प्रत्येक धर्म का यह विश्वास है कि स्वर्ग में पुण्यवान् लोगों को दिव्य सुख, समृद्धि तथा भोगविलास प्राप्त होते हैं और इनके साधन में अन्यतम है अप्सरा जो काल्पनिक, परंतु नितांत रूपवती स्त्री के रूप मे चित्रित की गई हैं। यूनानी ग्रंथों मे अप्सराओं को सामान्यत: 'निफ' नाम दिय गया है। ये तरुण, सुंदर, अविवाहित, कमर तक वस्त्र से आच्छादित और हाथ मे पानी से भरे हुआ पात्र लिए स्त्री के रूप मे चित्रित की गई हैं जिनका नग्न रूप देखनेवाले को पागल बना डालता है और इसलिए नितांत अनिष्टकारक माना जाता है। जल तथा स्थल पर निवास के कारण इनके दो वर्ग
होते हैं।
शतपथ ब्राह्मण में (११/५/१/४) ये तालाबों मे पक्षियों के रूप में तैरनेवाली चित्रित की गई हैं और पिछले साहित्य में ये निश्चित रूप से जंगली जलाशयों में, नदियों में, समुद्र के भीतर वरुण के महलों मे भी रहनेवाली मानी गई हैं।
इस्लाम में भी स्वर्ग में इनकी स्थिति मानी जाती है। फारसी का 'हूरी' शब्द अरबी
'हवरा' (कृष्णलोचना कुमारी) के साथ संबद्ध बतलाया जाता है।
यह जानकारी भारतकोशग्यान पर है जो सत्य है,अब मै आगे "अर्पना अप्सरा सिद्धी"के बारे मे बता रहा हू.
"कुंकुमपंअकलंकितदेहा गौरपयोधरकपम्पितहारा। नूपूरहंसरणत्पदपदूमाकं नवशीकुरुते भुविरामा॥"
अर्थ-जिसका शरीर केसर के उबटन से सुन्दर बना हुआ है, जिसके गुलाबी स्तनोँ पर मोती का हार झूल रहा है चरण कमल मे नुपूर रुपी हंस शब्द करतेँ हो। एसी लोकोत्तर सुन्दरी किसे अपने वश मे नहि कर सकती।
आवश्यक सामग्री-
गुलाब जल,गुलाब का इत्र,कोई भी अप्सरा का चित्र,दीपक, शुद्ध घी या चमेली का तेल, एक बेजोट,कोरा श्वेत वस्त्र केसर दो गुलाब के फूल,शंख की माला, श्वेत या कंबल का आसन, सफेद धोती और मुख्य सामग्री "अर्पना अप्सरा सिद्धी यंत्र"जिसके बिना ये साधना संभव नही है.
दिन व समय-किसी भी मास की एक तारीख को या किसी भी पुष्य नक्षत्र मे की जा सकती है या फिर शुक्ल पक्ष शुक्रवार के दिन करे,रात्रि 11 बजे करे।
विधि-विधान:-
साधना के करने से पूर्व बाजोट पर श्वेत वस्त्र कोरा वस्त्र बिछा कर अप्सरा का चित्र रखे और उसका पुजन करे जैसे भी आपको करना आता हो साथ मे "अर्पना अप्सरा यंत्र का पुजन करे.नीचे जो मंत्र दीये हुए है उसमे "अप्सरा अंगन्यास" दीये है तो चित्र को स्पर्श करते हुए कुमकुम या अष्टगंध का अप्सरा के चित्र को स्पर्श करे (जहा-जहा शरीर के भागो का उच्चारण है वहा)
अं नारिकेल रुपायै नमः-शिरसि
आं वासुकी रुपायै नमः-केशाय
इं सागर रुपायै नमः- नेत्रयो
ईँ-मत्यस्य रुपायै नमः -भ्रमरे
उं मधुरायै नमः- कपोले
ऊं गुलपुष्पायै नमः- मुखे
एं गह्वरायै नमः-चिबुके
ऐं पद्मपत्रायै नमः-अधरोष्ठे
ओं दाडिमबीजायै नमः-दंतपंक्तौ
औं हंसिन्यै नमः-ग्रिवायै
अं पुष्प वल्ल्यै नमः-भुजायोः
अः सूर्यचंद्रमाय नमः-कुचे
कं सागरप्रगल्भायै नमः- वक्षे
खं पीपरपत्रकायै नमः-उदरौ
गं वासुकीझील्यै नमः-नाभौ
घं गजसुंडायै नमः-जंघायै
चं सौंदर्यरुपायै नमः पादयौ
घं हरिणमोहिन्यै नमः-चरणे
जं आकाशाय नमः-नितम्भयो
झं जगतमोहिन्यै नमः-रुपे
टं काम प्रियायै नमः- सर्वांगे
*अब अप्सरा के भावो की कल्पना करे-
ठं देवमोहिन्यै नमः-गत्यमौ
डं विश्व मोहिन्यै नमः-चितवने
ढं अदोष रुपायै नमः-द्रष्ट्यै
तं अष्टगंधायै नमः-सुगंधेषु
थं देवदुर्लभायै नमः-प्रणयं
दं सर्वमोहिन्यै नमः-हास्ये
घं सर्वमंगलायै नमः-कोमलांग्यै
नं धनप्रदायै नमः- लक्ष्म्यै
पं देहसुखप्रदाय नमः-रत्यै
फं कामक्रिडायै नमः-मधुरे
बं सुखप्रदायै नमः-हेमवत्यै
भं आलिंगनायै नमः-रुपायै
मं रात्रौसमाप्त्यै नमः-गौर्यै
यं भोगप्रदायै नमः-भोग्यै
रं रतिक्रयायै नमः-अप्सरायै
लं प्रणयप्रियायै नमः-दिव्यांगनायै
वं मनोवांछितप्रदाय नमः-अप्सरायै
शं सर्वसुखप्रदायै नमः-योगरुपायै
षं कामक्रिडायै नमः-देव्यै
सं जलक्रिडायै नमः-कोमलांगिन्यै
हं स्वर्ग प्रदायै नमः-अर्पणाप्सरायै
अब एक गुलाब का पुष्प चित्र के पास रखे गुलाब का इत्र रुई मे ले कर चित्र के पास रख दे। एवं अब स्वयं इत्र लगावे,मुलैठी या इलायची चबा जाऐ। अब लोटे मे जल ले उसमे गंगा जल मिला कर विनयोग करे.
