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6 Dec 2020

दुर्लभ इंद्रजाल विद्या




प्राचीनकाल में इस विद्या के कारण भी भारत को विश्व में पहचाना जाता था। देश-विदेश से लोग यह विद्या सिखने आते थे। आज पश्‍चिम देशों में तरह-तरह की जादू-विद्या लोकप्रिय है तो इसका कारण है भारत का ज्ञान।

जादू अनंतकाल से किया जाने वाला सम्मोहन भरा प्रदर्शन है, जिसका उपयोग पश्चिमी धर्मों व सम्प्रदायों के प्रचारक अशिक्षित लोगों को डराकर, सम्मोहित कर या छलपूर्ण तरीके से उन्हें अपना आज्ञाकारी अनुयायी बनाने के लिए किया करते थे। 

माना जाता है कि गुरु दत्तात्रे भी इन्द्रजाल के जनक थे। चाणक्‍य ने अपने अर्थशास्‍त्र में एक बड़ा भाग विद्या पर लिखा है। सोमेश्‍वर के मानसोल्‍लास में भी इन्द्रजाल का उल्लेख मिलता है। उड़ीसा के राजा प्रताप रुद्रदेव ने 'कौतुक चिंतामणि' नाम से एक ग्रंथ लिखा है जिसमें इसी तरह की विद्याओं के बारे में उल्लेख मिलता है। बाजार में कौतुक रत्‍नभांडागार, आसाम और बंगाल का जादू, मिस्र का जादू, यूनान का जादू नाम से कई किताबें मिल जाएगी, लेकिन सभी किताबें इन्द्रजाल से ही प्रेरित हैं।


इन्द्रजाल विद्या क्या है ?

जैसे कि इसके नाम में ही इसका रहस्य छुपा हुआ है। देवताओं के राजा इंद्र को छली या चकमा देने वाला माना गया है बस इन्द्रजाल का मतलब भी यही होता है। रावण इस विद्या को जानता था,रावण के दस सिर होने की चर्चा रामायण में आती है। वह अपने दुश्मनों के लिए इन्द्रजाल बिछा देता था,जिससे कि दुश्मन भ्रमित होकर उसके जाल में फंस जाता था। राक्षस मायावी थे और वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे,दरअसल आजकल इसे जादूगरों की विद्या माना जाता है परंतु यह सम्मोहन की एक असली किताब है ।

इन्द्रजाल जैसी विद्या चकमा देने की विद्या है। आजकल भी भाषा में इसे भ्रमजाल कह सकते हैं। खासकर अपने प्रति‍द्वंद्वियों को कैसे भरमाया जाए और उनके इरादों को कैसे नीचा दिखाया जाए। इसके लिए जो उपाय किए जाते, वे इन्द्रजाल के उपाय कहे गए और इस विद्या के कर्ता को ऐंद्रजालिक कहते हैं। अर्थात जो व्यक्ति भ्रमजालों का प्रदर्शन करता है प्राचीनकाल में ऐंद्रजालिक और वर्तमान युग में एक जादूगर कहलाता है।

दरअसल इन्द्रजाल के अंतर्गत कुछ भी हो सकता है, जिससे आपकी आंखें, दिल और दिमाग धोखा खा जाए वह इन्द्रजाल है। आप किसी पर मोहित हो जाओ और उसकी तरीफ करने लगो और उसके प्यार में पागल हो जाओ वह भी इन्द्रजाल है।

इन्द्रजाल के अंतर्गत मंत्र, तंत्र, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, नाना प्रकार के कौतुक, प्रकाश एवं रंगादि के प्रयोजनीय वस्तुओं के आश्चर्यजनक खेल, तामाशे आदि सभी का प्रयोग किया जाता है। इन्द्रजाल से संबंधित कई किताबें बाजार में प्रचलित है। उन्हीं में से एक किताब मेरे पास भी है,उसका नाम भी "इंद्रजाल है जो 936 पन्नो की है" और उस किताब में प्रकाशक ने यह कहा था कि "अगर किताब पसंद ना आये तो मुझे 8 दिन में वापिस कर दो",प्रकाशक की प्रामाणिकता को देखकर मैंने वह किताब खरीदी ।

इस किताब के कुछ प्रयोग मैंने करके देखे है जिससे मुझे सफलता मिला है,इस किताब से मैंने 14 यंत्रो का अब तक उपयोग किया जो मुझे कारगर लगे है । साधक का विश्वास और उसकी मेहनत हमेशा उसको सफलता दिलाती है,इसलिए अगर प्राचीन ज्ञान प्राप्त हो जाये तो सफलता मिलने की संभावनाये बढ़ जाती है । शायद आज यह किताब मार्केट में मिलती होगी,मुझे इसके बारे में आज के समय मे ज्यादा पता नही क्योके मैंने किताब शायद 12 वर्ष पूर्व खरीदी थी तब यह 201 रुपये में मिलती थी,उसके बाद यह किताब मैंने मुंबई में देखी थी तब उसकी कीमत 300 रुपये थी ।

यह किताब मैं आप सभी को उपलब्ध करवाना चाहता हु,यह किताब आपको telegram app पर भेजा जाएगा क्योके इस किताब को whatsapp पर नही भेज सकते है,यह किताब 100mb से ज्यादा है ।

मै पिछले 10 वर्षों से किसानो के मदत हेतु एक संस्था चला रहा हु,इस वर्ष बहोत सारे किसानों की फसल खराब हो गयी क्योके इस वर्ष ज्यादा बारिश के कारण सोयाबीन का फसल खराब हो गया । इस किताब को मै आपको 201 रुपये में ही उपलब्ध करवा रहा हु और यह आपकी न्यौछावर राशि 201 रुपया किसानों के मदत हेतु उपयोग में लाये जाएंगे ।



किताब को कैसे प्राप्त करे ?

आप paytm से या फिर bank account में 201/-रुपये न्यौछावर राशि देकर पेमेंट की डिटेल्स व्हाट्सएप पर या फिर टेलीग्राम पर भेजिए,उसके बाद आपको यह इंद्रजाल की 936 पन्नो की किताब टेलीग्राम पे भेज दी जाएगी ।

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किताब के कुछ पन्ने इस आर्टिकल में दे रहा हु-










आदेश.....


28 Sept 2020

माँ भुवनेश्वरी महाविद्या



महाविद्याओं में चतुर्थ स्थान पर विद्यमान देवी भुवनेश्वरी’, त्रिभुवन (ब्रह्माण्ड) पालन एवं उत्पत्ति कर्ता।देवी भुवनेश्वरी,देवी भुवनेश्वरी, दस महाविद्याओं में चौंथीं महा-शक्ति, तीनों लोकों या त्रि-भुवन (स्वर्ग, विश्व, पाताल) की ईश्वरी।


सम्पूर्ण जगत या तीनों लोकों की ईश्वरी देवी भुवनेश्वरी नाम की महा-शक्ति हैं तथा महाविद्याओं में इन्हें चौथा स्थान प्राप्त हैं। अपने नाम के अनुसार देवी त्रि-भुवन या तीनों लोकों के ईश्वरी या स्वामिनी हैं, देवी साक्षात सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण करती हैं। सम्पूर्ण जगत के पालन पोषण का दाईत्व इन्हीं 'भुवनेश्वरी देवी' पर हैं, परिणामस्वरूप ये जगन-माता तथा जगत-धात्री के नाम से भी विख्यात हैं। पंच तत्व १. आकाश, २. वायु ३. पृथ्वी ४. अग्नि ५. जल, जिनसे इस सम्पूर्ण चराचर जगत के प्रत्येक जीवित तथा अजीवित तत्व का निर्माण होता हैं, वह सब इन्हीं देवी की शक्तियों द्वारा संचालित होती हैं। पञ्च तत्वों को इन्हीं, देवी भुवनेश्वरी ने निर्मित किया हैं, देवी कि इच्छानुसार ही चराचर ब्रह्माण्ड (तीनों लोकों) के समस्त तत्वों का निर्माण होता हैं। प्रकृति से सम्बंधित होने के कारण देवी की तुलना मूल प्रकृति से भी की जाती हैं। आद्या शक्ति, भुवनेश्वरी स्वरूप में भगवान शिव के समस्त लीला विलास की सहचरी हैं, सखी हैं। देवी नियंत्रक भी हैं तथा भूल करने वालों के लिए दंड का विधान भी तय करती हैं, इनके भुजा में व्याप्त अंकुश, नियंत्रक का प्रतीक हैं। जो विश्व को वमन करने हेतु वामा, शिवमय होने से ज्येष्ठा तथा कर्म नियंत्रक, जीवों को दण्डित करने के कारण रौद्री, प्रकृति का निरूपण करने से मूल-प्रकृति कही जाती हैं। भगवान शिव के वाम भाग को देवी भुवनेश्वरी के रूप में जाना जाता हैं तथा सदा शिव के सर्वेश्वर होने की योग्यता इन्हीं के संग होने से प्राप्त हैं।


पञ्च तत्वों की अधिष्ठात्री हैं देवी भुवनेश्वरी।
संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त समस्त जीवित तथा अजीवित वस्तुओं का निर्माण मूल पञ्च तत्वों से ही होता हैं। १. आकाश, २. वायु ३. पृथ्वी ४. अग्नि ५. जल, मूल-तत्व हैं जिनसे समस्त दिखने वाली तत्वों का निर्माण होता हैं। देवता, राक्षस, वेद, प्रकृति, महासागर, पर्वत, जीव, जंतु, समस्त वनस्पति इत्यादि समस्त भौतिक जगत इन्हीं पंच-तत्वों से सम्बद्ध हैं। पञ्च-तत्वों का निरूपण एवं रचना इन्हीं भुवनेश्वरी देवी द्वारा ही हुआ हैं तथा वह इन समस्त तत्वों की ईश्वरी या स्वामिनी हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के निर्वाह, पालन पोषण का दाईत्व इन्हीं देवी भुवनेश्वरी का हैं, सात करोड़ महा-मंत्र सर्वदा इनकी आराधना करने में तत्पर रहते हैं। देवी भक्तों को समस्त प्रकार कि सिद्धियाँ तथा अभय प्रदान करती हैं।


देवी, ललित के नाम से भी विख्यात हैं, परन्तु यह देवी ललित, श्री विद्या-ललित नहीं हैं। भगवान शिव द्वारा दो शक्तियों का नाम ललिता रखा गया हैं, एक ‘पूर्वाम्नाय तथा दूसरी ऊर्ध्वाम्नाय’ द्वारा। ललिता जब त्रिपुरसुंदरी के साथ होती हैं तो वह श्री विद्या-ललिता के नाम से जानी जाती हैं इनका सम्बन्ध श्री कुल से हैं। ललिता जब भुवनेश्वरी के साथ होती हैं तो भुवनेश्वरी-ललित के नाम से जानी जाती हैं।


