pages

30 Jun 2019

दोष निवारण और रक्षा कवच.


कर्म और भाग्य कभी-कभी इसलिए साथ नहीं दे पाते हैं  क्योंकि राह में किसी और का भी रोड़ा आ जाता है। अधिक परिश्रम करने के बावजूद किसी भी प्रकार का कोई शुभ परिणाम या मनचाहा परिणाम नहीं निकल पाता है। ऐसे में 4 में से किसी एक तरह की बाधा हो सकती है ।

"1. ग्रह बाधा, 2. गृह बाधा, 3. पितृ बाधा और 4.देव बाधा"।


ग्रह-नक्षत्र बाधा : पहली प्राथमिक बाधा को ग्रह नक्षत्रों या कुंडली की बाधा माना जाता है। किसी को राहु परेशान करता है तो कोई शनि से पीड़ित है, जबकि असल में कुंडली बनती है पूर्व जन्म के कर्मों अनुसार। फिर उसका संचालन होता है इस जन्म के कर्मों अनुसार। कर्म के सिद्धांत को समझना बहुत ही कठिन होता है। कोई ग्रह या नक्षत्र किसी व्यक्ति विशेष पर उतना प्रभाव नहीं डालता जितना कि वह स्थान विशेष पर डालता है। हालांकि व्यक्ति 27 में से जिस नक्षत्र में जन्म लेता है, उसकी वैसी प्रकृति होती है। कोई व्यक्ति क्यों किसी विशेष और कोई क्यों किसी निम्नतम नक्षत्र में जन्म लेता है? इसका कारण है व्यक्ति के पूर्व जन्मों की गति इसीलिए नक्षत्रों का समाधान जरूरी है।


वास्तु दोष : घर के स्थान और दिशा का जीवन पर सबसे ज्यादा असर होता है। यदि ग्रह-नक्षत्र सही न भी हों तो भी यदि घर का वास्तु सही है तो सब कुछ सही होने लगेगा। अक्सर यह देखने में आया है कि उत्तर, ईशान और पश्चिम एवं वायव्य दिशा का घर ही उचित और शुभ फल देने वाला होता है। घर के अंदर शौचायल, स्नानघर और किचन को उचित दिशा में ही बनवाएं।


पितृ बाधा : यदि आपके ग्रह-नक्षत्र भी सही हैं, घर का वास्तु भी सही है तब भी किसी प्रकार का कोई आकस्मिक दुख या धन का अभाव बना रहता है, तो फिर पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए। ज्योतिष शास्त्र से भी पितृदोष का पता लगाया जाता है और उसके निवारण हेतु शान्तिकर्म भी किया जाता है ।


देव बाधा : देव बाधा से बचना मुश्किल है। अधिकतर लोगों पर देव बाधा नहीं होती । देव बाधा उन पर होती है, जो नास्तिक है, सदा झूठ बोलते रहते हैं। किसी भी प्रकार का व्यसन करते हैं और देवी-देवता, धर्म या किसी साधु का मजाक उड़ाते या उनके प्रति असम्मान व्यक्त करते रहते हैं। देवी या देवता आपके हर गुप्त कार्य या बातों को सुनने और देखने की क्षमता रखते हैं। छली, कपटी, कामी, दंभी और हिंसक व्यक्ति के संबंध में देवता अधिक जानकारी रखते हैं। वे जानते हैं कि आप किस तरह के व्यक्ति हैं। आप मनुष्य के भेष में असुर हैं या मानव, देव हैं या दानव। इसलिए इस दोष को भी आप निवारण करने हेतु हमेशा तत्पर रहे ।


व्यक्ति मेहनत तो बहोत कर लेता है परंतु जब असफलता के कारण से उसे गुजरना पडता है तो वह जीवन मे मायूस हो जाता है,हार जाता है और फिर से उसको मेहनत करने की इच्छा नही होती है । तंत्र शास्त्र में कई प्रकार की जड़ी बूटियां है जिनके माध्यम से चारो प्रकार के दोषों से बचा जा सकता है परंतु आवश्यकता है सकारात्मक भूमिका की,आप सकारात्मकता के साथ इन चारों दोषों के निवारण हेतु तांत्रिक जडी बूटियों के साथ रक्षा कवच धारण करेंगे तो अवश्य ही आपको जीवन मे सफलता मिलेगी । ये चारों दोष भलेही अपने अपने स्थान पर बड़े है परंतु इस धरा पर ही इन दोषों का समाधान है,बिना कुंडली देखे हमे इन चारों में से कौन-कौनसा दोष है ये पता करना कठिन है । इसलिए ज्योतिष शास्त्र का सहारा लेकर कुंडली के अध्ययन मात्र से हम दोष की सही पहचान करके अगर सही प्रकार से दोष निवारण हेतु तांत्रिक जड़ी बूटियों को रक्षा कवच बनाकर धारण करेंगे तो अवश्य ही जीवन मे सभी क्षेत्रों में उन्नति ही उन्नति संभव है ।


