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7 Nov 2015

सूर्य शाबर मंत्र.

वैदिक और पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान श्री सूर्य समस्त जीव-जगत के आत्मस्वरूप हैं। ये ही अखिल सृष्टि के आदि कारण हैं। इन्हीं से सब
की उत्पत्ति हुई है। पौराणिक सन्दर्भ में सूर्यदेव की उत्पत्ति के अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। यद्यपि उनमें वर्णित घटनाक्रमों में अन्तर है, किन्तु कई प्रसंग परस्पर मिलते-जुलते हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। वे महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। अदिति के पुत्र होने के कारण ही उनका एक नाम आदित्य हुआ। पैतृक नाम के आधार पर वे काश्यप प्रसिद्ध हुए। संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है- एक बार दैत्य-दानवों ने मिलकर देवताओं को पराजित कर दिया। देवता घोर संकट में पड़कर इधर-उधर भटकने लगे। देव-माता अदिति इस हार से दु:खी होकर भगवान सूर्य की उपासना करने लगीं। भगवान सूर्य प्रसन्न होकर अदिति के समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने अदिति से कहा- देवि! तुम चिन्ता का त्याग कर दो। मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा तथा अपने हज़ारवें अंश से तुम्हारे उदर से प्रकट होकर तेरे पुत्रों की रक्षा करूँगा।' इतना कहकर भगवान सूर्य अन्तर्धान हो गये।

कुछ समय के उपरान्त देवी अदिति गर्भवती हुईं। संतान के प्रति मोह और मंगल-कामना से अदिति अनेक प्रकार के व्रत-उपवास करने लगीं। महर्षि कश्यप ने कहा- 'अदिति! तुम गर्भवती हो, तुम्हें अपने
शरीर को सुखी और पुष्ट रखना चाहिये, परन्तु यह तुम्हारा कैसा विवेक है कि तुम व्रत-उपवास के द्वारा अपने गर्भाण्ड को ही नष्ट करने पर तुली हो। अदिति ने कहा- 'स्वामी! आप चिन्ता न करें। मेरा गर्भ साक्षात सूर्य शक्ति का प्रसाद है। यह सदा
अविनाशी है।' समय आने पर अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का प्राकट्य हुआ और बाद में वे देवताओं के नायक बने। उन्होंने देवशत्रु असुरों का संहार किया। भगवान सूर्य के परिवार की विस्तृत कथा भविष्य पुराण , मत्स्य पुराण , पद्म पुराण , ब्रह्म पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा साम्बपुराण में वर्णित है। ब्रह्मा, विष्णु , महेश आदि देवगणों का बिना साधना एवं भगवत्कृपा के प्रत्यक्ष दर्शन होना सम्भव नहीं है। शास्त्र के आज्ञानुसार केवल भावना के द्वारा ही ध्यान और समाधि में उनका अनुभव हो पाता है, किन्तु भगवान सूर्य नित्य सबको
प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। इसलिये प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की नित्य उपासना करनी
चाहिये।

ज्योतिष में सर्वाधिक शक्तिशाली ग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त सूर्य की महिमा जगविदित है । नवें भाव एवम् पिता का कारक सूर्य कुंडली में जरा भी बिगङा हो तो इन दोनो भावों तहस नहस कर डालता है । एक रोचक बात पर ध्यान दे कि मंगल और सूर्य प्रधान व्यक्ति दोनों गुस्सेल प्रकृति के होते है लेकिन जहाँ मंगल प्रधान को निरीह पर क्रोध आता है वही सूर्य प्रधान व्यक्ति को निरीह को सताते देखकर गुस्सा आता है । सूर्य के बिगङने की स्थिति में मोटापा और ह्रदय रोग और रक्तचाप की शिकायत हो जाती है । इससे ज्यादा ज्योतिष के जलवे क्या होंगे कि रक्तचाप बिगङने पर जहाँ चिकित्सक नमक कम करने की सलाह देता है वही हम ज्योतिषी रविवार को व्रत करने और बिना नमक का एक समय खाना खाने की सलाह देते है । पिता के साथ संबंध सूर्य की स्थिति पर निर्भर करते है । मेष राशि में उच्च का सूर्य करिश्मा कर देता है वही नीच का या विपरीत सूर्य जीवन को कभी एक स्तर ऊपर नही उठने देता । सूर्य शनि से बिगङता है , दोनों की एक दूसरे पर गलत स्थानों से दृष्टि हो तो जीवन में उठा पटक रूकने का नाम नही लेती । शनि के अंतर सूर्य या सूर्य के अन्तर्गत शनि की अन्तर्दशा परेशानी पैदा करती है ।


यहा आज मै सूर्य शाबर मंत्र दे रहा हू जिसका लाभ साधक उठा सकते है,इस मंत्र के जाप का समय सवेरे 7 से 7:30 के बीच मे ही करना उपयुक्त है l मंत्र जाप का संख्या सिर्फ 15 मंत्र जिसमे आपको 10 मिनिट लगेगा और मंत्र साधना रविवार से शुरू करना है अन्य दिनो पर नही l





सूर्य शाबर मंत्र:-

ll ओम गुरूजी दीत दीत महादीत।दूत सिमरू दसो द्वार।घट मे राखे घेघट पार
तो गुरू पावूं दीतवार।दीतवार कश्यप
गोत्र,रक्त वर्ण जाप सात हजार कलिंग देश मध्य स्थान वर्तुलाकार मंडल १२ अंगुल सिंह राशि के गुरू को नमस्कार।सत फिरे
तो वाचा फिरे,पीन फूल वासना सिंहासन
धरे, तो इतरो काम दीतवार जी महाराज
करेओम फट् स्वाहा








आदेश.......