जीवन की प्रत्येक क्रिया तन्त्रोक्त क्रिया है॰यह प्रकृति,यह तारा मण्डल,मनुष्य का संबंध,चरित्र,विचार,भावनाये सब कुछ तो तंत्र से ही चल रहा है;जिसे हम जीवन तंत्र कहेते है॰जीवन मे कोई घटना आपको सूचना देकर नहीं आता है,क्योके सामान्य व्यक्ति मे इतना अधिक सामर्थ्य नहीं होता है के वह काल के गति को पहेचान सके,भविष्य का उसको ज्ञान हो,समय चक्र उसके अधीन हो ये बाते संभव ही नहीं,इसलिये हमे तंत्र की शक्ति को समजना आवश्यक है यही इस ब्लॉग का उद्देश्य है.
13 Nov 2021
पहाड़िया मामा प्रत्यक्षीकरण साधना सिद्धी.
26 Oct 2021
दीपावली सम्पूर्ण लक्ष्मी पूजन एवं मंत्र विधान.
16 Oct 2021
पापांकुशा साधना.
23 Sept 2021
सिद्ध काला सिंदूर.(चौसठ योगिनी प्रदत्व)
स्थानीय लोगों के अनुसार पहले इस मंदिर में रात के समय तंत्र-मंत्र की शिक्षा दी जाती थी इस कारण से कोई इंसान आज भी रात में चौसठ योगिनी मंदिर में नहीं रहता है और इसी मंदिर से सिद्ध काला सिंदूर प्राप्त किया जा सकता है । पौराणिक कथा के अनुसार, देवी दुर्गा ने एक राक्षसो को मारने के लिए 64 देवताओं और देवी का रूप धारण कर लिया था, इसी कारण से इन चौसठ योगिनी मंदिरों, जिन्हें जोगिनियों के रूप में भी जाना जाता है इसलिए 64 मूर्ति के रूप में स्थापना की गई थी ।
16 Sept 2021
अघोरी मनसाराम साधना एवं अघोर गुरुमंत्र.
1 Sept 2021
पितृदोष निवारण शाबर मंत्र (pitru dosh nivaran shabar mantra)
हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं,जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं । इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं । भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं।
भारतीय संस्कृति के अनुसार प्रेत योनि के समकक्ष एक और योनि है जो एक प्रकार से प्रेत योनि ही है, लेकिन प्रेत योनि से थोड़ा विशिष्ट होने के कारण उसे प्रेत न कहकर पितृ योनि कहते हैं । प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों की मृतात्माएं पितृ योनि की आत्माएं कहलाती है । इसीलिए प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों को पितृ लोक की संज्ञा दी गयी है।
भारतीय ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है । अतः जब जन्मकुंडली में सूर्य या मंगल, पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण होता है । पितृ दोष वाली कुंडली में समझा जाता है कि जातक अपने पूर्व जन्म में भी पितृदोष से युक्त था । प्रारब्धवश वर्तमान समय में भी जातक पितृदोष से युक्त है ।
जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है । यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैं, बहुत खराब हो सकते हैं, मिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है । सब कुछ होते भी व्यक्ति दुखी होता है ।
इसका क्या कारण हो सकता है? कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब वह ज्योतिषीय सलाह लेता है । तब उसे पता चलता है कि उसकी कुण्डली में पितृ-दोष बन रहा है और इसी कारण वह परेशान है ।
बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में 14 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं । जिनमें पितृ दोष, मातृ दोष, भ्रातृ दोष, मातुल दोष, प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है । इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है, पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं । उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं :-
जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है. इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है ।
सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है.किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है ।
