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2 Dec 2015

गुरु समान दाता नहीं।

जैसे प्रकाश के जलते ही अंधकार स्वत: नष्ट होने लगता है वैसे ही सदगुरु की संगत से अंधकार खत्म होने लगता है और मनुष्य की दृष्टि बदल जाती है। गुरु के आशीर्वाद से नाशवान पदार्थों के प्रति अरुचि होने लगती है और सद पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है जिससे परमात्मा का साक्षात्कार सुलभ हो जाता है। इसलिए मनुष्य के लिए जीवन में सच्चे गुरु का चुनाव आवश्यक है।

भारतीय आस्था जगत में गुरु की तुलना भगवान से की गई है। गुरु के बिना ज्ञान की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारा देश प्राचीन काल में गुरुओं का देश रहा है। हमारे देश के ऋ षि मुनियों ने रामायण, महाभारत व गीता जैसे कितने ही महान ग्रंथों की रचना की है।


सदगुरु अपनी शरण में आने वाले के मन में व्याप्त अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करने के लिए ज्ञान का दीपक जला देते हैं। गुरु की संगत से प्रकाश का मार्ग प्रशस्त होता है और प्रभु की प्राप्ति का रास्ता सुगम हो जाता हैं। भगवान को पाने के लिए पहले मनुष्य को अपना मन निर्मल करते हुए अहम व लोभ का त्याग करना होगा। जो मनुष्य जीवन भर मोह जाल में फंस कर प्रभु का नाम लेना भी भूल जाते है उन्हें कभी सच्ची मानसिक शांति नहीं मिलती और जीवन में हर खुशी अधूरी ही रह जाती हैं। सच्चा गुरु वही है जो अपने शिष्य को सही मार्ग दिखलाए और उसे प्रभु प्राप्ति व मानसिक शांति पाने का रास्ता बताते हुए उसका उध्दार करे।


जो मनुष्य अहंकार का त्याग नहीं करता व मैं की भावना में ही उलझा रहता है वह कभी प्रभु का प्रिय पात्र नहीं बन सकता। हर प्राणी को समान समझते हुए उससे ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसा आप उससे अपेक्षा रखते हैं। जैसे प्रकाश के जलते ही अंधकार स्वत: नष्ट होने लगता है वैसे ही सदगुरु की संगत से अंधकार खत्म होने लगता है और मनुष्य की दृष्टि ही बदल जाती है।


गुरु के आशीर्वाद से नाशवान पदार्थों के प्रति अरुचि होने लगती हैं और सद पथ पर चलने की प्रेरणा मिलती है जिससे परमात्मा का साक्षात्कार सुलभ हो जाता है इसलिए मनुष्य के लिए जीवन में सच्चे गुरु का चुनाव आवश्यक है। हर मनुष्य में परोपकार की भावना होनी चाहिए। साथ ही नेकी कर दरिया में डाल वाली मानसिकता भी होनी चाहिए। मनुष्य को कभी भी किसी पर उपकार करके उसका एहसान नहीं जताना चाहिए। किसी पर एहसान करके जताने से अच्छा है कि एहसान किया ही न जाए। गुरुओं के सही दिशा निर्देश के अभाव में हमारी अज्ञानता बढती जाती है। हमारे ऋ षि मुनियों द्वारा रचे गए ग्रंथ तो ज्ञान के भंडार से भरे हैं। जैसे रामायण से हमें आदर्श चरित्र पालन की प्रेरणा मिलती है तो गीता से हमें कर्म की महत्ता का भान होता है। गीता में ही भगवान श्री कृष्ण ने तुम कौन हो यह जानना सिखाया है।


हमारे ग्रंथों में बताया गया है कि हर घट में भगवान है अर्थात हर जगह, हर मानव में भगवान बसे हैं। इसी धारणा के तहत गीता हमें खुद को जानने को प्रेरित करती है। जब हम अपने आप को जान जाएंगे तो अपने अंदर छुपे भगवान के ब्रह्म ज्ञान को भी जान जाएंगे। ज्ञानी व संत पुरुष आज भी यही कार्य कर रहे हैं।


गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि हमारे जागने के बाद सूर्य व चंद्रमा सोते नहीं है और हमारे जागने से जागते नहीं है। इसी प्रकार आत्मा सदैव चैतन्य रहती है और निरंतर कार्य करती रहती है। सोता है तो केवल शरीर। चूंकि आत्मा सोते हुए भी जागती रहती है इसलिए ज्ञानी व संत महात्मा सोते हुए भी जागते रहते हैं। गीता से हमें ज्ञान मिलता है कि यदि हमारा ध्यान परमात्मा की तरफ नहीं गया तो हम जागृत अवस्था में भी सोए हुए के समान ही हैं। हमारे संत महात्माओं को प्राचीन समय में ही वर्तमान स्थिति का भान हो गया था। इसी लिए उन्होंने कलियुग में मोक्ष प्राप्ति का एक मात्र विकल्प कथा श्रवण ही बताया है। इस कलियुग में प्रत्येक परिवार को नित्य ही या तो कथा का पाठन करना चाहिए या फिर कथा का श्रवण करना चाहिए। साथ ही कथाओं में बताए अनुसार जीवन यापन की राह पकड़नी चाहिए। मानव जीवन में अगर किसी को सदगुरु मिल जाए तो मुक्ति का मार्ग सुलभ हो जाता है, क्योंकि गुरु के समान तो कोई दाता नहीं हो सकता।




आदेश.....