do my best to treat you and make you healthy again.

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आदेश.....

20 Mar 2018

बाबा अघोरी साधना



आप सभी को मैं एक बाबा अघोरी की साधना दे रहा हूं, बाबा अघोरी वह है जो "जूनागढ़ में अघोरियों के बाबा कहलाते हैं" । जैसे हमने सुना है देवाधिदेव महादेव वैसे ही अघोरियों के अघोरी जिनका नाम बाबा अघोरी है , बाबा अघोरी वहा एक शक्ति के पुत्र माने जाते हैं और काल भैरव के भक्त माने जाते हैं,जो किसी भी हाल में अपने भक्तों पर अन्याय नहीं होने देते और जब भी उनके भक्तों पर अन्याय होता है तो वह अपना सोटा निकालते हैं,सोटा मतलब चाबुक (हंटर) और जब यह सोटा किसी पर पड़ता है तो अच्छे-अच्छे टूट जाते हैं सुधर जाते हैं,आज के समय में बहुत ऐसे लोग हैं जो तांत्रिक क्रियाओं की वजह से तांत्रिक बाधाओं की वजह से परेशान हैं और आज कल के कुछ बेकार तांत्रिक लोग कुछ पैसों के लिए किसी का भी बुरा कर देते हैं । हम हमारे जीवन में क्या-क्या संभाल सकते हैं? घर संभाले? परिवार को संभाले? या इन तांत्रिकों से लड़े? या दुनिया से लडे? जीवन बड़ा व्यस्त होता है और ऐसे समय में हमें ऐसे शक्ति की आवश्यकता है,जो हमारे जीवन में हमारे शत्रुओं से लड़ सके क्योंकि हमारे बहुत सारे ऐसे शत्रु होते हैं जिन्हें हम नहीं समझ पाते हैं,जिन्हें हम नहीं जान सकते हैं और जिन शत्रु को हम नहीं जान सकते हैं जिनको हम देख नहीं सकते हैं , तो ऐसे शत्रु को निपटने के लिए बाबा अघोरी साधना अत्यंत आवश्यक है । ऐसा साधना प्राप्त होना ही एक अद्वितीय बात है,जीवन में जब भी कुछ बनने की इच्छा रखो तो अद्वितीय बनने की इच्छा रखो । जितने भी आपके शत्रु है उन पर ऐसे वार करो कि उनकी अकल ठिकाने आ जाए । जिस दिन उनकी अकल ठिकाने आ जाएगी तो वह आपको बिना किसी वजह के परेशान करना छोड़ देंगे परंतु एक बात मैं बताना चाहूंगा बाबा अघोरी उसी को दंड देते हैं जो आपको बिना वजह से परेशान कर रहा है और आप किसी अच्छे इंसान को बिना वजह से परेशान करना चाहते हो तो गलती से भी बाबा अघोरी से मदत नही माँगे,नहीं तो लेने के देने पड़ जाएंगे । आप पर अन्याय हो रहा है और आप अन्याय से लड़ने के लिए तत्पर नहीं है,तो ऐसे ही समय पर बाबा अघोरी की साधना के माध्यम से आपको अपने शत्रुओं से लड़ना चाहिए। जीवन में सभी तो जी रहें और एक समय आएगा सभी की मृत्यु भी हो जाएगी परंतु अन्याय से डरना यह जिंदगी जीते हुए मृत्यु के समान होता है और ऐसा जीवन किस काम का कि हमारे शत्रु हम पर बुरी क्रियाये कर रहे हैं और हम उन क्रियाओं से निपटने के लिए कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं । हमें हमारे शत्रु को सबक सिखाना चाहिए हमें अन्याय से लढना चाहिए, हमारे देश में जितने भी महान बने हैं या जितने भी संत महात्मा ऋषि-मुनि आए हैं,उन सभी ने हमें अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए पुकार लगाइ,वह हर बार हमें समझाते हैं कि अन्याय के खिलाफ लड़ो । इसी अन्याय के खिलाफ ही एक बहुत बड़ा युद्ध हुआ था,युद्ध का नाम है महाभारत और हमे कोई महाभारत तो नहीं करना है परंतु हमें हमारे शत्रु को हमें परेशान करने से भी रोकना है और इसके लिए हमें बाबा अघोरी से सहायता प्राप्त करनी है । यह साधना किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी से प्रारंभ कर सकते हैं। 


