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6 Nov 2015

कालभैरव सवारी (शाबर मंत्र विद्या).

आज मै आपको "कालभैरव" भगवान का सवारी शरीर मे बुलाने का गोपनीय विधी बता रहा हू,जो तंत्र के साथ शाबर मंत्र से नाथमुखी प्राप्त विधान है l सवारी आपको तो पता ही होगा क्युके आप लोग अक्सर ये देखते होगे कुछ लोगो मे भैरव का सवारी हनुमान का सवारी महाकाली जी का सवारी आता है और सवारी आने पर "भगत" (जिस इंसान मे सवारी आता है उसको भगत कहा जाता है ) को जो कुछ पुछा जाये वह उसका सटिक जवाब देता है साथ मे सभी कष्ट, पिडा, बाधा, रोग, समस्याओ से मुक्ती दिलवाता है l

आप भी सवारी को अपने शरीर मे बुलाकर जनकल्याण कर सकते है और येसा मत सोचिये के जनकल्याण करेगे तो घर का आर्थिक स्थिति कैसे मजबुत होगा ? आप थोडा ध्यान दे क्युके सुशील नरोले आपको गलत सलाह नही देगा,जब आप जनकल्याण करेगे तो लोगो का भला होगा और जब लोगो का भला होगा तो वही लोग आपको कई रुपया दान मे देगे l किसिसे रुपया माँगना गलत है परंतु दान प्राप्त करना गलत नही है मित्रो,येसा होता तो आप उन लोगो को देखिये जिनमे सवारी आता है l



भैरव को भगवान शंकर का ही अवतार माना गया है, शिव महापुराण में बताया गया है-

"भैरवः पूर्णरूपो हि शंकरः परात्मनः।
मूढ़ास्ते वै न जानन्ति मोहिता शिवमायया।"


‘तंत्रालोक’ में भैरव शब्द की उत्पत्ति भैभीमादिभिः अवतीति भैरेव अर्थात् भीमादि भीषण साधनों से रक्षा करने वाला भैरव है, ‘रुद्रयामल तंत्र’ में दस महाविद्याओं के साथ भैरव के दस रूपों का वर्णन है और कहा गया है कि कोई भी महाविद्या तब तक सिद्ध नहीं होती जब तक उनसे सम्बन्धित भैरव की सिद्धि न कर ली जाय।

भगवान भैरव की साधना वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए भैरव साधना की जाती है। भैरव साधना से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। जन्म कुण्डली में छठा भाव शत्रु का भाव होता है। लग्न में षट भाव भी शत्रु का है। इस भाव के अधिपति, भाव में स्थित ग्रह और उनकी दृष्टि से शत्रु सम्बन्धी कष्ट उत्पन्न होते हैं। षष्ठस्थ-षष्ठेश सम्बन्धियों को शत्रु बनाता है। यह शत्रुता कई कारणें से हो सकती है। आपकी प्रगति कभी-कभी दूसरों को.अच्छी नहीं लगती और आपकी प्रगति को प्रभावित करने के लिए तांत्रिक क्रियाओं का सहारा लेकर आपको प्रभावित करते हैं।

तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव से व्यवसाय, धंधे में आशानुरूप प्रगति नहीं होती। दिया हुआ रुपया नहीं लौटता, रोग या विघ्न से आप पीड़ित रहते हैं अथवा बेकार के मुकद्मेबाजी में धन और समय की बर्बादी हो सकती है। इस प्रकार के शत्रु बाधा निवारण के लिए भैरव साधना फलदायी मानी गई।

नौकरी, व्यापार, जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि आप चाह कर भी किसी को अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाते। ऐसे कई लोग हैं जिनको इस बात का दुःख होता है कि जीवन में उन्हें ‘चांस’ नहीं मिला। अक्सर लोग इस बात को कहते हैं कि – उसे अपनी बात कहने का अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ, इसलिये काम नहीं हुआ। जीवन में आने वाले अवसरों अर्थात् ‘चांस’ को सुअवसर में बदलने के लिये सम्पन्न करें भगवान भैरव का यह अति विशिष्ट प्रयोग है । जिसको सम्पन्न करने के पश्चात् आप जिस किसी को भी अपनी बात को उसके सामने स्पष्ट करना चाहते हैं कर सकते हैं। यह प्रयोग बालक-वृद्ध, स्त्री-पुरुष किसी पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। भगवान भैरव का शाबर तंत्र प्रयोग कोई टोटका नहीं बल्कि शुद्ध तंत्र प्रयोग है जिसका प्रभाव तत्काल रूप से देखा जा सकता है।



