30 Sept 2015

सम्पर्क किजिये.(Contact Me)




किसी भी जानकारी को प्राप्त करने हेतु आप हमसे सम्पर्क करे और हमसे पुरा सहयोग प्राप्त करे.आपको मंत्र, तंत्र,यंत्र,अघोर,शाबर,गोम्पा ,सुलेमानी और दुर्लभ साधना हेतु मार्गदर्शन करेगे.आपकी समस्या पर चर्चा करेगे और समस्या निवारण हेतु कोई मार्ग निकालेगे.आपका जीवन अमूल्य है जिसे आप स्वयम मंत्रो के माध्यम से अद्वितीय बना सकते है। 

हमारे यहां किसी भी प्रकार का कोई भी गुरुदीक्षा नही दिया जाता है,इसलिए कृपया इस विषय पर बात ना करे । गुरु बनना कोई आसान कार्य नही है,गुरु वह होता है "जो जीवन मे अपना सर्व ज्ञान और सभी प्रकार का प्राप्त कियी हुई सिद्धि की शक्तियों को अपने शिष्य को प्रदान कर सके । आजकल ऐसे गुरु देखने भी नही मिलते है और मैं अभी भी इस लायक नही हु के किसी को गुरुदीक्षा दे सकू ।


मैंने भूतकाल और वर्तमान काल मे अब तक किसीको भी गुरुदीक्षा नही दिया है,भविष्यकाल में भी मेरे लिए गुरुदीक्षा देना संभव नही है ।

दुख,कष्ट,पीडा,रोग,मनमुटाव,दोष,बाधाये यह सब मनुष्य जीवन को खराब कर देते है,परंतु मित्रो मंत्र जाप के माध्यम से इन सब पर विजय प्राप्त करना आसान है जिसे समझाना हमारा कार्य है।

आपके प्रत्येक समस्या पर हम सोच-विचार करके जावाब देगे और जवाब प्राप्त करने में आपको समय का प्रतीक्षा करना पड़े तो इसके लिए क्षमस्व....










एक संस्कृत का श्लोक बताता हू-


विविध तंत्रमयं सचराचरम,सकल विश्वमिदं ननु तंत्र नुतं l

समुपहार मिदं मनुजां कृते प्रकृतिदत्त शुभं सुमनोहरम ll


अर्थ:यह समस्त चराचर जगत विविध तंत्र शक्ति से अनुप्राणीत है,यह विश्व ब्रम्हांड अनेकविध तंत्रो से आबद्ध है,अद्भुत विलक्षणता लिए हुए ये तंत्र मनुष्यो के लिये ईश्वर प्रदत्व शुभ ,सुखद तथा श्रेष्ठतम उपहार है.इन तंत्र के माध्यम से श्रेष्ठतम,सुंदर से सुंदरतम तथा अद्भुत व्यत्कित्व प्राप्त किया जा सकता है.

जिसने इस श्लोक को समझ लिया वह साधक श्रेष्ठ मंत्र और तंत्र का ग्याता बनता है क्युके उसका विश्वास बढता है.उसको तंत्र पर आस्था निर्मित करने हेतु यह उत्तम श्लोक है.


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आदेश.



29 Sept 2015

शिव मंत्र -इच्चापुर्ती साधना.