साधना 11 दिन की है , दक्षिण दिशा में मुख होना चाहिए,साधना रात्रि में 9 बजे के बाद करना है, काला आसन होना चाहिए , काले वस्त्र पहनना आवश्यक है , सिर के बाल काले वस्त्र से छुपाने हैं, जैसे हम गुरुद्वारे में जाते हैं तो हम सर पर जैसे बांधते हैं उसी तरह से बांधना है । अगर कोई महिला साधना कर रही है तो उन्हें भी काली साड़ी पहननी पड़ेगी । सामने सरसों के तेल का दीपक जलाना है , दीपक मिट्टी होना चाहिए, दीपक की ओर देखते हुए ही यह मंत्र का जाप करना है । साधना में आपको ढेर सारे अनुभव हो सकते हैं , दीपक की लौ में बाबा अघोरी का दर्शन देना भी एक अनुभव हो सकता है , बाबा जी के कृपा से आपको जीवन में धन धान्य ऐश्वर्य सुख समृद्धि मिल सकती है,हो सकता है कि आपको प्रत्यक्ष दर्शन दें और पूछें बेटा बोलो आपकी क्या कामनाएं है? आप क्या चाहते हो? ऐसे वक्त आपको आपकी कामना बोलनी है । एक काम कीजिए कि जैसे बाबा जी का दर्शन हो तो अपनी तुच्छ इच्छाओं को मत मांगे ।


मंत्र:-
।। अघोरीयो का अघोरी बाबा अघोरी,कालभैरव का भगत  दिखाओ रे अपना सोटा,जहा-जहा तेरा सोटा पड़े वहां-वहां मेरा दुश्मन टूटे,दुश्मन मेरा कौन तू ही जाने,ना जाने तो कैसा  अघोरीयो का बाबा अघोरी कहलाए ।।



साधना में बाबा अघोरी को सात्विक भोग चढ़ाए, वैसे इनको तामसिक भोग चढ़ाया जाता है परंतु यह जरूरी नही है । आप चाहे तो पाँच प्रकार का मिठाई चढ़ा सकते है,चढ़ाया हुआ भोग दूसरे दिन बच्चो में बाट दे और भोग रोज 11 दिनों तक चढ़ाना है । मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से ही करे,नित्य कम से कम 3 माला जाप रोज करे । साधना के 11 दिन के समय मे नित्य शिव मंदिर दर्शन हेतु जाना जरूरी है और शिव जी से नित्य साधना सफलता हेतु प्रार्थना अवश्य करे ।


इस साधना को वर्ष में दो-तीन बार अवश्य किया करे ताकि आपके जीवन मे शत्रु बाधा ना रहे और आप बाबा की कृपा से जीवन मे उन्नति करते रहे,साधना से किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नही होता है इसलिए दिमाग से डर को निकाल भगाए ।



आदेश.......

19 Mar 2018

डाईन सिद्धि और रक्षा कवच


प्राय: सभी गांव में अभिचार कर्म करने वाली चार या पांच औरतें या मर्द होते हैं जो अपनी ईर्ष्या के वश मे आकर दूसरों के ऊपर षट्कर्म करती हैं, ये डाईन कहलाती हैं इनके ईष्ट "दरहा भूत" या शक्तिशाली भूत होते हैं,ये हमेशा दूसरों अपनी तंत्र क्रिया द्वारा दुख ही देती हैं,इनके कर्म को गांव मे प्रत्यक्ष रूप मे कोई नहीं जानता है । इनके कर्म का कोई सबूत नहीं होता,न ही इनके पूजा पाठ का कोई सबूत मिलता है । इनका तंत्र अत्यंत शक्तिशाली होता है, इनके परिवार वाले भी इनकी क्रियाओं को नही जानते,जैसे जैसे ये बूढ़े होते जाते हैं इनकी शक्ति बढ़ती जाती है । इनका मंत्र सिर्फ दो तीन शब्दों का होता है जिस परिवार को अत्यअधिक दुख देना हो उनके यहां अपने माहवारी कपड़े से जुक्ति बनाकर मंत्र शक्ति से उनके घर के दरवाजे मे गाड़ देती हैं जिससे वहां किसी भी देवी देवता का प्रवेश निषेध हो जाता है और उनके द्वारा लगाया गया भूत लंबे समय तक दुख देता रहता है ।

