pages

4 Oct 2015

दसमहाविद्या स्तोत्र प्रयोग.

ll दसमहाविद्यास्तोत्रम् ll

ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥ १॥

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥ २॥

जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् ।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥ ३॥

हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥ ४॥

हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥ ५॥

मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां
लिङ्गशोभिताम् ।
प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥ ६॥

उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् ।
नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥ ७॥

श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम्
॥ ८॥

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां
घोरनादिनीम् ।
आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥
९॥

श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥ १०॥

त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ॥ ११॥

सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् ।
नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ॥
१२॥

सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां
गुणवर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ॥ १३॥

विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां
महेश्वरीम् ।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ॥ १४॥

प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् ।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम् ॥
१५॥

भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिव्हां सुरेश्वरीम् ।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ॥ १६॥

त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ॥ १७॥

कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम्।
षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम् ॥ १८॥

सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् ।
प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ॥
१९॥

इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् ।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥ २०॥

इति दसमहाविद्यास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

यह गोपनिय दसमहाविद्या स्तोत्र है और इसके पठन से समस्त प्रकार की बाधा से मुक्ती मिलती मिलती है और साधक का जीवन शक्तिपूर्ण बनता है.जीवन के प्रत्येक समस्या का निवारण इसी स्तोत्र से होता है.किसी भी शक्ति साधना मे इस स्तोत्र के पठन से माँ भगवती प्रसन्न होती है.साधक चाहे तो नित्य स्तोत्र का 1,3,5,7,9,11,21.....108 बार पठन कर सकता है सिर्फ उच्चारण शुद्ध होना चाहिये और शरीर भी स्नान करके शुद्ध होना जरुरी है.

माँ भगवती आपका कल्याण करे,यही कामना करता हू.....

आदेश.....