जो साधक मनोकामनाओं की पूर्ति करने के लिये भगवान शिव की साधना पूर्ण भक्ति भाव से करते हैं उन्हे इस साधना के द्वारा अनन्य लाभ की प्राप्ति होती है l जीवन में अनेक प्रकार की समस्यायें होती हैं। समाज के अलग-अलग वर्ग की अलग-अलग आवश्यकतायें होती हैं किन्तु जिस
प्रकार से भगवान शिव का परिवार सभी विरोधाभाषों को समेटे एक सम्पूर्णता का प्रतीक है उसी प्रकार की यह साधना जीवन की विभिन्न विरोधाभाषी स्थितियों का निदान करने में समर्थ हैं। उदाहरण के लिये परिवार का मुखिया विभिन्न जिम्मेदारियों के साथ आय प्राप्ति के लिये चिन्तित रहता हैं। पत्नी अपने अक्ष्क्षुण सौभाग्य की कामना करती है, किशोर आयु वर्ग के बालक-बालिकाओं
को विद्या प्राप्ति की समस्या होती हैं,वहीं युवा वर्ग के साथ विवाह की सुखद गृहस्थ जीवन, शत्रु नाश, राज्य सम्मानइत्यादि
स्थितियों का समाधान भी इसी से प्राप्त होता हैं।
भगवान शिव का स्वरुप शक्ति युक्त होने के कारण सर्वाधिक प्रभावशाली और साधक की मनोकामना को पूर्ण करने वाला हैं। इसी से जहॉ छोटे से छोटे गॉव में शिवालय की स्थापना मिलती है। उस शिवालय में कोई भी स्त्री गौरा- पार्वती की आराधना करके अपने जीवन की सफलता को प्राप्त कर सकती हैं। पुरुष यदि कामना करता हैं। कि उसका पुत्र भगवान श्री गणपति के समान बल बुद्धी से युक्त हो तो वहीं स्त्री की कामना रहती है कि उसका पुत्र कार्तिकेय जैसा सौन्दर्यवान और वीर हो। जहॉ शिव है वहीं शक्ति है ठीक उसी प्रकार जहॉ श्री गणपति हैं, वहीं लक्ष्मी है, जहॉ
श्री कार्तिकेय हैं, वहीं भगवती सरस्वती हैं, इसी से इस साधना को सम्पूर्ण साधना कहा गया हैं। भगवान शिव की साधना के लिये सामान्य रुप से निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है।

यथा :- (1) आसन (2) ताम्र-पात्र जल हेतु (3) गंगाजल (4) स्टी की प्लेट (5) रौली
(6) चावल (7) केसर (8) पुष्प व पुष्पमाला-6 (9) वेल-पत्र (10) पंच्चामृत (11) नारियल (12) यज्ञोपवीत (13) अबीर-गुलाल (14) अगरबत्ती (15) कपूर (16) घी का दीपक (17) नैवेद्य (18) पॉच प्रकार के फल (19) लौग-इलायची (20) ताम्बूल (21) चन्दन लाल व श्वेत (22) रुद्राक्ष
की माला।

इसके अलावा पंचपात्र, अध्र्यपात्र, घण्टी, इत्यादि की व्यवस्था भी रहनी चाहियें।

साधना विधि :- सर्वप्रथम स्नान कर शुद्ध सफेद धोती पहनकर पूर्व की ओर मुंह कर
आसन पर बैठ जाय, यदि सम्भव हो तो जोडे से बैठे जोडे में अपनी पत्नी को दाहिने हाथ की ओर आसन पर बैठाना चाहिये। इसके बाद अपनी चोटी में गॉठलगा लेनी चाहिये इसके बाद बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने पूरे
शरीर पर निम्न प्रोक्षण बोलते हुये अपने
शरीर पर जल छिडकना चाहिये , जिससे शरीर पवित्र हो जाय।

llअपवित्र पवित्रो वा सर्वावस्था गतोपिवा।
य: स्मेरत पुण्डरीकाक्षं स वाहृयाभ्यन्तर शुचि: ll

तत्पश्चात अपने सामने जल का कलश चावलों की ढेरी पर रख दें और कलश के चारों ओर रोली या केसर चन्दन से चारों दिशाओं में स्वास्तिक बना देना चाहिये और निम्न मंत्र पढ़तें हुयें कलश में जल भरें-

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती ।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले स्मिन सन्निध कुरु ।।
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्यास्सकरतस्तथा ।
आगच्छन्तु पवित्राणि पूजाकाले सदा मम।।