इनकी साधना बड़ी ही गोपनीय तरीके से होती है ये दीपावली के दिन अपने गांव को मंत्र से बांध कर शमसान में 8-10 के ग्रूप मे एकत्र होकर अपने गुरू डाईन के समक्ष नग्न होकर कमर में झाड़ू लपेटकर अपने मल मूत्र से जमीन को लीपकर गोल घेरे बनाकर रातभर नाचती हैं और अपनी शक्ति बढ़ाती हैं ।

पहली बार ये अनजाने में या जानबूझकर इस विद्या को सीखती हैंं,तब इनके गुरू मंत्र सिखाने के बाद सिद्धी के लिए बलि मांगती हैं वो भी इनके पति या प्रिय पुत्र की बलि,इंकार करने पर ये पागल हो जाती हैं और हां कहने पर बलि के लिए नियुक्त व्यक्ति अपने आप मर जाता है और गांव मे या परिवार मे किसी को कुछ पता भी नही चलता है इनकी सिद्धी होने के बाद ये पेड़ पौधों,पालतू जानवर,पक्षीआदि पर प्रयोग करना प्रारंभ कर देते हैं बाद मे मनुष्यों पर प्रयोग करते हैं ।

बहुत सी ( 99%) डाईन इस विद्या को सीखना नहीं चाहती हैं क्योंकि इनका भविष्य अत्यंत दुखदायी कष्टप्रद होती है ये बात गांव के सभी लोग जानते हैं किंतु जो सीनियर या बुजुर्ग डाईन होते हैं उन्हेंअपना चेला बनाना अति आवश्यक होता है स्वयं की मृत्यु से पहले चार या पांच चेला बनाना उनकी मजबूरी होती है,नहीं तो उनके ईष्ट भूत स्वयंको बहुत तंग करता है इसलिए वो ऐसे स्त्री या पुरूष को चुनती हैं जिनके अंदर ईर्ष्या की भावना बहुत ज्यादा हो या अपने ही परिवार के किसी सदस्य को चुनती हैं उन्हें अपने वश मे करके अपने साथ घुमाती फिराती हैं और चार पांच मंत्र सिखा देती हैं इस तरह से चेला बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है । इसके अलावा वो कम उम्र की अपने ही परिवार की एक या दो लड़की के ऊपर शक्तिपात कर देती हैं ताकि उस लड़की जितने साल बाद भी विवाह हो उसके बाद लड़की के उपर अपने आप की गुन (विद्या) जागृत होने लगते हैं सपने में मंत्र और विधि मिलने लगती है इस तरह से डाईन बनने की प्रक्रिया होती है ।

डाईन लोगों के गुन को परमानेंट भ्रष्ट नहीं किया जा सकता है इनसे हर व्यक्ति डरता है और नफरत करता हैं इनकी मौत अत्यधिक दर्दनाक और कष्टदायी होती है इनकी आयु अत्यधिक लंबी होती है इसके अलावा ये दूसरों की उम्र चुराकर बहुत लंबी उम्र तक जीते हैं जैसे जैसे ये बूढ़ी होती है वैसे वैसे इनकी शक्ति बढ़ती जाती है इस तरह के कार्य करने वा मर्द को डईया कहा जाता है किंतु डाईन की संख्या डईया से तीगुना तक होती है डाईन अत्यधिक चालाक और शातिर होती हैं ।

