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24 Dec 2019

नक्षत्रानुसार रोगोपचार.



ग्रह और नक्षत्रों से होने वाले रोग और उनके उपाय.
वैदिक ज्योतिषी के अनुसार नक्षत्र पंचांग का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है। भारतीय ज्योतिषी में नक्षत्र को चन्द्र महल भी कहा जाता है। लोग ज्योतिषीय विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणियों के लिए नक्षत्र की अवधारणा का उपयोग करते हैं। शास्त्रों में नक्षत्रों की कुल संख्या 27 बताई गयी है। आज हम आपको इसकी जानकारी दे रहे हैं। ज्योतिषानुसार जिस प्रकार ग्रहों के खराब होने पर उनका बुरा प्रभाव देखने को मिलता है उसी प्रकार नक्षत्रों से भी कई रोगों कि गणना शास्त्रों में दी गई है आज हम आपको सभी नक्षत्रों से होने वाले रोग और उन रोगों के उपायों की संपूर्ण जानकारी दे रहे हैं यदि आपको अपना जन्म नक्षत्र पता है तो आप इस जानकारी को पढ़ें।

(नोट : यह जानकारी जन्म नक्षत्र के आधार पर ही दी गई है)

१. अश्विनी नक्षत्र :
अश्विनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट होते हैं।
उपाय : अश्विनी नक्षत्र के देवता कुमार हैं। उनका पूजन और दान पुण्य, दीन दुखियों की सेवा से लाभ होता है।

२. भरणी नक्षत्र :
भरणी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को शीत के कारण कम्पन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्य क्षमता का अभाव रहता है।
उपाय : भरणी नक्षत्र के देवता यम हैं उनका पूजन और गरीबों की सेवा करें लाभ होगा।

३. कृत्तिका नक्षत्र :
कृतिका नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सिर, आँखें, मस्तिष्क, चेहरा, गर्दन, कण्ठनली, टाँसिल व निचला जबड़ा आता है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने। पर आपको इससे संबंधित बीमारी होने की संभावना बनती है।
उपाय : कृत्तीका नक्षत्र के देवता अग्नि हैं अग्नि देव पूजन और नित्य सूर्योपासना करें। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी आपके लिए शुभ फलदायक होगा।

४. रोहिणी नक्षत्र :
रोहिणी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सिर या बगल में अत्यधिक दर्द, चित्त में अधीरता जैसे रोग होते हैं।
उपाय : रोहिणी नक्षत्र के देवता ब्रह्मा हैं। ब्रह्म पूजन और चिरचिटे (चिचिढ़ा) की जड़ भुजा में बांधने से मन को शांति और रोग से मुक्ति मिलती है।

५. मृगशिरा नक्षत्र :
मृगशिरा नक्षत्र में पैदा हुए जातकों को ज्यादातर जुकाम, खांसी, नजला, से कष्ट। कफ द्वारा होने वाले सभी रोगों का कारक मृगशिरा नक्षत्र को माना जाता है।
उपाय : मृगशिरा नक्षत्र के देवता चन्द्र हैं। चन्द्र पूजन और पूर्णिमा का व्रत करे लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

६. आर्द्रा नक्षत्र :
आर्द्रा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, आधासीरी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : आर्द्रा नक्षत्र के देवता शिव हैं। भगवान शिव की आराधना करे, सोमवार का व्रत, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधे लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

७. पुनर्वसु नक्षत्र :
पुनर्वसु नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सिर, नेत्र और कमर दर्द की अत्यधिक पीड़ा रहती है और इन कष्टों के कारण डाक्टरों के पास अधिक आना जाना रहता है।
उपाय : पुनर्वसु नक्षत्र के देवता हैं आदिती । आदिति देव पूजन और रविवार के दिन जिस रविवार को को पुष्य नक्षत्र हो उस दिन आक के पौधे की जड़ अपनी भुजा में बांधने से लाभ और इन रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

८. पुष्य नक्षत्र :
पुष्य नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातक निरोगी व स्वस्थ होता है। कभी तीव्र ज्वर से दर्द परेशानी होती है।
उपाय : पुष्य नक्षत्र के देवता ब्रहस्पति हैं। ब्रहस्पति व्रत, ब्रहस्पति पूजन और कुशा की जड़ भुजा में बांधने से तथा पुष्प नक्षत्र में दान पुण्य करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

९. अश्लेषा नक्षत्र :
आश्लेषा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातक का दुर्बल देह प्रायः रोग ग्रस्त बना रहता है। देह में सभी अंग में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदूषण के कारण कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : आश्लेषा नक्षत्र के देवता सर्प हैं। सर्प देव पूजन और नागपंचमी का पूजन, पटोल की जड़ बांधने से लाभ और रोगों से मुक्ति मिलती हैं।

१०. मघा नक्षत्र :
मघा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अर्धसीरी या अर्धांग पीड़ा, भूत पिचाश से बाधा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : मघा नखट्र के देवता पित्रदेव हैं। पितृ पूजन के साथ कुष्ठ रोगी की सेवा, गरीबों को मिष्ठान्न का दान देने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

११. पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र :
पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को बुखार,खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र के देवता भग देव हैं। भग देव पूजन और पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधने, नवरात्रों में देवी माँ की उपासना करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१२. उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र :
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अत्यधिक ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकडन इत्यादि रोग होते हैं।
उपाय : उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के देवता अर्यमा हैं। अर्यमा देव पूजन और आक की जड़ बाजू में बांधने, ब्राह्मण को समय समय परभोजन कराते रहने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