यदि समय रहते ही इस दोष के शाबर मंत्र का जाप कर लिया जाये तो पितृदोष से मुक्ति मिल सकती है। पितृदोष वाले जातक के जीवन में सामान्यतः निम्न प्रकार की घटनाएं या लक्षण दिखायी दे सकते हैं ।
1. यदि राजकीय/प्राइवेट सेवा में कार्यरत हैं तो उन्हें अपने अधिकारियों के कोप का सामना करना पड़ता है । व्यापार करते हैं, तो टैक्स आदि मुकदमे झेलने होंगे, सम्मान की बर्बादी होगी ।
2. मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है । पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता।
3. जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं।
4. जीवन के अंतिक समय में जातक का पिता बीमार रहता है या स्वयं को ऐसी बीमारी होती है जिसका पता नहीं चल पाता।
5. विवाह व शिक्षा में बाधाओं के साथ वैवाहिक जीवन अस्थिर सा बना रहता है।
6. वंश वृद्धि में अवरोध दिखायी पड़ते हैं। काफी प्रयास के बाद भी पुत्र/पुत्री का सुख नहीं होगा।
7. गर्भपात की स्थिति पैदा होती है।
8. अत्मबल में कमी रहती है। स्वयं निर्णय लेने में परेशानी होती है। वस्तुतः लोगों से अधिक सलाह लेनी पड़ती है।
9. परीक्षा एवं साक्षात्मार में असफलता मिलती है।
पितृदोष ऐसे भी पहचान सकते है:-
पेट के रोग, दिमागी रोग, पागलपन, खाजखुजली ,भूत -चुडैल का शरीर में प्रवेश, बिना बात के ही झूमना, नशे की आदत लगना, गलत स्त्रियों या पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनाकर विभिन्न प्रकार के रोग लगा लेना, शराब और शबाब के चक्कर में अपने को बरबाद कर लेना,लगातार टीवी और मनोरंजन के साधनों में अपना मन लगाकर बैठना, होरर शो देखने की आदत होना, भूत प्रेत और रूहानी ताकतों के लिये जादू या शमशानी काम करना, नेट पर बैठ कर बेकार की स्त्रियों और पुरुषों के साथ चैटिंग करना और दिमाग खराब करते रहना, कृत्रिम साधनो से अपने शरीर के सूर्य यानी वीर्य को झाडते रहना, शरीर के अन्दर अति कामुकता के चलते लगातार यौन सम्बन्धों को बनाते रहना और बाद में वीर्य के समाप्त होने पर या स्त्रियों में रज के खत्म होने पर टीबी तपेदिक फ़ेफ़डों की बीमारियां लगाकर जीवन को खत्म करने के उपाय करना, शरीर की नशें काटकर उनसे खून निकाल कर अपने खून रूपी मंगल को समाप्त कर जीवन को समाप्त करना, ड्र्ग लेने की आदत डाल लेना, नींद नही आना, शरीर में चींटियों के रेंगने का अहसास होना,गाली देने की आदत पड जाना,सडक पर गाडी आदि चलाते वक्त अपना पौरुष दिखाना या कलाबाजी दिखाने के चक्कर में शरीर को तोड लेना, जैसे गाडीबाजी,पहलवानी, शर्त लगाना ...आदि ।
पितृदोष निवारण शाबर मंत्र पितृदोष को समाप्त करने हेतु एक तीव्र प्रभावशाली मंत्र है,यह मंत्र गुरु गोरखनाथ जी का है और इस मंत्र को कई बार आजमाया गया है । इस मंत्र का असर शीघ्र देखने मिल जाता है,चाहे जीवन मे कितना भी भयंकर पितृदोष हो इस एक मंत्र से दोष समाप्त किया जा सकता है । इस मंत्र में साधक का पितृदोष स्वयं गुरु गोरखनाथ जी समाप्त करते है,अभी पितृपक्ष आनेवाला है और पितृपक्ष में जाप करे तो अच्छा फल मिलता है अन्यथा किसी भी अमावस्या से यह साधना की जा सकती है ।
यह साधना मात्र 3 दिनों की है, रोज इसमें 108 बार ही मंत्र जाप करना है,साधना का पूर्ण जानकारी व्हाट्सएप पर दिया जाएगा ।
पितृदोष निवारण शाबर मंत्र और पूर्ण विधि विधान सशुल्क है,इसमे 501 रुपये दक्षिणा ली जाएगी क्योके निशुल्क मंत्र और विधान का आज के समय मे किसीको भी महत्व नही रहा है ।
इसलिए जो साधक दक्षिणा देने में समर्थ हो वही साधक संपर्क करे,दक्षिणा की राशि हमारे प्यारे किसानो को लिये मदत हेतु इस्तेमाल होगी ।
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8421522368
आदेश......
8 Jun 2021
शोभना यक्षिणी शाबर मंत्र साधना.