एक वरिष्ठ डाईन के ऊपर मारण क्रिया करना बहुत ही कठिन है कोई उच्च कोटि का अघोरी ही कर सकता है क्योंकि क्योंकि इनका ईष्ट भूत चौबीस घंटा इनकी सुरक्षा करता है और इनका पिण्ड चौबीस घंटा बंधा रहता है उसपर भी ये हर पल ये सतर्क रहते हैं इसके अलावा इनके परिवार के किसी सदस्य पर भी कोई तांत्रिक क्रिया या मारण क्रिया नहीं कर सकता, चाहे कहीं भी रहें,क्योंकि इनका पिण्ड भी हमेशा बंधा रहता है इनके हर पल की खबर डाईन को ईष्ट भूत देता रहता है वह एक कर्ण पिशाचिनी की तरह कार्य करता है इसी कारण डाईन के परिवार बेफिक्र और खुशी खुशी रहते हैं उनकी खेती बाड़ी और गाय बैल सभी पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं एक डाईन दूसरे डाईन के परिवार वालों को भी दुख नहीं पहुंचा सकती,और किसी साधारण परिवार के ऊपर किया गया तांत्रिक क्रिया को बिल्कुल ठीक नहीं कर सकती है,ये सिर्फ दुख देने का काम कर सकती है ठीक करने का काम नही कर सकती है किंतु हां स्वयं के द्वारा किये गये तांत्रिक क्रिया को स्वयं अपनी इच्छा से जब चाहे तब ठीक कर सकता है किंतु ऐसा वो जब तक स्वयं पर बहुत ज्यादा दबाव न पड़े तब तक बिल्कुल नहीं करती हैं । ये उन्हीं परिवार वालों को दुख देती हैं जो धार्मिक,आध्यात्मिक और सीधे साधे हों,उनपरिवार वालों सेडरती हैं जो क्रिमनल प्रवृत्ति के हों,एक डाईन के पास परिवार को बर्बाद करने के लिए हजारों तरीके होते हैं ।

एक डाईन के तांत्रिक क्रिया का आजीवन कोई सबूत नहीं मिलता,ना ही प्रत्यक्ष कोई प्रमाण मिलता है यदि कोई किसी को डायरेक्ट डाईन कह दे तो वो बना गवाह के भी पुलिस थाने मे रिपोर्ट लिखा सकती है और कहने वाले के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्यवाही हो जाती है गांव के लोग चाहकर भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते,हां निरंतर किसी न किसी से चपके चुपके इनपर मारण क्रिया करवाते रहते हैं इसी उम्मीद से कि शायद किसी का कोई असर हो जाए ,कभी कभी किसी किसी का किस्मत भूले भटके साथ दे भी देता है और डाईन की मृत्यू हो जाती है ।
साधारणतया हम लोग सोंचते हैं कि डायन एक अत्यंत खतरनाक,कालीऔर कुरूप दिखने वाली बुढ़िया होगी,जैसा कि टी वी सीरियल मे हम देखते हैं जबकि हकीकत मे ऐसा कुछ नही है । डाईन तो अत्यंत सुन्दर,बदसूरत,गोरी, काली,18-20 साल की या 50-100 साल की भी हो सकती है,बी.ए. या एम.ए.पढ़ी लिखी या अनपढ़ भी हो सकती है नौकरी पेशा वाली या गृहणी भी सकती है किसी बहन, माँ, भाभी, पत्नी कोई भी हो सकती है,इनकी कोई विशेष पहचान नही होती,आज जो साधारण स्त्री है एक साल बाद डाईन बन जाएऔर किसी को पता भी न चले ऐसा भी होता है ।

डाईनों के पास मुठ मारण,भूत लगाने की विधी और सबसे खतरनाक विद्या "बान मारण" होती है बान 32 प्रकार का होता है जैसे:-चाऊर बान,सुई बान,लोहा बान सरसों बान इत्यादि । सभी एक से बान एक से बढ़कर एक खतरनाक होता है,किसी से एक पल मे लकवा मार देता है किसी से एक पल में फड़फड़ाकर वहीं पर मृत्यु हो जाती है जिसे डॉ. लोग हार्ट अटैक से मौत बता देते हैं ।

इसीलिए डईनों से उलझने से हर कोई डरता है,ये लोग कुछ भी करने में सक्षम होते हैं,जब मन किया कुत्ता या बिल्ली बनकर दूसरों के यहां सेंध मारने जाते हैं,या भूत को सांप बनाकर जिसे चाहे उसे कटवा देते हैं और उनकी मृत्यू होना निश्चत है बड़े स बड़े पेड़ को मरवा देना बाद मे जिंदा करना सामान्यतः इनका शक्ति परीक्षण होता है,विवाह के दौरान दूल्हा दूल्हन पर विशेष तौर पर भूत लगाया जाता है और पहले बच्चे के जन्म पर भी भूत लगाया जाता है कई बच्चों बचपन मे ही भूत लगाया जाता है जिसका लक्षण जवान होने पर पढ़ ना पाना,बार बार बिमार पड़ना,नौकरी न लगना,शादी न हो पाना या पागल हो जाना आदि के रूप मे दिखाई देता है कई बार डाईन लोग दूसरे डाईन के नाम से भूत लगा देते हैं ताकि स्वयं पकड़ मे नही आती और दूसरी डाईन व्यर्थ मे बदनाम होती है इस तरह ये हजारों प्रकार से दुख देते हैं जिसे पूरी तरह से फेस बुक मे व्याख्या कर पाना संभव नहीं | मेरी तरफ से संक्षेप मे ये सामान्य जानकारी है और डाईन से बचने हेतु अवश्य ही रक्षा कवच धारण करे,डाईन रक्षा कवच का निर्माण गोपनीय विधि-विधान से किया जाता है जिसमे जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल होता है ।