 १३. हस्त नक्षत्र :
हस्त नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अत्यधिक पेट दर्द, पेट में अफारा, पसीने से अत्यधिक दुर्गन्ध, बदन में वात पीड़ा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : हस्त नक्षत्र के देवता विश्वकर्मा हैं। विश्वकर्मा पूजन और जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१४. चित्रा नक्षत्र :
चित्रा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को जटिल या विषम रोगों से कष्ट पाता है। रोग का कारण बहुधा समझ पाना कठिन होता है ! फोड़े फुसी सूजन या चोट से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : चित्रा नक्षत्र के देवता ट त्वष्टा देव हैं। त्वष्टा देव पूजन और असंगध की जड़ भुजा में बांधने, तिल चावल जौ से हवन करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१५. स्वाती नक्षत्र :
स्वाती नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को वात पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकडन से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : स्वाति नक्षत्र के देवता वायु देव हैं। वायु देव पूजन और गाय माता की सेवा करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१६. विशाखा नक्षत्र :
विशाखा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सर्वांग पीड़ा से दुःख, फोड़े फिन सी आदि से रोग का बढ़ जाना जैसे रोग होते हैं।
उपाय : विशाखा नक्षत्र के देवता इंद्राग्नि हैं। इंद्राग्नि देव पूजन और गूंजा की जड़ भुजा पर बांधने, सुगन्धित वस्तु से हवन करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१७. अनुराधा नक्षत्र :
अनुराधा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को ताप, जलन, और चमड़ी के अत्यधिक कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : अनुराधा नक्षत्र के देवता मित्र देव हैं। मित्र देव पूजन, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१८. ज्येष्ठा नक्षत्र :
ज्येष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को पित्त से रोग बढ़ने से कष्ट, देह में कम्पन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी जैसे रोग होते हैं।
उपाय : ज्येष्ठ नक्षत्र के देवता इंद्रदेव हैं। इंद्रदेव पूजन और दूध का दान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

१९. मूल नक्षत्र :
मूल नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को सन्निपात ज्वर, हाथ पैरों का ठंडा पड़ना, मन्द रक्तचाप , पेट, गले में दर्द, अक्सर रोगग्रस्त रहना जैसे रोग होते हैं।
उपाय : मूल नक्षत्र के देवता दैत्यराज हैं। देव दैत्यराज पूजन और बत्तीस अलग अलग जगह के जल से स्नान के बाद गंगा जी स्नान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२०. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र :
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अत्यधिक देह कम्पन हाथों में जकड़न, हड्डियों में समस्या, सर्वांग में पीड़ा जैसे रोग होते हैं।
उपाय : पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता जलदेवता हैं। जलदेवता पूजन, बहते जल में मीठे चावल प्रवाहित करने और मस्तक पर सफ़ेद चन्दन का लेप करने से रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२१. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र :
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को संधिवात, गठिया, वात शूल या कटि पीड़ा, असहनीय वेदना इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के देवता विश्वेदेवा हैं। विश्वेदेवा पूजन और कपास की जड़ भुजा में बांधे, ब्राह्मणों को समय समय पर मीठा भोजन कराते रहने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२२. श्रवण नक्षत्र :
श्रवण नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अतिसार, दस्त, देह पीड़ा, दाद-खाज-खुजली जैसे चर्म रोग, कुष्ठरोग, पित्त, मवाद बनना, संधि वात, क्षय रोग से पीड़ा इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : श्रवण नक्षत्र के देवता विष्णु हैं। विष्णु पूजन और की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२३. धनिष्ठा नक्षत्र :
धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को मूत्र रोग, खूनी दस्त, पैर में चोट, सूखी खांसी, बलगम, अंग भंग, सूजन, फोड़े या लंगड़ेपन से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : धनिष्ठा नक्षत्र के देवता अष्टवसु हैं। देव अष्टवसु पूजन,भगवान मारुति (हनुमानजी) की आराधना, गुड़ मिश्रित चने का दान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

 २४. शतभिषा नक्षत्र :
शतभिषा नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को घुटनों व टखनों के बीच का भाग, पैर की नलियों की मांस पेशियाँ, इत्यादि में समस्या जैसे रोग होते हैं।
उपाय : शतभिषा नक्षत्र के देवता वरुण हैं। वरुण देव पूजन, मां दुर्गा की उपासना, कवच-कीलक-अर्गला का पाठ करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२५. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र :
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को उल्टी या वमन, बैचेनी, हृदय रोग, टखने की सूजन, आंतो के रोग से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के देवता अहि देव हैं। अहि देव पूजन, शृंगराज की जड़ भुजा पर बांधे, तिल का दान करने
से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२६. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र :
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को अतिसार, वातपीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पाव सुन्न पड़ना आदि से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के देवता नाग देव हैं। नाग देवता पूजन, पीपल की जड़ भुजा पर बांधने से तथा ब्राह्मणों और गाय माता को मिष्ठान्न दान करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

२७. रेवती नक्षत्र :
रेवती नक्षत्र में पैदा हुए ज्यादातर जातकों को मति भ्रम, उदर विकार, मादक द्रव्य सेवन से उत्पन्न रोग, किडनी के रोग, बहरापन या कान का रोग, पाँव की अस्थि, माधसपेशियों में खिचाव से कष्ट इत्यादि जैसे रोग होते हैं।
उपाय : रेवती नक्षत्र के देवता पुषापित्र हैं। देव पुशापित्र पूजन और कुशा की जड़, काले आक की जड़ बाजू पर धारण करने से लाभ और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है।

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