‘रुद्रयामल तंत्र’ के अनुसार दस महाविद्याएं और सम्बन्धित भैरव के नाम इस प्रकार हैं-
1. कालिका – महाकाल भैरव
2. त्रिपुर सुन्दरी – ललितेश्वर भैरव
3. तारा – अक्षभ्य भैरव
4. छिन्नमस्ता – विकराल भैरव
5. भुवनेश्वरी – महादेव भैरव
6. धूमावती – काल भैरव
7. कमला – नारायण भैरव
8. भैरवी – बटुक भैरव
9. मातंगी – मतंग भैरव
10. बगलामुखी – मृत्युंजय भैरव



भैरव से सम्बन्धित कई साधनाएं प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित हैं, जैन ग्रंथों में भी भैरव के विशिष्ट प्रयोग दिये हैं। प्राचीनकाल से अब तक लगभग सभी,ग्रंथों में एक स्वर से यह स्वीकार किया गया है कि जब तक साधक भैरव साधना सम्पन्न नहीं कर लेता, तब तक उसे अन्य साधनाओं में प्रवेश करने का अधिकार ही नहीं प्राप्त होता।'शिव पुराण’ में भैरव को शिव का ही अवतार माना है तो ‘विष्णु पुराण’ में बताया गया है कि विष्णु के अंश ही भैरव के रूप में विश्व विख्यात हैं, दुर्गा सप्तशती के पाठ के प्रारम्भ और अंत में भी भैरव की उपासना आवश्यक और महत्वपूर्ण मानी जाती है।




भैरव साधना के बारे में लोगों के मानस में काफी भ्रम और भय है, परन्तु यह साधना अत्यन्त ही सरल, सौम्य और सुखदायक है, इस प्रकार की साधना को कोई भी साधक कर सकता है। भैरव साधना के बारे में कुछ मूलभूत तथ्य साधक को जान लेने चाहिये-

1. भैरव साधना सकाम्य साधना है, अतः कामना के साथ ही इस प्रकार की साधना की जानी चाहिए।
2. भैरव साधना मुख्यतः रात्रि में ही सम्पन्न की जाती है।
3. कुछ विशिष्ट वाममार्गी तांत्रिक प्रयोग में ही भैरव को सुरा का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
4. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य साधना के अनुरूप बदलता रहता है। मुख्य रूप से भैरव को रविवार को दूध की खीर, सोमवार को मोदक (लड्डू), मंगलवार को घी-गुड़ से बनी हुई लापसी, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू,शुक्रवार को भुने हुए चने तथा शनिवार को उड़द के बने हुए पकौड़े का नैवेद्य लगाते हैं, इसके अतिरिक्त जलेबी, सेव, तले हुए पापड़ आदिका नैवेद्य लगाते हैं।


देवताओं ने भैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की भांति रौद्र होने के कारण ही आप ‘कालराज’ हैं, भीषण होने से आप ‘भैरव’ हैं, मृत्यु भी आप से भयभीत रहती है, अतः आप काल भैरव हैं, दुष्टात्माओं का मर्दन करने में आप सक्षम हैं, इसलिए आपको ‘आमर्दक’ कहा गया है, आप समर्थ हैं और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं।




साधना के लिए आवश्यक:-


ऊपर लिखे गये नियमों के अलावा कुछ अन्य नियमों की जानकारी साधक के लिए आवश्यक है, जिनका पालन किये बिना भैरव साधना पूरी नहीं हो पाती।

1. भैरव की पूजा में अर्पित नैवेद्य प्रसाद को उसी स्थान पर पूजा के कुछ समय बाद ग्रहण करना चाहिए, इसे पूजा स्थान से बाहर नहीं ले जाया जा सकता, सम्पूर्ण प्रसाद उसी समय पूर्ण कर देना चाहिए।
2. भैरव साधना में केवल तेल के दीपक का ही प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त गुग्गुल, धूप-अगरबत्ती जलाई जाती है।
3. इस महत्वपूर्ण साधना हेतु ‘चित्र’ आवश्यक है, भैरव चित्र को स्थापित कर साधना क्रम प्रारम्भ करना चाहिए।
4. भैरव साधना में केवल ‘काली हकीक
माला’ का ही प्रयोग किया जाता है।



यह प्रयोग किसी भी रविवार, मंगलवार अथवा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सम्पन्न किया जा सकता है। भैरव साधना मुख्यतः रात्रि काल में ही सम्पन्न की जाती है परन्तु इस प्रयोग को आप अपनी सुविधानुसार दिन में भी सम्पन्न कर सकते हैं। साधना काल में साधक स्नान कर स्वच्छ लाल वस्त्र धारण कर, दक्षिणाभिमुख होकर बैठ जाए। अपने सामने एक बाजोट पर सर्वप्रथम गीली मिट्टी की ढेरी बनाकर उस पर ‘काल भैरव कंगण’ स्थापित करें। उसके चारों ओर तिल की आठ ढेरियां बना लें तथा प्रत्येक पर एक- एक सुपारी स्थापित करें। बाजोट पर तेल का दीपक प्रज्वलित करें तथा गुग्गल धूप तथा अगरबत्ती जला दें।



