28 Feb 2016

कालीका-सहस्त्रनाम.

काली-सहस्रनाम का एक पाठ रात्रि मे करने से समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलता है।आज के समय में जबकि गुरु का मिलना मुश्किल है और साधना मार्ग ठीक से निर्देशित करने वालों की बहुत कमी सामान्य पाठकों को महसूस होती है ,जबकि उनकी समस्याए बहुत अधिक बढ़ चुकी हैं ,ऐसे  मे काली सहस्त्रनाम का पाठ सामान्य जन के लिए अमृत स्वरुप और हर समस्या का रामबाण इलाज है |

‘भैरव-तन्त्र’ के अनुसार साधक को अपनी साधना की सम्पूर्णत: निर्विघ्न सिद्धि के निमित्त कालिका देवी की उपासना करना अपरिहार्य है ।भगवती काली ही तंत्रों के प्रवर्तक भगवान सदाशिव की आह्लादनी शक्ति हैं । कालिका देवी के कृपा-कटाक्ष बिना अघोरेश्वर शिव भी साधक को उसका वांछित वर देने में असमर्थ हो जाते हैं।

‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ (गणपति खण्ड) में परशुरामजी द्वारा शिवजी की आज्ञा से कालिका देवी को प्रसन्न करने हेतु बार-बार स्तुति करने का वर्णन मिलता है । शिवजी द्वारा प्रदत्त‘कालिका सहस्रनाम’ पूर्णत: सिद्ध है । इसका पाठ करने के लिए पूजन, हवन, न्यास, प्राणायाम,ध्यान, भूत-शुद्धि, जप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है । भगवान सदाशिव ने परशुरामजी से इस पाठ के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि इस पाठ को करने से साधक में प्रबल आकर्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है, उसके कार्य स्वत: सिद्ध होते जाते हैं, उसके शत्रुगण हतबुद्धि हो जाते हैं तथा उसके सौभाग्य का उदय होता है ।

"शाक्त तंत्र" सर्वसिद्धिप्रद है जिसमे करकादी स्तोत्र और कालिका सहस्त्रनाम का उल्लेख तिष्ण प्रभावशाली बताया गया है।

‘ कालिका-सहस्रनाम’ का पाठ करने की अनेक गुप्त विधियाँ हैं, जो विभिन्न कामनाओं के अनुसार पृथक पृथक हैं और गुरु-परम्परा प्राप्त हैं । इस चमत्कारी एवं स्वयंसिद्ध ‘कालीका सहस्त्रनाम' का पाठ सिर्फ रात्रि मे ही करना अनुकुल माना जाता है। क्युके रात्रि मे महाविद्याओ कि समस्त शक्तियाँ जाग्रत होती है और उन्हे साधक प्रसन्न करके मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकता है। यहा एक गोपनीय विधान दे रहा हू,जो आसान है और फलदायी है।

सर्वप्रथम लाल रंग के कपडे पर महाकाली जी का चित्र स्थापित करें। साधक/साधिकाये स्वयं लाल वस्त्र धारण करे और लाल आसन का ही प्रयोग करे । हाथ मे किसी भी प्रकार का लाल पुष्प लेकर अपना कामना बोलकर पुष्प को मातारानी के चरणों मे समर्पित करें। रुद्राक्ष माला से "क्रीं कालिके स्वाहा" मंत्र का एक माला जाप सहस्त्रनाम पाठ से पुर्व और अंत मे करे तो शिघ्र सफलता प्राप्त होता है। जब भी यह साधना करना हो तो मंगलवार/शनिवार से प्रारंभ करें। दक्षिण दिशा मे मुख करके पढ़ने से समस्त प्रकार के लाभ प्राप्त होते है,पच्छिम दिशा मे मुख करके पढ़ने से दारिद्रता नष्‍ट हो जाती है,पुर्व दिशा मे मुख करके पढ़ने से वाचा सिद्धि प्राप्त होती है और उत्तर दिशा मे मुख करके पढ़ने से मातारानी के दर्शन करना सम्भव है।



"कालीका सहस्त्रनाम"

श्मशान-कालिका काली भद्रकाली कपालिनी ।
गुह्य-काली महाकाली कुरु-कुल्ला विरोधिनी ।।१।।

कालिका काल-रात्रिश्च महा-काल-नितम्बिनी ।
काल-भैरव-भार्या च कुल-वत्र्म-प्रकाशिनी ।।२।।

कामदा कामिनीया कन्या कमनीय-स्वरूपिणी ।
कस्तूरी-रस-लिप्ताङ्गी कुञ्जरेश्वर-गामिनी।।३।।

ककार-वर्ण-सर्वाङ्गी कामिनी काम-सुन्दरी ।
कामात्र्ता काम-रूपा च काम-धेनुु: कलावती ।।४।।

कान्ता काम-स्वरूपा च कामाख्या कुल-कामिनी ।
कुलीना कुल-वत्यम्बा दुर्गा दुर्गति-नाशिनी ।।५।।

कौमारी कुलजा कृष्णा कृष्ण-देहा कृशोदरी ।
कृशाङ्गी कुलाशाङ्गी च क्रीज्ररी कमला कला ।।६।।

करालास्य कराली च कुल-कांतापराजिता ।
उग्रा उग्र-प्रभा दीप्ता विप्र-चित्ता महा-बला ।।७।।

नीला घना मेघ-नाद्रा मात्रा मुद्रा मिताऽमिता ।
ब्राह्मी नारायणी भद्रा सुभद्रा भक्त-वत्सला ।।८।।

माहेश्वरी च चामुण्डा वाराही नारसिंहिका ।
वङ्कांगी वङ्का-कंकाली नृ-मुण्ड-स्रग्विणी शिवा ।।९।।

मालिनी नर-मुण्डाली-गलद्रक्त-विभूषणा ।
रक्त-चन्दन-सिक्ताङ्गी सिंदूरारुण-मस्तका ।।१०।।

घोर-रूपा घोर-दंष्ट्रा घोरा घोर-तरा शुभा ।
महा-दंष्ट्रा महा-माया सुदन्ती युग-दन्तुरा ।।११।।

सुलोचना विरूपाक्षी विशालाक्षी त्रिलोचना ।
शारदेन्दु-प्रसन्नस्या स्पुरत्-स्मेराम्बुजेक्षणा ।।१२।।

अट्टहासा प्रफुल्लास्या स्मेर-वक्त्रा सुभाषिणी ।
प्रफुल्ल-पद्म-वदना स्मितास्या प्रिय-भाषिणी ।।१३।।

कोटराक्षी कुल-श्रेष्ठा महती बहु-भाषिणी ।
सुमति: मतिश्चण्डा चण्ड-मुण्डाति-वेगिनी ।।१४।।

प्रचण्डा चण्डिका चण्डी चर्चिका चण्ड-वेगिनी ।
सुकेशी मुक्त-केशी च दीर्घ-केशी महा-कचा ।।१५।।

पे्रत-देही-कर्ण-पूरा प्रेत-पाणि-सुमेखला ।
प्रेतासना प्रिय-प्रेता प्रेत-भूमि-कृतालया ।।१६।।

श्मशान-वासिनी पुण्या पुण्यदा कुल-पण्डिता ।
पुण्यालया पुण्य-देहा पुण्य-श्लोका च पावनी ।।१७।।

पूता पवित्रा परमा परा पुण्य-विभूषणा ।
पुण्य-नाम्नी भीति-हरा वरदा खङ्ग-पाशिनी ।।१८।।

नृ-मुण्ड-हस्ता शस्त्रा च छिन्नमस्ता सुनासिका ।
दक्षिणा श्यामला श्यामा शांता पीनोन्नत-स्तनी ।।१९।।

दिगम्बरा घोर-रावा सृक्कान्ता-रक्त-वाहिनी ।
महा-रावा शिवा संज्ञा नि:संगा मदनातुरा ।।२०।।

मत्ता प्रमत्ता मदना सुधा-सिन्धु-निवासिनी ।
अति-मत्ता महा-मत्ता सर्वाकर्षण-कारिणी ।।२१।।

गीत-प्रिया वाद्य-रता प्रेत-नृत्य-परायणा ।
चतुर्भुजा दश-भुजा अष्टादश-भुजा तथा ।।२२।।

कात्यायनी जगन्माता जगती-परमेश्वरी ।
जगद्-बन्धुर्जगद्धात्री जगदानन्द-कारिणी ।।२३।।

जगज्जीव-मयी हेम-वती महामाया महा-लया ।
नाग-यज्ञोपवीताङ्गी नागिनी नाग-शायनी ।।२४।।

नाग-कन्या देव-कन्या गान्धारी किन्नरेश्वरी ।
मोह-रात्री महा-रात्री दरुणाभा सुरासुरी ।।२५।।

विद्या-धरी वसु-मती यक्षिणी योगिनी जरा ।
राक्षसी डाकिनी वेद-मयी वेद-विभूषणा ।।२६।।

श्रुति-स्मृतिर्महा-विद्या गुह्य-विद्या पुरातनी ।
चिंताऽचिंता स्वधा स्वाहा निद्रा तन्द्रा च पार्वती ।।२७।।

अर्पणा निश्चला लीला सर्व-विद्या-तपस्विनी ।
गङ्गा काशी शची सीता सती सत्य-परायणा ।।२८।।

नीति: सुनीति: सुरुचिस्तुष्टि: पुष्टिर्धृति: क्षमा ।
वाणी बुद्धिर्महा-लक्ष्मी लक्ष्मीर्नील-सरस्वती ।।२९।।

स्रोतस्वती स्रोत-वती मातङ्गी विजया जया ।
नदी सिन्धु: सर्व-मयी तारा शून्य निवासिनी ।।३०।।

शुद्धा तरंगिणी मेधा शाकिनी बहु-रूपिणी ।
सदानन्द-मयी सत्या सर्वानन्द-स्वरूपणि ।।३१।।

स्थूला सूक्ष्मा सूक्ष्म-तरा भगवत्यनुरूपिणी ।
परमार्थ-स्वरूपा च चिदानन्द-स्वरूपिणी ।।३२।।

सुनन्दा नन्दिनी स्तुत्या स्तवनीया स्वभाविनी ।
रंकिणी टंकिणी चित्रा विचित्रा चित्र-रूपिणी ।।३३।।

पद्मा पद्मालया पद्म-मुखी पद्म-विभूषणा ।
शाकिनी हाकिनी क्षान्ता राकिणी रुधिर-प्रिया ।।३४।।

भ्रान्तिर्भवानी रुद्राणी मृडानी शत्रु-मर्दिनी ।
उपेन्द्राणी महेशानी ज्योत्स्ना चन्द्र-स्वरूपिणी ।।३५।।

सूय्र्यात्मिका रुद्र-पत्नी रौद्री स्त्री प्रकृति: पुमान् ।
शक्ति: सूक्तिर्मति-मती भक्तिर्मुक्ति: पति-व्रता ।।३६।।

सर्वेश्वरी सर्व-माता सर्वाणी हर-वल्लभा ।
सर्वज्ञा सिद्धिदा सिद्धा भाव्या भव्या भयापहा ।।३७।।

कर्त्री हर्त्री पालयित्री शर्वरी तामसी दया ।
तमिस्रा यामिनीस्था न स्थिरा धीरा तपस्विनी ।।३८।।

चार्वङ्गी चंचला लोल-जिह्वा चारु-चरित्रिणी ।
त्रपा त्रपा-वती लज्जा निर्लज्जा ह्नीं रजोवती ।।३९।।

सत्व-वती धर्म-निष्ठा श्रेष्ठा निष्ठुर-वादिनी ।
गरिष्ठा दुष्ट-संहत्री विशिष्टा श्रेयसी घृणा ।।४०।।

भीमा भयानका भीमा-नादिनी भी: प्रभावती ।
वागीश्वरी श्रीर्यमुना यज्ञ-कत्र्री यजु:-प्रिया ।।४१।।

ऋक्-सामाथर्व-निलया रागिणी शोभन-स्वरा ।
कल-कण्ठी कम्बु-कण्ठी वेणु-वीणा-परायणा ।।४२।।

वशिनी वैष्णवी स्वच्छा धात्री त्रि-जगदीश्वरी ।
मधुमती कुण्डलिनी शक्ति: ऋद्धि: सिद्धि: शुचि-स्मिता ।।४३।।

रम्भोवैशी रती रामा रोहिणी रेवती मघा ।
शङ्खिनी चक्रिणी कृष्णा गदिनी पद्मनी तथा ।।४४।।

शूलिनी परिघास्त्रा च पाशिनी शाङ्र्ग-पाणिनी ।
पिनाक-धारिणी धूम्रा सुरभि वन-मालिनी ।।४५।।

रथिनी समर-प्रीता च वेगिनी रण-पण्डिता ।
जटिनी वङ्किाणी नीला लावण्याम्बुधि-चन्द्रिका ।।४६।।

बलि-प्रिया महा-पूज्या पूर्णा दैत्येन्द्र-मन्थिनी ।
महिषासुर-संहन्त्री वासिनी रक्त-दन्तिका ।।४७।।

रक्तपा रुधिराक्ताङ्गी रक्त-खर्पर-हस्तिनी ।
रक्त-प्रिया माँस - रुधिरासवासक्त-मानसा ।।४८।।

गलच्छोेणित-मुण्डालि-कण्ठ-माला-विभूषणा ।
शवासना चितान्त:स्था माहेशी वृष-वाहिनी ।।४९।।

व्याघ्र-त्वगम्बरा चीर-चेलिनी सिंह-वाहिनी ।
वाम-देवी महा-देवी गौरी सर्वज्ञ-भाविनी ।।५०।।

बालिका तरुणी वृद्धा वृद्ध-माता जरातुरा ।
सुभ्रुर्विलासिनी ब्रह्म-वादिनि ब्रह्माणी मही ।।५१।।

स्वप्नावती चित्र-लेखा लोपा-मुद्रा सुरेश्वरी ।
अमोघाऽरुन्धती तीक्ष्णा भोगवत्यनुवादिनी ।।५२।।

मन्दाकिनी मन्द-हासा ज्वालामुख्यसुरान्तका ।
मानदा मानिनी मान्या माननीया मदोद्धता ।।५३।।

मदिरा मदिरोन्मादा मेध्या नव्या प्रसादिनी ।
सुमध्यानन्त-गुणिनी सर्व-लोकोत्तमोत्तमा ।।५४।।

जयदा जित्वरा जेत्री जयश्रीर्जय-शालिनी ।
सुखदा शुभदा सत्या सभा-संक्षोभ-कारिणी ।।५५।।

शिव-दूती भूति-मती विभूतिर्भीषणानना ।
कौमारी कुलजा कुन्ती कुल-स्त्री कुल-पालिका ।।५६।।

कीर्तिर्यशस्विनी भूषां भूष्या भूत-पति-प्रिया ।
सगुणा-निर्गुणा धृष्ठा कला-काष्ठा प्रतिष्ठिता ।।५७।।

धनिष्ठा धनदा धन्या वसुधा स्व-प्रकाशिनी ।
उर्वी गुर्वी गुरु-श्रेष्ठा सगुणा त्रिगुणात्मिका ।।५८।।