जो साधक डाईन को सिद्ध करना चाहते है उनके लिए विशेष प्रकार के सामग्री का निर्माण किया जाएगा और साधक यह साधना किसी भी अमावस्या से घर पर बैठकर ही कर सकते है ।

अधिक जानकारी हेतू ईमेल से संपर्क करे-
snpts1984@gmail.com


आदेश....

14 Mar 2018

कूलदेवी/कुलदेवता पूजन पद्धती ।



समस्त ब्रह्माण्ड जिससे चालयमान है वह है शिव , और जो स्वयं शिव को चालयमान बनाती है वह है  उनकी शक्ति, आदिशक्ति । बिना आदिशक्ति के शिव भी अचल है। वह शक्ति ही है जो शिव परिपूर्ण करती है । यह आदिशक्ति भिन्न भिन्न रूपों में ब्रह्माण्ड की समस्त सजीव और निर्जीव वस्तुओं में विद्यमान है। यही शक्ति देवताओं में, असुरों में , यक्षों में , मनुष्यों में, वनस्पतियों में, जल में थल में , संसार के प्रत्येक पदार्थ में भिन्न भिन्न मात्रा में उपस्थित है। और देवताओं की शक्ति को हम उन देवो के नामों से जानते है जैसे – महेश्वर की शक्ति माहेश्वरी , विष्णु की शक्ति वैष्णवी , ब्रह्मा की शक्ति ब्रह्माणी , इंद्र की इंद्राणी , कुमार कार्तिकेय की कौमारी , इसी प्रकार हम देवों की शक्तियों को उन्ही के नाम से पूजते हैं।
कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारो और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये,अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुँचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है, ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम सशक्त होने से होता है।

कुलदेवी कभी भी अपने उपासकों का अनिष्ट नहीं करती।
कुलदेवियों की पूजा ना करने पर उत्पन्न बाधाओं का कारण कुलदेवी नहीं अपितु हमारे सुरक्षा चक्र का टूटना है। देवी अथवा देवता तब शक्ति संपन्न होते हैं जब हम समय-समय पर उन्हें हवियाँ प्रदान करते हैं व नियमित रूप से उनकी उपासना करते हैं। जब हम इनकी उपासना बंद कर देते हैं तब कुलदेवी तब कुछ वर्षों तक तो कोई प्रभाव ज्ञात नहीं होता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मकता ऊर्जा “वायव्य” बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का भय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योंकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है। कुलदेवता या देवी सम्बन्धित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है।

यदि अपने कुलदेवता के स्थान पर किसी अन्य देवता का नामजप किया जाए, तो केवल उस देवता द्वारा प्रतिनिधित्व किए जानेवाले तत्त्वों का संवर्धन होगा किन्तु वह आध्यात्मिक उन्नति में प्रभावी रूप से सहायक नहीं होगा । जिस प्रकार माता-पिता से भिन्न व्यक्ति हम पर माता-पिता के समान कृपा नहीं करता उसी प्रकार अन्य देवता हम पर कृपा तो करते हैं किन्तु वह कृपा केवल उन्हीं तत्त्वों की होगी जिनका वह देवता प्रतिनिधि है। अतएव यह अपने कुलदेवता के नामजप की भांति अथवा जन्मगत धर्मानुसार देवता के नामजप की भांति प्रभावी नहीं होता । अतः किसी अन्य देवता अथवा अपने इष्ट देव की उपासना करना गलत नहीं है। परंतु इसके लिए हमें हमारी कुलदेवी की उपेक्षा नहीं करना चाहिये और नियमित रूप से पूर्ण श्रद्धा से कुलदेवी की उपासना अवश्य करते रहना चाहिए और हर समय इनका ध्यान करना चाहिए। यदि आप नहीं जानते कि आपकी कुलदेवी कौन है तो पूजा के लिए यह विधि कर सकते हैं "जिन्हें कुलदेवी की जानकारी नहीं है उनके लिए पूजा विधि"।

