18 Nov 2023

श्री ब्रह्मास्त्र मंत्र साधना



पौराणिक ग्रंथों से लेकर साइंस की रिसर्च तक में ब्रह्मास्त्र जिक्र मिलता है। साल 1945 में अमेरिका में ट्रिनिटी रिसर्च हुई थी जिसमें महाभारत के बारे में लिखा हुआ है। इस रिसर्च में माना गया है कि ब्रह्मास्त्र की वजह से ही इस युद्ध में तबाही मची थी। यह अस्त्र परमाणु बम से भी अधिक विनाशक था। 

पौराणिक ग्रंथों में ब्रह्मास्त्र का वर्णन किया गया है। इस अस्त्र को विनाशक और संहारक बताया गया है। ब्रह्मा जी ने ब्रह्मास्त्र का निर्माण किया गया था। वर्तमान समय में ब्रह्मास्त्र की तरह परमाणु बम है जो अपने लक्ष्य को पूरी तबाह कर देता है। 

ब्रह्मास्त्र ब्रह्मा द्वारा निर्मित एक अत्यन्त शक्तिशाली और संहारक अस्त्र है जिसका उल्लेख संस्कृत ग्रन्थों में कई स्थानों पर मिलता है। इसी के समान दो और अस्त्र है- ब्रह्मशीर्षास्त्र और ब्रह्माण्डास्त्र, किन्तु ये अस्त्र और भी शक्तिशाली है। 

यह दिव्यास्त्र परमपिता ब्रह्मा का सबसे मुख्य अस्त्र माना जाता है। एक बार इसके चलने पर विपक्षी प्रतिद्वन्दी के साथ साथ विश्व के बहुत बड़े भाग का विनाश हो जाता है। यदि एक ब्रह्मास्त्र भी शत्रु के खेमें पर छोड़ा जाए तो ना केवल वह उस खेमे को नष्ट करता है बल्कि उस पूरे क्षेत्र में १२ से भी अधिक वर्षों तक अकाल पड़ता है।

और यदि दो ब्रह्मास्त्र आपस में टकरा दिए जाएं तब तो मानो प्रलय ही हो जाता है। इससे समस्त पृथ्वी का विनाश हो जाएगा और इस प्रकार एक अन्य भूमण्डल और समस्त जीवधारियों की रचना करनी पड़ेगी।

महाभारत के युद्ध में दो ब्रह्मास्त्रों के टकराने की स्थिति तब आई जब ऋषि वेदव्यासजी के आश्रम में अश्वत्थामा और अर्जुन ने अपने-अपने ब्रह्मास्त्र चला दिए। तब वेदव्यासजी ने उस टकराव को टाला और अपने-अपने ब्रह्मास्त्रों को लौटा लेने को कहा।

अर्जुन को तो ब्रह्मास्त्र लौटाना आता था, लेकिन अश्वत्थामा ये नहीं जानता था और तब उस ब्रह्मास्त्र को उसने उत्तरा के गर्भ पर छोड़ दिया। उत्तरा के गर्भ में परीक्षित थे जिनकी रक्षा भगवान श्री कृष्ण ने की।


पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, रामायण और महाभारतकाल में सिर्फ कुछ योद्धाओं के पास ही ब्रह्मास्त्र था। रामायणकाल में विभीषण और लक्ष्मण ही इसका इस्तेमाल करना जानते थे जबकि महाभारतकाल में द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा,भगवान श्रीकृष्ण, कुवलाश्व, युधिष्ठिर, कर्ण, प्रद्युम्न और अर्जुन के पास इसको चलाने का ज्ञान था। 


