सदगुरुजी ने जनवरी १९८६ के मासिक पत्रिका
मे कुछ आवश्यक बाते लिखी है ज्यो पदमावती साधना के विषय पर है और मैंने उन्ही बातों
पे ध्यान केन्द्रित किया,जिस दिन वह साधना पढ़ी
है उसी दिन से मानस मे एक बात तो ठान ली थी “जीवन मे पदमावती विग्रह बनाउगा”,इस विग्रह को मैंने ३-४
बार बनाया था परंतु मूजे विग्रह मे कोई विशेषताये महेसूस नहीं हुआ था,फिर एक दिन जैन मुनियो से मुजे चर्चा करनेका अवसर प्राप्त हुआ.......उन्होने
मुजे एक बात समजाया जब भी आप येसा कोई विग्रह बनाना चाहो तो प्याज एवं लहसुन का त्याग
कर देना फिर ज्यो विग्रह आप बनाओगे उसे हमारे पास प्राण-प्रतिष्ठा के लिए भेज देना,यह जैन मुनि मेरे लिये गुरुतुल्य ही है,इन्होने मुजे जीवन मे शुद्धता का अर्थ समजाया,आज इन मुनियोकी उम्र ७० साल से ज्यादा है,इनका सारा जीवन लोगो की सेवा मे ही गुजर रहा है,सदगुरुजी के आशीर्वाद से मुनियो ने मुजे पारद पदमावती जी का गोपनीय
मंत्र प्रदान किया,इसे ही मै
अपना सौभाग्य मानता हु और साथ मे यह आज्ञा प्रदान की “पारद पदमाती जी के मंत्र
का जाप अक्षय तृतीया के दिव्य अवसर पे शुरू करना है”........... इस आज्ञा
को प्राप्त करते ही मेरे पास कुछ साधकोने इस दुर्लभ विग्रह को प्राप्त करवाने
का आग्रह किया है.........मै भी यही कामना करता हु माँ भगवती से “येसा दुर्लभ विग्रह सभी
को प्राप्त हो और जीवन मे साधकोकी प्रत्येक इच्छा पूर्ण हो॰
मैंने अपने जीवन मे जीतने भी विग्रह बनाये
वो सारे के सारे चुनौती के साथ ही प्रदान किए है,हर
विग्रह पे चुनौती देता हु “अगर इस अमुक विग्रह से अमुक कार्य या अमुक साधना मे सिद्धि प्राप्त नहीं हुयी तो पूरे पैसे वापस......”आज फिर एक बार पारद पदमाती जी के विग्रह पर चुनौती दे रहा हु “ईस
विग्रह को स्थापित करने के बाद साधक के जीवन मे “धन का समस्या है या
कमी है” यह
शब्द नहीं रहेगा,आज ही साधक अपना साल भर
के कमाई का अंक मुजे बता दे और विग्रह स्थापित करने के बाद दुगनी धन वृद्धि नहीं हुयी
तो पैसा वापस,साधक का जीवन समृद्धमय
नहीं बना तो दुगने पैसे वापिस कर दुगा,प्रत्येक कार्य मे सफलता
मिलेगा,शायद ही येसा कोई जैन धर्म का कोई भाई/बहन
होगा ज्यो पद्मावती साधना न करे या पद्मावती मंत्र न जानता हो.......इसीलिए आज
जैन धर्म अधिक समृद्ध और व्यापारिक दृष्टि से पूर्ण है,जैन साधना से तुरंत चमत्कार और प्रभाव देखने मिलता है,और शीघ्र ही सिद्धि की अनुभूति होती है………..
मै तो गारंटी के साथ बोलता हु अगर साधक के
जीवन मे आर्थिक उन्नति नहीं हुआ तो विग्रह का पूर्ण न्यौच्छावर राशि वापस कर दुगा,पारद विग्रहो पे सिद्धिया प्राप्त की जाती है न की साधना कक्ष का
शोभा बढ़ाने के लिये कोई पारद विग्रह होता है....
मेरा स्वप्न पैसा कमाना नहीं है इसिलिये
मै इन विग्रह का राशि किश्तों मे भी स्वीकार करता हु भले ही मेरा नुकसान क्यू न हो?मै नहीं चाहता हु के मुजे लोग व्यापारी बोले ।