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27 Aug 2017

आसुरी दुर्गा मंत्र साधना (नवरात्रि विशेष)



पुरातन काल में दुर्गम नामक दैत्य हुआ। उसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर सभी वेदों को अपने वश में कर लिया जिससे देवताओं का बल क्षीण हो गया। तब दुर्गम ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। तब देवताओं को देवी भगवती का स्मरण हुआ। देवताओं ने शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ तथा चण्ड-मुण्ड का वध करने वाली शक्ति का आह्वान किया।
देवताओं के आह्वान पर देवी प्रकट हुईं। उन्होंने देवताओं से उन्हें बुलाने का कारण पूछा। सभी देवताओं ने एक स्वर में बताया कि दुर्गम नामक दैत्य ने सभी वेद तथा स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया है तथा हमें अनेक यातनाएं दी हैं। आप उसका वध कर दीजिए। देवताओं की बात सुनकर देवी ने उन्हें दुर्गम का वध करने का आश्वासन दिया।

यह बात जब दैत्यों का राजा दुर्गम को पता चली तो उसने देवताओं पर पुन: आक्रमण कर दिया। तब माता भगवती ने देवताओं की रक्षा की तथा दुर्गम की सेना का संहार कर दिया। सेना का संहार होते देख दुर्गम स्वयं युद्ध करने आया। तब माता भगवती ने काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बगला आदि कई सहायक शक्तियों का आह्वान कर उन्हें भी युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। भयंकर युद्ध में भगवती ने दुर्गम का वध कर दिया। दुर्गम नामक दैत्य का वध करने के कारण भी भगवती का नाम दुर्गा के नाम से भी विख्यात हुआ।

असुर देवताओं पर अपने तपस्या के माध्यम से विजयी रहे है,जैसे तारकासुर को हराना इतना आसान नही था । स्वयं त्रिदेव और त्रिदेवी भी उसको हराने में सक्षम नही थे क्युके उसने ऐसा वरदान प्राप्त किया था जो किसी भी असुर को प्राप्त नही हो सका । हम सब के अंदर एक असुर विद्यमान है जिसका हम जिक्र नही कर सकते है । किसीको मोह है तो कोई माया के पीछे पागल है,कुछ तो देवताओं को भी नही मानते है और कुछ लोग स्वयं को भगवान मान बैठे हुए है,बहोत सारे लोगो मे अहंकार भी है और साथ मे उन्होंने यह मान लिया है के उनके जैसा श्रेष्ठ इस दुनिया मे पैदा नही हुआ ।

अब बस भी करो,बहोत हो गया । अब आनेवाली नवरात्रि में हमे माँ दुर्गा के स्वरूप "आसुरी दुर्गा" जी के साधना को संपन्न करना ही है,अब इस बार इस जीवन को श्रेष्ठ जीवन बनाना ही है । इस बार भागो मत, साधना क्षेत्र में आप सभी का स्वागत है । आप इस साधना को स्वयं करो और अपने जीवन को खुशहाल बनाओ,आपका सभी कामना इसी साधना से पूर्ण होगा "यह मुझे विश्वास है" ।

मेरे प्यारे साधक मित्रो,मैं कोई आपका गुरु नही हु और नाही कोई आपका सगा संबंधि हु परंतु आप के समस्याओ को सुनकर मुझे भी दुख होता है और अब आपको यह साधना सम्पन्न करके सभी समस्याओं से मुक्त होना ही है । इस नवरात्रि पर मैं आप सभी को वचन देता हूं के आपके समस्या निवारण हेतु यह साधना मैं भी करूँगा सिर्फ फर्क इतना ही है के आपको नित्य इस साधना में स्वयं के कल्याण हेतु 11 माला जाप करना है और मैं 21 माला रात्री में मंत्र जाप करूँगा । साथ मे ये भी संकल्प लेने वाला हु "हे माँ जगतजननी जो भी व्यक्ति यह साधना कर रहा हो,उसका अवश्य ही आपकी कृपा से मनोकामना पूर्ती हो" ।

जो लोग मुझे गलत समझते हो वो समझते रहे क्युके वही उनके लिए एक बचा हुआ कार्य है और शायद उनका लगता होगा के उन्हें मेरा विरोध करने से कुछ प्राप्त हो जाये । आसुरी दुर्गा तो प्रत्यांगिरा पर भी भारी है,मैने महसुस किया है "माँ आसुरी दुर्गा तो इस संसार के समस्त कामनाओ को पूर्ण कर सकती है,सिर्फ कामना अच्छा होना जरूरी है" । इस नवरात्रि के पावन अवसर पर असुरी शक्तियो का आपके जीवन मे नाश हो क्योंकि यह असुरी शक्तियां सभी के जीवन मे बाधाये बनकर व्यक्ति के जीवन का नाश करती है । दुर्भाग्य को समाप्त करने का यह अवसर आप ना गवाये,सिर्फ मंत्र साधना करे तो अवश्य ही आपको पाखंडी बाबाओं के जाल में फसने कि आवश्यकता नही पड़ेगी ।

