10 Nov 2019

पूर्व जन्मकृत पाप दोष शमन क्रियात्मक शक्तिपात




शमन का सीधा अर्थ है – समाप्त करना और समाप्त करना है उन दोषों को, जिन दोषों ने जीवन को जीर्ण शीर्ण कर दिया है। इस जीवन के अज्ञान का शमन हो अथवा पूर्व जन्म के दोषों का शमन हो, इसका एक मात्र उपाय है नाथ संप्रदाय से शमन दीक्षा प्राप्त करना। शमन दीक्षा एक ऐसी चिन्गारी है जो आपके जीवन में एक बार प्रज्वलित हो जाने पर अग्निशिखा बन पूरे देह मानस में व्याप्त हो जाती है, जब एक बार शमन की यह क्रिया प्रारम्भ हो जाती है तो पूरे दोषों को समाप्त कर देती है, इसके प्रभाव से इस जन्म के तो क्या पूर्व जन्म के दोष भी समाप्त हो जाते हैं। आप स्वयं अपने जीवन को नये रूप से स्पष्टतः देख सकते हैं, शमन दीक्षा जीवन की नयी शुरुआत है यहा तक तो यह भी कह सकते है कि आध्यत्मिक जीवन मे नया जन्म है ।

साधक तथा शिष्य नाथ सम्प्रदाय में इसी उद्देश्य से आते हैं, कि वे अपने-आप को पूर्ण समर्पित कर नाथ सम्प्रदाय के दिव्य ज्ञान एवं प्रभाव से अपने भीतर के विकारों का, अपने इस जन्म और पूर्वजन्म के दोषों का नाश कर दें। साधक तथा शिष्य अपना मार्ग स्वयं नहीं पहचान सकता, वह केवल आध्यात्मिक गुरु द्वारा बताये गये मार्ग पर चलना जानता है और जब वह सही मार्ग पर चलता है, तो उसे सिद्धि व सफलता अवश्य प्राप्त होती है।

प्रत्येक व्यक्ति ऐसा ही अनुभव कर रहा है कि इस संसार में उससे अधिक दुःखी, उससे अधिक तनावग्रस्त और उससे ज्यादा पीड़ित कोई अन्य है ही नहीं। ऐसा क्यों हो रहा है और क्यों सारी भौतिक सुविधाओं और उन्नति के बावजूद भी वह अपने-आप को असहाय और कटा हुआ अनुभव करता है, क्यों सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर व्यक्ति अपने अन्दर घुटन अनुभव कर रहा है, क्यों नहीं वह इस प्रकार से चैतन्य, आनन्दित और सुखी बन पा रहा है, जैसा बनना मानव जीवन का अर्थ कहा गया है।

इसका उत्तर व्यक्ति को भौतिक रूप से शायद नहीं मिल सकेगा, क्योंकि यह व्यक्ति के अन्तःपक्ष से जुड़ी समस्या है जिसका समाधान अध्यात्म से ही संभव है, और अध्यात्म में भी थोथी बातों व प्रवचनों से नहीं वरन् वास्तविक और यथार्थ रूप से।

वास्तव में प्रत्येक चिन्तनशील व्यक्ति इस बिन्दु पर आता ही है जब वह सोचता है या सोचने को बाध्य हो जाता है कि मैंने तो अपने जीवन में इतना परिश्रम किया, इतनी बुद्धि लगायी, सफलता के प्रत्येक फॉर्मूलों को अपनाया और अपनी क्षमता से कोई कसर तो नहीं छोड़ी, फिर भी मेरा जीवन बिखरा-बिखरा क्यों है, क्यों नहीं परिवार के साथ मेरा सामंजस्य बनता है, क्यों मुझे इतना मानसिक तनाव बना रहता है? इस प्रकार की अनेक बातों का हल प्राप्त करने के लिए दैव इच्छा पर ही अन्त नहीं कर देना चाहिए। जीवन इतनी सस्ती वस्तु नहीं है, जिसे हम किसी ‘किन्तु-परन्तु’ पर छोड़ दें।

गन्दगी पर कालीन डाल देने से दुर्गन्ध नहीं छिपती, इसी प्रकार अपने मानसिक तनाव, न्यूनताओं और अभावों पर ‘हरि इच्छा – प्रभु इच्छा’ का सुनहरा कालीन बिछा देने से सुगन्ध के झोंके प्रारम्भ नहीं हो जायेंगे, उल्टे जहां से दुर्गन्ध आ रही है, वह ढंकने पर और भी घनी हो जायेगी। इसका हल मिलेगा एक आध्यात्मिक यात्रा में और इस यात्रा का मार्ग है दीक्षाओं के स्वरूप में।

कदाचित यह बात कटु लग सकती है किन्तु व्यक्ति के जीवन के अधिकांश दुःखों का कारण उसके पूर्व जन्मकृत दोष ही होते हैं, जिनका शमन पूर्णरूप से नाथ सम्प्रदाय में दीक्षा द्वारा हो सकता है । जब तक जीवन मे पापों का मोचन और दोषों का शमन पूर्णरूप से नहीं हो जाता तब तक साधक में पूर्णता नहीं आ सकती।

पापमोचन का तात्पर्य है शरीर में स्थित विकारों का नाश। निवृत्ति तथा विकार का तात्पर्य है जीवन में जो दोष हैं, चाहे वे इस जीवन के हों अथवा पूर्व जीवन के, क्योंकि पूर्वजन्म में किये गये कृत्यों का प्रभाव भी इस जीवन पर पड़ता ही है ।

जो गृहस्थ साधक पूर्व जन्म कृत पाप दोष शमन क्रियात्मक शक्तिपात प्राप्त करना चाहते है उनको इस क्रिया से लाभान्वित किया जाएगा,यह क्रिया अपने आप मे एक दुर्लभ क्रिया है,इस क्रिया के माध्यम से आपके इहजन्म दोष एवं पूर्व जन्म दोष का शमन अवश्य ही होगा । इस क्रिया को संपन्न करने के बाद धीरे धीरे आप महसूस करेंगे कि आपके जीवन मे कई सारे बदलाव आरहे है,जैसे किसी भी कार्य मे आनेवाली बाधाएं कम हो जाएगी,शादी में आनेवाली अडचने दूर हो जाएगी । धन-धान्य-सुख-संपदा-ऐश्वर्य आपको प्राप्त होता रहेगा, दुखो का नाश होता रहेगा और सुख की प्राप्ति होती रहेगी,प्रेम प्रकरण में भी आपको सफलता मिलेगी और रिश्तों में सुधार आएगा । अध्यात्म से जुड़े हुये साधको को साधना में सफलता और सिद्धियां प्राप्त होती रहेंगी,मंत्र उच्चारण दोष में भी आपको नुकसान नही उठाना पड़ेगा ।



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