कोरोना के वजह से मैंने ब्लॉग पर कोई आर्टिकल नही लिखा,आप सभी साधक साधिकाएं ठीक होंगे ऐसी आशा करता हु,माँ भगवती की कृपा से मैं भी ठीक हु। सम्पूर्ण जग में महामारी फैली हुई है और ऐसे समय मे ब्लॉग लिखना मुझे ठीक नही लगा परंतु अब यह महामारी कंट्रोल में है इसलिए आप सभी के लिए यह अदभुत साधना दे रहे है ।
यक्षिणी एक सौम्य और दैविक शक्ति होती है देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नम्बर आता है,हमारे भारतीय पौराणिक ग्रंथो में बहुत सारी प्रमुख रहस्यमयी जातियो का वर्णन मिलता है । जैसे कि देव गंधर्व ,यक्ष, अप्सराएं, पिशाच, किन्नर, वानर, रीझ, ,भल्ल, किरात, नाग आदि यक्षिणी भी इन रहस्यमय शक्तियो के अंतर्गत आती है । देवताओं के कोषाध्यक्ष महर्षि पुलस्त्य पौत्र विश्रवा पुत्र कुबेर भी यक्ष जाती के हैं । जैसे कि देवताओं के राजा इंद्र है वैसे ही यक्ष यक्षिणी का राजा कुबेर है,कुबेर को यक्षराज बोला जाता है यक्ष यक्षिणीया कुबेर के आधीन होती है।
कुछ साधको के मन शंकाऐं होती है कि यह किस रूप मे सिद्ध होती है? कुछ लोगों की धारणा यह सिर्फ प्रेमिका रूप में सिद्ध की जा सकती है,जो कि बिलकुल गलत है,साधक इच्छा अनुसार किसी भी रूप सिद्ध कर सकता है । इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है, यक्षिणियों की साधना अनेक रूपों में की जाती है, जैसे माँ, बहन, पत्नी अथवा प्रेमिका के रूप में इनकी साधना की जाती है ओर साधक जिस रूप में इनको साधता है ये उसी प्रकारका व्यवहार व परिणाम भी साधक को प्रदान करती हैं, माँ के रूप में साधने पर वह ममतामयी होकर साधक का सभी प्रकार से पुत्रवत पालन करती हैं तो बहन के रूप में साधने पर वह भावनामय होकर सहयोगात्मक होती हैं, ओर पत्नी या प्रेमिकाके रूप में साधने पर उस साधक को उनसे अनेक सुख तो प्राप्त हो सकते हैं किन्तु उसे अपनी पत्नी व संतान से दूर हो जाना पड़ता है । उड्डीश तंत्र में जिक्र मिलता है कि इस को किसी भी रूप मे सिद्ध किया जा सकता है ।
सर्वासां यक्षिणीना तु ध्यानं कुर्यात् समाहितः ।
भविनो मातृ पुत्री स्त्री रुपन्तुल्यं यथेप्सितम् ॥
तन्त्र साधक को अपनी इच्छा के अनुसार बहन , माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के समान मानकर यक्षिणियों के स्वरुप में साधना अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । कार्य में तनिक – सी भी असावधानी हो जाने से सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती ।
इस श्लोक से उपरोक्त बात स्पष्ट होती है कि आप इच्छा अनुसार, माता , पुत्रीव स्त्री ( पत्नी ) के रूप में सिद्ध कर सकते है ।
हमारे प्राचीन भारतीय ग्रंथो में बहुत सारे लोको का वर्णन मिलता है इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी देवता हैं जो इन लोकों में रहते हैं । पृथ्वी से इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है नजदीकि लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण कि यक्ष, अप्सरा, किन्नरी आदि की साधना जल्दी पूरी होती है, क्योंकि इनके लोक पृथ्वी से पास हैं।
साधनात्मक नियम
भोज्यं निरामिष चान्नं वर्ज्य ताम्बूल भक्षणम् ॥
उपविश्य जपादौ च प्रातः स्नात्वा न संस्पृशेत् ॥