अब अर्थववेदोक्त आसुरी विद्या के प्रयोगों की श्रेष्ठतम विधि लिख रहा हूँ,जिसे आप मंत्रमहोदधी में पढ़ सकते है ।






साधना विधान:-

सर्वप्रथम माँ भगवती दुर्गा जी का चित्र या विग्रह लाल रंग के कपड़े को किसी भी प्रकार के बाजोट पर बिछाकर स्थापित करे,साधना काल मे घी का दीपक जलाएं और सुगंधित धूपबत्ती का प्रयोग करे । मातारानी को हो सके तो गुडहल के पुष्प या जो भी आप चढ़ाने में सक्षम हो वह पुष्प चढ़ाये । साधक को लाल रंग की धोती और लाल रंग के आसन का ही प्रयोग करना है,साधिकाएं लाल रंग का सलवार/साडी पहन सकती है । मंत्र जाप के समय साधक का मुख उत्तर दिशा में होना जरूरी है और इस साधना में मंत्र जाप हेतु लाल मूंगा/लाल हकीक/लाल चंदन माला का प्रयोग करना है । साधना समाप्ति के बाद माला को याद से जल में प्रवाहित कर दिया जाना चाहिए । साधना रात्रि में सूर्यास्त के एक घंटे के बाद शुरू करे और हो सके तो नवरात्रि के 9 दिनों तक 11 माला मंत्र जाप करे ।


अब एक चम्मच जल दाहिने हाथ मे लेकर मंत्र बोलिये और जल को जमीन पर छोड़ दे-

विनियोग विधि -

।। ॐ अस्य आसुरीमन्त्रस्य अंगिरा ऋषिर्विराट् छन्दः आसुरीदुर्गादेवता ॐ बीजं स्वाहा शक्तिरात्मनोऽभीष्टसिद्ध्यर्थ जपे विनियोगः ।।



अब बायें हाथ मे जल लेकर अपने दाहिने हाथ की पाँचो उंगलियों को जल में डुबोकर बताए गए शरीर के स्थान पर स्पर्श करें-


ऋष्यादिन्यास -

ॐ अङ्गिरसे ऋषये नमः, शिरसि,
ॐ विराट् छन्दसे नमः मुखे,
ॐ आसुरीदुर्गादेवतायै नमः हृदि,
ॐ ॐ बीजाय नमः गुह्ये
ॐ स्वाहा शक्तये नमः पादयोः ।।



अब दाहिने हाथ से मंत्रो में कहे गए संबंधित शरीर के स्थान पर स्पर्श करें -

षड्ङन्यास -

ॐ कटुके कटुकपत्रे हुं फट् स्वाहा हृदाय नमः,
सुभगे आसुरि हुं फट् स्वाहा शिरसे स्वाहा,
रक्तेरक्तवाससे हुं फट् स्वाहा शिखायै वषट्,
अथर्वणस्य दुहिते हुं फट् स्वाहा कवचाय हुम्,
अघोरे अघोरकर्मकारिके हुं फट् स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट्,
अमुकस्यं गति यावन्मेवशमायाति हुँ फट् स्वाहा, अस्त्राय फट् ॥



अब दोनो हाथ जोडकर अथर्वापुत्री भगवती आसुरी दुर्गा का ध्यान करे-

।। " जिनके शरीर की आभा शरत्कालीन चन्द्रमा के समान शुभ है, अपने कमल सदृश हाथों में जिन्होंने क्रमशः वर, अभय, शूल एवं अंकुश धारण किया है ।
ऐसी कमलासन पर विराजमान, आभूषणों एवं वस्त्रों से अलंकृत, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करने वाली अथर्वा की पुत्री भगवती आसुरी दुर्गा मुझे प्रसन्न रखें" ।।




आसुरी दुर्गा मंत्र:-

।। ॐ कटुके कटुकपत्रे सुभगे आसुरिरक्ते रक्तवाससे अथर्वणस्य दुहिते अघौरे अघोरकर्मकारिके अमुकस्य गतिं दह दह उपविष्टस्य गुदं दह दह सुप्तस्य मनो दह दह प्रबुद्धस्य हृदयं दह दह हन हन पच पच तावद्दह तावत्पच यावन् मे वशमायाति हुं फट् स्वाहा  ।।




जिन साधक मित्रो को संस्कृत पढने में कठिनाई हो वह साधक विनियोग करे फिर ध्यान करे और मंत्र जाप शुरू करे,न्यास जिनसे करना संभव हो वही करे । मंत्रमहोदधी में जिस प्रकार से आसुरी दुर्गा मंत्र के काम्य प्रयोग दिए हुए है वह यहां प्रस्तुत किये जा रहे है-