महा-कुलीना निष्कामा सकामा काम-जीवना ।
काम-देव-कला रामाभिरामा शिव-नर्तकी ।।५९।।

चिन्तामणि: कल्पलता जाग्रती दीन-वत्सला ।
कार्तिकी कृत्तिका कृत्या अयोेध्या विषमा समा ।।६०।।

सुमंत्रा मंत्रिणी घूर्णा ह्लादिनी क्लेश-नाशिनी ।
त्रैलोक्य-जननी हृष्टा निर्मांसा मनोरूपिणी ।।६१।।

तडाग-निम्न-जठरा शुष्क-मांसास्थि-मालिनी ।
अवन्ती मथुरा माया त्रैलोक्य-पावनीश्वरी ।।६२।।

व्यक्ताव्यक्तानेक-मूर्ति: शर्वरी भीम-नादिनी ।
क्षेमज्र्री शंकरी च सर्व- सम्मोह-कारिणी ।।६३।।

ऊध्र्व-तेजस्विनी क्लिन्न महा-तेजस्विनी तथा ।
अद्वैत भोगिनी पूज्या युवती सर्व-मङ्गला ।।६४।।

सर्व-प्रियंकरी भोग्या धरणी पिशिताशना ।
भयंकरी पाप-हरा निष्कलंका वशंकरी ।।६५।।

आशा तृष्णा चन्द्र-कला निद्रिका वायु-वेगिनी ।
सहस्र-सूर्य संकाशा चन्द्र-कोटि-सम-प्रभा ।।६६।।

वह्नि-मण्डल-मध्यस्था सर्व-तत्त्व-प्रतिष्ठिता ।
सर्वाचार-वती सर्व-देव - कन्याधिदेवता ।।६७।।

दक्ष-कन्या दक्ष-यज्ञ नाशिनी दुर्ग तारिणी ।
इज्या पूज्या विभीर्भूति: सत्कीर्तिब्र्रह्म-रूपिणी ।।६८।।

रम्भीश्चतुरा राका जयन्ती करुणा कुहु: ।
मनस्विनी देव-माता यशस्या ब्रह्म-चारिणी ।।६९।।

ऋद्धिदा वृद्धिदा वृद्धि: सर्वाद्या सर्व-दायिनी ।
आधार-रूपिणी ध्येया मूलाधार-निवासिनी ।।७०।।

आज्ञा प्रज्ञा-पूर्ण-मनाश्चन्द्र-मुख्यानुवूलिनी ।
वावदूका निम्न-नाभि: सत्या सन्ध्या दृढ़-व्रता ।।७१।।

आन्वीक्षिकी दंड-नीतिस्त्रयी त्रि-दिव-सुन्दरी ।
ज्वलिनी ज्वालिनी शैल-तनया विन्ध्य-वासिनी ।।७२।।

अमेया खेचरी धैर्या तुरीया विमलातुरा ।
प्रगल्भा वारुणीच्छाया शशिनी विस्पुलिङ्गिनी ।।७३।।

भुक्ति सिद्धि सदा प्राप्ति: प्राकम्या महिमाणिमा ।
इच्छा-सिद्धिर्विसिद्धा च वशित्वीध्र्व-निवासिनी ।।७४।।

लघिमा चैव गायित्री सावित्री भुवनेश्वरी ।
मनोहरा चिता दिव्या देव्युदारा मनोरमा ।।७५।।

पिंगला कपिला जिह्वा-रसज्ञा रसिका रसा ।
सुषुम्नेडा भोगवती गान्धारी नरकान्तका ।।७६।।

पाञ्चाली रुक्मिणी राधाराध्या भीमाधिराधिका ।
अमृता तुलसी वृन्दा वैटभी कपटेश्वरी ।।७७।।

उग्र-चण्डेश्वरी वीर-जननी वीर-सुन्दरी ।
उग्र-तारा यशोदाख्या देवकी देव-मानिता ।।७८।।

निरन्जना चित्र-देवी क्रोधिनी कुल-दीपिका ।
कुल-वागीश्वरी वाणी मातृका द्राविणी द्रवा ।।७९।।

योगेश्वरी-महा-मारी भ्रामरी विन्दु-रूपिणी ।
दूती प्राणेश्वरी गुप्ता बहुला चामरी-प्रभा ।।८०।।

कुब्जिका ज्ञानिनी ज्येष्ठा भुशुंडी प्रकटा तिथि: ।
द्रविणी गोपिनी माया काम-बीजेश्वरी क्रिया ।।८१।।

शांभवी केकरा मेना मूषलास्त्रा तिलोत्तमा ।
अमेय-विक्रमा व्रूâरा सम्पत्-शाला त्रिलोचना ।।८२।।

सुस्थी हव्य-वहा प्रीतिरुष्मा धूम्रार्चिरङ्गदा ।
तपिनी तापिनी विश्वा भोगदा धारिणी धरा ।।८३।।

त्रिखंडा बोधिनी वश्या सकला शब्द-रूपिणी ।
बीज-रूपा महा-मुद्रा योगिनी योनि-रूपिणी ।।८४।।

अनङ्ग - मदनानङ्ग - लेखनङ्ग - कुशेश्वरी ।
अनङ्ग-मालिनि-कामेशी देवि सर्वार्थ-साधिका ।।८५।।

सर्व-मन्त्र-मयी मोहिन्यरुणानङ्ग-मोहिनी ।
अनङ्ग-कुसुमानङ्ग-मेखलानङ्ग - रूपिणी ।।८६।।

वङ्कोश्वरी च जयिनी सर्व-द्वन्द्व-क्षयज्र्री ।
षडङ्ग-युवती योग-युक्ता ज्वालांशु-मालिनी ।।८७।।

दुराशया दुराधारा दुर्जया दुर्ग-रूपिणी ।
दुरन्ता दुष्कृति-हरा दुध्र्येया दुरतिक्रमा ।।८८।।

हंसेश्वरी त्रिकोणस्था शाकम्भर्यनुकम्पिनी ।
त्रिकोण-निलया नित्या परमामृत-रञ्जिता ।।८९।।

महा-विद्येश्वरी श्वेता भेरुण्डा कुल-सुन्दरी ।
त्वरिता भक्त-संसक्ता भक्ति-वश्या सनातनी ।।९०।।

भक्तानन्द-मयी भक्ति-भाविका भक्ति-शज्र्री ।
सर्व-सौन्दर्य-निलया सर्व-सौभाग्य-शालिनी ।।९१।।

सर्व-सौभाग्य-भवना सर्व सौख्य-निरूपिणी ।
कुमारी-पूजन-रता कुमारी-व्रत-चारिणी ।।९२।।

कुमारी-भक्ति-सुखिनी कुमारी-रूप-धारिणी ।
कुमारी-पूजक-प्रीता कुमारी प्रीतिदा प्रिया ।।९३।।

कुमारी-सेवकासंगा कुमारी-सेवकालया ।
आनन्द-भैरवी बाला भैरवी वटुक-भैरवी ।।९४।।

श्मशान-भैरवी काल-भैरवी पुर-भैरवी ।
महा-भैरव-पत्नी च परमानन्द-भैरवी ।।९५।।

सुधानन्द-भैरवी च उन्मादानन्द-भैरवी ।
मुक्तानन्द-भैरवी च तथा तरुण-भैरवी ।।९६।।

ज्ञानानन्द-भैरवी च अमृतानन्द-भैरवी ।
महा-भयज्र्री तीव्रा तीव्र-वेगा तपस्विनी ।।९७।।

त्रिपुरा परमेशानी सुन्दरी पुर-सुन्दरी ।
त्रिपुरेशी पञ्च-दशी पञ्चमी पुर-वासिनी ।।९८।।

महा-सप्त-दशी चैव षोडशी त्रिपुरेश्वरी ।
महांकुश-स्वरूपा च महा-चव्रेश्वरी तथा ।।९९।।

नव-चव्रेâश्वरी चक्र-ईश्वरी त्रिपुर-मालिनी ।
राज-राजेश्वरी धीरा महा-त्रिपुर-सुन्दरी ।।१००।।

सिन्दूर-पूर-रुचिरा श्रीमत्त्रिपुर-सुन्दरी ।
सर्वांग-सुन्दरी रक्ता रक्त-वस्त्रोत्तरीयिणी ।।१०१।।

जवा-यावक-सिन्दूर -रक्त-चन्दन-धारिणी ।
त्रिकूटस्था पञ्च-कूटा सर्व-वूट-शरीरिणी ।।१०२।।

चामरी बाल-कुटिल-निर्मल-श्याम-केशिनी ।
वङ्का-मौक्तिक-रत्नाढ्या-किरीट-मुकुटोज्ज्वला ।।१०३।।

रत्न-कुण्डल-संसक्त-स्फुरद्-गण्ड-मनोरमा ।
कुञ्जरेश्वर-कुम्भोत्थ-मुक्ता-रञ्जित-नासिका ।।१०४।।

मुक्ता-विद्रुम-माणिक्य-हाराढ्य-स्तन-मण्डला ।
सूर्य-कान्तेन्दु-कान्ताढ्य-कान्ता-कण्ठ-भूषणा ।।१०५।।

वीजपूर-स्फुरद्-वीज -दन्त - पंक्तिरनुत्तमा ।
काम-कोदण्डकाभुग्न-भ्रू-कटाक्ष-प्रवर्षिणी ।।१०६।।

मातंग-कुम्भ-वक्षोजा लसत्कोक-नदेक्षणा ।
मनोज्ञ-शुष्कुली-कर्णा हंसी-गति-विडम्बिनी ।।१०७।।

पद्म-रागांगदा-ज्योतिर्दोश्चतुष्क-प्रकाशिनी ।
नाना-मणि-परिस्फूर्जच्दृद्ध-कांचन-वंकणा ।।१०८।।

नागेन्द्र-दन्त-निर्माण-वलयांचित-पाणिनी ।
अंगुरीयक-चित्रांगी विचित्र-क्षुद्र-घण्टिका ।।१०९।।

पट्टाम्बर-परीधाना कल-मञ्जीर-शिंजिनी ।
कर्पूरागरु-कस्तूरी-कुंकुम-द्रव-लेपिता ।।११०।।

विचित्र-रत्न-पृथिवी-कल्प-शाखि-तल-स्थिता ।
रत्न-द्वीप-स्पुâरद्-रक्त-सिंहासन-विलासिनी ।।१११।।

षट्-चक्र-भेदन-करी परमानन्द-रूपिणी ।
सहस्र-दल - पद्यान्तश्चन्द्र - मण्डल-वर्तिनी ।।११२।।

ब्रह्म-रूप-शिव-क्रोड-नाना-सुख-विलासिनी ।
हर-विष्णु-विरंचीन्द्र-ग्रह - नायक-सेविता ।।११३।।

शिवा शैवा च रुद्राणी तथैव शिव-वादिनी ।
मातंगिनी श्रीमती च तथैवानन्द-मेखला ।।११४।।

डाकिनी योगिनी चैव तथोपयोगिनी मता ।
माहेश्वरी वैष्णवी च भ्रामरी शिव-रूपिणी ।।११५।।

अलम्बुषा वेग-वती क्रोध-रूपा सु-मेखला ।
गान्धारी हस्ति-जिह्वा च इडा चैव शुभज्र्री ।।११६।।

पिंगला ब्रह्म-सूत्री च सुषुम्णा चैव गन्धिनी ।
आत्म-योनिब्र्रह्म-योनिर्जगद-योनिरयोनिजा ।।११७।।

भग-रूपा भग-स्थात्री भगनी भग-रूपिणी ।
भगात्मिका भगाधार-रूपिणी भग-मालिनी ।।११८।।

लिंगाख्या चैव लिंगेशी त्रिपुरा-भैरवी तथा ।
लिंग-गीति: सुगीतिश्च लिंगस्था लिंग-रूप-धृव् ।।११९।।

लिंग-माना लिंग-भवा लिंग-लिंगा च पार्वती ।
भगवती कौशिकी च प्रेमा चैव प्रियंवदा ।।१२०।।

गृध्र-रूपा शिवा-रूपा चक्रिणी चक्र-रूप-धृव् ।
लिंगाभिधायिनी लिंग-प्रिया लिंग-निवासिनी ।।१२१।।

लिंगस्था लिंगनी लिंग-रूपिणी लिंग-सुन्दरी ।
लिंग-गीतिमहा-प्रीता भग-गीतिर्महा-सुखा ।।१२२।।

लिंग-नाम-सदानंदा भग-नाम सदा-रति: ।
लिंग-माला-वंâठ-भूषा भग-माला-विभूषणा ।।१२३।।

भग-लिंगामृत-प्रीता भग-लिंगामृतात्मिका ।
भग-लिंगार्चन-प्रीता भग-लिंग-स्वरूपिणी ।।१२४।।

भग-लिंग-स्वरूपा च भग-लिंग-सुखावहा ।
स्वयम्भू-कुसुम-प्रीता स्वयम्भू-कुसुमार्चिता ।।१२५।।

स्वयम्भू-पुष्प-प्राणा स्वयम्भू-कुसुमोत्थिता ।
स्वयम्भू-कुसुम-स्नाता स्वयम्भू-पुष्प-तर्पिता ।।१२६।।

स्वयम्भू-पुष्प-घटिता स्वयम्भू-पुष्प-धारिणी ।
स्वयम्भू-पुष्प-तिलका स्वयम्भू-पुष्प-चर्चिता ।।१२७।।

स्वयम्भू-पुष्प-निरता स्वयम्भू-कुसुम-ग्रहा ।
स्वयम्भू-पुष्प-यज्ञांगा स्वयम्भूकुसुमात्मिका ।।१२८।।

स्वयम्भू-पुष्प-निचिता स्वयम्भू-कुसुम-प्रिया ।
स्वयम्भू-कुसुमादान-लालसोन्मत्त - मानसा ।।१२९।।

स्वयम्भू-कुसुमानन्द-लहरी-स्निग्ध देहिनी ।
स्वयम्भू-कुसुमाधारा स्वयम्भू-वुुसुमा-कला ।।१३०।।

स्वयम्भू-पुष्प-निलया स्वयम्भू-पुष्प-वासिनी ।
स्वयम्भू-कुसुम-स्निग्धा स्वयम्भू-कुसुमात्मिका ।।१३१।।

स्वयम्भू-पुष्प-कारिणी स्वयम्भू-पुष्प-पाणिका ।
स्वयम्भू-कुसुम-ध्याना स्वयम्भू-कुसुम-प्रभा ।।१३२।।

स्वयम्भू-कुसुम-ज्ञाना स्वयम्भू-पुष्प-भोगिनी ।
स्वयम्भू-कुसुमोल्लास स्वयम्भू-पुष्प-वर्षिणी ।।१३३।।

स्वयम्भू-कुसुमोत्साहा स्वयम्भू-पुष्प-रूपिणी ।
स्वयम्भू-कुसुमोन्मादा स्वयम्भू पुष्प-सुन्दरी ।।१३४।।

स्वयम्भू-कुसुमाराध्या स्वयम्भू-कुसुमोद्भवा ।
स्वयम्भू-कुसुम-व्यग्रा स्वयम्भू-पुष्प-पूर्णिता ।।१३५।।