देवी भुवनेश्वरी का भौतिक स्वरूप
देवी भुवनेश्वरी, अत्यंत कोमल एवं सरल स्वभाव सम्पन्न हैं। देवी भिन्न-भिन्न प्रकार के अमूल्य रत्नों से युक्त अलंकारों को धारण करती हैं, स्वर्ण आभा युक्त उदित सूर्य के किरणों के समान कांति वाली देवी, कमल के आसान पर विराजमान हैं तथा उगते सूर्य या सिंदूरी वर्ण से शोभिता हैं। देवी, तीन नेत्रों से युक्त त्रिनेत्रा हैं जो की! इच्छा, काम तथा प्रजनन शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। मंद-मंद मुस्कान वाली, अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्रमा धारण करने वाली देवी अत्यंत मनोहर प्रतीत होती हैं। देवी के स्तन उभरे हुए तथा पूर्ण हैं, देवी चार भुजाओं से युक्त तथा पूर्ण शारीरिक गठन वाली हैं। देवी अपने दो भुजाओं में पाश तथा अंकुश धारण करती हैं तथा अन्य दो भुजाओं से वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। देवी नाना प्रकार से मूल्यवान रत्नों से जडें हुए मुक्ता के आभूषण धारण कर बहुत ही शांत और सौम्य प्रतीत होता हैं।


देवी भुवनेश्वरी के प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।
सृष्टि के प्रारम्भ में केवल स्वर्ग ही विद्यमान था, सूर्य केवल स्वर्ग लोक में ही दिखाई देता था तथा उनकी किरणें स्वर्ग लोक तक ही सीमित थी। समस्त ऋषियों तथा सोम देव ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (ग्रह, नक्षत्र इत्यादि) के निर्माण हेतु, सूर्य देव की आराधना की जिससे प्रसन्न हो सूर्य देव ने, देवी भुवनेश्वरी की प्रेरणा से संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण किया। उस काल में देवी ही सर्व-शक्तिमान थी, देवी षोडशी ने सूर्य देव को वह शक्ति प्रदान तथा मार्गदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप सूर्य देव ने संपूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना की। देवी षोडशी की वह प्रेरणा उस समय से भुवनेश्वरी (सम्पूर्ण जगत की ईश्वरी) नाम से प्रसिद्ध हुई। देवी का सम्बन्ध इस चराचर दृष्टि-गोचर समस्त ब्रह्माण्ड से हैं, इनके नाम दो शब्दों के मेल से बना हैं भुवन + ईश्वरी, जिसका अभिप्राय हैं समस्त भुवन की ईश्वरी।


देवी भुवनेश्वरी से सम्बंधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य-
देवी भुवनेश्वरी अपने अन्य नाना नमो से भी प्रसिद्ध हैं :
१. मूल प्रकृति, देवी इस स्वरूप में स्वयं प्रकृति रूप में विद्यमान हैं, समस्त प्राकृतिक स्वरूप इन्हीं का रूप हैं।
२. सर्वेश्वरी या सर्वेशी, देवी इस स्वरूप में, सम्पूर्ण चराचर जगत की ईश्वरी या विधाता हैं।
३. सर्वरूपा, देवी इस स्वरूप में, ब्रह्मांड के प्रत्येक तत्व में विद्यमान हैं।
४. विश्वरूपा, संपूर्ण विश्व का स्वरूप, इन्हीं देवी भुवनेश्वरी के रूप में स्थित हैं।
५. जगन-माता, सम्पूर्ण जगत, तीनों लोकों की देवी जन्म-दात्री हैं माता हैं।
६. जगत-धात्री, देवी इस रूप में सम्पूर्ण जगत को धारण तथा पालन पोषण करती हैं।


देवी, 'पञ्च परमेश्वरी' नाम से विख्यात हैं। (मूल पांच तत्वों की ईश्वरी)
'देवी काली और भुवनेशी या भुवनेश्वरी' प्रकारांतर से अभेद हैं काली का लाल वर्ण स्वरूप ही भुवनेश्वरी हैं। दुर्गम नामक दैत्य के अत्याचारों से संतृप्त हो, सभी देवता, ऋषि तथा ब्राह्मणों ने हिमालय पर जा, सर्वकारण स्वरूपा देवी भुवनेश्वरी की ही आराधना की थी। देवताओं, ऋषियों तथा ब्राह्मणों के आराधना-स्तुति से संतुष्ट हो देवी, अपने हाथों में बाण, कमल पुष्प तथा शाक-मूल धारण किये हुए प्रकट हुई थी। देवी ने अपने नेत्रों से सहस्रों अश्रु जल धारा प्रकट की तथा इस जल से सम्पूर्ण भू-मंडल के समस्त प्राणी तृप्त हुए। समुद्रों तथा नदियों में जल भर गया तथा समस्त वनस्पति सिंचित हुई। अपने हाथों में धारण की हुई, शाक-मूलों से इन्होंने सम्पूर्ण प्राणियों का पोषण किया, तभी से ये शाकम्भरी नाम से भी प्रसिद्ध हुई। इन्होंने ही दुर्गमासुर नामक दैत्य का वध कर समस्त जगत को भय मुक्त, इस कारण देवी दुर्गा नाम से प्रसिद्ध हुई, जो दुर्गम संकटों से अपने भक्तों को मुक्त करती हैं।


भुवनेश्वरी अवतार धारण कर सम्पूर्ण जगत का निर्माण तथा सञ्चालन, तथा भगवान विष्णु, 'ब्रह्मा' तथा शिव को जल प्रलय के पश्चात अपना कार्य भर प्रदान करना।


श्रीमद देवी-भागवत पुराण के अनुसार! राजा जनमेजय ने व्यास जी से 'ब्रह्मा', विष्णु, शंकर की आदि शक्ति, से सम्बन्ध तथा विश्व के उत्पत्ति के कारण हेतु प्रश्न पूछे जाने पर, व्यास जी द्वारा जो वर्णन प्रस्तुत किया गया वह निम्नलिखित हैं।


एक बार व्यास जी के मन में जिज्ञासा जागृत हुई कि, "पृथ्वी या इस सम्पूर्ण चराचर जगत का सृष्टि कर्ता कौन हैं?" इस निमित्त उन्होंने नारद जी से प्रश्न किया। नारद जी ने व्यास जी से कहा की! "एक बार उनके मन भी ऐसे ही जिज्ञासा जागृत हुई थीं।"तदनंतर, नारद जी ब्रह्म लोक स्थित अपने पिता ब्रह्मा जी के पास गए और उन्होंने उनसे पूछा!"ब्रह्मा, विष्णु और महेश, में किसके द्वारा इस चराचर ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई हैं, सर्वश्रेष्ठ ईश्वर कौन हैं ?"


ब्रह्मा जी ने नारद से कहा! प्राचीन काल में जल प्रलय पश्चात केवल पञ्च महा-भूतों की उत्पत्ति हुई, जिसके कारण वे (ब्रह्मा जी) कमल से आविर्भूत हुए। उस समय सूर्य, चन्द्र, पर्वत इत्यादि स्थूल जगत लुप्त था तथा चारों ओर केवल जल ही जल दिखाई देता था। ब्रह्मा जी कमल-कर्णिका पर ही आसन जमाये विचरने लगे। उन्हें यह ज्ञात नहीं था की इस महा सागर के जल से उनका प्रादुर्भाव कैसे हुआ तथा उनका निर्माण करने वाला तथा पालन करने वाला कौन हैं? एक बार, ब्रह्मा जी ने दृढ़ निश्चय किया की वे अपने कमल के आसन का मूल आधार देखेंगे, जिससे उन्हें मूल भूमि मिल जाएगी। तदनंतर, उन्होंने जल में उतर-कर पद्म के मूल को ढूंढने का प्रयास किया, परन्तु वे अपने कमल-आसन के मूल तक नहीं पहुँच पाये। तक्षण ही आकाशवाणी हुई की, तुम तपस्या करो! तदनंतर, ब्रह्मा जी ने कमल के आसन पर बैठ हजारों वर्ष तक तपस्या की। कुछ काल पश्चात पुनः आकाशवाणी हुई सृजन करो, परन्तु ब्रह्मा जी समझ नहीं पाये की क्या सृजन करें तथा कैसे करें! उनके द्वारा ऐसा विचार करते हुए, उनके सनमुख 'मधु तथा कैटभ' नाम के दो महा दैत्य उपस्थित हुए तथा वे दोनों उनसे युद्ध करना चाहते थे, जिसे देख ब्रह्मा जी भयभीत हो गए। ब्रह्मा जी अपने आसन कमल के नाल का आश्रय ले महासागर में उतरे, जहाँ उन्होंने एक अत्यंत सुन्दर एवं अद्भुत पुरुष को देखा, जो मेघ के समान श्याम वर्ण के थे तथा उन्होंने अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण कर रखा था। शेष नाग की शय्या पर शयन करते हुए ब्रह्मा जी ने श्री हरि विष्णु को देखा। उन्हें देख ब्रह्मा जी के मन में जिज्ञासा जागृत हुई और वे सहायता हेतु आदि शक्ति देवी की स्तुति करने लगे, जिनकी तपस्या में वे सर्वदा निमग्न रहते थे। परिणामस्वरूप, निद्रा स्वरूपी भगवान विष्णु की योग माया शक्ति आदि शक्ति महामाया, उनके शरीर से उद्भूत हुई। वे देवी दिव्य अलंकार, आभूषण, वस्त्र इत्यादि धारण किये हुए थी तथा आकाश में जा विराजित हुई। तदनंतर, भगवान विष्णु ने निद्रा का त्याग किया तथा जागृत हुए, तत्पश्चात उन्होंने पाँच हजार वर्षों तक मधु-कैटभ नामक महा दैत्यों से युद्ध किया। बहुत अधिक समय तक युद्ध करते हुए भगवान विष्णु थक गए, वे अकेले ही युद्ध कर रहे थे, इसके विपरीत दोनों दैत्य भ्राता एक-एक कर युद्ध करते थे। अंततः उन्होंने अपने अन्तः कारण की शक्ति योगमाया आद्या शक्ति से सहायता हेतु प्रार्थना की, देवी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे उन दोनों दैत्यों को अपनी माया से मोहित कर देंगी। योगमाया आद्या शक्ति की माया से मोहित हो दैत्य भ्राता भगवान विष्णु से कहने लगे! "हम दोनों तुम्हारे वीरता पर बहुत प्रसन्न हैं, हमसे वर प्रार्थना करो!" भगवान विष्णु ने दैत्य भ्राताओं से कहा! "मैं केवल इतना ही चाहता हूँ की तुम दोनों अब मेरे हाथों से मारे जाओ।" दैत्य भ्राताओं ने देखा की चारों ओर केवल जल ही जल हैं तथा भगवान विष्णु से कहा! "हमारा वध ऐसे स्थान पर करो जहाँ न ही जल हो और न ही स्थल।" भगवान विष्णु ने दोनों दैत्यों को अपनी जंघा पर रख कर अपने चक्र से उनके मस्तक को देह से लग कर दिया। इस प्रकार उन्होंने मधु-कैटभ का वध किया, परन्तु वे केवल निमित्त मात्र ही थे, उस समय उनकी संहारक शक्ति से शंकर जी की उत्पत्ति हुई, जो संहार के प्रतीक हैं।