साधनात्मक लाभ:-

  • ब्रह्मास्त्र अत्यन्त घातक एवं गुप्त मंत्र है। अतः इस अस्त्र का अधिकारी एक उच्च साधक ही हो सकता है। मूल मंत्र के विशेष संख्या में मंत्र सिद्ध कर लेने के पश्चात् एवं अति अनिवार्यता में ही ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना चाहिये । समर्थ गुरु की आज्ञा एवं संरक्षण अनिवार्य है।
  • ब्रह्मोपासक के समक्ष आते ही ग्रह, वेताल, चेटक, पिशाच, भूत, डाकिनी, शाकिनी, मातृकादि पलायन कर जाते हैं। ब्रह्ममंत्र से रक्षित मानव संसार के सभी भयों से मुक्त होकर राजा की तरह विचरण करता हुआ चिरकाल तक समस्त सुखों का भोग करता है।
  • ब्रह्माजी सृष्टि के रचियता कहे जाते हैं। सतयुग में ब्रह्मदेव की तपस्या के द्वारा तपस्वी अनेको वरदान एवं दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त करते थे। पुष्कर तीर्थ में ब्रह्मदेव की उपासना मुख्य रूप से की जाती है।
  • महानिर्वाणतंत्र में स्वयं शिव ने पार्वती से ब्रह्मदेव मंत्र की प्रशंसा करते हुए कहा है कि यह मंत्र सभी मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ है। इस मंत्र के द्वारा मानव धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति सहजता से कर सकता है। इस मंत्र में सिद्धि-असिद्धि चक्र का विचार नही किया जाता है। अरि-मित्रादि दोषों से पूर्णता मुक्त है।

विनियोग-

ॐ अस्य श्री परब्रह्ममंत्र, सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः, निर्गुण सर्वान्तर्यामी परम्ब्रह्मदेवता, चतुर्वर्गफल सिद्धयर्थे विनियोगः ।


ऋष्यादिन्यास-

सदाशिवाय ऋषये नमः शिरसि ।

अनुष्टुप् छंदसे नमः मुखे ।

सर्वान्तर्यामी निर्गुण परमब्रह्मणे देवतायै नमः हृदि ।

धर्मार्थकाममोक्षावाप्तये विनियोगः सर्वांगे ।


करन्यास

 ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः ।

सत् तर्जनीभ्यां स्वाहा ।

चित् मध्यमाभ्यां वषट्।

एकं अनामिकाभ्यां हुं ।

ब्रह्म कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ।

ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्


हृदयादिन्यास-

ॐ हृदयाय नमः ।

सत् शिर से स्वाहा ।

चित् शिखायै वषट्।

एकं कवचाय हुं।

ब्रह्म नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ सच्चिदेकं ब्रह्म अस्त्राय फट् ।


ध्यानम्

हृदयकमलमध्ये निर्विशेषं निरीहं, हरिहर विधिवेद्यं

योगिभिर्ध्यानगम्यम्। जननमरणभि भ्रंशि सच्चित्स्वरूपं, सकलभुवनबीजं ब्रह्म चैतन्यमीडे ।।


ब्रह्म मंत्र-

'ॐ नमो ब्रह्माय नमः । स्मरण मात्रेण प्रकटय प्रकटय, शीघ्रं आगच्छ आगच्छ, मम सर्वशत्रु नाशय नाशय, शत्रु सैन्यं नाशय नाशय, घातय घातय, मारय मारय हुं फट् ।'

विधि- ब्रह्मास्त्र मंत्र का पुरश्चरण 51000 जप का है। जपोपरान्त् विधिपूर्वक दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन तथा मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिये।

ब्रह्मास्त्र मंत्र का पुरश्चरण करते समय भक्ष्याभक्ष्य का विचार नहीं किया जाता है। काल शुद्धि तथा स्थान परिवर्तन का कोई नियम नहीं है। मुद्रा प्रदर्शित करना या ना करना, उपवास करके या बिना उपवास के, स्नान करके या बिना नहाये, स्वेच्छानुसार इस अमोघ मंत्र की साधना करें। अपने गुरु से दीक्षा लेकर ही इस विद्या का प्रयोग करना चाहिए |




आदेश......