स्वयम्भू-पूजक-प्रज्ञा स्वयम्भू-होतृ-मातृका ।
स्वयम्भू-दातृ-रक्षित्री स्वयम्भू-रक्त-तारिका ।।१३६।।

स्वयम्भू-पूजक-ग्रस्ता स्वयम्भू-पूजक-प्रिया ।
स्वयम्भू-वन्दकाधारा स्वयम्भू-निन्दकान्तका ।।१३७।।

स्वयम्भू-प्रद-सर्वस्वा स्वयम्भू-प्रद-पुत्रिणी ।
स्वम्भू-प्रद-सस्मेरा स्वयम्भू-प्रद-शरीरिणी ।।१३८।।

सर्व-कालोद्भव-प्रीता सर्व-कालोद्भवात्मिका ।
सर्व-कालोद्भवोद्भावा सर्व-कालोद्भवोद्भवा ।।१३९।।

कुण्ड-पुष्प-सदा-प्रीतिर्गोल-पुष्प-सदा-रति: ।
कुण्ड-गोलोद्भव-प्राणा कुण्ड-गोलोद्भवात्मिका ।।१४०।।

स्वयम्भुवा शिवा धात्री पावनी लोक-पावनी ।
कीर्तिर्यशस्विनी मेधा विमेधा शुक्र-सुन्दरी ।।१४१।।

अश्विनी कृत्तिका पुष्या तैजस्का चन्द्र-मण्डला ।
सूक्ष्माऽसूक्ष्मा वलाका च वरदा भय-नाशिनी ।।१४२।।

वरदाऽभयदा चैव मुक्ति-बन्ध-विनाशिनी ।
कामुका कामदा कान्ता कामाख्या कुल-सुन्दरी ।।१४३।।

दुःखदा सुखदा मोक्षा मोक्षदार्थ-प्रकाशिनी ।
दुष्टादुष्ट-मतिश्चैव सर्व-कार्य-विनाशिनी ।।१४४।।

शुक्राधारा शुक्र-रूपा-शुक्र-सिन्धु-निवासिनी ।
शुक्रालया शुक्र-भोग्या शुक्र-पूजा-सदा-रति:।।१४५।।

शुक्र-पूज्या-शुक्र-होम-सन्तुष्टा शुक्र-वत्सला ।
शुक्र-मूत्र्ति: शुक्र-देहा शुक्र-पूजक-पुत्रिणी ।।१४६।।

शुक्रस्था शुक्रिणी शुक्र-संस्पृहा शुक्र-सुन्दरी ।
शुक्र-स्नाता शुक्र-करी शुक्र-सेव्याति-शुक्रिणी ।।१४७।।

महा-शुक्रा शुक्र-भवा शुक्र-वृष्टि-विधायिनी ।
शुक्राभिधेया शुक्रार्हा शुक्र-वन्दक-वन्दिता ।।१४८।।

शुक्रानन्द-करी शुक्र-सदानन्दाभिधायिका ।
शुक्रोत्सवा सदा-शुक्र-पूर्णा शुक्र-मनोरमा ।।१४९।।

शुक्र-पूजक-सर्वस्वा शुक्र-निन्दक-नाशिनी ।
शुक्रात्मिका शुक्र-सम्पत् शुक्राकर्षण-कारिणी ।।१५०।।

शारदा साधक-प्राणा साधकासक्त-रक्तपा ।
साधकानन्द-सन्तोषा साधकानन्द-कारिणी ।।१५१।।

आत्म-विद्या ब्रह्म-विद्या पर ब्रह्म स्वरूपिणी ।
सर्व-वर्ण-मयी देवी जप-माला-विधायिनी ।।१५२||

पाठ समाप्ति के बाद महाकाली और महाकाल को प्रणाम करे क्युके जहा महाकाल है वही महाकाली जी है और कपुर से आरती करें। आप सभी के कल्याण हेतु यह पाठ कलयुग मे स्वए कल्पवृक्ष के समान है,जो समस्त कार्य मे सफलता प्रदान करता है।

आदेश....

27 Feb 2016

सिद्ध मंत्र प्रयोग.

एक लोटे मे समंदर को नही छुपा सकते है,इसी तरहा से तंत्र के ग्यान को छोटे से बुद्धि मे छुपाया नही जा सकता। परंतु हमारे देश मे आज यही हो रहा है,जिन्हे गोपनीय ग्यान प्राप्त हो जाता है,वह उसको छुपाने मे अपनी काबिलयत समजता है।येसे छुपाने वाले मुर्खो को कदापि प्रणाम ना करे अन्यथा उसके आशिर्वाद से उसिके व्यर्थ गुण तुम्हारे अंदर समाहित हो जायेंगे ।

आज बात करेंगे महाशिवरात्रि पर्व पर किये जाने वाले कुछ साधनाओ की,क्युके इस्से बडा महान पर्व और कोइ नही है।




1-जिन्हे देवांगना सिद्धि (अप्सरा,यक्षिणी,योगिनी... ) मे समस्या हो वह साधक महाशिवरात्रि के रात्रिकालीन समय मे किसी बंद कमरे मे बैठकर "ॐ ह्रीं नमः" इस मंत्र का 75 मिनट तक शिवपुजन करने के बाद जाप करे।


2-जिन्हे रोजगार,व्यवसाय,कर्ज,प्रमोशन मे समस्या हो वह व्यक्ति "ॐ नमः शिवाय श्रीं प्रसादयती स्वाहा" मंत्र का 90 मिनट तक जाप करे।


3-जिनका विवाह उचित आयु मे नही हो रहा हो उन्हे "ॐ ह्रीं पार्वतीपतये ह्रीं नमः" का 60 मिनट तक जाप करना चाहिए।


4-जिन्हे प्रेम मे सफलता प्राप्त करना हो वह व्यक्ति "क्लीं आनंदप्रदाय क्लीं फट" मंत्र का 90 मिनिट तक जाप करे।


5-जो लोग स्वास्थ्य के कारण परेशान हो उन्हे "ॐ रं' रुद्राय रोगनाशाय हूं फट" मंत्र का 7 दिनो तक 45 मिनट जाप करना चाहिए।


6-जिन्हे शत्रु बाधा से परेशानी हो वह साधक "ॐ धूं शत्रुमर्दनं धूं फट" मंत्र का 90 मिनट तक जाप करे।


7-मनोकामना पुर्ण करने हेतु अपनी इच्छा एक सफेद वस्त्र पर लिखे,लाल स्याही के पेन से भी लिख सकते हो।उस वस्त्र पर सव्वा मुठ चावल शिवलिंग बनाये और उनका सामान्य पुजन करके "ॐ क्रों नमः मनोवांछित सिद्धये फट" मंत्र का 95 मिनट तक जाप करे।दुसरे दिन वस्त्र और चावल का पोटली बनाकर उसको शुद्ध जल मे प्रवाहित कर दे ।


8-जो लोग अभिचार कर्म से परेशान हो उन्हे काले मिर्च,तिल,लवंग से "ह्रीं तंत्र बाधा नाशय फट" मंत्र से 324 आहुति हवन मे देने से लाभ होगा।



आप चाहे तो आठो प्रयोग महाशिवरात्रि को सम्पन्न कर सकते है,साधना से पुर्व स्नान करके शिव पुजन करे। शिव पुजन के बाद जो चाहो वह प्रयोग सम्पन्न करो । आठो प्रयोग रात्रि मे ही करना है। प्रयोग के समय मुख उत्तर/पुर्व के तरफ हो,प्रयोग समाप्ति के बाद शिव जी का आरती और प्रसाद वितरण अवश्य करें।



आप साभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं......




हर हर महादेव......
आदेश.....

24 Feb 2016

आप और आपका ज्योतिष.

थोडा देखिये अपने कुण्डली मे,शायद आप चाण्डाल योग से भी परेशान हो सकते है।

योगचांडाल शब्द का अर्थ होता है क्रूर कर्म करनेवाला, नीच कर्म करनेवालाराहू और केतु दोनों छाया ग्रह है। पुराणों में यह राक्षस है,राहू और केतु के लिए बड़े सर्प या अजगर की कल्पना करने में आती है। राहू सर्प का मस्तक है तो केतु सर्प की पूंछ, ज्योतिषशास्त्र में राहू -केतु दोनों पाप ग्रह है । अत: यह दोनों ग्रह जिस भाव में या जिस ग्रह के साथ हो उस भाव या उस ग्रह संबंधी अनिष्ठ फल दर्शाता है । यह दोनों ग्रह चांडाल जाती के है, इसलिए इनकी युति को चांडाल ( राहू-केतु ) योग कहा जाता है।कैसे होता है चाण्डाल योगजब कुण्डली में राहु या केतु जिस गृह के साथ बैठ जाते है तो उसकी युति को ही चाण्डाल योग कहा जाता है ये मुख्य रूप से सात प्रकार का होता है।



1- रवि-चांडाल योग

सूर्य के साथ राहू या केतु हो तो इसे रवि चांडाल योग कहते है. इस युति को सूर्य ग्रहण योग भी कहा जाता है । इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक गुस्सेवाला और जिद्दी होता है,उसे शारीरिक कष्ठ भी भुगतना पड़ता है, पिता के साथ मतभेद रहता है और संबंध अच्छे नहीं होते,पिता की तबियत भी अच्छी नहीं रहती ।


2- चन्द्र-चांडाल योग

चन्द्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चांडाल योग कहते है. इस युति को चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है, इस योग में जन्म लेनेवाला शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नहीं भोग पाता। माता संबंधी भी अशुभ फल मिलता है. नास्तिक होने की भी संभावना होती है।


3- भौम-चांडाल योग

मंगल के साथ राहू या केतु हो तो इसे भौम चांडाल योग कहते है. इस युति को अंगारक योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक क्रोधी, जल्दबाज, निर्दय और गुनाखोर होता है,स्वार्थी स्वभाव, धीरज न रखनेवाला होता है । आत्महत्या या अकस्मात् की संभावना भी होती है ।


4- बुध-चांडाल योग

बुध के साथ राहू या केतु हो तो इसे बुध चांडाल योग कहते है. बुद्धि और चातुर्य के ग्रह के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानी पहुचती है. और जातक अधर्मी. धोखेबाज और चोरवृति वाला होता है ।


5- गुरु-चांडाल योग

गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु चांडाल योग कहते है । ऐसा जातक नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा न रखनेवाला और नहीं करने जेसे कार्य करनेवाला होता है ।


6- भृगु-चांडाल योग

शुक्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे भृगु चांडाल योग कहते है, इस योग में जन्म लेनेवाले जातक का जातीय चारित्र शंकास्पद होता है । वैवाहिक जीवन में भी काफी परेशानिया रहती है, विधुर या विधवा होने की सम्भावना भी होती है ।


7- शनि-चांडाल योग

शनि के साथ राहू या केतु हो तो इसे शनि चांडाल योग कहते है । इस युति को श्रापित योग भी कहा जाता है। यह चांडाल योग भौम चांडाल योग जेसा ही अशुभ फल देता है।जातक झगढ़ाखोर, स्वार्थी और मुर्ख होता है, ऐसे जातक की वाणी और व्यव्हार में विवेक नहीं होता, यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ भी इशारा करता है।

अब आप भी देखे कहीं आपकी कुण्डली में भी चाण्डाल योग तो नहीं है यदि हो तो इसकी शांति अवश्य करवाएं क्योंकि कहा जाता है की शान्ति का उपाय करके जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है।




अब बात करेंगे कोनसे महादशा मे क्या उपाय करना उचित है।
महादशा के उपाय ज्योतिष शास्त्र ग्रहों की गति एवं उसकी दशाओं के आधार पर किसी व्यक्ति के जीवन में आने वाली उतार चढ़ाव एवं सुख दुख का आंकलन करता है । ग्रहों की दशा महादशा सभी व्यक्ति के जीवन में चलती रहती है। कुछ दशा महादशा शुभ फल देती है तो कोई अशुभ,नीच स्थान में होने पर शुभ ग्रह भी विपरीत प्रभाव देते हैं और उच्चस्थान में होने पर अशुभ ग्रह भी शुभ फल देते हैं । अगर आपके जीवन में किस ग्रह विशेष की महादशा में परेशानी और कठिनाई आ रही है तो आप क्या उपचार कर सकते हैं-


1. सूर्य महादशा उपचारसूर्य की महादशा में आपको ब्राह्मणों को तांबे के बर्तन में गेहूंका दान देना चाहिए.आदित्य हृदय स्तोत्र का प्रतिदिन सुबह स्नान करके पाठ करना चाहिए.सूर्य देव की सफेद फूल एवं लाल चंदन से पूजा करनी चाहिए और आर्घ्य देना चाहिए.जब आप किसी विशेष काम से घर से बाहर निकलें तो गुड़ की एक डली मुंह में डाल पानी पिएं फिर जाएं.ताम्बे की अंगूठी में सवा पांच रत्ती का माणिक अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए.


2. चन्द्र महादशा उपचारचन्द्र की महादशा होने पर आपको चन्द्र की वस्तु जैसे चावल, मोती व चांदी का दान करना चाहिए.कन्याओं को खीर बनाकर भोजन करना चाहिए.अपने खाने में दही शामिल करना चाहिए.भगवान भोले शंकर की पूजा करनीचाहिए एवं दूध से अभिषेक करना चाहिए.सुबह दूध में भिंगोकर चावल गाय को खिलानी चाहिए.अपने गले में चांदी का चन्द्रमा बनाकर लॉकेट की तरह धारण करना चाहिए.दाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली में मोती चांदीकी अंगूठी में धारण करना चाहिए.


3. मंगल महादशा उपचारमंगल की महादशा होने पर बन्दरों को गुड़ चना देना चाहिए.सात शनिवार हनुमान जी को लाल लंगोट चढाएं.प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें.लाल वस्त्र ब्राह्मणों को दान दें.सोने अथवा ताम्बे में मूगा दाएं हाथ की अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए.


4. बुध महादशा उपचारआप अगर बुध की महादशा से पीड़ित हैं तो उपचार हेतु गाय को प्रतिदिनहरी घास अथवा पालक खिलाएं.सीप की पूजा करें.बुध की वस्तु जैसे मूंग की दाल, हरे रंग की चूड़ी बुधवार के दिन दान करें.प्रतिदिन दुर्गा मां की पूजा करनी चाहिए और दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए.मध्यमा उंगली में पन्ना सोने अथवा चांदी में धारण करना चाहिए.


5. बृहस्पति महादशा उपचारबृहस्पति की वस्तु जैसे पीला वस्त्र, सोना, गुड़ व केसर का दान करनाचाहिए.घी का दीपक जलाकर बृहस्पतिवार के दिन केले की पूजा करनी चाहिए.पीला चंदन लगाना चाहिए व बृहस्पतिवार के दिन पीला वस्त्र पहनना चाहिए.पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण भगवान की पूजा कथा करानी चाहिए.दाएं हाथ की तर्जनी उंगली में सुनैला सोने में धारण करना चाहिए.