फिर उस कलश में स हाथ मे जल लेकर संकल्प करे -

ll ओम र्विष्णु र्विष्णु श्रीमद भगवतो मापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य
अद्य श्री ब्रहण: द्वितीय परार्धे श्वेतवाराह
कल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्ट र्विशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बुद्वीपे भारत वर्षे (अपने शहर का नाम ले) नगरे अमुक (माह का नाम )  मासे अमुक (दिन का नाम) वासरे मम (अपना नाम व -कामनाओं का नाम ले) अमुक (कामना बोलिये ) कामना सिद्यर्थे साधना करिष्ये।

हाथ मे लिया हुआ जल जमीन पर छोड दे



इसमें जिन जिन कार्यो की पूर्ति का विवरण दिया गया है या आपकी जो भी इच्छा है, उसका उच्चारण कर सकते हैं या मन में बोल सकते हैं।

सर्व प्रथम गणेश जी का पूजन करना चाहिये शिव परिवार में स्थापित गणेश जी सर्व प्रथम जन चढाना चाहिये तत्पश्चात केसर युक्त चन्दन का तिलक लगाना चाहिये नैवेद्य तथा फल अर्पण करके पुष्प चढ़ाना चाहियें और निम्न मन्त्र से गणेश जी का ध्यान करना चाहिये ।

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक: ।।
ध्रूमकेतुर्गणाध्यक्षो भाल चन्द्रो गजानन: ।
द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छाणुयादपि ।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्राम संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।

फिर शुद्ध जल में थोडा सा कच्चा दूध और गंगाजल मिलाकर "ओम नम: शिवाय" मन्त्र का उच्चारण करते हुये सभी शिव परिवार देवताओं पर पतली धार गभग दस मिनट तक जल चढाना चाहिये उसके बाद पंच्चामृत से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिये। तत्पश्चात सभी देवों के निम्न मन्त्र से केशर और कुंकुम का तिलक लगावें।

नमस्सुगन्धदेहाय हय्वन्ध्य फल दायिने ।
तुम्य गन्धं प्रदास्यामि चान्धकासुरभन्जन ।।

इसके पश्चात भगवान शिव पर और अन्य देवताओं पर अबीर, गुलाल और अक्षत तथा पुष्प और पुष्पमाला अर्पण करना चाहिये । अगरबत्ती और दीपक जला कर नैवेद्य तथा फल चढ़ाना चाहिये और श्रद्धायुक्त दोनों हाथ जोड़ कर निम्न स्तुति का पाठ करें।

वन्दे देव उमापति सुरगुरु वन्दे जगत्कारणम ।
वन्दे पन्नग भूषणा मृगधर वन्दे पशुनापतिम् ।।
वन्दे सूर्य शशांक वहि नयनं वन्दे मुकुन्द प्रियम ।
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिव शंकरम् ।।

इसके बाद रुद्राक्ष की माला से जप करना चाहिये रुद्राक्ष की माला के अलावा स्फटिक माला मूंगा की माला अपनी मनोकामना के अनुसार ली जाती हैं । लेकिन उक्त माला अभिमन्त्रित होनी चाहिये । अभिमन्त्रित माला से ही जप का पूर्ण लाभ प्राप्त होता हैं। जाप में कम से
कम ग्यारह मालाओं का जाप 11 दिनो तक करना आवश्यक है और मंत्र का जाप सोमवार से प्रारंभ करे ।

गोपनिय शिव मंत्र-

ll ओम ऐं साम्ब सदाशिवाय नम: ll

(om aim saamb sadaashivaay namah)

मंत्र जाप के बाद शिव जी की आरती करे और चढाया हुआ प्रसाद परिवार मे वितरित कर दे.


आदेश.

दत्तात्रेय मंत्र साधना.