आनेवाले समय मे बहोत सारे शुभ मुहूर्त है,जैसे अभी चंद्रग्रहण, गुरुपूर्णिमा, श्रावण माह......इत्यादि, तो ऐसे मुहूर्तों में जड़ी बूटियों से निर्मित दोष निवारण रक्षा कवच शक्तिशाली बनाये जा सकते है । मैने जीवन मे इस प्रकार का कार्य पहिले भी संपन्न किया था और इसमे मुझे बहोत से लोगो की सेवा करने का मौका मिला, आज वह सभी लोग कहीं ना कही अपने जीवन मे अपने अपने क्षेत्र में उन्नति के ओर आगे बढ़ चुके है । ऐसा तांत्रिक जड़ी बूटियों के माध्यम से बनाया जानेवाला रक्षा कवच कुंडली के अध्ययन से बनाया जायेगा, जिसका न्योच्छावर राशि 1450/-रुपये है । जो व्यक्ति इन्हें धारण करने के इच्छुक है उन्हें धनराशि भेजने हेतु संपर्क करना है,जन्म तारीख, जन्म समय और जन्म स्थान whatsapp पर भेजना है,कुंडली अध्ययन के बाद उचित मूहर्त में उनके लिए कवच बनाकर  उनके रहिवासी स्थान पर जल्दी भेज दिया जाएगा ताकि उन्हें अच्छे परिणाम शीघ्र प्राप्त हो ।
" Whatsapp number   +918421522368 "

आदेश........

29 Jun 2019

कुंडलिनी उर्जा का सत्य



कुंडलिनी के बारे में आज आध्यत्म और विज्ञान दोनों ही खोज कर रहे हैं,यह एक आकर्षण का विषय हो गया है किन्तु बिना सत्य यह एक कल्पना और अंधविश्वास का विषय ही है। आज कुंडलिनी ध्यान पर कितने शिबिर और योग और हीलिंग सेंटर चल रहे पर क्या कुंडलिनी के बारे में जो सत्य परोसा गया है वो कितना सत्य है ?

क्यूंकि बिना अभ्यास सीधा ही कुंडलिनी जागरण में प्रवेश करना तबाही का कारण हो सकता है। गुरु परम्परा या सिद्ध कौलमार्ग को समझे बिना मूर्खतावश कुंडलिनी जाग्रत करना साधक का अधोपतन करवाता है। कुंडलिनी विषय गहरा और ध्यानात्मक विषय है। यह एक दिन के शिबिर या कुछ महीनो की प्राणायाम की प्रेक्टिस से सिद्ध नहीं होता। प्राणायाम केवल मस्तिष्क और ब्रह्मरंध्र शरीर के सोये हुए कोषों को चार्ज करता है। इससे कुंडलिनी का वहन 1 प्रतिशत भी नहीं होता। यह मिथ्या धारणा फेली हुई है। इस पर न जाने कितने लोग अपना बिज़नेस बना कर बैठ गए हैं। बिना सिद्धि को प्राप्त किये साधना में कुंडलिनी पर काबू पाना सम्भव नहीं है।

अब यह कुंडलिनी है क्या ? वह समझना है और उसके आयाम कितने है ? यह 16 आयाम और 7 पथ पर चल कर अपने शिव को मिलती है। कुंडलिनी एक सॉफ्टवेर प्रोग्राम जैसा है जहाँ उसकी खुद की शक्ति नहीं है वो प्रोग्रामर के आधीन हो कर अपने प्रोग्राम को रन करती है,प्रोग्रामर अपनी सोच, अपने संकल्प के अनुसार एक ही कुंडलनी को अनेको आयामों में विभाजित करता है,जिसको सहस्त्रदल की सिद्धि कहते हैं।