इस मन्त्र का दश हजार जप करना चाहिए । तदनन्तर घी मिश्रित राई से दशांश होम करने पर यह मन्त्र सिद्ध हो जाता है । (जयादि शक्ति युक्त पीठ पर दुर्गा की एवं दिशाओं में सायुध शशक्तिक इन्द्रादि की पूजा करनी चाहिए) ॥१३३॥

अब काम्य प्रयोग का विधान कहते हैं - राई के पञ्चाङ्गो (जड शाखा पत्र पुष्प एवं फलों) को लेकर साधक मूलमन्त्र से उसे १०० बार अभिमन्त्रित करे, तदनन्तर उससे स्वयं को धूपित करे तो जो व्यक्ति उसे सूँघता है वही वश में हो जाता है । मधु युक्त राई की उक्त मन्त्र से एक हजार आहुति देकर साधक जगत् को अपने वश में कर सकता है ॥१३४-१३५॥

अब वशीकरण आदि अन्य प्रयोग कहते हैं -
स्त्री या पुरुष जिसे वश में करना हो उसकी राई की प्रतिमा बना कर पुरुष के दाहिने पैर के मस्तक तक, स्त्री के बायें पैर से मष्टक तक, तलवार से १०८ टुकडे कर, प्रतिदिन विधिवत् राई की लकडी से प्रज्वलित अग्नि में निरन्तर एक सप्ताह पर्यन्त इस मन्त्र से हवन करे, तो शत्रु भी जीवन भर स्वयं साधक का दास बन जाता है । स्त्री को वश में करने के लिए साध्य में (देवदत्तस्य उपविष्टस्य के स्थान पर देवदत्तायाः उपविष्टायाः इसी प्रकार देवदत्तायाः सुदामा आदि) शब्दों को ऊह कर उच्चारण करना चाहिए ॥१३६-१३८॥

सरसों का तेल तथा निम्ब पत्र मिला कर राई से शत्रु का नाम लगा कर मूलमन्त्र से होम करने से शत्रु को बुखार आ जाता है ॥१३८-१३९॥

इसी प्रकार नमक मिला कर राई का होम करने से शत्रु का शरीर फटने लगता है । आक के दूध में राई को मिश्रित कर होम करने से शत्रु अन्धा हो जाता है ॥१३९-१४०॥

पलाश की लकडी से प्रज्वलित अग्नि में एक सप्ताह तक घी मिश्रित राई का १०८ बार होम करने से साधक ब्राह्मण को, गुडमिश्रित राई का होम करने से क्षत्रिय को, दधिमिश्रित राई के होम से वैश्य को तथा नमक मिली राई के होम से शूद्र को वश में कर लेता है । मधु सहित राई की समिधाओं का होम करने से व्यक्ति को जमीन में गडा हुआ खजाना प्राप्त होता है ॥१४०-१४२॥

जलपूर्ण कलश में राई के पत्ते डाल कर उस पर आसुरी देवी का आवाहन एवं पूजन कर साधक मूलमन्त्र से उसे १०० बार अभिमन्त्रित करे । फिर उस जल से साध्य व्यक्ति का अभिषेक करे तो साध्य की दरिद्रता, आपत्ति, रोग एवं उपद्रव उसे छोडकर दूर भाग जाते है ॥१४३-१४४॥

राई का फूल, प्रियंगु, नागकेशर, मैनसिल एवं तगार इन सबको पीसकर मूलमन्त्र से १०८ बार अभिमन्त्रित करे । फिर उस चन्दन को साध्य व्यक्ति के मस्तक पर लगा दे तो साधक उसे अपने वश में कर लेता है ॥१४५-१४६॥

नीम की लकडी ल्से प्रज्वलित अग्नि में एक सप्ताह तक दक्षिणाभिमुख सरसोम मिश्रित राई की प्रतिदिन १०० आहुतियाँ देकर साधक अपने शत्रुओं को यमलोक का अथिथि बना देता है ॥१४६-१४७॥

यदि इस आसुरी विद्या की विधिवत् उपासना कर ली जाय तो क्रुद्ध राजा समस्त शत्रु किम बहुना क्रुद्ध काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड सकता है ॥१४८॥




133 से 148 तक जो कुछ शब्द है उसका वर्णन हमारे प्राचीन ऋषियों ने किया हुआ है और उनको इस अद्वितीय ज्ञान को जानकारों ने मंत्रमहोदधी नामक किताब में आबद्ध किया हुआ है । विश्वास और धैर्य से साधना संपन्न कर तो निसंदेह आपको लाभ प्राप्त हो सकता है ।



आदेश.........