तदनंतर, 'ब्रह्मा', विष्णु तथा शंकर द्वारा, देवी आदि शक्ति योगनिद्रा महामाया की स्तुति की गई, जिससे प्रसन्न होकर आदि शक्ति ने ब्रह्मा जी को सृजन, विष्णु को पालन तथा शंकर को संहार के दाईत्व निर्वाह करने की आज्ञा दी। तत्पश्चात, ब्रह्मा जी ने देवी आदि शक्ति से प्रश्न किया गया कि! "अभी चारों ओर केवल जल ही जल फैला हुआ हैं, पञ्च-तत्व, गुण, तन-मात्राएँ तथा इन्द्रियां, कुछ भी व्याप्त नहीं हैं तथापि तीनों देव शक्ति-हीन हैं।" देवी ने मुसकुराते हुए उस स्थान पर एक सुन्दर विमान को प्रस्तुत किया और तीनों देवताओं को विमान पर बैठ अद्भुत चमत्कार देखने का आग्रह किया गया, तीनों देवों के विमान पर आसीन होने के पश्चात, वह देवी-विमान आकाश में उड़ने लगा।


मन के वेग के समान वह दिव्य तथा सुन्दर विमान उड़कर ऐसे स्थान पर पहुंचा जहाँ जल नहीं था, यह देख तीनों देवों को महान आश्चर्य हुआ। उस स्थान पर नर-नारी, वन-उपवन, पशु-पक्षी, भूमि-पर्वत, नदियाँ-झरने इत्यादि विद्यमान थे। उस नगर को देखकर तीनों महा-देवों को लगा की वे स्वर्ग में आ गए हैं। थोड़े ही समय पश्चात, वह विमान पुनः आकाश में उड़ गया तथा एक ऐसे स्थान पर गया, जहाँ! ऐरावत हाथी और मेनका आदि अप्सराओं के समूह नृत्य प्रदर्शित कर रही थी, सैकड़ों गन्धर्व, विद्याधर, यक्ष रमण कर रहे थे, वहाँ इंद्र भी अपनी पत्नी सची के साथ विद्यमान थे। वहाँ कुबेर, वरुण, यम, सूर्य, अग्नि इत्यादि अन्य देवताओं को देख तीनों को महान आश्चर्य हुआ। तदनंतर, तीनों देवताओं का विमान ब्रह्म-लोक की ओर बड़ा, वहाँ पर सभी देवताओं से वन्दित ब्रह्मा जी को विद्यमान देख, तीनों देव विस्मय में पर पड़ गए। विष्णु तथा शंकर ने ब्रह्मा से पूछा, यह ब्रह्मा कौन हैं ? ब्रह्मा जी ने उत्तर दिया! "मैं इन्हें नहीं जनता हूँ, मैं स्वयं भ्रमित हूँ।" तदनंतर, वह विमान कैलाश पर्वत पर पहुंचा, वहां तीनों ने वृषभ पर आरूढ़, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण किये हुए, पञ्च मुख तथा दस भुजाओं वाले शंकर जी को देखा। जो व्यग्र चर्म पहने हुए थे तथा गणेश और कार्तिक उनके अंग रक्षक रूप में विद्यमान थे, यह देख पुनः तीनों अत्यंत विस्मय में पड़ गये। तदनंतर उनका विमान कैलाश से भगवान विष्णु के वैकुण्ठ लोक में जा पहुंचा। पक्षी-राज गरुड़ के पीठ पर आरूढ़, श्याम वर्ण, चार भुजा वाले, दिव्य अलंकारों से अलंकृत भगवान विष्णु को देख सभी को महान आश्चर्य हुआ, सभी विस्मय में पड़ गए तथा एक दूसरे को देखने लगे। इसके बाद पुनः वह विमान वायु की गति से चलने लगा तथा एक सागर के तट पर पहुंचा। वहाँ का दृश्य अत्यंत मनोहर था तथा नाना प्रकार के पुष्प वाटिकाओं से सुसज्जित था, तीनों महा-देवों ने रत्नमालाओं एवं विभिन्न प्रकार के अमूल्य रत्नों से विभूषित, पलंग पर एक दिव्यांगना को बैठे हुए देखा। उन देवी ने रक्त-पुष्पों की माला तथा रक्ताम्बर धारण कर रखी थीं। वर, पाश, अंकुश और अभय मुद्रा धारण किये हुए, देवी भुवनेश्वरी, त्रि-देवो को सनमुख दृष्टि-गोचर हुई, जो सहस्रों उदित सूर्य के प्रकाश के समान कान्तिमयी थी। वास्तव में आदि शक्ति महामायाही भुवनेश्वरी अवतार में, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सञ्चालन तथा निर्माण करती हैं।


देवी समस्त प्रकार के श्रृंगार एवं भव्य परिधानों से सुसज्जित थी तथा उनके मुख मंडल पर मंद मुसकान शोभित हो रही थी। उन भगवती भुवनेश्वरी को देख त्रि-देव आश्चर्य चकित एवं स्तब्ध रह गए तथा सोचने लगे, यह देवी कौन हैं? ब्रह्मा, विष्णु तथा महेशसोचने लगे कि! "न तो यह अप्सरा हैं, न ही गन्धर्वी और न ही देवांगना!" यह सोचते हुए वे तीनो संशय में पड़ गए। तब उन सुन्दर हास्वली हृल्लेखा देवी के सम्बन्ध में, भगवान विष्णु ने अपने अनुभव से शंकर तथा ब्रह्मा जी से कहा! "यह साक्षात् देवी जगदम्बा महामाया हैं साथ ही यह देवी हम तीनों तथा सम्पूर्ण चराचर जगत की कारण रूपा हैं। देवी, महाविद्या शाश्वत मूल प्रकृति रूपा हैं, सभी-की आदि स्वरूप ईश्वरी हैं तथा इन योग-माया महाशक्ति को योग मार्ग से ही जाना जा सकता हैं। मूल प्रकृति स्वरूपी भगवती महामाया परम-पुरुष के सहयोग से ब्रह्माण्ड की रचना कर, परमात्मा के सनमुख उसे उपस्थित करती हैं।" तदनंतर, तीनों देव भगवती भुवनेश्वरी की स्तुति करने के निमित्त उनके चरणों के निकट गए। जैसे ही ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर, विमान से उतरकर देवी के सनमुख जाने लगे, देवी ने उन्हें स्त्री-रूप में परिणीत कर दिया तथा वे भी नाना प्रकार के आभूषणों से अलंकृत तथा वस्त्र धारण किये हुए थे। तदनंतर, तीनों देवी के सनमुख जा खड़े हो गए, उन्होंने देखा की असंख्य सुन्दर स्त्रियाँ देवी की सेवा में सेवारत थी। तीनों देवों ने देवी के चरण-कमल के नख में सम्पूर्ण स्थावर-जंगम ब्रह्माण्ड को देखा, समस्त देवता, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, समुद्र, पर्वत, नदियां, अप्सरायें, वसु, अश्विनी-कुमार, पशु-पक्षी, राक्षस गण इत्यादि सभी, देवी के नख में प्रदर्शित हो रहे थे। वैकुण्ठ, ब्रह्मलोक, कैलाश, स्वर्ग, पृथ्वी इत्यादि समस्त लोक देवी के पद नख में विराजमान थे। तब त्रिदेव यह समझ गए की देवी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की जननी हैं।


माँ जगतजननी भुवनेश्वरी जी के कृपा प्राप्ति हेतु आपको निःशुल्क मंत्र दीक्षा नवरात्रि पर दी जाएगी । साथ मे आपको उनका गोपनीय मंत्र जाप की विधि भी दी जाएगी । दीक्षा प्राप्त करने हेतु मुझे व्हाट्सएप पर अपना नाम और फ़ोटो भेज दीजिए, आपको 1% भी चिंतित होने की आवश्यकता नही है,यह क्रिया पूर्णतः निःशुल्क है । जब आपको इस क्रिया के बाद अनुभव होने लगेंगे तब माँ भुवनेश्वरी जी के नाम से एक पौधा लगा दीजियेगा और पौधा ऐसा हो जो भविष्य में एक विशालकाय वृक्ष बने । आपका पौधा लगाना ही मेरे लिए संतुष्टि है ।





आदेश.......💐

17 Aug 2020

रजिया बेगम शाबर मंत्र साधना ।



रजिया बेगम ने शासन पर 3 साल 6 महीने तथा 6 दिन राज किया,रज़िया भारत की प्रथम महिला शासक थी जिसका जन्म 1205 मे हुआ था । रज़िया ने पर्दा प्रथा का त्याग किया तथा पुरुषो की तरह खुले मुंह ही राजदरबार में जाती थी । रज़िया के शासन का बहुत जल्द अंत हो गया लेकिन उसने सफलता पूर्वक शासन चलाया, रज़िया में शासक के सभी गुण मौजूद थे लेकिन उसका स्त्री होना इन गुणों पर भारी था अत: उसके शासन का पतन उसकी व्यकतिगत असफलता नहीं थी ।

अपने शाषनकाल में रजिया ने अपने पुरे राज्य में कानून की व्यवस्था को उचित ढंग से करवाया । उसने व्यापार को बढ़ाने के लिए इमारतो के निर्माण करवाए , सडके बनवाई और कुवे खुदवाए । उसने अपने राज्य में शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई विद्यालयों , संस्थानों , खोज संस्थानों और राजकीय पुस्तकालयों का निर्माण करवाया । उसने सभी संस्थानों में मुस्लिम शिक्षा के साथ साथ हिन्दू शिक्षा का भी समन्वय करवाया । उसने कला और संस्कृति को बढ़ाने के लिए कवियों ,कलाकारों और संगीतकारो को भी प्रोत्साहित किया था । इतिहास में रजिया बेगम के बारे में कुछ ज्यादा नही लिखा गया है,कोई कहेता है के उसका प्रेमी था तो कोई कहेता है नही था । इसलिए इतिहास से प्राप्त की जाने वाली जानकारी को समझना कठिन है,मैंने जो जानकारी प्राप्त की वह तंत्र विद्या के संदर्भ से है ।