ऐसे लोगों के लिए हम एक पूजा-साधना प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसके माध्यम से आप अपनी कुलदेवी की कमी को पूरा कर सकते हैं और एक सुरक्षा चक्र का निर्माण आपके परिवार के आसपास हो जाएगा | घर में क्लेश, बार-बार होने वाली बिमारियों, उन्नति में होने बलि बाधाओं इत्यादि  सभी समस्याओ के लिये कुलदेवी /कुल देवता साधना ही सर्वश्रेष्ठसाधना है। चूंकि अधिकतर कुलदेवता /कुलदेवी शिव कुल से सम्बंधित होते हैं ,अतः इस पूजा साधना में इसी प्रकार की ऊर्जा को दृष्टिगत रखते हुए साधना पद्धती अपनाई गयी है |



सामग्री :-

४ पानी वाले नारियल,लाल वस्त्र ,१० सुपारिया ,८ या १६ शृंगार कि वस्तुये ,पान के १० पत्ते , घी का दीपक,कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर ,मौली ,पांच प्रकार कि मिठाई ,पूरी ,हलवा ,खीर ,भिगोया चना ,बताशा ,कपूर ,जनेऊ ,पंचमेवा ।



साधना विधि :-

सर्वप्रथम एक लकड़ी के बाजोट या चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं |उस पर चार जगह रोली और हल्दी के मिश्रण से अष्टदल कमल बनाएं |अब उत्तर की ओर किनारे के अष्टदल पर सफ़ेद अक्षत बिछाएं उसके बाद दक्षिण की ओर क्रमशः पीला ,सिन्दूरी और लाल रंग से रंग हुआ चावल बिछाएं |चार नारियल में मौली लपेटें |एक नारियल को एक तरफ किनारे सफ़ेद चावल के अष्टदल पर स्थापित करें |अब तीन नारियल में से एक नारियल को पूर्ण सिंदूर से रंग दे दूसरे को हल्दी और तीसरे नारियल को कुंकुम से,फिर ३ नारियल को मौली बांधे |इस तीन नारियल को पहले वाले नारियल के बायीं और क्रमशः अष्टदल पर स्थापित करें |प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने एक पान का पत्ता और अन्य तीन नारियल के सामने तीन तीन पान के पत्ते रखें ,इस प्रकार कुल १० पान के पत्ते रखे जायेंगे |अब सभी पत्तों पर एक एक सिक्का रखें ,फिर सिक्कों पर एक एक सुपारियाँ रखें |प्रथम नारियल के सामने के एक पत्ते पर की सुपारी पर मौली लपेट कर रखें इस प्रकार की सुपारी दिखती रहे ,यह आपके कुल देवता होंगे ऐसी भावना रखें |अन्य तीन नारियल और उनके सामने के ९ पत्तों पर आपकी कुल देवी की स्थापना है | इनके सामने की सुपारियों को पूरी तरह मौली से लपेट दें |अब इनके सामने एक दीपक स्थापित कर दीजिये |

अब गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न कीजिये | अब सभी नारियल और सुपारियों की चावल, कुंकुम, हल्दी ,सिंदूर, जल ,पुष्प, धुप और दीप से पूजा कीजिये | जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं |जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं |बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं ,हल्दी -रोली चढ़ा सकते हैं ,यहाँ जनेऊ चढ़ाएं ,जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए | इस प्रकार से पूजा करनी है | अब पांच प्रकार की मिठाई इनके सामने अर्पित करें | घर में बनी पूरी -हलवा -खीर इन्हें अर्पित करें |चना ,बताशा केवल रंगे नारियल के सामने अर्थात देवी को चढ़ाएं और आरती करें |साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है,श्रृंगार पूजा मे कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये श्रृंगार सामग्री तीन रंगे हुए नारियल के सामने चढा दे और माँ को स्वीकार करने की विनती कीजिये ।

