pages

11 Mar 2016

बटुक भैरव साधना (Bhairav Tantra)


जीवन में सुख और दुःख आते ही रहते हैं। जहां आदमी सुख प्राप्त होने पर प्रसन्न होता है, वहीं दुःख आने पर वह घोर चिन्ता और परेशानियों से घिर जाता है, परन्तु धैर्यवान व्यक्ति ऐसे क्षणों में भी शांत चित्त होकर उस समस्या का निराकरण कर लेते हैं।

कलियुग में पग-पग पर मनुष्य को बाधाओं, परेशानियों और शत्रुओं से सामना करना पड़ता है, ऐसी स्थिति में उसके लिए मंत्र साधना ही एक ऐसा मार्ग रह जाता है, जिसके द्वारा वह शत्रुओं और समस्याओं पर पूर्ण विजय प्राप्त कर सकता है, इस प्रकार की साधनाओं में ‘आपत्ति उद्धारक बटुक भैरव साधना’ अत्यन्त ही सरल, उपयोगी और अचूक फलप्रद मानी गई है, कहा जाता है कि भैरव साधना का फल हाथों-हाथ प्राप्त होता है।
भैरव को भगवान शंकर का ही अवतार माना गया है, शिव महापुराण में बताया गया है –


भैरवः पूर्णरूपो हि शंकरः परात्मनः।
मूढ़ास्ते वै न जानन्ति मोहिता शिवमायया।


देवताओं ने भैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की भांति रौद्र होने के कारण ही आप ‘कालराज’ हैं, भीषण होने से आप ‘भैरव’ हैं, मृत्यु भी आप से भयभीत रहती है, अतः आप काल भैरव हैं, दुष्टात्माओं का मर्दन करने में आप सक्षम हैं, इसलिए आपको ‘आमर्दक’ कहा गया है, आप समर्थ हैं और शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले हैं।

आपदा-उद्धारक बटुक भैरव ‘शक्ति संगम तंत्र’ के ‘काली खण्ड’ में भैरव की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है कि ‘आपद’ नामक राक्षस कठोर तपस्या कर अजेय बन गया था, जिसके कारण सभी देवता त्रस्त हो गये, और वे सभी एकत्र होकर इस आपत्ति से बचने के बारे में उपाय सोचने लगे, अकस्मात् उन सभी के देह से एक-एक तेजोधारा निकली और उसका युग्म रूप पंचवर्षीय बटुक का प्रादुर्भाव हुआ, इस बटुक ने – ‘आपद’ नामक राक्षस को मारकर देवताओं को संकट मुक्त किया, इसी कारण इन्हें ‘आपदुद्धारक बटुक भैरव’ कहा गया है।


‘तंत्रालोक’ में भैरव शब्द की उत्पत्ति भैभीमादिभिः अवतीति भैरेव अर्थात् भीमादि भीषण साधनों से रक्षा करने वाला भैरव है, ‘रुद्रयामल तंत्र’ में दस महाविद्याओं के साथ भैरव के दस रूपों का वर्णन है और कहा गया है कि कोई भी महाविद्या तब तक सिद्ध नहीं होती जब तक उनसे सम्बन्धित भैरव की सिद्धि न कर ली जाय। ‘रुद्रयामल तंत्र’ के अनुसार दस महाविद्याएं और सम्बन्धित भैरव के नाम इस प्रकार हैं –


1. कालिका – महाकाल भैरव
2. त्रिपुर सुन्दरी – ललितेश्वर भैरव
3. तारा – अक्षभ्य भैरव
4. छिन्नमस्ता – विकराल भैरव
5. भुवनेश्वरी – महादेव भैरव
6. धूमावती – काल भैरव
7. कमला – नारायण भैरव
8. भैरवी – बटुक भैरव
9. मातंगी – मतंग भैरव
10. बगलामुखी – मृत्युंजय भैरव


भैरव से सम्बन्धित कई साधनाएं प्राचीन तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित हैं, जैन ग्रंथों में भी भैरव के विशिष्ट प्रयोग दिये हैं। प्राचीनकाल से अब तक लगभग सभी ग्रंथों में एक स्वर से यह स्वीकार किया गया है कि जब तक साधक भैरव साधना सम्पन्न नहीं कर लेता, तब तक उसे अन्य साधनाओं में प्रवेश करने का अधिकार ही नहीं प्राप्त होता।

