भुवनेश्वरी महाविद्या जयंती भद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती हैं जो कि दिनांक 10-09-2019 मंगलवार को मनाई जाएगी । भुवनेश्वरी देवी, दस महाविद्याओं में से एक है, जो चौथे स्थान में विराजित है,भुवनेश्वरी देवी के अवतार आदि शक्ति का रूप है, जो शक्ति का आधार है । इन्हें ओम शक्ति भी कहा जाता है,भुवनेश्वरी देवी को प्रकति की माँ माना जाता है, जो समस्त प्रकति को संभालती है । ये भगवान शिव की अभिव्यक्ति है, इन्हें सभी देवियों से कोमल एवं उज्जवल माना जाता है । भुवनेश्वरी देवी ने चंद्रमा को अपने माथे में सजाया हुआ है, और इसके श्वेत प्रकाश से वे समस्त धरती को प्रकाशमय करती है । इन्हें सभी देविओं में उत्तम माना जाता है, जिन्होंने समस्त धरती की रचना की और दानव शक्तियों को मार गिराया । जो इस देवी शक्ति की पूजा करता है, उसे शक्ति, बुद्धि और धन की प्राप्ति होती है ।
भुवनेश्वरी साधना:-
1. सब पहले आपके सामने देवी का कोई भी चित्र या यंत्र या मूर्ति हो। इनमेसे कुछ भी नही तो आपके रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे ।
2. घी का दीपक या तेल का दीपक या दोनों दीपक जलाये। धुप अगरबत्ती जलाये। बैठने के लिए आसन हो। जाप के लिए रुद्राक्ष माला या काली हकीक माला हो ।
3. एक आचमनी पात्र , जल पात्र रखे। हल्दी,कुंकुम,
चन्दन,अष्टगंध और अक्षत पुष्प ,नैवेद्य के लिए
मिठाई या दूध या कोई भी वस्तु ,फल भी एकत्रित करे। अगर यह सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे ।
चन्दन,अष्टगंध और अक्षत पुष्प ,नैवेद्य के लिए
मिठाई या दूध या कोई भी वस्तु ,फल भी एकत्रित करे। अगर यह सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे ।
4. सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं है तो भी गुरु स्मरण करे। गणेश का स्मरण करे-
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम:
क्रीं कालिकायै नमः
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम :
ॐ श्री गणेशाय नमः
ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नम:
क्रीं कालिकायै नमः
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम :
फिर आचमनी या चमच से चार बार बाए हाथ से दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए -
(अगर जल नहीं है तो मानसिक ग्रहण करे )
ह्रीं आत्मतत्वाय स्वाहा
ह्रीं विद्या तत्वाय स्वाहा
ह्रीं शिव तत्वाय स्वाहा
ह्रीं सर्व तत्वाय स्वाहा
ह्रीं विद्या तत्वाय स्वाहा
ह्रीं शिव तत्वाय स्वाहा
ह्रीं सर्व तत्वाय स्वाहा
उसके बाद पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे -(अगर पूजन सामग्री नहीं है तो मानसिक करे )
ॐ श्री गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः
उसके बाद अपने आसन का स्पर्श करे और पुष्प अक्षत अर्पण करे-
ॐ पृथ्वीव्यै नमः
अब तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे -
।।बॐ श्री दुर्गा भुवनेश्वरी सहित महाकाल्यै नमः आत्मानं रक्ष रक्ष ।।
अब जल के पात्र को गंध लगाकर अक्षत पुष्प अर्पण करे-
।। ॐ कलश मण्डलाय नमः ।।
।। ॐ कलश मण्डलाय नमः ।।
अब दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प करे -
"मन में यह बोले की मैं (अपना नाम और गोत्र ) भुवनेश्वरी जयंती (or भुवनेश्वरी पुंजन) पर् भगवती भुवनेश्वरी की कृपा प्राप्त होने हेतु तथा अपनी समस्या निवारण हेतु या अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु यथा शक्ति साधना कर रहा हूँ " और जल को जमीन पर छोड़े ।
अब गणेशजी का ध्यान करे -
वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
ॐ श्री गणेशाय नमः का 11 या 21 बार जाप करे ।
फिर भैरव जी का स्मरण करे -
।।ॐ भं भैरवाय नमः।।
भगवती भुवनेश्वरी पूजन-
अब आप भगवती भुवनेश्वरी जी का ध्यान का जो मंत्र है उसे पढे और उनका आवाहन करे-
ध्यान मंत्र :-
उदत दिन द्युतिम इंदुं किरिटां तुंगकुचां नयनत्रययुक्ताम ।
स्मेरमुखीं वरदांकुश पाशाभितिकरां प्रभजे भुवनेशीम ।।
स्मेरमुखीं वरदांकुश पाशाभितिकरां प्रभजे भुवनेशीम ।।
ह्रीम भुवनेश्वर्यै नम: माँ भगवती राजराजेश्वरी भुवनेश्वरी आवाहयामि मम पूजा स्थाने मम हृदये स्थापयामि पूजयामि नम: ।।
