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7 Nov 2015

गुरू ग्रह शाबर मंत्र.

खगोल शास्त्र और ज्योतिष में सौरमंडल के नौ ग्रहों में सूर्य सहित शुक्र और बृहस्पति आते हैं। सप्ताह के सात दिनों का नामकरण में भी इन तीनों से तीन दिनों का
नाम जुडा हुआ है। परस्पर तीनों की तुलना में सूर्य सर्वाधिक प्रकाशवान हैं, सबसे बडे और सबसे भारी हैं। बृहस्पति ग्रह का एक पर्यायवाची शब्द जो प्रचलन में व्यापक देखने को मिलता है वह गुरू शब्द है। गुरू शब्द के अनेक अर्थ होते हैं जिनमें आधार भूत अर्थ जो अधंकार को मिटाये, भारी, ब़डा इत्यादि हैं। पौराणिक साहित्य में देवताओं के गुरू बृहस्पति हैं और असुरों के गुरू शुक्र शुक्राचार्य हैं। अत: इन तीनों
यथा सूर्य, बृहस्पति और शुक्र में गुरू का संबोधन सूर्य को न दिया जाकर बृहस्पति को क्यों दिया गया हैक् यह एक सहज जिज्ञासा है।

जिन व्यक्तियों पर बृहस्पतिदेव की कृपा एवं प्रभाव होता है, वे परोपकारी, कर्तव्यपरायण, संतुष्ट एवं कानून का पालन करने वाले होते हैं। बृहस्पति को धनु एवं मीन राशियों का स्वामित्व प्राप्त है यह दोनों राशियाँ बृहस्पति के दो रूपों का आरेखन करती है। धनुष-बाण से लक्ष्य साधता धनुर्धर, आत्मविश्वास, आशावाद और लक्ष्य भेदन की क्षमता का प्रतीक है, तो जल में विचरण करती मीन शांत परंतु सतत कार्यशीलता, आसानी से प्रभावित न होने एवं पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। पाराशर जी ने बृहस्पति देव का चित्रांकन एक धीर, गंभीर, चिंतक एवं ज्ञान के अतुल
भंडार के रूप में किया। चौडा ललाट अच्छे भाग्य की निशानी माना जाता है तथा उन्नत चौडा ललाट बृहस्पति देव का ही विषय क्षेत्र है। जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर बृहस्पतिदेव का अधिकार है, जैसे- शिक्षा, विवाह, संतान, धर्म, धन, परोपकार, जीवन के इन पक्षों से संतुष्ट व्यक्ति नि:संदेह भाग्यशाली होगा। एक महत्वपूर्ण ग्रंथ के श्लोक में वर्णित है कि ब्रह्मा ने कष्ट एवं दु:ख के भवसागर को
पार करने के लिए बृहस्पति और शुक्र नामक दो चप्पू बनाए। इनकी सहायता से व्यक्ति दोष रूपी समंदर को पार करके दूसरे किनारे पहुंच सकता है, जहाँ शुभ कर्म हैं अत: सात्विक गुणों के प्रदाता बृहस्पतिदेव ही हैं। भारत में गुरू को, शिक्षक को, विद्यादाता को, मंत्रदाता को, मार्गदर्शक को सर्वोच्चा श्रद्धा का अधिकारी माना गया है। जो देश, ज्ञान के पूजक हैं उन सबमें गुरू को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। कृष्ण जगद्गुरू हैं, वेदव्यास मंत्र गुरू हैं इसलिए हम उन्हें
पूजते हैं। गुरू नानक और गोविन्द सिंह तक दस गुरू मार्गदर्शक होने के कारण पूजे जाते हैं। उनके बाद उनकी गुरू
परम्परा ग्रंथ साहेब में समाहित हुई इसलिए ग्रंथ की पूजा होती है।

वेदकाल में गुरू को सर्वाधिक बडे होने के कारण तथा बुद्धि और वाणी के अधिष्ठाता होने के कारण जो गरिमा प्राप्त हुई उसके कारण बृहस्पति नाम लोकप्रिय हो गया। यही कारण है कि अनेक ऋषियों, आचार्यो एवं ज्योतिर्विदों के नाम भी बृहस्पति पाये जाते हैं। एक आचार्य बृहस्पति ज्योतिविज्ञानी के रूप में प्रसिद्ध हैं जो खगोल, कालगणना और संवत्सरों के नामकरण के लिए भी विख्यात हैं। बार्हस्पत्य मान के अनुसार ही हम आज भी संवत्सरों के नाम विलम्बी आदि
उद्धृत करते हैं। बृहस्पति देवगुरू और शुक्राचार्य दैत्यगुरू कहे जाते हैं। दैत्यों और देवों में सदा से तनातनी रही है, विश्वयुद्ध इसी कारण होते थे। देव, दैत्यों का संहार कर देते थे पर वे पुन: फलने-फूलने लगते थे। इसका कारण माना जाता था, मृत संजीवनी विद्या, जो दैत्य गुरू शुक्राचार्य के पास थी। इस विद्या को प्राप्त करने का प्रयत्न देवगण किया करते थे। देवगुरू बृहस्पति भी इसमें मदद देते
थे। एक बार देवों ने देवगुरू बृहस्पति के पुत्र कच को किसी न किसी प्रकार से यह विद्या प्राप्त करने के लिए शुक्राचार्य के पास शिष्य बनाकर भेजा। कच मन लगाकर सैक़डों वर्षो तक अनेक विद्याओं का अध्ययन करता रहा। इस दौरान शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी को कच से प्रेम हो गया। फिर क्या हुआ- यह कथा तो महाभारत के कारण जन-जन में परिज्ञात हो ही गई है। इस पर कथाएं, काव्य आदि भी खूब लिखे गये हैं। यह अपने आपमें प्रतीक कथा है,
वह बात अलग है।

आपको गुरू ग्रह से प्राप्त लाभ एवं हानि की जानकारी अन्य साइट्स पर उपलब्ध होगी,मै यहा सिर्फ गुरू ग्रह का शाबर मंत्र दे रहा हू जिसका गुरुवार से मंत्र जाप शुरू करके,11 बार मंत्र जाप दिन के समय मे करना है l






गुरू ग्रह मंत्र:-

ll ओम गुरूजी बृहस्पतिवार मनमें बसे।पांचो इन्द्रिय बस मे करे।सो निशि घर उग्या भाण। ध्यावो बृहस्पतिवार गंगाका है
सिनान।बृहस्पतिवार अंगिरा गोत्र,पीत वरण उन्नीस हजार जाप सिन्धुदेश उत्तर
स्थान, चतुर्थ मंडल ६ अंगुल।धनु मीन राशि केगुरू को नमस्कार।सत फिरे तो
वाचा फिरे।पान फूल वासना सिहासन धरे तो इतरो काम बृहस्पतिवारजी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll








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