सर्वप्रथम निम्न मंत्र बोलकर भैरव का आह्वान करें –

आह्वान मंत्र:-
आयाहि भगवन् रुद्रो भैरवः भैरवीपते।
प्रसन्नोभव देवेश नमस्तुभ्यं कृपानिधि॥


भैरव आह्वान के पश्चात् साधक भैरव
का ध्यान करते हुए अपने शरीर मे सवारी प्राप्त करने हेतु कालभैरव से प्रार्थना करें तथा हाथ में जल लेकर निम्न संकल्प करें-



संकल्प:-
मैं अपने शरीर मे "कालभैरवजी" का सवारी प्राप्त करने हेतु काल भैरव प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं।
जल को जमीन पर छोड दिजिये और दीये हुए शाबर मंत्र का इमानदारी से जाप करे l



मंत्र:-
ll जय काली कंकाली महाकाली के पुत कालभैरव,हुक्म है-हाजिर रहे,मेरा कहा काज तुरंत करे,काला-भैरव किल-किल करके चली आयी सवारी,इसी पल इसी घडी यही भगत मे रुके,ना रुके तो दुहाई काली माई की, दुहाई कामरू कामाक्षा की,गुरू गोरखनाथ बाबा की आण,छु वाचापुरी ll



मै यहा कितना मंत्र जाप करना है? और कितने दिन करना है? मंत्र सिद्धी के बाद सवारी को कैसे शरीर मे बुलाना है ? इसके बारे मे यहा पर नही लिख रहा क्युके यह साधना अच्छे लोगो को प्राप्त होना जरुरी है lगलत लोगो के हाथ मे लग जाये तो वो लोग शरीर मे सवारी बुलाकर लोगो को लुटना शुरू कर देगे जिससे जनसमाज का भारी नुकसान होगा,जिसका कारण सुशील नरोले नही बनना चाहेगा l


"कालभैरव कंगण"

अब बात करते है "कालभैरव कंगण" जो अष्टधातु से निर्मित है और जिसका निर्माण वही कर सकता है जो कालभैरव का भगत हो जिसमे सवारी आता हो क्युके सवारी बुलाने से ज्यादा किसिके देने से जल्दी आता है l जैसे आप अगर उन लोगो से पूछे जिनमे सवारी आता है तो वो लोग आपको बता देगे के "उनको दैविय कृपा से या फिर उनके घर के किसी पुराने सदस्य से उनको सवारी मिला है",जब किसिको सवारी छोडना होता है तो वह व्यक्ती अपना सवारी किसिको भी देवता का आग्या लेकर दे सकता है,इसलिये प्रत्येक व्यक्ती मे सवारी नही आता है l इस कंगण से सवारी जल्दी आता है,नही तो आप कुछ लोगो को देखिये उनको सवारी तो आता है परंतु आने मे 4-5 घंटा लगता है और उसमे भी 5-10 मिनिट के लिये आता है l यह कंगण सवारी मे आये हुए कालभैरव भगवान से आग्या लेकर बनवाया जाता है ताकी आपको पूर्ण सफलता मिले l अमवस्या/पूर्णिमा को सवारी मे बहोत शक्ती होता है और उसी समय उसी दिन निर्मित किया हुआ कंगण उनके सामने रखकर उनको कंगण से "सवारी मिले और रक्षा हेतु प्रार्थना करके" उपयोग मे लाया जाता है l येसे कंगण मे बहोत शक्ती होता है और सवारी बुलाने से पहिले कंगण का पुजन करके फिर उसको हाथ मे धारण करके 11 बार मंत्र जाप करे तो सवारी आता है,यही सवारी प्राप्त करने का विधान सफलता हेतु प्राप्त है और अब तक येसा विधान आपको कही प्राप्त नही हुआ होगा क्युके यह गोपनियता पूर्वजो से प्राप्त ग्यान का आशीर्वाद है जिसे मैने आपके सामने आज रख दिया है l येसे दिव्य कंगण को हम 2150/- रुपये के मूल्य पर आपको उपलब्ध करवा रहे है जो बहोत कम मूल्य है येसे दुर्लभ वस्तु का,जो आपको कही नही मिलेगा l जो साधक कंगण प्राप्त करना चाहते है वह हमसे सम्पर्क करे और अपना डिटेल भेजे ताकी आपके नसीब मे अगर सवारी आना हो,तो ही आपको कंगण दिया जायेगा अन्यथा हम कंगण नही दे सकते l डिटेल भेजने हेतु आपको अपना पुरा नाम,पता और अपना नया फोटो हमारे amannikhil011@gmail.com इस ई-मेल आई.डि.पर भेजना है l जल्द ही आपको जवाब दिया जायेगा और हो सकता है आपको रिप्लाइ प्राप्त होने मे 7 दिन का समय लगे परंतु आपको रिप्लाइ जरुर प्राप्त होगा l





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