अब आवाहनादि मुद्राये आती हो तो प्रदर्शित करे-
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: आवाहिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: संस्थापिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सन्निधापिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सन्निरुद्धा भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सम्मुखी भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: अवगुंठिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: वरदो भव सुप्रसन्नो भव ।
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: संस्थापिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सन्निधापिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सन्निरुद्धा भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सम्मुखी भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: अवगुंठिता भव
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: वरदो भव सुप्रसन्नो भव ।
फिर भुवनेश्वरी देवी का पंचोपचार पूजन करे-
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: गंधं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: पुष्पं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: धूपं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: दीपं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: नैवेद्यं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: तांबूलं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सर्वोपचारार्थे पुन: गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: पुष्पं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: धूपं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: दीपं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: नैवेद्यं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: तांबूलं समर्पयामि
ह्रीं भुवनेश्वर्यै नम: सर्वोपचारार्थे पुन: गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
इसके बाद अगर आवरण पूजन करना हो तो करे या फिर नीचे दिये हुये भुवनेश्वरी खडगमाला स्तोत्र का पाठ करे और भगवती भुवनेश्वरी के साथ चलनेवाली समस्त आवरण देवताओं के पुजन हेतु पुष्पाक्षत अर्पण करे,खडगमाला के पाठ से आवरण देवताओं का पूजन अपने आप होता है ।
श्री भुवनेश्वरी खडगमाला स्तोत्र :-
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं भुवनेश्वरी - हृदयदेवि- शिरोदेवि- शिखादेवि- कवचदेवि -नेत्रदेवि - अस्त्रदेवि - कराले विकराले उमे सरस्वती श्री दुर्गे उषे लक्ष्मि श्रूति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कांति आर्ये श्री भुवनेश्वरी - दिव्यौघ गुरुरुपिणी - सिद्धौघ गुरुरुपिणी - मानवौघ गुरुरुपिणी - श्री गुरु रुपिणी - परम गुरु रुपिणी - परात्पर गुरु रुपिणी - पारमेष्ठी गुरु रुपिणी - अमृतभैरव सहित श्री भुवनेश्वरी - हृदय शक्ति - शिर शक्ति - शिखा शक्ति - कवच शक्ति - नेत्र शक्ति - अस्त्र शक्ति - हृल्लेखे गगने रक्ते करालिके महोच्छुष्मे - सर्वानंदमय चक्रस्वामिनी !
गायत्रीसहित ब्रम्हमयि - सावित्रीसहित विष्णुमयि - सरस्वतीसहित रुद्रमयि - लक्ष्मीसहित कुबेरमयि - रतिसहित काममयि - पुष्टिसहित विघ्नराजमयि - शंखनिधि सहित वसुधामयि - पद्मनिधि सहित वसुमतिमयि - गायत्र्यादिसह श्री भुवनेश्वरी ! ह्रां हृदयदेवि - ह्रीं शिरोदेवि - ह्रैं कवचदेवि - ह्रौं नेत्रदेवि - ह्र: अस्त्रदेवि - सर्वसिद्धप्रदचक्रस्वामिनि !
अनंगकुसुमे - अनंगकुसुमातुरे - अनंगमदने - अनंगमदनातुरे - भुवनपाले - गगनवेगे - शशिरेखे - अनंगवेगे - सर्वरोगहर चक्रस्वामिनि !
कराले विकराले उमे सरस्वति श्री दुर्गे उषे लक्ष्मी श्रूति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कांति आर्ये सर्वसंक्षोभणचक्रस्वामिनि !
ब्राम्हि माहेश्वरी कौमारि वैष्णवी वाराही इंद्राणी चामुंडे महालक्ष्म्ये - अनंगरुपे - अनंगकुसुमे - अनंगमदनातुरे - भुवनवेगे - भुवनपालिके - सर्वशिशिरे - अनंगमदने - अनंगमेखले - सर्वाशापरिपूरक चक्रस्वामिनि !