रजिया बेगम को बुलाने की मंत्र विद्या आज भी राजस्थान के तांत्रिकों में गोपनीय है । एक राजस्थान के तांत्रिक थे जिन्होंने यह साधना मुझसे संपन्न करवाया था और उस मंत्र विद्या का परिणाम मुझे अच्छे से महसूस हुआ,यहां पर मैं अपने अनुभव नही लिख सकता क्योके यह साधना क्षेत्र के नियम के हिसाब से ठीक नही है । और जैसे मेरे सभी आर्टिकल चोरी हो जाते है,लोग कॉप्पी पेस्ट करके कहिना कही छाप देते है इसलिए किसी भी विषय पर लिखना इन चोरों के वजेसे कठिन हो गया है ।

रजिया बेगम मृत्यु के बाद तो आज के समय मे यह भुतिनी साधना के श्रेणी में आती है और मुझे यह मंत्र साधना जब प्राप्त हुई तो मेरे जानकार तांत्रिक के नोटबुक में कुछ ऐसा लिखा हुआ था "रजिया बेगम भुतिनी साधना" । नोटबुक में साधना पढ़ने के बाद मै इस साधना से काफी प्रभावित हुआ था क्योंकि यह मात्र इक्कीस दिन की साधना थी और उन इक्कीस दिनों में मुझे काफी अच्छे अनुभव प्राप्त हुए थे । यह साधना दुनिया के किसी भी किताब में नही है,यह एक प्रकार से साबर मंत्र विद्या है । 

तांत्रिक का नाम श्यामदास बाबा था और उन्होंने मुझे साधना के सभी पैलुओ पर सब कुछ ठीक तरह से समझाया,यहां तक कि साधना सामग्री के निर्माण हेतु उन्होंने मुझे दो दिन का समय दिया । एक प्रकार का विशेष नीले रंग का रत्न जो रजिया बेगम को पसंद था और उस रत्न को नदी के किनारे बबूल के पेड़ में छेद करके मंत्र बोलकर चौबीस घंटे तक रखना था । जब चौबीस घण्टे पूर्ण हो जाये तब मजमुआ का इत्र लगाकर उसे गुलाब की पंखुड़ियों पर रखकर घर लाना था और उस पर कुछ ईलम पढ़ने थे । वैसे तो मैं सिर्फ नवनाथ भगवान की साधना करता हु परंतु यह साधना शाबर मंत्र साधना थी इसलिए मैंने इस साधना के लिये मेहनत की,यह शाबर मंत्र साधना नही होती तो शायद मैं मेहनत नही करता । काले हकीक माला को भी प्राण प्रतिष्ठा किया जो 101 मनके की थी और रक्षा कवच का भी निर्माण तांत्रिक श्यामदास बाबा ने मेरे हाथों से करवाया । तब जाकर कहा मेरी साधना सामग्री बनी और मैंने साधना संपन्न की है,यह एक प्रामाणिक साधना है जिसका अनुभव आनंद दायक होता है ।

यह एक प्रकार से प्रत्यक्षीकरण साधना है,रजिया बेगम के प्रत्यक्षीकरण से जीवन मे कोई भी कार्य करवाये जा सकते है । यहां पर ज्यादा लिखना ठीक नही है इसलिए सिर्फ इतना ही लिखना चाहता हु के यह साधना करना जीवन का सुखद पल होता है ।

साधनात्मक अन्य जानकारी फोन पर या फिर व्हाट्सएप पर दी जाएगी,टाइम पास करने हेतु कृपया फोन ना करे,सिर्फ वही व्यक्ति फोन करे जो प्रत्यक्षीकरण साधनाओ में रुचि रखते हो । इस साधना में रजिया बेगम प्रत्यक्षीकरण रत्न,काली हकीक माला और रक्षा कवच की आवश्यकता होती है,जिसका न्योच्छावर राशि 3600/-रुपये निर्धारित किया है ।

जिन्हें साधना करनी है उनको साधना सामग्री के साथ रजिया बेगम प्रत्यक्षीकरण मंत्र दिए जाएंगे । साधना सामग्री के न्योच्छावर राशि बैंक अकाउंट से या फिर Paytm से भी भेज सकते है । इस साधना से सभी प्रकार के भौतिक लाभ प्राप्त करना संभव है ।

Calling, whatsapp and Paytm number-
+91-8421522368


यह साधना अदभुत अविस्मरणीय प्रामाणिक साधना है,जिसका जिक्र पहिली बार सिर्फ हमारे ब्लॉग पर किया जा रहा है ।




आदेश.......💐



3 Jul 2020

गुरुपूर्णिमा साधना



ऐसा कोई शाबर मंत्र ही नही है जिसका जाप गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर करने से सिद्धी ना मिले,जरा सोचिए 365 दिनों में कई सारे मुहूर्त या कुछ ग्रहण आते है और उनमें शाबर मंत्र सिद्ध हो या ना हो परंतु गुरुपूर्णिमा को होते है, इसका अर्थ यही है के साधक और शिष्यों के जीवन मे गुरुपूर्णिमा से बढ़कर कोई पावन अवसर नही होता है ।

संस्कृत में ‘गुरु’ शब्द का अर्थ है ‘अंधकार को मिटाने वाला।’ गुरु साधक के अज्ञान को मिटाता है, ताकि वह अपने भीतर ही सृष्टि के स्रोत का अनुभव कर सके। पारंपरिक रूप से गुरु पूर्णिमा का दिन वह समय है जब साधक गुरु को अपना आभार अर्पित करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंत्र साधना और तंत्र का अभ्यास करने के लिए गुरु पूर्णिमा को विशेष लाभ देने वाला दिन माना जाता है। जिनके जीवन मे गुरु ना हो उनके लिए तो सिर्फ यही कहूंगा के जीवन मे ऐसा गलती ना करे और सर्वप्रथम किसी गुरु के चरणों मे स्वयं को समर्पित करके उनसे अवश्य गुरुदीक्षा प्राप्त करे । 

हमारे गुरुजी हमेशा कहते थे "आज गुरुपूर्णिमा नही शिष्यपूर्णिमा है क्योके आपने मुझे गुरु कहकर संबोधित किया तब जाकर कहा मेरे ज्ञान और तपस्या को एक नाम मिला अन्यथा मैं दुनिया के लिए एक महाराज ही था,जितना महत्व आज के दिवस का आपको है उससे कई ज्यादा महत्व मेरे लिए है,मेरे सामने आज सेकड़ो शिष्य खड़े है जिनका मैं गुरु हु पिता हु माता हु और आपके सामने सिर्फ एक गुरु खड़ा है,इसलिए आप स्वयं समझिए के मेरे लिए सेकड़ो शिष्यों के सामने खड़े रहने के बाद हृदय में कितना स्नेह उत्पन्न हो जाता होगा,इसलिए आज का यह पावन अवसर मेरे लिए शिष्यपूर्णिमा है ।

गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर आप सभी शिष्य और साधकगण अवश्य गुरुमंत्र का जाप करे,एक शाबर मंत्र दे रहा हु उसका भी जाप करे ताकि आपको गुरु की कृपादृष्टि प्राप्त होती रहे । मैं जो साधना दे रहा हु,इस साधना में आपके गुरु कोई भी हो उनकी भी कृपा आपको प्राप्त होती रहेगी और आपको जीवन मे शाबर मंत्र साधनाओं में सफलता भी मिलती रहेगी ।

मंत्र-

।। ॐ नमो आदेश गुरु को आदि गुरु को अनादि गुरु को,गुरु को ध्यावु गुरु को पावु,अन्तर्मन में बिराजू सकल मन करू सेवा,गुरु कृपा प्राप्त करु सर्व विद्या प्रसन्न करू,सत नमो आदेश गुरु जी को आदेश गुरु का मंत्र सच्चा चले छू ।।


मंत्र सरल भाषा मे होने के कारण आप अर्थ समझ जायेंगे, गुरुपूर्णिमा के अवसर पर गुरु मंत्र का जाप होने के बाद इस शाबर मंत्र का 108 बार जाप गुरुमंत्र माला से अवश्य करे ।


इस मंत्र की दीक्षा भी होती है,जिसके बारे में समझाना कठिन है,इसलिए यह आर्टिकल यही समाप्त करते है ।


आदेश.....

11 Jun 2020

गुरु दीक्षा और दक्षिणा.


मेरी गुरु दीक्षा देने की इच्छा हो रही है परंतु गुरु बनने की इच्छा नही है । दीक्षा मैं देने के लिए तय्यार हु और आपको गुरु मंत्र गोरखनाथ जी का दिया जाएगा इसलिए आपके गुरु गोरखनाथ जी ही होंगे । गुरु मंत्र नाथ सम्प्रदाय का है जो एक रहस्यमयी मंत्र है,इस मंत्र का रहस्य जो भी साधक जानेगा वही गुरु गोरखनाथ जी को प्रसन्न कर दर्शन का अवसर प्राप्त करेंगा ।

आपको मुझे जो भी गुरु दक्षिणा देने की इच्छा है वह आप अपनी क्षमता नुसार दे सकते है और मैं आपसे किसी भी प्रकार की गुरु दक्षिणा धन स्वरूप में अपने मुख से नही मांगूगा यह मैं आप सभी को वचन देता हूं । अगर कोई 1 रुपया देने की क्षमता रखता हो तो दे सकता है,मैं उस साधक को यह नही कहूंगा के मुझे हजार रुपया चाहिए क्योंकि जो भी साधक देना चाहे वह अपने स्व-ईच्छा से दे सकता है । यह बात हुई आपके धन स्वरूप में गुरु दक्षिणा देने की,अब बात करेंगे के मुझे आपसे गुरुदक्षिणा में क्या चाहिए?
मैं चाहता हु विधिवत मुझसे गुरु गोरखनाथ जी का साबर गुरु मंत्र ग्रहण करने हेतु आप लोग मुझे मेरी मनचाही दक्षिणा दे और यह दक्षिणा है के "आप सभी साधक जो मंत्र ग्रहण करेंगे वह 5,7,9,11....इस संख्या में पौधे लगाए और ऐसे पौधे लगाए जो भविष्य में विशाल वृक्ष बने"।


