यह अत्यंत उग्र साधना है और शीघ्र फलप्रद है,इस साधना से सिद्धि न मिले यह तो सम्भव ही नहीं है इसलिये यह साधना संपन्न करने योग्य है । यह साधना जिस व्यक्ति को सिद्ध है उसके पास कोई भी जाये तो वह साधक उसका भूत, भविष्य-वर्तमान सहज ही बता देता है.
इस तरहा के वचन मांग ले।
कर्णपिशाचिनी साधना प्रारम्भ करने से पुर्व मेरी सलाह है कि वह किसी योग्य गुरु निर्देश मे ही इस साधना को सम्पन्न करेँ।
कर्णपिशाचिनी के नाम से कौन सा साधक अपरिचित है।इस पिशाचिनी के नाम से कितने धारवाहिक बन चुके है।पिशाचिनी अपार धन दौलत के साथ साथ शोहरत दिलाने मे बदनाम है।आज तक जितने भी साधक कर्णपिशाचिनी साधना कि है वह असफल नही हुए है।इसके एक कारण है कर्णपिशाचिनी का जितने भी मंत्र है वह स्वयं सिद्ध है।इसको सिर्फ जाप करके जाग्रत करना होता है।जिस तरहा भुत प्रेत हमको वचन देने पर वह हमरे गुलाम बन जाते है ।साधक जो आदेश देता उसको पुर्ण करना ही उनको पडता है,क्योँ की साधक के वह गुलाम है।कर्ण पिशाचिनी साधना आवश्य करे और इसका लाभ उठाए किन्तु खुद कर्णपिशाचिनी का मालिक बन कर।
साधना पुर्ण होने पर जब कर्णपिशाचिनी आपके हाथ पर अपना हाथ रख कर तीन वचन ले तो आप हा कर दिजिए।इसके बाद आप वचन मांगना ना भुले।आपको बोलना है मे आप से कुछ मांगना चाहता हु, वह बोलेगी माँगो क्या मांगना चाहते हो।आपको कहना है वचन दो, जब वो वचन दे तब मांगे।
प्रथम वरदान-मै जब भी तुमसे कुछ माँगु वह ईच्छा तुरन्त पुरी कर देना।
दुसरा वरदान-मेरे मर्जी के बिना खुद कुछ भी नही कारोगी।
तीसरा वरदान-जब मेँ तुमे प्रकट होने के लिए पुकारु तुम शिघ्र मेरे सामने प्रकट हो जाना।
साधना सामग्री:-काली हकीक माला,शमशान की राख़,काला आसान एवं वस्त्र,एक अनार,लाल रंग के पुष्प।
साधना विधि:-
इस साधना मे सिर्फ देवी कर्ण
मे वर्तमानकाल और
भूतकाल बताती है॰
विनियोग-
अस्य श्रीकर्णपिशाचिनी पिप्लाद ऋषी: निचृछन्द: कर्णपिशाचिनीदेवता
अभीष्टसिध्यर्थे मंत्र जपे विनियोग:॥
षङंग न्यास-
ॐ हृदयाय नम:
ॐ शिरसे स्वाहा
ॐ कर्णपिशाचिनी शिखायै वषट
ॐ कर्ण मे कवचाय हूं
ॐ कथय नेत्रत्रयाय वौषट
ॐ स्वाहा अस्त्राय फट
मंत्र-
॥ ॐ ह्रीं कर्णपिशाचिनी कर्ण मे कथय स्वाहा ॥
इस साधना मे सिद्धि मिलती है सिर्फ आवश्यकता है
तो मन के एकाग्रता का,आप तो जानते
ही हो कुछ साधक चुप-चुपके साधना करते है और फिर उन्हे कुछ अनुभूतिया ना हो तो मेरे
ही सर पे असफलता का घड़ा फोड़ देते है,येसे साधको के वजेसे
मै बदनाम नहीं होना चाहता हु......इसलिये आप साधना से पुर्व मुझे सुचित करना ना भुलीये ।
Karnpishacini (past-future tense hearing Silence)
It is extremely fierce and quick productive practice, the accomplishment of this practice because it is not possible to never have to practice is thriving. This practice has proven that the person have any of his past, when the seeker, future-present naturally conveys.
My advice is to start pre Karnpishacini practice that he directed a qualified teacher in the practice Confirm concluded.
There is a reason all the mantra of Karnpishacini Hakisko proven itself to be awake by just chanting for which we phantom Trha incurred on an undertaking that he Ksadk Hmre become slaves to the commands it absolutely has to them, Essential spiritual seeker to show cause as to the slave Hakkarn vampire and take advantage of it but Karnpishacini Owning own.
Silence is absolutely the Karnpishacini put my hand on your hand three promise you Dijia.iske ha Bhulekapako not ask you to say the word out to ask you something Hu, he will speak to solicit afford to ask what Promise says, when asked if she promised.
The first blessing, I instantly whenever you desire something that Maagu be completed.
Another boon-nothing Karogi own without my consent.
Third for gift-when I appear Tume Pukaru Instantly you get out in front of me.
The Trha borrow the word.
Silence Material: -kali Hkik Rosary Cemeteries of the ashes, black simple and textiles, a pomegranate, red
The flower color.
Silence mode: -
In practice only in the present tense and past tense tells Karna Goddess.
This is required only if there is proof in practice of concentration of the mind, you already know some meditators practice and then they sneak up, if not some Anubhutia failure on my head to give the pitcher is bursting, Yese of devotees I do not want to discredit Vjese to practice pre-hu ...... so you do not have to inform me Bhuliye.
आदेश............................