इसके बाद हाथ जोड़कर इनसे अपने परिवार से हुई भूलों आदि के लिए क्षमा मांगें और प्राथना करें की हे प्रभु ,हे देवी ,हे मेरे कुलदेवता या कुल देवी आप जो भी हों हम आपको भूल चुके हैं ,किन्तु हम पुनः आपको आमंत्रित कर रहे हैं और पूजा दे रहें हैं आप इसे स्वीकार करें | हमारे कुल -परिवार की रक्षा करें |हम स्थान ,समय ,पद्धति आदि भूल चुके हैं ,अतः जितना समझ आता है उस अनुसार आपको पूजा प्रदान कर रहे हैं ,इसे स्वीकार कर हमारे कुल पर कृपा करें |

यह पूजा नवरात्र की सप्तमी -अष्टमी और नवमी तीन तिथियों में करें |इन तीन दिनों तक रोज इन्हें पूजा दें ,जबकि स्थापना एक ही दिन होगी | प्रतिदिन आरती करें ,प्रसाद घर में ही वितरित करें ,बाहरी को न दें |सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता /कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता और उन्हें दीपक देखने तक की मनाही होती है ,किन्तु इस पद्धति में जबकि पूजा तीन दिन चलेगी कन्याएं शामिल हो सकती हैं ,अथवा इस हेतु अपने कुलगुरु अथवा किसी विद्वान् से सलाह लेना बेहतर होगा |कन्या अपने ससुराल जाकर वहां की रीती का पालन करे |इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं ,किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें |वैसे यह आवश्यक नहीं है ,क्योकि सभी लोग पढ़े लिखे हों और सही ढंग से मंत्र जप कर सकें यह जरुरी नहीं |

साधना समाप्ति के बाद सपरिवार आरती करे | इसके बाद क्षमा प्राथना करें |तत्पश्चात कुलदेवता /कुलदेवी से प्राथना करें की आप हमारे कुल की रक्षा करें हम अगले वर्ष पुनः आपको पूजा देंगे ,हमारी और परिवार की गलतियों को क्षमा करें हम आपके बच्चे हैं |तीन दिन की साधना /पूजा पूर्ण होने पर प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने के सिक्के सुपारी को जनेऊ समेत किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले |तीन रंगे नारियल के सामने की नौ सुपारियों में से बीच वाली एक सुपारी और सिक्के को अलग डिब्बी में सुरक्षित करें ,जिस पर लिख लें कुलदेवी |अगले साल यही रखे जायेंगे कुलदेवी /कुलदेवता के स्थान पर |अन्य वस्तुओं में से सिक्के और पैसे रुपये किसी सात्विक ब्राह्मण को दान कर दें |प्रसाद घर वालों में बाँट दें तथा अन्य सामग्रियां बहते जल अथवा जलाशय में प्रवाहित कर दें |

                                                                  सादर आभार,
                                                           - श्री संजय शर्मा जी.
                                     


आदेश.......

12 Mar 2018

महाकाल स्तोत्र एवं मंत्र साधना ।







आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् । भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥

अर्थात:आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।


इस स्तोत्र को भगवान् महाकाल ने खुद भैरवी को बताया था  । इसकी महिमा का जितना वर्णन किया जाये कम है। इसमें भगवान् महाकाल के विभिन्न नामों का वर्णन करते हुए उनकी स्तुति की गयी है । शिव भक्तों के लिए यह स्तोत्र वरदान स्वरुप है । नित्य एक बार जप भी साधक के अन्दर शक्ति तत्त्व और वीर तत्त्व जाग्रत कर देता है । मन में प्रफुल्लता आ जाती है । भगवान् शिव की साधना में यदि इसका एक बार जप कर लिया जाये तो सफलता की सम्भावना बड जाती है ।

भगवान शंकर के अनेकों नाम है। भक्त भिन्न-भिन्न नामों से इनका गुणगान करते हैं, कोई महादेव तो कोई भोलेनाथ, कोई अघोरी तो कोई शंभु। भोलेनाथ के अलग-अलग रूपों के कारण ही उनके इतने नाम हैं। इन्हें तंत्र साधना का जनक भी कहा जाता है, इसलिए कोई भी तंत्र साधना उनके बिना पूरी नहीं होती। जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से इनकी अराधना करता है, उसके जीवन से बड़े-बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान शिव का एक स्वरूप महाकाल का भी है, यानि वे मृत्यु को भी अपने वश में रखते हैं। महामृत्युंजय मंत्र के विषय में तो यह भी माना जाता है कि वह आसन्न मृत्यु को भी टाल सकता है। लेकिन बहुत ही कम महाकाल स्तोत्रं के बारे में जानते हैं, जिसे स्वयं भगवान शिव ने भैरवी को बताया था। इस स्तोत्रं में भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों की स्तुति की गई है। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो यह स्तोत्रं भगवान शिव के भक्तों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