आपका पौधे लगाना और उस पौधे की देखभाल करना ही मेरे लिए सर्वोच्च गुरु दक्षिणा है,यह गुरुदक्षिणा आपसे पाकर मैं संतुष्ट हो जाऊंगा और नवनाथ भगवान से आपके लिए मंगलकामनाये करूंगा । 5 या 5 से ज्यादा पौधे लगाने का आपका कार्य आपके लिए गुरु आज्ञा है और शिष्यों को गुरु आज्ञा का उल्लंघन कभी भी नही करना चाहिए । बात सिर्फ यही समाप्त नही होगी,आपको आगे भी जीवन मे मंत्र साधनायें दी जाएगी और हर मंत्र साधना की मैं आपसे दक्षिणा मांगूगा और मैं वचन देता हूं के "हर बार आपसे दक्षिणा में पौधे लगवावउँगा",जो भी साधक मुझे इस प्रकार की दक्षिणा देना चाहता हो वही मुझसे गुरुदीक्षा प्राप्त करे अन्यथा आजकल मार्केट में गुरु तो ढेरो सारे पड़े है इसमें कोई यूट्यूब पर शराब पीकर अघोरी बनकर गालियां दे रहा है,तो कोई काले-पीले-लाल वस्त्र पहनकर एक दूसरे की बुराईया कर करकर अपनी महानता साबित कर रहा है,तो कोई गुरु हजारों रुपए दक्षिणा में मांगकर गुरुदीक्षा दे रहा है ।


अभी भी समय है,गुरु की पहेचान ना हो तो कम से कम गुरु को पहचानने की कोशिश करो । गुरु गोरखनाथ जी जैसे गुरु मिल जाये तो मूर्खो के पीछे भागने की जरूरत नही पड़ेगी । जितने भी सोशल मीडिया के गुरु है उसमें शायद ही 1-2% गुरु सच्चे होंगे अन्य तो बैठे है अपनी-अपनी दुकान खोलकर और आप भी उनके ग्राहक बनने का आनंद ले रहे हो,ऐसा आनंद किसी काम का नही है । शिष्य बनो साधक बनो तो ऐसा बनो के जीवन की प्रत्येक चुनौती को आसानी से स्वीकार करके सफलता प्राप्त कर सको ।


श्वेताश्वतरोपनिषद ६.२३ "गुरु ही भक्त या साधक को दिव्य भक्ति (प्रेमानंद, दिव्यानंद) प्रदान करते है" अर्थात गुरु के माध्यम से ही दिव्य भक्ति (प्रेमानंद, दिव्यानंद) मिलता है। वेद कहता है ब्रह्मविद्या उपनिषद् ३१ "केवल गुरु की भक्ति करने पर लक्ष (प्रेमानंद, दिव्यानंद) की प्राप्ति हो जाती है" । भागवत ११.२६.३४  में भगवान कहते है कि "गुरु मेरा इष्ट देव है, मेरा बंधु है मेरी आत्मा है, वह मैं ही हूँ और मैं गुरु की भक्ति करता हूँ" तो ऐसे होते है गुरु और आपको गुरु गोरखनाथ जी से समर्थ गुरु ओर कौन चाहिए?


गुरु मंत्र प्राप्त करने हेतु आपको तीन काम करने है-

१-स्व-इच्छा से क्षमता नुसार गुरु दक्षिणा देनी है,चाहे 1 रुपया ही दे दो परंतु दक्षिणा देना तो आवश्यक कार्य है,इसके लिए आप paytm कर सकते हो या फिर मुझसे बैंक अकाउंट डिटेल्स प्राप्त कर लो ।

२-मेरी मनचाही दक्षिणा मुझे दो मतलब पौधे लगाने है ।

३-मुझे मेरे व्हाट्सएप पर आपका फ़ोटो और नाम भेजना है ।


यह तीन कार्य अगर आप लोग कर सकते हो तो अवश्य मुझसे संपर्क करना अन्यथा मार्केट में गुरुओं की कोई कमी नही है और अन्य गुरुओं से मेरा कोई वाद-विवाद नही है ओर नाही कोई मित्रता है परंतु मुझ में कितना सामर्थ्य है यह अन्य गुरु अच्छेसे जानते है ।


2013 में ब्लॉग बनाया था तब से लेकर आज तक कभी किसी को गुरुदीक्षा देने की मेरी इच्छा नही हुई है परंतु गुरुदीक्षा के नाम पर जो पाखंड देखने को मिल रहा है वह दुःखदायी है,इसलिए मेरा यह एक कदम आपको नाथ सम्प्रदाय से जोड़ना और गुरुदीक्षा के माध्यम से गुरुमंत्र के माध्यम से गुरु के भक्ति की शक्ति क्या हो सकती है यह दिखाने हेतु है ।

आप सभी का मैं स्वागत करता हु जीवन में एक नए मार्ग पर आने के लिए......


Whatsapp, calling and Paytm number-
+91-8421522368


आदेश......

8 Jun 2020

भविष्य को एक ही ग्रह बदल सकता है,नवग्रह नही.



आज बात ज्योतिष के विषय पर करते है और वैसे भी हमारे देश मे यह विषय प्राचीन है,यह एक ऐसा विषय है जिस पर हमेशा से ही नये नये शोध होते रहते है । ज्योतिष शास्त्र एक अपूर्ण शास्त्र है और यह शास्त्र पूर्ण तरह से कभी भी लिखा नही जा सकता है ।

मैं आज आपको यह लेख ग्रहों के नाम पर डराने हेतु नही लिख रहा हु,यह लेख आपको जीवन मे सहाय्यक है । हमेशा से मेरा एक लक्ष्य रहा है,मुझे अपने क्षेत्र में हमेशा नई नई खोज करने का अवसर प्राप्त हुआ और यह अवसर प्राप्त करने हेतु बहोत से विद्वानों की मुझे मदत मिली है । कोई भी ज्योतिषी आपको प्रैक्टिकल करके यह नही बता सकता के आपका कौनसा ग्रह आपको शुभ फल दे रहा है और कौनसा ग्रह आपको अशुभ फल दे रहा है? परंतु माँ भगवती की असीम कृपा से मैं आपको प्रैक्टिकली बता नही बल्कि दिखा सकता हु के आपका कौनसा ग्रह कुंडली मे शुभ और अशुभ फल दे रहा है । यह क्रिया तो आपको आमने-सामने बिठाकर दिखाना मेरे लिए कोई बड़ी बात नही है और जो भी यह प्रैक्टिकल देखना चाहे वह व्यक्ति आकर मुझसे मिल सकते है ।


सभी लोग जानते है मैं सीधी बात करना पसंद करता हु,मुझे घुमा फिराकर बात करना अच्छा नही लगता । प्रैक्टिकल क्रिया से देखा जाए तो किसी भी व्यक्ति के जन्म विवरण की आवश्यकता नही होती है परंतु कुंडली के अध्ययन हेतु जन्म विवरण आवश्यक है ।

हमारा मुख्य धेय इस लेख का यही है के "ऐसा कौनसा ग्रह हमारे कुंडली मे है जिसका उपासना और उपाय हमारे जीवन को पूर्णतः बदल दे?" । कुंडली मे नव ग्रह होते है जो व्यक्ति के जीवन का आधार है अपितु उन्ही से हमारे भूत भविष्य वर्तमान को हम जान सकते है और उन्ही नवग्रहों में एक ग्रह ऐसा भी होता है जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को शुभता में बदल सकता है ।


ज्योतिषविदों के अनुसार लगभग 144 प्रकार की कुंडलिया बनती है,लेकिन ज्यादातर ज्योतिषी चन्द्र और लग्न कुंडली को ज्यादा महत्व देते है और सर्वोत्तम सटीक फलादेश हेतु यही कुंडलिया महत्वपूर्ण होती है । नवग्रहों में उस एक ग्रह का अध्ययन करना जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को बदलकर हमे खुशिया प्रदान करे इसके लिए चन्द्र-सूर्य कुंडली से ज्यादा अन्य कुंडलियों का अध्ययन करना आवश्यक होता है । चंद्र और सूर्य कुंडली के साथ-साथ नवमांश कुंडली, वर्ग कुंडली, गोचर कुंडली के अध्ययन से हमे समझ मे आता है कि ऐसा कौनसा ग्रह कुंडली मे है जिसके मंत्र जाप करने के माध्यम से हमे जीवन मे उच्चता प्राप्त हो सकती है ।

जो व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए नवग्रहों में से उस एक ग्रह को अपने जीवन मे समर्पित होकर उनकी उपासना करना चाहते है उनको यह जानना अत्यधिक महत्वपूर्ण है के किसी एक ही ग्रह के उपाय और उपासना से जीवन को बेहतर बनाया जाए । आप किसी भी ज्योतिषी के पास जाओ तो वो लोग 2-3 ग्रह का उपाय बता देंगे और उससे भी कुछ फायदा नही हुआ तो कुछ नये उपाय किसी अन्य ग्रहों के बता देंगे परंतु मैं आपको आपकी कुण्डली को पाँच प्रकार से बनाकर सिर्फ एक ही ग्रह का उपाय,मंत्र और उपासना बताऊंगा जिससे जीवन मे फायदा ही होगा नुकसान नही ।

मुझसे किसी भी प्रकार का फलादेश जानने की इच्छा ना रखे क्योके मैं आपको 501/-रुपये दक्षिणा लेकर पाँच कुण्डलीयो का अध्ययन करके बता दूँगा के कौनसे ग्रह का जाप करने से आप जीवन के सभी कष्ट,बाधा,दोष को दूर करके सफलता प्राप्त कर सकते हो और मैं फलित ज्योतिष हेतु अन्य ज्योतिषविदों से ज्यादा दक्षिणा लेता हु इसलिए मुझसे कुंडली का फलित ना पूछे । मुझसे सिर्फ इतना ही जाने के कौनसे ग्रह का जाप-उपाय आपके लिए लाभदायक है ।

जिन्हें एक ग्रह के संबंध में जानना है जिस ग्रह के जाप-उपाय से कल्याण होगा वह व्यक्ति मेरे व्हाट्सएप पर अपना जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान के बारे में लिखकर भेजे और साथ मे 501/-रुपये धनराशि देने का बैंक स्लिप या paytm का स्क्रीनशॉट भेजिए ।

Paytm numbar 8421522368 है और बैंक एकाउंट डिटेल्स आपको व्हाट्सएप पर दिया जाएगा । आपको ग्रह का मंत्र और उपाय भी दिया जाएगा,साथ में यह भी बताया जाएगा के जीवन मे यह उपाय कब तक करना है ।

बिना दक्षिणा लिए और दिए ज्योतिष के संबंध में जानना शुभ नही होता है,इसलिए मैं दक्षिणा लेने हेतु बाध्य हु इसलिए जो लोग दक्षिणा देने में असमर्थ हो वह लोग मुझे माफ़ कर दे परंतु ज्योतिषीय कार्य बिना दक्षिणा के संभव नही है इसलिए बहोत कम धनराशि रखी है ।

निशुल्क में कुछ भी बता भी दु तो आपको उसका कोई महत्व नही रहेगा,यह मैं भली भाति जानता हूं ।


आदेश.....