इंद्रमयि - अग्निमयि - यममयि- नैर्ऋतमयि - वरुणमयि - वायुमयि - सोममयि - ईशानमयि - ब्रम्हमयि- अनंतमयि - वज्रमयि - शक्तिमयि - दंडमयि - खडगमयि- पाशमयि - अंकुशमयि - गदामयि- त्रिशूलमयि - पद्ममयि - चक्रमयि - वरमयि - अंकुशमयि - पाशमयि - अभयमयि - बटुकमयि- योगिनिमयि - क्षेत्रपालमयि - गणपतिमयि - अष्टवसुमयि - द्वादशआदित्य मयि - एकादशरुद्रमयि - सर्वभूतमयि - अमृतेश्वरसहित भुवनेश्वरी - त्रैलोक्यमोहन चक्रस्वामिनि - नमस्ते नमस्ते नमस्ते स्वाहा श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ ।।
गायत्रीसहित ब्रम्हमयि - सावित्रीसहित विष्णुमयि - सरस्वतीसहित रुद्रमयि - लक्ष्मीसहित कुबेरमयि - रतिसहित काममयि - पुष्टिसहित विघ्नराजमयि - शंखनिधि सहित वसुधामयि - पद्मनिधि सहित वसुमतिमयि - गायत्र्यादिसह श्री भुवनेश्वरी ! ह्रां हृदयदेवि - ह्रीं शिरोदेवि - ह्रैं कवचदेवि - ह्रौं नेत्रदेवि - ह्र: अस्त्रदेवि - सर्वसिद्धप्रदचक्रस्वामिनि !
अनंगकुसुमे - अनंगकुसुमातुरे - अनंगमदने - अनंगमदनातुरे - भुवनपाले - गगनवेगे - शशिरेखे - अनंगवेगे - सर्वरोगहर चक्रस्वामिनि !
कराले विकराले उमे सरस्वति श्री दुर्गे उषे लक्ष्मी श्रूति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कांति आर्ये सर्वसंक्षोभणचक्रस्वामिनि !
ब्राम्हि माहेश्वरी कौमारि वैष्णवी वाराही इंद्राणी चामुंडे महालक्ष्म्ये - अनंगरुपे - अनंगकुसुमे - अनंगमदनातुरे - भुवनवेगे - भुवनपालिके - सर्वशिशिरे - अनंगमदने - अनंगमेखले - सर्वाशापरिपूरक चक्रस्वामिनि !
इंद्रमयि - अग्निमयि - यममयि- नैर्ऋतमयि - वरुणमयि - वायुमयि - सोममयि - ईशानमयि - ब्रम्हमयि- अनंतमयि - वज्रमयि - शक्तिमयि - दंडमयि - खडगमयि- पाशमयि - अंकुशमयि - गदामयि- त्रिशूलमयि - पद्ममयि - चक्रमयि - वरमयि - अंकुशमयि - पाशमयि - अभयमयि - बटुकमयि- योगिनिमयि - क्षेत्रपालमयि - गणपतिमयि - अष्टवसुमयि - द्वादशआदित्य मयि - एकादशरुद्रमयि - सर्वभूतमयि - अमृतेश्वरसहित भुवनेश्वरी - त्रैलोक्यमोहन चक्रस्वामिनि - नमस्ते नमस्ते नमस्ते स्वाहा श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ ।।
मंत्र :-
।। ॐ ह्रीम नम: ।।
फिर मंत्र जाप भगवती को समर्पित करे और एक आचमनी जल मे कुंकुम या अष्टगंध मिलाकर भगवती को अर्घ्य दे "ह्रीं भुवनेश्वर्यै विद्महे रत्नेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवि प्रचोदयात् "
फिर आप अपनी बाधा समस्या का स्मरण करे या कोइ समस्या नही है तो फिर कोइ समस्या बाधा घर मे ना आये ऐसा स्मरण कर एक निंबु काटे,फिर उस निंबु को पानी बहा दे या मिट्टी मे गाडे या ऐसी कोइ सुविधा ना हो तो कचरे मे डाले । अगर आप निंबु ना काटे तो भी चलेगा इसकी जगह नारियल भी फोड सकते है ।
यह बहुत संक्षिप्त पूजन है , इस साधना से घर मे कोइ नकारात्मक बाधा नही होगी , रोग नही आयेंगे ,शत्रू बाधा या काम मे कोइ रुकावट आ रही है तो वो दूर होगी ,भगवती दुर्गा महाकाली एवं भुवनेश्वरी की कृपा से जीवन मे कोइ किसी प्रकार की नकारात्मक बाधा नही होगी । पुजन के बाद माँ से मन ही मन क्षमा प्रार्थना भी अवश्य करे ।
"जय जय माँ भुवनेश्वरी"
आदेश......