प्रतिदिन बस एक बार इस स्तोत्रं का जाप भक्त के भीतर नई ऊर्जा और शक्ति का संचार कर सकता है। इस स्तोत्रं का जाप आपको सफलता के बहुत निकट लेकर जा सकता है।

स्तोत्र को महाकाल मंत्र से संपुटित करके पढ़िए तो इसका आपको शीघ्र परिणाम प्राप्त होगा । इस स्तोत्र के साथ भगवान महाकाल जी के प्रिय मंत्र का जाप 11 बार करना है, यह एक ऋषियो का भक्तों के लिए वरदान है ।



सर्वप्रथम मंत्र 11,21 या 108 बार पढ़े,फिर स्तोत्र का 1,5,7,9,11 या 108 बार पाठ करे-

मंत्र-
।।हूं हूं महाकाल प्रसीद प्रसीद ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।।






स्तोत्र-

ॐ महाकाल महाकाय महाकाल जगत्पत
महाकाल महायोगिन महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महादेव महाकाल महा प्रभो
महाकाल महारुद्र महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महाज्ञान महाकाल तमोपहन
महाकाल महाकाल महाकाल नमोस्तुते
भवाय च नमस्तुभ्यं शर्वाय च नमो नमः
रुद्राय च नमस्तुभ्यं पशुना पतये नमः
उग्राय च नमस्तुभ्यं महादेवाय वै नमः
भीमाय च नमस्तुभ्यं मिशानाया नमो नमः
ईश्वराय नमस्तुभ्यं तत्पुरुषाय वै नमः
सघोजात नमस्तुभ्यं शुक्ल वर्ण नमो नमः
अधः काल अग्नि रुद्राय रूद्र रूप आय वै नमः
स्थितुपति लयानाम च हेतु रूपआय वै नमः
परमेश्वर रूप स्तवं नील कंठ नमोस्तुते
पवनाय नमतुभ्यम हुताशन नमोस्तुते
सोम रूप नमस्तुभ्यं सूर्य रूप नमोस्तुते
यजमान नमस्तुभ्यं अकाशाया नमो नमः
सर्व रूप नमस्तुभ्यं विश्व रूप नमोस्तुते
ब्रहम रूप नमस्तुभ्यं विष्णु रूप नमोस्तुते
रूद्र रूप नमस्तुभ्यं महाकाल नमोस्तुते
स्थावराय नमस्तुभ्यं जंघमाय नमो नमः
नमः उभय रूपा भ्याम शाश्वताय नमो नमः
हुं हुंकार नमस्तुभ्यं निष्कलाय नमो नमः
सचिदानंद रूपआय महाकालाय ते नमः
प्रसीद में नमो नित्यं मेघ वर्ण नमोस्तुते
प्रसीद में महेशान दिग्वासाया नमो नमः
ॐ ह्रीं माया – स्वरूपाय सच्चिदानंद तेजसे
स्वः सम्पूर्ण मन्त्राय सोऽहं हंसाय ते नमः ।।


फल श्रुति
इत्येवं देव देवस्य मह्कालासय भैरवी
कीर्तितम पूजनं सम्यक सधाकानाम सुखावहम।।


मंत्र-
।।हूं हूं महाकाल प्रसीद प्रसीद ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।।




स्तोत्र पठन के बाद फिर से मंत्र का जाप करे,मंत्र का जाप उतना ही करे जितना स्तोत्र पठन से पूर्व शुरुआत में किया था ।
यह स्तोत्र तो कई पर भी किसी भी शुद्ध स्थान पर पढ़ सकते है,स्नान करने के बाद किसी भी प्रकार के वस्त्र,आसन और किसी भी दिशा में मुख करके पढ़ सकते है । जो व्यक्ति असाध्य बीमारियों से ग्रसित हो वह बेड पर या खुर्ची पर बैठकर भी कर सकते है ।

अंततः इतना ही कहूंगा के महाकाल सब जानते है,कब किसको किस समय पर क्या देना उचित है । महाकालि साधना में यह साधना प्रयोग करने से विशेष सफलता प्राप्त होती है ।

‘अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का,
काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का'


आदेश......