2 May 2020

स्वयं सिद्ध नऊ गुणि साबर मंत्र विद्या.


महाराष्ट्र में दत्तात्रेय, नवनाथों के तंत्र-मंत्र-यंत्र का विशेष प्रभाव दिखाई देता है और महाराष्ट्र की मुख्य विद्या शाबर मंत्र विद्या है । यहां पर ग्रामीण मंत्र विद्या भी अपना विशेष स्थान रखता है, ग्रामीण शाबर मंत्रो का अपना एक विलक्षण प्रभाव है । यहां पर सबसे ज्यादा वनवासी विद्या को तिष्ण माना जाता है और ऐसे विद्या के जानकारों से अच्छी मित्रता महत्वपूर्ण होती है । यहा प्राचीन समय के तंत्राचार्यों ने कइ सारी विद्याओं को प्रगट किया एक विद्या का हम यहां उल्लेख करेंगे जैसे "नऊ गुणि विद्या" यह विद्या जालिन्दरनाथ जी के परम शिष्य कानिफनाथ जी से संबंधित है,कौल मार्ग के प्रमुख गुरु परंपरा में कानिफ नाथजी का स्थान महत्वपूर्ण है ।

आज हम जिस विद्या के विषय मे बात करने वाले है,यह अपने आप मे कामधेनु समान, सरल-सुगम, विलक्षण, प्रभावी, बेजोड़ है । जिसे हमारे यहा नऊ गुणि विद्या कहा जाता है,इस विद्या की विशेषता यह है कि यह जल्दी सिद्ध जागृत हो जाती है,ग्रहण काल मे बस एक 1 माला जाप से नऊ गुणि विद्या मंत्र सिद्ध हो जाता है,यह मंत्र ग्रहण में जो साधक नही कर सकते उन्हें कुछ दिनों तक जाप करने माध्यम से सिद्ध हो जाता है । जून माह में चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण आनेवाला है,यह ग्रहण भारत मे दृश्य और पूर्ण प्रभावी है,इस ग्रहण का हमे अवश्य ही लाभ उठाना चाहिए । यह शाबर मंत्र दिखने में छोटा मंत्र है परंतु इसमें बड़े बड़े काम करने की अद्भुत क्षमता है । इस छोटे से मंत्र को सिर्फ 108 बार बोलकर आखिर में अपना इच्छीत कार्य जो है वह बोल दे जैसे शान्ति कर्म,कार्यसिद्धि के लिए, सम्मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेषण, सांप का जहर झाड़ना, किसी का रोग दुःख-दर्द दूर करना इत्यादि...वैसे इस मंत्र की गोपनीयता के बारे में भी आपको बताया जाएगा ।

यह विद्या बैठे जगह से 36 कोस मतलब 450 किलोमीटर के आस पास तक अपना पूर्ण प्रभाव दिखाती है और इसके आगे का काम करना हो तो कुछ समय में काम करता है । यह मंत्र अपने आपमे एक तेजपुंज है जो अपनी तेजस्विता से सभी कार्यो को पूर्ण करता है,इस अद्वितीय मंत्र को प्राप्त करके आप स्वयं ही अपने मनचाहे कार्य को सिद्ध कर सकते है परंतु किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य ना करे अन्यथा विश्वास के साथ कहेता हु बुरे काम करने से नुकसान होगा । आप जितने अच्छे काम करेंगे उतना ही मंत्र ओर ज्यादा प्रभावी होता रहेगा और आपके काम भी अधिक गति से पूर्ण होते जाएंगे,यह इस विद्या की खासियत है ।

पिछले आर्टिकल में आप सभी से नम्र निवेदन किया गया था के इस समय हम लोग हमारे कार्य मे व्यस्त है और समय को समझते हुए पीड़ित लोगों तक खाना-राशन-दवाइयों को पोहचाने का कार्य माँ भगवती जी के कृपा से चल रहा है । इस कार्य को अच्छेसे करने हेतु आप लोग आर्थिक सहायता करें ताकि पीड़ितों के सेवा हेतु हमारा कार्य ना रुके परंतु हमे अब तक पिछले आर्टिकल के माध्यम से 0.1% लोगो से ही मदत मिली है । जब 1000 लोग आर्टिकल पढ़ते है तो उसमें कोई एक व्यक्ति मदत करता है,हो सकता है कोई 100 रुपये देकर मदत करे या कोई 500 रुपये देकर मदत करे,हमे आप सभी से उचित आर्थिक मदत की उम्मीद थी परंतु निराशा प्राप्त हुयी ।


एक छोटीसी बात कहेना चाहता हु-

"लोग भूखे है,भिखारी नही
सहयोग करे,शर्मिंदा नही"


मेरे शहर की जनसंख्या 1 लाख 20 हजार है और अब तक 100 के आस पास कोरोना के मरीज पाए गए है,अभी तक 40 हजार लोगों को घर पर ही home quarantine करके रखा हुआ है,हमारे यहां ज्यादा लोग मजदूरी करके कमाकर जीवन जीते है । अभी आज सुना के जो महिला पुलिस वालो के लिए खाना बनाती थी वह भी कोरोना से संक्रमित निकली है,अब हो सकता है जो पुलिस वाले पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से सेवा कर रहे थे उनमें से 50% से ज्यादा पुलिस वाले कोरोना से संक्रमित हो ।

हमारे लिए सेवा कार्य अब बढ़ रहा है,समय बहोत भयंकर होता जा रहा है । धन-धान्य समाप्त होने पर है,यहां के व्यापारियों से बहोत अच्छी मदत मिली परंतु वो लोग भी कब तक मदत करेंगे ? सरकार से जो मदत प्राप्त होने की आशा थी अब वह आशा भी खत्म हो रही है,बोलते तो सभी है सरकार मदत करेगी परन्तु अभी तो यह देखने नही मिल रहा है । हो सकता है कुछ लोगो को सरकार के तरफ से राशन मिल रहा हो परंतु हमे तो सीधे सीधे पीडित लोगो तक पोहचकर मदत करनी है । सरकार और प्रशासन से प्राप्त होनेवाली मदत सीधे सीधे आसानी से प्राप्त होती नही दिखाई दे रही है । अब तो समय का चक्र यही कहेता है के सरकार को अपना कार्य करने दे और हमे भी अपना कार्य करते रहेना चाहिए क्योंकि मदत कोई भी करे हमे सिर्फ मदत से लेना देना है,किसी पर आक्षेप लेना हमारा काम नही है । मैंने पिछले बार भी हनुमानजी की कसम लेकर बोला था के आपसे प्राप्त आर्थिक मदत सीधे सीधे पीड़ितों को पोहचाने के का वचन देता हूं और इस बार भी यही वचन देता हू के "हनुमानजी की कसम लेकर बोल रहा हु आपसे प्राप्त आर्थिक सहायता धनराशि सीधे सीधे पीड़ितों के मदत हेतु ही पोहचायी जाएगी " ।

इस बार आपसे मदत प्राप्त करने हेतू नऊ गुणी विद्या का मंत्र और विधि विधान 501 रुपये आर्थिक सहायता धनराशि लिए बिना नही दिया जाएगा और कृपया कंजूस लोग दूर ही रहे क्योंकि आप लोग ऐसे दिव्य मंत्र प्राप्त करके भी किसी का भला नही कर सकते हो ।

बात क्या है ना ये जो गरीब लोग है,वो भूख से परेशान है,सोचते है के घर से बाहर जाएंगे तो कुछ खाने के लिए मिल जाएगा,इन्हें नही पता है के अभी इनके घर से बाहर निकलने से इन्हें क्या नुकसान होगा क्योंकि ज्यादा लोग तो इसमें देहाती है । मेरे शहर के सभी गरीब लोग शायद कोरोना से संक्रमित हो सकते है अगर इन्हें घर से बाहर निकलने से नही रोका तो । इन्हें रोकने का एक ही अवसर यह है के इनके जरूरत का सामान इनके घर तक पोहचाया जाए ।

4-5 दिन पहिले की बात है जब मैं सरकारी हॉस्पिटल गया था, यह देखने के लिए क्या वहा हम कुछ मदत कर सकते है । तो वहां एक गर्भवती महिला के माता ने एक दुखद बात बताई,बोल रही थी "कल रात में 9 बजे खाना मिला था और अब दोपहर 3 बज रहे है फिर भी खाना नही मिला" यह बात अत्यंत दुखदाई थी । वहा पर बहोत सारी गर्भवती महिलाएं थी जो कुछ ही दिनों में बच्चे को जन्म देने के लिए अप्सताल में भर्ती हुई थी और ऐसी महिलाओं को भूखा रखना पीड़ादायक है । दूसरे दिन हमने सुबह वहा नाश्ता पोहचाने का कार्य शुरू कर दिया है,इस तरह से हमारे कार्य को हमे आगे बढ़ाना है । हाथ मे माला लेकर जाप करने वाले हाथों से ज्यादा सेवा करने वाले हाथ समस्त देवताओं को प्रिय होते है,कृपया सहयोग करे ।

आर्थिक सहायता करने हेतु व्हाट्सएप पर अकाउंट डिटेल्स प्राप्त कर सकते हो या फिर Paytm से भी पेमेंट कर सकते है । अन्य किसी भी जानकारी हेतु व्हाट्सएप पर बात करे या फिर फोन कीजिएगा दोपहर 12 बजे से रात में 9 बजे तक,आप सभी से जो उम्मीद लगायी है उसे अवश्य सफल करे ।


WhatsApp, calling and Paytm number-
+91-8421522368

आदेश........


9 Apr 2020

भूत भविष्य दर्शन साबर मंत्र सिद्धी साधना.



