आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् । भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥
अर्थात:आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
इस स्तोत्र को भगवान् महाकाल ने खुद भैरवी को बताया था । इसकी महिमा का जितना वर्णन किया जाये कम है। इसमें भगवान् महाकाल के विभिन्न नामों का वर्णन करते हुए उनकी स्तुति की गयी है । शिव भक्तों के लिए यह स्तोत्र वरदान स्वरुप है । नित्य एक बार जप भी साधक के अन्दर शक्ति तत्त्व और वीर तत्त्व जाग्रत कर देता है । मन में प्रफुल्लता आ जाती है । भगवान् शिव की साधना में यदि इसका एक बार जप कर लिया जाये तो सफलता की सम्भावना बड जाती है ।
भगवान शंकर के अनेकों नाम है। भक्त भिन्न-भिन्न नामों से इनका गुणगान करते हैं, कोई महादेव तो कोई भोलेनाथ, कोई अघोरी तो कोई शंभु। भोलेनाथ के अलग-अलग रूपों के कारण ही उनके इतने नाम हैं। इन्हें तंत्र साधना का जनक भी कहा जाता है, इसलिए कोई भी तंत्र साधना उनके बिना पूरी नहीं होती। जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से इनकी अराधना करता है, उसके जीवन से बड़े-बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान शिव का एक स्वरूप महाकाल का भी है, यानि वे मृत्यु को भी अपने वश में रखते हैं। महामृत्युंजय मंत्र के विषय में तो यह भी माना जाता है कि वह आसन्न मृत्यु को भी टाल सकता है। लेकिन बहुत ही कम महाकाल स्तोत्रं के बारे में जानते हैं, जिसे स्वयं भगवान शिव ने भैरवी को बताया था। इस स्तोत्रं में भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों की स्तुति की गई है। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो यह स्तोत्रं भगवान शिव के भक्तों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
प्रतिदिन बस एक बार इस स्तोत्रं का जाप भक्त के भीतर नई ऊर्जा और शक्ति का संचार कर सकता है। इस स्तोत्रं का जाप आपको सफलता के बहुत निकट लेकर जा सकता है।
स्तोत्र को महाकाल मंत्र से संपुटित करके पढ़िए तो इसका आपको शीघ्र परिणाम प्राप्त होगा । इस स्तोत्र के साथ भगवान महाकाल जी के प्रिय मंत्र का जाप 11 बार करना है, यह एक ऋषियो का भक्तों के लिए वरदान है ।
सर्वप्रथम मंत्र 11,21 या 108 बार पढ़े,फिर स्तोत्र का 1,5,7,9,11 या 108 बार पाठ करे-
मंत्र-
।।हूं हूं महाकाल प्रसीद प्रसीद ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।।
स्तोत्र-
ॐ महाकाल महाकाय महाकाल जगत्पत
महाकाल महायोगिन महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महादेव महाकाल महा प्रभो
महाकाल महारुद्र महाकाल नमोस्तुते
महाकाल महाज्ञान महाकाल तमोपहन
महाकाल महाकाल महाकाल नमोस्तुते
भवाय च नमस्तुभ्यं शर्वाय च नमो नमः
रुद्राय च नमस्तुभ्यं पशुना पतये नमः
उग्राय च नमस्तुभ्यं महादेवाय वै नमः
भीमाय च नमस्तुभ्यं मिशानाया नमो नमः
ईश्वराय नमस्तुभ्यं तत्पुरुषाय वै नमः
सघोजात नमस्तुभ्यं शुक्ल वर्ण नमो नमः
अधः काल अग्नि रुद्राय रूद्र रूप आय वै नमः
स्थितुपति लयानाम च हेतु रूपआय वै नमः
परमेश्वर रूप स्तवं नील कंठ नमोस्तुते
पवनाय नमतुभ्यम हुताशन नमोस्तुते
सोम रूप नमस्तुभ्यं सूर्य रूप नमोस्तुते
यजमान नमस्तुभ्यं अकाशाया नमो नमः
सर्व रूप नमस्तुभ्यं विश्व रूप नमोस्तुते
ब्रहम रूप नमस्तुभ्यं विष्णु रूप नमोस्तुते
रूद्र रूप नमस्तुभ्यं महाकाल नमोस्तुते
स्थावराय नमस्तुभ्यं जंघमाय नमो नमः
नमः उभय रूपा भ्याम शाश्वताय नमो नमः
हुं हुंकार नमस्तुभ्यं निष्कलाय नमो नमः
सचिदानंद रूपआय महाकालाय ते नमः
प्रसीद में नमो नित्यं मेघ वर्ण नमोस्तुते
प्रसीद में महेशान दिग्वासाया नमो नमः
ॐ ह्रीं माया – स्वरूपाय सच्चिदानंद तेजसे
स्वः सम्पूर्ण मन्त्राय सोऽहं हंसाय ते नमः ।।
फल श्रुति
इत्येवं देव देवस्य मह्कालासय भैरवी
कीर्तितम पूजनं सम्यक सधाकानाम सुखावहम।।
मंत्र-
।।हूं हूं महाकाल प्रसीद प्रसीद ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।।
स्तोत्र पठन के बाद फिर से मंत्र का जाप करे,मंत्र का जाप उतना ही करे जितना स्तोत्र पठन से पूर्व शुरुआत में किया था ।
यह स्तोत्र तो कई पर भी किसी भी शुद्ध स्थान पर पढ़ सकते है,स्नान करने के बाद किसी भी प्रकार के वस्त्र,आसन और किसी भी दिशा में मुख करके पढ़ सकते है । जो व्यक्ति असाध्य बीमारियों से ग्रसित हो वह बेड पर या खुर्ची पर बैठकर भी कर सकते है ।
अंततः इतना ही कहूंगा के महाकाल सब जानते है,कब किसको किस समय पर क्या देना उचित है । महाकालि साधना में यह साधना प्रयोग करने से विशेष सफलता प्राप्त होती है ।
‘अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का,
काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का'
काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का'
आदेश......