6. शुक्र महादशा उपचारशुक्र की महादशा से अगर आप पीड़ित हैं तो शुक्र की वस्तु का दान करना चाहिए जैसे दूध, मोती, दही. गाय की सेवा करनी चाहिए और अपने खाने में से एक भाग निकालकर गाय को खिलानी चाहिए.माता सरस्वती की पूजा करनी चाहिए.चांदी की उंगूठी दाएं हाथ के अंगूठे में पहनना चाहिए.


7. शनि महादशा उपचारशनि की महादशा से बचने के लिए रोटी पर सरसों तेल लगकार गाय को अथवा कुत्ते को खिलाना चाहिए.शनिवार और मंगलवार के दिन हनुमान जी का दर्शन करना चाहिए.चांदी का चौकोर टुकड़ा हमेशा अपने पास रखें.बांसुरी में शक्कर भर कर एकांत स्थान में दबाएं.शनिवार के दिन दूधऔर काले तिल से पीपल की पूजा करनी चाहिए.शनिवार के दिन शनि मंदिर में दीप दान दें.


8. राहु महादशा उपचारराहु की महादशा में काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं.सरसों का तेल व काले तिल का दान दें.रात को सोते समय अपने सिरहाने में जौ रखें जिसे सुबह पंक्षियों को दें.बहते पानी में शीशा अथवा नारियल प्रवाहित करें. इसके अलावा बहते पानी में तांबे के 43 टुकड़े प्रवाहित करें.माता सरस्वती की पूजा करें.गोमेद चांदी की अंगूठीमें दाएं हाथ की मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए.


9. केतु महादशा उपचारअगर आप केतु की महादशा से पीड़ित हैं तो इसके उपचार के लिए लकड़ी केक चार टुकड़े चार दिन तक बहते पानी में प्रवाहित करना चाहिए.कन्याओं को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करना चाहिए.ग़रीब अथवाब्रह्मणों को कम्बल दान करना चाहिए.प्रतिदिन गणेश जी पूजा करनी चाहिए और गणपति जी को लड्डू का भोग लगाना चाहिए.बहते जल में कोयले के 21 टुकड़े प्रवाहित करना चाहिए.दाएं हाथ की मध्यमा उंगली में लहसुनियां चांदी में धारण करना चाहिए.




जिवन मे आनेवाले अन्य समस्या हेतु भी आप मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते है। 1250/-रुपये मे आप अपना हस्तलिखित कुण्डली भी प्राप्त कर सकते है,जिसमें सभी प्रकार के उपाय दिये जायेंगे । यह जन्म कुण्डली विश्लेषण आपको ई-मेल से प्राप्त होगा। इसमे सबसे ज्यादा आपके समस्याओं पर ही ध्यानपुर्वक उपाय दिये जायेंगे ।





आदेश......

20 Feb 2016

BHOOT MANTRA SIDDHI SADHANA.

भूत -प्रेत और आत्माओं के विभिन्न 42 प्रकार-



1.भूत :- सामान्य भूत जिसके बारे में आप अक्सर सुनते है ।

2.प्रेत :- परिवार के सताए हुए बिना क्रियाकर्म के मरे हुए आदमी,जो पिडीत रहेते है।

3.हाडल :- बिना नुक्सान पहुचाये प्रेतबाधित करने वाली आत्माए ।

4.चेतकिन :- चुडेले जो लोगो को प्रेतबाधित कर दुर्घटनाए करवाती है ।

5.मुमिई :- मुंबई के कुछ घरो में प्रचलित प्रेत,जो कभी कभी दिखाई देते है।

6.विरिकस:- घने लाल कोहरे में छिपी और अजीबो-गरीब आवाजे निकलने वाला होता है।

7.मोहिनी या परेतिन : -प्यार में धोका खाने वाली आत्माए जिनसे मनुष्यों को मदत मिल सकती है।

8.शाकिनी:- शादी के कुछ दिनों बाद दुर्घटना से मरने वाली औरत की आत्मा जो कम खतरनाक होती है।

9.डाकिनी :- मोहिनी और शाकिनी का मिला जुला रूप किन्ही कारणों से हुई मौत से बनी आत्मा होती है।

10.कुट्टी चेतन :- बच्चे की आत्मा जिसपर तांत्रिको का नियंत्रण होता है ।

11.ब्रह्मोदोइत्यास :- बंगाल में प्रचलित,श्रापित ब्राह्मणों की आत्माए,जिन्होने धर्म का पालन ना किया हो ।

12.सकोंधोकतास :- बंगाल में प्रचलित रेल दुर्घटना में मरे लोगो की सर कटी आत्माए होती है।

13.निशि :- बंगाल में प्रचलित अँधेरे में रास्ता दिखाने वाली आत्माए ।

14.कोल्ली देवा :- कर्नाटक में प्रचलित जंगलो में हाथो में टोर्च लिए घुमती आत्माए ।

15.कल्लुर्टी :-कर्नाटक में प्रचलित आधुनिक रीती रिवाजो से मरे लोगो की आत्माए ।

16.किचचिन:- बिहार में प्रचलित हवस की भूखी आत्माए ।

17.पनडुब्बा:- बिहार में प्रचलित नदी में डूबकर मरे लोगो की आत्माए ।

18.चुड़ैल:- उत्तरी भारत में प्रचलित राहगीरों को मारकर बरगद के पेड़ पर लटकाने वाली आत्माए ।

19.बुरा डंगोरिया :- आसाम में प्रचलित सफ़ेद कपडे और पगड़ी पहने घोड़े पसर सवार होनेवाली आत्माए ।

20.बाक :- आसाम में प्रचलित झीलों के पास घुमती हुई आत्माए ।

21.खबीस:- पाकिस्तान ,गुल्फ देशो और यूरोप में प्रचलित जिन्न परिवार से ताल्लुक रखने वाली आत्माए ।

22.घोडा पाक :- आसाम में प्रचलित घोड़े के खुर जैसे पैर बाकी मनुष्य जैसे दिखाई देने वाली आत्माए ।

23.बीरा :- आसाम में प्रचलित परिवार को खो देने वाली आत्माए ।

24.जोखिनी :-आसाम में प्रचलित पुरुषो को मारने वाली आत्माए ।

25.पुवाली भूत :-आसाम में प्रचलित छोटे घर के सामनो को चुराने वाली आत्माए ।

26.रक्सा :- छतीसगढ़ मे प्रचलित कुँवारे मरने वालो की खतरनाक आत्माए ।

27. मसान:- छतीसगढ़ की प्रचलित पाँच छै सौ साल पुरानी प्रेत आत्मा नरबलि लेते हैँ , जिस घर मेँ निवास करेँ पुरे परिवार को धीरे धीरे मार डालते हैँ ।

28.चटिया मटिया :- छतीसगढ़ मेँ प्रचलित बौने भुत जो बचपन मेँ खत्म हो जाते हैँ वो बनते हैँ बच्चो को नुकसान नहीँ पहुँचाते । आँखे बल्ब की तरह हाथ पैर उल्टे काले रंग के मक्खी के स्पीड मेँ भागने वाले चोरी करने वाली आत्माए ।

29. बैताल:- पीपल पेड़ मेँ निवास करते हैँ एकदम सफेद रंग वाले ,सबसे खतरनाक आत्माए ।

30. चकवा या भुलनभेर :- रास्ता भटकाने वाली आत्मा महाराष्ट्र ,एमपी आदि मेँ पाया जाता हैँ ।

31. उदु:- तलाब या नहर मेँ पाये जाने वाली आत्मा जो आदमियोँ को पुरा खा जाऐँ , छतीसगढ़ मेँ प्रचलित आत्माए ।

32. गल्लारा :- अकाल मरे लोगो की आत्मा धमाचौकडी मचाने वाली आत्मा छतीसगढ़ मेँ प्रचलित है ।

34. भंवेरी :- नदी मेँ पायी जाने वाली आत्मा,जो पानी मेँ डुब कर मरते हैँ पानी मेँ भंवर उठाकर नाव या आदमी को डूबा देने वाली आत्मा छतीसगढ़ मेँ प्रचलित है।

35. गरूवा परेत:- बिमारी या ट्रेन से कटकर मरने वाले गांयो और बैलो की आत्मा जो कुछ समय के लिए सिर कटे रूप मेँ घुमते दिखतेँ हैँ नुकसान नही पहुचातेँ छतीसगढ मेँ प्रचलित है।

36. हंडा :- धरती मेँ गडे खजानोँ मेँ जब जीव पड़ जाता हैँ याने प्रेत का कब्जा तो उसे हंडा परेत कहते हैँ , ये जिनके घर मेँ रहते हैँ वे हमेशा अमीर रहते हैँ , हंडा का अर्थ हैँ कुंभ , जिसके अंदर हीरे सोने आदि भरे रहते हैँ,जो लालच वश हंडा को चुराने का प्रयास करेँ उसे ये खा जाते हैँ , ये चलते भी हैँ,छतीसगढ़ मेँ प्रचलित है।

37. सरकट्टा:-छत्तीसगढ़ में प्रचलित एक प्रेत जिसका सिर कटा होता है,बहुत ही खतरनाक होता है।

38.ब्रह्म :-ब्राह्मणों की आत्मा जो सात्विक और धार्मिक रहे हों अथवा जो साधक और पुजारी रहे हों किन्तु दुर्घनावश अथवा स्वयं जीवन समाप्त कर चुके हों,बेहद शक्तिशाली ,तांत्रिक नियंत्रित नहीं कर सकते,केवल मना कर या प्रार्थना कर ही शांत किया जा सकता है । जिस परिवार के पीछे पड़ जाएँ खानदान साफ़ हो जाता है ,कोई रोक नहीं सकता । पूजा देने पर ही शांत हो सकते हैं ।

39.जिन्न :-अग्नि तत्वीय मुस्लिम धर्म से सम्बंधित आत्मा,बेहद शक्तिशाली,नियंत्रण मुश्किल परंतु मनाया जा सकता है ।

40.शहीद :-युद्ध अथवा दुर्घटना में मृत मुस्लिम बीर|अक्सर मजारें बनी मिलती हैं,शक्तिशाली आत्माएं जो पूजा पाकर और शक्तिशाली हो उठती हैं ।

41.बीर:- लड़ाकू अथवा उग्र ,साहसी व्यक्ति जिसकी दुर्घटना अथवा हत्या से मृत्यु हुई हो ।

42.सटवी:-इसका हवा मे स्थायित्व होता है और ये हर जगह होती है,यह स्त्री की आत्मा होती है। किसी भी शरीर मे प्रवेश करके उसको उदास कर देती है।



आजकल ऐसे सैकड़ों आश्चर्यजनक करिश्में गावों और शहरों में सुनने या देखने को मिल जाएंगे, जो भूत-प्रेतों और आत्माओं से संबंधित होते हैं। यदि किसी मंत्र साधना द्वारा आत्माओं से संपर्क स्थापित कर लिया जाये तो निश्चय ही आश्चर्यजनक तथ्य हाथ लगते हैं।

किसी भी आत्मा से संपर्क स्थापित कर उसके जीवन के उन रहस्यों को जाना जा सकता है। जो किसी कारण वश वह व्यक्ति किसी से बता नहीं पाया हो। इसी तरह अपने मृत पूर्वजों माता-पिता भाई बहन प्रेमी-प्रेमिका से संपर्क स्थापित कर उन रहस्यों का पता लगाया जा सकता है। जो कि वे अपने परिवारजनों से बता नहीं पाये हों या उनकी अचानक किसी एक्सीडेंट या दुर्घटना से मृत्यु हो गई हो। साथ ही साथ किसी भी प्रकार के सवालों का जवाब प्राप्त किया जा सकता है। जैसे घर से भागा हुआ व्यक्ति कहाँ है ? वह जीवित है भी या नही? मेरी शादी कब होगी ? अमुक लड़की मुझसे प्रेम करती है या नही ? नौकरी कब मिलेगी ? मुझे किस क्षेत्र में सफलता मिलेगी? परीक्षा में पास होऊँगा या फेल ? लाॅटरी या सट्टे में कल कौन सा नम्बर फसेगा ? ऐसे सैकड़ों प्रकार के सवालों का जवाब आत्मा से प्राप्त किया जा सकता है।




साधना विधान:-

यह अत्यंत उग्र शाबर मंत्र है,जिसका जाप करने से पुर्व  रक्षा विधान अत्यंत आवश्यक है अन्यथा हानी होना सम्भव है। साधक के पास काले वस्त्र काला आसन,सिद्ध काली हकिक माला,भूत सिद्धि यंत्र और तिव्र सुगंधित धूप/अगरबत्ती होना जरुरी है। इस साधना मे अबिर,पताशा,हिना का इत्र,मुरमुरा,पलाश के पत्ते,स्मशान का कोयल (मनोवांछित आत्मा को बुलाने हेतु और अन्य आत्मा के लिए जरुरी नही है),सव्वा मिटर सफेद वस्त्र,बास का एक फिट साईज का चार लकड़ी (इससे भुतो का बंगला बनाना पडता है),एक लोटा शुद्ध जल जो एक हाथ से निकालना पड़ता है (नदि,सरोवर का भी जल ले सकते है)।

साधना अमावस्या से पुर्व आठवें दिन शुरु किया जाता है। साधना बंद कमरे मे,स्मशान मे या सुनसान जगह पर किया जा सकता है। साधना शुरुवात होने के बाद दुसरे तिसरे दिन से आवाजे या गंदि बदबु आना शुरु होता है। जब आत्माए आती है तब वो साधक को गंदि से गंदि गालिया देता है परंतु साधक को अपने आप पर नियंत्रण रखना जरुरी है और आत्मा को साधका गालिया ना दे तो बेहतर है। आत्माएं साधना पुर्ण होने के बाद सुंदर रूप मे प्रत्यक्ष होती है परंतु उससे पहिले उनका स्वरूप देखकर साधक को उल्टिया भी हो सकता है क्युके उनका रूप बहोत ज्यादा डरावना और गंदा होता है। भूत सिद्धि यंत्र साधक के पास हो तो उसे डरने की कोइ आवश्यकता नही है,यंत्र के वजेसे आत्माए भयंकर और गंदे रूप मे साधक के सामने आकर उसको परेशान नही करती है।





शाबर भूत सिद्धि मंत्र:-


।। नदितुन ये-नदिच्या पान्यातुन ये,महलातुन ये-महलाच्या अंधारातुन ये,मसानातुन ये-मसानाच्या वाड्यातुन ये,शिवारातुन ये-शिवाराच्या हदितुन ये,वेताल राजा ले सांगुन ये,नाही येशिल तर............गुरु का मंत्र सच्चा,छु वाचापुरी ।।





ये मराठी मंत्र है जो यहा पर मैने अधुरा दिया है ताकि मुर्ख लोग इसको कॉपी-पेस्ट करके कही छाप ना दे ।येसे उग्र मंत्रो मे मार्गदर्शक का आवश्यकता होता है,मै इस साधना मे साधक का मार्गदर्शन करुँगा।इसमे साधना विधी समजाया जायेगा और साधना सामग्री का कैसे इस्तेमाल करना है वह भी बताया जायेगा।
किसी भी प्रश्न हेतु सम्पर्क करे-
amannikhil011@gmail.com पर ।





(नोट:कुछ दिनो से सुशील भाई व्यस्त होने के कारण शायद और कुछ दिनो तक फोन पर बात नही कर पायेंगे,परंतु ई-मेल से आपका और हमारा संम्पर्क बना रहेगा।

-प्रकाश)




आदेश.......