किन्तु यह प्रोग्रामर के पास खुद की शक्ति नहीं है। बल्कि वो अपने प्रोग्राम को रन करने के लिए पावर हाउस चैतन्य आत्मा का करता है आत्मा को अजाग्रत अवस्था में बांध दिया जाता है,अभी आत्मा तो स्वयं मुक्त है किन्तु कर्म-बंधन या कर्म-चक्र का प्रोग्राम वो आत्मा और शरीर के बीच का माध्यम जिसे मन कहते उसमें इंस्टाल किया जाता है।

कम्पूटर में जितने प्रोग्राम कम होगे उतने कम्पूटर की स्पीड ज्यादा रहेगी पर यह प्रोग्राम की कर्म की चिप जिसे कुंडलिनी कहते है उसे सुषुप्त अवस्था में छोड़ा जाता है। इस के कारण आत्मा परमात्मा नहीं बनकर
जीवात्मा बनाया जाता है। प्रोग्रामर के द्वारा पहले से जन्म और आने वाले जन्मो का कर्म पहले से ही इंस्टाल है। कभी-कभी इन्सान सिक्स्थ सेन्स की बातें करता है मानो वो नॉनसेन्स है क्यूंकि उसको पता ही नहीं प्रेरणा देने वाला उसका ही प्रोग्राम किया हुआ मन है। वो अपने प्रोग्राम के अनुसार ही कर्म करता है
और पाप-पूण्य सिद्धियो के चक्र को सत्य मान लेता है। यही मायाजाल है और उसका सेंसर है मन।
मन की तीन अवस्थाएं है-
उसको बाह्य, सूक्ष्म और अंतर मन कहते हैं। बाह्य वाला व्यक्ति जड और तामसिक होता है। सूक्ष्म वाला भोगी और राजसिक होता है। अंतर मन वाला सात्विक और वैरागी होता है। यह तीनो मायाजाल में घूमते है। किसी प्रोग्रामर के संकल्पों को पूरा करता है। सत्व वाला सत्व बढ़ा कर वापस दूसरे जन्म में रजस में फसता है क्यूंकि उसने सत्व में भौतिक सुखों का त्याग किया किन्तु बाह्य और सूक्ष्म मन के प्रोग्राम को नहीं जिया। विधाता कर्म का चक्र ऐसे घुमाता है।

दुसरे तत्वों वाले उसके विपरीत तत्वों का चयन करेंगे। कुंडलिनी का कार्य है भोगी बनाना।
भोग चाहे सत्व हो, रज हो या तमस,अब बात आएगी प्रोग्रामर के आगे की सोच को समझने की।
उसका एक ही सिद्धांत है-
परमात्मा त्रिगुणातीत है, काला तीत है।
समय उसके हिसाब से चलता है वो समय के हिसाब से नहीं।

अपरा सिद्धि को सिर्फ शब्दब्रह्म की साधना के अंतर्गत गुरु द्वारा सत्य शिष्य को समझाया जाता है।
गुरु ही केवल मार्ग है जो प्रोग्रामर से विपरीत भाषा को जानते हैं। इस हेतु बिना सिद्ध गुरु-निर्देशन से साधना मुक्ति में बाधा बनती है। एक बार गुरुदेव से इस विषय पर बातचीत हुई। उन्होंने कहा था मूर्ख होते है जो कुंडलिनी के पीछे पडते हैं। कुंडलिनी के वश में नहीं होना है कुंडलिनी को अपने वश में करना है। चैतन्य को साधा नहीं जाता, चैतन्यमय हुआ जाता है। जब तक यह अवस्था नहीं है तब तक जीव अपनी आत्मा को कुंडलिनी के पाश में पाता है। कुंडलिनी जागरण में अनेकों सिद्धियों को बताया गया है किन्तु वो सिद्धि साधक को मोक्ष में भटका सकती है।

इसमें दो प्रकार की सिद्धि कार्य में रहती है-
एक परा सिद्धि और एक अपरा सिद्धि। परा सिद्धि के अंतर्गत देवता, यक्ष ,किन्नर, गंधर्व, भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी-लाकिनी-हाकिनी-काकिनी--इन तत्वों से जुडी हुई सिद्धि मिलती है। इसमें जीव के प्रमुख तत्वों के अनुसार यह सिद्धियां जाग्रत होती हैं।
साधक कौनसे तत्वों में अपनी साधना करता है उस हिसाब की सिद्धि होती है। 'पराशक्ति पिंडे सौ ब्रह्मांडे' के अनुसार ब्रह्मांड को एक पिंड समझो। उसके अंतर्गत जीव, देवता, मनुष्य सब आ जाते हैं। यह मूल पंचभूतो के माध्यम से 3 तत्वों से अनुसन्धान करता है।