श्री दत्तात्रेय याने अत्रि ऋषि और अनुसूया की तपस्या का प्रसाद ..." दत्तात्रेय " शब्द , दत्त + अत्रेय की संधि से बना है। त्रिदेवों द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद “ दत्त “ ... अर्थात दत्तात्रेय l दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे। भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था। श्री गुरुदेव दत्त , भक्त की इसी भक्ति से प्रसन्न होकर स्मरण करने समस्त विपदाओं से रक्षा करते हैं।औदुंबर अर्थात ‘ गूलर वृक्ष ‘ दत्तात्रय का सर्वाधिक पूज्यनीय रूप है,इसी वृक्ष मे दत्त तत्व अधिक है। भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है और तीनो ईश्वरीय शक्तियो से समाहित महाराज दत्तात्रेय की साधना अत्यंत ही सफ़ल और शीघ्र फ़ल देने वाली है। महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी,अवधूत,और दिगम्बर रहे थे ,वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले है l यदि मानसिक रूप से , कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जावे तो साधकों को शीघ्र ही प्रसन्न होते है l दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं और इसलिए उन्हें ' परब्रह्ममूर्ति सदगुरु ' और ' श्री गुरुदेव दत्त ' भी कहा जाता है। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है। विविध पुराणों और महाभारत में भी दत्तात्रेय की श्रेष्ठता का उल्लेख मिलता है। वे श्री हरि विष्णु का अवतार हैं। वे पालनकर्ता, त्राता और भक्त वत्सल हैं तो भक्ताभिमानी भी।

साधना विधि:-

गुरुवार और हर पूर्णिमा की शाम भगवान दत्त की उपासना में विशेष मंत्र का स्मरण बहुत ही शुभ माना गया है।इसलिये जितना ज्यादा मंत्र जाप कर सकते है करना चाहिये l मंत्र जाप से पूर्व शुद्धता का ध्यान विशेष रुप से रखिये और हो सके तो स्फटिक माला से रोज दोनो मंत्र का एक माला मंत्र जाप करे l


ध्यान-

" जटाधाराम पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम।
सर्व रोग हरं देव,दत्तात्रेयमहं भज॥"

दत्त गायत्री मंत्र-

ll ॐ दिगंबराय विद्महे योगीश्रारय् धीमही तन्नो दत: प्रचोदयात ll


तांत्रोत्क दत्तत्रेय मंत्र-

ll ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नम: ll

(om draam dattatreyaay namah)


दत्तात्रेय की उपासना ज्ञान, बुद्धि, बल प्रदान करने के साथ शत्रु बाधा दूर कर कार्य में सफलता और मनचाहे परिणामों को देने वाली मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय भक्त की पुकार पर शीघ्र प्रसन्न होकर किसी भी रूप में उसकी कामनापूर्ति या संकटनाश करते हैं।



आदेश.

28 Sept 2015

तांत्रोत्क धूमावती मंत्र साधना.

धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे |
सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयि: ||

“हे आदि शक्ति धूम्र रूपा माँ धूमावती आप पूर्णता के साथ सुमेधा और सत्य के युग्म मार्ग द्वारा साधक को सौभाग्य का दान करके सर्वदा अपनी असीम करुणा और ममता का परिचय देती हो....
आपके श्री चरणों में मेरा नमस्कार है |”