‘शिव पुराण’ में भैरव को शिव का ही अवतार माना है तो ‘विष्णु पुराण’ में बताया गया है कि विष्णु के अंश ही भैरव के रूप में विश्व विख्यात हैं, दुर्गा सप्तशती के पाठ के प्रारम्भ और अंत में भी भैरव की उपासना आवश्यक और महत्वपूर्ण मानी जाती है।

भैरव साधना के बारे में लोगों के मानस में काफी भ्रम और भय है, परन्तु यह साधना अत्यन्त ही सरल, सौम्य और सुखदायक है, इस प्रकार की साधना को कोई भी साधक कर सकता है। भैरव साधना के बारे में कुछ मूलभूत तथ्य साधक को जान लेने चाहिये –


1. भैरव साधना सकाम्य साधना है, अतः कामना के साथ ही इस प्रकार की साधना की जानी चाहिए।

2. भैरव साधना मुख्यतः रात्रि में ही सम्पन्न की जाती है।

3. कुछ विशिष्ट वाममार्गी तांत्रिक प्रयोग में ही भैरव को सुरा का नैवेद्य अर्पित किया जाता है।

4. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य साधना के अनुरूप बदलता रहता है। मुख्य रूप से भैरव को रविवार को दूध की खीर, सोमवार को मोदक (लड्डू), मंगलवार को घी-गुड़ से बनी हुई लापसी, बुधवार को दही-चिवड़ा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने तथा शनिवार को उड़द के बने हुए पकौड़े का नैवेद्य लगाते हैं, इसके अतिरिक्त जलेबी, सेव, तले हुए पापड़ आदिका नैवेद्य लगाते हैं।



साधना के लिए आवश्यक

ऊपर लिखे गये नियमों के अलावा कुछ अन्य नियमों की जानकारी साधक के लिए आवश्यक है, जिनका पालन किये बिना भैरव साधना पूरी नहीं हो पाती।

1. भैरव की पूजा में अर्पित नैवेद्य प्रसाद को उसी स्थान पर पूजा के कुछ समय बाद ग्रहण करना चाहिए, इसे पूजा स्थान से बाहर नहीं ले जाया जा सकता, सम्पूर्ण प्रसाद उसी समय पूर्ण कर देना चाहिए।

2. भैरव साधना में केवल तेल के दीपक का ही प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त गुग्गुल, धूप-अगरबत्ती जलाई जाती है।

3. इस महत्वपूर्ण साधना हेतु मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त ‘बटुक भैरव यंत्र’ तथा ‘चित्र’ आवश्यक है, इस ताम्र यंत्र तथा चित्र को स्थापित कर साधना क्रम प्रारम्भ करना चाहिए।

4. भैरव साधना में केवल ‘काली हकीक माला’ का ही प्रयोग किया जाता है।




साधना विधान

इस साधना को बटुक भैरव सिद्धि दिवस (09 जुन 2016) अथवा किसी भी रविवार को सम्पन्न किया जा सकता है। भैरव शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं। साधकों को नियमानुसार वर्ष में एक-दो बार तो भैरव साधनाएं अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए।

साधना वाले दिन साधक रात्रि में स्नान कर, स्वच्छ गहरे रंग के वस्त्र धारण कर लें। अपना पूजा स्थल साधना के पूर्व ही धौ-पौछ कर साफ कर लें। भैरव साधना दक्षिणाभिमुख होकर सम्पन्न करने से साधना में शीघ्र सफलता प्राप्त होती है।

अपने सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर सर्वप्रथम गुरु चित्र स्थापित करें। गुरु चित्र के निकट ही भैरव का चित्र अथवा विग्रह स्थापित कर दें। सर्वप्रथम गुरु चित्र का पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। उसके पश्चात् भैरव चित्र के सामने एक ताम्र प्लेट में कुंकुम से त्रिभुज बनाकर उस पर ‘बटुक भैरव यंत्र’ स्थापित कर दें।

भैरव साधना में तेल का ही दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए। यंत्र स्थापन के पश्चात् बाजोट पर ही तेल का दीपक प्रज्ज्वलित कर उसका पूजन कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से करें। इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर सर्वप्रथम बटुक भैरव का ध्यान करें-



बटुक भैरव ध्यान:

वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥

दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्॥



अर्थात् भगवान् श्री बटुक भैरव बालक रूप ही हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुंघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव-मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्ज्वल रूपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल और दण्ड धारण किए हुए हैं। भगवान श्री बटुक भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है।