यह तीन तत्व हैं- सत्व, रज और तम।
इसमें से कौन-से तत्व का जीव है,उस प्रकार की सिद्धि जाग्रत होती है।
ऐसीे परासिद्धि से वो एक काल- चक्र के सीमित ज्ञान काउद्बोधन कर सकता है। यह जाग्रति ने कितने सिद्ध आत्माओं को फंसा दिया है।
कौन बोल रहा है कौन-सी भाषा आ रही है? उस हिसाब की सिद्धि का पता चलता है।
इसमें मध्यमा, वैखरी, परा और पश्यन्ति की प्राप्ति होती है किन्तु वो सार या बोध की अवस्था की प्राप्ति नहीं कर पाता। ललिता सहस्त्र नाम् में भगवती और कुंडलिनी के नामो का विवरण आता है। उसमे एक मन्त्र आता है जिसमें पश्यन्ति पर देवता यानि देवताओ की वाणी समझना जिसे श्रुति कहते हैं। यह आकाशिक रिकॉर्ड का ज्ञान मिल जाता है किन्तु आकाश और अन्तरिक्ष वो ब्रह्मांड यानि पिंड का ही सत्य है। साधक अपने आप को यहाँ मोक्ष प्राप्त किया हुआ समझता है पर यह मोक्ष का छल है।
सात्विक वृतियों की सर्वोच्च सिद्धि मिलने पर इन्सान मुक्ति को समझता है, प्राप्त नहीं करता। यहां वह कुछ सिद्धियो को प्राप्त करके अपने आप को पद दे देता है। पर इससे आगे यानि हिरण्यगर्भ संकल्प के अंतर्गत यह एक छलावे के लिए रचना की गयी है कि
साधक को मुक्ति का भ्रम हो। जिसमे बहुत सारे सिद्ध फंस चुके। हमने कितने देवताओं के पीछे नाग का चित्र देखा है। उसका निर्देश यही है की वो कुंडलिनी के अंतर्गत मोक्ष को मिले है मूल मुक्ति इससे काफी दूर है। कृष्ण ने कालियानाग का दमन किया उसके ऊपर चढ़कर। हम इश्वर या देवता की लीला में फंस गए किन्तु यह नहीं सोचा कि बोध क्या है ?

हमारी आत्मा जो इश्वर है, जो काल रूपी कुंडलिनी से उपर है, मुक्त है। हमें यहा साधना कुंडलिनी जागरण की नहीं करनी बल्कि उससे मुक्त होकर उसका उद्धार करने की है। अब अपरा सिद्धि को देखो। यह भौतिक और वासनात्मक नहीं अपितु पराभौतिक और आध्यात्मिक है। परा-सिद्धि से आत्मा को प्रलय तक ही मुक्ति मिलती है और अपरा-सिद्धि सर्वदा मुक्ति के लिए है । प्रलय और महाप्रलय में परासिद्धि वाला आत्मा वापस अपने जीव और तत्व के भाव में आ जाता है। जब की अपरासिद्धि कभी नष्ट नहीं होती। वो जब भी जन्म लेती है वो वैरागयुक्त और काल-चक्र से मुक्त रहती है। उसका प्रयोजन मायाजाल में भेद करके मोक्ष के ज्ञान को प्रगट करना होता है। अपरा का महत्व इतना ही है कि परा इसके सामने तुच्छ है।

यही अपराशक्ति परब्रह्म की शक्ति होती है। गुरुतत्व-बोध,तत्वों का सारतत्व युक्त होती है। कौलमार्ग परा और अपरा दोनों ही सीद्धि का मार्ग है। उसके प्रणेता नादी गुरु हैं जो स्वयम प्रगट नाद रूप हो। नाद उनके हिसाब से चलता है। हमने कितने ब्रह्म पुरुषों के बारे में सुना है। वो कहते हैं कि अनेको ब्रह्मांड है, अनेको ब्रह्म हैं और ब्रह्म ही काल से मुक्त होता है। क्यूंकि अपरासिद्धि से कुंडलिनी को छोड़ आत्मा अपने मूल शब्दस्वरुप में आता है। मानो कोई कम्पनी का wi-fi नेटवर्क जहाँ जाओगे हमें ही पाओगे यह इश्वरीय शक्ति है। कण-कण में व्याप्त है।

आत्मा की मूल शक्ति शब्दब्रह्म है नकि कुंडलिनी।
कुंडलिनी काल का पाश है।वो बार- बार अपने ज़हर से इन्द्रिय रूपी गोकुल में तबाही करता है। नाद अनुसन्धान से ही अपरा प्रकृति उद्भव होती है।
इंद्र भी दास हो जाता है। देवता तुम्हारी सेवा में आ जाते हैं। ब्रह्मा तुम्हे समझने नीचे आते हैं। यह बहुत उच्चतम और भगवदीय अवस्था है। इसको मात्र गुरुसेवा और गुरुभक्ति से ही प्राप्त किया जाता है।


आदेश........