“धूम्रासपर्या कल्प पद्धति” से उद्धृत इस श्लोक से ही माँ धूमावती की असीमता और विराटता को हम सहज ही समझ
सकते हैं | बहुधा साधक जब जिज्ञासु की अवस्था में होता है तब वो भ्रांतियों का शिकार होता है,अब ऐसे में या तो वो मार्ग से भटककर पतित हो जाता है,या फिर सद्गुरु के श्री चरण कमलों का आश्रय लेकर सत्य से ना सिर्फ परिचित हो जाता है अपितु उस पर निर्बाध गति करते हुए अपने अभीष्ट लक्ष्य को भी प्राप्त कर लेता है | माँ धूमावती की साधना को जटिल और अहितकर या विनाशकारी क्यूँ मानते हैं” ?
माँ का कोई भी रूप अहितकर होता ही नहीं है ,महोदधि तन्त्र मैं कहा जाता है की देवी धूमावती महा विधा हर प्रकार की दरिद्रता नाश के लिए ,तन्त्र मंत्र , जादू टोना , बुरी नजर , भुत,प्रेत , सभी का समन के लिए भय से मुक्ति के लिए , सभी रोग शोक समाप्ति के लिए , अभय प्राप्ति के लिए , जीवन की सुरक्षा के लिए , तंत्र बांधा मुक्ति , शत्रु को जाड मूल से समाप्त करने के लिए धूमावती साधना वरदान है कलयुग में देवी धूमावती के बारे मैं कहा जाता है , यह जन्म से ले कर मृत्यु तक साधक की देख भाल करने वाली सातम महाविधा है , वेदों के काल की विवेचना से पता चलता है की महा प्रलय काल के समय ये मैजूद रहती है उन का रंग महा
प्रलय काल के बदलो जेसा ही है ,जब ब्रम्हांड की उम्र ख़त्म हो जाती है , काल समाप्त हो जाता है तो और स्वय महाकाल शिव भी अंतर्ध्यान हो जाते है ,तब भी माँ धूमावती आकेली खाड़ी रहती है,और
काल अन्तरिक्ष से परे काल की शक्ति को जताती है | उस समय न तो धरती, न ही सूरज , चाँद , सितारे , रहते है , रहता है .तो सिर्फ धुआं और राख, - वही चार्म ज्ञान है |, निराकार - न अच्छा , न बुरा , न शुद्ध , न अशुद्ध , न शुभ , न ही अशुभ धुएं के रूप में अकेली माँ धूमावती रह जाती है है , सभी उन का साथ छोड़ जाते है , एस लिए अल्प जानकारी रखने वाले , अशुभ मानते है l
धूमावती रहस्य तंत्र
यही उन का रहस्य है की वो वास्तविकता को दिखाती है , सदेव कडवी ,रुखी होती है है , एस लिए अशुभ लगती है , आपने साधको को सांसरिक बन्धनों ,से आजाद करती है , सांसरिक मोह माया से मुक्ति
विरक्ति दिलाती है , जिस से यह विरक्ति का भाव उन के साधको को अन्य लोगो से अलग थलग रखता है ,एकांत वश करने को प्रेरित करती है', महाविद्याओं का कोई भी रूप...फिर वो चाहे महाकाली हों,तारा हों या कमला हों...अपने आप में पूर्ण होता है | ये सभी उसी परा शक्ति आद्यशक्ति के ही तो विभिन्न रूप हैं,जब वो स्वयं अपनी कल्पना मात्र से इस सृष्टि का सृजन,पालन और संहार कर सकती हैं तो उसी परम पूर्ण के ये महाविद्या रुपी रूप कैसे अपूर्ण होंगे | इनमे भी तो निश्चित ही वही विशिष्टता होंगी ही ना |”