आज आपको अद्वितीय शाबर मंत्र के बारे में बता रहा हु जिससे आप भुत भविष्य वर्तमान दर्शन सिद्धि प्राप्त कर सकते हो,यह साधना इसलिए अद्वितीय है क्योंकि यह नजर पिशाच का मंत्र है और नजर पिशाच कभी भी मनुष्य जाति को तकलीफ नही देते है साथ मे किसी भी प्रकार की कोई हानि नही पोहचाते है । इस साधना में किसी भी प्रकार के साधना सामग्री की आवश्यकता नही है । इस साधना में सिर्फ रात्रिकालीन मंत्र जाप नित्य करना आवश्यक है । साधना समाप्ति के बाद साधक आंख बंद करके किसी भी व्यक्ति का ध्यान करता है तो साधक को उस व्यक्ति के भूत भविष्य वर्तमान का दर्शन होता है । इस सिद्धी से साधक चलते फिरते भी मंत्र का जाप करके किसी भी व्यक्ति के बारे में कुछ भी जान सकता है ।

मैंने यह मंत्र एक महात्मा से प्राप्त किया था और वह महात्मा इस सिद्धी को पूर्णता प्राप्त कर चुके थे,आज अचानक उनकी याद आयी तो सोचा उस मंत्र को ब्लॉग के पाठकों तक पोहचाया जाए । इस समय तो महात्मा इस दुनिया मे नही रहे परंतु अगर आज वह जीवित होते तो अवश्य ही उनके बारे में मैं आपको बताता । वह महात्मा विक्रांत भैरव जी के सिद्ध साधक नाम से देश विदेश में जाने जाते है और उज्जैन नगरी में उनके बारे में हर कोई उन्हें जानता था । डबराल बाबा नाम से आप गूगल पर सर्च कीजिए तो आप उनके बारे में अवश्य जिज्ञासा वश माहिती ले सकते है । बाबा बड़े ही कृपालु थे और अपने भक्तों का हमेशा खयाल रखते थे,यह मंत्र उन्होंने मुझे वर्ष 2010 में उज्जैन के विक्रांत भैरव मंदिर में रविवार के दिन दिया था । आज वही मंत्र आपको भी दिया जाएगा और इससे भी पहिले कई साधक मित्रो को मैं यह मंत्र दे चुका हूं,जिसने इस मंत्र को सिद्ध करने हेतु अच्छा प्रयास किया उन्होंने सफलता प्राप्त की है । यह मंत्र कोई भी व्यक्ति कर सकता है,इस मंत्र के जाप हेतु साधक के गुरु हो तो अच्छी बात है और गुरु ना भी हो तो शिव जी को गुरु मानकर साधक इस मंत्र सिद्धि में सफलता प्राप्त कर सकता है ।


यह गोपनीय मंत्र आपको व्हाट्सएप या फिर ईमेल के माध्यम से दिया जाएगा-

whatsapp & calling number 
+91-8421522368
E-mail-
snpts1984@gmail.com


बड़े ही विनम्रता से मदत मांगी थी और प्रार्थना भी की थी के इस समय देश के हालात ऐसे है "हमे एक दूसरे की मदत करना अत्याधिक आवश्यक है" । अब जिनमे इंसानियत थी वह लोग मदत करने में लगे हुए है। मुझे भी आज खुशी हुई के हमारे क्षेत्र में मदत करने वाले व्यक्तियों के नाम और उनके ग्रुप के नाम दिए गए है,उन नामो में मेरा और मेरे ग्रुप का भी नाम है । आज सही में हनुमान जयंती के अवसर पर प्रभु की दया से किये जाने वाले कार्य को ओर ज्यादा करने की हिम्मत मिली । हमारे यहां के लोग कार्य से खुश है,साथ मे कार्य करने वालो के परिजन भी खुश है । यह खुशी प्राप्त करने के लिए तन-मन-धन से जो परिश्रम किया है वह हमारे लिए परमानंद है ।

मैंने आप सभी से पिछले आर्टिकल में मदत मांगी थी जिसमे एक सज्जन ने मदत की और बाकी लोगो ने सिर्फ उस आर्टिकल में दिये हुए रोग निवारण साबर मंत्र को ही महत्व दिया इसलिए उस आर्टिकल को ब्लॉग से निकालना पड़ा । आज आपसे मदत नही मांगी जा रही है अपितु आज इस समय देश की हालत को समजते हुए मंत्र के बदले दक्षिणा ली जाएगी । आपसे प्राप्त दक्षिणा की राशि उन लोगो तक पोहचाई जाएगी जिन्हें अन्न-वस्त्र और ओषधियों की आवश्यकता है । मैं आपको भगवान हनुमानजी की कसम लेकर वचन देता हूं के "मंत्र के बदले ली जाने वाली धनराशि को सहाय्यता के रूप में पीड़ित तक अवश्य ही पोहचा दिया जाएगा " आप चिंता ना करे ।



यहां आज आपको मंत्र बेचा नही जा रहा है सिर्फ आपसे पीड़ितों के सहायता हेतु आर्थिक मदत मांगी जा रही है । जो सज्जन देश के हालात को देखते हुए हमे आर्थिक रूप से मदत करेंगे उन्हें अवश्य ही मंत्र दिया जाएगा और साधना की पूर्ण गोपनीय विधि भी बताई जाएगी । 

आपको फिर से एक बात बता दु  आपके दान के स्वरूप में आर्थिक मदत मांग रहे है,भिक नही मांग रहे है । आपमे इंसानियत होगी इतना मुझे विश्वास है और आप बिना दान किये मंत्र प्राप्त करने हेतु परेशान नही करेंगे यह आशा करता हु ।


आप Paytm के माध्यम से भी आर्थिक मदत कर सकते है-
Paytm number +918421522368
या फिर बैंक डिटेल्स भी मांग सकते है,आपको व्हाट्सएप पर बैंक एकाउंट डिटेल्स दिया जाएगा ।

आर्थिक सहाय्यता हेतु आपसे कोई जबर्दस्ती नही की जा रही है,आप सोच विचार करके अपने हिसाब से दान कीजिएगा, मंत्र अमूल्य है इसलिए मंत्र का मूल्य नही लगाया जा रहा है,जो भी आपको ठीक लगे उतना ही दान करे ।


आदेश.......

20 Feb 2020

गोरखरुद्राक्ष माला




एकमप्यक्षरं यस्तु गुरुः शिष्ये निवेदयेत् ।
पृथिव्यां नास्ति तद् द्रव्यं यद्दत्वा ह्यनृणी भवेत् ॥

अर्थ :
गुरु शिष्य को जो एखाद अक्षर भी कहे, तो उसके बदले में पृथ्वी का ऐसा कोई धन नहीं, जो देकर गुरु के ऋण में से मुक्त हो सकें ।


यह मेरा प्रिय श्लोक है और इसी श्लोक के वजेसे मैं अपने जीवन मे गुरु मुख से प्राप्त प्रत्येक अक्षर का महत्व समझ सका । मेरे गुरु ने मुझे शाबर मंत्रों का श्रेष्ठ ज्ञान प्रदान किया,ऐसा दुर्लभ ज्ञान प्राप्त करने हेतु मुझे सर्वप्रथम गुरु चरणों मे समर्पित होना पड़ा । गुरु से प्राप्त सभी आज्ञाओ का मान रखते हुए उन्हें पालन करना एक अलग प्रकार का कर्तव्य होता है और इस कर्तव्य को ही कर्म बना लिया जाए तो गुरु अवश्य ही प्रसन्न होकर शिष्य को अपना सब कुछ प्रदान कर देते है ।


दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली शीलेन भार्या कमलेन तोयम् ।
गुरुं विना भाति न चैव शिष्यः शमेन विद्या नगरी जनेन ॥

अर्थ- जैसे दूध बगैर गाय, फूल बगैर लता, शील बगैर भार्या, कमल बगैर जल, शम बगैर विद्या और लोग बगैर नगर शोभा नहीं देते, वैसे ही गुरु बिना शिष्य शोभा नहीं देता।


इसलिए जीवन मे गुरु की आवश्यकता बहोत जरूरी है,जीवन मे एक बार तो गुरु बनाने ही चाहिए ताकि सम्पूर्ण जीवनभर आपको गुरु मार्गदर्शन करते रहे । संसार की समस्त विद्याएं गुरु मुख से प्राप्त ना हो तो वह एक प्रकार का मोह और माया है जो आपको सिद्धी के चक्कर कटवाती है । गुरु मुखी मंत्र स्वयं चैतन्य और जागृत होते है,जिनका गुरु के निर्देशानुसार जाप करने से पूर्ण सफलता मिल सकती है । जिन्होंने जीवन मे गुरु दीक्षा प्राप्त नही की हो उन्हें शाबर गुरु सिद्धी मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।


अब हम बात करेंगे " जिन्होंने जीवन मे गुरु दीक्षा प्राप्त की है उनके लिए " क्युके आज का विषय रहस्यमय है,यह आर्टिकल नए-पुराने साधको के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है । सभी तंत्र साधको के पास वह अद्वितीय मंत्र होना चाहिए जिससे उनके गुरु जागे उनके दादा गुरु भी जागे मतलब गुरु परंपरा को जागृत करना ताकि आपके मार्गदर्शन एवं साधना सिद्धी हेतु गुरुत्व जागृत होकर आपको सफलता मीले । एक ऐसा मंत्र होना चाहिए जिससे गुरुमुखी मंत्र विद्या भी शीघ्र जागृत हो क्योके बहोत सारे आजकल के गुरुओं ने  भी मंत्र विद्या उनके गुरु के मतलब आपके दादा गुरु के मुख से प्राप्त नही की हुई है । हो सकता है आपके दादा गुरु ने भी मंत्र विद्या गुरुमुख से प्राप्त ना कि हो इसलिए आपको भी मंत्र सिद्धी में परेशानीया आ रही होंगी । गुरु शिष्य को गुरुमंत्र तो दे देते है परंतु शिष्य को तुरंत स्वीकार नही करते है,कभी कभी शिष्य को शिष्य रूप में स्वीकार करने में गुरुओ को अधिक समय लग जाता है इसलिए शिष्यों का समय मंत्र सिद्धि में ज्यादा खर्च होता है और मंत्र सिद्धी असफलता के कारण शिष्य गुरु से दूरी बना लेता है, इसलिए एक ऐसा भी मंत्र हो कि संसार मे जो गुरुत्व की ऊर्जा है वह हमें शिष्य रूप में स्वीकार करे । साथ मे एक ऐसा भी मंत्र हो जिससे प्राप्त किया हुआ गुरुमंत्र भी चैतन्य हो जाये ताकि आप गुरुमंत्र जाप के माध्यम से अनेकानेक साधनाओ में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सको ।