यक्षिणी साधन में निरामिष अर्थात् मांस तथा पान का भोजन सर्वथा निषेध है अर्थात् वर्जित है । अपने नित्य कर्म में , प्रातः काल स्नान आदि करके ऊनी आसन पर बैठकर फिर किसी को स्पर्श न करें । न ही जप और पूजन के बीच में किसी से बात करें ।
नित्यकृत्यं च कृत्वा तु स्थाने निर्जनिके जपेत् ।
यावत् प्रत्यक्षतां यान्ति यक्षिण्यो वाञ्छितप्रदाः ॥
अपना नित्यकर्म करने के पश्चात् निर्जन स्थान में इसका जप करना चाहिए । तब तक जप करें , जब तक मनवांछित फल देने वाली ( यक्षिणी ) प्रत्यक्ष न हो । क्रम टूटने पर सिद्धि में बाधा पड़ती है । अतः इसे पूर्ण सावधानी तथा बिना किसी को बताए करें ।
शोभना यक्षिणी साधना-
आप इस साधना को घर पर ही सिद्ध कर सकते हैं यह जितनी सरल साधना उतनी ही प्रभावकारी भी हैं । शोभना यक्षिणी का रूप शांतिमय तेजस्विता से पूरण अत्यंत ही ख़ूबसूरत और यौवन आकर्षण से परिपूर्ण होती है। अगर वृद्धि व्यक्ति इस साधना करें एक युवक की तरह यौवनवान हो जाएगा । साधक काल के दिनो में साधक के शरीर जोश और चेहरे के उपर लालीमा और तेज आ जाता है । दिव्य आकर्षण शक्ति प्राप्त होती शत्रु के मन में आप के प्रति आदर भाव पैदा होता है अगर शादी शुदा हो पती पत्नी के रिश्ते में मधुरता आ जाती है । संसार में मान सम्मान की प्राप्ती होती है । साधना के दिनो में आप यह बदलाव महसूस करोगे । हर वह साधक जो साधना क्षेत्र में आगे नया है लेकिन तंत्र मंत्र साधना में आगे बढ़ना चाहता वह साधक शोभना से शुरुआत करनी चाहिए वैसे यह साधना हरेक के लिए है । प्रत्येक मनुष्य इस साधना को कर सकता है स्त्री पुरूष कर सकता है । अगर स्त्री करे तो अपार सुंदरता की प्राप्ती होती है।
साधना विधी – साधना में लाल आसन और लाल माला रक्त चंदन की लकड़ी की होनी चाहिए,साधक खुद लाल वस्त्र धारण करने चाहिए । साधना वाले कमरे को पहले अच्छे तरह से साफ करे दूध से धोकर इत्र का पोचा लगाए । लाला रंग के आसन पर गंगा जल छिटकाव करना चाहिए । फिर वातावरण को सुगंधित करने के लिए गूगल की धूप जलाए । यक्षिणी मंत्र का 1 माला जप करे 41 दिन तक करे । साधक को साधना के दिनो में यक्षिणी के दर्शन हो पास आकर बैठ जाए बोले नहीं देवी को दूर से प्रणाम करें बिना पने आसन से उठे जप करते रहें ।
मंत्र
।। ॐ नमो आदेश गुरु को जगमगाती नगरी अलकापुरी निवासिनी शोभना यक्षिणी आवो आवो जागृत होकर दर्शन दो मेरा इच्छीत कार्य सिध्द करो ना करो तो यक्षराज के सेज पर सजो ************ की दुहाई मेरी भक्ति गुरु की शक्ति फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा छू ।।
शोभना यक्षिणी साधक इच्छा अनुसार भोग विलास भी करती है ।
साधक त्रिकाल प्रदान करती है भूत भविष्य वर्तमान की जानकारी भी प्रदान करती है ।
ईस साधना से साधक को यौवन शक्ति और सौदर्य की प्राप्ति होती है जिससे के साधक स्त्री और पुरुष सभी आकर्षित रहते ।
यक्षिणी साधक संसार शोभा और मान सम्मान दिलाती है इस लिए इस को शोभना यक्षिणी कहते है ।
पूर्ण मंत्र प्राप्त करने हेतू संपर्क करे,यहां दिया हुआ अधूरा मंत्र व्हाट्सएप पर पूरा दिया जाएगा,गोपनीय मंत्र है इसलिए ऐसे ही ब्लॉग पर देना संभव नही है । मंत्र निःशुल्क दिया जाएगा और मार्गदर्शन भी किया जायेगा ।
मोबाईल और व्हाट्सएप नम्बर-8421522368
आदेश.....