17 Feb 2016

दुर्गा सप्तशती यंत्र साधना.

दुर्गा सप्तशती के बारे मे तो बहोत से साधक जानते है,आज आपको "दुर्गा सप्तशती यंत्र" साधना मंत्र के साथ दे रहा हूं। साधना प्रचण्ड है और जिन्हे मातारानी पर पुर्ण विश्वास हो वही लोग यह साधना करे क्युके ये साधना बेकार (time pass करने वाले बेकार) लोगो के लिये नही है। बहोत से लोग आजमाने के लिये मंत्र-तंत्र मे आये,उन्होने कुछ मंत्र साधना करके भी देखा ।इसमे किसीको अच्छे परिणाम (अनुभव) प्राप्त हुए तो किसीको कोइ परिणाम देखने नही मिला होगा,परंतु इस साधना मे परिणाम देखने मिलते है।

इस साधना मे नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा हानी हो सकती है। मै बहोत से लोगो से यह साधना करवाया है और सभी को मातारनी के आशिर्वाद से अनुभव प्राप्त हुए है।




साधना विधि और नियम:-

ब्रह्मचैर्यत्व जरुरी है,झुट नही बोलना,बाल नही कटवाने है,साधना काल मे दिर्घशंका आये तो स्नान करे,घी का दिपक,गुलाब के सुगंध का धूप,वस्त्र-आसान लाल रंग के हो,मा दुर्गाजी का कोइ भी दिव्य चित्र जरुरी है,मुख पुर्व के तरफ करके मंत्र जाप करना है,माला रुद्राक्ष का हो,भोग मे रोज़ सुखा मेवा चढाया जाता है,साधना रात्री मे 9 बजे के बाद किसी भी माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी से अमावस्या तक करना है और आखरी दिन हवन मे काले तिल और घी से दशान्श आहूति देना है। हवन के बाद अनार का बलि देना है और श्रुंगार का सामग्री चढाया जाता है,रोज गुलाब का ही फुल अर्पित करें। मंत्र जाप से पुर्व और आखिर मे सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ करे,रोज 11 माला मंत्र जाप करे। दुर्गासप्तशति यंत्र का चित्र दे रहा हू और यह यंत्र साधना से पुर्व ही अष्टगंध के स्याही से बनाना है,अनार का कलम इस्तेमाल करें,यंत्र भोजपत्र पर ही बनाना है।




। अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ।


शिव उवाच

देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥

देव्युवाच

शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥



हाथ  मे जल लेकर विनियोग मंत्र बोलकर जल को जमीन पर छोडना हैं। 

विनियोग:

ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमहामन्त्रस्य नारायण ऋषिः । अनुष्टुभादीनि छन्दांसि । श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः ।
श्रीदूर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोगः ॥



ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥ १॥


दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
        स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
        सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता ॥ २॥


सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ३॥


शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ४॥


सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ ५॥


रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥ ६॥


सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम् ॥ ७॥

        ॥ इति दुर्गासप्तश्लोकी सम्पूर्णा ॥





तांत्रोत्क चामुंडा मंत्र


।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।

om aim hreem kleem chaamundaayei vicche om gloum hoom kleem joom sah jwaalay jwaalay jwal jwal prajwal prajwal aim hreem kleem chaamundaayei vicche jwal ham sam lam ksham phat swaahaa





साधना के लाभ:-

इस साधना को करने से दरीद्रता का नाश होता है। इसको करने के बाद प्रत्येक साधना मे सफलता मिलता है,जिवन मे दुखो का अंत होता है। सर्वकार्य सिद्धी प्राप्त होता है,इच्छापुर्ति सिद्धी प्राप्त होता है,साधक के शरीर मे चेतना का विकास होता है। वाकसिद्धि प्राप्त होता है।
मै ज्यादा नही लिखना चाहूंगा,सिर्फ इतना लिख रहा हू "इस एक साधना समस्त प्रकार के सिद्धियों को प्राप्त करने मे सफलता प्राप्त होता है। यह अद्वितीय साधना को किये बिना इतर योनी जैसे अप्सरा, योगीनि, यक्षिणी....साधना मे सफलता प्राप्त करना कठिन है।






(नोट:कुछ दिनो से सुशील भाई व्यस्त होने के कारण शायद और कुछ दिनो तक फोन पर बात नही कर पायेंगे,परंतु ई-मेल से आपका और हमारा संम्पर्क बना रहेगा।

-प्रकाश) 




आदेश.....

13 Feb 2016

शिवप्रसाद कैसे प्राप्त करें ?

भगवान कार्तिकेय कृत शिव स्तुति



नमः शिवायास्तु निरामयाय,नमः शिवायास्तु मनोमयाय ।

नमः शिवायास्तु सुरार्चिताय तुभ्यं सदा भक्त कृपापराय ।।1।।



नमो भवायस्तु भवोद्भवाय नमोस्तु ते ध्वस्त मनोभावय । 

नमोस्तु ते गूढ़महाव्रताय नमोस्तु मायागहनाश्रयाय ।।2।।



नमोस्तु शर्वाय नमः शिवाय नमोस्तु सिद्धाय पुरातनाय । 

नमोस्तु कालाय नमः कलाय नमोस्तु ते कालकलातिगाय ।।3।।



नमो निसर्गात्मकभूतिकाय नामोस्त्वमेयोक्षमहर्धिकाय ।

नमः शरण्याय नमोगुणाय नमोस्तु ते भीमगुणानुगाय ।।4।।



नमोस्तु नाना भुवनाधिकात्रे नमोस्तु भक्ताभिमतप्रदात्रे । 

नमोस्तु कर्मप्रसवाय धात्रे नमः सदा ते भगवन्सुकत्रे ।।5।।



अनंतरूपाय सदैव तुभ्यमसह्योकोपाय सदैव तुभ्यं । 

अमेयमानाय नमोस्तु तुभ्यं वृषेन्द्रयानाय नमोस्तु तुभ्यम ।।6।।



नमः प्रसिद्धाय महौषधाय नमोस्तु ते व्याधिगणापहाय ।

चराचरायाथ विचारदाय कुमारनाथाय नमः शिवाय ।।7।।



ममेश भूतेश महेश्वरोसि कामेश वागीश बलेश धीश ।

क्रोधेश मोहेश परापरेश नमोस्तु मोक्षेश गुहशयेश ।।8।।



।। कार्तिकेय रचित शिवस्तुति सम्पुर्ण ।।






जो शिवभक्त सुबह और शाम को भक्तिपूर्वक इस स्तुति से शिव जी का स्तवन करेंगे ,उन्हें सभी रोगो से मुक्ति मिलेगी,धन-धान्य की प्राप्ति होगी और कभी जिवन मे दुख नही आयेगे । शिव दर्शन प्राप्त कर शिव धाम प्राप्त होंगा। इससे शिव भत्को को सभी कर्मो मे पुर्ण सफलता भी प्राप्त होता है। यह स्तुति कलयुग मे स्वयं शिवप्रसाद है,जिसके पठन से सभी पापो से मुक्ति प्राप्त होती है। दिन मे एक बार (सवेरे) पठन करने से 15 पाप,दिन मे दो बार (सायं काल और सवेरे) पठन करने से 50 पाप और तिनो समय (सायं काल,रात्री और सवेरे) पठन करने से 100 पाप माफ होते है । शिव जी का जल अभिषेक करने के बाद जो व्यक्ति इस स्तुति का पाठ करता है उसके 1000 पाप माफ होते है और महाशिवरात्रि को पाठ करने से शिघ्र शिवप्रसाद प्राप्त होता है।




आदेश.......

11 Feb 2016

उच्छिष्ट गणपति मंत्र साधना.

आज का दिन अत्यंत कल्याणकारी दिवस है,आज गणेश जयंती है। इस अवसर पर आज यह दिव्य तांत्रिक साधना दे रहा हूं। उच्छिष्ट गणपति साधना करने में अत्यन्त सरल, शीघ्र फल को प्रदान करने वाला, अन्न और धन की वृद्धि के लिए, वशीकरण को प्रदान करने वाला भगवान गणेश जी का ये दिव्य तांत्रिक साधना है । इसकी साधना करते हुए मुह को जूठा रखा जाता है एवं सुबह दातुन भी करना वर्जित है ।

उच्छिष्ट गणपति साधना को जीवन की पूर्ण साधना कहा है। मात्र इस एक साधना से जीवन में वह सब कुछ प्राप्त हो जाता है, जो अभीष्ट लक्ष्य होता है। अनेक इच्छाएं और मनोरथ पूरे होते हैं। इससे समस्त कर्जों की समाप्ति और दरिद्रता का निवारण,निरंतर आर्थिक-व्यापारिक उन्नति,लक्ष्मी प्राप्ति,रोजगार प्राप्ति,भगवान गणपति के प्रत्यक्ष दर्शनों की संभावना भी है। यह साधना किसी भी बुधवार को रात्री मे संपन्न किया जा सकता है।

साधक निम्न सामग्री को पहले से ही तैयार कर लें, जिसमें जल पात्र, केसर, कुंकुम, चावल, पुष्प, माला, नारियल, दूध,गुड़ से बना खीर, घी का दीपक, धूप-अगरबत्ती, मोदक आदि हैं। इनके अलावा उच्छिष्ट गणपति यंत्र और मुंगे की माला की आवश्यकता होती ही है।

सर्वप्रथम साधक, स्नान कर,लाल वस्त्र पहन कर,आसन भी लाल रंग का हो, पूर्व/उत्तर की ओर मुख कर के बैठ जाए और सामने उच्छिष्ट गणपति सिद्धि यंत्र को एक थाली में, कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर, स्थापित कर ले और फिर हाथ जोड़ कर भगवान गणपति का ध्यान करें।




विनियोग :

ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोलऋषि:, विराट छन्द : उच्छिष्टगणपति देवता सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोग: ।



ध्यान मंत्र:

सिंदुर वर्ण संकाश योग पट समन्वितं लम्बोदर महाकायं मुखं करि करोपमं अणिमादि गुणयुक्ते अष्ट बाहुत्रिलोचनं विग्मा विद्यते लिंगे मोक्ष कमाम पूजयेत।

ध्यान मंत्र बोलने के बाद अपना कोइ भी एक इच्छा बोलकर यंत्र पर एक लाल रंग का पुष्प अर्पित करे।



द्वादशाक्षर मन्त्र :

।। ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।।

om hreeng gang hasti pishaachi likhe swaha


मंत्र का नित्य 21 माला जाप 11 दिनो तक करना है।




अंत में अनार का बलि प्रदान करें।

बलि मंत्र:-

।। ॐ गं हं क्लौं ग्लौं उच्छिष्ट गणेशाय महायक्षायायं बलि: ।।




अगर किसी पर तांत्रोत्क भूत-प्रेत-पिशाच,कलवा-स्मशानी-जिन-जिन्नात-कृत्या-मारण जैसे अभिचार  प्रयोग हुआ हो तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट करके रक्षा करते हैं । यदि आप भी तन्त्र द्वारा परेशान हैं तो "शाबर मंत्र विग्यान संस्था" के द्वारा यह तांत्रिक साधना उचित न्योच्छावर राशि दान स्वरुप मे देकर सम्पन्न करवा सकते हैं या स्वयं आप यह साधना विधान सम्पन्न कर सकते है। आपसे प्राप्त धनराशि गरीब किसानो के मदत हेतु हमारे सन्स्थान के तरफ उन्हें सहायता हेतु प्रदान किया जायेगा।

अंत में शुद्ध घृत से भगवान गणपति की आरती संपन्न करें और प्रसाद वितरित करें। इस प्रकार से साधक की मनोवांछित कामनाएं निश्चय ही पूर्ण हो जाती हैं और कई बार तो यह प्रयोग संपन्न होते ही साधक को अनुकूल फल प्राप्त हो जाता है।

कलियुग मे यह साधना शिघ्र फलदायी माना जाता है।




आदेश......

9 Feb 2016

पारद शिवलिंग (अष्ट संस्कारित).

पारद शिवलिंग (रसलिंग) भुक्ति एवं मुक्ति का दाता है एवं इनकी प्राप्ति में ही जीवन की पूर्ण सार्थकता है। इसकी प्राप्ति, दर्शन, अर्चन से पूर्व जन्म के पाप नष्ट होते हैं ,एवं भाग्य का उदय होता है| पारद का शोधन कर उसे ठोस रूप में परिणत करना अत्यंत कठिन एवं असम्भव को सम्भव में बदल देना है अतः पारद शिवलिंग अत्यंत दुर्लभ है। तथापि सौभाग्य से जो व्यक्ति इस दुर्लभ पारद शिवलिंग को प्राप्त कर अपने घर में इसकी पूजा करते हैं वे अपनी कई पीड़ियों तक को सुसम्पन्न बना देते हैं। साथ ही वे व्यक्ति स्वयं भी इस जगत में धन धान्य पूर्ण तथा सुख सुविधा पूर्ण जीवन यापन करते हैं। जीवन में जो लोग उन्नति के शिखर पर पहुचना चाहते हैं। या जो लोग आर्थिक, राजनौतिक, व्यापारिक सफलता चाहते हैं उन्हें पारद शिवलिंग (रसलिंग) का पूजन अपने घर में अवश्य करना चाहिये। यह मोक्ष प्राप्ति का अद्वितीय एवम सुनिश्चित साधन है।


रुद्रसंहिता के अनुसार बाणासुर एवं रावण जैसे शिव भक्तों ने अपनी वांछित अभिलाषाओं को पारद शिवलिंग (रसलिंग) के पूजन के द्वारा ही प्राप्त किया एवम लंका को स्वर्णमयी बनाकर विश्व को चकित कर दिया | अध्यात्म में ऐसी अनेक अन्य क्रियायें भी हैं किन्तु उनका अब हमें ज्ञान नहीं। इसका कारण है कि या तो लोगों ने राज को राज ही बनाये रखा या फिर सद्गुरु को सुपात्र का अभाव रहा |


पारद शिवलिंग प्रायः दो प्रकार के देखने को मिलते हैं |एक पूर्ण ठोस जिसकी चल प्रतिष्ठा कर घर में पूजन होना चाहिए | दूसरा प्रकार आश्चर्यचकित कर देने वाला है | इसमें पारा मुर्छित एवं कीलित किया जाता है यह गोल एवं भरी होता है जिससे भक्त प्रतिदिन शिवलिंग बना एवं मिटा सकते हैं |पूजन के समय शिवलिंग का निर्माण कर आवाहन पूर्वक पूजन कर, विसर्जन के पश्चात् मिटाकर डिब्बी में रखा जा सकता है| यह यात्राओं में कही भी ले जाया जा सकता है| पारद पूर्ण जीवित धातु है इसके साथ सोना रख देने पर सोने को खा जाता है| दो चार दिन में ही सोना राख़ के रूप में आपके सामने होगा एवं मात्र पारद ही उस पात्र में बचेगा| पारद का मात्र स्पर्श ही सोने पर आश्चर्यचकित हासोन्मुखी प्रभाव डालता है| पारद हाथ में लीजिए एक मिनिट में ही आपकी अंगूठी का रंग सफ़ेद हो जाएगा इसकी सजीवता का इससे बड़ा प्रत्यक्ष प्रमाण क्या हो सकता है| पारद शिवलिंग का वजन अत्यधिक होता है दूसरी कोई धातु इतनी वजनी नहीं होती| विश्व में ऐसे भाग्यवान लोगों की संख्या कम ही है, जिन्होंने कंगाल के घर जन्म लेकर भी अपने घर में पारद शिवलिंग का पूजन किया और जीवन में पूर्णता प्राप्त की | असंभव को संभव में बदला | पारद शिवलिंग साक्षात् शिव का स्वरुप है एवं जिसके घर में पारद शिवलिंग हैं उसके यहाँ साक्षात् उमा महेश्वर विराजमान रहते हैं |