भगवान भैरव के ध्यान के बाल स्वरूप, आपदा उद्धारक स्वरूप के ध्यान के पश्चात् गंध, पुष्प, धूप, दीप, इत्यादि से निम्न मंत्रों के साथ ‘बटुक भैरव यंत्र’ का पूजन सम्पन्न करें –


ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।

ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।

ॐ यं वायु तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे घ्रापयामि नमः।

ॐ रं अग्नि तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे निवेदयामि नमः।

ॐ सं सर्व तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीत्यर्थे समर्पयामि नमः।

बटुक भैरव यंत्र पूजन के पश्चात् ‘काली हकीक माला’ से निम्न बटुक भैरव मंत्र की 7 माला मंत्र जप करें।




बटुक भैरव मंत्र

॥ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा॥



यह इक्कीस अक्षरों का मंत्र अत्यन्त ही महत्वपूर्ण माना गया है, एक दिवसीय इस साधना की समाप्ति के पश्चात् नित्य बटुक भैरव यंत्र अपने सामने स्थापित कर उसका संक्षिप्त पूजन कर एक माह तक नित्य उपरोक्त बटुक भैरव मंत्र की एक माला जप करने से साधक की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।


============================================================================


Life is full of joys and sorrows. A person feels happy in pleasures, but gets filled with pain and tensions when confronted with adversity. However tolerant and patient individuals resolve such situations by thinking and acting calmly and coolly.
Man has to face obstacles, troubles and enemies at each step in this Kaliyuga, and Mantra Sadhana remains the only path to obtain complete victory over enemies and problems. One such exceedingly simple, useful and accurate Sadhana is “Aapatti Udhwarak Batuk Bhairav Sadhana”. It is said that one gets instant results by performing Bhairav Sadhanas. Lord Bhairav ​​is considered as an incarnation of Lord Shiva, Shiva Mahapuraana states that-


BhairavaH Poornroopo Hi ShankaraH ParaatmanaH |
Mudhaaste Ve Na Jaananti Mohitaa Shivmayayaa ||


While worshipping Lord Bhairava, the Gods have described that – You are “Kaalraaj” being similarly full of anger and rage; you are “Bhairav” being ever-powerful; even death is always afraid of you; so you are called Kaal Bhairav; you are capable of annihilating evil spirits; so you are known as “Aamardak”; you are fully proficient and you get pleased very quickly.
Aapada Udhwarak Batuk Bhairav
The Kali-Khanda of “Shakti Sangam Tantra” text while describing origin of Lord Bhairav states that a demon called “Aapad” became invincible after performing many austerities; due to which all the Gods were stricken, and they collectively thought about ways to counter this calamity; then a strong power oozed out of their bodies and the combination of these powers yielded five years aged Batuk; this Batuk freed Gods from this crisis by destroying Aapad; and therefore He is called “Aapduddhwarak Batuk Bhairav”.
“Tantralok” text explains origin of Bhairav word as “BhebhimadibhiH Avatiti Bheirev” i.e. Lord Bhairav protects from gigantic horrible evil effects. Rudryamal Tantra describes ten forms of Bhairav along with ten Mahavidhyas and states that no one can perfectly accomplish Mahavidhya Sadhana until he has successfully accomplished the corresponding Bhairav Sadhana. “Rudrayamal Tantra” states following ten Mahavidhyas and their corresponding Bhairavs –


1. Kaalika – Mahakala Bhairav
2. Tripur Sundari – Laliteshwar Bhairav
3 Tara – Akshabhya Bhairav
4. Chinnmasta – Vikraal Bhairav
5. Bhuvaneshwari – Mahadev Bhairava
6. Dhumavati – Kaal Bhairav
7. Kamla – Narayan Bhairav
8. Bhairavi – Batuk Bhairav
9. Matangi – Matang Bhairav
10 Baglamukhi – Mrityunjayi Bhairav


Many Bhairav Sadhana practices have been described in ancient Tantric texts; Jain texts also explain specific prayogs of Bhairav. Since ancient times it has been accepted by almost all the texts that unless one has accomplished Bhairav Sadhana, he doesn’t get the right to practice any other Sadhana.
“Shiva Purana” describes Lord Bhairav has an incarnation of Lord Shiva and “Vishnu Purana” states that Lord Bhairav is famous worldwide as a unit of Lord Vishnu, It is important and significant to perform worship of Lord Bhairav at the start and end of Durga Saptshati recitation.