24 Jun 2019

ग्रहण और गुप्त नवरात्रि मंत्र साधना.



अब समय इतना बदल गया के एक आर्टिकल लिखना है तो बहोत ज्यादा सोच समझकर लिखना पड़ता है,इंसान जब पैदा होता है तो उसका वजन ढाई किलो के आसपास होता है और मृत्यु के बाद भी जब हड्डियों को सिमटकर जल में बहाया जाता है तब भी उसका वजन ढाई किलो के आसपास ही होता है । जब पूरी जिंदगी घिस गई कुछ ना कुछ पाने में तो अब आप ही सोचो "क्या पाया और क्या खोया",अब तो थोड़ा समय निकालकर भगवान के चिंतन में भी लगा दो,शायद तुम्हारे जीवन मे कुछ अच्छा हो ।

3 जुलाई को गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होने वाली है और ठीक उसके एक दिन पूर्व 2 तारीख को रात्रि में पूर्ण सूर्य ग्रहण है,ग्रहण एक ब्रम्हाण्डिय घटना है इसलिए वह किसी भी देश मे हो उसका असर सम्पूर्ण पृथ्वी लोक पर होता है । आवश्यक मंत्र साधना से जीवन के कमियों को पूर्ण करने हेतु इस गुप्त नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ भगवती जगदंबा की आराधना की जाती है । ऐसा मौका कभी कभी मिलता है के नवरात्र के एक दिन पूर्व ग्रहण काल मे मंत्र सिद्धि करे और दूसरे दिन से 9 दिनों तक मंत्र जाप करके स्वयं को जीवन मे उन्नति के ओर आगे बढ़ाए ।

साधना सामग्री-100 ग्राम कुंकुम,एक नारियल, मौली (कलावा or पंच रंगी धागा), कपूर,धूपबत्ती,मातारानी का चित्र,तील का तेल दीपक जलाने हेतु,आसन-लाल,वस्त्र-लाल ।

साधना विधि-सर्वप्रथम मातारानी का चित्र लाल वस्त्र पर किसी बाजोट पर स्थापित करे,ठीक चित्र के सामने कुंकुम की ढेरी बनाये,नारियल को छील कर सिर्फ उसका गोला रखे,गोले पर नारियल के तीन आंखे होती है जिसका हमे त्रिशक्ति के रूप में पूजन सम्पन्न करना है,पूजन करते समय हर आंख पर सिंदूर चढ़ाए,तिल के तेल का दीपक प्रज्वलित करे, धूपबत्ती जलाए और मौली को नारियल के गोले को बांध देना है । यह हो गयी पूजन की विधि अब आगे आपको किसी भी प्रकार के माला से नवरात्र में 11 माला जाप रात्रि के किसी भी समय करना है,मुख पच्छिम दिशा के तरफ करके जाप करे,मंत्र सिद्धि हेतु ग्रहण काल मे 21 माला मंत्र जाप करे ।


मंत्र-
( मंत्र Whatsapp पर दिया जाएगा no. है +918421522368 )


मंत्र की गोपनीयता बनाये रखना मेरे लिए सर्वोपरि कार्य है इसलिए मंत्र व्हाट्सएप पर आप प्राप्त कर सकते हो,जो निःशुल्क है ।

दसवें दिन साधना सामग्री को नदी या तालाब में विसर्जित करना है और मातारानी का चित्र,माला को आप हमेशा संभाल कर रखिए ।


साधना के लाभ-
1-मनोकामना पूर्ति
2-रोग निवारण
3-वशीकरण
4-विवाह होता है
5-नॉकरी प्राप्त होती है
6-भगवती की कृपा
7-धनलाभ.
इससे भी ज्यादा लाभ इस साधना से अवश्य प्राप्त हो सकते है,इसलिए इस साधना को अवश्य ही संपन्न करे ।


आदेश ......