सनातन धर्म के कितने ही महत्वपूर्ण ग्रंथों में इस पारद शिवलिंग की महत्ता को पढ़ा जा सकता है |




शिवपुराण :-


गोध्नाश्चैव कृतघ्नाश्चैव वीरहा भ्रूणहापि वा
शरणागतघातीच मित्रविश्रम्भघातकः
दुष्टपापसमाचारी मातृपितृप्रहापिवा
अर्चनात रसलिङ्गेन् तक्तत्पापात प्रमुच्यते |


अर्थात् गौ का हत्यारा , कृतघ्न , वीरघती गर्भस्थ शिशु का हत्यारा, शरणगत का हत्यारा, मित्रघाती, विश्वासघाती, दुष्ट, पापी अथवा माता-पिता को मारने वाला भी यदि पारद शिवलिंग की पूजन करता है तो वह भी तुरंत सभी पापों से मुक्त हो जाता है |




ब्रम्हपुराण :-


धन्यास्ते पुरुषः लोके येSर्चयन्ति रसेश्वरं |
सर्वपापहरं देवं सर्वकामफलप्रदम्॥


अर्थात् संसार में वे मनुष्य धन्य हैं जो समस्त पापों को नष्ट करने वाले तथा समस्त मनोवांछित फलों को प्रदान करने वाले पारद शिवलिंग की पूजन करते हैं और पूर्ण भौतिक सुख प्राप्त कर परम गति को प्राप्त कर सकते हैं।




वायवीय संहिता :-


आयुरारोग्यमैश्वर्यं यच्चान्यदपि वाञ्छितं,
रसलिन्गाचर्णदिष्टं सर्वतो लभतेऽनरः।।


अर्थात् आयु आरोग्य ऐश्वर्य तथा और जो भी मनोवांछित वस्तुएं हैं उन सबको पारद शिवलिंग की पूजा से सहज में ही प्राप्त किया जा सकता है ।




शिवनिर्णय रत्नाकर :-


मृदा कोटिगुणं सवर्णम् स्वर्णात् कोटिगुणं मणे:|
मणात् कोटिगुणं त् कोटिगुणं वाणो वनत्कोतिगुनं रसः|
रसात्परतरं लिङ्गं न् भूतो न भविष्यति||


अर्थात् मिट्टी या पाषाण से करोड़ गुना अधिक फल स्वर्ण निर्मित शिवलिंग के पूजन से मिलता है | स्वर्ण से करोड़ गुना अधिक मणि और मणि से करोड़ गुना अधिक फल बाणलिंग नर्मदेश्वर के पूजन से मिलता है |स्वर्ण से करोड़ो गुना अधिक मणि और मणि से करोड़ो गुना अधिक फल बाणलिंग नर्मदेश्वर के पूजन से प्राप्त होता है |नर्मदेश्वर बाणलिंग से भी करोड़ो गुना अधिक फल पारद निर्मित शिवलिंग (रसलिंग) से प्राप्त होता है |इससे श्रेष्ठ शिवलिंग न तो संसार में हुआ है और न हो सकता है|




रसर्णवतन्त्र :-


धर्मार्थकाममोक्षाख्या पुरुषार्थश्चतुर्विधा:
सिद्ध्यन्ति नात्र सन्देहो रसराजप्रसादत:।


अर्थात जो मनुष्य पारद शिवलिंग की एक बार भी पूजन कर लेता है। उसे इस जीवन में ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों प्रकार के पुरुषार्थो की प्राप्ति हो जाती है। इसमें संदेह करने का लेशमात्र भी कारण नहीं है।




श्लोक:-


स्वयम्भुलिन्ग्सह्सैर्यत्फ़लम् संयगर्चनात
तत् फलं कोटिगुणितं रसलिंगार्चनाद भवेत्।


अर्थात~ हजारों प्रसिद्ध लिंगों की पूजा से जो फल मिलता है। उससे करोड़ो गुना फल पारद निर्मित शिवलिंग (रसलिंग ) की पूजा से मिलता है।




सर्वदर्शन संग्रह:-


अभ्रकं तव बीजं तु मम बीजं तु पारद:
बद्धो पारद्लिङ्गोयं मृत्युदारिद्रयनाशनम् ।


स्वयं भगवान शिवशंकर भगवती पार्वती से कहते हैं कि पारद को ठोस करके तथा लिंगाकार स्वरुप देकर जो पूजन करता है उसे जीवन में मृत्यु भय व्याप्त नहीं होता और किसी भी हालत में उसके घर दरिद्रता नहीं रहती।




ब्रह्मवैवर्तपुराण:-


पूजयेत् कालत्रयेन यावच्चन्द्रदिवाकरौ।
कृत्वालिङ्गं सकृत पूज्यं वसेत्कल्पशतं दिवि॥


प्रजावान भूमिवान विद्द्वान पुत्रबान्धववास्तथा।
ज्ञानवान् मुक्तिवान् साधु: रसलिंगार्चनाद भवेत् ॥


अर्थात् जो ऐक बार भी पारद शिवलिंग का विधि विधान से पूजन कर लेता है वह जब तक सूर्य और चन्द्रमा रहते हैं तब तक शिवलोक में वास करता है तथा उसके जीवन में यश, मान, पद, प्रतिष्ठा,पुत्र, पौत्र, बन्धु-बान्धव, जमीन-जायदाद, विद्या आदि में कोई कमी नहीं रहती और अन्त में वह निश्चय ही मुक्ति प्राप्त करता है।


अर्थात् पारद शिवलिंग एक महान उपलब्धि है। यह आदिदेव महादेव का प्रत्यक्ष रुप है क्योंकि पारद शुभं बीज माना जाता है। इसकी उत्पत्ति के बारे में कहा गया है कि शिव के सत्व से उत्पन्न हुआ है। यही कारण है कि शास्त्रकारों ने इसे साक्षात् शिव माना है। विशुद्ध पारद को संस्कार द्वारा बाधित करके यदि किसी भी देवी-देवता की प्रतिमा बनाई जाए तो वह स्वयं सिद्ध होती है। वाग्भट्ट के अनुसार जो व्यक्ति पारद शिवलिङ्ग का भक्तिपूर्वक पूजन करता है उसे तीनों लोकों में स्थित शिवलिङ्गो के पूजन का फल प्राप्त होता है। इसके दर्शन मात्र सैकड़ो अश्वमेघ यज्ञ, करोड़ो गोदान एवं हजारों स्वर्ण मुद्राओं के दान करने का फल मिलता है| पारद शिवलिंग का जिस घर में नित्य पूजन होता है ,वहा सभी प्रकार के लौकिक-पारलौकिक सुखो की सहज प्राप्ति होती है। पारद शिवलिंग आध्यात्मिक तथा भौतिक पूर्णता को साकार करने में पूर्ण समर्थ है। प्राचीनकाल से ही देव,दानव, मानव, गन्धर्व, किन्नर सभी ने महोदव को अपनी साधना ,एवं तपस्या से प्रसन्न कर श्रेठता को प्राप्त किया ,एवं काल को अपने वश में कर संसार में अजेय होकर अपनी विजय पताका फहराई।
आदिदेव महादेव ही ,ऐसे दयालु हैं जो भक्त के दोषो को अनदेखा करते हुए अल्पायु मानव को अमरत्व का वरदान प्रदान कर देते हैं।


ब्रह्मा के लेख के विरुद्ध जो अदेय है, उसे भी महादेव सहज में ही दे देते हैं।

ऐसे आदि देव महादेव का प्रत्यक्ष रुप पारद शिवलिंग की प्राप्ति अत्यधिक दुर्लभ है। यह कामना है कि संयोगवश आपकी भी भेंट किसी योगी, साधू , संत, विद्वान से हो जाये और पूर्ण समर्पित भाव से शिवलिंग को प्राप्त कर आप उसकी सेवाकर अपने जीवन की पूर्णता को प्राप्त करें।


महाशिवरात्रि का पर्व आनेवाला है। जो पारद शिवलिंग पुजन हेतु सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। मै स्वयं शिव भत्क हू,इसलिए मै भी यही चाहूंगा "सभी साधक पारदेश्वर जी का पुजन एवं मंत्र साधना करे",मैने कई लोगो को "तांत्रोत्क पारदेश्वर मंत्र" दिया,परिणाम स्वरुप मे किसीको भगवान ने दर्शन दिये तो किसी की इच्छाओं को पुर्ण कर दिया। इस बार मैने शिव भत्को के बारे मे कुछ सोचा है के "सब को कम मुल्य मे अष्ट संस्कारित पारदेश्वर भगवान दिये जाये",जैसे पारद का मुल्य महेंगा होता है इसलिये मै जो भी पारद का विग्रह बनाता हू वह 70 रुपये ग्राम के हिसाब से देता हू परंतु इस वर्ष महाशिवरात्रि और श्रावण माह साधना हेतु 50/-रुपये ग्राम के हिसाब से 36 ग्राम का छोटे आकार का शिवलिंग देने की इच्छा है। 36 ग्राम के पारद शिवलिंग का मुल्य 50/-रुपये ग्राम के हिसाब से 1800/-रुपये होगा,जिसमे कोरियर चार्जेस 100/-रुपये और 50/- बैंक इंटरसिटी चार्जेस है,इस अष्ट संस्कारित पारद शिवलिंग को प्राप्त करने का मुल्य आपको 1950/- देना होगा। पारद शिवलिंग देखने कैसा होगा ये जानने के लिये आप फोटो मे देख सकते है। पारद शिवलिंग के साथ आपको पुजन विधान और तांत्रोत्क पारदेश्वर मंत्र भी दिया जायेगा। शिवलिंग प्राप्त करने हेतु सम्पर्क करे-
amannikhil011@gmail.com






आदेश (प्रणाम).......

ये टोटके चमत्कारिक है।

छोटी छोटी बाते है,जिनके बारे मे बहोत कम लोग जानते है। इस लेख को पढ़ने से आपको कुछ परेशानियों से राहत मिलना सम्भव है।



रविवार के दिन तेल मर्दन करने से ज्वर होता है-(मुहूर्तगणपति)
रविवार के दिन बाल (क्षौरकर्म ) काटने या कटवाने से धन, बुद्धि और धर्म की हानि होती है।
-(महाभारत अनुशासनपर्व)



सोमवार के दिन तेल मर्दन करने से कान्ति बढ़ती है-(मुहूर्तगणपति)
सोमवार के दिन बाल (क्षौरकर्म ) काटने या कटवाने से शिव भक्ति की हानि होती है। पुत्रवान पिता को तो कदापि नहीं करना चाहिये।-(महाभारत अनुशासनपर्व)



मंगलवार के दिन तेल मर्दन करने से आयु घटती है-(मुहूर्तगणपति)
मंगलवार के दिन बाल या दाढी (क्षौरकर्म ) काटने या कटवाने से आयु घटती है।-(महाभारत अनुशासनपर्व)



बुधवार के दिन तेल मर्दन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है-(मुहूर्तगणपति)
बुधवार के दिन बाल या दाढी (क्षौरकर्म ) अथवा नख काटने या कटवाने से धन समृद्धि बढ़ती है।-(महाभारत अनुशासनपर्व)



गुरुवार के दिन बाल या दाढी (क्षौरकर्म ) काटने या कटवाने से लक्ष्मी और मान की हानि होती है-(महाभारत अनुशासनपर्व)
गुरूवार के दिन साबुन अथवा शैम्पू का प्रयोग न करें । धोबी को वस्त्र न दें।



शुक्रवार के दिन तेल मर्दन करने से बिघ्न बाधायें आती हैं-(मुहूर्तगणपति)
शुक्रवार के दिन बाल या दाढी (क्षौरकर्म ) काटने या कटवाने से लाभ और यश की प्राप्ति होती है-(महाभारत अनुशासनपर्व)



शनिवार के दिन तेल मर्दन करने से सुख की प्राप्ति होती है-(मुहूर्तगणपति)
शनिवार के दिन बाल (क्षौरकर्म ) काटने या कटवाने से आयु घटती है।-(महाभारत अनुशासनपर्व)


इन नियमो को आजमाने से आपको अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा।





आदेश.

8 Feb 2016

ज्योतिष से भाग्योदय.

सभी ग्रहों का अलग-अलग पेड़ों से सीधा संबंध होता है। अत: इन पेड़ों की जड़ों को धारण करने से अशुभ ग्रहों के प्रभाव कम हो जाते हैं। धन संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं। यहां बताई जा रही जड़ें किसी भी पूजन सामग्री या ज्योतिष संबंधी सामग्रियों की दुकान से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं...

ग्रहों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना एक उपाय है। असली रत्न काफी मूल्यवान होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से दूर होते है। इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं, लेकिन धन अभाव में इन्हें धारण नहीं कर पाते हैं। ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।




1. सूर्य ग्रह के लिए

सूर्य के लिए बेलपत्र की जड़ धारण करे । यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करना चाहिए। इससे सूर्य से शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं।




2. चंद्र ग्रह के लिए

चन्द्र के लिए खिरनी की जड़ धारण करे । चंद्र से शुभ फल प्राप्त करने के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।




3. मंगल ग्रह के लिए

मंगल के लिए अनंतमूल की जड़ धारण करे । मंगल ग्रह को शुभ बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।




4. बुध ग्रह के लिए

बुध के लिए विधारा की जड़ धारण करे । बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधी झाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।




5. गुरु ग्रह के लिए

गुरु के लिए केले की जड़ धारण करे । गुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।




6. शुक्र ग्रह के लिए

शुक्र के लिए गुलर की जड़ धारण करे । गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।




7. शनि ग्रह के लिए

शनि के लिए शमी की जड़ धारण करे । शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए।




8. राहु ग्रह के लिए

राहू के लिए सफ़ेद चन्दन का टुकड़ा धारण करे । कुंडली में यदि राहु अशुभ स्थिति में हो तो राहु को शुभ बनाने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करना चाहिए।




9. केतु ग्रह के लिए

केतु के लिए अश्वगंधा की जड़ का टुकड़ा धारण करे । केतु से शुभ फल पाने के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।




जब हमे नवग्रह से सबंधित जड को धारण करना हो तो उसको प्राण-प्रतिष्ठित करने से कई गुना फल प्राप्त किया जा सकता । मै यहा विधान दे रहा हु जो आपके लिये लाभदायक होगा।


संकल्प-

दाहिने हाथ मे जल,अक्षत व कुंकुम लेकर संकल्प कीजिये

ॐ विष्णु र्विष्णु र्विष्णु: श्री मदभगवतों महाप्रभावस्य द्वितीय परार्धे श्वेतवारहकल्पे भरतखण्डे पुण्य क्षेत्रे, अमुक गोत्रीय(अपना गोत्र बोले) अमुक शर्माहं (अपना नाम बोले) अद्द अमुक (जड़ का नाम बोले) जड अमुक (ग्रह का नाम बोले) ग्रह प्रित्यर्थे प्राण-प्रतिष्ठा करिष्ये ॥



विनियोग-

अस्य श्री प्राण-प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा-विष्णु-रूद्रौ ऋषी ऋज्ञजु: सामानिच्छदासी  प्राणख्या देवता । ॐ आं बीजं ह्रीं शक्ति: क्रां कीलकं यं रं लं वं शं षं सं हं हं स: एत: शक्तय: प्रतिष्ठापन विनियोगा: ॥



मंत्र का कम से कम २१ बार जाप करे या १०८ बार,जाप करते समय जड़ को स्पर्श कर सकते है ।



ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं स: देवस्य प्राणा: इह प्राणा: पुरुच्चार्य देवस्य सर्वेनींद्रयानी इह:। पुरुच्चार्य देवस्य त्वक्पाणि पाद पायु पस्थादीनी इह: । पुरुच्चार्य देवस्य वाड मनुश्चक्षु: श्रोत्र घ्राणानि इहागत्य सुखेन चीरं तिष्ठतु स्वाहा ॥



यह विधान करने के बाद जड़ को धारण करें।इन जड़ों को धारण करने से पूर्व किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए।




आदेश.....