Many people have fear and confusion regarding Sadhana of Lord Bhairav, but it is quite simple, gentle and soothing, any Sadhak can perform this type of Sadhana.
The Sadhak should understand some basic primary facts about Bhairav Sadhana-


1. Bhairav Sadhana is a willful Sadhana, so such a Sadhana should be performed with a wish.

2. Bhairav ​​Sadhana is primarily performed at night.

3. The Neivedeya of wine or beer is offered only in some specific Vammargi Sadhanas

4. The daily neivedeya offering in Bhairav Sadhana is different for each day. Mainly
Milk-Pudding on Sunday, Modak (laddu) on Monday, Lapasi prepared with ghee-gur on Tuesday, Dahi-Chiwra on Wednesday, Besan-Laddu on Thursday, roasted-chane (grams) on Friday and Pakode of Urad on Saturday. Moreover, offerings of jalebi, sev, fried papad etc are also done.



Important for Sadhana

In addition to the above rules, the Sadhak also needs to understand other important rules, one cannot attain accomplishment in Bhairav Sadhana without following these rules.

1. The offerings made in Bhairav worship should be partaken after some time. These cannot be taken away from the worship space, the entire offering should be consumed at that time itself.

2. Only oil Deepak/lamp is used in Bhairav ​​Sadhana. Guggul and Dhoop-agarbatti is also lighted.

3. The Mantra Siddh Prana Pratisthtita Yukt “Batuk Bhairav Yantra” and “Picture” are important in this Sadhana, the Sadhana should be started only after consecrating and worshipping this copper yantra and picture.

4. Only Black Hakeek Mala is used in Bhairav ​​Sadhana.



Sadhana Procedure

This Sadhana can be performed on Batuk Bhairav Siddhi Diwas (9 June 2016) or on any Sunday. Lord Bhairav is a quick pleasing deity. Sadhaks should practice Bhairav Sadhana at least couple of times every year.
After taking bath in night, wear clean dark colored robes. Clean and purify your worship-space before the Sadhana. One gets quick success by performing Bhairav Sadhana while seated facing South direction.

Spread red cloth on a wooden plank, and first setup Guru-picture . Setup Bhairav picture or statue near the Guru-picture. First perform Panchopchaar worship of Gurudev. Then place “Batuk Bhairav Yantra” on a copper plate after drawing a triangle with Kumkum on it. Place copper plate in front of Bhairav picture.
Only oil lamp should be lighted in Bhairav ​​Sadhana. After establishing Bhairav Yantra, light the oil lamp on wooden plank itself and worship it with Kumkum, rice and flowers.
Thereafter, meditate on Batuk Bhairav with folded hands-



Batuk Bhairav ​​Dhyaan –

Vande Balam Sfatik-Sdrisham, Kuntlolalaasi-Vaktram |
Diwyaakalpernava-Mani-MayeH, Kinkani-nupooradhyeiH ||


Deeptaakaram Vishad-Vandanam, Suprassanam Tri-Netram |
Hastaabjabhyam Batukmanisham, Shul-Dando Dadhanam ||



i.e. Lord Shree Batuk Bhairav is a child form. His body has crystal like luster. His face is illuminated with curly hairs. Various valuable stones like Kinkini, Nupur etc. decorate his waist and feet. He has a bright beauty, gorgeous face, and is full of joy with three eyes. He holds a spear and baton in his lotus like hands. All kinds of untimely deaths are destroyed by this sacred meditation of Lord Shree Batuk Bhairav, disasters get prevented, age gets increased and one obtains long life and freedom.
After meditation on child form and disaster-destroyer form of Lord Bhairav, worship “Batuk Bhairav Yantra” with fragrance, flowers, incense, lamp etc. with following mantras–


Om Lam Prithvi–Tattvatmakam Gandham Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |

Om Ham Aakash-Tattvatmakam Pushpam Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |

Om Yam Vayu-Tattvatmakam Dhoopam Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |

Om Ram Agni-Tattvatmakam Deepam Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |

Om Sam Sarv-Tattvatmakam Taambulam Shreemad Aapdudhwaran-Batuk-Bhairav-Prityarthe Samarpayaami Namah |


After Batuk Bhairav Yantra worship, chant 7 malas (rosary-rounds) of following Batuk Bhairav Mantra with Black Hakeek Mala-



Batuk Bhairav Mantra –

|| Om Hreem Batukaaye Aapdudhwaranaye Kuru Kuru Batukaaye Hreem Om Swaha ||



This twenty-one letters mantra is considered very important. After completion of this single day Sadhana, daily worship of Batuk Bhairav Yantra after setting it up in front of you, followed by one mala chanting of Batuk Bhairav Mantra will surely help the Sadhak in fulfilling his or her wishes.








आदेश........