महाविद्याओं के पृथक पृथक १० रूपों को उनके जिन गुणों के कारण पूजा जाता है ,वास्तव में वो उन्हें सामान्य ना होने देने की गुप्तता ही है,जो पुरातन काल से सिद्धों और साधकों की परंपरा में चलती चली आई है | जब कोई साधक गुरु के संरक्षण में पूर्ण समर्पण के साथ साधना के लिए जाता है तो परीक्षा के बाद उसे इन शक्तियों की ब्रह्माण्डीयता से परिचित कराया जाता है और तब सभी कुंजियाँ उसके हाथ में सौंप दी जाती हैं और तभी उसे ज्ञात होता है की सभी महाविद्याएं सर्व गुणों से परिपूर्ण है और वे अपने साधक को सब कुछ देने का सामर्थ्य रखती हैं अर्थात यदि माँ कमला धन प्रदान करने वाली शक्ति के रूप में साध्य हैं तो उनके कई गोपनीय रूप शत्रु मर्दन और ज्ञान से आपूरित करने वाले भी हैं | अब ये तो गुरु पर निर्भर करता है की वो कब इन तथ्यों को अपने शिष्य को सौंपता है और ये शिष्य पर है की वो अपने समर्पण से कैसे सद्गुरु के ह्रदय
को जीतकर उनसे इन कुंजियों को प्राप्त करता है |
वास्तव में सत,रज और तम गुणों से युक्त ध्यान, दिशा, वस्त्र, काल और विधि पर ही उस शक्तियों के गुण परिवर्तन की क्रिया आधारित होती है | किसी भी महाविद्या को पूर्ण रूप से सिद्ध कर लेने के लिए साधक को एक अलग ही जीवन चर्या,आहार विहार और खान-पान का आश्रय लेना पड़ता है....किन्तु जहाँ मात्र उनकी कृपा प्राप्त करनी हो तो ये नियम थोड़े सरल हो जाते हैं और ये हम सब जानते हैं की विगलित कंठ से माँ को पुकारने पर वो आती ही हैं |
माँ धूमावती के साथ भी ऐसा ही है,जन सामान्य या सामान्य साधक उन्हें मात्र अलक्ष्मी और विनाश की देवी ही मानते हैं | किन्तु जिनकी प्रज्ञा का जागरण हुआ हो वो जानते हैं की आखिर इस महाविद्या का बाह्य परिवेश यदि इतना वृद्ध बनाया गया है तो क्या वो वृद्ध दादी या नानी माँ का परिवेश उन्ही वात्सल्यता से युक्त ना होगा | धूमावती सौभाग्यदात्री कल्प एक ऐसा ही प्रयोग है जिसे मात्र धूमावती दिवस,जयंती या किसी भी रविवार को एक दिन करने पर ही ना सिर्फ जीवन में पूर्ण अनुकूलता प्राप्त हो जाती है अपितु. .शत्रुओं से मुक्ति,आर्थिक उन्नति,कार्य क्षेत्र में सफलता, प्रभावकारी व्यक्तित्व और
कुण्डलिनी जागरण जैसे लाभ भी प्राप्त होते हैं |
विनाश और संहार के कथनों से परे ये गुण भी हम इन्ही की साधना से स्पष्ट रूप से देख सकते हैं | ये साधना रात्री में ही १० बजे के बाद की जाती है | स्नान कर बगैर तौलिए से शरीर पोछे ९ या तो वैसे ही शरीर को सुखा लिया जाये या धोती के ऊपर धारण किये जाने वाले अंग वस्त्र से हलके हल्के शरीर सुखा लिया जाये और साधना के निमित्त सफ़ेद वस्त्र या बहुत हल्का पीला वस्त्र धारण कर लिया
जाये | ऊपर का अंगवस्त्र भी सफ़ेद या हल्का पीला ही होगा..धोती और अंगवस्त्र के अतिरिक्त कोई अंतर्वस्त्र प्रयोग नहीं किया जाये | साधक-साधिका दोनों के लिए यही नियम है,महिला ऊपर साडी के रंग का ही ब्लाउज पहन सकती हैं | आसन
सफ़ेद होगा.. दिशा दक्षिण होगी | गुरु व गणपति पूजन के बाद एक पृथक बाजोट पर सफ़ेद वस्त्र बिछाकर एक लोहे या स्टील के पात्र में “धूं” का अंकन काजल से करके उसके ऊपर एक सुपारी स्थापित कर दी जाए और हाथ जोड़कर निम्न ध्यान मंत्र का ११ बार उच्चारण करे –

धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे |
सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयि: ||

इसके बाद उस सुपारी को माँ धूमावती का रूप मानते हुए,अक्षत,काजल,भस्म,काली मिर्च और तेल के दीपक से और उबाली हुयी उडद और फल का नैवेद्य द्वारा
उनका पूजन करे, तत्पश्चात उस पात्र के दाहिने अर्थात अपने बायीं और एक मिटटी या लोहे का छोटा पात्र स्थापित कर उसमे सफ़ेद तिलों की ढेरी बनाकर उसके ऊपर एक दूसरी सुपारी स्थापित करे,और
निम्न ध्यान मंत्र का ५ बार उच्चारण करते हुए माँ धूमावती के भैरव अघोर रूद्र का ध्यान करे –

त्रिपाद हस्त नयनं नीलांजनं चयोपमं,
शूलासि सूची हस्तं च घोर दंष्ट्राटट् हासिनम् ||

और उस सुपारी का पूजन,तिल,अक्षत,धूप-दीप तथा गुड़ से करे तथा काले तिल डालते हुए ‘ॐ अघोर रुद्राय नमः’ मंत्र का २१ बार उच्चारण करे | इसके बाद बाए
हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से निम्न मंत्र का ५ बार उच्चारण करते हुए पूरे शरीर पर छिडके –

धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी |
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ||
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके |
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ||
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः |
सौभाग्यमयतं प्राप्य जाते देवितुरं ययौ ||

इसके बाद जिस थाली में माँ धूमावती की स्थापना की थी,उस सुपारी को अक्षत और काली मिर्च मिलकर निम्न मंत्र की आवृत्ति ११ बार कीजिये अर्थात क्रम से हर मंत्र ११-११ बार बोलते हुए अक्षत मिश्रित काली मिर्च डालते रहे |

ॐ भद्रकाल्यै नमः
ॐ महाकाल्यै नमः
ॐ डमरूवाद्यकारिणीदेव्यै नमः
ॐ स्फारितनयनादेव्यै नमः
ॐ कटंकितहासिन्यै नमः
ॐ धूमावत्यै नमः
ॐ जगतकर्त्री नमः
ॐ शूर्पहस्तायै नमः

इसके बाद निम्न मंत्र का जप रुद्राक्ष माला से २१,५१ , १२५ माला करें, यथासंभव एक बार में ही ये जप हो सके तो अतिउत्तम,अब मंत्र जाप प्रारंभ करे.

मंत्र:-

ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट् ||

OM DHOOM DHOOM DHOOMAVATYAI PHAT ||

मंत्र जप के बाद मिटटी या लोहे के हवन कुंड में लकड़ी जलाकर १०८ बार घी व काली मिर्च के द्वारा आहुति डाल दें | आहुति के दौरान ही आपको आपके आस पास एक तीव्रता का अनुभव हो सकता है
और पूर्णाहुति के साथ अचानक मानो सब कुछ शांत हो जाता है...
इसके बाद आप पुनः स्नान कर ही सोने के लिए जाए और दुसरे दिन सुबह आप सभी सामग्री को बाजोट पर बीछे वस्त्र के साथ ही विसर्जित कर दें और जप माला को कम से कम २४ घंटे नमक मिश्रित जल में डुबाकर रखे और फिर साफ़ जल से धोकर और उसका पूजन कर अन्य कार्यों में प्रयोग करें | इस प्रयोग को करने पर स्वयं ही अनुभव हो जाएगा की आपने किया क्या है,कैसे परिस्थितियाँ आपके अनुकूल हो जाती है ये तो स्वयं अनुभव करने वाली
बात है....

देवी धूमावती को आज तक कोई योद्धा युद्ध में नहीं परास्त कर पाया, तभी देवी का कोई संगी नहीं हैं।


आदेश.

शाबर महाकाली मंत्र साधना.