4 Feb 2016

कर्ण-पिशाचिनि सिद्धि साधना.

कर्ण-पिशाचिनी साधना एक रहस्यमय साधना है,जिसके बारे मे बहोत कम व्यक्तियों ने सत्य लिखा और इतने सारे फेकु भी देखे मैंने "जिन्होंने इस साधना को अत्यंत बुरा कहा है"। हमे उन मुर्खो से कोइ लेना देना नही है जो कर्ण पिशचिनी साधना को घटिया मानते है,मेरा तो यही सोच है नजरिया ठिक हो तो सब कुछ ठिक होता है। अभी नासिक मे कुम्भ मेला लगा था,वहा मै 2-3 दिन रुका था । वहा सन्यासियों के लिये स्नान का अलग व्यवस्था बनाया हुआ था,इस बार  कुम्भ मे वह सन्यासी देखने नही मिले जिनक स्पर्श ही किसी भी पिडित व्यक्ति को पिडा से राहत दिला सकता है । फिर भी 70-75% सन्यासी बढिया थे,जिनके सान्निध्य को प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण योग ही है। इस वर्ष कुम्भ मे मुझे कर्ण-पिशाचिनी साधना के बारे मे कुछ गोपनीय विषयो पर ग्यान प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुया ।मेरा  लक्ष्य कर्ण-पिशचिनी सिद्धि तो नही है परंतु मै अपने लक्ष्य तक इस साधना से वहा तक पहोच सकता हू,इस बात का मुझे आभास हुआ।

कुछ लोगो का मानना है,कर्ण-पिशाचिनी देवि को सिद्ध करने के बाद वह म्रत्यु के उपरांत साधक के परिवार को तकलीफ देती है । मित्रो यह बात 100% झुट है और तंत्र मे येसा सब सम्भव भी नही है क्युके कर्ण-पिशाचिनी को बंधक बनाया जाये तो उनका हम विसर्जन भी कर सकते है। बंधक का अर्थ है बांधना और यहा देवि को बांधने की बात नही हो रही है। मै बात कर रहा हू "कर्ण-पिशाचिनी सिद्धि" को बांधने की,आप सोच रहे होगे "ये कैसे सम्भव है"? । ये तंत्र का  क्षेत्र है और यहा क्रिया के माध्यम से सब कुछ सम्भव है। आज यहा वह क्रिया बताउगा जिसके माध्यम से "कर्ण-पिशाचिनी सिद्धि' को आप विशेष रत्न मे बांध सकते है। वह रत्न हमेशा आपके साथ रहेगा,जिसे आप मुद्रिका मे जडवा सकते है,इसका अर्थ यही है "कर्ण-पिशाचिनी" आपके पास तो है परंतु शरीर मे वह स्थापित नही होंगी।

जब कर्ण-पिशाचिनी का सम्बन्ध आपके शरीर से स्थापित हो तो समझ जाये आपका अंत बहोत बुरा होगा क्युके आप चाहे कितने भी दान-पुण्य-मंत्र जाप करलो,फिर भी वह आपको म्रत्यु के उपरांत पिशाच योनी मे ही लेकर जायेगी । आपने तो ये बात बहोत बार सुना ही होगा "अंत भला तो सब भला",इसलिए आवश्यकतो तो यही है "कर्ण-पिशाचिनी" को सिद्ध किया जाये परंतु उसका सम्बन्ध स्वयं के शरीर से स्थापित ना हो अन्यथा यह सिद्धि किसी काम का नही है। महर्षि वेदव्यास जी ने भी अपने जिवन काल मे यह
सिद्धि प्राप्त की थी और उनका अनुभव इसी सिद्धि मे महान रहा है। वे तो महर्षि है,भला उनको क्या आवश्यकता पडी होगी इस सिद्धि की,कारण यही है मित्रों "जो भी तंत्र के क्षेत्र मे आता हैं,वह जिवन मे एक बार कर्ण-पिशाचिनी साधना सिद्ध करता ही है"। नाथ पंथ मे सर्वप्रथम यह सिद्धि श्री कानिफनाथ जी ने कि थी,उन्होंने ने विशेष रत्न मे कर्ण-पिशाचिनी को बांधा ,जब बंधन पुर्ण हुआ तो रत्न को मुद्रिका मे जडवाया,रत्न जड़ीत अंगुठी मे उन्होने "कर्ण-पिशाचिनी को जाग्रत किया। उनके हजारो शिष्य थे,वह एक साथ सभी शिष्यों को साथ लेकर चलते थे,उसमे कुछ शिष्य ग्यानी थे,तो कुछ शिष्य अग्यानी भी थे,जब चलते चलते रास्ते मे कोइ अग्यानी शिष्य मार्ग भटकता तो कर्ण-पिशाचिनी उनको कर्ण मे बता देती थी। इस प्रकार से महान योगी श्री कानिफनाथ जी ने अपने जिवन मे कर्ण-पिशाचिनी सिद्धि को आजमाया है।

जो जिवन मे चुनौती को स्वीकार करते है,उनको अवश्य ही यह साधना करनी चाहिये और जो डरपोक हो,जो अग्यात आवाज को सुनकर डर जाते हो "उनको तो इस साधना से दुर ही रहेना चाहिए। सीधी सी बात है,जब कर्ण-पिशाचिनी साधना करोगे तो कर्ण मे आवाज आयेगी,अब इस बात से डरोगे तो यह मुर्खता है। मुख्यतः कर्ण-पिशाचिनी साधक के कर्ण मे भुतकाल की समस्त बाते अचुक बताती है और भुतकाल के साथ वर्तमान भी बता सकती है परंतु यही कभी भविष्‍यकाल नही बताती है। तंत्र शास्त्र मे एक जगह येसा विवरण पढने मिलता है "अगर कर्ण-पिशाचिनी के साथ यक्षिणी साधना की जाये तो कर्ण-पिशाचिनी भविष्यकाल भी बता सकती है ",आज यह गोपनीय रहस्य सुशिल नरोले ने अपने पाठक मित्रो हेतु बता दिया,क्युके येसा विषय कितने दिनो तक गोपनीय रखा जा सकता है। अब अपने इस ब्लोग को नित्य 2000+ पाठक मित्र पढते है और तंत्र के विषय पर मुझसे चर्चा भी करते है,जब आप तंत्र के विषय मे अध्ययन कर रहे हो तो मेरा भी कर्त्तव्य है "आप सभी को गोपनीय से गोपनीय ग्यान प्राप्त हो,जो थोड़ा बहोत मैने प्राप्त किया हो"।

इस साधना मे मेहनत करना कभी व्यर्थ कार्य नही है,मंत्र भी आसान है और साधना विधि भी ज्यादा कठिन नही है। इस साधना मे मेरा आपको पुर्ण सहायता प्राप्त होगा,रत्न मे मै आपको स्वयं ही "कर्ण-पिशाचिनी"को शाबर मंत्रो से बांधकर दे रहा हूं। आपको सिर्फ रत्न को अंगुठी मे जडवाकर उसका विधि-विधान के साथ पुजन करके,अंगुठी को देखते हुये मंत्र जाप करने की आवश्यकता है। कुछ ही दिनो मे सर्वप्रथम आपके कर्ण मे दर्द होना प्रारंभ होगा जो साधना सिद्धि का सुचक अनुभव है,इसके बाद धिरे से आपके कर्ण मे कोइ फुंक मारेगा तो समज जाये "आप सिद्धि के करीब पहोच रहे है"। यहा से आगे क्या अनुभव होगे वह तो आपको मुझे बताने है,मै तो जानता हू इसके आगे क्या होगा परन्‍तु जब आप स्वयं अनुभव करके मुझे बतायेगे तो अत्यंत आनंद होगा। इस साधना मे जो विशेष रत्न मै दे रहा हू "उसका मार्केट मे कम से कम किमत सव्वा चार रत्ती का 5-6 हजार रुपये से प्रारंभ होगा" और वजन के हिसाब से वह रत्न खरीदने पर वह और भी ज्यादा महेंगा है परंतु मै आपको यह रत्न 3800/- रुपये मे ही देने वाला हू । यह रत्न शनि भगवान का प्रिय रत्न है,जो एक प्रसिद्ध रत्न है "निलम"। यहा आप सोच रहे होगे "मै कम दाम मे रत्न क्यु दे रहा हू?",तो मित्रो बात येसा है "पहिला बात मेरा रत्न बेचने का कोइ दुकान तो नही है जिसका मुझे किराया देना पडे या किसी को दुकान मे काम करने के लिये महिने का स्यालेरी  देना पड़ता हो,दुसरा बात जब दुकान ही नही है तो लाईट बिल भी नही आता है,तिसरा बाता मुझे रत्न बेचने पर इनकम टैक्स और सेल्स टैस्क भी देना नही पडता है। परंतु मार्केट मे जो व्यापारी रत्न बेचते है उनको यह सब खर्च चुकाना पड़ता है और जो खर्च उन्होने चुकाया है वह तो ग्राहक के जेब मे से ही ज्यायेगा । इसलिए मै सव्वा पाच रत्ती/कॅरेट का निलम रत्न सिर्फ कर्ण-पिशाचिनी साधना हेतु 3800/-रुपये मे दे रहा हूं। भगवान शनि जी से कर्ण-पिशाचिनी बहोत डरती है,इसलिए वह इस रत्न मे आसानी से स्थापित हो जाती है (बंधन क्रिया),अब जिन्हें निलम रत्न पहेनना अयोग्य हो या जिनके लिये कुण्डली के हिसाब से पहेनना अशुभ फलप्रद हो तो येसा साधक निलम रत्न जडित मुद्रिका को कुछ समय के लिये पहेनकर कर्ण-पिशाचिनी से सवालो के जवाब प्राप्त करने हेतु धारण कर सकता है।



मंत्र:-

।। ॐ ह्रीं सनामशक्ति भगवती कर्णपिशाचिनि चंडरोपिणि वद वद स्वाहा ।।



इस छोटेसे मंत्र का जाप तो आप कर ही सकते है,ज्यादा कठिन साधना नही है परंतु मेहनत करने से ही इस  साधना मे सफलता प्राप्त करना आसान है और आलसी साधक/साधिकाये यह साधना करने हेतु ना सोचे तो बेहतर होगा। साधना मे मार्गदर्शन हेतु सम्पर्क करे amannikhil011@gmail.com पर,हर सम्भव मार्गदर्शन आपको किया जायेगा। कर्ण पिशाचिनि का फोटो मिलता जुलता है , देखकर ङरीये मत उनका स्वरूप थोङा ङरावना सा है परंतु वह साधक के सामने इस साधना मे कभी प्रत्यक्ष नही आती है । 



आदेश.....

Useful Parad (mercury) Articles.

Paarad Shivaling:

Paarad Shivaling is the most unique and wonderful boon gifted to the humans by the gods. Everything can be had through one’s efforts but a Mantra energised, consecrated Paarad Shivaling can be obtained only when one’s fortune smiles on the person. It is a symbol of good luck and just looking at it destroys all the sins of past lives and makes the person fortunate.The foremost and most revered of all Yogis, Poojya Gurudev Swami Sachidanand said that a Sadhak who places a Paarad Shivaling in his home and worships it or just has its glimpse daily becomes free of all sins and gains divine powers along with wealth, prosperity and all comforts.The text Ras Maartand says about this Shivaling:

Ling Koti Sahastrasya Yatfalam Samyagarchanaat.
Tatfal Kotigunnit Raslingaarchanaad Bhavet,
Brahma-hatyaa Sahastraanni Gohatyaa Shataani Cha.
Tatshannaadwilayam Yaanti Raslingasya Darshanaat,
Sparshnaapraapyate Muktiriti Satyam Shivoditam.

A million times more fruitful is worshipping a Paarad Shivaling than worshiping a thousand Shivalings. Just looking at a Paarad Shivaling neutralises the effect of sin of killing a thousand Brahmins and cows. Touching a Paarad Shivaling without doubt makes one free of all problems and quickens one’s spiritual progress. These are the words of none other than Lord Shiva.

The text Rasaarnnav Tantra states:-

Dharmaarthkaam-mokshaakhyaa Purushaarthashchaturvidhaa.
Sidhyanti Naatra Sandeh Rasraaj Prasaadatah.

A person who worships a Paarad Shivaling just once in his life surely gains Dharma (righteousness), Arth (wealth), Kaam (pleasures) and Moksh (spiritual progress).

The text Brahmaveivart Puraann clearly states:-

Pachyate Kaalsootrann Yaavachandradivaakari.
Kritvaaling Sakrit Poojya Vasetkalpashatam Divi.
Prajaavaan Bhoomivaan Vidwaan Putra-baandhavvaanastathaa.
Gyaanvaan Muktivaan Saadhuras Lingaarchanaad Bhavet.

One enjoys all comforts in life and attains wealth, fame, position, respect, sons, grandsons, high education and prosperity if one worships a Paarad Shivaling just once in one’s life time. And such a person surely reaches a high position in life.

The text Vaayveeya Samhita states:-
Aayuraarogyameishvarya Yachchaanyadapi Vaanchhitam.
Raslingaarchanaadishtam Sarvatam Labhate Narah.

Longevity, good health, prosperity and all desired achievements can be had through the worship of Paarad Shivaling.
Symbol of Lakshmi too: Paarad shivaling is an icon of Lord Shiva but texts like Lakshmi Upanishad and others have accepted Paarad Shivaling as a symbol of Lakshmi as well. Lord Vishnu has himself said that the house in which a Paarad Shivaling is placed is surely graced by Lakshmi the Goddess of wealth and prosperity. There can never by any paucity in that house.