ऐसे मंत्र सिर्फ शाबर मंत्र विद्या में ही प्राप्त हो सकत्ये है अन्यत्र कही नही,ऊपर मैने चार प्रकार के मंत्रो का उल्लेख किया है जो प्रत्येक साधक के लिए अमृत से भी बढ़कर है । शाबर मंत्र विद्याओ में इस चारो उल्लेखोंका एक ही मंत्र है,जिससे गुरु-महागुरु जागृत होते है,यहां महागुरु का अर्थ दादा गुरु होता है । जिससे गुरुमुखी गुरु विद्या सिद्ध होती है,ब्रम्हांडिय गुरुत्व की महान ऊर्जा साधक को शिष्य रूप में स्वीकार करती है,जिससे गुरु से प्राप्त गुरुमंत्र भी चैतन्य होता है । यह शाबर मंत्र अत्यंत दुर्लभ है और इस मंत्र को प्राप्त करने से साधक को संसार के सभी शाबर मंत्र साधनाओ में सफलता मिलती है । इस मंत्र का साधक को 1100 बार जाप करना आवश्यक होता है,साधना में साधक को पीले वस्त्र और आसन कि भी आवश्यकता होती है,साधक का मुख उत्तर दिशा में हो,साधना करते समय गाय के घी का ही इस्तेमाल करे और सुगंधित धूपबत्ती लगाकर वातावरण को अनुकूल करे । साधना किसी भी सोमवार या गुरुवार से प्रारंभ कर सकते है,जाप का समय सुबह या फिर रात्रि में ही मान्य रहेगा दोपहर में कदापी नही । मंत्र जाप हेतु गुरु गोरखनाथ जी के गुरुभक्ति मंत्र से ही प्राण-प्रतिष्ठित माला का प्रयोग करने से सफलता मिलती है,रुद्राक्ष के माला पर शाबर गुरुभक्ति मंत्र का जाप किया जाता है जिससे माला में गोरखनाथ जी के शक्ति का तत्व समाहित होता है । इस माला को हमारे यहां "गोरखरुद्राक्ष माला" कहते है जो संसार के सभी शाबर मंत्रो में सिद्धी हेतु पूर्ण सहाय्यक है । गोरखरुद्राक्ष माला बनाने हेतु सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ दिन का महत्व माना जाता है और इस माला को बनाने हेतु शिवरात्रि या फिर महाशिवरात्रि सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है । इस वर्ष आनेवाली महाशिवरात्रि पर मैं कुछ मालाएं बनाने का संकल्प ले रहा हु और इस माला को बनाने में तीन दिन का समय लगता है । यह माला आपको 1190/-रुपये में प्रदान की जाएगी,जिससे पार्सल का खर्च हमारे यहां से किया जाएगा,यह एक छोटे प्रकार के रुद्राक्ष की जाप करने हेतु माला है और इस माला को आप चाहे तो धारण भी कर सकते है ।


नोट:-मंत्र माला के साथ दिया जाएगा ताकि आप सही तरह से विधि-विधान के साथ मंत्र जाप करके सफलता प्राप्त कर सके और मंत्र की गोपनीयता भी गोपनीय रह सके ।



माला की न्यौच्छावर राशि प्रदान करने हेतु आप व्हाट्सएप पर बैंक एकाउंट डिटेल्स मांग सकते है या फिर Paytm से भी धनराशि दे सकते है ।


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किसी भी जानकारी हेतु आप फोन करके जान सकते है या फिर व्हाट्सएप पर भी पूछ सकते है ।


आदेश.......

2 Jan 2020

डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साबर मंत्र



एक उग्र आलौकिक शक्ति डाकिनी.... डाकिनी, साकिनी, जल डंकिनी, थल डंकिनी के बारे में हम प्राय कभी ना कभी, कही ना कही सुनते रहते है । पर हमे इन शक्तियों के बारे में कुछ भी पता नही है । आखिर ये क्या है ? इनकी शक्ति क्या है ? तंत्र जगत में डाकिनी का नाम अति प्रचलित है । प्राय मनुष्य डाकिनी नाम से परिचित हैं । डाकिनी कहते ही मानसपटल में एक उग्र स्वरुप की कृति मष्तिष्क में उत्पन्न होने लगती है । वास्तव में यह ऊर्जा का एक अति उग्र स्वरुप है । डाकिनी की कई परिभाषाएं हैं । एक ऐसी शक्ति जो "डाक ले जाए" ।

प्राचीनकाल से वर्तमान तक पूर्व के देहातों में डाक ले जाने का अर्थ है । चेतना का किसी भाव की आंधी में पड़कर चकराने लगना और सोचने समझने की क्षमता का लुप्त हो जाना । यह शक्ति मूलाधार के शिवलिंग का भी मूलाधार है । तंत्र में काली को भी डाकिनी कहा जाता है,यद्यपि डाकिनी काली की शक्ति के अंतर्गत आने वाली एक अति उग्र शक्ति है । यह काली की उग्रता का प्रतिनिधित्व करती हैं और इनका स्थान मूलाधार के ठीक बीच में माना जाता है । यह प्रकृति की सर्वाधिक उग्र शक्ति है । यह समस्त विध्वंश और विनाश की मूल हैं । इन्ही के कारण काली को अति उग्र देवी कहा जाता है । जबकि काली सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति की भी मूल देवी हैं । तंत्र में डाकिनी की साधना स्वतंत्र रूप से होती है और यदि डाकिनी सिद्ध हो जाए तो काली की सिद्धि करना आसान हो जाता है ।

काली की सिद्धि अर्थात मूलाधार की सिद्धि, काली या डाकिनी सिद्धी से अन्य चक्र अथवा अन्य देवी-देवता आसानी से सिद्ध किया जा सकता हैं फीर उसके लीये कठीन साधना करने की जरूरत नही होती । कम प्रयासों में ही सिद्धी प्राप्त हो जाती है,इस प्रकार सर्वाधिक कठिन डाकिनी नामक काली की शक्ति की सिद्धि ही है । डाकिनी नामक देवी की साधना अघोरपंथी तांत्रिकों की प्रसिद्द साधना है, हमारे अन्दर क्रूरता, क्रोध, अतिशय हिंसात्मक भाव, नख और बाल आदि की उत्पत्ति डाकिनी की शक्ति के तरंगों से होती है । डाकिनी की सिद्धि या शक्ति से भूत- भविष्य- वर्त्तमान जानने की क्षमता आ जाती है । किसी को नियंत्रित करने की क्षमता, वशीभूत करने की क्षमता आ जाती है । यह शक्ति साधक की रक्षा करती है और मार्गदर्शन भी करती है । यह डाकिनी साधक के सामने लगभग काली के ही रूप में अवतरित होती है ।

इसका स्वरुप अति उग्र हो जाता है । इस रूप में माधुर्य, कोमलताका अभाव होता है,सिद्धि के समय यह पहले साधक की ये बहुत परीक्षा लेती है,साधक को हर तरीके से आजमाती है,उसे डराती भी है । फिर तरह तरह के मोहक रूपों में साधक को भोग के लिए प्रेरित करती है,यद्यपि मूल रूप से यह उग्र और क्रूर शक्ति है इसलिए बिना रक्षा कवच धारण किये साधना ना करे । इसके भय और प्रलोभन से साधक बच गया तो सिद्धि का मार्ग आसान हो जाता है । मस्तिष्क को शून्य कर के या पूर्ण विवेक को त्यागकर निर्मल भाव में डूबकर ही साधना पुर्ण किया जा सकता है । डाकिनी और काली में व्यावहारिक अंतर है,जबकि यह शक्ति काली के अंतर्गत ही आती है । इस शक्ति को जगाना अति आवश्यक है , जबकि काली एक जाग्रत देवी शक्ति हैं । डाकिनी की साधना में कामभाव की पूर्णतया वर्ज होता है । तंत्र में एक और डाकिनी की साधना होती है जो अधिकतर वाममार्ग में साधित होती है ।

यह डाकिनी प्रकृति की ऋणात्मक ऊर्जा से उत्पन्न एक स्थायी गुण है और निश्चित आकृति में दिखाई देती है । इसका स्वरुप सुन्दर और मोहक होता है ,यह पृथ्वी पर स्वतंत्र शक्ति के रूप में पाई जाती है । इसकी साधना अघोरियों और कापालिकों में अति प्रचलित है । यह बहुत शक्तिशाली शक्ति है और सिद्ध हो जाने पर साधक का मार्ग आसान हो जाता है । यद्यपि साधना में थोड़ी सी चूक होने अथवा साधक के साधना समय में थोडा सा भी कमजोर पड़ने पर वह शक्ति साधक को ख़त्म कर देती है , यह भूत-प्रेत- पिशाच-ब्रह्म-जिन्न आदि उन्नत शक्ति होती है । यह कभी-कभी खुद किसी पर कृपा कर सकती है  और कभी किसी पर स्वयमेव आसक्त भी हो जाती है । इसके आसक्त होने पर सब काम रुक जाता है और उसका विनास होने लगता है । इसका स्वरुप एक सुन्दर, गौरवर्णीय, तीखे नाकनक्शे वाली युवती की जैसी होती है । जो काले कपडे में ही अधिकतर दिखती है ।

काशी के तंत्र जगत में इसकी साधना, विचरण और प्रभाव का विवरण ग्रंथो में मिलता है । इस शक्ति को केवल वशीभूत किया जा सकता है । इसको नष्ट नहीं किया जा सकता, यह सदैव व्याप्त रहने वाली शक्ति है । जो व्यक्ति विशेष के लिए लाभप्रद भी हो सकती है और हानिकारक भी , इसे नकारात्मक नहीं कहा जा सकता , अपितु यह ऋणात्मक शक्ति ही होती है । सामान्यतया यह नदी-सरोवर के किनारों, घाटों, शमशानों, तंत्र पीठों, एकांत साधना स्थलों आदि पर विचरण कर हैं ।

आप इस वर्ष डाकिनी प्रत्यक्षीकरण साधना में सफलता प्राप्त करे इस हेतु साधना को विधि विधान के साथ दे रहा हु,इस में मंत्र जाप हेतु रुद्राक्ष माला का प्रयोग करे,काला आसन हो और मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए ।


डाकिनी प्रत्यक्षीकरण शाबर मन्त्र:

।। ॐ नमो आदेश गुरु को स्यार की ख़वासिनी समंदर पार धाइ आव, बैठी हो तो आव-ठाडी हो तो ठाडी आव-जलती आ-उछलती आ न आये डाकनी,तो जालंधर बाबा कि आन शब्द साँचा पिंड कांचा फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा छू ।।


विधि: यह एक प्रत्यक्षीकरण की साधना है और प्रामाणिक मंत्र नववर्ष के आगमन पर दे रहा हु । किसी एकांत स्थान पर जहां चौराहा हो वहां पर रात के समय कुछ मास मदिरा व मिट्टी क दीपक, सरसों का तेल व सरसों लेकर जाय । काले आसन पर बैठकर नग्न होकर मन्त्र का ११ माला जप करें, सरसों के तेल का दीपक जला कर रख लें । अब हाथ में सरसों लेकर मन्त्र पढ़कर चारोँ दिशाओं में फेंक दें और दोबारा से मन्त्र जपना आरम्भ करें, मन में संकल्प रखें कि डाकिनी शीघ्र आकर दर्शन दे तो कुछ हि देर में दौडती-चिल्लाती और उछलती डाकनियां आ जायेँगी,उनको शराब और मास प्रदान करना है और जो भी मन मे हो वह मनोवांछित कार्य उनको बोल देना है,कार्य तुरंत पूर्ण होता है ।



आदेश.......