यह साधना कलयुग मे कामधेनु की तरह है। जहा इस साधना से सभी इच्छाये पुर्ण होती है वही यह साधना सभी तरहा का
पीडा,कष्ट,दुख,भय ओर दुर्भाग्य से मुक्ती दिलाता है। इस साधना को संपन्न करने का एक और खास महत्व है यह सर्व सिद्धिदायनी साधना है। इस साधना से साधक को अन्य साधना मे भी सफलता
मिलती है। जीवन का गती थम गया हो तो उस साधक की गती मे बहोत सुधार आता है। साधक साधना तो हजारो करते है परन्तु ऐसी साधनाये नही कर पाते है क्यूकी गुरूकृपा प्राप्ती के बीना ये सम्भव
नही है। किसीको गुरु कहने से वह गुरु नही बन जाता है,अगर ऐसे ही किसीको गुरु बनाना संभव होता तो अंबानी को भी बाप बनाना आसान कार्य हो जाता और अंबानी का पुत्र बनने के बाद क्या जीवन मे कभी धन का कोई कमी होता? गुरु पूर्ण ह्रदय भाव से बनाना चाहिये गुरु दीक्षा लेनी चाहिये गुरु मंत्र का जप भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जिससे गुरु के आत्मा से जुड़ सके गुरु के प्राणो से जुड़ सके। गुरु कार्य करके गुरु की कृपा प्राप्त करना चहिये। यह सब कुछ साधना की सफलता है और
यही एक ऐसा कार्य होता है शिष्य के जीवन मे जिससे शिष्य आनंद का अनुभूति ले सकता हैं।
गुरु से दिक्षित होना साधारण सी बात है परन्तु गुरु की आज्ञा पूर्ण करना एक श्रेष्ठ साधना है और ऐसी साधनाये दुर्लभ मानी
जाती है क्युके गुरु आज्ञा पूर्ण करने के बाद
अपने शिष्य को चरणो से उठकर गले लगा लेता है और उसे अनुग्रह देता है। यह सब कुछ सच्ची गुरुसेवा का फल है जो प्रत्येक शिष्य को अपने गुरु से प्राप्त करना चाहिये। यहा बहोत साधक है जो कहते है हमने साधना संपन्न की परंतु हमे अनुभति नही हुवी "ऐसा क्यू मित्रो?"इस बात को समजिये,मंत्र देवता का आत्मा होता है और जब वह मंत्र गुरुमुख से प्राप्त हो जाये तो
उसमे गुरु की शक्ति भी जुड़ जाती है। वह मंत्र गुरु के आत्मा से भी जुड़ जाता है। इस क्रिया से साधक कभी भी किसी भी मंत्र मे असफल नही हो सकता है। परन्तु ऐसे कितने साधक है जिन्हे गुरुमुखी मंत्र प्राप्त होता हैं ?
यह साबर साधनाये है जिनमे " गुरु तत्व " का बहोत महत्व है.मै जब नाथ पंथ से जुड़ा था तब मैंने इस महत्वपूर्ण बात को समजा और गुरूजी के आज्ञा से ही अब तक इस क्षेत्र मे अनुभूतिया प्राप्त कर पाया हु,यह तो गुरु का महत्व है प्रत्येक साधनामे.

अब बात करते है साबर महाकाली मंत्र
की जो आपके जीवन मे सुधार लायेगी यह विधान बहोत ही सरल है और आसान है।

साधना विधि :-

कृष्ण पक्ष अष्टमी से साधना प्रारंभ करे.

१)आसन वस्त्र लाल रंग के हो
२)माला रुद्राक्ष की होनी चाहिये
३)दिशा दक्षिण
४)समय रात्रि ९ बजे बाद जो आपके लिए उपयोगी है
५)साधना 7 दिन का है
६)रोज 3 माला जाप करे
७)साधना के आखरी दिन हवन करे.

हवन सामग्री :-
===========
काले तिल,लौंग,काली मीर्च ,काले किशमिश,थोडासा चंदन पाऊडर और मधु

ये सब मिलाकर रात्रिमे हवन करे और हवन बाद के बाद एक अनार का बली दीजिये साधना मे महाकालीजी का चित्र और कलश स्थापना आवश्यक है,ये एक अनुष्ठान है 7 दीन कलश का नित्य पूजन करना ही है। इस साधना मे कलश को देवी स्वरुप मानकर अपनी कामनाये बोलनी है,

मंत्र :-

॥ ॐ कंकाली कंकाली,ॐ जन्म भुमि नासिका नदी तहा भये वीर हनुवन्त का
जन्म,कवने नक्षत्र,कवने वार?भादो महीना,मंगलवार,भरणी नक्षत्र,ज्ञान गुरु, पढना स्वामी अर्ध्द रोर चलै,निल चलै,अष्ट कुली नाग चलै,नव कोटि इच्छा चलै,पश्चात कष्ठ कलिका चलै,न चलै, तो माता अंजनी का दूध मिथ्या-मिथ्या,पुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ॥

यह साधना ज्यादा महत्वपूर्ण है और शीघ्र फल प्रदायक है.नवरात्री मे साधना प्रारंभ करनी हो तो प्रथम दिन से सप्तमी तक करे और हवन अष्टमी को करे.

माँ आप सभी का कल्याण करे.....




आदेश……………