Paarad Ganapati:

Paarad is a divine metal and its importance is very obvious from the following line taken from the text Ras Ratna Samuchchya:Siddharase Karishye Nidraaridrya Magadam Jagat.i.e.

if mercury is consecrated then it becomes capable of banishing poverty and diseases.It is further stated in the text:No medicine or herb or metal is capable of keeping a human body totally free of diseases for all metalsget wet by water, can be burnt in fire and dried with heat, but Paarad is a unique element that remains unaffected by these influences. Mercury is subjected to special chemical reactions and it is made solid. Thus it becomes elixir like andthrough such Paarad even the most impossible can be achieved.When an idol of Lord Ganpati is made fromsuch Paarad and it is worshiped the Sadhak is bestowed with knowledge,intelligence and all divine powers. This is because Lord Ganapati is theLord of all powers and he is the first to be worshiped among all deities onany auspicious occasion or ceremony.No ceremony among Hindus starts without first offering prayers to Lord Ganapati. Not just this before starting any Sadhana or worship of any deity, Lord Ganapati is worshiped with an aim to seek His blessings for success in the ritual. No other deity is given so much respect and love as Lord Ganapati. And truly He is a unique deity in the Indian pantheon of Gods and Goddesses.Ganesh or Ganapati means Lord of Ganns or the divine attendants of Lord Shiva. Every human has five physical senses, five mental senses and four spiritual senses. The energy that runs through all these senses is the energy of the fourteen deities whose Lord is Ganesh.The divine form of the Lord is very handsome and benign. He has one tusk and four hands in which He wields a lasso, Veena (a stringed instrument) and a corn cob. The fourth hand is raised in blessing. He has a red complexion and a huge belly. He has large fan like ears and wears red robes. His body is smeared with red sandalwood paste.He is worshiped with red flowers.If propitiated with full faith He manifests in a physical form to help his devotee. He has a divine form that has manifested not by the natural process of procreation and He is dedicated to the fulfilment of the wishes of his Sadhaks.Paarad is capable of banishing ailments, poverty and old age. It can transform old age into eternal youth.It can also bestow upon a person all the eight Siddhis or powers. Paarad has originated from the body of LordShiva and hence it is the best amongall elements.Lord Ganapati is a deity who becomes pleased with a Sadhak even if he just chants His name and He removes all problems from one’slife and propels one onto the path that leads to success. If one performs Sadhana or worship of such a kind deity on a Paarad Ganapati then the result would be stupendous. Through his Sadhana, worship and chanting of his name there is a rise on intelligence of the Sadhak, all wishes are fulfilled and all problems and obstacles are removed thus making life easy and smooth.





Paarad Lakshmi:

Through the idol of Lakshmi made from Paarad, life could be made prosperous. Sometimes a person tries very hard and makes supreme effort yet he fails to succeed in life. In such a situation a Mantra energised and consecrated Paarad Lakshmi shouldsurely be placed at home and worshipped.It is clearly stated in Yajurved that if Goddess Lakshmi is propitiated and an idol of Lakshmi made from Paarad is placed in the South East direction and it is worshipped daily then wealth virtually rains in that house.InYajurved, Goddess Lakshmi is propitiated in three forms – Shree, Swarnaawati and Paaradeshwari. It has been clearly mentioned in this text that among all the 108 forms of the Goddess the Sadhana of Paardeshwari Lakshmi is the most divine, fruitful and wealth bestowing.In a verse that appears inSaamvedit is said – Just as Kalp Vriksh (wish tree) can fulfil all wishes, similarly Goddess Paaradeshwari can fulfil all one’s desires.The textDhananjya Sanchaystates that the person who wishes to gain wealth, prosperity and comforts in life should through his Guru establish a Paarad shivaling in the North East and a Paaradeshwari Lakshmi in the South East direction in his place of worship.Paarad Vigyanor the science of consecrating mercury is the most beautiful science for through it one can banish even poverty from one’s life and fill it with prosperity and riches.Through the Sadhana of Paaradeshwari all financial problems are removed and one has monetary gains. Also all problems atjob are removed and one gains name and fame in the society.




Shree Yantra:

Shree Yantra is a favourite of Lakshmi, Goddess of wealth and prosperity. Where this Yantra is placed there can be no dearth of wealth.All the Rishis, Yogis and great souls have accepted unanimously that this Yantra is capable of attracting wealth. Lakshmi may not be easily won over by any other means but just placing the Yantra at home pleases Her and She promptly bestows wealth, prosperity, comforts and success on the Sadhak. Where this Yantra is placed there cannot be poverty. This Yantra is also unique for riddance from debts.According to the sage Bharadwaj this Tantra is simply wonderful and capable of bestowing totality in life specially if it is made of metal and is Mantra energised and consecrated.Shree Yantra contains a very mystic inscription which is made of seven triangles. Around the centre triangle is a octagon around which is a decagon and finally a figure with fourteen sides. The text Yantra Gyaan states –

Chaturbhih Shivchakre Shakti Chakre Panchabhih.
Nav Chakre Sansiddham Shree Chakram Shivayorvapuh.

Around the Shree Chakra three boundaries are drawn which are symbolic of the three energies. Under it is a sixteen petaled lotus inside which is an eight petaled lotus. In it are fourteen triangles that are symbolic of fourteen energies. In it can be clearly seen ten triangles which denote ten symbols of prosperity.
In it are eight triangles which are symbolic of eight goddesses. In it is a triangle denoting Lakshmi. In this triangle is a spot which symbolises Goddess Bhagwati. A Sadhak when worshipping this Yantra should concentrate on this spot and project an image of Goddess Lakshmi seated on a lion at this spot.
Shree Yantra symbolises a total of 2816 energies or Goddesses and worshiping this Yantra means worshiping all these energies.

There are available hundreds of texts related to this Yantra. And not just the Indian texts rather the western scholars have praised this Yantra highly. The western scholar Woodruff has said – The more I tried to unravel the mystery of this Yantra the more I got entangled in it.
Such is the formation of this Yantra that it automatically becomes divine and energised. Each boundary and triangle in it is so related to the other that it forms a strong mystic force that without doubt brings success. One who has this Yantra is a really fortunate, famous and great man.

The sage Kannaad said that if one has a Shree Yantra which is Mantra energised then one need not try any other Sadhana or ritual on it. Such a Yantra is itself divine and it starts to bring positive results and effect if it is placed at home. An incense when lit sends its fragrance in all directions without discrimination. Similarly wherever this Yantra is placed at home it starts to produce wonderful results.






Rudraksh rosary  :

For the chanting of Shiva Mantra Rudraksh rosary is the bast as prescribed by the ancient texts. It has 108 beads and each bead is energised with the Mantras relating to Lord Shiva. This is why this rosary proves to be very effective. All Mantras of Lord Shiva can be chanted with this rosary.Rudraksh means a special bead produced from the eyes of the Lord. Rudra means Shiva and Aksh means eye. While stringing the beads each bead is energised with Shiva Mantra and then the rosary is washed with pure water chanting the Sadyojaat Mantra which is as follows:
Om Sadyojaatam Prapadyaami Sadyojaatave Namo Namah.
Bhave Bhave Naati Bhave Bhavaswamaam Bhavodbhavaay Namah. After this sandalwood paste, Agar and fragrance is rubbed on the beads chanting the following Vaamdev Mantra :
Om Vaamdevaay Namo Jyeshtthaay Shreshtthay Namo Rudraay Namah Kar Vilarannaay Namo Val Vikarannaay Namo.
Valaay Namo Bal Prathamaay Namo Sarva Bhoot Damanaay Namo Manomanaay Namah. Next the following Aghor Mantra is chanted while offering incense:
Om Aghorebhyo Ghorebhyo Ghor Ghor Tarebhaya Savebhya Sarva Sharvebhyo Namaste Astu Rudra Roopebhyo.
After this the rosary is smeared with saffron chanting the following Tatpurush Mantra :
Om Tatpurushaay Vidmahe Mahaadevaay Dheemahi Tannorudraay Prachodayaat.
Next the following Eeshaan Mantra is chanted on each bead:
Om Eeshaanah Sarvavidhaanaam Eeshwar Sarvabhootaanaam Brahmaadipati Brahmaadhi Patim Brahma Shivoham Astho Sadaa Shivom.
Next chant one round of the Guru Mantra with the rosary:
Om Param Tatvaay Naaraayannaay Gurubhyo Namah.
Next join both palms and chant thus:
Maale Maale Mahaa Maale Sarvashakti Samanvite Chaturvargaa Tvayinyistah Tasmaan Me Siddhidaa Bhav.
With these Mantras the rosary becomes really divine and it helps in raising the fortune of the Sadhak.
Lord Shiva is called Mahadev, Lord of all deities. The Mantra of such a great entity should not be chanted with any ordinary rosary. Rudraksh rosary is the best among all rosaries. But it proves really effective when it is consecrated with the above Mantras.
Such a rosary should surely be placed in one’s place of worship at home. This rosary is so powerful and effective that you can yourself experience it. When a Sadhak places such articles at home and regularly uses them then a time comes when he realises their power.







Thanks.

3 Feb 2016

Mechanism: the science of dreams

Yoga does not depend too much on the power of imagination, because of the different techniques and means. But the system relies too much on fancy yoga. It's a very systematic process, including through the imagination. Imagination is transformed into a medium that destroys the boundaries of your current existence.

This experience and reality takes a completely different aspect. You have seen the Board of esoteric tantric? They are very detailed and sophisticated. If they create a system that will work day and night for three or four people work because they are too esoteric and has to create a certain way. This is a way to train your mind to visualize and how to use it, but very controlled manner. So this is also an artist, the only difference is simply that he does with all his instinct, not with a system. But the system in a certain way, using imagination, is used as a science.

If you see Tantric practice, you will find that the very manner of the ladies are worshiped. Imaginations envisioned is a particular goddess and all the nuances, it is envisioned, for example, from his clothes to jewelery, from her fingernails until everything else is fiction with about awareness. After some time, it is no longer a fantasy, it becomes a living reality. It is a living force in the life of a psychic becomes and the use of force that is unique in many ways that are sometimes unreliable. There are many more aspects, but very powerful way imaginable.

If I give you an idea, you can create a life full of just that idea. This only
Tantra is the art. You can try. This may take a minute. Go to any tree or grass sit down. Close your eyes and imagine it in your mind and make again. Blades of grass with complete clarity of the picture and make your mind. Start from the top and bottom or at the speck in your mind and make this gradually. The straws with cent percent complete liveliness and clarity will make your mind. It will require much work.

In my childhood I had created all things in your mind. If you can, let me tell you another thing. If you can create in your mind, in your mind the memory of the little finger Customize detail. When I say the memory, then it would mean that many properties in the little finger. Maikromilimitr the extent you proceed closely and make every little thing in your mind. Doing so will cause your brain a tremendous prospect. Now if you want you can create your little finger than grass. That mechanism. It is also common that you sow a seed, it will grow and the Tantric him within an hour or two of them will come to fruit, because it is a dream.

If the tree is only a dream, your body is a dream, it is a dream world. In a way, this is a dream, it's all relative - to have these things happen to us is based on. That which we call Maya. Maya does not mean that it does not exist. Similarly, it does not mean that his dreams do not exist. Existence, but that is not what you are understood. Through its five Gyanendraion you are understood, it is not like that. Its nature is quite different.

If such mechanism is a science, which started working with them and the imagination to such a level that you'd have a whole world can touch.

Thanks

1 Feb 2016

ENCHANTMENT PROCESS OF GIRLS.

In field of Tantra, there is one important karma under Shatkarmas (six important Karmas of Tantra) called Vashikaran. Common people may see this karma with fearful point of view but nobody is unaware of its utility and its need in today’s time. As compared to ancient time, infidelity/crime has spread all around in very large proportion and person is now compelled to live a life full of ever-persisting fear. Person in order to meet his selfish objective is not even thinking for a minute before causing harm to others. It is but natural to feel sense of consistent insecurity in this blind race. Therefore in today’s time, person is totally deprived of pleasure. And person then finds himself helpless, confronted with various problems.

Certainly this situation in unsuitable but we were the one who gave rise to sequence of the events which culminated into this situation. If there is a problem, it has a solution too. And that’s why our ancient sages and saints resorted to Dev Shakti; wherever our power is limited, we can attain power and strength from them through worship of Dev Shakti and get rid of problems of our life. And this procedure is Tantra……Mahasiddhs have always agreed on the fact that Tantra is capable of getting rid of any problem of person. But due to our ignorance and due to many selfish people, this Vidya slowly and gradually became obsolete. But from time to time, Many Mahasiddhs took incarnation and tried to connect this Vidya with common masses.

If any person starts causing harm, he can be stopped. If any family member or any acquaintance is doing wrong act, his orientation can be changed or if anyone is suffering from bad company, he can be saved from it. In this manner, there is no wrong in doing Vashikaran in moral manner. And it is procedure to provide auspicious situation to sadhak. In this context, this prayog is presented which has also been called Madan Vashikaran Prayog.

This prayog is related to Kaamdev, though Kaamdev can attract or do vashikaran of anyone any moment through arrow of flowers. This hidden prayog is important prayog for all of us in today’s era.


Sadhak can start this prayog from any auspicious day.
It is better if sadhak does this prayog after 10:00 P.M in night.
Sadhak should take bath, water yellow dress and sit on yellow aasan facing north/east direction.


sadhak should establish any picture or yantra of Kaamdev and do its normal poojan. Sadhak should light oil-lamp and light incensed stick.
After it, sadhak should do Nyas.



KAR NYAAS

KLAAM ANGUSHTHAABHYAAM NAMAH
KLEEM TARJANIBHYAAM NAMAH
KLOOM SARVANANDMAYI MADHYMABHYAAM NAMAH
KLAIM ANAAMIKAABHYAAM NAMAH
KLAUM KANISHTKABHYAAM NAMAH
KLAH KARTAL KARPRISHTHAABHYAAM NAMAH




HRIDYAADI NYAAS

KLAAM HRIDYAAY NAMAH
KLEEM SHIRSE SWAHA
KLOOM SHIKHAYAI VASHAT
KLAIM KAVACHHAAY HUM
KLAUM NAITRTRYAAY VAUSHAT
KLAH ASTRAAY PHAT



After Nyas procedure, sadhak should chant 11 rounds of below mantra. Sadhak has to do chanting while looking on the flame of lamp. Sadhak can use crystal or Rudraksh rosary for chanting.




Mantra:-

।। OM KLEEM HREEM MADMAD MAADAY MAADAY AMUKAM VASHY VASHY HREEM KLEEM SWAHA ।।





Here original mantra given by me so
Sadhak should do this procedure for 11 days. In this manner, sadhna procedure is completed through which sadhak can take practical benefits many times. Whenever sadhak has to do vashikaran prayog, sadhak should keep any flower, water or any food item in front of him and chant 1 rounds of this mantra while looking at it. In mantra, use the name of person in the place of “AMUKAM”. Sadhak should give this consecrated article to that person. Whenever that person uses this article, sadhak’s desire is fulfilled.





Thanks