विनियोग:-
ll ॐ अस्य श्री अर्पणा अप्सरा मंत्रस्य कामदेव ऋषि पंक्ति छंद काम क्रिडेश्वरी देवता सं सौन्दर्य बीजं कं कामशक्ति अं कीलकं श्री अर्पणाप्सरा सिध्दयर्थं रति सुख प्रदाय प्रिया रुपेण सिद्धनार्थ मंत्र जपे विनयोगः ll
न्यास/करन्यास:-
ॐअद्वितीयसौँदर्यनमः शिरषि
ॐकामक्रिड़ासिध्दायैनमः मुखे
ॐआलिंगनसुखप्रदायैनमः ह्रिदी
ॐदेहसुखप्रदायैनमः गुह्यो
ॐआजन्मप्रियायैनमः पादयो
ॐमनोवांछितकार्यसिद्धायै नमः करसंपुटे
ॐ दरिद्रनाशय विनियोगायैनमः सरवांगे
ॐसुभगायै अंगुष्ठाभ्यां नमः
ॐसौन्दर्यायै तर्जनीभ्यां नमः
ॐरतिसुखप्रदाय मध्यमाभ्यां नमः
ॐदेहसुखप्रदाय अनामिकाभ्याम नमः
ॐ भोगप्रदाय कनिष्ठाभ्यां नमः
ॐ आजन्मप्रणयप्रदायै करतलपृष्ठाभ्यां नमः l
ध्यान:-
ll हेमप्रकारमध्ये सुरविटपटले रत्नपीठाधिरुढां यक्षीँ बालां स्मरामः परिमल कुसुमोद्भासिधम्मिल्लभाराम पीनोत्तुंग स्तननाढ्य कुवलयनयनां रत्नकांचीकराभ्यां भ्राम द्भक्तोत्पलाभ्यां नवरविवसनां रक्तभूषांगरागाम् ll
मंत्र:-
(मंत्र साधना सामग्री के साथ उपलब्ध है )
amannikhil011@gmail.com
रात्री काल मे साधना के समय अप्सरा को अपनी प्रेमिका समझकर उसको मिलने का भाव रख कर 11 माला जाप "क्रोध भैरव मंत्र से सिद्ध प्राण-प्रतीष्ठीत माला" से जाप करे,मंत्र जाप पूर्ण हो जाने पर प्रभाव प्रत्यक्ष होने लगता है। नाना प्रकार की क्रिडा अप्सरा द्वारा की जाती है विचलित हुए बिना मंत्र जाप पूर्ण हो जाए तो उचित है और अप्सरा सामने आते ही उससे वचन ले लिजिये.
*विशेष:-
साधना से एक दिन पूर्व ही साधना कक्ष को साफ कर लेना चाहिए अर्धरात्री से मौन रखे कर अकले दिन रात मेँ साधना से पूर्व मौन खत्म होता है व्यसन कामुकता पूर्णतः वर्जित है। साधना से पूर्व गुरु,गणेश,शिव,इष्ट पूजन अवश्य कर लेना चाहिए ताकी साधना की सफलता की संभावना बनी रहे ये सभी साधनाओँ का आधार होते है.
*भाव की प्रधानता:-
जो इस साधना का मुख्य अंग है, यह साधना काम भाव की है अर्थ ये नही की आप कामुक भाव से करे। भाव ये है की एक प्रेमी अपनी प्रेयसी के प्रेम मे व्याकुल उसे पुकार रहा है और इस साधना मे अर्पना आपकी प्रेमिका है.
*नोट- ये साधना एक दिवसीय अवश्य है परंतु सरल नहि है क्युके सात्विक रह कर, मौन रह कर, काम क्रोध लोभ मोह त्याग कर, मनको शांत रख कर ही आप साधना मे अपनी सफलता की संभावना को बढा सकते सकते है.इस साधना को बिना साधना सामग्री के नही करना चाहिये.बहोत कम रुपये मे आपको इस साधना की सामग्री प्राप्त होगी,जैसे "अर्पना अप्सरा सिद्धी यंत्र" 750/- रुपये मे और स्फटिक माला 350/- रुपये मे दे रहा हु.इस हिसाब से 1100/- रुपये मे आपको पूर्ण प्रामानिक साधना सामग्री और "अर्पना अप्सरा प्रत्यक्षिकरण" मंत्र दिया जायेगा.अब जिनको माला नही चाहिये तो उनके लिये यंत्र भी उपलब्ध करवा देगे फिर एक बात कहुगा यंत्र के साथ माला भी जरुरी है.जिनको साधना समझने मे परेशानि हो तो उनको साधना डिटेल मे समजायी जायेगी l
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